Book Title: Aise Kya Pap Kiye
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 111
________________ २२० ऐसे क्या पाप किए! प्रचार बहुत ही प्रभावशील हो रहा है। स्वामीजी जो समाज को मार्गदर्शन कर रहे हैं, उसके लिये उनका अभिनन्दन है। आशा है समाज को उनका बहुत दिनों तक नेतृत्व मिलेगा।" प्रसिद्ध उद्योगपति साहू श्रेयांसप्रसादजी जैन लिखते हैं :- “आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व भगवान् कुन्दकुन्दाचार्यदेव ने जिस मोक्षमार्ग का उपदेश दिया व मुक्ति के मार्ग का मर्म समझाया, उस मार्ग को वर्तमान युग में स्वधर्मी भूले हुए थे व अंधकार में भटक रहे थे। अब दो हजार वर्ष बाद पूज्य स्वामीजी ने उसी मोक्षमार्ग का अनुसरण कर हमें मुक्ति का मार्ग दर्शाया है, जिसके लिये समस्त दिगम्बर जैन समाज ऐसे महान् संत का सदैव ऋणी रहेगा।" श्री अक्षयकुमार जैन, सम्पादक, नवभारत टाइम्स, दिल्ली लिखते हैं :- "गुरुदेव ने वीतराग धर्म का शुद्ध स्वरूप बताकर समाज का बड़ा उपकार किया है। समाज उनका सदैव ऋणी रहेगा।" श्री यशपाल जैन, सम्पादक, जीवन साहित्य, दिल्ली लिखते हैं :"संत कानजी स्वामी हमारे देश की महान् विभूतियों में से हैं। उन्होंने जैन धर्म और जैनदर्शन की जो सेवा की है वह सर्व विदित हैं।" डॉ. नेमीचंद जैन, सम्पादक, तीर्थंकर, लिखते हैं :__ “सन्त श्री कानजी स्वामी के स्वाध्याय के क्षेत्र में बहुमूल्य प्रदेय हैं। उन्होंने लाखों-लाखों लोगों को, जो जैन दर्शन का क, ख, ग' भी जानते थे, पण्डित बनाया है। उन्हें सिर्फ किताबी ही नहीं वरन् जीवन मोक्षमार्गी बनाने में उनका बहुत बड़ा योग है। मेरे हृदय में उनके ज्ञान के प्रति अपरम्पार श्रद्धा है। एक ज्ञानमूर्ति की तरह वे अत्यन्त पूज्य हैं।" बीसवीं सदी का सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व २२१ डॉ. राजकुमारजी साहित्याचार्य, आगरा (उ.प्र.) लिखते हैं :इस युग में अध्यात्म एवं जैन तत्त्वविद्या के स्पष्ट एवं दर्पणवत् विशद् तथा श्रृंखलाबद्ध विवेचन एवं विश्लेषण करनेवालों में असंदिग्ध रूप से श्री कानजी स्वामी का स्थान सर्वोपरि था। डॉ. भागचन्द्रजी जैन 'भास्कर' अध्यक्ष, पालि-प्राकृत विभाग, नागपुर विश्वविद्यालय नागपुर (म.प्र.) लिखते हैं :- “पूज्य कानजी स्वामी वस्तुतः आध्यात्मिक आलोक से आलोकित एक असामान्य क्रान्तिकारी संत थे, विश्व मानव थे, आत्मनिष्ठ, चिंतनशील व आत्मानुभूति के रस से सिक्त मनीषी तत्त्वज्ञानी थे, परमात्मानुभूति और समता में रंगे दिव्य इन्द्रधनुषी व्यक्तित्व के धनी थे। उनका जीवन उदात्त आदर्शों का प्रतीक था, ऋजुता को संजोये था, आत्मलोचन और आत्मनिरीक्षण से मण्डित था। प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाशजी फिरोजाबाद लिखते हैं :- "जैन समाज के सर्वाधिक चर्चनीय व्यक्तियों में से एक थे स्व. श्री कानजी स्वामी । लगभग आधी शताब्दी तक उनके व्यक्तित्व की सर्वत्र धूम मची रही। वह जैनागम के अनन्य एवं उत्साही प्रेमी थे। उनकी विचारधारा से मतभेद रखते हुए भी उनके जिनवाणी प्रेम पर उंगली उठाना किसी भी तरह न्यायसंगत नहीं होगा। आज समाज में स्वाध्याय के प्रति जो अद्भुत लगाव देखने में आ रहा है, उसका श्रेय स्वामीजी को ही है। जैन साहित्य के व्यापक प्रसार एवं शिक्षण-शिविरों की प्रेरणा मूलरूप में उन्हीं से प्राप्त १. आगमपथ, मई १९७६, पृष्ठ १३ २ वही, पृष्ठ १४ ४. वही, पृष्ठ ३५ इसप्रकार हम देखते हैं कि पूज्य श्री कानजी स्वामी ने दिगम्बर जैन समाज के समकालीन सभी व्यक्तियों को प्रभावित किया था वर्तमान जनमानस पर तो उनके प्रखर व्यक्तित्व की छाप है ही, अपने कर्तृत्व से भावी पीढ़ियों को भी वे युगों तक प्रभावित करते रहेंगे। ३. वही, पृष्ठ १८ ५. वही, पृष्ठ ३१ (111)

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