Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयामविक्खंभेणं पं०, अप्पहाणे नरए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पं० पालए जाणविमाणे एगं जोयणसयसहस्सं| आयामविक्खंभेणं ५०, सव्वसिद्धे महाविमाणे एगंजोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पं०, अदानक्खत्ते एगतारे पं०, चित्तानक्खत्ते एगतारे पं०, सातिनक्खत्ते एगतारे पं०, इभीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पं०, इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए नेरइआणं उक्कोसेणं एगं सागरोवमं लिई पं०, दोच्चाए पुढवीए नेरइयाणं जहन्नेणं एगं सागरोवमं लिई पं०, असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पं०, असुरकुमाराणं देवाणं उक्कोसेणं एगं साहियं सागरोवमं ठिई पं०, असुरकुमारिंदवजियाणं भोभिजाणं देवाणं अत्थेगइआणं एगंपलिओवमं ठिई पं०, असंखिजवासाउयसनिपंचिंदि यतिरिक्खजोणियाणं अत्यंगइआणं एगं पलिओवमं ठिई पं०, असंखिजवासाउयगब्भवतियसंणिमणुयाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पं०, वाणमंतराणं देवाणं उक्कोसेणं एगं पलिओवमं ठिई पं०, जोइसियाणं देवाणं उक्कोसेणं एगं पलिओवमं वाससयसहस्समभाहियं ठिई पं०,सोहम्मे कप्पे देवाणं जहन्नेणं एगंपलिओवमं ठिई पं०,सोहम्मे कप्पे देवाणं अत्थेगइआणं एगं सागरोवमं ठिई पं०,ईसाणे कप्पे देवाणं जहत्रेणं साइरेगं एगं पलिओवमं ठिई पं०, ईसाणे कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं एगं सागरोवमं ठिई ५०, जे देवा सागरं सुसागर सागरकंतं भवं मणुं माणुसोत्तरं लोगहियं विमाणं देवत्ताए उववन्ना तेसिंणं देवाणं उन्कोसेणं एगं सागरोवमं लिई पं०, ते णं देवा एगस्स अद्धभासस्स आणभंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा नीससंति वा, तेसिं णं देवाणं एगस्स वाससहस्सस्स आहारट्टे समुप्पज्जा, ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्र ॥] [पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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