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२०११ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत। (५९३ ]
मूत्रसंशोधन | स्वमार्गप्रतिपत्तौ तु स्यादुप्रायैरुपाचरेत्॥
मूत्रं संशुद्धयेत्ततः॥५६॥ तं वस्तिभिः कुर्याद्गुडस्य सौहित्यं मध्वाज्याक्तवणः । ____ अर्थ-दसदिन तक घावपर स्वेदन करै,
पिबेत् । किन्तु जो सात दिन में मूत्र अपने मार्गपर द्वौ कालौ सघृतां कोणां यवागू मूत्रशोधनैः |
न आजाय तो पथरी के घावको अग्नि से ज्यहं दशाई पयसा गुडाव्येनाऽल्पमोदनम् भुजीतो फलाम्लैश्च रसैोगलचारिणाम् दग्ध करदे, इस तरह मूत्र के स्वमार्ग में
अर्थ-तदनंतर मूत्रकी शुद्धिक निमित्त । आजाने पर मधुरभूयिष्ठ द्रव्यों से साधित गुडका भोजन करावै । तदनन्तर घावपर | उत्तर वस्ति देना चाहिये । शहत और घृत लगाकर मूत्रको शुद्ध करने
अन्य उपचार । ... . बाले खीरा ककडी गोखरू आदि द्रव्योंके
न चारोहेद्वर्षे रूढव्रणोऽपि सः ।
नगनागाश्ववृक्षस्त्रीरथानाप्सु प्लवेत सः साथ सिद्ध की हुई यवागू घृत मिलाकर
। अर्थ-घाव के पुरजाने पर भी पथरी भोजनके दोनों काळमें ईषत् गरम तीन दिन
रोगवाले को उचित है कि वरस दिन तक तक पान करावे | तदनंतर दस दिनतक
| पर्वत, हाथी, घोडा, और बक्षादि पर न बहुत गुडमिले हुए दूधके साथ चांवलों का
| चढे, स्त्रीसंगम न कर, जल में न तैरे । भातदे । दस दिन पीछे जांगल जीवोंके मांस
अश्मरी में वर्जित अंग। . रसके साथ बेर और अनार आदि की खटाई
मूत्रशुक्रवही बस्तिवृषणौ सेवनी गुदम् । डालकर चांवलों का भात मात्राके अनुसार मुत्रप्रसेकं योनि च शस्त्रेणाऽष्टौ विवर्जयेत्
___ अर्थ-पथरी निकालने के समय मूत्रब्रण प्रक्षालन ।
वाही और शुक्रवाही स्रोतों को त्याग दे । क्षीरीवृक्षकपायेण वणं प्रक्षाल्य लेपयेत् । तथा वस्ति, वृषण, सेवनी, गुदनाडी, लिंग प्रपौंडरीकमंजिष्ठायष्टयाहवनयनौषधैः ।
और योनि इन आठ स्थानों को छोड देना ब्रणाभ्यंगे पचेत्तैलमेभिरेव निशान्वितैः ।
चाहिये । अर्थात इन पर नश्तर न लगने अर्थ-दूधवाले वृक्षों के कषाय से घाव
पावे । क्योंकि इन पर नश्तर लगने से को धोकर प्रपौंडरीक,मजीठ, मुलहटी, और। हाराकसीस इनको पीसकर घावपर लेप
मृत्यु, मूत्रनाव, सूजन, वेदना, आदिउँपद्रव करदे । तथा उपर कहे हुए द्रव्यों में हलदी
उपस्थित होते हैं। और वढाकर इसके साथ पकाया हुआ तेल | इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाव्रण पर लगाने के लिये तयार करले। टीका न्वितायां चिकित्सितस्थाने. ब्रण पर स्वेदन ।
मूत्राघातचिकित्सितनाम दशाहं स्वेदयेचैनं स्वमार्ग सप्तरात्रतः
एकादशोऽध्यायः। मूत्रे त्वऽगच्छति दहेदश्मरीप्रणमग्निना।
देवे।
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