Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir पी हमाधानानविय R 18 ते संलेखनामा रहेलो अथवा आखी जीदगी सुधी हमेशां ते साधु प्राण धारवा रुप जीवितने न चाहे, तथा भूखनी वेदनाथी, आचा० कंटाळी मरण पण न वांछे तथा जीवित तथा मरणमा संग [ध्यान न राखे (४) त्यारे ते साधु केवो होय ? ते कहे छे: सूत्रम् मज्झत्थो निजरापेही, समाहिमणुपालए ॥ अन्तो वहिं विऊसिज्ज, अज्झत्थं सुद्धमेसए ॥५॥ ॥७९॥ जं किंचुवक्कम जाणे, आऊखेमस्समप्पणो ॥ तस्सेव अंतरद्धाए, खिप्पं सिक्खिज पण्डिए ॥६॥ ॥७९॥ गामे वा अदुवा रणे, थंडिलं पडिलेहिया ॥ अप्पपाणं तु विनाय, तणाई संथरे मुणी ॥७॥ अणाहारो तुहिज्जा. पुट्ठो तथाहियासए ॥ नाइवेलं उवचरे, माणुस्सेहि विपुढवं ॥८॥ रागद्वेपनी वचमा रहे ते मध्यस्थ छे, अथवा जीवित भरणनी आकांक्षा रहित ते मध्यस्थ छे, ते निर्जरानी अपेक्षा राखनार ते निर्जरापेक्षी छे. तेवो साधु जीवन मरणनी आ शंसा रहित समाधि जे अंत वखतनी छे, तेनु पालन करे, अर्थात् कालपर्यायवडे जे Iमरण आवे ते समाधिमा रही पाळे तथा अंदरना कषायोने तथा बहारना शरीर उपकरण विगेरेनो ममत्व छोडी दे, अने अध्यात्मा 13 ते अंतःकरणने शुद्ध करे, एटले मनमा यता रागद्वेष विगेरेनां वधां जोडकां दूर थवाथी विखोतसिका (चंचळता) रहित अंत:करणने बांछे, वळी उपक्रम ते उपक्रम उपाय छे, तेवा कोइ पण उपायने जाणे. प्र०-कोना उपक्रम ? आयुष्यनु क्षेम ते सम्यक् प्रकारे पाळवं. ०-कोना संबन्धी ते आयु छे ? उ-ते आत्मानु-तेनो |परमार्थ आ छे. के आत्मा पोताना आयुध्यनो क्षेमथी प्रतिपालन करवा जे उपायने जाणे ते तेने शीघ्र शीखवे, एटले बुद्धिमान || AMRA-%E For Private and Personal Use Only

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