Book Title: Aise Kya Pap Kiye
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 119
________________ २३७ २३६ ऐसे क्या पाप किए! मैंने मन में कहा - "ठीक है बेटा ! तू भी आजा मेरे सामने । मैंने आज भरी सभा में तेरी भी नाक न कटाई तो मेरा नाम जिनचन्द्र नहीं। एक खुशामदी बोला - “सेठजी आपने सोचा तो अच्छा; परन्तु फिर आखिर में हुआ क्या ?" "होना क्या था, मैंने कोई कच्ची गोलियाँ थोड़े ही खेली हैं, जैसेजैसे वह बढ़ता गया, मैं भी बढ़ता गया। दो लाख तक पहुँचते ही वह टाँय-टाँय फिस्स हो गया, हिम्मत हार गया, मुंह लटका कर बैठ गया।" __दूसरा पड़ौसी आश्चर्य प्रगट करते हुए बोला - “तो आपने दो लाख में बोली ले ली!" सेठ बोला - "और नहीं तो क्या ? मैंने ही ली। मेरे सामने और किसकी हिम्मत थी, जो मेरा सामना करता।" तीसरा बोला - “काम तो आपने बहुत अच्छा किया। इससे पूरे गाँव का नाम ऊँचा हुआ; परन्तु यदि बुरा न मानो तो एक बात पूँछु । डरते-डरते उसने प्रश्न किया।" सेठ अकड़कर बोला - "एक ही क्यों ? तू दो प्रश्न पूछ न ! प्रश्न पूछने में बुरा मानने की बात ही क्या है ?" ___ “वीतराग-विज्ञान पाठशालावाले कह रहे थे कि आपका पाठशाला का लिखाया चन्दा तीन साल से बाकी निकल रहा है। इसकारण पाठशाला के पण्डितजी को प्रतिमाह वेतन चुकाने में भारी कठिनाई होती है, यहाँवहाँ से माँगकर पूर्ति करनी पड़ती है। बेचारे पण्डितजी का दैनिक खर्चा वेतन से ही तो चलता है।" उन्होंने यह भी कहा कि - "हम सेठ के घर के इसके लिए कई चक्कर काट चुके; पर उनके कान पर जूं तक नहीं रेंगता।" क्या यह बात सही है ? सेठ तुनक कर बोला - “अरे भैया ! तुम बहुत भोले हो । तुम्हें तो पता ही है कि ये चन्दावाले आये दिन खड़े ही रहते हैं, कभी कोई तो कभी कोई। चौथा बोला - "हाँ, सो तो है आप दानवीर जो ठहरे ! जब आपको मान से मुक्ति की ओर हजारों लोगों की उपस्थिति में पंचकल्याणक के मेले में 'दानवीर' उपाधि की घोषणा हुई तो हजारों लोगों ने सुना और दूसरे दिन लाखों लोगों ने पेपर में भी यही समाचार पढ़ा तो चन्दा लेनेवाले तो आयेंगे ही। आपके यहाँ नहीं आयेंगे तो और कहाँ जायेंगे?" सेठ ने कहा - "हाँ, भैया यही सोचकर तो बोली बोलते हैं और चन्दा लिखा देते हैं; पर इसका मतलब यह तो नहीं कि वे साहूकार बनकर कर्ज वसूली की तरह तगादा करें। क्या हमने किसी का कर्ज लिया है, जो चिंता करें । बोली ही तो ली है, चन्दा ही तो लिखाया है, इसमें कौन से पाप का काम कर लिया ? जब होंगे तब दे देंगे। हमने तो तगादा करनेवालों से साफ-साफ कह दिया - आइन्दा हमारे कोई भी तगादे का पत्र या फोन नहीं आना चाहिए, वरना हमसे बुरा भी कोई नहीं।" पाँचवाँ बोला – “सेठजी ! अभी तो आप कह रहे थे कि बेटे को शेयर में एक करोड़ मिला है, फिर पुराना लिखाया हुआ चन्दा चुका क्यों नहीं देते ?" सेठ ने आँख बदलते हुए कहा - "हाँ, हाँ मिला है, पर ऐसे लुटाने को थोड़े ही मिला है। घर की जरूरतें भी तो होती हैं। कल ही तो उसने पचास लाख का नया बंगला लिया है। पच्चीस लाख की नई मरसरीजड गाड़ी बुक कराई है। दस लाख के बहू के लिए हीरों के गहने बनवायें हैं, मेरी ५०वीं वर्षगाँठ को मनाने का लगभग ५ लाख का बजट है, उसमें सिनेतारिका ऐश्वर्याराय का नाइट शो होगा। दो लाख तो वही ले जायेगी। दैनिक खर्चे में पोते-पोतियों को १००-२०० रुपये रोज का तो जेब खर्च ही है। बेटे के बाररूम की महफिल का खर्च अलग। अब तुम्हीं सोचो ये जरूरी कामों की सोचें या पहले पुराना चन्दा-चिट्ठा चुकायें, और दान पुण्य करें। दान-पुण्य तो मात्र सामाजिक प्रतिष्ठा की बातें हैं सो जब जैसा मौका आता है, बोल-बाल देते हैं। (119)

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