Book Title: Anangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 522
________________ .. पण्णवणासुत्तं प० 18 अगंताओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवढं पोग्गलपरियटै देसूणं। इथिवेदए णं भंते ! इत्थिवेदएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! एगेणं आएसेणं जहणणेणं एक समयं, उक्कोसेणं दसुत्तरं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहुत्तमन्भहियं 1, एगेणं आएसेणं जहणणं एगं समयं, उक्कोसेणं अट्ठारसपलिओवमाई पुवकोडिपुहुत्तमन्भहियाइं 2, एगेणं आएसेणं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउदस पलिओवमाई पुवकोडिपुहुत्तमन्महियाई 3, एगेणं आएसेणं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुत्तमम्महियं 4, एगेणं आएसेणं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमपुहुत्तं पुत्वकोडिपुहुत्तमब्भहियं 5 / पुरिसवेदए णं भंते ! पुरिसवेदएत्ति• 1 गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसय. पुहुत्तं साइरेगं / णपुंसगवेदए णं भंते! णपुंसगवेदएत्ति पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। अवेयए णं भंते ! अवेयएत्ति पुच्छा। गोयमा! अवेयए दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-साइए वा अपजवसिए, साइए वा सपजवसिए / तत्थ णं जे से साइए सपजवसिए से जहणेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं // दारं 6 // 538 // सकसाई णं भंते ! सकसाइत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा!. सकसाई तिविहे पण्णत्ते / तंजहा-अणाइए वा अपजवसिए, अणाइए वा सपजवसिए, साइए वा सपजवसिए जाव अवर्ल्ड पोग्गलपरियÉ देसूणं / कोहकसाई गं भंते! पुच्छा / गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुद्दुत्त, एवं जाव माणमायाकसाई / लोभकसाई णं भंते ! लोभकसाइत्ति पुच्छा। गोयमा! जहणणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं / अकसाई णं भंते ! अंकसाइत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! अकसाई दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-साइए वा अपजवसिए, साइए वा सपजवसिए / तत्थ णं जे से साइए सपजवसिए से जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं // दारं 7 // 539 // सलेसे णं भंते ! सलेसेत्ति पुच्छा। गोयमा ! सलेसे दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-अणाइए वा अपजवसिए, अणाइए वा सपजवसिए / कण्हलेसे णं भंते ! कण्हलेसेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेसीसं सागरोवमाइं. अंतोमुहुत्तमब्भहियाई / णीललेसे णं भंते ! णीललेसेत्ति पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमासंखिजइभागमब्भहियाई / काउलेसे णं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाई पलिओवमासंखिजइभागमभहियाइं / तेउलेसे गं

Loading...

Page Navigation
1 ... 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608