Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभृते [ २. २५दिग्विदिग्माणं प्रथमं अनर्थदण्डस्य वर्जनं द्वितीयम् । ...
भोगोपभोगपरिमाणं इदमेव गुणव्रतानि त्रीणि ॥२४॥ (दिसिविदिसिमाण पढमं ) दिग्विदिङ्मानं परिमाणं प्रथमं गुणवतं ज्ञातव्यम् । ( अणत्थदंडस्स वज्जणं विदियं ) अनर्थदण्डस्य वर्जनं द्वितीयं गुणवतं भवति । ( भोगोपभोग-परिमा ) भोगोपभोगपरिमाणं तृतीयं गुणवतं भवति । भोजनाविक भोगः । वस्त्रस्त्रीप्रमुखमुपभोग इत्यर्थः । ( इयमेव गुणव्वया तिण्णि ) इदमेवाचरणं त्रीणि गुणव्रतानि भवन्ति ॥ २४ ॥
सामाइयं च पढमं विदियं च तहेव पोसहं भणियं । तइयं अतिहिपुज्जं चउत्थ सल्लेहणा अंते ॥२५॥ सामायिकं च प्रथम द्वितीयं च तथैव प्रोषधो भणितः । तृतीयमतिथि-पूज्यं चतुर्थ सल्लेखना अन्ते ॥ २५ ॥ ( सामाइयं च पढम) सामायिकं च प्रथमं शिक्षावतं। चैत्यपञ्चगुरुभक्तिसमाधिलक्षणं दिन प्रति एक वारं द्विवारं त्रिवार वा व्रत-प्रतिमायां सामायिक भवति । यत्तु सामायिकप्रतिमायां सामायिक प्रोक्तं तत्त्रीन् वारान् निश्चयेन करणीयमिति
का परिमाण करना तीसरा गुणव्रत है। इस प्रकार ये तीन गुणवत हैं ॥ २४ ॥
विशेषार्य-पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर ये चार दिशाएं हैं तथा ऐशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, ऊर्ध्व और अधो ये छह विदिशाएँ हैं। इनमें आने जानेकी सीमा निश्चित करना सो पहला दिग्वत नामका गुणवत है। दूसरे गुणवतका नाम अनर्थदण्ड त्यागवत है इसमें अपध्यान, दुःश्रुति, पापोपदेश, हिंसादान और प्रमादचर्या इन पांच निरर्थक कार्यों का त्याग करना होता है। भोगोपभोगपरिमाण नामका तीसरा गुणव्रत है । जो वस्तु एक बार भोगने में आती है उसे भोग कहते हैं जैसे भोजन आदिक तथा जो वस्तु बार-बार भोगनेमें आती है उसे उपभोग कहते हैं जैसे वस्त्र तथा स्त्री आदि । इनकी सीमाएं निर्धारित करना भोगोपभोगपरिमाणवत है । ये तीन गुणव्रत हैं ॥ २४ ॥
गाथार्थ-पहला सामायिक, दूसरा प्रोषध, तीसरा अतिथि-पूज्य और चौथा मरण कालमें सल्लेखना धारण करना ये चार शिक्षाव्रत हैं ॥२५॥
विशेषार्थ-सामायिक नामका पहला शिक्षावत है। इसमें चैत्यभक्ति, पञ्चपरमेष्ठी भक्ति और समाधि भक्ति करना चाहिये । व्रत
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