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[४] ज्ञान-अज्ञान
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प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा बोलने से यह जो पावर चेतन है उसका पावर बढ़ता जाता है?
दादाश्री : नहीं, जो उल्टा पावर था वह सीधा हो जाता है। अज्ञान पावर था इसलिए उल्टा कर रहा था, उसके बजाय वह सीधा हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : उल्टा पावर किसे रहता है ?
दादाश्री : वह अहंकार में है। जो अज्ञानी व्यक्ति होता है न, वह सबकुछ उल्टा ही करके आता है। और जब हम ज्ञान देते हैं उसके बाद फिर किसी ने उल्टा किया हो तो भी वह सीधा कर आता है क्योंकि उसकी समझ सीधी हो गई है।
अहंकार किस तरह खत्म करना है? प्रश्नकर्ता : आत्मा स्वभाव से केवलज्ञान स्वरूप होने के बावजूद भी वर्तमान में अज्ञानी के रूप में क्यों व्यवहार करता है?
दादाश्री : वह लोकसंज्ञा से व्यवहार करता है। यह नहीं जानने की वजह से कि सुख किसमें है, उसने भौतिक में, बाहरी चीज़ों में सुख मान लिया है इसलिए अज्ञान खड़ा हो गया। जब पता चलता है कि आत्मा में ही सुख है तो बाहर नहीं ढूँढता, तब ज्ञान उत्पन्न होता है। अतः फिर बाहर ढूँढना बंद कर देता है। खुद के स्वभाव में अपार सुख है जबकि बाहर तो सारा कल्पित है। हम कल्पना करें, तभी सुख आता है, वर्ना न भी आए।
प्रश्नकर्ता : केवलज्ञान स्वरूप होने के बावजूद भी वह कहाँ पर भूल कर बैठा है?
दादाश्री : नहीं, उसने भूल नहीं की है। वह केवलज्ञान स्वरूप ही है। यह तो, विज्ञान से अहंकार खड़ा हो गया है। वह खुद तो अंदर ही है। अंदर तो खुद केवलज्ञान स्वरूप ही है। वह बिगड़ता भी नहीं