Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 413
________________ अंग्रेजी का शब्द इडियट बहुत अच्छा है। वह जिस मूल धातु से आता है उसका अर्थ होता है, जो अपना निजी अर्थ खोज रहा है। जो अपना व्यक्तिगत इडियम खोज रहा है वह इडियट। वही मूढ़ है जो अपना निजी अर्थ खोज रहा है। जो सोच रहा है कि मेरी कोई नियति है। मुझे कुछ खोजना है। मुझे कुछ सिद्ध करके बताना है। ____ वही समझदार है जिसने विराट के साथ अपनी नियति जोड़ दी। कोई लहर सागर की अपना लक्ष्य खोजने लगे तो पागल ही हो जायेगी न! लक्ष्य सागर का होगा, लहर का कैसे हो सकता है? फिर सागर का भी कैसे होगा, महासागर का होगा। फिर महासागर का भी कैसे होगा, अस्तित्व का होगा। अंततः तो अर्थ समग्र का होगा। व्यक्ति का कोई अर्थ नहीं होता, समष्टि का अर्थ होता है। अर्थ विराट का होता है। और यह वचन बड़ा अदभुत है। स जयत्यर्थसंन्यासी.../ जिसने अर्थ का त्याग कर दिया वही जीत गया। अर्थ के त्यागी को ही संन्यासी कहते हैं। जिसने कहा, अब मैं क्या खोजूं? मेरा क्या लेना-देना! बहूंगा तेरी धार में। ले चलेगा जहां, वहां चलूंगा। डुबा देगा तो डूबूंगा। उबारेगा तो उबरूंगा। अब तू समझ। अब तू जान। तेरी मर्जी हो जैसी। जब कहते हैं कि पत्ते भी उसकी मर्जी के बिना नहीं हिलते तो मैं क्यों हिलूं? हिलाये तो हिलूं, न हिलाये तो न हिलूं। जैसा नाच नचायेगा, नाचूंगा। ऐसा जिसने समग्ररूपेण छोड़ दिया परमात्मा पर, उसका नाम ही संन्यासी। अर्थसंन्यासी। स जयति अर्थसंन्यासी पूर्णस्वरसविग्रहः। और जिसने इस तरह छोड़ दिया उसके जीवन में उस विग्रह का पदार्पण होता है, उस प्रसाद का पदार्पण होता है जहां स्वरस जन्मता है; जहां परम रस की धार बहती है। ___ तुम रोके खड़े हो। तुम बाधा हो। तुम झरने पर पड़े हुए पत्थर हो, हटो तो झरना बहे। तुम्हारे कारण झरना नहीं बह पा रहा है। ___ 'वही कर्मफल को त्यागनेवाला पूर्णानंदस्वरूप ज्ञानी जय को प्राप्त होता, जिसकी सहज समाधि अविच्छिन्न रूप में वर्तती है।' और ध्यान रखना, समाधि तो तभी अविच्छिन्न रूप में वर्तेगी जब सहज हो। सहज का अर्थ, जब स्वाभाविक हो। स्वाभाविक का अर्थ, जब चेष्टा से निर्मित न हो, आयोजना न की जाये, रोपित न की जाये। वही समाधि, जो किसी प्रयास से उत्पन्न न हो, अनायास हो। ____ इस फर्क को समझना। यही पतंजलि और अष्टावक्र का भेद है। पतंजलि जिस समाधि की बात कर रहें वह चेष्टा से होगी। यम, नियम, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, तब समाधि। ऐसी लंबी यात्रा होगी। बड़ी योजना करनी पड़ेगी। बड़े प्रयास करने पड़ेंगे। सब तरह से अपने को साधना पड़ेगा, तब होगी। वह संकल्प का मार्ग है। ___ अष्टावक्र कहते हैं, समर्पण। छोड़ो भी। तुम क्या साधोगे यम-नियम? तुम कैसे प्रत्याहार साधोगे? श्वास तो अपनी नहीं, प्राणायाम क्या करोगे? ध्यान-धारणा क्या करोगे? तुम हो कौन ? तम हटो बीच से। यह अहंकार जाने दो। इसी अहंकार पर तमने अब तक हीरे-जवाहरात मन का निस्तरण 399

Loading...

Page Navigation
1 ... 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436