Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobarth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie | दिवढखेत्तिया नक्खत्ता पणयालीसं मुहुत्ते चंदे सद्धि जोगं जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा तिन्नेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणी|| विसाहायोएए छन्नक्खत्ता पणयालमुत्तसंजोगा॥६१ ॥महालियाए णं विभाणपविभत्तीए पंचमे वगेपणयालीसं उद्देसणकाला पं०,१४५ दिट्ठिवायस्सणंछायालीसं माउयापया पं०, बंभीए णं लिवीए छायालीसंमाउयक्खरा पं०, पभंजणसणंवाउकुमारिंदस्स छायालीसं भवणावाससयसहस्सा पं०१४६ । जया णं सूरिए सव्वभितरमंडलं उवसङ्कभित्ताणं चार चरइ तया णं इहगयस्स मणूसस्स सत्तचत्तालीसं जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवढेहिं जोयणसएहिं एक्वीसाए य सट्ठिभागेहिं जोयणस्स सूरिए चक्खुफासं हव्वमागच्छइ, थेरे णं अग्गिभूई सत्तचालीसं वासाई अगारमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइए । ४७ । एगमेगस्स णं रनो चाउरंतचक्रवट्टिस्स अडयालीसं पट्टणसहस्सा- पं०, धम्मस्स णं अहओ अडयालीसंगण अडयालीसं गणहरा होत्था, सूरमंडलेणं अडयालीसंएकसद्विभागे जोयणस्स विक्खंभेणं पं०१४८)सत्तसत्तमियाए णं भिक्खुपडिमाए एगूणपत्राए राइदिएहिं छन्त्रइभिक्खासएणं अहासुत्तं जाव आराहिया यावि भवइ, देवकुरुउत्तरकुरुएसुणं मणुया एगणपन्ना राइदिएहिं संपन्नजोव्वणा भवंति, तेइंदियाणं उक्कोसेणं एगूणपत्रा राइंदिया ठिई पं० । ४९ । मुणिसुव्वयस्स णं अरहओ पंचासं अज्जियासाहस्सीओ होत्था, अणंते णं अहा पत्रासंधणूई उड्ढउच्चत्तेणं होत्था, पुरिसुत्तमे णं वासुदेवे पन्नासं धणूई उड्ढउच्चत्तेणं होत्था, सव्वेऽविणं दीहवेयड्ढा मूले पत्रासं २ जोयणाणि विक्खंभेणं पं०, लंतए कप्पे पन्नासं विमाणावाससहस्सा पं०, सव्वाओ णं तिमिस्सगुहाखंडगप्पवायगुहाओ पन्नासं २ जोयणाई I ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्र ॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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