Book Title: Abhidhan Chintamani kosha
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेष्ठि देवचन्द्र लालभाई जैनपुस्तकोद्धारे ग्रन्थाङ्कः ९२. परमार्हतकुमारपालप्रतिबोधक-कलिकाल सर्वज्ञश्रीमद्हेमचन्द्राचार्यविरचितःश्रीअभिधानचिन्तामणिकोशः। तैरेव विरचितैः, (२) लिङ्गानुशासन, (३) शेषनाममाला, -(४) निघण्टुशेषैः सुधाकुशलविरचितया एकाक्षरनाममालया, (५) जिनदेवसूरिसंहब्धेन नाममालाशिलोच्छेन च सनाथः । अभिधानचिन्तामणिगतशब्दानामकाराद्यनुक्रमेण शब्दानुक्रमणिकया चालङ्कृतः। Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेष्टि देवचन्द्र लालभाइ जैनपुस्तकोद्धारे ग्रन्थाङ्कः ९२. परमाईतकुमारपालभूपालप्रतिबोधक-कलिकाल___ सर्वक्षश्रीमद्हेमचन्द्राचार्यविरचित:श्रीअभिधानचिन्तामणिकोशः । तैरेव विरचितैः, (१) लिङ्गानुशासन, (२) शेषनाममाला, (३) निघण्टुशेषैः सुधाकुशलविरचितया एकाक्षरनाममालया, जिनदेवसूरिसंहब्धेन नाममाला शिलोञ्छेन च सनाथः । अभिधानचिन्तामणिगतशब्दानामकाराद्यनुक्रमेण शब्दानुक्रमणिकया चालकृतः । प्रकाशकोहीराचन्द कस्तुरचन्द जवेरी मोतीचंद मगनभाई चोकसी श्रेष्ठि देवचन्द्र लालभाइ जैनपुस्तकोद्धारसंस्थायाः कार्यवाहको वि० सं० २००२ वीरात्. २४७२ खिताब्दं. १९४६ प्रथमसंस्करणम् ] मूल्य ४ रूप्यकाः। [प्रतयः १२५० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by Ramchandra Yesu Shedge at the Nirnaya-Sagar Press, 26-28, Kolbhat Street, Bombay. Published by Hirachand Kasturchand Jhaveri & Motichand Maganbhai Choksi, Managing Trustees of Sheth Devchand Lalbhai Jain P. Fund, Gopipura, Surat. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राक्कथन श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यनी कीर्तिगाथानुं वर्णन करवुं एटले सर्वमान्य सोनापर ढोळ चढाववा बराबर छे. तेमनुं व्यक्तित्व, प्रतिभा, विद्वता तथा सर्वतोमुखी शक्ति एटली जगजाहेर छे के जैनज नहि पण अजैनोमां ये भाग्येज कोई हिंदी संस्कृतिनो विद्वान हशे जे श्री. हेमचन्द्राचार्यनी यश-गाथाथी अजाण हशे. "गुजरातना ज्योतिर्धर" थी मांडी "कलिकाल सर्वज्ञ" तरीकेनी एमनी कीर्ति ए वस्तुनी शाख पूरे छे. तेओश्री एक महान जैनाचार्य होवा छतां तेओनी साहित्यविषयक प्रवृत्ति सर्व क्षेत्रमां प्रसरेली हती. काव्य, छंद, व्याकरण, कोश तथा गूढ तत्वज्ञान वगेरे विषयो तेमने इस्तामलकवत् हता. सिद्धराज जयसिंह तथा कुमारपाळ जेवा प्रतापी गूर्जर नरेशोपर तेमनो अप्रतिम प्रभाव तेमनी बुद्धि तेजस्विता तेमज प्रतिष्ठा बतावे छे. एवा महापुरुषनी एक अद्वितीय कृति जनसमाज समक्ष मुकतां अमने आनंद थाय छे. श्रीअभिधानचिंतामणि कोशनी महत्ता तेमज उपयोगितानी रूपरेखा दोरवी ए झवेरी आगळ झवेरातनुं वर्णन करवा बराबर छे. विद्ववर्ग आ अणमोल झवेरातने सारी रीते ओळखे छे. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ संस्था तस्फथी आनुं प्रकटीकरण वर्षों पूर्वे हाथ धरवामां आव्युं हतुं अने तेमनुं संशोधन कार्य श्रीमत् सागरानंदसूरीश्वरजी हस्तक थयुं छे. जे भूलोनी परंपराने लीधे शुद्धिपत्रक मुक पड्यु छे ए प्रेसना अनभिज्ञ काम करनाराओनी साक्षी पूरे छे. आ कृतिनो अमुक मोटो भाग मुंबई बहारना प्रेसमां छपायो छे अने तेनी बेकालजी तथा प्रिन्टिंग तरत जणाई जाय एवां छे. अस्तु. संस्था आटला समय बाद पण आ पुस्तकने प्रगट करवा भाग्यशाळी थाय छे ते ओछो आनंदनो विषय नथी. __ आ पुस्तकना प्रकटीकरणमा सहाय करनारा सर्वेनो संस्था तरफथी अमे आभार मानीए छीए. ली. सेवको मुंबई, ता. १५.१२.४५ हीराचंद कस्तुरचंद झवेरी. सं. २००२, मौन एकादशी. मोतीचंद मगनभाई चोकसी. मेनेजिंग टूस्टीओ. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणे विषयक्रमः | नाम १ लिङ्गानुशासनम् २ एकाक्षरकोषः ३ अभिधानचिन्तामणिः १ देवाधिदेवकाण्डः २ देवकाण्डः ३ मर्त्यकाण्ड: ४ तिर्यक्काण्डः ५ नरककाण्ड: ६ सामान्यकाण्डः ४ शेषनाममाला ५ नाममालाशिलोञ्छः ६ निघंटुशेषः ७ अभिधानचिन्तामणिकोशस्य अकारादिवर्णानु क्रमेण शब्दानुक्रमणिका श्लोकाः पत्राणि १-२० १-१६ १-२०४ १ - १३ १४-४७ ४८-१२७ १२७-१८२ १८२-१८३ १८३ - २०४ २०५-२२८ २२९-२४६ २४७-२८६ १-४४० Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेष्ठी देवचन्द लालभाई जहेरी. निर्याणम् १९६२ वैक्रमाब्दे पौष कृष्ण तृतीयायाम् (मकरसङ्क्रान्तिमन्दवासरे) मुम्बय्याम्. www.iainelibraryrg जन्म १९०९ वैक्रमाब्दे कार्तिकशुक्लैकादश्याम् (देवदीपावली - सोमवासरे) सूर्यपूरे. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसर्वज्ञाय नमः। अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः प्रथमः । प्रणिपत्यार्हतः सिद्धसाङ्गशब्दानुशासनः । रूढयौगिकमिश्राणां, नाम्नां मालां तनोम्यहम् ॥१॥ व्युत्पत्तिरहिताः शब्दा, रूढा आखण्डलादयः । योगोऽन्वयः स तु गुणक्रियासम्बन्धसम्भवः ॥२॥ गुणतो नीलकण्ठाद्याः, क्रियातः स्रष्ट्रसन्निभाः । स्वस्वामित्वादिसम्बन्धस्तत्राहुर्नाम तद्वताम् । ॥३॥ स्वात् पाल-धन-भुग-नेतृ-पति-मत्वर्थकादयः । भूपालो भधनो भूभुग , भनेता भूपतिस्तथा ॥१॥ भूमांश्चेति कविरूढ्या, ज्ञेयोदाहारणावली । जन्यात्कृत्-कर्तृ-सृट् स्रष्ट्र-विधातृ-कर-सू-समाः ॥५॥ १ जन्यात्-कार्यात् यथा विश्वकृत विश्वकर्ता विश्वसृट् विश्वनाथ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः १ जनकाद् योनि-ज-रुह-जन्म-भू-सूत्यणादयः । धार्यात् ध्वजा-ऽस्त्र-पाण्यऽङ्क-मौलि-भूषण-भृन्निभाः॥६॥ शालि-शेखर-मत्वर्थ-मालि-भर्ती-धरा अपि । भोज्या भुग-ऽन्धो-व्रत-लिट्-पायि-पा-ऽशा-ऽशनाऽऽदयः। पत्युः कान्ता-प्रियतमा-वधू-प्रणयिनी-निभाः । कलत्राद् वर-रमण-प्रणयीश-प्रियादयः ॥ सख्युः सखिसमा वाह्याद् , गामि-याना-ऽऽसनादयः । ज्ञातेः स्वस-दुहित्रा-ऽऽत्मजा-ऽग्रजा-ऽवरजाऽऽदयः ॥९॥ आश्रयात्सद्मपर्याय-शय-वासि-सदाऽऽदयः । वध्याद भिद्-द्वेषि-जिद्-धाति-ध्रुग-ऽरि-ध्वंसि-शासनाः॥१० अप्य-ऽन्तकारि-दमन-दर्पच्छिन्-मथनाऽऽदयः । विवक्षितो हि सम्बन्ध, एकतोऽपि पदात्ततः ॥११॥ विश्वविधाता विश्वकरः विश्वसूः ब्रह्मा, अत्र समशब्द आद्यर्थः, तेन विश्वकारकः विश्वजनक इत्याद्यपि कविरूद्ध्यैव । २ यथा आत्मयोनिः आत्मज इत्यादि । ३ यथा वृषभध्वजः शूलास्त्र इत्यादि । ४ यथा मधुभुक् मध्वंध इत्यादि । ५ यथा नीलकण्ठसखः इत्यादि । ६ यथा वृषगामी वृषयानः इत्यादि । ७ यथा यमस्वसा इत्यादि । ८ यथा द्युसद्मा शुशयः इत्यादि । ९ गया पुरभिद् पुरद्वेषी इत्यादि । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः १ ३ प्राक्प्रदर्शितसंबन्धिशब्दा योज्या यथोचितम् । दृश्यते खलु वाह्यत्वे, वृषस्य वृषवाहनः ॥१३॥ स्वत्वे पुनर्वृषपतिर्धार्यत्वे वृषलांछनः । अंशोर्यित्वेऽशुमाली स्वत्वेऽशुपतिरंशुमान् ॥१३॥ वध्यत्वेऽहेरहिरिपुर्भोज्यत्वे चाहिभुक् शिखी। चिरैर्व्यक्तैर्भवेद्यक्तेर्जातिशब्दोऽपि वाचकः ॥१४॥ तथा ह्यगस्तिपूता दिग , दक्षिणाशा निगद्यते । अयुग्-विषमशब्दौ त्रि-पञ्च-सप्तादिवाचकौ ॥१५॥ त्रेनेत्रपञ्चेषुसप्तपलाशादिषु योजयेत् । गुणशब्दो विरोध्यर्थ, नादिरितरोत्तरः ॥१६॥ अभिधत्ते यथा कृष्णः, स्यादसितः सितेतरः । वाादिषु पदे पूर्वे, वाडवाग्न्यादिषूत्तरे ॥१७॥ द्वयेऽपि भूभृदायेषु, पर्यायपरिवर्तनम् । एवं परावृत्तिसहा, योगात् स्युरिति यौगिकाः १७ ॥१८॥ मिश्राः पुनः परावृत्त्यसहा गीर्वाणसन्निभाः । प्रवक्ष्यन्तेऽत्र लिङ्गं तु, ज्ञेयं लिङ्गनुशासनात् ॥१९॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः १ देवाधिदेवाः प्रथमे, काण्डे देवा द्वितीयके । नरास्तृतीये तिर्यञ्चस्तुर्य एकेन्द्रियादयः एकेन्द्रियाः पृथियम्बु तेजोवायुमहीरुहः । कृमिपीलकलूताद्याः, स्युर्द्वित्रिचतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रियाश्चेभकेकिमत्स्याद्याः स्थलखाम्बुगाः । पञ्चेन्द्रिया एव देवा, नरा नैरयिका अपि नारकाः पञ्चमे साङ्गाः, षष्ठे साधारणाः स्फुटम् । प्रस्तोष्यन्तेऽव्ययाश्चात्र, त्वन्तायादी न पूर्वगौ ॥२३॥ ॥२२॥ अर्हं जिनैः पारगतैस्त्रिकालवित् क्षीणाष्टकम परमेष्ठऽवीश्वरः । शम्भुः स्वयम्भूर्भगवान् जगत्प्रभुस्तीर्थङ्करस्तीर्थकरो जिनेश्वरैः १५ १६ १७ १८ १९ स्याद्वाद्यभयदसार्वाः सर्वज्ञः सर्वदर्शिकेवलिनौ । देवाधिदेवेवो विदेपुरुषोत्तमैवी तरौगातों: एतस्यामवसर्पिपण्यामृषभोऽजितेश भवौ । अभिनन्दनैः सुमतिस्ततः प्रद्मप्रभाभिः सुपार्श्वश्चन्द्रप्रभश्च, सुविधिर्श्वीय शीतलः । श्रेयांसी वासुपूज्यश्च, विमलोऽनन्ततीर्थकृत् 112011 ॥२१॥ ॥२४॥ ॥२५॥ ॥ ४ ६ ॥ ॥२७॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः १ ५ धर्मः शान्तिः कुन्धुररो, मलिश्च मुनिसुव्रतः। नमिर्नेमिः पार्थो वीरश्चतुर्विंशतिरर्हताम् ॥२८॥ ऋषभो वृषभः श्रेयान् श्रेयांसः स्यादनन्तजिदनन्तैः । सुविधिस्तु पुष्पदन्तो मुनिसुव्रतसुत्रतौ तुल्यौ ॥२९॥ अरिष्ठनेमिस्तु नेमिवीरश्रमतीर्थकृत् ।। महावीरो वर्द्धमांनो, देवार्यो ज्ञातनन्दनः ॥३०॥ गणा नवाऽस्यर्षिसङ्घा, एकादश गणाधिपाः । इन्द्रभूतिरग्नि तिर्वायु तिश्च गौतमाः ॥३१॥ व्यक्तः सुधर्मा मण्डितमौर्यपुत्राँवकम्पितः । अचलभ्राता मेतार्यः, प्रभासश्च पृथक्कुलाः ॥३२॥ केवली चरमो जम्बूस्वाम्यऽथ प्रभवः प्रभुः । शय्यम्भवो यशोभद्रैः, सम्भूतविजयस्ततः ॥३३॥ भद्रबाहुँः स्थूलभद्रः, श्रुतकेवलिनो हि षट् । महागिरिसुहस्त्यांद्या, वज्रान्तौ दशपूर्विणः ॥३४॥ इक्ष्वाकुकुलसम्भूता, स्याद् द्वाविंशतिरर्हताम् । मुनिसुव्रतनेमी तु, हरिवंशसमुद्भवौ ॥३५॥ नाभिश्च नितशत्रुश्च, जितारिरथ संवरैः। .. मेघो धरः प्रतिष्ठश्चै, महासे नरेश्वरः Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः १ सुग्रीवश्चं दृढेरथो, विष्णुश्च वसुपूज्यरौः । कृतवर्मा सिंहसेनो", भानुश्च विश्वसेन ट् ॥३७॥ अरः सुदर्शनः कुम्भः, सुमित्रो° विजयस्तथा । समुद्रविनयश्चाश्वसेनः सिद्धार्थ एव च ॥३८॥ मरुदेवा विजयो सेना सिद्धार्था च मङ्गलो। ततः सुसीमा पृथ्वी, लक्ष्मणां रामा ततः परम् ॥३९॥ नन्दी विष्णुर्जयों श्यामा, सुयशीः सुवैती चिरौं । श्रीदेवी प्रभावती च, पद्मा वा शिवा तथा ॥४०॥ वामौ त्रिशला क्रमतः, पितरो मातरोऽर्हताम् । स्याद्गोमुखो महायःस्त्रिर्मुखो यक्षनायकैः ॥४१॥ तुम्बरुः सुमुर्खश्चापि, मातङ्गो विजयोऽनितः । ब्रह्मीं यक्षेत्' कुमारः षण्मुखपातलिँकिन्नरः ॥४२॥ गाँडो गन्धर्वो यक्षेटे, कुबेरो वरुणोऽपि च। भृकुटिर्गोमेधै : पार्थो, मातृशोऽर्हदुपासकाः ॥४३॥ चक्रेश्चर्य्य जितबली, दुरितारिश्चै कालिकों । महाकाली श्यामाँ शान्ताँ, भृकुटिच सुतारको ॥४४॥ अशोका मानवी चण्डी, विदितौ चाङ्कुशी तथा।। कन्दै निर्वाणी" बली, धारिणी धरणप्रिया ॥४५॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ . ०२ अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेषकाण्डः १ ७ नरदत्ताऽर्थ गान्धीर्य्यम्बिकी पद्मावती तथा । सिद्धायिका चेति जैन्यः, क्रमाच्छासनदेवताः ॥४॥ वृषो गेजोऽश्वैः प्लवर्गः, क्रौञ्चोऽब्ज स्वस्तिकः शशी। मकरः श्रीवत्सः खंगी, महिष: शूकरस्तथा ॥४७॥ श्येनो" वजे मग छाँगो, नन्द्यावतॊ धेोऽपि च ।। कूर्मो नीलोत्पलं शङः, फैणी "सिंहोऽर्हतां ध्वजाः ॥४८॥ रक्तौ च पद्यप्रभवासुपूज्यौ, शुक्लौ च चन्द्रप्रभपुष्पदन्तौ । कृष्णौ पुनर्नेमिमुनी विनीलो, श्रीमल्लिपाश्वी कनकत्विषोऽन्ये उत्सप्पिण्यामतीतायां, चतुर्विंशतिरहताम् । केवलज्ञानी निर्वाणी सागरोऽथ महायऑः ॥५०॥ विमलेंः सर्वानुतिः, श्रीधरो दत्ततीर्थकृत् । दामोदरः सुतेजाश्च, स्वाभ्यथो मुनिसुव्रतः ॥५१॥ सुमतिः शिवेंगतिश्चैवाऽस्तागोऽथ निमीश्वरः । अनिलो यशोधराख्यः, केतार्थोऽथ जिनेश्वरः ॥१२॥ शुद्धमैतिः शिवेकरः, स्यन्दैनश्वाथ सम्प्रतिः२४ । भाविन्यान्तु पद्मनाभः, शूरदेवैः सुपार्श्वकैः ॥१३॥ ॥४९॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः १ स्वयंप्रभैश्च सर्वानुभूतिर्देवश्रुतोदयौ । : पेढाल: पोट्टिलेश्चापि, शतकीर्तिश्चं सुत्रेतेः अममो निष्कषायैश्च निष्लाकोऽय निर्ममः । चित्रगुप्तः समाविश्व, सर्वरश्च यशोधरः २२ विजयो मैलदेवौ चानन्तवीर्य भद्रकृर्ते । एवं सर्वावसपिण्युत्सप्पिणीषु जिनोत्तमाः तेषां च देहोऽद्भुतरूपगन्धो, निरामयः स्वेदम लोज्झितचं । श्वासोऽन्धो रुधिरामिषन्तु, गोक्षीरधाराघवलं ह्यवित्रम् , आहारनीहार विधिस्त्वर्हेश्यचत्वार एतेऽतिशयाः सहोत्थाः । क्षेत्रे स्थितिर्योजनमात्र केऽपि, नृदेवतिर्य्यगूजनको टिकोटेः वाणी नृतिर्य्यकसुरलोकभाषासंवादिनी योजनगोमिनी च । भामण्डलं चारु च मौलिपृष्ठे, विडम्बिताहपतिमण्डलैश्रि 119811 ॥५५॥ 119411 1190911 ॥५८॥ ॥५९॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः १ ९ साग्रे च गव्यूतिशतद्वये रुजों वैरेतयो माय॑तिवृष्ट्यवृष्टयः । दुर्भिक्षमन्यस्वकचक्रतो भयं स्यान्नत एकादश कर्मघातजाः ॥६॥ खे धर्मचक्र चमरौः सपादपीठं मृगेन्द्रासनमुज्ज्वलञ्च । छत्रत्रयं रत्नमयो ध्वजोऽङ्घ्रिन्यासे च चामीकरपङ्कानि ॥६ ॥ वत्रयं चारु चतुर्मुखाङ्गती,। चैत्यद्रुमोऽधोवदनाश्च कण्टीः द्रुमौनतिर्दुन्दुभिनार्द उच्चकै तोऽनुकूलैः शकुनाः प्रदक्षिणीः ॥२॥ गन्धाम्बुवर्ष बहुवर्णपुष्पवृष्टिः कचश्मश्रुनखाँप्रवृद्धिः । चतुर्विधामय॑निकायकोटि जघन्यभावादपि पार्श्वदेशे ऋतूनामिन्द्रियार्थानामनुकूलत्वमित्यमी । एकोनविंशतिर्दैव्याश्चतुस्त्रिंशच मीलिताः ॥६४|| Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः , संस्कारवत्त्वमौदात्त्यमुपचारपरीततौ । मेघगम्भीरघोषत्वं, प्रतिनादविधायितौ ॥६५॥ दक्षिणत्वमुपनीतरागत्वञ्च महार्यती । अव्याहतत्वं शिष्टत्वं, संशयानामसंभवः निराकृतान्योत्तरत्वं, हृदयङ्गमतापि च । मिथः साकाङ्क्षती प्रस्तावौचित्यं तत्त्वनिष्ठता ॥६॥ अप्रकीर्णप्रसृतत्वमस्व श्लाघान्यनिन्दिता । आभिजात्यमंतिस्निग्धर्मधुरत्वं प्रशस्यता ॥६॥ ०१ संस्कृतादिलक्षणवत्त्वं । ०२ उत्तिता । ०३ उपचाररहितत्वं । ०४ मेघस्येव गम्भीरशव्दत्वं । ०५ प्रतिध्वनियुक्तत्वं । ०६ सरलत्वं । ०७ नालधकौशिक्यादिग्रामरागयुक्तत्व एते शब्दाश्रया वाग्गुणा शेयाः, अन्ये अर्थाश्रया वाग्गुणाः । ०८ बृदहभिवेयता । ०९ पूर्वापरवाक्यार्थाविरोधित्वादव्याहतत्वं । ०१० अभिमतसिद्धौ वक्तुमनोज्ञार्थप्रयोजकत्वं शिष्टतासूचकत्वं वा। ०११ असंदिग्धता । ०१२ परदूषणाविषयता । ०१३ हृदयग्राह्यत्वं । ०१४ परस्परेण पदानां वाक्यानां वा सापेक्षत्वं । ०१५ देशकालाद्यव्यतीतत्वं । ०१६ विवक्षितवस्तुस्वरूपानुसारिता । ०१७ सुसम्बन्धस्य सतः प्रसरणं । ०१८ स्वश्लाघाआत्मोत्कर्षः परनिन्दा च तयोर्विप्रयुक्तत्वं । ०१९ बन्यस्य प्रतिपाद्यस्य वा भूमिकानुसारित्वं । ०२० घृतगुडादिवत् सुखकारित्वं । ००१ प्राप्तश्लाघ्यता । Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .३४ ०३५ अभिघानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः १ ११ अमेमवेधितौदीर्य, धर्माथप्रतिबद्धता । कारकाद्यविपर्योसो, विभ्रमादिवियुक्तता ॥६९॥ चित्रकृत्वमद्भुतत्वं, तथाऽनतिविलम्बितौं । अनेकजातिवैचित्र्यमारोपितविशेषता ॥७ ॥ सत्त्वप्रधौनता वर्णपदवाक्यविविक्तता । अव्युच्छित्तिरखेदित्वं, पञ्चत्रिंशच्च वाग्गुणाः ॥१॥ अन्तराया दानलाभवीर्यभोगोपभोगगाः।। हासो रस्यरती भीतिर्जुगुप्सी शो के एव च ॥७२॥ कीमो मिथ्यात्व ज्ञान", निद्री चाविरतिस्तथा । राँगो द्वेषश्च नो दोषास्तेषामष्टादशाप्यमी ॥७३॥ ___०२२ अपरमायुद्घाटनस्वरूपं । ०२३ अभिधेयस्यातुच्छता । ०२४ धर्मार्थाभ्यामनपेतत्वं । ०२५ कारककालवचनलिङ्गादिविपर्यासराहित्यं । ०२६ मनोदोषवियुक्तत्वं । ०२७ उत्पादिताच्छिन्नकुतूहलत्वं । ०२८ प्रतीतत्वं । ०२९ अनतिविलम्बिता प्रतीता । ०३० अनेकवर्णनीयवस्तुस्वरूपवर्णनसंश्रयादतिविचित्रत्वं । ०३१ वचनान्तरापेक्षया आहितविशेषत्वं । ०३२ साहसोपतता । ०३३ वर्णपदवाक्यानां विच्छिन्नत्वं । ०३४ विवक्षितार्थसम्यसिद्धिः अव्यवच्छिन्नवचनप्रमेयता । •३५ अनासससंभवः । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः १ महानन्दोऽमृत सिद्धिः, कैवल्यमपुनर्भवैः । शिवं निःश्रेयस श्रेयो , निर्वाणं ब्रह्म निर्वृतिः" ॥७४॥ महोदयः सर्वदुःखैक्षयो निर्वाणमक्षरम् । मुक्तिर्मोक्षोऽपवर्गोऽथ, मुमुक्षुः श्रमणो थैतिः ॥५॥ वाचंयमो येती साधुरैनगार ऋNिMनिः । निर्ग्रन्थों भिक्षुरस्य स्वं, तपोयोगेशमादयः ॥७॥ अभाषणं पुनर्मोन, गुरुधर्मोपदेशकैः । मोक्षोपायो योगो ज्ञानश्रद्धानचरणात्मकः ॥७७॥ अनुयोगदाचार्य, उपाध्यायस्तु पाठकः । अनूचानः प्रवचने, साङ्गेऽधीती गणिश्च सः ॥८॥ शिष्यो विनेयोऽन्तेवासी, शैक्षः प्राथमकल्पिकैः । सतीर्थ्यास्त्वेकगुरवो, विवेकः पृथगात्मतो ॥७९॥ एकब्रह्मव्रताचारा, मियः सब्रह्मचारिणः ।। स्यात्पारम्पर्य्यमाम्नायः, सम्प्रदायो गुरुकैमः ॥८॥ व्रतादान परिव्रज्या, तपस्यौ नियमस्थितिः । अहिंसी सूनोऽस्तेयौकिञ्चनतों यमाः ॥८१॥ नियमाः शौचसन्तोषौ, स्वाध्यायतैपसी अपि । देवताप्रणिधानश्च, करणं पुनस्सनं ॥२॥ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवाधिदेवकाण्डः १ १३ प्राणायामः प्राणयमः, श्वासप्रश्वासरोधनमें । प्रत्याहारस्त्विन्द्रियाणां, विषयेभ्यः समाहृतिः ॥८॥ धारणी तु क्वचिद्ध्येये, चित्तस्य स्थिरबन्धनम् । ध्यानन्तु विषये तस्मिन्नेकप्रत्ययसन्ततिः ॥४॥ समाधिस्तु तदेवार्थमात्राभासनरूपकम् । एवं योगों' यमाद्यगैरष्टभिः सम्मतोऽष्टधा ॥८॥ श्वःश्रेयसं शुभशिवे कल्याणं श्वोवसीयस श्रेयः ।। क्षेम भावुकभविकंकुशलमङगैलभद्रमद्रशस्तौनि ॥८६॥ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायामभिधानचिन्तामणौ नाममालायां देवाधिदेवकाण्डः प्रथमः ॥१॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः १ ॥ देवकाण्डः द्वितीयः॥ स्वर्गस्त्रिविष्टेपं घोदिवौ भुवि स्तविषताविषौ नार्कः । गौस्त्रिदिवमूर्ध्वोकः सुरालयस्तत्सदस्त्वमरौः ॥८॥ देवाः सुपर्व(रनिङ्गदेवतें - बहिर्मुखानिमिषदैवतनाकिलेखाः । वृन्दारकाः सुमै सस्त्रिदी अमत्याः, स्वाहा स्वधा-ऋतु-सुधा-भुनै आदितेयोः ॥८॥ गीर्वाणों मरुतोऽस्वप्नी, विबुध| दानवारयः । तेषां यानं विमानोऽन्धः, पीयूषममृतं सुधौ ॥८९॥ असुरी नागोस्तडितैः सुपर्णकर्को वहयोऽनिर्लाः स्तनिताः । उदधिद्वीपेंदिशो दश भवनाधीशाः कुमारान्ताः ॥१०॥ स्युः पिशाची भूतो यक्षा राक्षसाः किन्नरों अपि । किम्पुरुषां महोरंगा, गन्धर्वा व्यन्तरी अमी ॥११॥ ज्योतिष्कोः पञ्च चन्द्राकग्रहनक्षत्रेतारकाः । वैमानिकीः पुनः कल्पभवा द्वादश ते त्वमी ॥१२॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ १५ सौध-में-शान-सनत्कुमारैमाहेन्द्र-बी लान्तक-जीः । शुक्र-सहस्रारीं-नतेप्राणत-जी आरणी-च्युतजाः ॥१४॥ कल्पातीता नव ग्रैवेयकोः पञ्च त्वनुत्तरीः। निकायभेदादेवं स्युर्देवाः किल चतुर्विधाः ॥९॥ आदित्यैः सविताऽर्य्यमा खरसहस्रोष्णांशुरंY रवि, त्तिण्डस्तरैणिर्गभस्तिरेरुणो २ भानभो-ऽहै.मणिः । सूर्योऽर्क: किरणो भगो ग्रहपुष: पुषौ पतङ्गः खगो२३, मैण्डिो यमुना-कृतान्तजनकः प्रद्योतनस्तापनः ॥९॥ ब्रेध्नो हंसें श्चित्रभानुर्विवस्वान् , सूरस्त्वष्टी द्वादशात्माँ च हेलिः । मित्रो ध्वान्तारातिरब्जां-हुँ-हँस्तश्चक्राब्जी-हैं-बान्धवैः सप्तसप्तिः ॥९६॥ दिवा-दिना-ह-दिवस-प्रभा-विभाभासः करैः स्यान्मिहिरो विरोचनः । ग्रहा-ब्जिनी-गो-घु-पतिर्विकर्तनो हैरिः शुचीनौ गैंगना-भुजा-ध्वौ ॥१७॥ हरिदश्वो जगत्कर्म-साक्षी भास्वान विभावसुः ।। प्रयीतगच्चक्षुस्तपैनोऽरुणसारथिः७२ ॥८॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ १७ १८ १६ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ रोचिरुस्त्रैरुचिशोचिरंशुगों, ज्योतिरैचिरुपधृत्येभीशवः । प्रग्रहः शुचिमरीचिदीप्तयो, धामकेतुघणिरश्मिवृश्नयः॥९९॥ पाददीधितिकरद्युतिद्युतो, रुग्विरोककिरणत्विषित्विषः । भौः प्रभावसँगभस्तिभानवो भी मयूखैमहसी छविविभौ ॥ ॥१०॥ प्रकांशस्तेने उद्योतः, ऑलोको वैर्च आर्तपः । मरीचिका मृगतृष्णा, मण्डेलं तूपसूर्यकम् ॥१०१॥ परिधिः परिवेषच, सूरसूतस्तु काश्यपिः । अनूरुविनतासूरसैंणो गरुडाग्रजः ॥१०१॥ रेवन्तस्त्वरेतोजेः, प्लवंगो हयवाहनः ।। अष्टादश माठराद्यौः, सवितुः पारिपाचिकाः ॥१०३॥ चंद्रमौः कुमुदबान्धेवो दशश्वेतवाज्यमृतसृस्तिथिप्रणीः । कौमुदी-कुमुदिनी-भ-दक्षजा-रोहिणी-द्विज-निशौषधी-पतिः।। ॥ १०४ ॥ वातृकोऽजश्व कला-शशै-- च्छाया-भृदिन्दुर्विधुरत्रिग्जः । राजा निशो रत्नकरौ च चन्द्र सोमोऽमृत-श्वेत-हिम-द्युतिग्लौः ॥ १९ ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ १७ षोडशोऽशः कलौ चिह्न, लक्षणं लक्ष्म लाञ्छनम् । अङ्कः कलकोऽभिज्ञान, चन्द्रिका चन्द्रगोलिको ॥१०६॥ चन्द्रातपः कौमुदी च, ज्योत्स्ना बिम्ब तु मण्डलम् । नक्षत्रं तारका तारा ग्रहः ॥१०७॥ धिष्ण्यमृक्षमथाश्चिन्यश्वकिनी दस्रदेवता । अश्वयु बालिनी चाय, भरैणी यमदेवता ॥१०॥ कृत्तिका बहुलाश्चाग्निदेवा बाह्मी तु रोहिणी । मृगशीर्ष मृगशिरो, मार्गश्चान्द्रमसं मृगः ॥१०९॥ इल्वलास्तु मृगशिरःशिरःस्थाः पञ्च तारकाः । आर्द्रा तु कालिनी रौद्री, पुनर्वसू तु यामकौ ॥११०॥ आदित्यौ च पुष्यस्तियः, सिध्यश्चै गुरुदैवतैः । साप्पश्लिषा मघौः पित्र्योः, फाल्गुनी योनिदेवतो।।१११॥ सा तूत्तरार्य्यमदेवा, हस्तैः सवितृदेवतैः ।। त्वष्ट्रिी चित्रोऽऽनिली स्वोतिर्विशाखेन्द्राग्निदेवता॥११२॥ राधोऽनुराधी तु मैत्री, ज्येष्ठेन्द्री मूल आश्रपैः । पूर्वाषाढाऽऽपी सोत्तरी, स्याद्वैश्वी श्रवणः पुनः ॥११३॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ हरिदेवः श्रविष्ठी तु, धनिष्ठी वसुदेवता । वारुणी तु शतभिषगंजा-हिर्बुध्न-देवताः ॥११॥ पूर्वोत्तरा भाद्रपदो, यय्यः प्रोष्ठपदाश्च ताः । रेवती तु पौष्णं दाक्षायण्यैः सर्वाः शशिप्रियोः ॥११५॥ राशीनामुदयो लग्नं, मेषप्रभृतयस्तु ते ।। आरो वको लोहिताङ्गो, मङ्गलोऽङ्गारकैः कुर्नः ।।११६॥ आषाढा र्नवार्चिश्व, बुधः सौम्यैः प्रहर्षुलैः । ज्ञः पञ्चाचिः श्रविष्ठाभः, श्यामाङ्गो रोहिणीसुतः ॥११७॥ बृहस्पतिः सुराचार्यो, जीवैश्चित्रशिखण्डिनः । वाचस्पतिर्द्वादशाचिर्धिषणः फाल्गुनीभवः ॥११८॥ गीर्वृहत्योः पतिरुतथ्यानुजागिरसौ गुरुः । शुक्रो मघाभवः काव्ये, उशनों भार्गवेः कविः ॥११९॥ षोडशाच्चिदैत्यगुरुर्धिष्ण्यः शनैश्चरैः शनिः । छायासुतोऽसितः सौरिः, सप्ता रेवतीभः ॥१२०॥ मन्दः कोडो नीलवासाः, स्वर्भानुस्तु विधुन्तुर्दः । नमो डिकेयो भरणीथा टिक ॥१२॥ अश्लेषा ः शिखी केतुर्धवस्तूत्तानपादनैः। अगस्त्योऽगस्तिः पीताब्धिर्वातापिद्वि घटोद्भवः॥१२२॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणौ देवकाण्डः २ १९ मैत्रावरुणिराग्नेय, और्वशेयाग्निमारुतौ । लोपामुद्री तु तद्भार्या, कौषीतकी वरप्रदौ ॥१३३॥ मरीचीप्रमुखाः सप्तर्षयश्चित्रशिखण्डिनैः । पुष्पदन्तौ पुष्पवन्तोकोक्त्या शशिभास्करौ ॥१२४॥ राहुप्रासोऽन्द्रोह, उपराग उपप्लवैः । उदलिङ्गं त्वरिष्ठं स्यादुपसर्ग उपद्रः । ॥१२॥ अजन्यमीतिरुत्पाँतो, वन्द्युत्पातं उपाहितः । स्यात्काल: समयो दिष्टानेहसौ सर्वमूषकः ॥१२६॥ कालो द्विविधोऽवसप्पिण्युत्सर्पिणीविभेदतः । सागरकोटीकोटीनां, विंशत्या स समाप्यते ॥१२७॥ अवसप्पिण्याः षडरा उत्सपिण्यास्त एव विपरीताः । एवं द्वादशभिररैर्विवर्त्तते कालचक्रमिदम् ॥१२८॥ तत्रैकान्तसुषमोऽरश्चतस्रः कोटिकोटयः । सागराणां सुषमा तु, तिस्रस्तत्कोटिकोटयः ॥१२९।। सुषमंदुष्षमी ते द्वे, दुष्षमसुषमा पुनः । सका सहजैवर्षाणां, द्विचत्वारिंशतोनिता ॥१३०॥ अथ दुष्पमैकविंशतिरब्दसहस्राणि तावती तु स्यात् । एकान्तदुष्षमापि ह्येतत्सङ्ख्याः परेऽपि विपरीताः॥१३१॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ प्रथमेऽरत्रये मास्त्रियेकपल्यजीविताः । त्रिव्येकगव्यूतोच्छ्रायास्त्रियेकदिनभोजनाः । ॥१३२॥ कल्पद्रुफलसन्तुष्टाश्चतुर्थे त्वरके नराः । पूर्वकोट्यायुपः पञ्चधनुःशतसमुच्छ्याः ।।१३३॥ पञ्चमे तु वर्षशतायुपः सप्तकरोच्छ्याः । षष्ठे पुनः पोडशाब्दायुषो हस्तसमुच्छ्याः ॥१३४॥ एकान्तदुःखप्रचिता, उत्सपिण्यामपीदृशाः । पञ्चानुपूर्व्या विज्ञेया, अरेषु किल षट्स्वपि ॥१३॥ अष्टादश निमेषाः स्युः, काष्ठी काष्ठाद्वयं लवैः । कला तैः पञ्चदशभिर्लेशस्तद्वितयेन च ॥१३६॥ क्षणस्तः पञ्चदशभिः, क्षणैः षभिश्च नाडिको ।। सा धारिका च घटिका, मुहूत्र्तस्तद्वयेन च ॥१३४॥ त्रिंशता तैरहोरात्रैस्तत्रादिवसो दिन । दिवे धुर्वासरो घस्रः, प्रभातं स्यादहर्मुखम् ॥१३८॥ व्युष्टं विर्भातं प्रत्यूषं, कल्यप्रत्युषसी उषः । काल्यं मध्याह्नस्तु दिवामध्यं मध्यन्दैिनं च सः॥१३९॥ दिनावसानमुत्सूरो, विकॉलसर्वली अपि । सायं सन्ध्या तु पितृसूस्त्रिसन्ध्यं तूपवैणवम् ॥१४०॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ २१ श्राद्धकालस्तु कुंतपोऽष्टमो भागो दिनस्य यः । निशा निशीथिनी' रात्रिः, शर्वरी क्षणदो क्षपा ॥१४१॥ त्रियामाँ यामिनी भौती, तमी तमा विभावरी । रजनी वसती श्यामी, वासतेयी तमस्विनी ॥१४२॥ उषां दोषेन्दुकान्तोऽथ ,तमिस्रा दर्शयोमिनी । ज्योत्स्नी तु पूर्णिमारात्रिर्गणरांत्रो निशागणः ॥१४३॥ पक्षिणी पक्षतुल्याभ्यामहोभ्यां वेष्टिता निशा । गर्भकं रजनीद्वन्द्वं, प्रदोषो यामिनीमुखम् ॥१४४॥ यामः प्रहरो निशीथस्त्वर्धरात्रो महानिशौ । उच्चन्द्रस्त्वपररात्रस्तमिसं तिमिरं तमः ॥१४॥ ध्वान्तं भूच्छायाऽन्धकार, तमसं सम-वा-न्धतः । तुल्यनक्तन्दिने काले, विषुवेद्विषुवं च तत् ॥१४६॥ पञ्चदशाहोरात्रः स्यात्पक्षः स बहुलोऽसितः। तिथिः' पुनः कर्मवोटी, प्रतिपत्पक्षतिः' समे ॥१४७॥ १ दिवसस्य योऽष्टमो भागः स श्राद्धकालः कुतपश्च उच्यते इत्यर्थः । दिवसस्य पुराणोक्तानि रौद्रादीनि भगान्तानि पन्चदश मुहूर्तानि, तन्मध्ये गणनाक्रमेण योऽटमो मुहूर्तः स कुतुप उच्यते । तत्प्रयोजनं च श्राद्धे, अन्यकर्मणि अष्टमो मुहूर्तः अभिजिदाख्य यए। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः १ पञ्चदश्यौ यज्ञकालौ, पक्षान्तौ पर्वणी अपि । तत्पमूलं भूतेष्टापञ्चदश्योर्यदन्तरम् ॥१४॥ स पर्वसन्धिः प्रतिपत्पञ्चदश्योर्यदन्तरम् । पूर्णिमा पौर्णमासी सा, राको पूर्णे निशाकरे ॥१४९॥ कलाहीने त्वनुमतिर्गिशीर्थ्याग्रहायणी। अमीमावस्यमावश्याँ, दर्शः सूर्येन्दुसङ्गमः ॥१५॥ अमावास्यांमावाँसी च, सा नष्टेन्दुः कुहुँः कुहूंः । दृष्टेन्दुस्तु सिनीवाली, भूतेष्टी तु चतुर्दशी ॥१५१॥ पक्षौ मोसो वत्सरादिर्मार्गशीर्षः२ सहः सहाँः । आग्रहायणिकश्चाथ, पौषैस्तैषैः सहस्यवत् ॥१५२॥ माघेस्तपाः फाल्गुनस्तु, फाल्गुनिकैस्तपस्यैवत् । चैत्रो मधुश्चैत्रिकश्चै, वैशाखे रामाधवौ ॥१५३॥ ज्येष्ठस्तुं शुक्रोऽथाषाः, शुचिः स्याच्छ्राणो नभोः । श्रावणिकोऽथ नभस्यः, प्रौष्ठभाद्रपरः पदैः ॥१५४॥ भाद्रश्चाप्याश्विने त्वाश्वयुजेषावथ कार्तिकः । कार्तिकिको बाहुलोज्यौं, द्वौ द्वौ मार्गादिकावृतुः ॥१५५॥ हेमन्तः प्रशलो रौद्रोऽथ शैषशिशिरौ समौ । वसन्तै इष्यः सुरभिः, पुष्पकालो बलाङ्गकः ॥१५६। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ २३ उष्णे उष्णागमो ग्रीष्मो, निदाघैस्त उष्मकैः । वर्षा स्तपात्ययेः प्रावृणू, मेघात्काला - गमौ री ॥१५७॥ शरदे घनात्येयोऽयेनं, शिशिराद्यैस्त्रिभिस्त्रिभिः । अयने द्वे गतिरुदेग्दक्षिणर्किस्य वत्सरेः ॥१५९॥ ॥ १६०॥ स सं- पर्य्य- नूदभ्यो वर्ष, हायनोऽब्दः समाः शरतं । भवेत्पैत्र' लहोरात्रं, मासेनाब्देन दैवतम् देवे युगसहस्रे दे, ब्राह्मं कल्पौ तु ते नृणाम् । मन्वन्तरं तु दिव्यानां युगानामेकसप्ततिः कल्पो युगान्तेः कल्पान्तैः संहारः प्रलयैः क्षयः । संवतः परिवत्त, समसुप्तिर्जिहानकः तत्कोलस्तु तदात्वं स्यात्तज्जं सान्दृष्टिकै फलम् | आयति तूत्तरः काल, उदर्कस्तद्भफलम् व्योमान्तरिक्षं गगनं घनाथ्र्यो, , विहायें आकाशैमनन्तं पुष्करे । ॥ १५८॥ नभ्राट् तडित्वान्मुदिरौ घनाघनोऽभ्रं धूमयोनिस्तनयित्नुमेघाः ॥ १६१ ॥ ॥ १६२ ॥ 93 अभ्रं सुरा-म्रो डुमरु स्पैथोऽम्बरं, १५ १६ १७ १८ १९ २० खं द्यादिवौ विष्णुपदं वियन्नभ : ॥ १६३ ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अभिधानचिन्तामणी देवकाण्डः २ जीमूतपर्जन्यबलाहको घनो, धाराधरो वाह-द-मुग्-धरा जलात् ।।१६४॥ कादम्बिनी मेघमाला, दुर्दिनं' मेघनं तमः आसारो वेगवान् वर्षो, वातास्तं वारि शीकरः ॥१६॥ वृष्टया वर्षणैवर्षे तद्विघ्ने ग्राह-ग्रहोववात् । घनोपलस्तु करकः, काष्ठाऽऽशा दिगं हरिककुऐं ॥१६६ पूर्वा प्राची दक्षिणाऽपांची प्रतीची' तु पश्चिमा । अपराऽयोत्तरोदीची, विदि त्वपदिशं प्रदिक् ॥१६७॥ दिश्यं दिग्भववस्तुन्यपागपाची मुदगुदीचीनम् । प्रा प्राचीनं च समे प्रत्यके तु स्यात्प्रतीचीनम्॥१६८॥ तिर्यग्दिशां तु पतय, इन्द्राग्नियमनैताः । वरुणो वायुकुबेरावीशानश्च यथाक्रमम् ॥१६९॥ ऐरावतः पुण्डरीको, वामनः कुर्मंदोऽञ्जनः । पुष्पदन्तः सार्वभौमः, सुप्रतीकैश्च दिग्गजाः ॥१७०॥ इन्द्रो हरिर्दुश्च्यवनोऽच्युताग्रंजो, ___ वज्री बिडौ| मघवान पुरन्दरः । प्राचीनवर्हिः पुरुहूतवासवौ, सङ्कन्दनोखण्डेलमेघवाहनोंः ॥१७१।। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ १ सुत्रामवास्तोष्पतिर्देल्मिशः वृष सुनासीरसहस्रनेत्री ' पर्जन्यैहय्यैश्चैऋभुक्षिवादुदन्तेयैवृद्धश्रवस्तु राष ॥ १७२॥ २५ सुरतस्तो रिशतॠतुः । 3% कौशिकैः पूर्वदिग्-देवाप्सरः-स्वर्ग- शत्री- पतिः ॥ १७३॥ पृतनाषांडुग्रधन्वों, मरुत्वान्मघवऽस्य तु । 19 द्विषः पोकोऽद्रेयो वृत्रैः, पुलोम नमुचिः ॥ १७४॥ जम्भः प्रिया शचीन्द्राणी, पौलोमी जयवाहिनीं । तनयस्तु जयन्तः स्याज्जयदत्तो जयश्च सः ॥१७५॥ 3 सुता जयन्ती तविषी, ताविष्युच्चैःश्रव हयः । मातलीः सारथिर्देवनन्दी द्वाःस्थो गजः पुनः ॥ १७६ ॥ ऐरावणोऽभ्रमातङ्गैश्चतुद्दन्तोऽर्कसोदरैः । ऐरावतो हस्तिमः, श्वेतगंजोऽभ्रमुप्रियः वैजयन्तौ तु प्रासादध्वजौ पुर्य्यमरावती । सरो नन्दीसरेः पर्षत्सुधर्मा नन्देनं वनम् वृक्षाः कल्पेः पारिजातो, मन्दारो हरिचन्दैनः । सन्तानेश्च धनुर्देवायुधं तदृजु रोहितम् ॥ १७७॥ 1129611 ॥ १७९ ॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ अभिधान चिन्तामणी देवकाण्डः २ दीर्घरावतं वज्र, त्वशनिदिनी स्वतैः । शतकोटिः पविः शम्बो, दम्भोलिभिदुर भिंदुः ॥१८॥ व्याधामः कुलिशोऽस्याचिरतिभीः स्फूर्जQर्ध्वनिः । स्ववैद्यांवश्विनीपुत्रावैश्विनौ वडवासुतौ ॥१८॥ नासिक्योवर्कनौ दस्रो, नासत्यावब्धिजौ यमौ।। विश्वकर्मा पुनस्त्वष्टी, विश्वकद्दवैवर्द्धकिः ॥१८२॥ स्वःस्वर्गिववोऽप्सरसः, स्वर्वेश्यों उर्वशीमुखाः । 'हाहादयस्तु गन्धा , गान्धर्वी देवगायनाः ॥१८३॥ यमैः कृतान्तैः पितृदक्षिणाशा प्रेतात्पतिर्दण्डधरोऽकसूनुः । कीनार्शमृत्यूं समवत्तिकालौ ... शीर्णाग्रिहर्यन्तकधर्मराजाः ॥१८॥ यमराजः श्राद्धदेवः, शमैंनो महिषर्वजैः । कालिन्दीसोरेश्चापि, धूमोर्णी तस्य वल्लभा ॥१८॥ पुरी पुनः संयमैनी, प्रतीहारस्तु वैध्यतैः । दासौ चण्डेमहाचण्डौ, चित्रगुप्तस्तु लेखकः ॥१८॥ स्याद्राक्षसः पुण्यजनो नृचक्षा Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ अभिघानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ २७ यौत्वॉशरः कौणपयातुधांनौ । रात्रिचरो रात्रिचरः पलोदः कीनाशरक्षोनिकसात्मजाश्च ॥१८७॥ व्यात्कचुरनै*तावसको वरुणस्त्वर्णवमन्दिरैः प्रचेताः । जल-यादःतिपाशिमघनादा __ जलकान्तारः स्यात्परञ्जनश्च ॥१८८॥ श्रीदेः सितोदरेकुहेशैसोंः पिशाचे कीच्छाव(त्रिशिर ऐ विलैकपिङ्गाः । पौलस्त्यवैश्रवणैरेनकरोः कुबेरै यक्षौ नृधर्मधनदौ3 नरवाहनश्च॥१८९॥ कैलासौकी यक्ष-धन-निधि-किम्पुरुषे-श्वेरैः । विमानं पुष्पकं चैत्ररथं वनं पुरी प्रभी . ॥१९॥ भलको वस्वोकसारा, सुतोऽस्य नलकूबरैः । वित्तं रिक्थ स्वापतेय, राः सौर विभवो वसु ॥१९१॥ (१) यातु यातुनी पुंस्यपि,यदाह धनपाल: "क्रव्यादा यातवो यातुधानाः" इति । २ पुंस्यपि, यदाह धनपाल: “सारोऽर्थो द्रविण धनं "। Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ अभिधान चिन्तामणी देवकाण्डः १ चुम्नं द्रव्यं पृक्थं मुक्थ, स्वमृष्णं द्रविणं धनम् । हिरण्याौँ निधीनं तु, कुनाभिः शेवैधिनिधिः ॥१९२ महापद्मश्च पद्मश्चै, शैखो मकरँकच्छपौ । मुकुन्दकुन्दनीलाच, चैर्चाश्चं निधयो नव ॥१९३।। यक्षः पुण्यजनो राजा, गुह्यको" वटवास्यपि । किन्नरस्तु किम्पुरुषैस्तुरङ्गवदनो मर्युः ॥१९४॥ शम्भुः शर्वः स्थाणुरीशा ईशो', ___रुद्रेॉड्डीशौ वामदेवो वृषाङ्कः । कण्ठेकालः शङ्करो' नीलकण्ठः, ___श्रीकण्ठोग्रौ” पूर्जटिभीम-भरें ॥१९॥ मृत्युञ्जयः पञ्चमुखोऽष्टमूर्तिः, श्मशानवेमा गिरिशोर गिरीशः। घण्टः कपीश्वर उर्द्धलिङ्ग, एक-त्रि-दृक् भालढगेकपादः ॥१९॥ १ चर्चा: चर्चसौ चर्चसः इत्यादि । ३ सद्योजातः १ वामदेवः २ अघोरः ३ तत्पुरुषः ४ ईशानः ५ति पञ्च मुखानि । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 3४ ( ૨ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ २२ मृडोऽट्टहासी घनवाहनोऽहि बुनो विरूपाक्षविषान्तकौ च । महाव्रतो वह्नि-हिरण्यरेताः शिवोऽस्थिधन्वा पुरुषास्थिमाली॥१९७॥ स्याद् व्योमकेशः शिपिविष्टभैरवो, दिक्-कृत्ति-वासा भवनीललोहितौ । सर्वज्ञ-नाट्यप्रियखण्डपशवो, महापरा देव-नटे-श्वरी हेरः ॥१९॥ पशु-प्रथम-भूतो-मा-पतिः पिङ्ग-जटेक्षणः । पिनाक-शूल-खट्वाङ्ग-गङ्गा-ही-न्दु-कपाल-भृत् ॥१९९॥ गज-पूष-पुरा-नङ्ग-काला-न्धक-मखाऽसुहृद् । कपर्दोऽस्य जटाजूटः, खटाङ्गस्तु सुखसुणः ॥२०॥ पिनाकं स्यादानगवैमनकावं च तद्धनुः । ब्राह्मयाद्या मातरः सप्त, प्रमोः पार्षदों गौः ॥२०१॥ लघिमा वशितेशित्वं, प्राकाम्यं महिमोऽणिर्मा । पत्र कामावसायित्वं, प्राप्तिरैश्वर्यमष्टधा ॥२०२॥ y Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ २८ ३० अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ गौरी काली पार्वती मातृमाता ___ऽपर्णा रुद्रायम्बिका ब्यम्बिकोमा । दुर्गा चण्डी सिंहयानी मृडानी, कात्यायन्यौ दक्षजाऱ्या कुमारी॥२०॥ सती शिवा महादेवी, शर्वाणी सर्वमङ्गलो। भवानी कृष्ण-मैनाक-स्वसा मेनाद्रिजेश्वरा ॥२०॥ निशुम्भ-शुम्भ-महिष-मथनी भूतनायिका । तस्याः सिंहो मनस्तालः, सख्यौ तु विजयाँ जया॥२०॥ चामुण्डी चर्चिको चर्मामुण्डौ मार्जारकर्णिका । कर्णमोटी महागन्धा, भैरवी च कपालिनी ॥२०॥ हेरम्बो गण-विघ्नेशः, पशुपाणिविनायकः । द्वैमातुरो गजास्यैकदन्तौ लम्बोदरांखुगौ ॥२०७॥ स्कन्दः स्वामी महासेनैः, सेनानीः शिखिवाहनः । पाण्मातुरो ब्रह्मचारी, गङ्गो-मा-कृत्तिका-सुतः ॥२०॥ द्वादशाक्षो महातेजाः, कुमारः षण्मुखो हेः । विशाखः शक्तिभृत् क्रौञ्च-तारकारिः शरा-ग्नि-भूः ॥२०९॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५६ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ ३१ को भृङ्गिरिटिभृङ्गिरिटि ड्य-स्थि-विग्रहः । माण्डके केलिकिलो, नन्दीशे तण्डे-नदिनौ ॥२१॥ णो विरिञ्चिद्वैवणो विरिश्चः, परमेष्ठेयनोऽष्टश्रवणः स्वयम्भूः । नः कविः सात्विकवेदगी, स्थविरः शतानन्दैपितामही कः ॥१२१॥ न विधाता विधिवेधसौ दुः, पुराणगो हंसगविश्वरेतसौ। पतिबीचतुर्मुखो भवा न्तकृजगत्कर्तसरोरुहासनौ ॥२१२॥ ः शतधृतिः स्रष्टौ, सुरज्येष्ठो विरिञ्चैनैः । ग्यो लोकेशो, नाभि-पद्मा-त्म-भूरपि ॥१३॥ गुजिष्णुजनाईनो हरिहँषीकेशांच्युताः केशवो, ह: पुरुषोत्तमोऽब्धिशयनोपेन्द्रविजेन्द्रानुनौ । क्सेननरायणौ जलशयो नारायणः श्रीपति-१८ रिश्च पुराण-यज्ञ-पुरुषस्तार्क्ष्यध्वेजोऽधोक्षः ॥२१४॥ Jain Eqüication International Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ अभिधानचिन्तामणों देवकाण्डः २ गोविन्र्देषडविन्दुमुकुन्दकृष्णा, वैकुण्ठपझेशपद्मनाभीः । वृषाकपिर्माधववासुदेवौ, विश्वम्भैः श्रीधरविश्वरूपौ ॥२१५ दामोदरः शौरिसनातनौ विधुः, ___पीताम्बरो मार्जनिनौ कुमोदकः । त्रिविक्रमो जन्हुचतुर्भुजौ पुन . सुः शतावर्त्तगदाग्रनौ स्वभूः ॥२१६॥ मुञ्जकेशिनमालिपुण्डरीकाक्षवर्धशशबिन्दुवेधसः । पृश्निशृंगधेरणीधरात्मभूपाण्डवार्यनसुवर्णबिन्दवः ॥२१७॥ श्रीवत्सो देवकीसू नुर्गोपेन्द्रो विष्टरश्रवाः । सोमसिन्धुर्जगन्नाथो, गोवर्द्धनधरोऽपि च ॥२१॥ यदुनाथो गदा-शार्ङ्ग-चक्र-श्रीवत्स-शङ्ख भृत् । मधुधेनुकैचाणूरपूत यमलार्जुनोः ॥२१९॥ कालनेमिहयग्रीवेशकसरिष्ठकैटभाः । कसकेशिमुरी: साल्वमैन्दैद्विविहिवः ॥२२०॥ हिरण्यकशिपुर्वाणः, कालीयो नरको बलिः । शिशुपालश्चास्य वध्या, वैनतेयेस्तु वाहनम् ॥२२१॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ ३३ ॥२२२॥ शङ्खोऽस्य पाञ्चजन्योऽङ्कः श्रीवत्सोऽसिस्तु नन्दकैः । गदा कौमोदकी चापं शोर्ङ्गं चक्रं सुदर्शनैः मणिः स्यमन्तको हस्ते, मुजमध्ये तु कौस्तुभैः । वसुदेवो' भूकश्यपो, दिन्दुरौनकदुन्दुभिः रोमो हेली मुसलिसात्वर्तकामपालाः ॥२२३॥ सङ्कर्षणैः प्रियमधुरौहिणेयौ । रुक्मिं प्रलम्बेय मुनाभिदेने तैताल लक्ष्मैककुण्डेले सितसित रेवतीशः । २२४ ॥ ॥२२५॥ बलदेवो" बलभद्रो नीलवस्त्रो ऽच्युताग्रजैः । मुशलं त्वस्य सौनन्दं हलं संवर्तकायैम् लक्ष्मीः पद्मरमा यो माँ, ताँ साँ श्रीः कैमलेन्दिरो । हरिप्रिय पद्मवासी, क्षीरोदतनयऽपि च पदेनो जराभीरुरनङ्गमन्मथौ ॥२२६॥ कमनैः कलाकेलिरनन्य जोऽङ्गजः । ०१ श्रीवत्सस्तु विष्णुहृदये रोम्णो दक्षिणावर्त्तः | ०२ वाचतिस्तु चक्रं सुदर्शनोऽस्त्रियामित्याह । ०३ अत्र श्लोके या यस्य, ई, आ, इति छेदः, ई अत्र धवयोगादिति ङी प्रत्ययः, आ त्ययं भवन्तो गङ्गावत् । या इत्यखंडमपि तथा च विश्वशम्भुः या रमामातृष्विति " 1 3 , Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ अभिधान चिन्तामणौ देवकाण्डः २ मधुदीपमारौ मधुसौरथिस्मरौ विषमायुधो दम्पककामहृच्छयोः ॥२२७॥ प्रद्युम्नैः श्रीनन्दनश्च, कन्दर्पः पुष्पकेतनः । पुष्पाण्यस्येषुचापास्त्राण्यरी शम्बैरशूर्पको ॥२१८॥ केतनं मीनमकैरौ, बाणाः पञ्च रैतिः प्रिया । मनःशृङ्गारसङ्कल्पौत्मानो योनिः सुहृन्मधुः ॥ २२९॥ सुतोऽनिरुद्ध ऋष्याङ्क, उषेशो ब्रह्मसूर्य सः। गरुडैः शाल्मल्यरुणावरेजो विष्णुवाहनम् ॥२३०॥ सौपणेयो वैनतेयः सुपर्णः साराँतिर्वज्रनिद्वैज्रतुण्डैः । पक्षिस्वामी काश्यपिः स्वर्णकाये स्तायः कामायुर्गरुत्मान सुधाहत ॥२३१॥ बुद्धस्तु सुगंतो धर्मधातुस्त्रिकालेंविजिनः । बोधिसत्त्वो महाबोधिरार्यः शास्तों तथागतः ॥२३२॥ पञ्चज्ञानेः डेभिज्ञो, दीर्हो दशभूमिग : चतुस्त्रिंशज्जातकज्ञो, दशपारमिताधरः ॥२३३॥ द्वादशक्षिो दशबलस्त्रिकायः श्रीधैनाद्वैयौ । समन्तभद्रः सङ्गुप्तो, दयाकूर्ची विनायकैः ॥२३४॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ ३५. ॥ २३६॥ ६७ मार-लोक-ख- जिर्द्धर्मराजो विज्ञानमातृकः । महामैत्रो मुनीन्द्रैश्ध, बुद्धाः स्युः सप्त ते त्वमी ॥ २३५॥ विपश्यी शिखी विश्वभैः, क्रकुच्छन्द काञ्चनैः । काश्यश्च सप्तमस्तु, शाक्यसिंहोऽर्क बान्धवैः तथा राहुलसैः सर्वार्थसिद्ध गौतमान्वयः । माया- शुद्धोदन - सुतो, देवदत्ताप्रजश्च सः असुरो दितिदनुजः, पातालौकैः सुरारयैः । पूर्वदेवः शुक्रशिष्यों, विद्यादेव्यस्तु षोडश ॥ २३८ ॥ रोहिणी प्रज्ञेप्तिर्वज्रशृङ्खलाँ कुलिशाङ्कुश । श्री नरदत्त, काल्यथासौ महापरी गौरी गान्धारी सर्वास्त्रमहाज्वाली च मानवी । रोट्यis मानसी, महामानसिकेति ताः ॥ २४०॥ ॥२३९॥ ॥२३७॥ वागे ब्राह्मी भारती गौ गीर्वाणी भाषाँ सरस्वती । २ ९१ 3 ४ देवी वचनं तु व्याहारो भाषितं वचः भविशेषणमाख्यातं, वाक्यं स्त्याद्यन्तकं पदम् । सिद्धकृतेभ्योऽन्ते, आप्तोक्तिः समयोगमौ ॥२४२॥ बारा सूत्रकृतं, स्थानां समवाययुक् । भगवत्यैङ्ग, ज्ञातीधर्मकथापि च ॥२४१॥ ॥२४३॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ उपासकान्तकृदनुत्तरोपपातिकाद्दशाः। प्रश्नव्याकरणं चैव, विपाकश्रुतमेव च ॥२४४॥ इत्येकादश सोपाङ्गान्यङ्गानि द्वादशं पुनः ।। दृष्टिवादो द्वादशाङ्गी, स्याद्गणिपिटकाहुया ॥२४५।। परिकर्म- सूत्र-पूर्वानुयोग-पूर्वगत-चूलिकाः पञ्च । स्युदृष्टिवादभेदाः पूर्वाणि चतुर्दशापि पूर्वगते ॥२४६॥ उत्पादपूर्वमग्रायणीयमथ वीर्य्यतः प्रवौदं स्यात् । अस्तेीनोत्सत्यात्तदात्मनः कर्मणश्च परम् ॥२४७॥ प्रत्याख्यान विद्याप्रवाद-कल्याण-नामधेये च । प्राणवायं च क्रियाविशालमैथै लोकबिन्दुसौरमिति २४८ स्वाध्यायः श्रुतिराम्नायछन्दो वेदत्रयी' पुनः । ऋग्यजुःसामवेदा. स्युरथरू तु तदुद्धृतिः ॥२४९॥ वेदान्तः स्यादुपनिषदोङ्कारप्रणवौ समौ । शिक्षा कल्पो व्याकरण, छन्दो ज्योतिर्निरुक्तयः ॥२५॥ षडङ्गानि धर्मशास्त्रं, स्यात् स्मृति धर्मसंहितौ । आन्वीक्षिकी तर्कविद्या, मीमांसा तु विचारणा ॥२५॥ सर्गश्चै प्रतिसर्गश्चे, वंशो मन्वन्तराणि च । वंशानुवंशचेरितं, पुराणं पञ्चलक्षणम् ॥२५२॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणौ देवकाण्डः २ ३७ षडङ्गी वेदाश्चत्वारो, मीमांसाऽन्वीक्षिकी तथा । धर्मशास्त्रं पुराणं च, विद्या एताश्चतुर्दश ॥२५॥ सूत्रं सूचनकृद्भाष्यं सूत्रोक्तार्थप्रपञ्चकम् । प्रस्तावस्तु प्रकरणं, निरुक्तं पदभञ्जनमे ॥२५४॥ अवान्तरप्रकरणविश्रामे शीघ्रपाठतः । . आह्निकमधिकरणन्त्वेकन्यायोपपादनम् ॥२५॥ उक्तानुक्तदुरुक्तार्थचिन्ताकारि तु वार्तिकम् । टीको निरन्तरव्याख्या, पञ्जिको पदभञ्जिका ॥२५६॥ निबन्धवृत्ती अन्वर्थे, संग्रहस्त समाहेतिः । परिशिष्टंपद्धत्यादीन, पथाऽनेन समुन्नयेत् ॥२७॥ कारिको तु स्वल्पवृत्तौ, बहोरर्थस्य सूचनी। कलिन्दिको सर्वविद्या, निघण्टुर्नामसङ्ग्रहः ॥२५८॥ इतिहासः पुरावृत्त, प्रवलिको प्रहेलिको। जनश्रुतिः किंवदन्ती, वाततिा पुरातनी ॥२५९॥ ०१ अवान्तरप्रकरणानां विश्रामो ग्रन्थावयय इत्यर्थः । तदाइनकमित्युच्यते, यदनेकार्थः “आह्निकं स्यात्पुनरहनिर्वत्यै नित्यकर्मणि । भोजने ग्रन्थभागे चेति ” ग्रन्थभागे-ग्रन्थावयवे इति हट्टीका । ०२ आदिग्रहणात् अध्यायः उच्छ्रासः अङ्कः सर्गः इत्यादयो ग्रन्यावयव विशेषा ज्ञेयाः । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ३८ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ वार्ता प्रवृत्तिवृत्तांत उदन्तोऽथाहयोऽभिधी। गोत्रसंज्ञानामधेयॉख्याहाँऽभियांश्च नाम च ॥२६॥ सम्बोधनमामन्त्रणमाहौनं त्वभिमन्त्रणम् । आकारणं हवो हूँतिः, संहृतिबेहुभिः कृता ॥२६१ ॥ उदाहार उपोद्घात, उपन्यासैश्च वार्मुखम् । व्यवहाँरो विवादैः स्यात् , शपथैः शेपनं शपैः ॥२६२॥ उत्तरं तु प्रतिवचः, प्रश्नः पृच्छानुयोजनमै । कथङ्कथिकता चाथ, देवप्रश्नै उपश्रुतिः ॥२६३॥ च? चाटुं प्रियप्राय, प्रियसत्यं तु सूनृतम् ।। सत्यं सम्यक् समीचीनमृतं तथ्यं यथातर्थम् ॥२६४॥ यथास्थितं च सद्भूतेऽलीके तु वितथानृते । अथ क्लिष्टं सकुलं च, परस्परपराहतम् ॥२६॥ सान्त्वं सुमधुरं ग्राम्यमश्लील म्लिष्टमस्फुटम् । लुप्तवर्णपदं ग्रस्तैमवाच्यं स्यादनक्षरम् ॥२६६।। अम्बूकृतं सथूत्कारे, निरस्तं त्वरयोदितम् । आमेडित द्विस्त्रिरुक्तमबद्धं तु निरर्थकम् ॥२६॥ पृष्ठमांसादनं तद्यत् , परोक्षे दोषकीर्तनम् । मिथ्याभियोगोऽभ्याख्यान, सङ्गतं हृदयङ्गमम् ॥२६॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ ३९ परुषं निष्ठुर रूक्ष, विक्रुष्टमय घोषणी । उच्चैर्युष्ट वर्णनेडा, स्तवः स्तोत्रं स्तुतिर्नुतिः ॥२६९॥ श्लांधी प्रशंसाऽर्थवादः, सा तु मिथ्या विकत्थनम् । जनप्रवादः कौलीनं, विगानं वचनीयतों ॥२७॥ स्यादैवर्ण उपक्रोशो, वादो निष्पर्य्यपात् परः । गर्हाँ धिक्रियाँ निन्दी, कुत्सा क्षेपो जुगुप्सनम्।।२७१।। आक्रोशाभीषङ्गाक्षेपाः, शापैः स क्षारणी रते । विरुद्धशंसनं गालिराशीमङ्गलशंसनम् ॥ २७२ ।। श्लोकः कीर्तिर्यशोऽभिख्या, समाज्ञा रुशती पुनः । अशुभा वाक् शुभा कल्या चर्चरी चर्भटी समे ॥२७३॥ यः सनिन्द उपालम्भस्तत्र स्यात्परिभाषणम् । आपृच्छौऽऽलापैः सम्भाषोऽनुलापैः स्यान्मुहुर्वचः ॥२७॥ अनर्थकं तु प्रलापो, विलापैः परिदेवनम् । उल्लापः काकुवागन्योऽन्योक्तिः संलापैसकेथे ॥२७॥ विप्रलोपो विरुद्धोक्तिरपलापस्तु निवः । समलापः सुवचनं, सन्देशवाक्तु वाचिकम् ॥२७॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ आज्ञा शिष्टिनिरानिभ्यो देशो नियोगशासने । अवाँदोऽप्यथाहूय प्रेषणं प्रतिशासनम् ॥२७७॥ संवित्सन्धोऽऽस्थाऽभ्युपायः, संप्रत्याङ्भ्यः परः श्रवः । अङ्गीकारोऽभ्युपगमः, प्रतिज्ञाऽऽगूश्य सङ्ग्रैः ॥२७८॥ गीतनत्यवाद्यवयं, नाट्यं तौर्यत्रिकं चै तत् । सङ्गीतं प्रेक्षणार्थेऽस्मिन् , शास्त्रोक्ते नाट्यधर्मिका ॥२७९॥ गीतं गाने गेयं गीतिर्गन्धर्वमथ नर्तनम् । . नटनं नृत्यं नत्तं च, लास्य नाट्यं च ताण्डवम् ॥२८०॥ मण्डलेन तु यन्नृत्यं, स्त्रीणां हल्लीसकं हि तत् । पानगोष्ठ्यामुच्चताल, रणे वीरजयन्तिका ॥२८१॥ स्थानं नाट्यस्य रङ्गः स्यात्पूर्वरङ्ग उपक्रमः ।। अङ्गहारोऽङ्गविक्षेपो, व्यञ्जकोऽभिनयः समौ ॥२८२॥ स चतुर्विध आहार्यो रचितो भूषणादिना ।। वचसा वाचिकोऽङ्गेनाङ्गिकः सत्त्वेन सात्त्विः ॥२८३॥ स्यान्नाटकं प्रकरणं, भाणः प्रहमन डिमः । व्यायोगसमवकारौ, वीथ्यकेहामृगा इति ॥२८॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ ४१ अभिनेयप्रकाराः स्युर्भाषाः षट् संस्कृतादिकाः । मारती सात्वती कौशिक्यारभेट्यौ च वृत्तयः ॥२८॥ बाद्य वादित्रैमातोये, तूर्ये तूर स्मरजः । ततं वीणाप्रभृतिकं, तालप्रभृतिकं घेनं ॥२८६॥ वंशादिकं तु शुषिरमानद्धं सुरजादिकम् । वीणा पुनर्घोषवती, विपञ्ची कण्ठकूणिका !.२८७॥ वल्लकी साऽथ तन्त्रीभिः, सप्तभिः परिवादिनी । शिवस्य वीणा नालम्बी, सरस्वत्यास्तु कच्छपी ॥२८॥ नारदस्य तु महती गणानां तु प्रभावती । विश्वावसोस्तु बृहती, तुम्बुरोस्तु कलावती ॥२८९॥ चण्डालानां तु कटोलवीणां चाण्डालिको च सा । कायः कोलम्बकैस्तस्या, उपनाहो निबन्धनम् ॥२९॥ दण्डः पुनः प्रवालः स्यात्ककुम्भस्तु प्रसेवकः । मूले वंशशलाको स्यात्कलिको कूणिकौपि च ॥२९१॥ कालस्य क्रियया मानं, तालः साम्यं पुनलयः । द्भुतं विलम्बित मध्यमोघेस्तत्वं धन क्रमात् ॥२९२॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ ર્ मृदङ्गो मुरजः सोऽङ्क्यालिङ्गयैर्ध्वक इति त्रिधा । स्याद्यशः पटहो ढक्को, भेरी दुन्दुभिर नकः १ २ ४२ पहोऽथ शारिका स्यात्कोणो वीणादिवादनम् । शृङ्गारहास्ये करुणा, रौद्रवीरभयानकः रागोऽनुरागोऽनुरर्तिर्हासैस्तु हसने हतैः ! ε घ हासिक हास्य, तत्रादृष्टरदे स्मितम् बीभत्सादुर्भुत शान्तथि, रसा भावाः पुनस्त्रिधा । स्थायिसात्विकै सञ्चारिप्रभेदैः स्याद्रेतिः पुनः ૪ १ वक्रोष्ठिकाऽय हसितं किञ्चिद्दृष्टर दाङ्कुरे । किञ्चिच्छ्रुते विहसितमट्टहासो महीयसि अतिहाँस स्त्वनुस्यूतेऽप हाँसोऽकारणात्कृते । सोत्प्रासे त्वाच्छुरितकं, हसनं स्फुरदोष्ठ के १ ॥२९३॥ क्रुत् ॥२९८॥ ८ ॥२९५॥ ॥२९६॥ ॥२९७ ॥ २ 3 ४ ર 3 r शोकः शुक शोचन खेदः, क्रोधो मन्युः क्रुषा रुषा । २ कोपः प्रतिघों रोषों, रूट् चोत्साहः प्रगल्भता ॥ २९९॥ ॥२९८ ॥ E अभियोगोद्यम प्रौढियोगः कियदेतिका । अध्यवसाय ऊर्जोऽथ वीर्य्यं सोऽतिशयान्वितः ॥ ३००॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी देवकाण्डः २ ४३ १ 3 Ε ७ भयं भीर्भीतिशतक, आशङ्‌का साध्वसं दरः । ४ . भियां च तच्चाहिभयं, भूपतीनां स्वपक्षजम् ५ अदृष्टं वह्रितोयादेर्दृष्टं स्वपरचक्रनम् । ६ 3 ४ १५ भयङ्करं प्रतिभयं भीमं भीष्मं भयानकम् १० भीषणं भैरवं घोरं, दारुणं च भयावहम् । मृगुप्सा तु घृणोऽथ स्याद्विस्मयेश्चित्रे मद्भुतम् ॥ ३०२ ॥ 3 कण्टको रोमविकारों रोमहर्षणम् १ 3 त्रोद्याश्चर्ये शमः शान्तिः, शमथोपशमावपि । कृष्णाक्षयैः स्थायिनोऽमी, रसानां कारणं क्रमात् ॥ ३०४ ॥ तम्भो जाड्यं स्वेदो धम्मनिदाघौ पुलकः पुनः । 3 ૨ २ ॥३०५ ॥ २ वर्ण्य कालिका ॥३०१॥ १ मोगर्भं उद्धषणमुलाकसनमित्यपि । वरभेदस्तु कलत्वं स्वरे कम्पस्तु वेपथुः ॥३०६ ॥ 3 ૪ नेत्राम्बु रोदनम् । प्रलयेस्त्वचेष्टतेत्यैष्ट सात्विकाः ॥३०७॥ 'तिः सन्तोष: स्वास्थ्यं स्यादाध्यानं स्मरणं स्मृतिः । तिर्मनीषा बुद्धिधर्धिषणाज्ञप्तिचेतनाः Ε ॥३०८ ॥ ॥३०२॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ अभिधान चिन्तामणौ देवकाण्डः २ प्रतिभा प्रतिपत्प्रज्ञाप्रेक्षाचिदुपलब्धयः । संवित्तिः शेमुषी दृष्टिः, सा मेधा धारणक्षमा ॥३०९॥ पण्डी तत्त्वानुगा मोक्षे ज्ञानं विज्ञानमन्यतः । शुश्रूषी श्रवणं चैव, ग्रहणं धारणं तथा ॥३१॥ उहोऽपोहोऽर्थविज्ञान, तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः । ब्रीडा लज्जा मन्दाक्षं हीस्त्रपों साऽपत्रपाऽन्यतः ॥३११॥ जाड्य मौख्यं विषादोऽवसादैः सादौ विषण्णता । मदो मुन्मोहेसम्भेदो, व्याधिस्त्वाधी रुनाकरः ॥३१२॥ निद्रा प्रमीली शयन, संवेश-स्वाप-संलयाः । नन्दीमुखी श्वासहेतिस्तन्द्रा सुप्तं तु साधिका ॥३१३॥ औत्सुक्य रणरणकोत्कण्ठे आयल्लकॉरती। . हृल्लेखोत्कलिके चाथावहित्याकारगोपनम् ॥३१४॥ शङ्काऽनिष्टोत्प्रेक्षणं स्याच्चापले त्वनवस्थितिः । आलस्यं तन्द्रा कौसीधे, हर्षश्चित्तप्रसन्नता ॥३१५॥ ह्लादैः प्रमोर्दैः प्रमदो, मुत्प्रीत्यामोदैसम्माः । आनन्दीनन्दयूँ गर्वस्त्वहङ्कोरोऽवलिप्तता ॥३१६॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवकाण्डः २ ४५.... E मानो ममता, माश्चित्तोन्नतिः स्मयः । समिथोऽहमहमिको, या तु सम्भावनाऽऽत्मनि ॥ ३१७॥ दर्पात्सा हो पुरुषिकों, स्यादहम्पूर्विको पुनः । अहं पूर्वमहं पूर्वमित्युग्रत्वं तु चण्डता २ ॥३१८॥ प्रबोध॑स्तु विनिद्रत्वं, ग्लानिस्तु बलहीनता । दैन्यं कार्पण्यं श्रमस्तु, कुर्मः क्लेशः परिश्रमः ॥३१९॥ प्रयासोया संव्यायामाँ, उन्मादेश्चित्तविप्लवैः । मोहो मौठ्यं चिन्ता ध्यानममर्षः क्रोधसम्भवः ॥ ३२० ॥ गुणो जिगीषोत्साहवांस्त्रास्त्वाकस्मिकं भयम् । अपस्मारः स्यादावेशो, निवेदैः स्वावमाननम् ॥ ३२१॥ 3 आवेगस्तु त्वरिस्तूर्णिः, संवेगैः सम्भ्रमस्त्रीं । वितर्कः स्यादुन्नयनं, परामर्शो विमर्शनम् ॥३२२॥ अध्याहारस्तर्क ऊँहोऽसूयान्यगुणदूषणम् । सृतिः संस्था मृत्युकालौ, परलोकगमोऽत्ययः ॥ ३२३॥ ११ पञ्चत्वं निधनं नाशो, दीर्घनिद्रा निमीलनम्। ૧૨ 93 दिष्टान्तोऽस्तं कालधर्मोऽवसानं सा तु सर्वगा ॥ ३२४ ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ अभिधानचिन्तामणी देवकाण्डः २ मरेको मारिस्त्रयस्त्रिंशदमी व्यभिचारिणः । स्युः कारणानि कार्याणि, सहचारीणि यानि च ॥३२५॥ रत्यादेः स्थायिनो लोके, तानि चेत्काव्यनाट्ययोः । विभावा अनुभावाश्चै, व्यभिचारिण एव च ॥३२६॥ व्यक्तः स तैर्विभावाद्यैः, स्थायिभावो भवेद्रसः । पात्राणि नाट्येऽधिकृतास्तत्तद्वेषस्तु भूमिका ॥३२७॥ शैलुषो भरतः सर्वकेशी भरतपुत्रः । धर्मीपुत्रो रङ्गजायाऽऽजीवो रङ्गावतारकः ॥३२८॥ नटः कृशाश्वी शैलाली, चारणस्तु कुशीलवः। भ्र-भु-भ्रू-भृ-परः कुंसो, नटः स्त्रीवेषधारकः ॥३२९॥ वेश्याचार्य पीठमईः, सूत्रधारस्तु सूचकः । नन्दी तु पाठको नान्द्याः, पार्श्वस्थः पारिपाश्चिकः।।३३०॥ वासन्तिकः केलिकिलो, वैहासिको विदूषकः । प्रहासी प्रीतिदश्चाथ, षिङ्गः पल्लविको विटः ॥३३१॥ पिता त्वाबुक आवृत्त-भावुकौ भगिनीपतौ । भावो विद्वान् युवराजः, कुमारो भर्तृदारकः ॥३३२॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ अभिधानचिन्तामणौ देषकाण्डः २ ४७ बाला वासूर्षि आर्यो, देवो भट्टारको नृपः । राष्ट्रियो नृपतेः श्यालो, दुहिता भर्तृदारिका ॥३३३॥ देवी कृताभिषेकाऽन्या भट्टिनी गणिकाऽज्जुका ! नीचा चेटी सखीहृतौ हण्डे हले हलाः क्रमात् ॥३३॥ अब्रह्मण्यमवध्योक्तौ, ज्यायसी तु स्वप्ताऽत्तिको । भर्ताऽऽर्यपुत्रो माताऽम्बा भदन्ताः सौगतादयः ॥३३५॥ पूज्य तत्रभवानत्रभवांश्च भगवानपि । पादौ भट्टारको देवः, प्रयोज्याः पूज्यनामतः ॥३३६॥ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायामभिधानचिन्तामणौ नाममालायां देवकाण्डो द्वितीयः ॥२॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ। MOOO मर्त्यकाण्डः तृतीयः। मयः पञ्चजनो भूस्पृक् , पुरुः पूरुषो नरैः । मनुष्यो मानुषों नौ विट', मनुजो मानवैः पुमान्॥३३७॥ बाले: पार्क: शिशैम्भिः, पोतः शाः स्तनन्धयः । पृथुकांर्भोत्तानशाः, क्षीरकण्ठः कुमारेकैः ॥३३८॥ शिशुत्वं शैशवं बाल्य, वयस्थस्तरुणो युवा । तारुण्यं यौवन वृद्धे, प्रवयाः स्थविरौ जरन् ॥३३९॥ जरी जीर्णो यातयामों, जीनोऽथ विनसा जरी। वार्द्धक स्थाविरं ज्यायोन् , वर्षीयान् दशमीत्यपि॥३४०॥ विद्वान् सुधीः कविविचक्षणलब्धवर्णाः __ः प्राप्तरूपतिकृष्टयभिपधीरों: । मेधाविकोविंदविशारदसूरिदोष साः पिण्डितमनीषिर्बुधप्रबुद्धीः ॥३४१॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ": • अभिधानचिन्तामणो मर्मकाण्डः ३ ४९ व्यक्तो विपश्चित्सङ्ख्यावान, मैंने प्रवीणे'तु शिक्षितैः। निष्णातो निपुणो दक्षः, कर्म-हस्त-मुखीः कृतात् ।३४२॥ कुशलश्चतुरोऽभिज्ञविज्ञवैज्ञानिकाः पटुः । लेको विदग्धे प्रौढस्तु, प्रगल्भैः प्रतिभान्वितैः ॥३४३॥ कुशाग्रीयमतिः सूक्ष्मदर्शी तत्कालधीः पुनः ।। प्रत्युत्पन्नमतिर्दुराद्यः पश्येद्दीर्घदर्यसौ ॥३४॥ दयानुः सहृदयश्चिद्रूपोऽप्यथ संस्कृते । युत्पन्न प्रहतैक्षुण्णा, अन्तर्वाणिस्तु शास्त्रवित् ॥३४५॥ वागीशो वापतौ वाग्मो, वाचोयुक्तिप?ः प्रवाक् । प्रमुखो वावदूकोऽथ वदो' वक्तो वदावदैः ॥३४६॥ स्याद् जल्पाकस्तु वाचालो, वाचोटो बहुगीवाक् । दोऽनुत्तरे दुर्वा कद्वैदे स्यादथाधरैः ॥३४७॥ निवादिन्येडमूकोनेडमुको त्ववाक्श्रुतौ ।। ः शब्दनैस्तुल्यौ, कुवादकुचरौ समौ ॥३४॥ वोऽस्फुटवाग् मूकोऽवागसौम्यस्वरोऽस्वरैः । विदुरो' विन्र्वन्दारीत्वभिवादकः ॥३४९॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मत्येकाण्डः ३ आशंसुराशंसितरि", कट्टेरस्त्वतिकुत्सितैः । निराकरिष्णुः क्षिप्नुः स्याद्विकासी तु विकस्वरः ॥ ३५० ॥ २ ५० 3 दुर्मुखे मुखबद्धमुखौ शक्तेः प्रियंवदेः । दानशीलः सवदान्यो, वदन्योऽप्यथ बालिशैः ॥ ३५१ ॥ मूढो मन्दो यथाजातो, बालो" मातृमुखो जडैः । 99 १३ · मूर्खाऽमेधों विवर्णाज्ञौ, वैधेयो मातृशासितः ॥३५२॥ . १४. १५ देवानांप्रियजालमौ च दीर्घसूत्रेश्चिरक्रियेः । मन्दः क्रियासु कुण्ठेः स्यात्, क्रियावान् कर्म्मसूद्यतः॥ ३५३ कम्मोऽलङ्कमणैः कर्मशूरस्तु कर्मठः । 1 कर्मशीलैः कार्म्म आय. शूलिकैस्तीक्ष्णकर्मकृत् ॥३५४॥ सिंहसंहननैः स्वः, स्वतन्त्रो' निरवग्रहैः । यथाकामी स्वरुचि, स्वछन्दः स्वय्यैपावृतः ॥ ३५५॥ 3 ॥३५६ ॥ यदृच्छों स्वैरितो स्वेच्छा, नाथवाने निघ्ने गृह्यकौ । तन्त्रायत्तवशी च्छन्दवन्तेः परात्परे लक्ष्मीवान् लक्ष्मणेः श्लील, इभ्ये आढ्यो वैनीश्वरैः । ऋद्धो विभूतिः संपत्तिर्लक्ष्मीः श्रीऋद्धिसम्पदः ॥ ११७॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ दरिद्रो दुर्विधो दुःस्थों, दुर्गतो निःस्वकी कटौं । अकिञ्चनोऽधिपस्त्वीशो, नेता परिवृढोऽधिभूः ||३१८ || १४ पतीन्द्रस्वामिनाथाः प्रभुतेश्वरो विभुः । २ १५. १६ १७ ईशितेनो नायकश्च नियोज्यः परिचारकः 3 fs: fast reach गोप्यः पराचितः । ५१ ॥३५९ ॥ १० 93 ॥३६०॥ दासः प्रेष्यः परिस्कन्दो, भुजिष्यपरिकर्मिमणौ ॥ २३० ॥ परान्नैः परपिण्डोदे, परजतः परैधितैः । 3 भृतिभुग्वैतनिकः कर्मकरोऽपि च ॥३६१ ॥ स निर्ऋतिः कर्मकरो, भृतिः ' स्यान्निष्क्रयैः पणः । कर्म्मण्या वेतन मूल्य, निर्देशौ भरणं विधा ॥३६२॥ भण्यों भृत्यों च भोगेस्तु गणिकाभृतिः । खलपूः स्याद्बहुकरो', भारवाहस्तु भारिकैः ॥३६३॥ 3 विहे वैवधिको भारे विवदेवीवधौ । : शिक्यं तदालम्बो, भारयष्टिर्विहङ्गिकौ ॥ ३६४ ॥ मोरभटो' वीरो', विक्रान्तश्चाथ कातरेः 1 3 सम्बकितो भीतो, भी-भी रुक- भीलुकः ॥ ३६६॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मायकाण्डः ३ 3 विहस्तव्याकुल व्यग्रे, कान्दिशीको भयद्भुते । उत्पिञ्जले समुत्पिपञ्जा भृशमाकुले 3 ५.२ महेच्छेतुद्भटोदारौ, दान्तोदीर्णमहाशयाः । महामना महात्मा च कृपणेस्तु मितम्पचेः कीनाशैस्तद्धनैः क्षुद्रैकदर्य दृढमुष्टयः । किम्पचानो' दयालुस्ते, कृपालुः करुणा परैः १ ૨ 3 ४ सूरतोऽय दया शूकः, कारुण्य करुणा घृणा । कृपानुकम्पानुक्रोश, हिंस्त्रे शरारुघातुको 3 3 व्यापादनं विशरणं प्रमयः प्रमापणं, निर्ग्रन्थनं प्रमथनं कदनं निबर्हणम् । १२ निस्तर्हणं विशसनं क्षणनं परासनं, १३ १४ १५ १६ प्रोज्जासनं प्रशमनं प्रतिघातनं वधः २० ॥ ३६६॥ २२ ॥३६७॥ ॥३६८॥ ॥३६९॥ १७ १८ १९ २२ २३ प्रवासनोद्वासनघातनिर्वासनादि संज्ञप्तिनिशुम्भहिंसाः । निर्वापणालम्भनिसुदनानि, निर्थ्यात नोन्मन्यसमापनानि ॥ ३७० ॥ ॥३७१॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 अभिधानचिन्तामणो मयंकाण्डः ३ ५३ अपासनं वर्जनमारपिञ्जा, निष्कारणाकाविशारणानि । स्युः कर्तने कल्पने-वैर्द्धने च, छेदश्च घातोद्यत आततायी ॥ स शैर्षच्छेदिकः शीर्षच्छेद्यो यो वधमर्हति । प्रमीत उपसम्पन्नः, परेतप्रेतसंस्थिताः ॥३७३॥ नीमालेख्य-यशः-शेषो, व्यापंन्नोऽपगतो मतः । परीसुस्तदहे दानं, तदर्थमौर्ध्वदेहिकम् ॥३७४॥ मृतस्नानमपस्नानं', निवाः पितृतर्पणम् ।। चितिचित्याचेितास्तुल्या, ऋजुस्तु प्राञ्जलोऽञ्जसः॥३७५॥ दक्षिणे सरलोदारौ, शठस्तु निकृतोऽनृजुः । करे' नृशंसनिस्त्रिंशपाएँ धूर्तस्तु वच्चकैः ॥३७६॥ व्यसकैः कुहेको दाण्डाजिनिको मार्यिनालिकौ ।। माया तु शठतो शाठ्यं , कुँसतिनिकृतिश्च सा ॥३७७॥ कपट कैतवं दम्भः, कुटं छेनोपंधिछलम् । व्यपदेशो मिषं लॉ, निभ व्याजोऽथ कुक्कुटिः ॥३६॥ कुहनौ दम्भचर्या च, वञ्चनं तु प्रतारणमें । व्यलीकैमतिसन्धान, साधौ' सभ्याय॑सज्जनॊः ॥३७९॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ अभिधानचिन्तामणो मत्यकाण्डः ३ दोषैकहरू पुरोभागी', कर्णेजपस्तु दुर्जनः । पिशुनैः सूचको नीचो", द्विजिहो मत्सरी खलः ॥३८॥ व्यसनातस्तूपरक्तश्चोरस्तु प्रतिरोधकः ।। दस्युः पाटचरैः स्तेनेस्तस्करः पारिपन्थिकः ॥३८१॥॥ परिमोषिपरास्कन्धैकागारिकमलिम्लुचौः । यः पश्यतो हरेदर्थ, स चोरः पश्यतोहरैः ॥३८॥ चौयं तु चौरिको स्तेय, लोप्नं त्वपहृतं धनम् । यद्भविष्यो' दैवपैरोऽयालस्यैः शीतकोऽलसैः ॥३८३॥ मन्दस्तुन्दपरिजोऽनुष्णो दक्षस्तु पेशलः । पट्टैष्णोणकराँत्थानचतुराश्चाथ तत्परः ॥३८४॥ आसक्तः प्रवणैः प्रहुँः, प्रसितश्चे परायणः । दातोदारैः स्थूललक्षदानशौण्डौ' बहुप्रदे ॥३८॥ दानमुत्सर्जनं त्यागः, प्रदेश विसर्जने । विहायितं वितरणं, स्पर्शनं प्रतिपादन ॥३८६॥ विश्राणनं निवर्पणमपवर्जनमंहतिः। अर्थव्ययज्ञः सुकलो, याचकस्तु वनीपकैः ॥३८७।। मार्गणोऽर्थी याचनकस्तर्कुकोऽथार्थनेषणा । अईनौ प्रणयो याञ्चों, याचनाऽध्येषणां सनि:॥३८॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ ५५ उत्पतिष्णुस्तूत्पतितोऽलङ्करिष्णुस्तु मण्डैनः । भविष्णुर्भवितो भूष्णुः, समौ वर्तिष्णुवर्तनौ ॥३८९॥ विसत्वरो विसमरः, प्रसारी च विसारिणि । लज्जाशीलोऽपत्रपिष्णुः, सहिष्णुः क्षमिता क्षमी ॥३९०॥ तितिक्षुः सहनः क्षन्ता, तितिक्षी सहन क्षमाँ । ईलिः कुहनोऽशान्तिरीा क्रोधी तु रोषणः ॥३९१॥ अमर्षणः क्रोधनश्र्च, चण्डस्त्वत्यन्तकोपनः । बुभुक्षितः स्यात् क्षुधितो, जिवत्सुरशनायितः ॥३९२॥ बुभुक्षायोमशनायो, निघ-सौ रोचको रुचिः । पिपासुस्तृषितस्तैष्णक, तृष्णां तैर्षोऽपलासिकौं ॥३९३॥ पिपातौं तृट् पृषोदन्या, धीतिः पानेऽथ शोषणम् । रसादान भक्षकस्तु, घस्मैरोऽद्मर आशितैः ॥३९॥ भक्तमन्नं कूरमन्धो , भिस्सों दादिविरोदनः । अशनं जीवनकं च, योनो वाजेः प्रसादनम् ॥३९५॥ मिस्सटौ दग्धिको सर्वरसाग्रं मण्डमत्र तु । अधिने मैस्तु भक्तोत्थे, निस्रावीचामेमाससः ॥३९॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ अभिधान चिन्तामणौ मत्यकाण्डः ३ श्राणां विलेपी' तरलो, यवाग्र्रुष्णिकॉपि च । सूपः स्यात्प्रहित सूदो , व्यञ्जनं तु घृतादिकम् ॥३९७॥ तुल्यौ तिलान्ने कृसरत्रिसरीवथ पिष्टकैः । पूपोऽपूपः पूलिका तु, पोलिका पोलि-पृपिकाः ॥३९८॥ पूपल्यथेषत्पक्के स्युरभ्युषोभ्योर्षपौलयः ।। निष्ठानं तु तेमनं स्यात्करम्मो दधिसक्तवः ॥३९९॥ घृतपूरो घृतचरैः, पिष्टपूरश्चै घात्तिः । चमसी' पिष्टवर्तिः स्याटकस्त्ववसेकिमः ॥१०॥ भृष्टा यवाः पुनर्धानी, धानाचूर्ण तु सक्तवः । पृथुकैश्चिपिटैस्तुल्यौ, लोनाः स्युः पुनरक्षतीः ॥४०१॥ गोधूमचूर्णे समिता', यवक्षोदे तु चिक्कसः। गुडै इक्षुरसक्वाथः, शर्करौ तु सितोपली ॥४०२॥ सिता च मधुधूलिस्तु, खण्डैस्तद्विकृतिः पुनः । मत्स्यण्डी फाणितं चापि, रसालायों तु मार्जितो ॥४० ३॥ शिखरिण्यैथ यूयो, रसो दुग्धं तु सोमजम् । गोरसः क्षीरमूधस्य , स्तन्यं पुंसवनं पयः ॥४०॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्यकाण्डः ३ ७ पयस्यं घृतदध्यादि, पेयूँषोऽभिनवं पय उभे क्षीरस्य विकृती, किलाटी' कूर्चिकापि च ||४०५॥ पायस परमान्नं च, क्षरेयी क्षीरज दधि । गोरसश्च तदधनं, द्रप्स पत्रलमित्यपि ॥४०६॥ घृत' हविष्यमान्यं च, हविराधारसर्पिषी। बोगोदोहोद्भवं हैयङ्गवीन' शरज पुनः . ॥४०७|| दधिसारं तकसारं, नवनीत नवोद्धृतम् ।। दण्डाहेते कालशेयघोलौरिष्टानि गोरसः ॥४०॥ रसायनमथार्धाम्बूदश्चित् श्वेतं समोदकम् । तकं पुनः पादजलं, मथितं वारिवर्जितम् ॥४०९॥ सार्पिक दाधिक सर्पिर्दधिभ्यां संस्कृतं क्रमात् । लवणोदकाभ्यां तु दकलावणिकमुदश्चिति ॥४१०॥ औदश्वितमौदश्चित्कं, लवणे स्यात्त लावणम् । पैठरोख्ये उखासिद्धे, प्रयस्तं तु सुसंस्कृतम् ॥४११॥ पक्के राद्धं च सिद्धं च, भृष्टं पक्वं विनाम्बुना ।। भृष्टामिषं भटित्रं स्याभूति रूटकं च तत् ॥४१२॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ अभिधानचिन्तामणौ मर्यकाण्डः ३ शूल्यं शुलाकृतं मांस, निष्काथो रसकः समौ । प्रणीतमुपसम्पन्नं, स्निग्धे मसणचिक्कणे ॥४१३॥ पिच्छिलं तु विजिविलं, विजळ विजिलं च तत् ।। भावितं तु वासितं स्यात्तुल्ये संमृष्टशोधिते ॥४१४॥ काञ्चिकं काञ्जिकं धान्यम्ला-नाले तुषोदकम् । कुल्माषाभिषुतावन्तिसोमशुक्तानि कुञ्जलम् ॥४१५॥ चुकं धातुघ्नमुन्नाह, रक्षोध्नं कुण्डगोलकम् । महारसं सुवीराम्ल, सौवीरं म्रक्षण पुनः ॥४१६॥ तैलं स्नेहोऽभ्यञ्जनं च, वेसवार उपस्करः ।। स्यात्तिन्तिडीके तु चुक्रं, वृक्षाम्लं चाम्लवेतसे ॥४१७॥ हरिद्री काञ्चनी पीता, निशाया वरवणिनी । क्षवैः क्षुताभिजनेनो, राजिका राजसपः ॥४१८॥ आसुरी कृष्णिको चासो, कुस्तुम्बुरे तु धान्यकर्म । धन्या धन्याक धान्याकं, मरिच कृष्णमूषणम् ॥४१९॥ कोलक वेलज धार्मपत्तनं यवनप्रियम् । । शुण्ठी महौषधं विश्वौ, नागैर विश्वभेषजम् ॥४२०॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ 'वैदेही' पिप्पली कृष्णोपकुल्यों मागधी कर्णी, तन्मूलं ग्रन्थिकं सर्व्वप्रन्थिक' चटकाशिरैः ॥