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आप्तवाणी-८
न, उस युग में समझ जाते हैं, लेकिन युग बदलता है तो सबकुछ उलझ जाता है।
इन लोगों ने तो सबकुछ उलझा दिया। अब ब्रह्मा को ढूँढने जाएँ तो कहाँ मिलेंगे? दुनिया में किसी जगह पर मिलेंगे? और विष्णु को ढूंढने जाएँ, तो विष्णु मिलेंगे? और महेश्वर?
हम पूछे, 'क्या काम धंधा है इनका? व्यापार क्या है?' तब कहते हैं, 'ब्रह्मा सर्जन करते हैं, विष्णु इन सबका चलाते हैं, पोषण करते हैं। और महेश्वर, वे मारते हैं, संहार करते हैं।' अरे, संहार करनेवाले के पैर छूते हो?
ऐसा है, इस जगत् की हक़ीक़त जाननी हो, तो इस जगत् के छह तत्व निरंतर समसरण करते ही रहते हैं और छहों तत्व इटर्नल है। इटर्नल अर्थात् कोई बनानेवाला होगा? बनानेवाले की ज़रूरत पड़ेगी क्या? इटर्नल वस्तु किसीके बनाए बगैर बनेगी ही नहीं, ऐसा कहें तो गलत बात है न? यानी इसे बनानेवाला कोई है ही नहीं।
फिर भी लोग पूछते हैं, 'कोई तो बनानेवाला चाहिए न?' अरे, तू इटर्नल शब्द समझ जा न! ये छह इटर्नल वस्तुएँ हैं, उनका स्वभाव क्या है? वे उनके गुणधर्म सहित हैं। क्योंकि इटर्नल वस्तु किसे कहते हैं कि जो गुणधर्मसहित हो। खुद के गुण भी होते हैं और धर्म भी होते हैं। धर्म अर्थात् अवस्थाएँ, पर्याय! तो ये छह वस्तुएँ खुद के, गुण, पर्याय सहित हैं। और वे पद्धतिपूर्वक परिवर्तित होती हैं, एक-दूसरे के आमने-सामने सभी। जिस प्रकार कि इन चंद्र, पृथ्वी और सूर्य के परिवर्तित होने से ग्रहण होता है, उसी तरह इन तत्वों के एक-दूसरे के साथ में परिवर्तन होने से सभी अवस्थाएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
अब जो गुण हैं, वे निरंतर साथ में रहते हैं। इसलिए उनमें कमी या बढ़ौतरी नहीं होती, जब कि पर्याय, अवस्थाएँ बदलती रहती हैं। उसे क्या कहा है? कि पर्याय उत्पन्न होते हैं, फिर उनका विनाश हो जाता है, उत्पन्न-विनाश होते ही रहते हैं, लेकिन (तत्व) ध्रुवता नहीं छोड़ता। उत्पन्नविनाश है, वह अवस्था से है और ध्रौवता स्वभाव से है ही।