Book Title: Antakaran Ka Swaroop
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ अंत:करण का स्वरूप अंत:करण का स्वरूप दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : शुक्लध्यान हो तो उसमें से जो कर्म होंगे वे अच्छे होंगे। और धर्मध्यान में हो तो उससे थोडे कम अच्छे कर्म होंगे, वह सही है? दादाश्री : शुक्लध्यान हो तो क्रमिक मार्ग में कर्म होते ही नहीं। अक्रम मार्ग में है इसलिए होते है। लेकिन इसमें खुद कर्ता होकर नहीं होता, निकाली भाव से होता है। यह तो कर्म खत्म किये बगैर 'ज्ञान' प्राप्त हो गया है न! राग-द्वेष खत्म करने के लिए ध्यान नहीं करना है, सिर्फ वीतराग विज्ञान को जानना है। अहंकार का विलय कैसे? आपको टेम्पररी रिलीफ (अस्थायी राहत) चाहिए या पर्मनेन्ट रिलीफ (स्थायी राहत) चाहिए? प्रश्नकर्ता : पर्मनेन्ट। दादाश्री : तो 'मैं चंदूभाई हूँ' वह कब तक चलेगा? उसका विश्वास कितना टाइम चलेगा? नाम का क्या भरोसा? देह का क्या भरोसा? हम खुद कौन हैं, उसकी तलाश तो करनी चाहिए न? वह जान लिया तो फिर धंधा तो अभी चलता है, उससे भी अच्छा चलेगा। अभी तो धंधे में खराबी होती है, वह खराबी कौन करता है? बुद्धि धंधा अच्छा करती है और अहंकार उसे तोड़ता है। मगर अहंकार हमेशा नुकसान नहीं करता। प्रश्नकर्ता : हर घड़ी यही अनुभव है कि अहंकार ही नुकसान करता है। दादाश्री : हाँ, इसके लिए हम अहंकार निकाल देते हैं। फिर नुकसान करनेवाला चला गया। फिर सब विकनेस (कमजोरियाँ) भी चली जाती हैं। सब विकनेस अहंकार है, इसलिए है। अहंकार चला गया तो विकनेस चली गई। फिर 'चंदूभाई क्या है, तुम क्या हो', उसका भेद हो जायेगा। प्रश्नकर्ता : सेल्फ रीअलाइजेशन के नजदीक जाना है, तो अहम् नष्ट होना चाहिए न? दादाश्री : हाँ, 'मैं हूँ, मेरा है' यह सब नष्ट होना चाहिए। हमें यह सब नष्ट हो गया है। इस 'पटेल' (दादाश्री) को कोई गाली दे तो 'हम' को स्पर्श नहीं होती। क्योंकि 'हम' 'पटेल' नहीं है। जहाँ तक हम मानते हैं कि, 'हम' 'पटेल' है, वहाँ तक अहंकार है। प्रश्नकर्ता : अहंकार का चला जाना, वह तो बहुत मुश्किल है? दादाश्री : अहंकार बढ़ाना वह भी बहुत मुश्किल है और अहंकार खत्म करना भी बहुत मुश्किल है। किसी गरीब आदमी को अहंकार बढ़ाना हो, तो वह बढ़ा नहीं सकता। अहंकार खत्म करने के लिए क्या करना चाहिए कि ऐसा कोई आदमी हो कि जिसका अहंकार खत्म हुआ है, उनके पास जाने से, वहाँ बैठने से अपना भी अहंकार खत्म हो जाता है। दूसरा रस्ता ही नहीं है। बिना अहंकारवाला आदमी कभी कभार दुनिया में होता है, तब अपना काम निकाल लेना चाहिए। जय सच्चिदानंद

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23