४२१॥ त्रिकटु त्र्यूषणे व्योषैमजाजी जीरकैः कणों । ૪ ५ सहस्रवेधि वाल्हीके, जतुकं हिङ्गु रामठम् ॥४२२ ॥ न्यादेः स्वदनं खादनमैशनं निघसो" वल्भनमभ्यवहारः । जग्धिर्जक्षणभक्षणंलेहीः, प्रत्यवसानं " घसिरोहारैः ॥ ४२३ ॥ सानों वणविष्वाणां भोजनं" जेमनदिने । 'चर्वणं' चूर्णनं दन्तैर्जितास्वादस्तु लेहनम् २० ॥४२४॥ कल्यवतः प्रातराशे, सग्धिस्तु सहभोजनम् । झांसी गुडेरकैः पिण्डो, गडोलैः कवको गुः ॥ ४२९॥ गण्डोल : कलस्तृप्ते' त्वाप्रति सुहिताशितः । तृप्तिः सौहित्यमघ्राणमथ मुक्तसमुज्झिते' २ फेला पिण्डोल्फेिली च, स्वोदरपूरके पुनः । कुक्षिम्भरिरात्मेम्भरिरुदरम्भरिरप्यथ आद्यूनेः स्यादौदरिको', विजिगीषाविवर्जिते । उदरपिशाचः सर्वानीनैः सर्वान्नभक्षकः ५९. 3 , ॥४२६॥ ॥४२७॥ ॥ ४२८ ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० अभिधानचिन्तामणौ मयंकाण्डः ३ शाकुलः पिशिताश्युन्मदिष्णस्तून्मादसंयुतः । गृध्नुस्तु गर्द्धनैस्तृष्णक, लिप्सुलुब्धोऽभिलाषुकः। ४२९॥ लोलुपो लोलुभो लोभैस्तृष्णां लिप्सौ वर्शः स्पृहो । कासाँऽऽशंसा गर्द्धवाञ्छाऽऽशेच्छेहातृड्मनोरथाः॥४३०॥ कामोऽभिलाषोऽभिध्या तु, परस्वेहोद्धतः पुनः । अविनीतो' विनीतस्तु, निभृतैः प्रसृतोऽपि च ॥४३१॥ विधेय' विनयस्थैः स्यादाश्रवो वचने स्थितः । वश्यः प्रणेयो' धृष्ठस्तु, वियाँतो धृष्णधष्णुनौ ॥४३२॥ वीक्षापन्नो विलक्षोऽथाधृष्टे शालीनैशारदौ । शुभंयुः शुभसंयुक्तः, स्यादहंघुरहतः ॥४३३॥ कामुकः कमितो कम्रोऽनुः कामयितोऽभिर्कः कामनः कमरोऽभीकः, पञ्चभट्टैस्तु विप्लुतैः ॥४३४॥ व्यसनी हर्षमाणस्तु, प्रमना हृष्टमानसः । विकुर्वाणो विचेतौस्तु, दु-रन्तर्वि-परो मनॊः ॥४३९॥ .१ गतौ, तप्रत्ययेऽनुस्वारेत्त्वान्नेट् “तस्यैव मेऽनुकता प्रसृतस्य हतैनस, इति भागवतम्" प्रसृतस्य विनीतस्येति तट्टीका । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ पत्ते शौण्डोत्कटक्षी, उत्केस्तूत्सुकै उन्मनाः । उत्कण्ठितोऽभिशस्ते तु वाच्यक्षारितैदूषितः ॥४३६ ॥ गुणैः प्रतीते त्वाहतलक्षणः कृतलक्षणैः । निर्लक्षणस्तु पाण्डुरपृष्ठेः सङ्कसुकोऽस्थिरे ' तूष्णींशीलस्तु तूष्णीको विवशोऽनिष्टदुष्टधीः । द्धो निगडितो' नॐ, कीलितो यन्त्रितैः सितैः॥४३८ ॥ > सन्दानितः संय्यतश्च स्यादुद्दानं तु बन्धनम् । मनोहतेः प्रतिहतेः, प्रतिबद्ध हत सः 9 ६१. निकृतस्तु विप्रकृतौ, न्यक्कारस्तु तिरस्क्रिय । परिभवो विप्रकारैः परा - पर्य्यभितो भवः ॥४३७॥ 3 प्रतिक्षिप्तोऽधिक्षिप्तोऽवकृष्ट निष्कासितौ समौ । आत्तगन्धेऽभिभूतोऽपध्वस्ते' न्यक्कृतैधिकृतौ ॥४४०॥ अत्याकारो निकारचं, विप्रलब्धस्तु वञ्चितेः । स्वप्नक् शयालुर्निद्रालुघूर्णिते प्रचलायितः ॥४३९॥ ॥ ४४१ ॥ ॥४४२॥ निद्राणः शयितेः सुप्तो, जागरूकस्तु जागेरी । मागर्या स्याज्जागरणं, जागरौ जागरोऽपि च ॥४४३॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ अमिधानचिन्तामणौ मर्यकाण्डः ३ विष्वगञ्चति विष्वद्यङ, देवद्या देवमञ्चति । सहाञ्चति तु सध्यात्तिर्य. पुनस्तिरोऽञ्चति ॥४४४॥ संशयालुः संशयिता, गृहयालगृहीतरि । पतयालैः पातुकैः स्यात् , समौ रोचिष्णुरोचनौ ॥४४९॥ दक्षिणार्हस्तु दक्षिण्यो, दक्षिणीयोऽथ दण्डित. । दापितैः साधितोऽय॑स्तु, प्रतीक्ष्यः पूनितोऽस्तिः॥४४६॥ नमस्यितो नमसिताऽपचितॉवचितोऽचितः । पूनोऽहणो सपर्योऽर्ची, उपहारबी समौ ॥४४७॥ विक्लवों' विहले: स्थूलः, पीवा पीनश्च पीवरैः । चक्षुष्यैः सुभगो द्वेष्योऽक्षिगंतोऽथांसलो बली ॥४४८॥ निधिो मांसलचोपचितोऽथ दुर्बलः कृशैः । क्षामः क्षीणस्तनुश्चातस्तलिनामांसपेलवाः ॥४४९॥ पिचण्डिलो बृहत्कुक्षिस्तुन्दितुन्दिकतुन्दिलाः । उदयुंदरिले विस्त्रविद्येविना अनासिके ॥४५०॥ नतनासिकेऽवनाटोऽवटीटोऽवभ्रटोऽपि च । खरणास्तु खरणसो, नःक्षुद्रेः क्षुद्रनासिकः ॥४५॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणौ मत्यकाण्डः ३ ६३ खुरणोः स्यात्तुरणसौ, उन्नसस्तूप्रनासिकः । पछुः श्रोणः खलतिस्तु, खल्वाटै ऐन्द्रलुप्तिकैः ॥४५२॥ शिपिविष्टो बभ्ररथ, काणैः कनने एकहगें । पृश्निरैल्पतनौ कुजे, गडुलैः कुकरे कुणिः२ ॥४५३॥ निखर्वः खट्टनैः खवः, खर्वशाखा वामनः । अकर्ण एंडो बधिरो, दुश्चर्मा तु द्विनग्नकैः ॥४५४॥ वण्डश्च शिपिविष्टश्च, खोडेखोरौ तु खञ्जके । विकलाङ्गैस्तु पोगण्डे, ऊर्ध्व रूजानुकैः ॥४५५॥ उज्ञश्चाप्यथ प्रजेंप्रज्ञौ विरलजानुके । सं संज्ञौ युतजानौ, बलिनौ बलिभौ समौ ॥४५६॥ उदमदन दन्तुरैः स्यात् , प्रलम्बाण्डस्तु मुष्करैः । अन्धो गताः उत्पश्य, उन्मुखोऽधोमुखस्त्ववा.॥४५७॥ मुण्डस्तु मुण्डितः केशी, केशवः केशिकोऽपि च । बलिः केकरो वृद्धनाभौ तुण्डेिलतुण्डिभौ ॥४५८॥ भामयाव्यपटुंगानो', ग्लास्र्विकृत आतुरैः । याधितोऽभ्यमितोऽभ्यान्तो, दुर्दुरोगी तु दैर्दुणः।।४५९॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ अभिधानचिन्तामणौ मर्यकाण्डः ३ पामनेः कच्छुरस्तुल्यौ. सातिसारोऽतिसारकी। वातकी वातरोगी स्यात्, श्लेष्मलेः श्लेष्मणः कफी॥४६०॥ क्लिन्ननेत्रे' चिल्लचुल्लौ , पिल्लोऽथाशेयुगसः । मूच्छिते मूर्त्तमूर्छालो , सिध्मलस्तु किलासिनिः ॥४६१॥ पित्त' मायुः कर्फः श्लेष्मा, बलाशैः स्नेह ः खटेः । रोगो रुना रुगातको, मान्धं व्याधिरपाटवम् ॥४६२॥ आम आमय आकल्यमुपतापो गर्दैः समाः । क्षयः शोषो राजयक्ष्मां, यक्ष्मा॑ऽथ क्षुत् झुत क्षवैः॥४६३॥ कासस्तु क्षवथुः पामी, खसः कच्छू विचचिकौ ।। कण्डूः कण्डूयनं खर्जुः, कण्डूयोऽथ क्षतं व्रणैः ॥४६४॥ अरुरीम्म क्षणानुश्च, रूढव्रणपदं किणैः । श्लीपैदं पादवल्मीकः, पादस्कोटो' विपादिको ॥४६५॥ स्फोटकैः पिटको गण्डैः, पृष्ठप्रन्थिः पुनर्गद्दुः । श्चित्रं स्यात् पाण्डुरं कुष्ठ, केशन विन्द्रलुप्तकम् ॥४६॥ सिध्म किलासं त्वपुष्पं, सिध्मं कोठेंस्तु मण्डलम् । गलगण्डो गण्डमालो, रोहिणी तु गलाङ्करः ॥४६७॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्यकाण्डः ३ ६५ हिको हेक्को च हृल्लासः, प्रतिश्यायस्तु पीनसैः ।। शोथस्तु श्वयथुः शोफे , दुर्नामाझे गुदाङ्करः ॥४६८॥ छदै प्रच्छर्दिका छर्दिवमथुर्वमनं वमिः । गुल्मः स्यादुदरग्रन्थिरुंदावतॊ गुदग्रहः ॥४६९॥ गतिनी डी व्रणे वृद्धिः, कुरण्डैश्चाण्डवर्धने । अश्मरी स्यान्मूत्रकृच्छ्रे, प्रमेही' बहुमूत्रता ॥४७०॥ अनाहातु विबन्धः स्याद् , ग्रहणीरुक प्रवाहिको । व्याधिप्रभेदा विद्रधिभगन्दरन्वैरादयः ॥१७॥ दोषज्ञस्तु भिषणे वैये, आयुर्वेदी चिकित्सकैः। . रोगहार्यगदकाँरो, भेषजं तंत्रमौषधम् ॥४७२॥ भैषज्यमगंदो जाय॒श्चिकित्सौ रुक्प्रतिक्रिया । उपचर्योपचारौ च, लङ्घनं त्वपतर्पणौ ॥४७३॥ माङ्गुलीको विषभिषक् , स्वास्थ्ये वातमैनामयमै । अारोग्ये पट्रेलौघवोर्तकल्यास्तु नीरुजि ॥४७॥ इसत्या विभवान्वेषी, पार्श्वकैः सन्धिजीवकैः । पालस्कृतां कन्या, यो ददाति स ककुदः ॥४७॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ अभिधानचिन्तामणौ मयंकाण्डः ३ चपलश्चिकुरो' नीलीरागात स्थिरसौहृदः । ततो हारेद्रारागो'ऽन्यः, सान्द्रस्निग्धस्तु मदुरैः ॥ ४७६॥ गेहेनर्दी गेहेशूरैः, पिण्डीशरोऽस्तिमान धनी । स्वस्थानप्थः परद्वेषी, गोष्ठश्चोऽथापदि स्थितः ॥१७॥ आपन्नोऽथाद्विपत्तिविपत् स्निग्धस्तु वत्सलः । उपाध्यभ्यागारिको तु, कुटुम्बव्यामृते नरि ॥४७८॥ जैवातृकस्तु दीर्घायुस्त्रासदायी तु शङ्करैः । अभिपन्नः शरणार्थी, कारणिकः परीक्षकैः ॥४७९॥ समर्द्धकैस्तु वरदो, बातीनीः सङ्गनीविनैः । सभ्याः सदस्योः पार्षद्याँः, सभास्तारोंः सभासदः॥४८०॥ सामाजिकौः सभी संसत् , समाजैः परित्संदः । पर्षसमन्याँगोष्ठयाँस्था, आस्थीनं समितिघी ॥४८१॥ सांवत्सरो ज्यौतिषिको, मौहृतिको निमित्तवित् । दैवज्ञेगणकादेशिज्ञानिकातन्तिको अपि ॥४८२॥ विप्रनिकेक्षणिकौ" च, सैद्धान्तिकस्तु तान्त्रिकः।। सकेऽक्षरपूर्वाः स्युश्चर्णनीवकैचुचः ॥८३|| Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणो मर्त्यकाण्डः ३ ६७ वार्णिको लिपिकरश्चाक्षरन्यासे लिपिलिविः । मषिधानं मषिर्केपी, मलिनाम्बु मैषी मैसी ॥४८४॥ कुलिकस्तु कुलश्रेष्ठी', समिको द्यूतकारकैः । कितवो द्यूतकृद धूतॊअधूर्तश्चाक्षदेविनि ॥४८॥ दुरोदर कैनैवं च, छूतमैक्षती पणैः । पाशकः प्रासकोऽक्षश्चै, देवनस्तत्पणो ग्लहै: ॥४८॥ अष्टापदैः शारिफलं, शारः शारिश्चै खेलनी । परिणायस्तु शारीणां, नयनं स्यात्समन्ततः ॥४८७॥ समाहुयः प्राणिचूतं, व्यालग्राह्योहितुण्डिकैः । स्यात् मनोजवसस्ताततुल्यः शस्ती तु देशकैः ॥४८॥ सुकृती पुण्यवान धन्यो, मित्रयुमित्रवत्सलः। क्षेमरोऽरिष्टतौतिः, शिवतौतिः शिवङ्करः ॥४८९॥ श्रद्धालुरास्तिकैः श्राद्धो, नास्तिकस्तद्विपर्यये । रसिको विरागा), वीतदम्भस्त्वकल्कनैः ॥४९॥ लाय्योऽसम्मतोऽन्वेष्टानुपद्यर्थ सहः क्षमः । मणुर्भूतासंस्त्वाविष्टेः शिथिलः श्लयः ॥१९१॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ अभिधानचिन्तामणौ मस्यकाण्डः ३ संवाहकोऽङ्गमैदः स्यान्नष्टबीजस्तु निष्कलैः । आसीने उपविष्टः स्यादुर्द्ध उर्ध्वन्दर्भः स्थितैः ॥४९२॥ अध्वनीनोऽध्वगोऽध्वन्यः, पान्यः पथिकदेशिकौ । प्रवासी तद्गणो हारिः, पाथेयं शम्बलं समे ॥१९३॥ जङ्घालोऽतिजवो जङ्घाकरिको जछिको जवी । जवनस्त्वरित वेगे, रयो रहस्तरैः स्यदः ॥४९४॥ जवो वाजः प्रसरश्च, मन्दगौमी तु मन्धरैः । कामङ्गाम्यनुकामीनोऽत्यन्तीनोऽत्यन्तगामिनि ॥१९॥ सहायोऽभिचरोऽनोश्च जीवि-!मि-चरै-प्लाः । सेवकोऽथ सेवा भक्तिः, परिच- प्रसादना ॥४९॥ शुश्रूषोऽऽराधनोपास्तिवरिवापरीष्टयः । उपचारः पदातिस्तु, पंत्तिः पः पदातिः ॥४९७॥ पादातिकः पादारी, पदाजिदिकविपि । सरः पुरोऽप्रतोऽग्रेभ्यः, पुग्स्तो गम-गामिगाः ॥४९८॥ प्रष्ठोऽयावेशिकाँगन्तं , प्रार्णोऽभ्यागुतोऽतिथिः । प्रापूर्णकोऽयावेशिकमातिथ्यं चातिथेय्यपि ॥१९९॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ ६९ सूर्योढस्तु स सम्प्राप्तो, यः सूर्येऽस्तङ्गतेऽतिथिः । पादार्य पाथैमर्धार्थमयं वार्य्यथ गौरवम् ॥५०॥ अभ्युत्थानं व्ययकस्तू, स्यान्मर्मस्पृगरुन्तुदैः । ग्रामेयके तु ग्रामीणप्रायौ लोको जनः प्रजा ॥५०१॥ स्यादामुष्यायणोऽमुष्यपुत्रः प्रख्यातवस्तृकः । कुल्यः कुलीनोऽभिजातैः, कौलेयकमहाकुलौ ॥५०२॥ जात्यो गोत्रं तु सन्तानोऽन्वायोऽभिजनः कुलम् । अन्वयो जनैनं वंशः, 'स्त्री नौरी वनिता वधूः ॥५०३॥ वशी सीमन्तिनी वामा, वर्णिनी महिलांडवली। योषा योषित् विशेषास्तु, कान्ता भीरुनितम्बिनी ॥५०४॥ प्रमः सुन्दरी रार्मा, रमणी ललनाऽङ्गनां । स्वगुणेनोपमानेन, मनोज्ञादिपदेन च ॥५०५॥ विशेषिताङ्गका स्त्री, यथा तरललोचनी ।। अलसेक्षणी मृगांक्षी, मत्तेभगमनापि च ॥९०६॥ १ स्वगुणेन विशेषिताङ्गा तरललोचना । स्वगुणेन विशेषितकर्मा अलसेक्षणा । उपमानेन विशेषितामा मृगाक्षी । उपमानेन विशेषितकर्मा मतेभगमना । मनोज्ञपदेन विशेषिताङ्गा वामाक्षी । मयोपदेन विशेषितकर्मा मुस्मिता । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. अमिधानचिन्तामणौ मत्यकाण्डः ३ वामाक्षी सुस्मिताऽस्याः स्वं, मानलीलोस्मरादयः। लोली विलासो विच्छित्तिविबर्बोकः किलिकिञ्चितम् ॥५०७॥ मोडायितं कुट्टमित, ललितं विहृतं तथा। विभ्रमैश्चेत्यलङ्काराः, स्त्रीणां स्वाभाविका दश ॥५०॥ प्रागल्भ्यौदार्यमाधुर्य्यशोभॊधीरत्वकान्तयः । दीप्तिश्चायत्नजा भावहावहेलायोऽङ्गनाः ॥५०९॥ ०१ स्त्रीणां स्वाभाविका लीलाद्या दशालंकारास्तेषां लक्षणानि “प्रियस्यानुकृतिर्लीला श्लिष्टा वाग्वेषचेष्टितैः । ०२ "विलासोऽने विशेषो यः प्रियाप्तावासनादिषु" । ० ३ "मण्डनाद्यादरन्यासो विच्छित्ती रूपदर्पतः" । ०४ "विश्वोकोऽभिमतप्राप्तागि गर्वादनादरः" । ०५ "हर्षाद्गदितगीतादिव्यामित्रं किलकिचिम्" । ०६ "मोट्टायितं प्रियं स्मृत्वा, साङ्गभङ्गविजृम्भणम्" ॥ मन मोटायितमित्येकटकारोऽपि पाठः । ०७ "दुखोपचारः सौख्येऽपि हर्षात्कुट्टमितं भतं"। ०८ "अनाचार्योपदिष्टं स्यालतितं रतिचेष्टितं” ( नसृणाङ्गन्यासः)। ०९ "व्यक्तव्याभाषणं व्याजाद्विहृतं दर्शितेजितम्"। ०१० "चित्तवृत्त्यनस्थान भृङ्गाराद्विभ्रमो मतः" । ०१ अङ्गजास्त्रयोऽलङ्काराः । तत्र भूतारकादीनां बहुविकारो हावः । १ अङ्गस्याल्पो विकारो भावः २ अङ्गस्य प्रचुरो विकारो हेला ३, यदुक्तं भरतेन-" अलङ्काराश्च नाट्यया भावरसाश्रयाः। यौवनेऽभ्यधिकाः स्त्रीणां, विकारा वगात्रजाः ॥१॥ति। देहात्मक Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ ७१ ॥ ५११॥ सा कोपना भामिनी स्थात्, छेका मत्ता च वार्णिनी । कन्या कॅनी कुमौरी च, गौरी' तु ननिकोडर जौः ॥११०॥ मध्यमो तु दृष्टरजोस्तरुणी युर्वेतिश्वरी" । तळुनी दिकैरी वर्य्या, पतिंवरी स्वयम्वरौ सुवासिनी वधूंटी स्याच्चिरिट्यथ सधर्मिणी । पत्नी सहचरी णिगृहीती गृहिणी गृहाँ दाराः क्षेत्र वधूंर्भायी, जैनी जायों परिग्रहैः । द्वितीयो कलत्र, पुरन्ध्री तु कुटुम्बिन प्रजावती भ्रातुजोयी, सूनोः स्तुपी जैनी वधैः । भ्रातृवर्गस्य या जाया, वातरस्ताः पररूप म ॥११४॥ वीरपत्नी वीरभार्थी, कुलत्री कुल्बालिको । ॥ ५१२॥ ॥५१३॥ · 3 । प्रयसी दयितों कान्तों, प्राणेश बहां प्रिय ॥ १५ ॥ दयेश प्राणसम, प्रेष्ठां प्रणयनी" च सा । ३४ प्रेयस्याद्यः पुंसि पेत्यौ, तप ॥५१६॥ E । विवो रो भक्ती, या वनयिती जन्यास्तु तस्य सुहृदो, विवाह: पाणिपीडनम् ॥ ५१७॥ भवेत्सत्त्वं सत्त्वाद्भावः समुत्थितः । भावात्समुत्थितो हावो, हावावेला समुत्थिता |||||" इति च स एव कथयति । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ अभिधान चिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ पाणिग्रहण द्वाहै, उपात् यामयावपि । दारकर्म परिणयो, जामाती दुहितुः पतिः ॥१८॥ उपपतिस्तु जारः स्याद्, भुजङ्गो गणिकापतिः । जम्पती दम्पती जायापती भार्याबती समाः ॥१९॥ यौतकं युतयोर्देयं, सुदायो हरणं च तत् । कृताभिषेका महिषी', भोगिन्योऽन्या नृपस्त्रियः ॥५२०॥ सैरन्ध्री याऽन्यवेश्मस्था, स्वतन्त्रा शिल्पजीविनी । असिनयन्त पुरप्रेष्या, दूतीसञ्चारिके समे ॥२१॥ प्राज्ञी प्रज्ञा प्रजोनन्त्यां, प्राज्ञी तु प्रज्ञयान्विता । स्वादाभीरी महाशंद्री, नातिपुंयोगयोः समे ॥१२॥ पुंयुज्याचा-चाऱ्याणी , मातुलांनी तु मातुली । उपाध्यायान्युपाध्यायी, क्षत्रिय-' च शूद्येष्॥ि१२३॥ स्वत आचार्य्या' शूद्रा च, क्षत्रिय्या क्षत्रियाण्यपि । उपाध्याय्युपाध्यायों स्या-येण्यौ पुनः समे ॥५२४॥ दिधिषस्तु पुनर्द्विरूढा स्यादिधिषःपतिः । स तु द्विनोऽग्रेदिधिषुर्यस्य स्यात्सैव गेहिनी ॥५२५॥ .१ " ज्येष्ठायां ययनूढायां, कन्यायामुखतेऽनुजा । सा चादिधिषया, पूर्वा तु दिघिधर्मता " इति मतान्तरम् । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ ७३ ज्येष्ठेऽनूढे परिवेत्तानुजो दारपरिग्रही।। तस्य ज्येष्ठः परिवित्ति या तु परिवेदिनी' ॥५२६॥ वृषस्यन्ती कामुकी स्यादिच्छायुक्ता तु कामुको । कृततापनिकोऽध्यूढोऽधिविन्नोऽथ पतिव्रती ॥२७॥ एकपत्नी सुचरित्रों, साध्वी सत्यसती त्वैरी। पुंश्चैली चर्षणी बन्धक्यविनीता च पांसुलौं ॥५२८॥ स्वैरिणी कुलटो याति, या प्रियं साभिसारिको । वयस्यौलि : सखी सध्रीच्यशिश्वी तु शिशु विना॥१२९॥ पतिवत्री जीवत्पतिविश्वस्ती विधवा समे। निर्वीरों निष्पतिसुता, जीवत्तोको तु जीवसूः ॥५३०॥ नश्यत्प्रसूतिका निन्दुः, सश्मश्रुर्नरमालिनी।। कात्यायनी त्वर्द्धवृद्धा, काषायवसनाऽधवा ॥५३१॥ श्रवणी भिक्षुकी मुण्डौ, पोटी तु स्त्री नृलक्षणा । साधारणा स्त्री गणिको, वेश्यों पण्य पणाङ्गेना ॥५३२॥ भुजिया लञ्जिका रूपाजीवी वारवधूः पुनः । सा वारमुल्याथ चुन्दी कुट्टैनी शम्भैली समाः ॥५३३॥ पोटौ वोटौ च चेटी च, दोसी च कुटहारिका । यो त कोटैवी वृद्धा, पलिक्यथ रजस्वलो ॥६३४॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ अभिधानचिन्तामणौ मयकाण्डः ३ पुष्पवत्यधिरात्रेयी, स्त्रीधम्मिणी मलिन्यवीः । उदक्या ऋतुमती च, पुष्पहीना तु निष्कला ॥५,३५॥ राको तु सरजाः कन्या, स्त्रीधेमः पुष्पमार्त्तवम् । रजेस्तत्कालस्तु ऋतुः, सुरतं मोहनं रतम् ॥५३६॥ संवेशन सम्प्रयोगः, सम्भोगश्च हो (तिः।। ग्राम्यधर्मो निधुवनं, कॉमैकेलिः पशुक्रियों ॥५३७॥ व्यवायो मैथुन स्त्रीपुंसौ' द्वंद्वै मिथुनं च तत् । अन्तर्वत्नी गुम्विणी स्याद्भवत्युदरिण्यपि ॥५३८॥ आपन्नसत्त्वों गुर्वी च, श्रद्धालुहदान्विता । विजाती च जाता च, जातापत्या प्रसूतिको ॥५३९॥ गर्भस्तु गरेभो भ्रूणो, दोहदलक्षणञ्च सः । गर्भाशयो जरायूल्बे, कलेलोल्वे पुनः समे ॥५४॥ दोहदं दोहई श्रद्धा, लालसा सूतिमासि तु ।। वैजनेनो विजनेनं, प्रसो नन्दनः पुनः ॥५४ ११ उद्वेहोऽङ्गात्मजः सूनुस्तनयो दारकः सुतः । पुत्रो दुहितरि स्त्रीत्वे, तोकापत्येप्रसुतयः ॥९४२॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्यकाण्डः ३ ७५. तु प्रजोभयोर्धात्रीयो , भ्रातृव्यो भ्रातुरात्मजे । । स्वतीयो भागिनेयैश्व, नामेयः कुतपश्चँ सः ॥५४३॥ नप्ता पौत्रैः पुत्रपुत्रो, दौहित्रो दुहितुः सुतः । प्रतिनप्ती प्रपौत्रैः स्यात् , तत्पुत्रस्तु परम्परः ॥५४४॥ पैतृष्वसेयः स्यात्पैतृष्वस्त्रीयस्तुक् पितृप्वसुः । मातृष्वस्त्रीयस्तुक् मातृष्वसुर्मातृष्वसेयैवत् ॥१४॥ विमातृनो वैमात्रेयो, द्वैमातुरो द्विमातृजः। सत्यास्तु तनये साम्मातुरवैद्भद्रमातुरः ॥५४६॥ सौभागिनेयकानीनौ', सभगाकन्ययोः सुतौ । पौनर्भवपारस्त्रैणेयो' पुनर्भूपरस्त्रियोः ॥९४७॥ दास्या दासदासयौ', नाटेरस्तु नटीसुतः । बन्धुलो बान्धकिनेयः, कौलटेरोऽसतीसुतः ॥५४८॥ स तु कौलटिनेयः स्याद् , यो भिक्षुकसतीसुतः । द्वावयेतौ कौलटेयौ', क्षेत्रजो देवरादिजः ॥५४९॥ स्वजाते त्वौरसौरस्यौ , मृते भर्तरि जारजः ।। गोलकोऽथामृते कुण्डो, भ्राता तु स्यात्सहोदरैः ॥१५॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ अभिधानचिन्तामणौ मकाण्डः ३ समानोदयसोदर्यसँग सहना अपि । सोदरश्र्थं स तु ज्येष्ठः, स्यात् पित्र्यः पूर्वनोऽअ#ः ॥५५१॥ जघन्यजे' यविष्ठः स्यात्, कनिष्ठोऽवरेजोऽनुः ।। स यवीया कनीयांश्चै, पितृव्यश्यालैमातुलौः ॥५५२॥ पितुः पत्न्याश्च मातुश्च, भ्रातरो देवदेवरौ । देवी चावरजे पत्यु मिस्तु भगिनी स्वसौ ॥५३॥ ननान्दी तु स्वसा पत्युननन्दा नन्दैिनात्यपि । पत्न्यास्तु भगिनी ज्येष्ठा, ज्येष्ठश्वश्रूः कुली च सा ॥५५४॥ कनिष्ठा श्यालिकी होली, यन्त्रणी केलिकुञ्चिों । केलि वैः परीहासः, क्रीडॉ लीलो च नर्म च ॥५५५॥ देवनं कूईन खेलो, ललन वर्करोऽपि च ।। वा तु जनकस्तातो, बीनी जनयिता पिता ॥१५॥ पितामहस्तस्य पिता, तत्पिता प्रपितामहः । मातुर्मातामहौद्येवं, मातोऽम्बो जनैनी प्रस्ः ॥५५७॥ सवित्री जनयित्री च, कृमिली तु बहुप्रसूः । धात्री तु स्यादुपमाता, वीरमाता तु वीरसूः ॥९५८॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणो मर्यकाण्डः ३ ७७ श्वश्रूर्माता पतिपत्न्योः, श्वशुरैस्तु तयोः पिता। पितरस्तु पितुर्वश्या, मातुर्मातामहीः कुले ॥५५९॥ पितरौ मातापितरौ मातरपितरौ पिता च माता च । श्वश्रूश्वशुरौ श्वशुरौ पुत्रौ पुत्रश्च दुहिता च ॥१६०॥ (आर्या) भ्राता च भगिनी चापि, भ्रातरांवय बान्धवैः । स्वो ज्ञातिः स्वजनो बन्धुः, सगोत्रश्चं निनः पुनः ॥५६१॥ आत्मीयः स्वः स्वकीयओं, सपिण्डास्तु सनाभयः । तृतीया प्रकृतिः पण्डैः, षण्डैः क्लीबो नपुंसकम् ॥५६२॥ इन्द्रियायतनेमङ्गविही, क्षेत्रगात्रेत भूघनास्त । मूर्तिमत्करणकायमूर्तयो, धेरैसँहनै देहसेञ्चरौंः ॥५६३॥ घनो बन्धः पुरं पिण्डो, वपुः पुद्गलवर्मणी । कलेवरं शरीरोऽस्मिन्नजीवे कुणैपं शवः ॥१६॥ मृतक रुण्डेकबन्धौ, त्वपशीर्षे क्रियानि । वयांसि तु दोः प्रायोः, सामुद्रं देहलक्षणम् ॥१६॥ एकदेशे प्रतीकोऽङ्गोवयवाप! अपि। उमा शिरो मूर्धा, मौलिमुण्डे कमस्तके ॥१६॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ अभिधानचिन्तामणौ मन्यकाण्डः ३ वराङ्ग करणत्राणं, शीधै मस्तकमित्यपि। तज्जाः केशास्तीर्थवाकोश्चिकुराः कुन्तलाः कचाः ॥९६७॥ वालाः स्युस्तत्परा: पाशो, रचना भार उच्चर्यः । हस्तैः पतः कलापश्च, केशभूयस्त्ववाचकाः ॥५६८॥ अलकस्तु काले:, खरैश्वर्णकुन्तलः ।। स तु भाले भ्रमरकैः, कुरुलो भ्रमरालकैः ॥५६९॥ धम्मिल्लः संयताः केशाः, केशवेषे कवर्यथ । वेणि प्रवेणी शीर्षण्यशिरस्यौ विशदे कचे ॥९७०॥ केशेषु वम सीमन्तैः, पलितं पाण्डुरः कषः । चूडो केशी केशपाशी, शिखाँ शिखण्डिको समाः||५७१॥ सा बालानां काकपक्षः, शिखण्डकैशिखाण्डको । तुण्डमास्यं मुखं वक्र, लपैनं वदनानने ॥५७२।। माले ' गोध्यलिकालीकॅललाटॉनि श्रुतौ श्रवः । शब्दाधिष्ठानपैञ्जूषमहानादध्वनिग्रहाः ॥९७३॥ कर्णः श्रोत श्रवणं च, वेष्टनं' कर्णशष्कुली । पालिस्तु कर्णलतिको, शङ्खो भालश्रवोऽन्तरे ॥९७९॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्यकाण्डः ३ ७९ वेक्षुरक्षीक्षणे नेत्रं, नयेनं दृष्टिरम्बकम् । लोचनं दर्शनं दृक् च, तत्तारौ तु कनीनिको ॥