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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
७२०००, माहेन्द्र के ७००००, ब्रह्मेन्द्र के ६००००, लान्तकेन्द्र के ५००००, शुक्रेन्द्र के ४००००, सहस्रारेन्द्र के ३००००, आनत-प्राणत-कल्प-द्विकेन्द्र के २०००० तथा आरणअच्युत-कल्प-द्विकेन्द्र के १०००० सामानिक देव हैं ।
[२३२-२३३] सौधर्मेन्द्र के ३२ लाख, ईशानेन्द्र के २८ लाख, सनत्कुमारेन्द्र के १२ लाख, ब्रह्मलोकेन्द्र के ४ लाख, लान्तकेन्द्र के ५००००, शुक्रेन्द्र के ४००००, सहस्रारेन्द्र के ६००००, आनत-प्राणत-के ४०० तथा आरण-अच्युत-के ३०० विमान होते हैं ।
[२३४] पालक, पुष्पक, सौमनस, श्रीवत्स, नन्दावर्त, कामगम, प्रीतिगम, मनोरम, विमल तथा सर्वतोभद्र ये यान-विमानों की विकुर्वणा करनेवाले देवों के अनुक्रम से नाम हैं ।
[२३५] सौधर्मेन्द्र, सनत्कुमारेन्द्र, ब्रह्मलोकेन्द्र, महाशुक्रेन्द्र तथा प्राणतेन्द्र की सुघोषा घण्टा, हरिनिगमेषी पदाति-सेनाधिपति, उत्तरवर्ती निर्याण-मार्ग, दक्षिण-पूर्ववर्ती रतिकर पर्वत है। ईशानेन्द्र, माहेन्द्र, लान्तकेन्द्र, सहस्रारेन्द्र तथा अच्युतेन्द्र की महाघोषा घण्टा, लघुपराक्रम पदातिसेनाधिपति, दक्षिणवर्ती निर्याण-मार्ग तथा उत्तर-पूर्ववर्ती रतिकर पर्वत है । इन्द्रों के जितने-जितने सामानिक देव होते हैं, अंगरक्षक देव उनसे चार गुने होते हैं । सबके यानविमान एक-एक लाख योजन विस्तीर्ण होते हैं तथा उनकी ऊँचाई स्व-स्व-विमान-प्रमाण होती है । सबके महेन्द्रध्वज एक-एक हजार योजन विस्तीर्ण होते हैं । शक्र के अतिरिक्त सब मन्दर पर्वत पर समवसृत होते हैं, भगवान् को वन्दन-नमन करते हैं, पर्युपासना करते हैं ।
[२३६] उस काल, उस समय चमरचंचा राजधानी में, सुधर्मासभा में, चमर नामक सिंहासन पर स्थित असुरेन्द्र, असुरराज चमर अपने ६४००० सामानिक देवों, ३३ त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, सपरिवार पाँच अग्रमहिषियों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति देवों, ६४००० अंगरक्षक देवों तथा अन्य देवों से संपरिवृत होता हुआ आता है । उसके पदातिसेनाधिपति का नाम दूम है, घण्टा ओधस्वरा है, विमान ५०००० योजन विस्तीर्ण है, महेन्द्रध्वज ५०० योजन विस्तीर्ण है, विमानकारी आभियोगिक देव है । बाकी वर्णन पूर्वानुरूप है । उस काल, उस समय असुरेन्द्र, असुरराज बलि उसी तरह मन्दर पर्वत पर समवसृत होता है । उसके सामानिक देव ६०००० हैं, २४०००० आत्मरक्षक देव हैं, महाद्रुम पदातिसेनाधिपति है, महौघस्वरा घण्टा है । शेष वर्णन जीवाभिगम अनुसार समझना ।
इसी प्रकार धरणेन्द्र आता है । उसके सामानिक देव ६००० हैं, अग्रमहिषियाँ छह हैं, २४००० अंगरक्षक देव हैं, मेघस्वरा घण्टा है, भद्रसेन पदाति-सेनाधिपति है । विमान २५००० योजन विस्तीर्ण है । महेन्द्रध्वज का विस्तार २५० योजन है । असुरेन्द्र वर्जित सभी भवनवासी इन्द्रों का ऐसा ही वर्णन है । असुरकुमारों के ओघस्वरा, नागकुमारों के मेघस्वरा, सुपर्णकुमारों के हंसस्वरा, विद्युत्कुमारों के तौञ्चस्वरा, अग्निकुमारों के मंजुस्वरा, दिक्कुमारों के मंजुघोषा, उदधिकुमारों के सुस्वरा, द्वीपकुमारों के मधुरस्वरा, वायुकुमारों के नन्दिस्वरा तथा स्तनितकुमारों के नन्दिघोषा नामक घण्टाएँ हैं ।
२३७] चमरेन्द्र के चौसठ एवं बलीन्द्र के साठ हजार सामानिक देव हैं । असुरेन्द्रों को छोड़कर धरणेन्द्र आदि इन्द्रों के छह-छह हजार सामानिक देव हैं । सामानिक देवों से चार चार गुने अंगरक्षक देव हैं ।
[२३८] चमरेन्द्र को छोड़कर दाक्षिणात्य भवनपति इन्द्रों के भद्रसेन और बलीन्द्र को