Book Title: Bbhakti Karttavya
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 12
________________ (vi) रहना सो पराभक्ति है । परम महात्म्या गोपांगनाएँ महात्मा वासुदेव की भक्ति में उसी प्रकार से रहीं थी। परमात्मा को निरंजन और निर्देहरूप से चिंतन करने पर जीव को उस लय का प्राप्त होना विकट है, इसलिए जिसे परमात्मा का साक्षात्कार हुआ है ऐसा देहधारी परमात्मा उस पराभक्ति का परम कारण है। उस ज्ञानीपुरुष के सर्व चरित्र में ऐक्यभाव का लक्ष्य होने से उसके हृदय में विराजमान परमात्मा का ऐक्यभाव होता है और वही पराभक्ति है । ज्ञानीपुरुष और परमात्मा में दूरी ही नहीं है, और जो कोई दूरी मानता है, उसे मार्ग की प्राप्ति परम विकट है। ज्ञानी तो परमात्मा ही है और उसकी पहचान के बिना, परमात्मा की प्राप्ति हुई नहीं है, इस लिए ऐसा शास्त्रलक्ष है कि सर्व प्रकार से भक्ति करने योग्य ऐसी ज्ञानीरूप परमात्मा की देहधारी दिव्य मूर्ति की नमस्कारादि भक्ति से लेकर पराभक्ति के अंत तक एक लय से आराधना करना । ज्ञानीपुरुष के प्रति जीव की इस प्रकार की बुद्धि होने से कि परमात्मा इस देह धारी के रूप में हुआ है, भक्ति ऊगती है और वह भक्ति क्रम से पराभक्ति रूप होती है । इस संबन्ध में श्रीमद् भागवत में, भगवद्-गीता में बहुत से भेद प्रकाशित कर वही लक्ष्य प्रशंसित

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