Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 79
________________ ४५७) छटे पट्टधर आ. संभूति विजय सूरि ४२ साल की उम्र में दिक्षित होकर ९० साल की उम्र में स्वर्गवासी हुए। ४५८) सातवे पट्टधर आ. भद्रबाहुस्वामी ४५ वर्ष की उम्र में दिक्षित होकर ७६ साल की उम्र में देवलोक पधारे (इन्होने श्रुतज्ञान का अत्यंत प्रचार किया) ४५९) आठवे पट्टधर आ. स्थूलिभद्रसूरि ३० वर्ष की उम्र में दिक्षा लेकर ९९ वर्षे की उम्र में स्वर्गवासी बने । (वह कामविजेता कहेलाए) (ये सभी आचार्य १४ पूर्वो के ज्ञाता थे।) ४६०) आचार्य मंगु, संपूर्ण कालिक सूत्र का प्रतिदिन स्वाध्याय करते थे। ४६१) भांगा बनाने की पध्धति के विशिष्ट ज्ञाता, कर्म प्रकृति-सिध्धांत .. के विशेष प्ररुपक आचार्य आर्य नागहस्ति को मेरा नमस्कार है। ४६२) मिथ्याद्रष्टि की मती (बुध्दि) और उसका शब्द ज्ञान-विवाद, विकथा, पथभ्रष्ट तथा पतन का कारण बनने से वह मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान ही है। ४६३) शास्त्र में मन को ‘रुपी' कहा गया है, इसलिए मनोयोग चिंतन-मनन मनोवर्गणा के पुदगल का ग्रहण होने से यह भी रुपी ४६४) कोई भी चीज को विशिष्ट प्रकार के क्षयोपशम से पुन:पुन: सोचने को 'चिंतन' कहेते है। ४६५) द्वादशांगी रुप रत्नपेटी के अंदर धर्म की व्याख्या आत्मकल्याण की विविध शिक्षाएँ, नौ तत्व का निरुपण, द्रव्यो का विवेचन, नयवाद, अनेकांतवाद, पंचमहाव्रत, तीर्थंकर-सिध्ध बनने के उपाय, रत्नत्रयी और तत्वत्रयी का विवेचन, कर्मग्रंथी भेदने के

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