Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 50
________________ पण्डित दौलतरामजी कृत भजन आध्यात्मिक भजन संग्रह २३. सुधि लीज्यौ जी म्हारी, मोहि भवदुखदुखिया जानके सुधि लीज्यौ जी म्हारी, मोहि भवदुखदुखिया जानके ।।टेक. ।। तीनलोकस्वामी नामी तुम, त्रिभुवन के दुःखहारी। गनधरादि तुम शरन लई लख, लीनी सरन तिहारी।।१।।सुधि. ।। जो विधि अरि करी हमरी गति, सो तुम जानत सारी। याद किये दुख होत हिये ज्यौं, लागत कोट कटारी।।२।।सुधि. ।। लब्धि-अपर्यापत निगोद में, एक उसासमंझारी। जनममरन नवदुगुन विथाकी, कथा न जात उचारी।।३ ।।सुधि. ।। भू जल ज्वलन पवन प्रतेक तरु, विकलत्रय तनधारी। पंचेंद्री पशु नारक नर सुर, विपति भरी भयकारी।।४ ।।सुधि. ।। मोह महारिपु नेक न सुखमय, हो न दई सुधि थारी। सो दुठ मंद भयौ भागनतें, पाये तुम जगतारी।।५।।सुधि. ।। यद्यपि विरागि तदपि तुम शिवमग, सहज प्रगट करतारी। ज्यौं रविकिरन सहजमगदर्शक, यह निमित्त अनिवारी।।६।।सुधि ।। नाग छाग गज बाघ भील दुठ, तारे अधम उधारी। सीस नवाय पुकारत अबके, 'दौल' अधमकी बारी।।७।।सुधि ।। २४. जय जय जग-भरम-तिमिर जय जय जग-भरम-तिमिर हरन जिन धुनि ।।टेक. ।। या बिन समुझे, अजौं न, सौंज निज मुनी। यह लखि हम निजपर अविवेकता लुनी।।१।।जय जय. ।। जाको गनराज अंग, पूर्वमय चुनी। सोई कही है कुन्दकुन्द, प्रमुख बहु मुनी।।२ ।।जय. जय. ।। जे चर जड भये पीय, मोह बारुनी। तत्त्व पाय चेते जिन, थिर सुचित सुनी।।३ ।।जय. जय. ।। कर्ममल पखारनेहि, विमल सुरधुनी। तज विलंब अब करो, 'दौल' उर पुनी।।४ ।।जय. जय. ।। .. २५. थारा तो वैना में सरधान घणो छै थारा तो वैना में सरधान घणो छै, म्हारे छवि निरखत हिय सरसावै। तुमधुनिघन परचहन-दहनहर, वर समता-रस-झर वरसावै ।।थारा. ।। रूपनिहारत ही बुधि है सो, निजपरचिह्न जुदे दरसावै। मैं चिदंक अकलंक अमल थिर, इन्द्रियसुखदुख जड़फरसावै।।१।। ज्ञान विराग सुगुनतुम तिनकी, प्रापति हित सुरपति तरसावै। मुनि बड़भाग लीन तिनमें नित, 'दौल' धवल उपयोग रसावै।।२।। २६. जिनवैन सुनत, मोरी भूल भगी जिनवैन सुनत, मोरी भूल भगी ।।टेक. ।। कर्मस्वभाव भाव चेतनको, भिन्न पिछानन सुमति जगी ।।जिन. ।। निज अनुभूति सहज ज्ञायकता, सो चिर रुष तुष मैल-पगी। स्यादवाद-धुनि-निर्मल-जलतें, विमल भई समभाव लगी।।१।।जिन. ।। संशयमोहभरमता विघटी, प्रगटी आतमसोंज सगी। 'दौल' अपूरब मंगल पायो, शिवसुख लेन होंस उमगी।।२।।जिन. ।। २७. सुन जिन वैन श्रवन सुख पायौ सुन जिन वैन, श्रवन सुख पायौ ।।टेक. ।। नस्यौ तत्त्व दुर अभिनिवेश तम, स्याद उजास कहायौ । चिर विसर्यो लह्यौ आतम रैन ।।१।।सुन. ।। दह्यौ अनादि असंजम दवतै, लहि व्रत सुधा सिरायौ । धीर धरी मन जीतन मन ।।२ ।।सुन. ।। भये विभाव अभाव सकल अब, सकल रूप चित लायौ । दास लह्यौ अब अविचल जैन ।।३।।सुन. ।। २८. जब” आनंदजननि दृष्टि परी माई जबतें आनंदजननि दृष्टि परी माई। तबतें संशय विमोह भरमता विलाई ।।जबतें. ।। sarak kata Data

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