Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 45
________________ (८) इस प्रकार अनशनी जीव आगे बढे, कोई अशुभ कर्मोदय से विचलित होवे तो आचार्य उसे चर्तुविध संघ के समक्ष ली हुई अनशन की प्रतिमा पुन: याद दिलावे, पूर्व में उपसर्ग सहन करके केवली-मोक्षगामी बननेवाले जीवो के जीवनचरित्र सुनाकर उसे पुनः स्थिर करे। २८. श्री तंदुल वेयलिय पयन्ना सूत्र २१७) संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त कोई गर्भस्थ जीव, लब्धि प्रभाव से गर्भ में ही धार्मिक वचन सुनकर, तीव्र धर्मानुरक्त् भी बन सकता है। २९. संथारा पयन्ना सूत्र २१८) जिसके संयमादि योग सिदाते हो, जरा से परेशान हो, वह मात्रभूत बनकर गुरु के पास आलोचना करके जो यदि संथारा करे तो उसका संथारा विशुध्ध है। २१९) अनशनव्रती साधु तृण शय्या संथारे पर आरुढ होकर पहले ही दिन से संख्येय भवस्थितीक कर्मों को प्रत्येक क्षण-क्षण में खपाता है। २२०) जीव वर्षाकाल में विविध तप अच्छे रूप से (सम्यक्) रुप से करके हेमंत ऋतु में संथारा करने के लिए सज्ज बने ।

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