Book Title: Antakaran Ka Swaroop
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 17
________________ अंत:करण का स्वरूप २३ अंत:करण का स्वरूप सारा दिन क्या बोलता है कि 'ये सारा हमने बोला, हम ऐसे बोलते है, हमने ऐसा बोल दिया।' फिर जाने के समय बोलनेवाला किधर चला गया? तो कहेगा, 'बोलने की शक्ति नहीं है, सब बंद हो गया।' यह तो मात्र अहंकार करता है कि, 'हमने यह किया, हमने वह किया।' हम में अहंकार बिल्कुल नहीं है। इस देह के मालिक हम कभी नहीं हुए। इस वाणी के, इस मन के भी मालिक हुए नहीं और आप तो सबके मालिक, 'ये हमारा, ये हमारा'। कोई आदमी लास्ट स्टेशन (मृत्यु) के बाद कुछ साथ नहीं ले जाता। तुम्हारा हो तो साथ में ले जाओ न ? मगर नहीं ले जाता। उसकी इच्छा तो है साथ में ले जाये। मगर कैसे ले जाये? रेन्टल रूम (यह शरीर) भी खाली करने की इच्छा नहीं, मगर क्या करें? मार-मार के खाली करवाता है। आप खुद ही भगवान हैं, मगर आपको मालूम नहीं हैं। हम तो उसे देखते हैं, मगर आपको भगवान का अनुभव नहीं हैं। आप आत्मा हैं इसका आपको अनुभव नहीं हैं। सेल्फरीअलाइझेशन (आत्मसाक्षात्कार) भी नहीं किया और जो आपका सेल्फ (स्वरूप-आत्मा) नहीं है, उसे ही मानते हैं कि 'मैं ही सेल्फ हूँ।' प्रश्नकर्ता : सब लोग बोलते हैं कि 'अहम्' को भूलो और 'अहम्' को भूलने के लिए हम तैयार हैं, मगर वह भूलाया नहीं जाता तो उसे कैसे भूलाया जाये? दादाश्री : कोई भी आदमी 'अहम्' को भूल सकता ही नहीं। प्रश्नकर्ता : लेकिन यह अहम् छोड़ा कैसे जाये? इसके लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : जो 'ज्ञानीपुरुष' है, उनके विज्ञान से सब होता है। वहाँ ज्ञान नहीं चलेगा। यह सब ज्ञान है वह रिलेटिव ज्ञान है। उसमें करना पड़ता है। मगर यह रिअल ज्ञान है, उसे विज्ञान बोला जाता है। विज्ञान आने पर फिर तुमको कुछ करने का नहीं, ऐसे ही हो जाता है। प्रश्नकर्ता : कई लोग कहते हैं कि हमें ज्ञान हुआ है, वह क्या है? दादाश्री : नहीं, वह ज्ञान नहीं है। जिसे ज्ञान मानते हैं, वह मिकानिकल (बुद्धिजन्य) ज्ञान है। सच्चा ज्ञान तो और ही चीज़ है। उस ज्ञान का तो वर्णन ही नहीं होता। ज्ञान का एक परसेन्ट भी आज किसी ने देखा नहीं। वह सब तो मिकानिकल चेतन की बात है, भौतिक की बात है। और भौतिक का सूक्ष्म विभाग है। जो भक्ति विभाग है और वहाँ 'मैं' और 'भगवान' अलग ही रहते हैं। जगत के लिए वह ज्ञान ठीक है। असल ज्ञान किसे बोला जाता है, जो संपूर्ण ज्ञान है। जिसके आगे कुछ जानने की जरूरत ही नहीं, जिसे 'कैवल्य ज्ञान' बोला जाता है, जिसमें कोई क्रिया ही नहीं है। जगत में जो ज्ञान है, वह क्रियावाला ज्ञान है। ___ यह देह तो इस जीवन के लिए ऐसे ही चलती है। इसमें आत्मा की कोई क्रिया न हो तो कोई दिक्कत नहीं है। इसमें आत्मा की हाजिरी की जरूरत है। 'हम' 'इनके साथ हैं, तो सब क्रिया हो जाती है। वह सब क्रिया मिकानिकल है। जगत जिसे आत्मा मानता है, वो मिकानिकल आत्मा है, सच्चा आत्मा नहीं है। सच्चा आत्मा 'ज्ञानी' ने देखा है और 'ज्ञानी' उसी में रहते हैं। सच्चा आत्मा वो 'खुद' ही है। उन्हें 'जो' पहचानता है, वही खुदा है। सच्चा आत्मा अचल है और मिकानिकल आत्मा चंचल है। सब लोग मिकानिकल आत्मा की तलाश करते हैं। वो मिकानिकल आत्मा भी अभी नहीं मिला. तो अचल की बात कहाँ से मिलेगी? वह तो 'ज्ञानीपुरुष' का ही काम है। कभी किसी समय ही 'ज्ञानीपरुष' होते हैं। हजारों साल में कोई एकाध 'ज्ञानीपुरुष' होता है। तब उनके पास से आत्मा खुला हमें समझ में आ जाता है। हरेक पुस्तक में लिखा है, हरेक धर्म लिखता है कि आत्मज्ञान जानो, वही आखिरी बात है। हिन्दुस्तान में अभी भी संत महात्मा हैं। वे सब आत्मा की तलाश करते हैं। मगर कोई आदमी ऐसा नहीं है जिसे आत्मा मिला हो। (आमतौर पर) आत्मा मिल सके ऐसी चीज़ नहीं

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