Book Title: Adhyatma Kalpdrumabhidhan
Author(s): Fatahchand Mahatma
Publisher: Fatahchand Shreelalji Mahatma

View full book text
Previous | Next

Page 454
________________ सुभाषित संग्रह ४१३ यह जीवन बहुत चंचल है एवं विघ्नों से परिपूर्ण है; अतः एक क्षण का भी प्रमाद किए बिना हे के कर्मों को दूर कर दे । गौतम ; तू पहले ( १०–३ ) सब संगीत विलाप जैसे हैं, सभी नाट्य विडंबना रूप हैं, सभी आभरण भार रूप हैं, तथा सभी काम दुःख वाहक हैं । हे राजा ! ( इनमें ) मूर्ख लोगों को ( ही ) आनंद श्राता है । वैसे दुःखप्रद कामों में वह सुख नहीं है जो सुख कामों से विरक्त और शील गुणों में रत तपोधन भिक्षु को है । ( १३, १६ - १७ ) कीचड़ में फंसा हुवा हाथी जैसे किनारा देखता हुवा भी उसमें से निकल नहीं सकता है, वैसे ही काम गुणों में आसक्त हुए हम भी सत्य - मार्ग को देखते हुए भी उसका अनुसरण नहीं कर सकते हैं । ( १३ – ३० ) चारों तरफ से कष्ट पाते हुए और ( दुःखों से ) घिरे हुए लोक में जहां प्रमोघकाल दौड़ता ही रहता है, वहां घर में रहकर हम रति (शांति) नहीं पा सकते हैं । ( १४ - २१ ) जहां स्वयं को हमेशा रहना नहीं है, ऐसे रास्ते में जो घर बनाता है, वह मूर्ख है । मनुष्य को चाहिए कि जहां स्वयं को सदा के लिए जाना है (मोक्ष में) वहां घर बनावे | (६-२६) जिसकी मृत्यु के साथ दोस्ती है, जो उसके हाथ में से

Loading...

Page Navigation
1 ... 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494