१७॥ वामं तु नयनं सौम्य, भानवीयं तु दक्षिणम् । असौम्येऽक्षिण्यनक्षि' स्यादीक्षणं तु निशामनम॥९७६॥ निभालनं निशमनं, निध्यानमवलोकनम् । दर्शनं द्योतन निवर्णनं चाथार्द्धवीक्षणम् ॥५७७॥ अपाङ्गदर्शन काक्षः, कटाक्षोऽक्षिविकृणितमे । स्यादुन्मीलनमुन्मेषो , निमेषस्तु निमिलनम् ॥५७८॥ अक्ष्णोर्बाह्यान्तावाङ्गो, भैरूद्धे रोमपद्धतिः । सकोपभ्रविकारे स्यात्, भ्र-भ्र-भ्र-भृ-परा कुँटिः ॥५७९॥ कुर्च कर्प भ्रवोर्मध्ये, पक्ष्म स्यान्नेत्ररोमणि । गन्धज्ञो नासिका नासा, घोणं घोणा विकूणिका ॥५८०॥ न नर्कुटकं शिविन्योष्ठोऽधेरो रदच्छदः । दन्तर्वस्त्रं च तत्प्रान्तौ, सूक्णी असिकं त्वधः ॥५८१॥ असिकाधस्तु चिबुकं', स्याद् गल्लैः सृक्कशः परः । महात्परः कपोलश्च, परो गण्डैः कपोलतः ॥९८२॥ तो हनुः श्मश्रु कूर्चमास्थलोमै च मासुरी । को दंष्ट्रिको दाढा, दंष्ट्रो जम्मो द्विजो रदौः ॥५८३॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. अभिधानचिन्तामणौ मयकाका रदनौ दशों दन्ता, दर्शखादैनमल्लकाः । राजदन्तौ तु मध्यस्थावुपरिश्रेणिको क्वचित् ॥१८॥ रसा रसनो निहाँ, लोला तालु तु काकुदम् । सुधास्त्रवा घण्टिको च, लम्बिको गलशुण्डिकों ॥९८५॥ कन्धरी धर्मनिीवा, शिरोधि शिरोधरी। सा त्रिरेखा कम्बुग्रीवोऽवटुर्घाटो कृकाटिका ॥५८६॥ कृकस्तु कन्धरामध्यं, कृकपार्श्वे तु वीतनौ । ग्रीवाधमन्यौ प्राग नीले', पश्चान्मन्ये कलम्बिके ॥५८७॥ गलो' निगरणः कण्ठः, काकलकस्तु तन्मणिः । अंसो भुनशिरैः स्कन्धो, जत्रुसन्धिोऽसगः ॥२८॥ भुनो' बाहेः प्रवेष्टो दोहोऽथ मुनकोटरैः । दोर्मूलं खण्डिकः कक्षों, पार्श्व स्यादेतयोरधः ॥१८९॥ कफोणिस्तु भुनामध्यं', कफणिः कूपर सः । अधस्तस्या मणिबन्धात् , स्यात् प्रकोष्ठैः कलाचिका॥१९॥ प्रगण्डैः कूर्परांसान्तः पञ्चशाखैः शयः शमैः । हस्तः पाणिः करोऽस्यादौ, मणिबन्धो मणिध सः॥९९१॥ करमोऽस्मादाकनिष्ठं, करशाखाकाली समे। अगरी चाङ्गुलोऽङ्गुष्ठस्तर्जनी तु प्रदेशिनी ॥१९॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ ८१ ज्येष्ठा तु मध्यमा मध्या, सावित्री स्यादनामिका कनीनिको तु कनिष्ठोऽवहस्तो हस्तपृष्ठतः ॥५९३॥ कामाङ्कशो महाराजः, करजो नखैरो. नखैः । करशंको भुजाकण्ठः, पुनपुनर्नवौ ॥१९४॥ प्रदेशिन्यादिभिः सार्द्धमङ्गष्ठे वितते सति । प्रादेर्शतालगोकर्णवितस्तयो यथाक्रमम् ॥५९५॥ प्रसारिताङ्गलौ पाणौ, चपेटः प्रतलस्तलः । प्रहस्तेस्तालिका तालः, सिंहतालस्तु तौ युतौ ॥५९६॥ सम्पिण्डिताङ्गलिः पाणिर्मुष्टिभुलु चुट्यपि । सोहश्चार्द्धमुष्टिस्तु, खटकः कुब्जितः पुनः ॥१९७॥ पाणिः प्रसृतेः प्रसृतिस्तौ युतौ पुनरञ्जलि': । प्रसृते तु द्रवाधारे, गण्डूषश्चुलुकश्चलुः ॥५९८॥ हस्तैः प्रामाणिको मध्ये, मध्यमाङ्गलिकूपरम् । बद्धमुष्टिरसौ रनिररत्ननिष्कनिष्ठिकः । ॥१९९॥ ध्यामेव्यायामैन्यग्रोधास्तिर्यग्बाहू प्रसारितौ । ऊर्वीकृतभुजापाणिनरमानं तु पौरुषम् ॥६००॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ अभिधानचिन्तामणौ मत्यकाण्डः ३ दनद्वयसैमात्रौस्तु, जान्वादेस्तत्तदुन्मिते । रीढकः पृष्ठवंशः स्यात् , पृष्ठं तु चरमं तनोः ॥६०१॥ पूर्वभाग उपस्थोऽङ्कः, क्रोडै उत्सङ्गै इत्यपि । कोडोरो हृदयस्थानं, वक्षो वत्सो मुनान्तम् ॥६०२॥ स्तनान्तरं हृदै हृदय, स्तनौ कुचौ पयोधरौ । उरोजौ च चूचुकन्तु, स्तनान्त-शिखा-मुखाः ॥६०३॥ तुन्दं तुन्दिर्भकुक्षी, पिचण्डो जठगेदरें । कालखण्डं कालखलं, क लेयं कालक यकृत् ॥६०४॥ दक्षिणे तिलक क्लोम, वामे तु रक्तफेननः । पुष्पसः स्यादथ प्लीही, गुल्माऽन्त्रं तु पुरीतति ॥६०५॥ रोमावली रोमलती, नाभिः स्यात्तुन्नकूपिको। नाभेरधो मूत्रपुटं, बस्तिमूत्राशयोऽपि च ॥६०६॥ मध्योऽवलग्नं विलग्नं, मध्यमोऽय करें: केटिः । श्रोणिः कलंत्रं कटीरं', काञ्चीपंदं ककुद्मती ॥६०७॥ नितम्बारोही स्त्रीकट्याः, पश्चाजघनमग्रतः । त्रिकं वंशाधस्तत्पार्श्वकूपकौ तु कुकुन्दरे' ॥६०८॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मत्यकाण्डः ३ ८३ तौ स्फिनौ काटेरोथौ, वैराङ्गं तु च्युतिर्बुलिः । भैगोऽपत्यपंथो योनिः, स्मरान्मन्दिर-कूपिके ॥६०९॥ स्त्रीचिह्नमथ पुंश्चिह्न, मेहेनं शेपैशेषसी । शिश्नं मे: कामलता, लिङ्ग च द्वयमष्यदः ॥६१०॥ गुह्येप्रजननोपस्यौं, गुह्यमध्यं गुलो मणिः । सीवनी तदधः सूत्रं, स्यादण्डं पेलेमण्डकैः ॥११॥ मुष्कोऽण्डकोशो वृषणोऽपानं पायुर्गुर्द च्युतिः । अधोमर्म शौरं, त्रिवलीकर्बुली अपि ॥६१२॥ विपं तु महाबीज्यमन्तरा मुष्कवडणमे । ऊरुसन्धिर्वणः स्यात् , सकैथ्यूस्तस्य पर्व तु ॥६१३॥ जानुनलकीलोऽष्टीवान , पश्चाद्भारोऽस्य मन्दिरः । कपोली त्वग्रिमो नङ्घी, प्रसूतो नलकिन्यपि ॥६१४॥ प्रतिजङ्घा त्वग्रजङ्घी, पिण्डिको तु पिचण्डिको । गुल्फस्तु चरणप्रन्थैिर्युटिको धुण्टको घुटः ॥१५॥ .१ उक्तं सामुद्रिकशास्ने "कूर्मपृष्ठ , गजस्कंध २ समरोमाaऽल्पनासिका ४ । विस्तीर्णा ५ पद्मपत्राभा ६, षडेते सुभगा "। अल्पा नासिका-गुह्यमध्यं यस्य सः अल्पनासिकः । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૮૪ अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ ॥ ६१६ ॥ चरणैः क्रमणैः पादैः, पेंदोऽहिश्चलनैः क्रमः । पादमूलं गोहिरं स्यात्पाष्णैिस्तु वुटयोरवः पादयं प्रदं क्षिप्रं त्वङ्गुष्ठाङ्गुलिमध्यतः । कूच क्षिपस्योपह्रिस्कन्धः कूर्च्चशिरैः समे ॥ ६१७॥ 2 तलहृदेयं तु तैलं, मध्ये पादतलस्य तत् । तिलकैः कालकैः पिल्लैर्जडुलैस्तिलकालकैः ॥६ १८ ॥ 9 २ 3 रस मांसमेदोऽस्थिमज्जशुक्राणि धातवः । सप्तैव दश वैकेषां, रोत्वस्नायुभिः " सह रसे आहातेजोऽग्निसम्भवः षडूसासर्वैः । आत्रेयोऽसृक्करो धातुर्घन-मूल-महा-परः रक्तं रुविरमाग्नेयं, विस्त्रं तेजो-भवे रसात् । 3 ११ १२ शोणितं लोर्हितमसृग्, वाशिष्ठं प्रा॥६२१॥ ॥ ६ १९ ॥ ॥६२० ॥ 93 १४. 3 क्षतजं मांसकार्यस्त्रं, मांस पललङ्गले । ६ रक्तात्तनो भवे क्रय, काश्यपं तरसामिषे काश्यपं तसामिषे मेदस्कृत् पिशिर्तकीनं, पले पेश्यस्तु तल्लताः । बुक्की हृदे हृदयं वृक्कों, सुरेसं च तदग्रिम् ॥ ६२२॥ . ॥६२३॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ ८५ शुष्कं वल्लूरैमुत्तप्तं, पृयदृष्ये' पुनः समे। मेदोऽस्थिकृत् वा मांसात्तेजोजे गौतमं वसा ॥६२४॥ गोदं तु मस्तकस्नहो', मस्तिष्को मस्तुलुङ्गः ।। अस्थि कुल्य भारद्वौनं, मेदस्ते नँश्च मजकृत् ॥६२५॥ मांसपित्तं श्वदयितं, कर्करों देहधारकम् । मेदोज कीकसे सारं, करोटिः शिरसोऽस्थनि ॥६२६॥ कपालकर्षनै तुल्यौ, पृष्ठम्यास्टिन कशेरुका । शाखास्थनि स्यान्नलके, पाङस्थ्नि वक्रिपशुके ॥६२७॥ शरीरास्थि करङ्कः स्यात् , कङ्कालमस्थिपञ्जरैः । मज्जी तु कौशिकः शुक्रकरोऽस्थ्नः स्नेहँसम्भवौ ॥६२८॥ शुक्र रेतो बलं बी, वीर्य्य मज्जसमुद्भवम् । आनन्दप्रभव पुस्त्वमिन्द्रियं किट्टवर्जित ॥६२९॥ पौरुषं प्रधानधातु.में रोम तनूरुहम् । त्व छविछादैनी कृत्तिश्चर्मोजिनमसृग्धरौँ ॥६३०॥ वस्नसौ तु स्नसो स्नायुर्नाड्यो धमनयः सिरौंः । कण्डरौ तु महास्नायुर्मलं कि तदक्षिजम् ॥६३१॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TRUI ३ i ८६ अभिधानचिन्तामणौ मत्यकाण्डः ३ दूषीको दूषिको जैमें, कुलुक' पिप्पिको पुनः । दन्त्यं कार्ण तु पिञ्जूषः, शिवाणो' घ्राणसम्भवः ।।६३२॥ सृणीको स्यन्दिनी लालौऽऽस्यासर्वेः कफनिको । मुंत्र बस्तिमल मेहः, प्रस्रावो नृजेलं वः ॥३३॥ पुष्पिको तु लिङ्गमलं, विई विष्ठोऽवस्करैः शकृत् । गूथ पुरीषं शमलोच्चारौं वर्चस्कवर्चसी ॥६३४॥ वेषो' नेपथ्यमाकल्पैः, परिकम्मङ्गिसंस्क्रिया। उद्वर्त्तनमुत्सादनमगराँगो विलेपनम् ॥६३५॥ चर्चिक्यं समालभेनं, चर्ची स्यान्मण्डनं पुनः । प्रसाधेनं प्रतिकर्म, माष्टिः स्यान्मार्जनों मृजौ ॥३३॥ वासयोगैस्तु चूर्ण स्यात् , पिष्टातः पटवासकैः । गन्धमाल्यादिना यस्तु, संस्कारः सोऽधिवासनम् ॥६३७॥ निवेश उपभोगोऽय, स्नान सवनमाप्लवैः । कर्पूरागुरुकक्कोलकस्तूरीचन्दनद्रवैः ॥६३८॥ स्याद्यक्षकर्दमो मित्रैर्वतिर्मात्रानुलेपनी । चन्दनागरुकस्तुरीकुङ्कुमैस्तु चतुःसमं ॥६३९॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्यकाण्डः ३ ८७ अगुवंगरुराजाह', लोह कृमिवेशिके । अनार्यानं जोङ्गकं च, मङ्गल्या मल्लिगन्धि यत् ॥६४०॥ कालागेरुः काकतुण्डैः, श्रीखण्डं रोहणद्रुमः । गन्धसौरो मलयनश्चन्दने हरिचन्दने ॥६४१॥ तैलपर्णिकगोशीर्षों , पत्राङ्गं रक्तचन्दनम् । कुचन्दैनं ताम्रसारं, रञ्जनं तिलपर्णिका ॥६४२॥ जातिकोशं जातिफलं, कर्पूगे हिमवालुका ।। घनसारैः सिताभ्रश्च, चन्द्रोऽथ मृगनामिना ॥४३॥ मृगनाभि गमः, कस्तूंरी गन्धधूल्येपि । कश्मीरजन्मे घुसणं, वर्ण लोहितचन्दन ॥६४४॥ वाह्लींकं कुङ्कम वाहिशिखं कालेयजागुडे । सङ्कोचपिशुनं रक्तं, धीर पीतनदीपन ॥६४५॥ लवङ्ग देवकुसुमं, श्रीसंज्ञमथ कोलकम् ।। कक्कोलैक कोशफैलं, कालीयकं तु जापकरें ॥६४६॥ यक्ष पो बहुरूपैः, सालवेष्टोऽग्निवल्लभः । सर्भमणि': सर्नरसः, रालः सर्वरैसोऽपि च ॥६४७॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ अभिधान चिन्तामणौ मत्यकाण्डः ३ धूपो वृकात् कृत्रिमाच्च, तुरुष्कः सिलपिण्डकौ । पायसस्तु वृक्षधूपैः, श्रीवासः सरलद्रः ॥६४८॥ स्थानात् स्थानान्तरं गच्छन् , धूपो गन्धपिशाचिको । स्थासकैस्तु हस्तबिम्बैमलङ्कारस्तु भूषणमे ॥६४९॥ परिष्काराभरणे च, चूडामणिः शिरोमणिः । नायकस्तरलो हारान्तर्मणि कुटं पुनः ॥६५०॥ मौलिः किरीट कोटीरमुष्णीष पुष्पदाम तु । मूनि माल्य मालो स्रक च, गर्भकः केशमध्यगम् ॥६५१॥ प्रभ्रष्टक शिखालम्बि, पुरोन्यस्तं ललामकम् । तिर्यक् वक्षसि वैका , प्रालम्पैमृजुलम्बि यत् ॥६५२॥ सन्दर्भो रचना गुम्फः, श्रन्थन ग्रन्थनं समाः । तिलके' तमालपत्रचित्रपुण् विशेषकाः ॥६५३॥ आपीडशेखरोत्तंसावताः शिरसः त्रनि । उत्तरौ कर्णपूरेऽपि, पत्रलेखा तु पत्रतः ॥६५४॥ भङ्गिवल्लिलताङ्गुल्यः, पत्रपाश्या ललाटिका । वालापाश्यो पारितथ्यो, कर्णिको कर्णभूषणम् ॥६५५॥ २ ३ ४ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ ८९ ताडङ्कस्तुं ताडपत्र, कुण्डलं कर्णवेष्टकः । उत्क्षिप्तिको तु कर्णान्दु लिको कर्णपृष्ठगा ॥६५६॥ गैवेयक कण्ठभूषा, लम्बमाना ललन्तिक । प्रालम्बिको कृता हेम्नोरःसूत्रिका तु मौक्तिकैः ॥६५७॥ हारो' मुक्तातः प्रालम्बस्रक कलापावली लता । देवच्छन्दः शतं साष्टं, विन्द्रच्छन्दः सहस्रकम् ॥६५८॥ तदई विजयच्छन्दो', हारस्त्वष्टोत्तरं शतम् । अर्द्ध रश्मिकलापोऽस्य, द्वादश त्वर्द्धमाणवः ॥६५९॥ द्विादशार्द्धगुच्छे: स्यात् , पञ्च हारफलं' लताः । अर्द्धहारश्चतुःषष्टिगुच्छमाणवमन्दरीः ॥६६०॥ अपि गोस्तनंगोपुच्छोवर्द्धमई यथोत्तरम् । इति हारा यष्टिभेदादेकावल्येकयष्टिको ॥६६१॥ कण्ठिकोऽप्यथ नक्षत्रमाली तत्सङ्ख्यमौक्तिकैः । केयूरमङ्गदै बाहुभुषाऽथ करभूषणम् ॥६६२॥ कटको वलय पारिहा-वापा च कङ्कणम् । हस्तसूत्रे प्रतिसरं, उम्मिको त्वङ्गुलीयकम् ॥६६३॥ सा साक्षराङ्गुलिर्मुद्रौ, कटिसूत्र' तु मेखलो । कलापो रसना सारसने काञ्ची च सप्तको ॥६६॥ Ran Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ सा शृङ्खलं पुंस्कटिस्था, किङ्किणी' क्षुद्रघण्टिको । नूपुरं तु तुलाकोटिः, पादतः कटक दे ૪ ७ મ 3 मञ्जीर हंसकं शिञ्जिन्यंशुकं वस्त्रमम्बरम् । सिचयों वसने चीराच्छाद सिक चेलवासी ॥६६६॥ ८ ॥ ६६५॥ 9 पेटेः प्रोतोऽचलो' ऽस्यान्तो, वर्त्तिर्वस्तिश्च तद्दशाः । पत्रोर्ण घौतकौशेय मुष्णीषो' मूर्धवेष्टन में ॥६६७॥ तत् स्यादुद्गमनीयं यद्धौतयोर्वस्त्रयोर्युगम् । त्वकूफलकृमिरोमभ्यः, सम्भवात्तच्चतुर्विधम् ॥ ६६८॥ क्षौमकापसकौशेयैराङ्कवदिविभेदतः । क्षौमं दुकूलं दुगुलं, म्यात्कार्पासं तु बादरम् ॥६६९॥ कौशेयं कृमिकोशोत्थं, राङ्कवं' मृगरोमजम् । कम्बैलः पुनरुर्णायुराविको रैभ्ररलकाः " ॥६७०॥ ॥६७१॥ नवं वासोऽनाहतं' स्यात्तन्त्रकं निष्प्रवाणि च । प्रच्छादनं प्रावरणं, संव्यानं चोत्तरीयकम् 'वैकक्षे' प्रावारोत्तरासङ्गौ' बृहतिकपि च । वराशिः स्थूलशाटः स्यात्, परिधानं त्वधोऽंशुकम् ॥ ६७२॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्ड: ३ अन्तरीय निवसनमुपसंख्यानमित्यपि । तन्थिरुचयो' नीवी', वरस्त्रयर्द्धारुकांशुकम् ॥६७३॥ चण्डातकं' चलनकश्चलनी' त्वितर स्त्रियाः । 3 चौल: कञ्चुलिका कूर्पासकोऽङ्गिका च कञ्चुके ॥ ६७४ ॥ शाटी' चोट्यर्थं नीशारो', हिमवातापहांशुके । कच्छी कच्छाटिको कक्षा, परिधानापराञ्चले १ 9 कच्छापटस्तु कौपीनं, समौ नक्ककर्पटौ । निचोलेः प्रच्छदपटो, निचुलश्चोत्तरच्छदैः ९१ ॥ ६७५॥ ॥६७६॥ उत्सवेषु सुहृद्भिर्यलादाकृष्य गृह्यते । वस्त्रमाल्यादि तत् पूर्णपात्रं पूर्णानकं च तत् ॥ ६७७॥ तत्स्यादाप्रपदीनं' तु, त्वाप्नोत्याप्रपदं हि यत् । चीवरं भिक्षुसङ्घाटी, जीर्णवस्त्रं पटच्चरम् शाणी गोणी छिद्रवस्त्रे, जलार्द्रा क्लिन्नवाससि । पर्य्यस्तिको परिकरैः पर्य्यङ्कश्वावसक्थिक 3 ॥६७८॥ ॥६७९ ॥ 2 ५ ε कुथे वर्णः परिस्तोमः, प्रवेणी नवताऽस्तराः । अपटी काण्डपः स्यात्, प्रतिसीरा जवन्यपि ॥६८० ॥ २ 3 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ अभिधानचिन्तामणौ मयकाण्डः ३ तिरस्करिण्यथोल्लोचो, वितानं कदकोऽपि च । चन्द्रोदये स्थुलं दृष्ये, केणिका पटकुट्यपि ॥६८१॥ गुणलयनिकायां स्यात् , संस्तरैनस्तरौ समौ । तल्पं शय्यो शयनीय, शयनं तलिमं च तत् ॥६८२॥ मञ्चमञ्चकैपर्य्यकैपल्यौः खट्या समाः । उच्छीर्षकमुपाद्धानेवही पाले' पतद्हैः ॥६८३॥ प्रतिग्राहो मुकुरीत्मदर्शीदर्शास्तु दर्पणे ।। स्याद्वेत्रासनमासन्दी', विष्टरः पीठमाप्तनम् ॥६८४॥ कशिपु ननाच्छादावौशीरं शयनासने । लाक्षी द्रुमामयो' राक्षा, रङ्गमातों पलङ्कषों ॥६८५॥ जर्तुं क्षतघ्नों कृमिजी, यावालक्तौ तु तदसः । अञ्जनं कजलै दीपैः, पदोपैः कजलध्वजः ॥६८६॥ स्नहप्रियो गृहमणिर्दशाकर्षों दशेन्धनः । व्यजन' तालवृन्तं तत् , धवित्रं' मृगचर्मणः ॥ ६८७॥ आलावत तु वस्त्रस्य, कङ्कतः केशमार्जनः प्रसाधनश्चाथ बालक्रीडनके गुडो गिरिः ॥६॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ ૪ गिरियको गिरिगुर्डेः, समौ कन्दुकेगेन्दु कौर । राजी रा पृथिवीशकै मध्यलोके भूभृतैः ॥ ६८९ ॥ महीक्षित् पार्थिवो मूर्धाभिषिक्तो भू-प्रजा नृपः । ११ मध्यमो' मण्डलाधीशः, सम्राट् तु शास्ति यो नृपान् ६९० ॥ यः सर्वमण्डलस्येशो, राजसूयं च योऽयजत् । चक्रवर्ती सार्वभौमैस्तं तु द्वादश भारते आर्षभिर्भरतस्तंत्र, स्रेस्तु सुमित्र भूः । ॥ ६९१॥ मघवी जयरथाश्वसेननृपनन्दनेः ९३ ॥ ६९२॥ ॥६९३॥ ॥ ६९४॥ सनत्कुमारोऽथ शान्ति, कुन्धुररो जिना अपि । सुभूमस्तु कार्त्तवीर्यः ", पद्मः पद्मोत्तरात्मजः हरिषेणो हरिसुतो, जयों विजयनन्दनः । ब्रह्मसूनुर्ब्रह्मदत्तेः सर्वेऽपीक्ष्वाकु वंशजाः प्राजपत्यैस्त्रिपृष्ठोऽय, द्विष्पृष्ठो' ब्रह्मसम्भवैः । स्वयम्भू रुद्रतनयैः, सोमभूः पुरुषोत्तमः शर्वः पुरुषसिंहोऽर्थे, महाशिरस्समुद्भवैः । स्यात्पुरुष पुण्डरीको', दत्तोऽग्निसिंहनन्दनैः नारायणो' दाशरथि:, कृष्णस्तु वसुदेवर्भूः । वासुदेवो अमी कृष्णा, नव शुक्ला बलास्त्वमी || ६९७॥ ॥ ६९५॥ ॥६९६॥ , Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मयैकाण्डः ३ ९४ 3 अचलो विजयो भद्रः, सुप्रभश्च सुदर्शनः । आनन्दो नन्दनः पद्मो, रामो विष्णुद्विषस्त्वमी ||६९८ ॥ ७ 3 अश्वग्रीवस्तारक, मेरको मधुरेव च । निशुम्भैवलि प्रह्लादलङ्केशमगधेश्वरीः ॥ ६९९ ॥ | → जिनैः सह त्रिषष्टिः स्युः, शलाका पुरुषों अमी । आदिराजेः वृथुर्वेन्यो, मान्धातो युवनाश्वजैः धुन्धुमारैः कुवलाश्धो, हरिश्चन्द्रे त्रिशङ्कजैः । पुरूरवी बौधे ऐले, उर्वशीरमणच सः दौष्यन्तिर्भरतैः सर्व्वदमैः शकुन्तलात्मजः । "हैहयस्तु कार्त्तवीर्यो', दोस्सहस्र दर्जुनैः कौशल्यानन्दनो' दाशरथी रामोऽस्य तु प्रिया । २ 3 वैदेही मैथिली सीता, जानकी धरणीसुता रामपुत्रौ कुशलववेकयोक्त्या कुशीलव । सौमित्रिर्लक्ष्मणो वाली, वालिरिन्द्रसुतश्च मः ॥७०४॥ 3 ॥७००॥ ॥७०१ ॥ ॥७०२॥ ॥७०३ ॥ आदित्यसूनुः सुग्रीवो', हनुमान् वज्रकण्टकैः । मारुति: केशरिसुर्ते, आञ्जनेयोऽर्जुनध्वः ॥७०५ ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ ९५ पौलस्त्यो रावणो रक्षो, लङ्केशो दशकन्धरः । रावणिः शक्रनिन्मेघनादो मन्दोदरीसुतः ॥७०६॥ अजातशत्रुः शल्योरिधर्मपुत्रो युधिष्ठिरः । कङ्कोऽजमीढो भीमस्तुं, मरुत्पुत्रो' वृकोदरैः ॥७०७॥ किर्मीर-कीचैक-बक-हिडिम्बानां निसूर्दैनः ।। अर्जुनः फाल्गुनः पार्थ :, सव्यसाची धनञ्जयः ॥७०८।। राधावेधी किरीट्यैन्द्रिजिष्णुः श्वेतहयो नरः । बृहन्नटो गुडाकेशः, सुभद्रेशः कषिध्वनः ॥७०९॥ वीभत्सुः कर्णजितस्य, गाण्डीवं गाण्डेवं धनुः । सञ्चाली द्रौपदी कृष्णा, सैरन्ध्रा नित्ययौवना ॥७१०॥ दिना याज्ञसेनी च, कर्णश्चैम्पाधिपोऽङ्गरा । रा-सूता-कतनयः, कालपृष्ठं तु तद्वनुः ॥११॥ आणिकस्तु भम्भासारो', हालैः स्यात् सातवाहनः । कुमारपालश्चौलुक्यो', राजर्षिः परमार्हतः ॥७१२॥ तस्वमोक्तो धर्मात्मा, मारिव्यमनवारकैः । राजबीजी' राजवंश्यो, बीज्यवंश्यौ तु वंशजे ॥७१३॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ अभिधान चिन्तामणौ मयंकाण्डः ३ स्वाम्यमात्यैः सुहृत् कोशो', रोष्ट्रर्दुर्गबलानि च । राज्याङ्गानि प्रकृतयः, पौराणां श्रेणयोऽपि च ॥७१४॥ तन्त्रं' स्वराष्ट्रचिन्ता स्यादावापस्त्वरिचिन्तनम् । परिस्यन्दः परिकरैः, परिवारः परिग्रहः ॥७१५।। परिच्छदैः परिवहस्तन्त्रोकरणे अपि । राजशय्यो महाशय्यो, भद्रासन' नृपाप्सनम ॥७१६॥ सिंहासनं तु तद्धम, छत्रैमातपवारणम् । चामरं वालव्यजेनं, रोमगुच्छेः प्रकीर्णकरें ॥१७॥ स्थगो ताम्बूलकरको, भृङ्गारः कनक लुका। भद्रकुम्भः पूर्णकुम्भः, पादपीठ' पदासन ॥७१८॥ अमात्यः सचिवो मन्त्री, धीसख: सामवायिकः । नियोगी' कर्मसचिवे, आयुक्तो व्यापृतश्चँ सः ॥७१९॥ दृष्टा तु व्यवहाराणां, प्राडविवाकोऽक्षदर्शकः । महामात्रीः प्रधानानि, पुरोधास्तु पुरोहितः ॥७२०॥ सौवस्तिकोऽथै द्वारस्थैः, क्षत्तौ स्यात् द्वारपालकैः । दौवारिकः प्रतीहारों", केयुत्सारकंदण्डिनः ॥७२१॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मर्त्यकाण्डः ३ रक्षिवर्गेऽनीकथेः स्यादध्यक्षांधिकृतौ समौ 1 पौरोगवैः सूदाध्यक्षः, सुदस्स्वौदनिको गुणैः ॥७२२॥ मक्तकार : सूपकारैः, सूपरालिकैवल्लवः । मौरिकैः कनकाध्यक्षो, रूपाध्यक्षस्तु नैष्किकैः ॥ ७२३॥ स्थानाध्यक्षः स्थानिकैः स्यात्, शुल्काध्यक्षस्तुं शौल्किकैः । शुरैकस्तु षट्टादिदेयं, धर्माध्यक्ष धार्मिकैः ॥७२४|| I धम्र्माधिकरणी चाथ, हट्टाध्यक्षोऽधिकमकैः । चतुरङ्गबलाध्यक्षः, सेनानीर्दण्डनायकैः ॥७२५॥ स्थायुकोऽधिकृतो ग्रामे, गोपां प्रामेषु भूरिषु । स्यातामन्तःपुराध्येक्षेऽन्त शिकविरोधिकौ ॥७२६॥ शुद्धान्तेः स्यादन्तः पुरैमवरोधोऽवरोधनम् । सौदिल्ली: कचुकिनैः, स्थापत्यौः सौविदार्श्वे ते ||७२७ ।। पढे वर्षवरैः शत्रौ, प्रतिपक्षैः परो रिपुः । सात्रः प्रत्यवस्थात, प्रत्यनीको मियात् ॥७२८ ॥ ०१ महेश्वरः " शुल्कं घट्टादिदेवे स्याज्जामातुर्बन्धकेऽपि " बेचको विवाहाय यद् प्रा धनमिति तट्टीका | Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ मर्त्यकाण्डः ३ दस्युः सपत्नोऽसहनो विपक्षो, १४ १५ १६ १७ १८ द्वेषी द्विषन् वैय्येहितो निघांसुः । ४ दुईत् परेः पन्धकपन्थिनौ द्विद, प्रत्ययेमित्रावभिमात्यराती ।। ७२९ ।। वैरै विरोधी विद्वेषौ, वयस्यः सवयाः सुहृत् । स्निग्धः सहचरो मित्रं, मखा सख्यं तु सौहृदम् ॥७३०॥ सौहादै साप्तपदीने व्यजाणि सङ्गतम् । आनन्दनं त्वाप्रच्छन, स्यात् समाजनमित्यपि ॥७३१।। विषयानन्तरो राजा, शत्रुभित्रमतः परम् । उदासीनः परतरः, पाणिग्राहस्तु पृष्ठतः ॥ ७३२ ॥ अनुवृत्तिस्त्वनुरोधो, हेरिको गूढपुरुषः। प्रणिधिययाहवर्णोऽवसो मन्त्रविश्वरः ॥ ७३३ ॥ वार्तायनः स्पशश्चार, आप्तप्रत्ययितौ समौ । सत्रिणि स्याद् गृहपतिर्दृतः सन्देशहारकः ।। ७३४ ॥ D Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ अभिधानधितामणौ मर्त्यकाण्डः ३ ९९ सन्धिविग्रहयानान्यासनद्वैधाश्रया अपि । षड् गुणाः शक्तयस्तिस्रः, प्रभुत्वोत्साहमन्त्रजाः ॥७३५॥ मामदाभेददण्डा, उपायो: साम सान्त्वनम् । उपजापः पुनर्भेदो, दण्डः स्यात् साहस दमः ॥७३६॥ गम्भूतं ढौकने लञ्चोत्कोचः कौशलिकाभिषे । पाञ्चारः प्रदानं दोहारौं ग्राह्मायने अपि ॥ ७३७ ॥ योपेक्षेन्द्रजालान, क्षुद्रोपाया इमे त्रयः । गैयाऽक्षाः स्त्रियः पानं, वाक्पारुष्यार्थदूषणे ॥७३८॥ पडपारुष्यमित्येतद्धेयं व्यसनसप्तकम् । रुपं विक्रमः शौर्य, शौण्डीयं च पराक्रमः ॥७३९॥ ११ १२ ०१ माया रूपपरावर्तनादिका, उपेक्षाऽवधारणम् , इंद्रजाल यहस्तप्रयोगादिना असंभववस्तुदर्शनम् , एषां द्वन्धः क्षुद्रा अल्पा FRI.