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उपर्युक्त कार्यों के अलावा मन के मुख्य कार्य-संकल्प, विकल्प, स्मृति, चिंतन और कल्पना करना है। मन इन्द्रिय द्वारा गृहीत विषयों पर चिन्तन करता है। उससे आगे मन इन्द्रिय ज्ञान का प्रवर्तक भी है। मन को सभी जगह इन्द्रियों की सहायता की अपेक्षा नहीं रहती है। मन जब इन्द्रिय द्वारा ज्ञात रूप, रस आदि का पर्यालोचन करता है, तब ही इन्द्रिय सापेक्ष होता है। किन्तु इन्द्रियग्राह्य विषयों के अतिरिक्त विषयों पर चिन्तन करता है, तब उसे इन्द्रियों की सहायता की आवश्यकता नहीं रहती है। इन्द्रियों की गति मात्र पदार्थ तक है। मन की गति पदार्थ और इन्द्रिय दोनों तक है।22
चिन्तन, मनन आदि व्यापार मन की क्रियाएं हैं। मन के अतिरिक्त किसी भी इन्द्रिय में इन क्रियाओं को करने की शक्ति नहीं। समझना यह है कि चिन्तन आदि क्रियाएं हमारे शरीर के किस भाग में होती है। शरीर-रचना और शरीर-क्रिया विज्ञान के अनुसार स्पष्ट है कि इनका आधारभूत अथवा उत्पत्ति स्थान मस्तिष्क है। सामान्य कोशिकाएं एवं मांसपेशियां चिन्तन करने में सक्षम नहीं हैं। हृदय भी मांसपेशी है, वह पम्पिंग कर सकती है, चिन्तन नहीं। मस्तिष्क में ऐसे केन्द्र हैं जहां कल्पना, चिन्तन, निर्णय तथा विभिन्न संवेदनाओं का विश्लेषण होता है। चिन्तन का केन्द्र मस्तिष्क है। किसी विषय का विशेष चिन्तन करते समय व्यक्ति अपने मस्तिष्क पर जोर देता है। उसका हाथ मस्तिष्क की ओर जाता है। इन चेष्टाओं से मस्तिष्क की मानसिक क्षमता सिद्ध होती है।
इन्द्रियां अपने-अपने प्रतिनियत विषयों को ग्रहण करती है। उनके अनुभव मस्तिष्क में अंकित होते रहते हैं। मन का कार्य गृहीत विषयों का निर्धारण या विश्लेषण करना है इसके अतिरिक्त आन्तरिक संस्कार, वृत्तियां और इच्छाएं हैं। उनका संयोजन, नियोजन, एवं वियोजन करना। उन्हें एक व्यक्ति, स्थान, वस्तु और काल से दूसरे में रूपान्तरित करना, संपर्क स्थापित करना- ये सारी मानसिक क्रियाएं हैं।
पतञ्जली के अनुसार ग्रहण, धारणा, ऊह, अपोह, तत्वज्ञान, अभिनिवेश मन के कार्य हैं।23
चरक शास्त्र में मन के पांच कार्य हैं-चिन्त्य, विचार्य, उह्य, ध्येय और संकल्प/24
इस प्रकार विचार, स्मृति और कल्पना करना, नये विचारों का उत्पादन, अनुमान करना आदि सभी मन के कार्य हैं। मन और बुद्धि
मन की निर्णायात्मक शक्ति को बुद्धि कहा गया है। बुद्धि एक प्रकार से मानसिक क्रिया और मनोविज्ञान
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