Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
सव्वालंकारविभूसिया सेणिएणं रन्ना सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ, ण मे दिट्ठाओ देवीओ देवलोए, सक्खं खलु इयं देवी, जइ इमस्स सुचरियस्स तवनियमबंभचेरवासस्स कल्लाणफलवित्तिविसेसे अस्थि वयमवि आगमिस्साणं इमाई एयारूवाई उरालाई जाव विहरामो, सेतं साहुणी । ४५ । अजोत्ति समणे भगवं महावीरे बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतित्ता एवं वयासी सेणियं रायं चिल्लणं देवीं च पासित्ता इमे एयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था - अहो णं सेणिए राया महिड्डिए जाव से तं साहू, अहो णं चिल्लणा देवी महड्ढिया सुंदरा जाव से तं साहुणी, से गूणं अज्जो ! अत्थे समट्ठे ?, हंता अस्थि, एवं खलु समणाउसो ! भए धम्मे पण्णत्ते इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे पडिपुण्णे केवलिए संसुद्धे णेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधिं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इत्थं ठिया जीवा सिज्झति बुज्झति मुच्यंति परिनिव्वाइंति सव्वदुक्खाणमंत करेंति, जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं | पुट्ठेहिं विरूवरूवेहिं परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा, से य परक्कमेज्जा से य परक्कममाणे पासेज्जा जे इमे उग्गपुत्ता महामाज्या भोगपुत्ता महामाज्या तेसिं णं अण्णतरस्स अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासीदासकिंकरकम्मकर पुरिसपदायपरिक्खित्तं छत्तभिंगारं गहाय निग्गच्छंति तदणंतरं च णं पुरओ महाआसा आसवरा उभओ तेसिं नागा नागवरा पिट्टओ रथा रथवरा रथसंगिल्ली सेनं उद्धरियसेयच्छत्ते अब्भुग्गयभिंगारे पगहियतालविंटे पवियण्णसेयचामरवालवीयणीए अभिक्खणं २ ॥ श्रीदशा श्रुतस्कंधसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित
३०
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55