अक्षा:-पाशकाः तैरुपलक्षितं यूतं शेय, पानं मद्यादेः, सामव्यं कर्कशवचनं, अर्थस्य दूषणं, तचतुर्बा-अदानं १ आदानं 'विनाशः ३ परित्यागश्च ४ . Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० अभिधानचितामणौ मयंकाण्डः ३ यत्कोशदण्डनं तेजः, स प्रमाः प्रतापवेत् । मिया धर्मार्थकामैश्च, परीक्षा या तु सोपधौ ॥७४०॥ तन्मन्त्रायषडक्षीणं, यत्तृतीयाद्यगोचरः । रहस्यालोचनं मन्त्रो, रहेश्छन्न पहा ॥७४१॥ विविक्तविजनैकान्तनिःशलाकानि केवलम् । गुह्ये रहस्य न्यायस्तु, देशरूपं समञ्जमम ॥७४२॥ कल्पो षौ नयो न्याय्यं, तूचितं युक्तसांगते । लम्यं प्राप्तं मनमानामिनीतोपैथिकानि च ॥७३॥ प्रक्रियो त्वधिकोगेऽय, मादी धारणी स्थितिः।। संस्थाऽपराधैस्तु मन्तुर्थलीक विप्रियोगसी ॥७४४॥ बलिः करो भागधेयो, द्विपाद्यो द्विगुणो दमः । वाहिनी पृतनों सेना, बलं सैन्यमनीकिनी ॥७४९॥ __०१ मंत्र: पम्वाङ्गः यत्कौटिल्य माह-" कर्मणामारंभोपायः १ पुरुषाव्यसंपत् १ देशकालविभागः ३ विनिपात प्रतीकारः ४ कार्यसिद्धिश्वति ५ पम्चारगानि " Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ मयंकाण्डः । १०१ कटक ध्वजिना तन्त्र, दण्डोऽनीकं पनाकिनी । वरूथिनी चमूश्चक्र, स्कन्धावांरोऽस्य तु स्थितिः ॥७४६॥ शिविर रचना तु स्यात्, व्यूहो दण्डादिको युधि । प्रत्यासारो व्यूहपाणिः, सैन्यपृष्ठे प्रतिग्रहः ॥७४७॥ एकेमैकरथाख्यश्वाः, पत्तिः पञ्चपदातिका । सेनौ सेनामुख गुल्मो, वाहिनी पृतना चर्मूः ॥७४८॥ अनीकिनां च पत्तेः स्यादिमाद्यैत्रिगुणैः क्रमात् । दशौनीकिन्योऽक्षौहिणी, सज्जन तुपरक्षणम् ॥७४९॥ वैजयन्ती पुनः केतुः, पताको केतनं ध्वजैः । भस्योच्चूलांबचूलोख्यावूर्द्धाधोमुखकूर्चकौ ॥७५०॥ गो वानी रथैः पत्तिः, सेनाङ्गं स्याञ्चतुर्विधम् । गुद्धार्थे चक्रवद्याने, शतजैः स्यन्दनो ग्यः ॥७५१॥ .. यदाहुः-" पत्ती १ सेणा २ सेणामुहञ्च ३ गुम्मच • बाहिनी र ५ । पियणा ६ चम् . भनीगिणि . दशणिगिया अक्खोहिणी होइ ९। तथा च स्यात्सेनाऽक्षौहिणी नाम, सागाटेकडिकैजेः ११८७.। रथे ११८७० चैम्बो हयैलिम्नेः ६५६१९, पबध्नैव पदातिभिः १०४३५०॥१॥” इति Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ अभिधानचिंतामणौ मयंकाण्डः ३ स क्रीडार्थः पुष्परथो, देवार्थस्तु मरुद्रथैः । योग्याग्थो वैनयिकोऽध्वरथैः पारियानिकैः ॥७५२॥ कीरथैः प्रवहणं, डयन स्थगर्भः । अन शकटोऽथै स्याद्न्त्री कम्मलिवाह्यकर्म ।।७५३॥ अथ काम्बलेवास्त्रोद्यास्तैस्तैः परिवृते रथे । स पाण्डुकम्बलीयः स्यात् , संवीतः पाण्डुकम्पलैः ॥७१४॥ स तु द्वैपो वैयाघ्रश्चै, यो वृतो द्वीपिचर्मणा । रथाङ्गं रथपादोऽरि, चक्रं धारी पुन: प्रधिः ॥७५५॥ नेमिरक्षाग्रकीले त्वण्याणी, नाभिस्तु पिण्डिको । युगन्धरं कूबर स्यात् , युगंमीशान्तबन्धनम् ॥७५६। युगेकीलकस्तु शम्याः, प्रासङ्गस्तु युगान्तरम् । अनुकर्षो दावधस्थ, धूर्वी यानमुख च धूः ॥७१७॥ रथगुप्तिस्तु वरूथो, स्थाङ्गानि स्वपस्करीः । शिविकी याप्ययानेऽय, दोलो प्रेडोदिका भवेत् ।।७५८॥ - ०१ दशगुणा अनीकिनी इत्यर्थः । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ मर्त्यकाण्यः ३ १०३ बैनीतक परम्पराबाहन शिविकादिकम् । यानं युयं पत्र वाह्यं, वह्यं वाहनधोरणे ॥७६९॥ नियन्ती प्राजितो यन्ती, सूतः सव्येष्टेसारथी । दक्षिणस्यप्रवेतारौं, सत्ता रथकुटुम्बिकः ॥७६०॥ रथारोहिणि तु रथी, रथिके रथिगे रथी । अश्वारोहे स्वश्ववारैः, सादी च तुरंगी च सः ॥७६१॥ हस्त्यारोहे सौदियन्तृमहामात्रै निषादिनः । भाधारणा हस्तिपको, गनाजीवेभालकाः ॥७६२॥ योद्वारस्ते मटी योधौः, सेनारक्षोस्तु सैनिकोः । सेनायां ये समवेतास्ते सैन्यो: सैनिको अपि ॥७६३॥ ये सहस्त्रेण योद्धारस्ते साहस्रोः सहस्त्रिणः । छायाकरः छत्रधारः, पताकी वैनयन्तिकः ॥७६४॥ परिधियः परिचा, आमुक्तः प्रतिमुक्तवत् । अपिनद्धः पिर्नेद्धोऽय, सन्नद्धा व्यूढकङ्कः : ॥७६९॥ वंशितो वम्मितः सज्जः, सन्नाहो बम कङ्कदैः ।। जगारः कवच दंशस्तनुव माथुरश्छः .. १७१६॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ अभिधानचिंतामणी मत्येकाण्डः ३ 3 निचोडः स्यात्कूर्गसा, वाराणश्च कचुः । सारसनं त्वधिकाङ्गे, हृदि धार्ये सकछुकैः शिरस्त्राणे तु शीर्षण्य, शिरस्क शीर्षक च तत् । नागोर्दमुदरत्राणं, जङ्घात्राणं तु मत्कुणम् ॥७६७॥ बाहुत्राणं] बाहुले स्याज्जालिका त्वङ्गरक्षणी । जालप्रायत्यमा स्यादायुधीयैः शखजीविनि ॥७६९॥ ॥७६८ ॥ काण्डपृष्ठों युधिको च, तुल्यौ प्राप्सिकै कौन्तिको । पारश्वधिस्तु पारश्वधैः परश्वधायुधैः २ कृतहस्तेः कृतप्रज्ञः सुप्रयुक्तशरो हि यः । शीघ्रवेधी लघुहस्तोऽपराद्धेषुस्तु लक्षतः च्युतेषुर्दुरवेधी तु, दूरापत्यायुधं पुनः । हेतिः प्रहरणं शस्त्रमत्र तच चतुर्विधम् .. स्युनैखिशिकेशाक्ती याष्टीकोस्तत्तदायुधः । १ तूणी धनुर्भूतै धानुष्कः स्यात्काण्डीरस्तु काण्डवान् || 11900|1 ॥७७२ ॥ ॥७७३॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ मयंकाण्डः ३ १०५ मुक्तं द्विधा पाणियन्त्रमुक्त शक्तिशरादिकम् । अमुक्तं शस्त्रिकादि स्याद्यष्ट्यायं तु द्वयात्मक।।७७४॥ धनुश्चापोऽनमिष्वासा, कोदण्डं धन्व कार्मुकम् दुर्गाऽऽसौ लस्तकोऽस्यान्तरग्रं त्वतिरटन्यपि ॥७७५॥ मौवी जीवा गुणो गया, शिक्षा बाणासनं गुणो । सिञ्जिनी न्या च गोधा तु, तले ज्याघातकारणम्॥७७६॥ स्थानान्यालीढवैशाखप्रत्यालीढानि मण्डलम् । समपादं च वेध्यं तु, लक्ष्य लक्ष शरव्यकम् ।। ७७७ ॥ वाणे पृषस्कविशिखौ खगगार्द्धपक्षी, काण्डाशुगप्रदरसायकपत्रवाहाः । पत्रीय निह्म शिलीमुखैकङ्कपत्र रोपाः कलवशेरैमार्गणचित्रपूखा ॥७७८॥ प्रक्ष्वेडनः सर्वलो हो, नाराचे एषण सः । निरस्तः प्रहिते वाणे, विषाक्ते दिग्धेलितको ॥७७९॥ पाणमुक्तिर्यवच्छेदो, दीप्तिवेंगस्य तीव्रता । दुरतलोनातीरी ख्यास्तु तद्रिदः ॥७८०॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ अभिधानचिंतामणौ मयंकाण्डः ३ पक्षो वाजः पत्रणा तन्न्यासः पृङ्खस्तै कती । तूणो निषङ्गस्तूणीरे, उपास शराश्रयः ॥७८१॥ शरधिः कलापोऽप्यथ चन्द्रहास, करवाले निस्त्रिंशैकृपाएँखड्गाः । तरवारिकौक्षेपक मण्डलानी, असिष्टिरीष्टी त्सहरस्य मुष्टिः ॥७८२।। प्रत्याकारः परीवारैः, कोशैः खड्गविधानकम् । अडुन फलक चम्म, खेटकावरणेस् ॥८॥ अस्य मुष्टिस्तु संग्राहै:, क्षुरी छुरी कृपाणिका । शस्त्रयसेधेनूपुत्र्यौ च, पत्रपालस्तु साऽऽयता ॥७८४॥ दण्डो यष्टिश्च लगुडः, स्यादिली करालिको । मिन्दिगळ सूर्गः कुन्त, प्रासोऽथ द्रुषणा घनः ॥७८५॥ मुद्गरैः स्यात्कुठारस्तु, पाशुः पशुपर्श्वधौ । परश्वधैः स्वधितिश्च, परिषैः परिघातनः ॥७ ॥ " .. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ मत्यकाण्डः ३ १०७ माली सोमरे शस्य, शङ्को शुरले त्रिशीर्षकम् । शक्तिपट्टिशंदुस्फोटचक्राद्याः शस्त्रजातयः ॥७८७॥ खुरली तु श्रमो योग्यौऽभ्यासस्तद्भः खलुरिको । सर्वामिला: सधः, सर्वसन्नहनं समाः ॥७८८॥ लोहाभिमारो दशम्या, विधिर्नीराजनात्परः । प्रस्थान गमनं व्रज्योऽभिनि- प्रयाणकम् ॥७८९॥ यात्राऽभिषेणेनं तु स्यात् , सेनयाऽभिगमो रिपौ । स्यास्नुहृदूलमासाः, प्रचक्रं चलितं बलम् ॥७९०॥ प्रसारस्तु प्रसरणं, तृणकाष्ठादिहेतवे । अभिक्रपो रणे यानमभीतस्य रिपून् प्रति ॥७९१।। अभ्यमियोऽभ्यमित्रीयोऽभ्यमित्रीणोऽभ्यरि जन् । स्थादुरस्वानुरसिले, ऊर्मस्यूजस्वलौ समौ ॥७९२॥ युगीनो रणे साधुनेंती निष्णुश्च जिस्वः ।। यो यः शक्यत जेतुं, जेयो जेतव्यमात्रके ॥७९३॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ अभिधानचिंतामणौ मत्यकाण्डः ३ वैतालिका बोधकरी, अधिकाः सौखसुप्तिकाः । धाण्टिकोश्चाक्रिकोः सूतो, बन्दी मङ्गलपाठकः ॥७९४॥ मागधों मगधैः संशप्तको युद्धानिवर्तिनः ।। नग्नैः स्तुतित्रतेस्तस्य, ग्रन्थो भोगावली भवेत् ॥७९५॥ प्राणः स्थामै तरः पराक्रमवलेद्युम्नानि शौर्योजसी, शुष्मं शुष्मं च शैक्तिरजपहसी युद्ध तु सायं कलिः। समार्मोहसम्महासमराजन्यं युदोयोधनं संस्फोटः कलहो मृङ प्रहरैग संथद्रणों विग्रहः ॥७९६ ॥ द्वन्द्व समाधीतसमाहानि, सम्पतिसमें ईममित्याती। आस्कन्दनोऽऽनिधनान्यनी - मभ्यागमा प्रविदारणं च समुदायः समुदयो, राटि समितिसङ्गग। अभ्यामई: सम्परायः, समीक साम्परायिकम् ॥७९८॥ आनन्दः संयुग चाथ, नियुद्धं तमुजोद्भवम् । ‘पटहडिम्बरी तुल्यौ, तुमुल रणसङ्कुलम् ॥७९९॥ ॥७९७॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमिधानचिंतामणौ मयेकाण्डः ३ १०९ नासीरं त्वग्रयाने स्यादवमर्दस्तु पीडनम् । प्रपातस्त्वभ्यवस्कन्दी, धोट्यभ्यासादनं च सः ।।८००॥ तद्रात्रौ सौप्तिकं वीराशंसनं त्वाजिभीष्मभूः । नियुद्धभूरक्षवाटो, मोहो मूज़ च कश्मलमे ॥८०१॥ वृत्ते भाविनि वा युद्ध, पानं स्याद्वीरपाणकम् । पलायनेमपयानं, सन्द्रावैद्रविद्रोः ॥८०२॥ अपक्रमः समुत्प्रेभ्यो, द्रावोऽय विजयो नयः ।। पराजयो रणे मङ्गो, डमरं डिम्बैविप्लवौ ॥३॥ वैरनिर्यातन वैरशुद्धि प्रतिक्रियाँ । बलात्कारस्तु प्रस, हठोऽथ स्खलित छलमै ॥४॥ ___०१ “ छलं तु स्खलिते व्याजे ” इति महेश्वरः । स्खलित परस्य वदतः स्वाभिमतार्थान्तरविकल्पोपपादनेन वचनविधातः । यथा कूपो नदोदक इति षड्दर्शनम् । वादिना पो नवोदक इति कथायां नवीनार्थवाचकतया नवशब्दप्रयोगे इते छलवादी नवसङ्ख्यामारोप्य दषयति-कुत एक एव कूपो नवसङ्ख्योदक इति । मतिभ्रंशादिकं वा, यच्चाणक्यः-" किं करोति नरः प्राज्ञः, शूरो वाऽथ सुपण्डितः ? । देवो यस्य च्छला. न्वेषी, करोति विकलाः कियाः ॥ १ ॥ " Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० अभिधानचिंतामणी मत्यैकाण्डः ३ परा - पर्य- मितो भूतो, तो मग्नेः पतिः । पायितेनु नष्टेः स्याद् गृहीतदिकै तिरोहितैः ॥ ८०९ ॥ जितार्हो जितकांशी, प्रस्कन्नपतितौ ममौ । 3 चारे: कारी गुप्तौ चन्द्यों, ग्रहः प्रोक्तो प्रः ॥ ८०६ ॥ चातुर्वर्ण्य द्विनक्षत्रवैश्यशूद्रा नृणां भिदः । rait गृहस्थ भिक्षुरिति क्रमशत् ||८०७|| चत्वार आश्रमस्त्र, वर्णी स्वाद्ब्रह्मचारिणि । ज्येष्ठाश्रेमी गृहमेवी, गृहस्थैः स्नातको गृही ॥ ८०८॥ 3 वैखानसो वानप्रस्थो, भिक्षुः सन्न्यासको यतिः । कर्म्मन्दी रक्तवपर्ने, परिव्राजकतापसौ ॥८०९॥ १० पाराशरी पारिकाङ्क्षी, मस्करी पारिरक्षकै: । स्थाण्डिलः स्थण्डिलशायी, य: शेने स्थण्डिले व्रतात् ॥ तपः क्लेश सेहो दान्तेः शान्तः श्रान्तो जितेन्द्रियः । अवदानं कर्म शुद्धं, ब्राह्मणैस्तु त्रयीमुखैः ॥ ८११ ॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ मत्यकाण्डः ३ १११ भूदेवो वाडवो विप्रो, द्वयंप्राभ्यां जाति-जन्म-मः । वर्णज्येष्ठः सूत्रको:, षट्कर्मी मुखसम्भवः ॥१२॥ वेदगर्भ: शमीगर्भ, सावित्रो मैत्र एतसेः । बढेः पुनर्माणवको, मिक्षा स्याद् ग्रासमात्रकम् ॥८१३॥ उपनायस्तूपनयो, बटुकरणमान: । अग्नीन्धनं त्वग्निकार्यमाग्नीध्रा चाग्निकारिकों ॥८१४॥ पालाशो दण्ड भाषाढो, व्रते राम्भस्तु वैणवः । बेल्वेः सारस्वता रोच्यो, पैलवस्त्वौपरोधिकः ॥८१५॥ माश्वत्थस्तु नितने मिरौदुम्बर उलुखले । जटा सटी वृषी पीठ, कुण्डिको तु कमण्डलुः ॥८१६॥ श्रोत्रियश्छौन्दसो यष्टी, स्वादेष्टौ स्थानमखे व्रती । वाको यजमानश्च, सोमबाजी तु दीक्षितैः ॥८१७॥ इझ्याशीली यायको, यया स्यादासुतीबलेः । सोमः सोमपीथी स्यात् , स्थपति पतीष्टिकृत् ॥८१८॥ .. " ग्रांसप्रमाणं भिक्षा स्यादग्रं ग्रापचतुष्टयम् । अग्रं पणं प्राहुर्हन्तकार द्विजोत्तमाः ॥ १ ॥" Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ अभिधानचिंतामणौ मत्येकाण्डः ३ सर्ववेदास्तु सर्वत्रदक्षिणं यज्ञमिष्टवान् । यजुर्विदेवैर्युर्ऋद्धितोद्वाती तु सामवित् ॥ ८१९ ॥ यज्ञो यागैः सर्वैः सत्र, स्नोमो मन्युर्वखैः क्रतुः । : ११ १२ १३ संस्तरः सप्ततन्तुश्च वितानं बहिरध्वरः ॥८२० ॥ 1 अध्ययनं ब्रह्मयज्ञैः स्याद्देवयज्ञे आहुतिः । होमो होत्र वषट्कारः, पितृयज्ञस्तु तर्पणम् ॥८२१॥ 8 तच्छ्राद्धंः पिण्डदानें च, नृयज्ञोऽतिथिपूजनम् । मूतयज्ञो बलि: पञ्च, महायज्ञो भवन्त्यमी पौर्णमासचे दर्शचं, यज्ञौ पक्षान्तयोः पृथक् । सौमिकी दीक्षणीयेष्टिदिक्षां तु व्रतसंग्रहः ॥८२२॥ ॥८२३॥ वृत्ति: सुगहना कुम्बा, वेदां भूमिः परिष्कृता । स्थण्डिलं चत्वरं चान्या, यूपैः स्याद्यज्ञ कीलकः ॥ ८२४॥ चषलो यूपकेटको, यूपकर्णो घृतावैनौ । यूपाप्रमागे स्यात्तम्मरणिर्निर्मन्यदारुणि स्युर्दक्षिणा हवनीये गार्हपत्य त्रयो ऽग्नयः । इदमग्नित्रयं त्रेतो, प्रणीतेः संस्कृतोऽनलः ॥ ८२५॥ ॥८२॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ मर्यकाण्डः ३ ११३ ऋक् समीधेनी धाय्यों च, समिदाधीयते यया । समिदिन्धनमधे तर्पणैधार्सि भस्मै तु ॥२७॥ स्याद् भूतिर्भरित रक्षा, क्षार पात्रं स्वादिकम् । त्रुः सुगंऽधरा सोन्जुईः पुनरुत्तरा ॥२८॥ ध्रुवा तु सर्वज्ञार्थ, यस्यामाज्यं निधीयते । योऽभिमाग निहन्येन, स स्यात्पशुरुषाकृतः ॥८२९॥ परम्परा शमन (शसन), प्रोक्षणं च मखे ३धः। हिंसा कर्माभिचारः, स्याद्यज्ञाई तु यज्ञियम् ॥८३०॥ हविः सान्नाय्यममिक्षी, शृतोष्णक्षीरगं दधि । क्षीरशरः पयस्यों च, तन्मस्तुनि तु वाजिनम् ॥८३१॥ हश्यं सुरेभ्यो दातयं, पितृभ्यः कव्यमोदनम् । भाज्ये तु दधिसंयुक्ते, पदान्य पृषातकः ॥८३२॥ दध्ना तु मधुमंयुक्तं, मधुपर्क महोदयः । इक्लिी तु होमकुण्डं, हव्यशक: पुनश्चः ॥८३३॥ अमृतं यज्ञशेष स्याद् , विसो भुक्तशेषके । बज्ञान्तोऽवभूयः पूर्त, वाप्यादीष्टं मखक्रिया ॥८३४॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ अभिधानचिंतामणौ मत्र्य काण्डः ३ इष्टापूर्त्त तदुभयं बहिर्मुष्टिस्तु विष्टरः । अग्निहोत्रग्निचिंचा हिताश या निरक्षण मे ॥ ८३५॥ 3 9 अग्न्याधानेमग्निहोत्रं, दर्बी तु घृतलेखनी | होवाग्निस्तु महाज्वालो, महावीरै: प्रवर्गत् ||८३६॥ होमधूमस्तु निष्णो, होमभस्म तु वैष्टुतम् । उपस्पर्शस्त्वाचयनं, धारकों तु सेचने 3 ॥ ८३७ ॥ ब्रह्मासन ध्यानयोगासनेऽथ ब्रह्मवर्चसम् । वृत्ताध्ययनर्द्धिः पठे, स्याद् ब्रह्माञ्जलिरेञ्जलिः ||८३८॥ पाठे तु मुखनिष्क्रान्ता, विप्रुपो ब्रह्मबिन्दवः । साकल्यवचनं पारायण करपे विधिम ॥ ८३९ ॥ मूलेऽङ्गस्य स्याद्राह्मे, तीर्थ काय कैनिष्ठयोः । पित्र्यं तर्जन्यङ्गुष्ठान्तर्देस्तं त्वङ्गुलीमृखे १ 9 3 9 ॥ ८४० ॥ १ ब्रह्मत्व तु ब्रह्मभूयं, ब्रह्ममायुज्यमित्यपि । ४ 9 ॥ ८४१ ॥ देवभूयादिकं तदथोपाकरणं श्रुतेः संस्कारपूर्व ग्रहणं, स्यात्स्वाध्यायः पुनर्नपैः । औपवस्त्रं तूपवासैः, कृच्छ्रे सान्तवनादिकम् ॥ ८४२ ॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ मयंकाण्डः ३ ११५ प्रायः सन्न्यास्यनशने, नियमः पृण्यक व्रतम् । चरित्रं चरितीचारौ, नारित्रंचरणे अपि ॥८४३॥ वृत्तं शोलं च मनोध्वंसि जप्येऽघमर्षणम् । समास्तु पादग्रहणोभिवादनोपसङ्ग्रहाः ॥४४॥ उपवीत यज्ञसूत्र, प्रोद्धृते दक्षिणे करे । प्राचीनावीतमन्यस्मिन् , निवीत कण्ठलम्बितम् ।।८४५॥ प्राचेतसस्नु वाल्मीकीवल्मोकुशिनौ कविः ।। मत्रावरुणवाल्मीको, वेदव्यासस्तु माठ ॥८४६॥ द्वैपायनैः पराशर्य:, कानीनो बादरायणः । च्यासोऽस्याम्बा सत्यवती, वासवी गन्धकालिका॥८४ ॥ योजनगन्धों दाशेयी, शालङ्कायनां च सा । जामदग्न्यस्तु रामः स्याद् , भार्गवो रेणुकासुतः।।८४८॥ नारदैस्तु देवब्रह्मा, पिशुनै: कलिकारकः । वशिष्ठोऽरुन्धतीजानिरक्षमाली त्वरुन्धती ॥४९॥ शिकुयाना गाधेयो, विश्वामित्रश्च कौशिकः । शारणिस्तु दुर्वासाः, शतानन्दस्तु गौतमः ॥५०॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ अभिधानचितामणौ मर्त्यकाण्डः ३ याज्ञवल्क्यो ब्रह्मत्रियोगेशोऽन्यथ पाणिनौ । सालातुरीथैदाक्षेयौ, गोनीये पतञ्जलिः ॥८५१।। कात्यायन वररुचिर्भधानिच्चे पुनर्मुः। अथ व्योडिविन्ध्यवासी, नन्दिनीतनयश्च सः ॥८५२॥ स्फोटायने तु कक्षीवाने , पालकाप्ये करेणुभः । वात्स्यायने मल्लनागः, कौटिश्यणकात्मः ॥८५३॥ द्रामिलः पक्षिलस्वामी, विष्णुगुप्तोऽमुलच सः । क्षतव्रतोऽवकीर्णी स्याद् , वात्यः संस्कारवर्जितः।।८५४। शिश्विदानः कृष्णकर्मा, ब्रह्मबन्धुर्द्विनोऽधमः । नष्टाग्निरिही जातिपात्रजीवी द्विजब्रुवः ॥८५५॥ धर्मध्वनी लिङ्गवृत्तिर्वेदहीनो निराकृतिः । वार्ताशी भोजनार्थ यो, गोत्रादि वदति स्वकम् ॥८५३ । उच्छिष्टभोजनो देवनैवेद्यबलिभोजनः । अजस्त्वसदध्येतो, शाखारण्डोऽन्यशाखकः ॥८५७॥ शस्त्रजीव: काण्डस्पृष्ठो, गुरुही नरकीलकः । मलो देवादिपूजायामश्राद्धोऽथ मलिम्लुचः ॥८५८॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ अभिधानचितामणो मत्य काण्डः ३ ११७ पञ्चयज्ञारिभ्रष्टो, निषझै रुचिः खः । सुप्ते यस्मिन्नुदेत्यर्कोऽस्तमेति च क्रमेण तौ ॥८५९॥ अभ्युदितो भिनिर्मुक्तो, वीरोझो न जुहोति यः। अग्निहोत्रच्छलाद् याञापसे वोरोपनाविकः ॥८६०॥ वीरविप्लावको जुह्वद्धनैः शूद्रप्समाहृतः । स्याद्वादवाद्याहः स्याच्छ्न्यवादी तु सौगतः ॥८६१॥ नैयायिकस्त्वाक्षपादो, योगः साङ्ख्यस्तु कापिलः । वैशेषिकः स्यादौलुक्यो, बार्हस्पत्यस्तु नास्तिकैः ॥८६२॥ चार्वाको लौ कायतिकश्चैते षडपि तार्किकाः । क्षत्रं तु क्षत्रियो राजा, राजन्यो बाइसम्भवः ॥८६३॥ अ- भूमिस्र्पशो वैश्यों, ऊरव्या ऊरुनो विशः।। वाणिज्यं पाशुपाल्यं च, कर्षण चेति वृत्तयः ॥८६४॥ आजीवो जीवनं वार्ता, नीविका वृत्तिवेतन । उन्छो धान्यकणादानं, कणिशायर्जनं शिलम् ॥८६॥ ऋतं तवयमन्तं कृषिमतं तु याचित । अयाचितं स्यादमृन, संवावृत्तिः श्वनीविको ॥८॥६॥ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ अभिधानचिंतामणौ मत्यकाण्डः ३ सत्यानृतं तु वाणिज्य, वणिन्यौ वाणिनो वणिक् । क्रयविक्रयिकः पण्यानी|ऽऽपणिनगाः ॥१७॥ वैदेः सार्थवाहश्च, क्राय: क्रयिकः क्रया । क्रेय तु विपूर्वास्ते, मूल्य वस्नोवैक्रयोः ॥३८॥ मूलद्रव्यं परिपणो, नीवा लाभोऽधिकं फलम् । परिदान विनिमयो, नैमेयः परिवर्तन ॥८६९।। व्यतिहाः परावर्ती, वैयाँ निमयोऽपि च । निक्षेपोपनिधी न्यास, प्रतिदान तदर्पणम् ॥८७० ॥ केतव्यमात्रक क्रेये, क्रय्य न्यस्तं क्रयाय त् । पणितव्य तु विक्रेयं, पण्य सत्यापनं पुनः ॥८७१।। सत्वङ्कारः सत्याकृतिस्तुल्यौ विपर्णविक्रयौ । गण्य गणेय सङ्ख्येय, सङ्ख्या त्वेकादिका भवेत् ॥८७२।। यथोत्तरं दशगुणं, मवेदेको दशौंमुतः । शतं सहस्रेमयुत, लतायुतकोटयः ॥७३॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NE१७ अभिधानचिंतामणौ मत्यकाण्डः ३ ११९ अर्बुदमन व च, निखर्व च महाम्बुजम् । शकुद्धिन्य मध्यं, पराई चेति नामतः ॥८७४।। मङ्ख्य द्वीपवाद्धर्यादि, पुद्गलात्माद्यनन्तकम् । सांयात्रिकः पोतवणि, यानगात्रं बहित्रकर्भ ॥८७१॥ बोहित्य वहन पोतः, पोतवाही नियामकः । निर्याभः कर्णधारस्तु, नाविको नौ तु मङ्गिनी ।।८७६॥ सरीतरण्यो वेडोऽथ, द्रोणी काष्ठाम्बुवाहिनी । नौकादण्डः क्षेपणी स्याद्, गुणवृक्षस्तु कृपः ॥८७७॥ पोलिन्दीस्त्वन्तरादण्डाः, स्यान्मङ्गो मनिनो शिरः। भभ्रिस्तु काष्ठकुद्दालः, सेकपात्र तु सेचनम् ॥८७८॥ केनिपातः कोटिपात्रमरित्रेऽयोडुपः प्लः। . कोला भेलस्तरण्डश्चे, स्वातीपण्यमातरः ॥८७९॥ वृद्ध्यानीवो द्वैगुणिको, वार्द्धषिकः कुसीदिकः । शार्दुषिय कुसीदीर्थप्रयोगौ वृद्धिनीवने ॥८॥ दिः कलान्तरमृणं, तुद्धाः पर्युदश्चन । अयाऽसं याचितक, परिवृत्यापमित्यकम् ॥८८१॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० अभिधानचिंतामणौ मयंकाण्डः ३ अवमो ग्राहकः स्यादुत्तमर्णस्तु दायकः । प्रतिभूनक साक्षः, स्थेय औधिस्तु बन्धकः ॥८८२॥ तुलाथैः पौतव मानं, दुयं कुडादिभिः । पाय हातादिभिस्तत्र, स्याद् गुजोः पञ्च माषकः।।८८३॥ ते तु षोडश कर्पोऽस, पहें कर्ष चतुष्टयम् । विस्तः सुवर्णो हेनोऽसे, कुरुविस्त तत्पले ॥८८४|| तुली पलश तासां, विशत्या मार आचिः । शाकट: शाकटीनश्च, शलास्ते दश!चितः ॥८८५॥ चतुर्भिः कुडवैः प्रत्या, स्पैश्चतुर्भिगढकः।। चतुर्भिरढकद्रोणः, सारी पोडशभिश्च तैः ॥८६॥ चतुरिंशत्याऽगुला, हस्ता दण्डश्चतुष्करः ।। तत्सहस्रौ तु गम्यूत, कोशेतौ द्वौ तु गोरुतम् ।।८८७॥ गव्यों गव्युतगड्यूती, चतुक्रोशं तु योननम् । पाशुपाच्य जीववृत्तिगौ मन् गोमी गवीश्वर ॥८॥ गोपाले गोधुगामी मोलोङ्खा पल्लाः ।। गोविन्दोऽधिकृतो गोषु, मादा स्त्वन नीविकः ।।८८९॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमिधानवितामणो मर्त्यकाण्डः ३ ११ कुटुम्बी कर्षक क्षेत्री, हलो कृषिकार्षको । कृषीवलोऽपि जित्या तु, हलि सीरस्तु लाङ्गलम्।।८९०।। गोदारण हलमीषी, सीते तद्दण्डपद्धती। निरीधे कुटक फाले, कृषकैः कुशिकः फलम् ॥८९१॥ दात्रं लक्षित्रं तन्मुष्टौ, क्ण्टो मत्य समीकृतौ । गोदारणं तु कुद्दाहः, खनित्र त्ववदारणमे ॥८९२॥ प्रतोद॑स्तु प्रवयणं, प्रागर्न तोतोदने । योत्रं तु योपाबन्धः, कोटिशो लोष्टभेदनः ॥८९३॥ मैधिर्मथिः खलेवाली, खले गोबन्धदारु यत् । शूद्रोऽन्त्यवर्णो वृषलः, पद्यैः पज्जो जघन्यजः ॥८९४॥ ते तु मूर्द्धावसिक्तादारथकृन्मिनातयः । क्षत्रियायां द्वि नान्मूर्धावसिक्तो विल्लियां पुनः ॥