Book Title: Bbhakti Karttavya
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ २२. होय मुमुक्ष जीव ते, समजे एह विचार ; होय मतार्थी जीव ते, अवळो ले निर्धार. होय मतार्थी तेहने, थाय न आत्म लक्ष; तेह मतार्थी लक्षणो, अहीं कह्यां निर्पक्ष. २३. मतार्थी लक्षण २४. बाह्य त्याग पण ज्ञान नहीं, ते माने गुरू सत्य ; अथवा निज कुलधर्मना, ते गुरूमां ज ममत्व. जे जिन देहप्रमाण ने, समवसरणादि सिद्धि ; वर्णन समजे जिननु, रोकी रहे निज बुद्धि. प्रत्यक्ष सद्गुरूयोगमां, वर्ते दृष्टि विमुख ; असद्गुरूने दृढ करे, निजमानार्थे मुख्य. देवादि गति भंगमां, जे समजे श्रुतज्ञान; माने निजमतवेषनो, आग्रह मुक्तिनिदान. लास्वरूप न वृत्तिनु, ग्रा व्रत-अभिमान ; ग्रहे नहीं परमार्थने, लेवा लौकिक मान. अथवा निश्चय नय ग्रहे, मात्र शब्दनी मांय ; लोपे सद् व्यवहारने, साधन रहित थाय. ज्ञान दशा पामे नहीं, साधन दशा न कांई; पामे तेनो संग जे, ते बूडे भव मांही. 24

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128