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यतिशिक्षा
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गुण रहित होकर मात्र बाहरी दिखावे से ज्ञानी तथा उपकारी बना फिर रहा है लेकिन जब तू अपनी करनी का फल पाने को कुगति में जाएगा तब वे ही लोग जो तेरा सत्कार करते थे तेरा अपमान करेंगे व तेरी हंसी उडाएंगे। किए हुए कर्म तुझे अवश्य भुगतने पड़ेंगे । अतः उस स्थिति का विचार करके दंभ छोड़ दे । सन्मार्ग पर प्रा।
गुण बिना के वंदन पूजन से हित का नाश
दानमाननुतिवंदनापरैर्मोदसे निकृतिरंजितैर्जनैः। न त्ववैषि सुकृतस्य चेल्लवः, कोऽपि सोऽपि तव लुटयते हि तैः २१
अर्थ तेरे कपट जाल से रंजित हुए लोग जब तुझे दान देते हैं, नमस्कार करते हैं या वंदन करते हैं तब तू राजो होता है परन्तु तू यह नहीं जानता है कि यदि तेरे पास लेश मात्र सुकृत्य रहा होगा उसे भी वे लूट रहे हैं ॥ २१ ॥
रथोद्धता विवेचन हे मुनि ! तू कैसा आत्मघातक है ? बाह्य वेश, झूठा उपदेश और निरा आडम्बर करके तू कपट जाल बिछाता है । उस जाल में अनजान पक्षियों की तरह कई भोले मनुष्य भूल से फंस जाते हैं और तुझे दान, मान और खान, पान देते हैं तू प्रसन्न होता है। अरे तुझे नहीं मालूम कि वे भोले तो श्रद्धा व धर्म की भावना से तेरी जाल में फंसते हैं लेकिन उनके दान, मान या खानपान से अपना अल्प रहा हुआ पुण्य भी तू खोता जाता है । समय आने पर वे भोले मानव पक्षी तेरी जाल में