८९५॥ मम्मष्ठोऽय पारशनिषादौ शूद्रयोषिति । क्षत्रान्माहिष्यो वैश्यायामुग्रेन्तु वृषलस्त्रियाम् ॥८९६॥ INES Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ अभिधानचिंतामणौ मर्त्य काण्डः ३ वैश्यात्तु करणः शूद्रात्त्वायोगवो विराः स्त्रियाम् । क्षत्रियायां पुनः क्षर्त्ता, चण्डालो ब्राह्मणस्त्रियाम् ||८९७॥ ११ वैश्यात्तु मार्गः क्षत्र्यां, वैदेहका द्विजस्त्रियाम् । सूतस्तु क्षत्रियाज्जात इति द्वादश तद्भिदः ॥ ८९८ ॥ > माहिष्येण तु जातः स्यात् करण्यां रथकारकः । " कारुस्तु कारी प्रकृतिः, शिल्पी श्रेणिस्तु तद्गुणः ॥ ८९९ ॥ शिल्पे को विज्ञान च, मालाकारस्तु मालिकैः । पुष्पाजीवः पुष्पलावी, पुष्पाणामवचायिनी कल्यपाल : सुराजीवी, शौण्डिको मण्डहारकैः । वारिवासैः पानवणि, ध्वनौ ध्वयसुतीचः ॥१०१॥४ 1180013 मद्यं मदिष्टों मदिरों परिस्रुत ५ कश्यं परिस्रुन्मधु कापिशायनम् । गन्धोत्तम कल्यमिति कादम्बरी स्वादुरसों हलिप्रियों ૧૩ ॥९०२ ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ मर्त्यकाण्डः ३ १२३ शुण्डो हाली हारहूरं, प्रसन्नी वारुणी सुरी' । माध्वीक मदनी देवसृष्टी कापिशेमेंब्धिों ॥९०३॥ मध्वासवे माधवको, मैये शीधुरासवः । जगलो मेदको मद्यपङ्कः किण्वन्तु नग्नईः ॥९०४॥ ननहुँमद्यवीमें च, मद्यसन्धानमासुतिः । मासकोऽभिषवो मद्यमण्डकारोत्तमौ समौ ॥९०५|| गल्वस्तु चषकः स्यात्सरकैश्चानुतर्षण ।। शुण्डी पानमदस्थानं, मधुवारी मधुक्रमौः ॥९०६॥ सपीतिः सहपान स्वादापान पानगोष्ठिको। उपदंशस्त्ववदेशश्चक्षणं मद्यपाशन ॥ ७॥ जाडिन्धर्मः स्वर्णकार, कलादा मुष्टिकर्षं सः । भानसावर्तनी मूषो, भनी चर्मप्रसेविका ॥९०८॥ स्फोटनी वेधनिको, शाणस्त निकषः कषैः । सन्देशः स्यात्कङ्कमुखो, भ्रमः कुन्दं च यन्त्रकम् ॥९०९॥ कटिको मणिकाः, शौल्विकस्ताम्रकुट्टकः । पालिकेः स्यात्काम्बवि स्तुन्नवार्यस्तु सौचिकः।।९१०॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ अभिधानवितामणो मर्त्य काण्डः ३ कृपाणी कर्तरी कलपन्यपि सूची तु सेवनी । सूचिसूत्रं पिष्पलके, तः कर्तनसाधनम् ॥९११॥ पिञ्जन विहनने च, तुलस्कोटनकार्मुकम् ।। सेवन सीवन स्यूतिस्तुल्यौ स्यूप्रसेवकौ ॥९१२॥ तन्तुवायः कुविन्दः स्यात् , त्रसरः सूत्रवेष्टनमें । वाणिभ्यू तिनिदण्डो, वेमौ सूत्राणि तन्तः ॥९१३॥ निर्णेनकस्तु रजक, पादुकावेत्तु चर्मकृत् ।। उपानत् पादुको पार्दू, पन्नों पादरक्षणम् ॥९१४॥ प्राणाहिताऽनुपदीना, त्वाबद्धाऽनु पदं हि या।। नभी कभी वस्त्रों स्यादारी चर्मप्रभेदिको ॥११॥ कुलाल: स्यात्कुम्भकारो, दण्डभृच्चैकनीवः । शाणानीवः शस्त्रमानों, भ्रपासक्तोऽसिधावः ॥९१६॥ धूसरैश्वाक्रितली, स्यापिण्याकैखलौ समौ । रथकृत् स्थपतिस्त्वष्टा, काष्ठत तक्षेपद्धको ॥९१७॥ ग्रामायत्तो ग्रामतःः, कौटतशोऽनधीन कैः । वृक्षमित्तःणी वासी, क्रकचं कर पत्रकम् ॥९१८।। Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणौ मयंकाण्डः ३ १२५ स उद्धनौ यत्र काष्ठे, काष्ठं निक्षिप्य तक्ष्यते । वृक्षादनौ वृक्षभेदी, टङ्क: पाषाणदारकः ॥९१९।। व्योका: वर्मारो लोहकारः कूटं त्वयोधनः । वश्वनः पत्रपरशुरीषीको तैलिके षिका ॥९२०॥ भक्ष्यकार: कान्दविकः, कन्दुस्वेदनिक समे।। रङ्गानीस्तौलिकिश्चित्रचाथ तूलिका ॥९२१॥ कूचिको चित्रमाले ख्य, पलगण्डैस्तु लेप्यकृतं । पुस्तं लेप्यादिकर्म स्यान्न'पितश्चण्डिल: क्षुरी ॥९२२॥ क्षुरमी दिवाकीतिर्मुण्डकोऽन्तावसाय्यपि । मुण्डनं भद्राकरण, वपन परिवापणम् ॥२३॥ सौर नाराची स्वेषियों, देवाजीवस्तु देवः । माईङ्गिको मौरनिको, वीणावादस्तु वैणिकः ॥९२४॥ वेणुधर्मः स्याद्वैणविकः, पाणिः पाणिवादकः । स्यात्प्रातिहारिको मायाकारो मायाँ तु शाम्बरी ॥९२१॥ इन्द्रनाल तु कुहक, जालं कुमृतिरित्यपि । कौतूहल तु कुतुक, कौतुकं च कुतूहलम् ॥९२६॥ . Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ १२६ अभिधानवितामणो मर्यकाण्डः ३ व्याधो मृगवधाजीवी, लुब्धको मृगयुश्च सः । पापैर्द्धिम॑गयोऽऽखेटो, मृगोऽऽच्छोदने अपि ।।९२७॥ जालिकस्तु वागुरिको, वागुरी मृगजालिको । शुम्ब वराटको रन्जुः, शुन्य तन्त्री बेटी गुणः ॥९२८॥ धीरो दाशेकैवत्तौं, बडिश मत्स्यवेधनम् । मानायस्तु मत्स्यनाले, कुणा मत्स्यबन्धनी ॥९२९॥ जीवान्तः शाकुनिको, वैतंसिकस्ने सौनिकः।। मासिकः कौटिकवाथ, सूनी स्थानं वधस्य यत् ॥९३०॥ स्याइन्धनोपकरणं, वीतंसो मृगपक्षिणाम् । पाशस्तु बन्धनग्रन्थैिरवपातांवटौ समौ ॥९३१॥ उन्मार्थः कूटयन्त्र स्याद्विवर्णस्तु पृथग्जनः । इतरैः प्राकृतो नीचे:, पामरो बबरश्च सः ॥९३२॥ चण्डालोऽन्तावसायन्तेवा सिश्वपबुक्सोः । निषादप्लवमात देवाकीर्तिमनङ्गमः ॥९३३॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १२७ पुलिन्दी नाहलो निष्ठयोः, शव रुटो भीः । माला भिल्ली: किराता, सोऽपि म्लेच्छ नातयः ॥९३४॥ इत्याचार्यश्री हेमचन्द्रविरचितायामभिधानचिन्तामणो नाममालायां मर्यकाण्डस्तृतीयः समासः ॥ ३॥ तिर्यकाण्डः। भूर्भूमिः पृथिवी पृथ्वी, वसुधोबी वसुन्धरा । धात्री धरित्री धरणी, विश्वा विश्वम्भरा धरा ॥२३॥ क्षितिः क्षोणी क्षमाऽनन्ता, ज्या कुर्वसुमती मही। गौगोत्रा भूतधात्रों क्ष्मा, गन्धर्माताऽचोऽवनिः ॥१३॥ सर्वसही रत्नगर्भी, जगती मेदिनी रसा। काश्यपी पर्वताधारी, स्थिोली रन-बोज-सूः ॥९३७॥ विपुलौं सागराञ्चाग्रे, स्युनेमोमेखाम्बरः । यावापृथिव्यौ तु द्यावाभूमी थापाक्षमै भपि ॥१३८॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्ड : ॥९३९॥ दिवस्पृथियौ तु रोयौ रोदसी रोदसा च ते । उर्व्व । सर्वसस्था भूरिरिणं पुनरूषरम् स्थले स्थली मन्त्री, क्षेत्रातं खिलं । मृन्मृत्तिको सा क्षारोषो, मृत्ती मृत्स्ना च सा शुभा ९४० रूपां लवणखानिः स्यात्, सामुद्र लवणं हि यत् । 3 १ तदक्षीव वशिर, सैन्धव तु नदी ॥९४१ ॥ ૨૮ ૪ 3 माणिमन्थं शीतशिवं, रोमकं तु रुपाभवन् । वसुकं वस्तुकं तच्च, विडपाये तु कृत्रिम सौवर्चलेऽक्षैरुचक, दुर्गन्धं शूलनाशनम् । कृष्णे तु तत्र तिलकं, यवक्षारों यवाग्रभः यवनालजैः पाक्यर्थे, पाचनकेस्तु टङ्कर्णः । मारतीतीरजो लोहश्लेषणो रसशोधनैः समास्तु स्वर्जिकाक्षारैकापोते सुखवचकः । स्वस्तुि स्वर्जिको सुम्नी, योगवाही सुवचिकौ ॥९४५॥ ॥ ९४३ ॥ 3 3 ॥९४२॥ ॥९४४ ॥ 3 भरतान्यैरावतानि, विदेहाश्च कुरून् विना । वर्षाणि कर्मभूम्यैः स्युः, शेषाणि फलभूमयेः ॥९४६॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १२९ वर्षे वर्षधराद्यङ्क, विष स्तूपवर्त्तनम् । देशी जनपदी नीवृत , राष्ट्र निर्गश्चै मण्डलम् ॥९४७॥ आर्यावर्ती जन्मभुमिर्जिनचक्रयर्द्धचक्रिणाम् । पुण्यभूराचारवेदी, मध्यं विन्ध्यहिमागयोः ॥९४८॥ गङ्गायमुनयोर्मध्यमन्तवेदिः समस्यी। ब्रह्मावर्तः सरस्वत्या, दृष्द्वन्याश्च मध्यतः ॥९४९॥ ब्रह्मवेदिः कुरुक्षेत्रे, पञ्चरामहृदान्तरम् । धर्मक्षेत्रं कुरुक्षेत्र, द्वादशयोजनावधि ॥९५०॥ हिमवद्विन्ध्ययोर्मध्यं यत् प्राग् विनशनादपि । प्रत्यगेव प्रयागाच्च, मध्यदेश: स मध्यमैः ॥९५१॥ देशः प्राग्दक्षिणः प्राच्यो, नदी यावच्छरावतीम् । पश्चिमोत्तरस्तूदीयः, प्रत्यन्तो म्लेच्छा इलः ॥९५२॥ पाण्डुदकृष्णतो भूः, पाण्डुदकृष्णमृत्तके । अङ्गालो निर्मलाऽनूपोऽम्बुमान कच्छस्तु तद्विधः॥९५३॥ कुमुदने कुमुदावासो, वेतस्थान भूरियेतसः । नडप्रायो नडकीयो, नड्डांश्चै नटुलधैं सः ॥५४॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० अभिधानचिंतामणौ तियंकाण्डः शाले: (शाद्वलः) शादहरिते, देशो नद्यम्बुनीवनः । स्यानदीमातृको देवमातृको वृष्टिजीवनः ॥९५५॥ प्राग्ज्योतिषीः कामरूपा, मालवाः स्युग्वन्तयः । त्रैपुरास्तु डाहलोः स्युश्चैद्यास्ते चेदया ते ॥२५६॥ बङ्गास्तु हरिकेलीयो, अङ्गाश्चम्पोपलक्षिताः । सारवास्तु कारकुक्षीयों, मरवस्तु दशेरकोः ॥९२७॥ जालन्धरीस्त्रिगाः स्युस्तायिकास्तनिकाभिधाः । कश्मीरास्तु माधुमतोः, सारस्वती विकर्णिकाः ॥९५८॥ वाहिकोष्टक्कैनामानो, वाह्रीको वालि कोहयाः । तुरुष्कांस्तु साखयः स्युः, कारुपास्तु बृहद्गृहाः।।९५९।। लम्पाकीस्तु मुरण्डाः स्युः, पौवीरास्तु कुमालकोः । प्रत्यग्रथास्त्वहिच्छत्राः, की कटी मगधाहयाः ॥९६०॥ ओण्डाः केरलपर्यायाः, कुन्तला उपहारकोः । ग्रामस्तु वसथः स-नि-प्रति-पर्युप तः परः ॥९६१॥ पाटकैस्तु तदढे स्यादापास्तु घोऽवधिः । अन्तोऽवसानं सीमा च, मर्यादापि च सीमनि ॥९६२॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १३१ प्रापसीमा तूपशल्यं, माल ग्रामान्तराटवी । पर्यन्तभः परितः, स्यात्कर्मान्त तु कर्मभूः ॥२६३।। गोस्थान गोष्ठमेतत्तु गौष्ठीने भूतपूर्वकम् । तदाशितावीनं स्याद्गावो यत्राशिताः पुरा ॥९६४॥ क्षेत्रे तु वगैः केदारैः, सेतौ पाल्योलिसंवरॊः । क्षेत्रं तु शाकस्य शाकशाकटं शाकशाकिनमे ॥२६॥ हेयं शालेयं षष्टिक्य कौद्रवीर्णमौद्गीने । श्रीह्यादीनां क्षेत्रेऽणव्यं तु स्यादाणवीनेमणोः ॥१६॥ भङ्गयं भाङ्गीनमौमीनमुम्य, यव्यं यवक्यवत् । तिल्यं तैलीनं माषीणं, माष्य मङ्गादिसम्भवम् ।।९६७॥ सीत्य हल्यं त्रिहत्य तु, त्रिसीत्यं त्रिगुणाकृतम् । तृतीयाकृतं द्विहल्यांद्येवं शम्बाकृतं, च तत् ॥९६८॥ बीजाकृतं तूतकृष्टं, द्रौणिकोऽऽडकिकादयः। पुणाढ कवापादौ, खलधानं पुनः खलमे ॥९६९॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः चूर्ण क्षौदोऽय रजसि, स्युर्धृटीवशुरेणर्वैः । लोटे लोप्टुर्दलियुर्वरमीकेः कृमिपर्वतैः 3 ४ 3 वभ्रीकूटं वामलूरो, नाकैः शक्रशिरर्श्व सः । नगरांपैः पूरा द्रङ्गः, पत्तनं पृटभेदनम् निवेशनं-धिष्ठानं, स्थानीयं निगमो शाखापुरे तूपपुरं, खेर्टः, पुरार्द्धविस्तर : स्कन्धात्रांरो राजधानी, कोट्टेदुर्गे पुनः समे । २ १ 3 3 गया पूर्गेयराजर्षेः कन्यकुब्ज, महोदयम् कन्या कुब्जे गाधिपुर, कौशं कुशस्थलं च तत् । काशिर्वराणसी वाराणसी शिवपुरीच सा साकेत कोशलोऽयोध्या, विदेह मिथिले समे । त्रिपुरी चेदिनगरी, कौशाम्बी वासपत्तनम् उज्जयिनी स्याद्विशालीऽवन्ती पुष्पकरण्डिनी । 3 ॥ ९७० ॥ १०. ॥९७१॥ ॥९७२/७ ॥०७३७ ॥९७४॥७ ॥१७५॥ 07 उत्कर्षेण जयत्युज्जयिनी, रम्यादित्वादनट्, अन्ये तु. उज्जयिनी नाम राक्षसी देवता तस्या निवास उज्जयिनीति चातुरार्थक्रमणमुत्पाद्य तस्य लोपमिच्छन्ति । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः पाटलिपुत्रे' कुसुमपुरं च तु मालिनी लोमपादकर्णयोः पूर्देवी कोटे उमावनम् । कोटी वर्षे बाणपुर, स्याच्छोणितपुरं च तत् 3 मथुरां तु मधूपनं, मधुरॉडब गजाहूयम् । स्थाद्धास्तिनपुरं हस्तिनपुरं हस्तिनापुरम् १३३ ॥ ९७६ ॥ ॥९७७॥ ॥ ९७८ ॥ 身 तामलिप्तं दामलिप्त, तामलिनी तमालिनी । स्तम्बर्विष्णुगृर्ह च स्यादिर्भा तु कुण्डिनम् ॥ ९७९ ॥ परिक हस्तिनखो, नगरद्वारेकूटके । निःसरणे वाटे, प्राचीनाष्टको वृतिः 3 द्वारवती' द्वारको स्यात्, निषधी तु नलस्य पूः । प्राकारो वरण: साल, चयो प्रोऽस्य पीठभूः ॥ ९८० ॥ 3 9 २ प्राकाराचं कपिशीर्ष, क्षौमट्टाट्टाट्टालकाः समाः । परे गोपुरं रथ्याप्रतोली विशिखाः समाः ॥९८१ ॥ ॥९८२॥ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः पर्दयेकपदी पो, पढेंतिवमै वर्तना । अयनं सरण गोऽध्वा पन्धी निर्गमः मृतिः ॥९८३।। सत्पथे स्वतितः पन्थाः, अपन्थी अप समे । व्यध्वो दुरध्वः कदध्वा, विपथं कापडं च सः ॥९८४॥ प्रान्तरं दृरशून्योऽध्या, कान्तारो वर्त्म दुर्गमम् । सुरुङ्गी तु सन्धिी स्याद्गुढ मार्गो भुवोऽन्तरे ॥९८५! चतुष्पथे तु संस्थान, चतुष्क त्रिपथे त्रिकम् । द्विपथ तु चारुपयो, गजाद्यध्वा त्वसङ्कुलः ॥९८६॥ घण्टापर्थः संसरणे, श्रीपथो राजवम॑ च । उपनिःक्रमणं चोपनिष्करं च महापयः ॥९८७॥ विवणिस्तु वणिग्मार्गः, स्थान' तु पदैमास्पदरें । श्लेषस्त्रिमााः शृङ्गाट', बहुमार्गी तु चत्वरम् ॥९८८॥ श्मशानं करवीर स्यात् , पितृ-प्रेताद्वनं गृहमें । गेहे भूवरितु गेहं तु, गृहं वेश्भ निकेतन्में ॥९८९॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः १३५ मन्दिर सदर्न सौं, निकाय्यो भवनं कुटः । आलयो निलयः शाली, सभादवसित कुलम ॥९९०॥ धिष्ण्यमावसयः स्थीने, पस्त्यः संस्त्याय आश्रयः । ओको निवास भावासो, वसांतः शरणं यः ॥९९१॥ घामोंगारं निशान्त च, कुट्टि त्वस्य बद्धभूः । चतुःशाल सञ्जवनं, सौधं तु नृपमन्दिरम् ॥९९२॥ उपकारिकोपकार्यो, सिंहद्वार प्रवेशनम् । प्रासादो देवभूपानां, हम्य तु धनिनां गृहम् ॥९९३॥ मठीवसथ्यावसथाः, स्युश्छात्रवतिवेश्मनि । पर्णशालोटनेश्चैत्यविहारौ मिनरुनि ॥९९४॥ गर्भागीरेऽपवरको, वासोकः शयनास्पदम् । भाण्डागारं तु कोशः स्यात्, चन्द्रशाला शिरोगृहम ॥ कृप्यशाली तु सन्धाना, कायमानं तृणौकास । होत्रीयन्तुं हविर्गह, प्राग्वंशः प्राग हविर्गृहात् ।।९९६॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः आर्थर्वण शान्तिगृहमास्थानगृहमिन्द्रकम् । तैलिशाली यन्त्रगृहमरिष्टं सूतिकागृहम् ॥९९७॥ सूदशाला रसवती, पाकस्थान महानसम् । हस्तिशाला तु चतुरं, वानिशाला तु मन्दुरी ॥९९८॥ सन्दानिनी तु गोशाला, चित्रशाली तु मालिनी । कुम्भशाला पाकपुटी, तन्तुशाला तु गतिको ॥९९९॥ नापितशाली वपनी, शिल्पा खरकुटी च सा । आवेशनं शिल्पिशाली, सत्रशाली प्रतिश्रयः ॥१०००॥ आश्रमस्तु मुनिस्थानमुपस्त्वन्तिकाश्रयः । प्रपो पानीयशाली स्यात् , गौ तु मदिरागृहम् ।।१ ० ० ९॥ पक्वणः शरावासो, घोषैस्त्वाभीरपलिको । पग्यशाली निषोऽट्टो, हट्टो विणिरापर्णः ॥१००२॥ वेश्याश्रयः पुरं वेशो, मण्डपैस्तु जनाश्रयः । कुयं भित्तिस्तदेडूकमन्तर्निहितकीकसम् ॥१.०३॥ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १३७ वेदी वितरिनिरं, प्राङ्गणं चत्वराङ्गणे । चलम प्रतीहारो द्वारेऽय परिघोऽर्गलो ॥१०॥ साऽल्पा स्वर्गलिको सूचिः', कुञ्चिकायान्तु कूचिको । साधारेण्यं कुर्टेश्चासौ, द्वारयन्त्रं तु तालकमे ॥१००५॥ अस्योद्घाटनयन्त्रन्न, तात्यपि प्रतिताल्यैपि । तिर्यगद्वारोज़दारूत्तरङ्गं स्यादर पुनः ॥१००६॥ कपाटोऽररिः कुवाः, पक्षद्वारं तु पक्ष । प्रच्छन्नमन्तर स्यात्, पहिरिं तु तोरणम ॥१००७॥ तोरणोचें । मङ्गल्यं, दाम वन्दनमालिको । स्तम्मादेः स्यादधोदारौ, शिलो नासोद्धदारुणि॥१००८॥ गोपानसी' तु वलपीच्छादने वक्रदारूणि । गृहावग्रहणी' देहल्युम्बुरोदुम्मरोम्बु ः ॥१००९॥ मघाणः प्रमोऽलिन्दो, बहिर प्रकोष्ठ के । कपोतपाली विठः, पटलच्छदिषी समे ॥१०१०॥ नी, बली के तत्मान्त, इन्द्रकोशेस्तमङ्गः । बकमी' छदिराधारो, नागदन्तास्तु दन्तकोः ।।१०११॥ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः मत्तालम्बोऽपाश्रयैः स्यात् , प्रग्रीवो मत्तवारणे । वातायनो' गवाक्षश्चै, जालकेऽथान्नकोष्ठकः ॥१०१२॥ कुसूलोऽश्रिस्तु कोणोऽणिः, कोटि पायर्स इत्यपि । आरोहणं तु सोपानं, निःश्रेणिस्त्वधिरोहिणी ॥१०१३।। स्थूणां स्तम्भः शालभञ्जी, पाञ्चालिको च पुत्रिका । काष्ठादिघटिता लेप्यमयी त्वञ्जलिकारिको ॥१० १४॥ नन्द्यावर्त्तप्रभृतयो, विच्छन्दा आढ्यवेश्मनाम् । समुद्गः सम्पुटैः पेटौं, स्यान्मञ्जूषाऽथ शोधनी' १०१५ सम्मार्जनी बहुकरी, वर्द्धनी च समूहनी । सङ्करीवकरौ तुल्यावुदुख मुलूखलम ॥१०१६॥ प्रस्फोटनं तु पवनमवघातस्तु कण्डनमें । कटः किलिलो मुसलोऽयो कण्डोलकै: पिट १०१७ चालनी' तितः शूर्प,' प्रस्फोट-मयान्तिको । चुत्यैश्मन्तकैमुद्धानं, स्यादधिश्रयणी च सा ॥१०१८।। स्थाल्युखों पिठरं कुण्ड, चकैः कुम्भी घटैः पुनः ।। कुरैः कुम्भः करीरश्च, कलशः कलसो निः ॥१० १९॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १३९ हसन्यङ्गाराच्छकेटी-मानी-पात्री हसन्तिका । भ्रष्ट्रोऽम्बरीमृचीनीष पिष्टपाकभृत् ॥१०२०॥ कम्बिदविः खनाकोऽथ, स्यात्तर्दूारुहस्तकः । वाभन्यों तु गलन्त्यालः, कर्करी करकोऽथ सः १०२१ नालिकेरजः कर कैस्तुल्यौ कटाहकरी । मणिकोऽलिंजरो' गर्गरीकलश्यौ तु मन्थनी ॥१०२२॥ वैशावः खनेको मन्थों, मन्थनो मन्थदण्डकः । मन्यः क्षुब्धोऽस्य विष्कम्भो', मञ्जीरैः कुटैरोऽपि च १०२३ शालाजीरो' वर्द्धमानः, शराः कोशिका पुनः । मल्लिको चषकैः कसः, पारी स्यात्पानभाजनम् ।।१०२४॥ कुतूश्चर्मस्नेहपात्रं, कुतुपस्तु तदल्पकम् । दृतिः' खल्लेश्चर्ममयी, त्वालुः करकपात्रिको ॥१०२५॥ सर्वमावपनं भाण्ड', पात्रांमत्रे तु भाजनम् । तद्विशालं पुनः स्थालं', स्यात्पिधानमुदञ्चनम् ॥१०२६॥ शैलोऽद्रिः शिखरी शिलोच्चयगिरी गोत्राऽचल: सानुमान , प्रावो पर्वतभूधभूधरधरीत्यर्या भगोऽथोदयः । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः पूर्वाद्रिश्चरमाद्रिरस्त उदगद्रिस्वद्रिराण मेनकाप्राणेशो हिमवाने हिमालयहिमप्रस्थौ भवानीगुरुः॥१०२७ हिरण्यनाभो मैनाकः, सुनामश्च तदात्मनः । रजताद्रिस्तु कैलासोऽष्टापदैः स्फटिकाचलः ॥१०२८॥ क्रौञ्चैः कुश्चोऽय मलये, आषाढो दक्षिणाचलैः । स्यान्माल्यवान् प्रस्रवणो, विन्ध्यस्तु जमवाल कैः ॥१०२९ शत्रुञ्जयो विमलादिरिन्द्रकीलस्तु मन्दरः । सुवेतः स्यात् त्रिमुकुटैत्रिकूटैनिककुर्च सः ॥१०३०॥ उज्जयन्तो रैवतकः, सुदारु पारियात्रिकः ।। लोकालोकश्चक्रवौलोऽथ मेहे: कर्णिकाचलः ॥१०३१॥ रत्नसानः सुमैः स्व-स्वर्गि-काश्चनतो गिरिः । शृङ्गं तु शिखर कुटं, प्रपातस्त्वतटो भृगुः ॥१०३२॥ मेखला मध्यमागोऽनितम्भः कटक सः ।। दरी स्यात्कन्दैरोऽखातबिले तु गहुर गुहा ॥१०३३।। द्रोणो तु शैलपोः सन्धिः, पादाः पर्यन्तपर्वताः । दन्तकास्तु बहिस्तियप्रदेशा निर्गता गिरेः ॥१०३४॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १४१ अधित्यको भूमिः स्यादधोभूमिरुपात्यको । स्नः प्रस्थं सा रश्मी तु, पाषाणः प्रस्तरो दृष ॥१०३५ ग्रावो शिलोपली गण्डशैलीः स्थूलोपलाश्युताः । म्यादाकरः खनिः खानिर्गओं धातुस्तु गैरिकम् ॥१०३६ शुक्लषातो पा शुक्ला, कठिनी खटिनी खटी । लोहं कालायसे शस्त्र, पिण्डै: पारशवं धनम् ॥१०३७॥ गिरिसार शिलासार, तीक्ष्णकृष्णामिषे अथः । सिंहाने-धूर्त-मण्डू-सरणान्यस्य किट्टके ॥१०३८॥ सर्व । तैमसं लोह, विकारस्त्वयसः कुशी । तानं म्लेच्छमुखं शुल्वं, रक्त द्वयष्टेमुदुम्बरम् ॥१०३९॥ म्लेच्छशा भेदाख्यं, मर्कटास्यं कनीयसमें । ब्रह्मवर्द्धनं वरिष्ठ, सीस तु सीसपत्रकम् ॥१०४०॥ नागं गडूपदभव, व सिन्दूरकारणम् । 44 स्वर्णारियोगेष्टे, यवनेष्टं सुवर्णकम् ॥१०४१॥ . .१ सुषणे १ रजतं १ तानं ३ रीतिः ४ कांस्यं ५ तथा अ । सीसं ७ च धीवरं ८ चैव, अष्टौ लोहानि चक्षते ॥१॥ - - -- Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः वङ्गं वपुः स्वर्ण नागजीवने, मृदङ्रङ्गे पुरुषत्रपिचटें। स्याच्चक्रसंज्ञं तमरं च नागज" कस्तीरमालीनकसिंहले अपि ॥१०४२॥ स्याद्रूप्यं कलधौतारजश्वेतानि दुर्वर्णक, खरं च हिमांशुईसकुँमुदाभिव्यं सुवर्ण पुनः । स्वर्ण हेमैं हिरण्यहाटकेंवटून्यष्टापदं काञ्चन कल्याणं कनकं महारतरेगीयरुक्मायपि ॥१० कलधौतलीहोत्तमहिनीनान्यपि गारुडं गैरिजातरूपे । तपनीयैचामीकरचन्द्रभा ऽर्जुननिष्ककार्तस्वैरकर्बुराणि ॥१०४४।। जाम्बूनदं शातकुम्भ, रजत भूरि भूत्तम । हिरण्यकोशोकुप्यानि, हेम्नि रूप्ये कृताकृते ॥१०४५॥ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः ॥ १०४६ ॥ 7 कुप्यन्ते तद्द्वयादन्यद्रूप्येन्तु द्वयमतम् । अलङ्कारसुवर्ण तु शृङ्गीकन के मायुधं रजतं च सुवर्ण च संश्लिषे घनगोलकः । पित्तारेयारकूट:, कपिलोहं सुवर्णकम् ॥१०४७ रिरों रीरी च रीतिश्च पीतटोहँ सुलोहकम् । " ब्राह्मी त राज्ञी कपिल, ब्रह्मरीतिर्महेश्वरी ॥१०४८॥ तु १४३ ॥१०४९ ॥ कांस्ये विद्युत्प्रियं घोषैः, प्रकाश वङ्गशुल्वनम् । घण्टाशर्द्धमसुराहु, खर्ण लोहजे मलम् सौराष्ट्र के पलोह, वर्तलोहं तु वर्त्तकम् । पारदः पारतैः सूतो, हरबीर्जे रसैश्चलम् ॥१०५०॥ Hariharयं गिरिजामले । ૪ स्रोतोऽञ्जनं तु कापोतं, सौवीरं कृष्णयामुने ॥१०५१॥ अथ तुत्थं शिखिग्रीवं, तुत्थाञ्जनमयूरके । १ मूषातुस्थं कांस्यनीले, हेमताएँ वितुन्नकम् ॥१०१२॥ ८८ ०१ भातरूप्योत्पन्नो लोके "रूपैया" इति ख्यातः । तथा "पैसा इति अन्यः । ०२ "" कुन्दन इति प्रसिद्धः ०३ पञ्च सामरीतित्रपुसीसककालायसलक्षणानि लौद्दानि यस्मिन कांस्यभेदः । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः स्यात्तु कर्परिकातुत्यममृतासङ्गमञ्जनमें । रसग ताशैलें, तत्थे दार्वीरसोद्भवे ॥१०५सा' पुष्पाञ्जनं रीतिपुष्पं, पौष्पक पुष्पकेतु च । माक्षिकं तु कदम्बः स्यात् , चक्रनामाऽजनामः १०५४ ताप्यो' नदीनः कामौरिस्तारिविमाक्षिकः । सौराष्ट्री पार्वती काक्षी, कालिकों पर्पटी सती ॥१०५५॥ आढकी तुवरी कंसोद्भवों काच्छी मृदाहयौं । कामीसं धातुकासीस, खेचर धातुशेखर ॥१०५६॥ द्वितीयं पुष्पिकासीस, कंस नयनौषधम् । गन्धारमा शुल्धामा कुष्ठीरिर्गन्धिगन्धों ॥१०५७॥ सौगन्धिकः शुकपुच्छो', हरितालं' तु पिञ्जरम् ।। बिडालके विस्रगन्धिं, खनूर वंशपत्रकम् ॥१०५८॥ आलपीत तालानि', गोदन्त नटमण्डनम् । बङ्गारिोमहवाथ, मनोगुप्ता मनःशिलो ॥