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आत्मविलाम
[६४ अर्थ-हे सुखस्वरूप | अपनी सत्र पात्रोंमे सम्पूर्ण भून तेरा ही गीत गा रहे हैं, अर्थात तुझे ही मॉग रहे हैं, अन्य कुछ नहीं । वायु जल व अग्नि स्वयं अपनी मब चेष्टायोंगे. अथवा अन्य प्राणी वायु जल, व अग्निके द्वारा नग ही योज कर रहे हैं। राजा धर्मके द्वारा, अर्थात अपना धर्म पालन करके तेरी ही मिना मॉग रहा है । चित्रगुप्त (धर्मराजका गुमाशता) भी तेरे ही गीत गा रहा है, जो कि जीवों का का हिसाब लिख-लिखकर और धर्मका विचार कर करके जानता है कि तू कैसे पाया जाता है ? तथा पण्डित-ऋपिश्वर प्रत्येक युगमे वेदोद्वारा तेरा ही गीत गा रहे हैं, अन्य कोई धेय उनका नहीं हो सकता। इधर मनको मोहनेवाली मोहनियाँ स्वोंमे भोगोंद्वारा बात अथवा अज्ञात रूपसे अपनी प्रत्येक छवियोंमे तेरे लिये ही नृत्य कर रही हैं कि किप्ती प्रकार तेरा दर्शन हो । अन्य जो तेरे उत्पन्न किये रत्न अर्थान् अद्भुत शक्तियाँ प्रकट हुई हैं, अथवा तेरे प्रकाशकी झलक मारनेवाले जो हीरे, माणिक आदि रल हैं, वे सब तुझे ही गा रहे हैं अर्थात् तेरे ही अस्ति-मातिस्वरूपका चमत्कार दिखला रहे हैं। और साथ ही अड़सठ तीर्थ तेरी ही नित्यनिर्मलताका गीत गा रहे हैं। महाबलवान् जोधा शूरवीर भी केवल तुझे ही गा रहे हैं, अर्थात् उनमें जो शक्ति है वह अपनी नहीं बल्कि वे तेरी ही शक्तिसे शक्तिसम्पन्न हो रहे हैं और अपने बलद्वारा तुम सुरवस्वरूपकी प्राप्ति ही उनका धेय हैं । इस प्रकार चारों सानि तको ही गा रहे हैं और सव खण्ड, मण्डल व ब्रह्माण्ड जो तेरे आधार टिके हुए हैं ये सब तेरा ही गीत गा रहे हैं। वे जो में भाये हुए हैं, अर्थात् तेरे रसिकभक्त जो तेरी प्रीतिमें रते
तो साक्षात् रूपसे तुझं गाते ही हैं । अन्तमें गुरु नानक