Book Title: Abhidhan Chintamani kosha
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 10
________________ श्रीसर्वज्ञाय नमः। अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः प्रथमः । प्रणिपत्यार्हतः सिद्धसाङ्गशब्दानुशासनः । रूढयौगिकमिश्राणां, नाम्नां मालां तनोम्यहम् ॥१॥ व्युत्पत्तिरहिताः शब्दा, रूढा आखण्डलादयः । योगोऽन्वयः स तु गुणक्रियासम्बन्धसम्भवः ॥२॥ गुणतो नीलकण्ठाद्याः, क्रियातः स्रष्ट्रसन्निभाः । स्वस्वामित्वादिसम्बन्धस्तत्राहुर्नाम तद्वताम् । ॥३॥ स्वात् पाल-धन-भुग-नेतृ-पति-मत्वर्थकादयः । भूपालो भधनो भूभुग , भनेता भूपतिस्तथा ॥१॥ भूमांश्चेति कविरूढ्या, ज्ञेयोदाहारणावली । जन्यात्कृत्-कर्तृ-सृट् स्रष्ट्र-विधातृ-कर-सू-समाः ॥५॥ १ जन्यात्-कार्यात् यथा विश्वकृत विश्वकर्ता विश्वसृट् विश्वनाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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