१०५९॥. करवीरी नागमाता, रोचनी रसनेत्रिका ।। नेपाली कुनटी गोली, मनोही नागनिहिको ॥१०६०।। Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः १४५ सिन्दुरं नाग नागरक्तं शृङ्गारभूषणम् । चीनपिष्ट हंसपदिकुरुविन्दे तु हिङ्गुलैः ॥१०६१॥ शिलाजत म्यागिरिनैमर्थं गैयमश्मनम् । क्षारैः काचः कुलाली' तु, म्याचक्षुष्यों कुलथिका १०६२ बोलो' गन्धरसः प्राणः, पिण्डो गोपरसः शश। रत्ने' वसु मणिस्तत्र, वैडूर्य, बालवायजम ॥१०६३॥ मरकत त्वरमगर्ने, गारुमतं हरिमणिः । पद्मरागे' लोहितकैलक्ष्मीपुष्पारुणोपाः ॥१०६४॥ नीलमणिस्त्विन्द्रनीलः, सूचीमुख तु हीरकः । वरारके स्वमुख्य, वज्रायनामे च ॥१०६५॥ विराटमो' राजपट्टो', राजवर्तोऽथ विद्रुमः । रक्ताको रक्तकन्दैश्च, प्रवालं हेमकन्दले: ॥१०६६॥ सूर्यकान्तः सूर्यमणिः', सुश्मिा दहनापलः । चन्द्रकान्तश्चन्द्रमणिश्चान्द्रश्चन्द्रोपलचं सः ॥१०६७॥ क्षीरतैलस्फटिकाभ्यामन्यौ खस्फटिकाविमौ । शक्तिन' मौक्तिक मुक्ता,मुक्ताफलं रसोद्भवम् ॥१०६८॥ इति पृथ्वीकायः॥ ०१ हस्तिमस्तकायुद्भवमपि मौकिकमुच्यते, यदाह-" हस्ति - Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3२ १४६ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः अथापकायः। नीरं वारि नलै दक कभुदकं पानी मम्मः कुशं. तोय जोवनजीवनीय लिलीथिम्बु याः संवरे । सीरं पुष्करमेघपुकमीन्यांप: पयःपाथसी," कीलाल भुवनं वनं धनरसो याहोनिवासोऽमृतम् ॥१०६९॥ कुलीन कबन्ध च, प्रागर्दै मर्वतोमुखमैं । अस्थाघोऽस्थागै मस्ताघमर्गाधं चातलम्पृशि ॥१०७०॥ निम्नं गभी गम्भीरमुत्तान' तद्विलक्षणम् । अच्छे प्रसन्नेऽनच्छे स्यादाविलं कलुषं च तत् १०७१ अवश्यायस्तु तुहिने, प्रालेय मिहिका हिममें । स्यान्नीहारस्तुषारश्चं, हिमानी' तु महद्धिमम् ॥१०७२।। पारावारः सागरोऽवारपारों - ऽकृपारोदध्यर्णवौ वीचिमाठौं । यादा-स्रोतो-वा-नंदी-श: सरस्वान् । सिन्धूदन्वन्तो मितेंद्रुः समुद्रः ॥१०७३॥ मस्तकदन्तौ तु, दंष्ट्रा शुनवराहयोः । मेघो मुजामो वेणुमत्स्यो मौक्तिकनयोनयः ॥ १ ॥” इति । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १४७ आकरो मकरौद्रनीजलान्निधि-धि-राशयः द्वीपान्तरा असङ्ख्यास्ते, सप्तैवेति तु लौकिकाः॥१०७४॥ लवणक्षीरंदध्यान्यसुरक्षुत्वाद् शरयः ।। तरङ्गे मङ्गवीच्यूँयुत्कलिको महति विह ॥१०७५॥ लहटैर्युल्लोलकल्लोली, आरतः' फ्यप्तांभ्रमः । तालुरो वोलकश्चासौ, वेली स्याद् वृद्धिरम्भः ॥१०७६॥ डिण्डीरोऽब्धिकर्फः फेनो, बुहुदैस्थासको समौ । मर्यादी कूल ः कल, प्रपातः कच्छरोधसी ॥१०७७॥ तट तीरं प्रतीरं च, पुलिन (जलोन्झितम् । सैकतं चान्तरीपं तु, द्वीपैमन्त ले तटम ॥१०७८॥ तत्परं पारमवारं, त्वाक पात्रं तदन्तरम् । नदी हिरण्यवर्णा स्याद्रोधोवक्रो तरङ्गिणी ॥१०७९॥ सिन्धुः शैवलिनी वहाँ च हृदिनी स्रोतस्विनी निम्नगी, स्रोतो निर्झरिणी सरिञ्च तटिनी कला वाहिनी । कीपवर्ती समुद्रदयिताधुन्यौ स्रवन्तीसरस्वत्यौ पर्वतजाऽऽपा जलधि! कुल्य च नम्बालिनी ॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૪૮ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्ड: गङ्ग त्रिपथगो भागीरथी त्रिदशदीर्घिक | त्रिस्रोतों जाह्रवी मन्दाकिनी भीष्मकुः ॥ १०८१ ॥ सरि विष्णुपदी, सिद्ध-स्त्रः- स्वर्ग-स्वापगों । ऋषिकुल्यों मवती, स्ववर्षी हर शेखगे १७ ॥। १०८२ ॥ વ 3 ॥। १०८३॥ यमुना यमभगिनी, कालिन्दा सूर्यज यमी । वेन्दुज पूर्वगङ्ग, नर्मद मेखलाद्विनौ गोदी गोदावरी तापी, तपनी तवात्मज । शुतुद्रिस्तु शतः स्यात्, कावेरी स्वर्द्धजाह्नवी ॥१०८४॥ करतोयो सदानीरी, चन्द्रभागा तु चन्द्रको । वामिष्टी गोमती तुल्ये, ब्रह्मपुत्री सरस्वती ॥ १०८ ॥ 3 विपार्ट् विपाशोऽर्जुनी तु, बाहुदा तवाहिनी । स्वतः सः । वैतरणी नरकस्था, स्रोतोऽम्मः सरणं प्रवाहैः पुनरोचैः स्याद्, वेणी art य चट्टैस्तीर्थोऽवतारेऽम्बुवृद्धौ पूरैः लगेऽपि च ॥ १०८७॥ पुटमेदास्तु वक्राणि, भ्रमास्तु जलनिर्गमाः । परिवाही जलोच्छ्रासौः कूपकास्तु विदारकौ ॥१०८८ ।। ॥ १०८६ ॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १५९ प्रणाली जलमार्गेऽथ, पानं कुल्यों च सारणिः । सिकता वालुको बिन्दौ, पृषतपृषतविप॑षः ॥१०८९॥ जम्बालचिकिलो पङ्का, कमश्च निषद्वरैः । शादो हिरण्यवाहुँस्तु, शोणो नदे पुनर्वस: १०९०॥ भियै उद्धयः सरस्शश्च, द्रहोऽगाधजलो हुदैः । कूपः स्यादुदपानोऽन्धुः, अहिर्नेमी तु तन्त्रिको ॥१०९१॥ नान्दीमुखो नान्दीपटो, वीनाहो मुखबन्धने । आहावस्तु निपान स्यापकपेऽथ दीर्घिको ।।१०९२॥ वापी स्यात् क्षुद्ररूपे तु, चुरा चुण्डी च चूतकैः । उद्घाटकं घटीयन्त्र, पादावर्तोऽरचट्टकैः ॥१०६३॥ अखातं तु देवतात, पुष्करिण्यां तु खातकम् । .. पद्माकरस्तडागः स्यात्, कासारैः सरसी सरः ॥१०९४॥ वेशन्तः पवलोऽल्पं तत् , परिखो खेयखातिक । .. स्यादालवालमावाठमावाः स्थानकं च सः ॥१०९५॥ भाधारस्त्वम्भमां बन्धो, निरस्तु शरैः सरिः। उत्सः स्त्रवः प्रस्त्रवण, जलाधारा जलाशयाः ॥१०९६॥ इत्यपकायः । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० अभिधानचिंतामणौ तिर्यकार: अथ तेजस्कायः। वैव॒िहद्भान हिरण्यरेतसौ, धनञ्जयो हव्यहरि ताशनः । कृषीटयोनिर्दमुनी विरोचनाऽऽशुशुक्षणी छागायेस्तनूनपात् ॥१०९७॥ कृशान् वैश्वान वीतिहोत्री, वृषाकपिः पावकचित्रान् । अप्पित्तधूमध्य कृष्णवर्मा चिष्पच्छमीगर्भतमोशुकाः ॥१०९८॥ शोचिष्केशः अँचिहुतवेहोषबुधाः सप्तमन्त्रज्वालानिहो ज्वलनशिखिनौ जागृवि तवेदीः । बर्हिःशुष्मॉनिलसलवसू रोहिताश्वाश्रयाशी, बहियोतिर्दह.बहुला हव्यवाहोऽनलोऽग्निः ॥१०९९॥ विभावसुः सप्तोदचिः, स्वाहोऽसायी प्रियाऽस्य च । औवः' संवर्तकोऽध्यग्निर्वाडवो वहवामुखैः ॥११००। ४८ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १५१ दवो दावौ वनवविवहिरिदम्पदैः । छागणस्तु करीषाग्निः', कुकूलस्तु तुषानः ॥११०१॥ सन्तापैः संज्यो' बाप, उष्मा जिहाः स्युरचिषः । हेतिः' कीलो शिखा नाऽञ्चिलको महत्यसौ ११०२ स्फुलिङ्गोऽग्निकणोऽसातवालोल्कोऽवातमुल्मुकम्। धूमः स्याद्वायुगाहोऽग्निशहा दहन केतन ॥११०३॥ मम्मः करमालश्च, स्तरी जीमूतवाह्यपि । तैडिदेरावती विद्युच्चला शम्पोऽचिरप्रभा ॥११०४॥ आकालिकी शतही, चञ्चलो चपलीऽशनिः” । सौदामिनी क्षणिको च, हादिनी जलवालिका ॥११०१॥ इति तेजस्कायः । अथ वायुकायः। वायुः समी समिरौ पानाशुंगो नमःश्वासों नमस्वदैनिश्वसनाः समीणः । वोतोऽहिकात पवमानमरुत्पकम्पनी, कम्पा नित्यगतिगन्धवहप्रभञ्जनीः ॥११०६॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः मातरिश्वी जगत्प्राणः, पृषदश्वोर महाबलः । मारुतः स्पर्शनो"दैत्यदेवो झझा स वृष्टियुक् ११०७ प्राणो नासाग्रहृलाभिपादाङ्गष्ठान्तगोचरः । अपानः पवनो मन्थापृष्ठपृष्ठान्तगोचरः । समानः सन्धिहृन्नाभिषूदानो' हृच्छिरोऽन्तरे । सर्वत्वग्वृत्तिको व्याने, इत्यङ्गे पञ्च वायवः ॥११०९॥ इति वायुकायः। अथ वनस्पतिकायः। अरण्यमटवी सौ, वा च गहन झर्षः । कान्तारं विपिन कक्षः, स्यात् षण्डं काननं वनम् १११० दवो दोषः प्रस्तारस्तु, तृणाटव्यों अषोऽपि च । अपोगभ्यां वन वेलैपारामः कृत्रिमे वने ॥११११॥ निष्कुटस्तु गृहारोमो, बाह्यारीमस्तु पौरकैः । आक्रीडः पुनरुद्यान, राज्ञां त्वन्तःपुरोचितम् ।।१११२॥ तदेव प्रपदवनममात्यादेस्तु निष्कुटे । वाटी' पुष्पाक्षाचासो, क्षुद्रारामः प्रसीदिका॥१११३॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १५३ वृक्षोऽगैः शिखरी च शार्खिकलेदा दिहरिहुँ मो, जीर्णो दुटिपी" कुट: क्षितिरुहः कारस्करों विष्टः । नन्धीवर्तकरालिको तरुव पर्णी पुलोक्यहिपः, सालोऽनोकहेगच्छेपानगा रूक्षीगमौ" पुष्पदैः।१११४। कुञ्जनिकुञ्जकुडङ्गः, स्थाने वृक्षवृतान्तरे । पुष्पैस्तु फलवान् वृक्षो, वानस्पत्यो' विना तु तैः ११२५ फलवान् वनस्पतिः स्यात् , फलावन्ध्यः फग्रहिः । फलवन्ध्यस्त्ववो शो, फलवाने फलिन: फली ॥१११६॥ ओषधिः स्यादौषधिश्च, फलपाकावसानिका । क्षुपो हत्वशिफाशाखः, प्रतिव्रततिलताः ॥१११७॥ वल्लयस्यां तु प्रतानिन्यां', गुलिन्युलपवीरुधैः । स्यात्प्ररोहोऽङ्कुरोऽङ्करो, रोहा स तु पर्वणः ॥१११८।। समुत्थितः स्यालिशं', शिखांशाखौलताः समाः । सालौ शाली स्कन्धशाखाँ, स्कन्धे प्रकाण्डमस्तकम् १११९ मूलाच्छाखावधिण्डिः, प्रकाण्डोऽथ अटो शिफौ।। प्रकाण्डरहिते स्तम्बो, विटपो गुरुमै इत्यपि ॥११२०॥ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः शिरोनीमा शिखर, मूलं बुध्नोऽहिनामै च । सारो मज्ज्ञि त्वचि च्छल्ली,चोचं वल्कं च वल्कलमे ११२१ स्थाणौ तु ध्रुवकैः शङ्, काष्ठ दलिकेदारुणी । निष्कुहः कोटी' मजी, मञ्जरिवल्लरिश्च सा ॥११२२॥ पत्रं पलाश छदनै, वह पर्ण छदं दलम् ।। नवे तस्मिन् किशलय, किशले पल्लयोऽत्र तु ॥११२३॥ नवे प्रवालोऽन्य कोशी, शुङ्गा माढिदलनमा । विस्ताविटपौ तुल्यौ, प्रसून कुसुमै सुमम् ॥११२४॥ पुरुष सून सुमनः, प्रसवश्च मीवकम् । जालकक्षारको तुल्यौ, कलिकायों तु कोरकैः ॥११२५॥ कुड्मले मुकुल गुन्छे, गुच्छस्तबकैगुस्सकोंः । गुलु छोऽय रजः पौष्पं पागोऽथ रसो मधु ॥११२६॥ मकरन्दो मरन्दश्चै, वृन्तं प्रसवबन्धनम् ।। प्रबुद्धोन्जृम्भफुल्लानि, न्याकोशं विकर्च स्मितम् ॥११२७ उन्मिषितं विकसित, दलितं स्फुटित स्फुटम् । प्रलोस्प्रफुलपम्फुल्लोच्छ्रेसितानि विजृम्भिते ॥११२८० Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः स्मेर विनिमुन्निद्रविनुसितानि च। सङ्कुचितं तु निद्राण, मीलितं मुद्रित च तत् ॥११२९॥ फलं तु सस्य तच्छुष्क, वानमाम शला? च ।। प्रन्धिः पर्व पी कोशी शिम्बो शैमिः शमी ।।१०३०॥ शिम्बिश्च पिपलोऽश्वस्य, श्रीवृक्षः कुञ्जराशनः । कृष्णावासो बोधितः, प्लसस्तु पैटी नटी ॥११३१॥ न्यग्रोधस्त बहुपात् स्याद्वैटो वैश्रवणालयः । उदुम्बरो जन्तुफैलो, मशैकी हेमदुग्धकः ॥११३२॥ काकोम्बरिको फल्गुमल्युनघनेफलों ।। आम्रश्वत: सहकारः, सप्तपर्णस्त्वयुक्छदैः ॥११३३॥ शिप्रैः शोभाजनोऽक्षी तीक्ष्णगन्ध-मोचकाः । श्वेतेऽत्र श्वेतमरिची, पुन्नीगः सुरपणिको ॥११३४॥ बकुल: केसरोऽशोक, कैङ्केल्लिः ककुभोऽर्जुनः । मालूर: श्रीफलो बिल्वैः, किङ्किरातः कुरण्टकैः॥११३५।। त्रिपत्रकैः पलाशः स्यात् , किंशुको ब्रह्मपादः । तृणराजस्तलेस्तोलो, रम्मा मोची कदल्यपि ॥११३६॥ करवीरो' हयमारः, कुटनो गिरिमल्लिको । विदुलो वेतसः शीतो, वानीरा कन्जुली रथः ॥१११७॥ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ मभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः कर्कन्धः कुली कोली, बर्यथ हलिप्रियः । नीपैः कदम्बः सालस्तु, सोऽरिष्टैस्तु फेनिलेः॥११३८॥ 'निम्बोऽरिष्टैः पिचुमन्दः, समौ पिचुलझाबुको । कासिस्तु बादरैः स्यात् , पिचव्यस्तूलक पिचुः॥११३९॥ आरग्वधैः कृतमौले, वृषो वामाऽऽटेरूषके । करऑस्तु नक्तमाले:, स्नुहिर्वज्रा महातः ॥११४०॥ महाकालस्तु किम्पाके, मन्दीर: पारिभद्रेके । मधूकस्तु मधुष्ठीलो, गुडष्पो मधुद्रुमः ॥११४१॥ पीलुः सिनो गुडफलो, गुग्गुलुस्तु पलङ्कषैः । राजादनः पियाले: स्यात्तिनिशस्तु रथदुःः ॥११४२॥ नागरङ्गस्तु नारङ्ग, इङ्गुदी' तापद्रुमैः । काश्मरी भद्रपर्णी श्रीपर्यम्लिको तु तिन्तिडी ॥११४३॥ शेलुः श्लेष्मातकः पीतसालस्तु प्रियकोऽसनैः । . पाटलि': पाटलो भूों, बहुत्वको मृदुच्छदैः ।।११४४ द्रुमोत्पले: कर्णिकौरे, निचुले' हिज्जले जलौ । धात्री' शिवो चामलकी, कलिरक्षो' बिमीतकः ।११४५॥ हरितक्यमयों पथ्यौ, त्रिफला नत् फलत्रयम् । तापिच्छस्तु तमालेः स्याञ्चम्मको' हेमपुष्पकैः ॥११४६॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १५७ निर्गुण्डी पिन्दुवोऽतिमुक्तक माधवी लता। वासन्ती चौड्रपुष्पं तु, नपा जाति-तु मालती ॥ ११४७॥ मल्लिको स्याद्विचकिले:, सप्तल नवमालिको । मागधी यूयिको सा तु, पीता स्याद्धमपुष्पिका॥११४८॥ प्रियङ्गः फलिनी श्यामा, बन्धूको' बन्धुनीवकः । करुणे मल्लिकापुष्पो, जम्बीरे' जम्नम्भलौ ॥११४९॥ मातुलुङ्गो' बीजपूरः, करीक्रिकरौ समौ । पञ्चाङ्गलः स्यादेरण्डे', धातक्यों धातुपुष्पिका ॥११५०॥ कपिकच्छूगत्मगुप्ता, धत्तूरः कनकाहुयः । कपित्थस्तु दक्षिफलो, नारिकेर लङ्गी ॥११५१॥ भाम्रातको वर्षपाकी', केतकः ककचच्छदैः ।। कोविदारों' युगपत्रैः, सलंकी तु गजप्रियो ॥११५२॥ वंशो वेणुर्यवफलस्त्वचितारस्तृणध्वनः ।। मस्काः शतपः च, स्वनन् वातात्स कीचकः ॥११५३॥ तुकाक्षीरी वंशक्षीरी, त्वक्षीरी वंशरोचों । पुगे क्रमुकेंगूवाको, तस्योद्वेगं पुनः फलम् ॥११५४॥ ताम्बूलवल्ली ताम्बूली, नागपरायवल्यवि । तुम्ब्यलोवूः कृष्णली तु, गुञ्जो दाक्षी तु गोस्तनी ११५५ ' Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः मृद्वीको हारहरी च, गोक्षुरस्तु त्रिकण्टकः । श्वदंष्ट्रौ स्थरशृङ्गाटो, गिरिकार्यपराजिता ॥११५६॥ व्याघ्री' निर्दिग्विको कण्टका रिको स्यादथामृती। वत्सादनी गुडूची च, विशाली विन्दवारुणी ॥११५७॥ उशीरं वीरणी,ले, हीवरे वालके जलम् । प्रपुन्नाटेस्त्वेडाजो, दर्दुनैश्चक्रमर्दकः ॥११५८॥ ल्टायों महार नं, कुसुम्भं कमलोत्तम् ।। लोधे' तु गावो रो|तिल्वेशावरमार्जनाः ॥११५९॥ मृणालिनी पुटकिनी, नलिनी पङ्कनिन्यपि । कमलं नलिनं पद्ममा विन्द कुशेशयों । ॥११६०॥ परं शतसहस्राभ्यों, पत्रं राजीवपुष्करे ।। बिप्सप्रसून नालीक', तारेस महोत्पलम ॥११॥१॥ तज्जलात् सरसः पङ्कात्परै रुट्-रुह-जन्म-जैः। पुण्डरीकं सिताम्भोजमथ रक्तसरोरुहे ॥११६२।। रक्तोत्पलं कोकनर्द, कैरविण्यां कुमुद्रती । उत्पलं स्यात् कुवलयं, कुवैलं कुवळ कुवम् ॥११६३।। श्वेते तु तत्र कुमुदं, कैरवं गर्दभाह्वयम् । नीले तु स्यादिन्दीवरं, हल्लक रक्तसन्ध्यके ॥११॥४॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १५९ सौगन्धिकन्तु कलारं, बीजकोशो वराटकः । कर्णिको पद्मनाले तु, मृणाले तन्तुले बिसमें ॥११६५॥ विझल्के केसरं संवर्तिको तु स्यान्नवं दलम् । करहाटः शिफौ च स्यात् , कन्दे सलिलजन्मनाम् ॥११६६ उत्पलानां तु शीलूकं, नील्यां शैवालेशेवले । शेवालं शैवले शेपाल जलाच्छूकॅनी लिके ॥ ११६७ ॥ धान्यं तु सस्य सीत्यं च, व्रीहि स्तम्बकरिश्चं तत् । आशः स्यात् प टलो व्रीहिर्गर्भपाकी तु षष्टिकः॥११६८॥ शालयः कलमाद्याः स्युः, कलमस्तु कलामकैः । लोहितो रक्तशालिः स्यान्महाशालिः सुगन्धिः॥११६९ यवो हयप्रियस्तीक्ष्णशकस्तोमस्त्वसौ हरित् । मङ्गल्यको मसूरैः स्यात् , कलायस्तु सतीनकैः।।११७०॥ हरेणुः खण्डैिकश्चाथ, चणको हरिमन्थकैः । ०१ प्रीहि १ र्यवो २ मसूरो ३ गोधूमो ४ मुद् ५ माष६ तिल ७ चणकाः ८ । अणवः ९ प्रियङ्गु १० कोदव ११मटकाः ११ शालि १३ राढक्यः ॥१॥ किन्च १४ कलाय१५ कुलत्थौ १६ सणाश्च १७ सप्तदशानि धान्यानि । - Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० अभिवानचितामणौ तिर्यकाण्ड: माषस्तु मदनो नन्दी, वृष्यों बीजवरो बली ॥११७१॥ मुद्स्तु प्रथनो लो यो, बलाटो हरितो हरिः। पीतेऽस्मिन् वसु खण्डीरप्रवेलैजयशारदाः ॥११७२॥ कृष्णे प्रवर्रवामन्तहरिपन्थनैशिम्बिकोंः । वनमुद्ग तुपरक -निगूढके-कुलीनकाः ॥११७३॥ खण्डी च राजमुद्रे तु, मकुष्टकमयुष्टको । गोधूमै सुनो वल्ले, निष्पावः शितशिम्बिकः ॥११७४॥ कुलत्यस्तु कालवृन्तस्ताम्रवृन्ती कुलथिको । आढकी तुवरी वर्णी, स्यात्कुलमाषस्तु यावः॥११७५॥ नीवारस्तु वनव्रीहिः, श्यामाश्यामको समौ । कङ्गुस्तु कङ्गुनी क्वॉः प्रियङ्गुः पीततण्डुला ॥११७६॥ सा कृष्णा मधुकी रक्ता, शोधिको मुसैटी सिता। पीता माधव्ययोद्दालः, कोद्रवः कोरदूषकः ॥११७७५ चीनकस्तु क'ककङ्गैर्यवनालस्तु योनलैः । जूर्णाह्वयो देवधान्यं, जोन्नाली बीजष्पिका ॥११७८॥ शेणं भङ्गो मातुलानी, स्यादुमा तु क्षुमोऽतसी । गवेधुका गवेधुः स्याजतिलोऽरण्यनस्तिलः ॥११७९॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १६१ षण्ढतिले तिलपिञ्जस्तिलपेजोऽय सर्षपः । कदम्बकैस्तन्तुमोऽथ, सिद्धार्थः श्वेतसर्षपः ॥११८०॥ माषादयः शमीधान्यं', शूकधान्य' यवादयः । स्यात्सस्यशूकं किंशाः, कैणिशं सस्यशीर्षकम् ॥११८१॥ स्तम्बस्तु गुच्छो धान्यादे लं' काण्डोऽफलस्तु सः। पल पलालो धान्यत्वक, तुषो बुसे कडङ्गरः ॥११८२॥ धान्यमावसित रिद्धं, तत्पूतं निर्बुसीकृतम् । मूलपत्रेकरीरोग्रॅफलकाण्डाँऽविरूढकाः ॥११८३॥ स्व पुष्पं कक शाक, दशधा शिग्रुकैञ्च तत् । तण्डुलीयस्तण्डुलेरो, मेघनादोऽल्पमारिषः ॥११८४॥ बिम्बी रक्तफलों पीलुपी स्यात्तुण्डकेरिका । जीवन्ती' जीवनी' जीवा, जीवनीयाँ मधुत्रवो ॥११८५॥ वास्तुकं तु क्षारपत्रं, पालक्यो मधुसूदैनी। रसोनो लशुनोऽरिष्टो, म्लेच्छकन्दो महौषधम् ॥११८६॥ महीकन्दो सोनोऽन्यो, गृञ्जनो दीर्घपत्रकः । भृजरामो भृरजो, मार्कवैः केशरञ्जनः ॥११८७॥ काकमाची' वायसी" स्यात्, कारवेल्डः कटिल्लकः । कूष्माण्डकस्तु कारः, कोशातकी' पटोलिको ॥११८८॥ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्ड: चिमिटी कैटी वालुङ्कयेहनपुंसी च सा । अर्शोन्नैः सूरणः कन्दः, शृङ्गबेकमाकम् ॥११८९॥ कर्कोटकैः किलासस्तिक्तपत्रः सुगन्धः । मूलकं तु हरिण, सेकिमं हस्तिदन्तकौ ॥११९०॥ तृण नडादि नीवारादि च शष्पन्तु तन्नवम् । सौगन्धिकं देवजेग्धं, पौरं कर्तृणरौहिषे ॥११९१॥ दर्भः कुशः कुधो बर्हिः, पवित्रैमथ तेजनः । गुन्द्रो मुखैः शेरो दुर्वी, स्वनन्तौ शतपर्विको ॥११९२॥ हरिताली रुहाँ पोटगलस्तु धमनो नः । कुरुविन्दो' मेघनामा, मुस्ता मुन्द्री तु सोत्तम।।। ११९३॥ बल्बनी उलपोऽथेाः, स्याद्रसौलोऽसिपत्रकः। भेदाः कान्तारपुण्डाद्यास्तस्य मूलं तु मोरटम् ॥११९४॥ कार्शस्त्विषीको घासस्तु, यवस' तृणमर्जुनमे । विषः क्ष्वेडो रसस्तीक्ष्णं, गरलोऽय हलाहलेः ॥११९५॥ वत्सनामः कालकूटो', ब्रह्मपुत्रः प्रदीपेनः । सौराष्ट्रिकः सौलिककेयः, काकोलो दारदोऽपि च ११९६ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १६३ अहिच्छत्रो" मेषशृङ्गः, कुष्टवालकनन्दनः । कैराटको हैमवतो, मर्कटः करवीरकः ॥११९७॥ सर्षपो मूलको गौराईकः सक्तककईमौ । अङ्कोलसाः कालिङ्गः, शृङ्गिको मधुसिक्थः ११९८॥ इन्द्रो लाङ्गुलिको विस्फुलिङ्ग-पिङ्गलैगौतमौः । मुस्तको दालश्चेति, स्थावरा विषमातयः ॥११९९॥ कुरण्टायो अग्रवीना, मूलनास्तूत्पलादयः । पर्वयोनय इक्ष्वाद्याः, स्कन्धनाः सल्लकीमुखाः ॥१२००॥ शाल्योदयो बीजरूहाः, सामूर्छजास्तृणादयः । स्युर्वनस्पनिकायस्य, षडेता मूलनातयः ॥१२.०१॥ इति वनस्पतिकायः। होन्द्रियाः। नीलड़ेंः कृमिरन्तर्जः, क्षुद्रकीटो' बहिर्भवः । पुलकोस्तुभयेऽपि स्युः, कीकसीः कृमयोऽणवः ॥१२०२॥ काष्ठकीटो धुणो गण्डुपर्दः किञ्चुलकैः कुसूः । लता गण्डपदी' तु, शिल्यैत्रगौ जलोकतः ॥१२० ३॥ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः जलालोको जलूकों च, जलौका जलसर्पिणी । भुक्तास्फोटोऽब्धिमण्डकी, शुक्तिः कम्बुस्तु वारिजः१२०४ त्रिरेखैः षोडशार्वर्त्तः, शङ्खोऽथ क्षुद्रकम्बवः । शङ्खनकोः क्षुल्लकाश्चै, शम्बूकोस्त्वम्बुमात्रजाः ॥१२०५॥ कपर्दस्तु हिरण्यैः स्यात्, पणास्थिकैवराटको । इति द्वीन्द्रियाः । त्रीन्द्रियाः । दुर्नामा तु दीर्घकोशी', पिपीलंकस्तु पीलकः ॥१२०६॥ पिपीलिको तु हीनाङ्गी, ब्राह्मणी स्थूलशीर्षिको । घृतेली' पिङ्गकपिशाऽथोपजिह्वोपदेहिको ॥१२०७॥ वम्युपदीको लिक्षो तु, रिक्षा यूको तु षट्पदी । गोपालिको महाभीरुर्गोमयोत्या तु गर्दभी२ ॥१२०८॥ मत्कुणस्तु कोलकुणे, उद्देशः किटिमोत्कुणौ। इन्द्रगोपेस्त्वग्निरंजी, वैराटैस्तित्तिभोऽग्निकः ॥१२०९॥ कर्णजलोको तु कर्णकीटो शतपदी च सा । इति त्रीन्द्रियाः । चतुरिन्द्रियाः । ऊर्णनाभस्तन्त्रवायो, जालिको जालकारः ॥१२१०॥ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः कृमिर्मर्कटको लूता, लालासवोऽष्टपाचे सः । वृद्धिको दुणे आल्यालिरले तत्पुच्छकण्टकः ॥ १२११॥ भ्रमरो' मधुकृदे भृङ्गश्चर्श्वरीकः शिलीमुखैः । इन्दिन्दिरोऽली रोलम्बो, द्विरेफोऽस्य षडङ्घ्रयः १२१२ भोज्यन्तु पुष्पैमधुनी, खद्योतो ज्योतिरिङ्गणैः । पतङ्गः शल: क्षुद्रो, सरघो मधुमक्षिक माक्षिकादि तु मधु स्यात्, मधूच्छिष्टं तु सिक्थकम् । वर्वणी मक्षिकौ नीलों, पृत्तिको तु पतङ्गिको ॥१२१४॥ चनमक्षिका तु देशो, देशी तज्जातिरल्पिका । ॥१२१३॥ 3 'तैलाटी' वरटी गन्धोली स्याच्चीरी तु चीरुको ॥ १२१९.५ झिल्लीको झिल्लिक वर्षकरी" भृङ्गारिकों च सा । 3 चतुरिन्द्रियाः । पञ्चेन्द्रियाः १६५ पशुंस्तिर्यङ् चरिर्हिस्रेऽस्मिन् व्यालेः श्वापदोऽपि च ॥१२१६॥ हस्ती मतङ्गगजै द्विपकने कर्पाः, मातङ्गवारणमहामृगे सामयोनैयः । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः स्तम्बेरैमद्विरदेसिन्धुरैनागदन्तिनो, दन्ताः करटिञ्जिरकुम्भिपीलेवः ॥१२१७॥ इभः करेणुगोऽस्य, स्त्री धेनुको वाऽपि च । मैद्रो मन्दो मंगो मिश्रश्चतस्रो गजजातयः ॥१२१८॥ कालेऽप्यजातदन्तश्च, स्वल्पाङ्गश्चापि मत्कुणौ । पञ्चवर्षों मनो बालः, स्यात्पोतो' दशवर्षकः ॥१२१९॥ विक्को विंशतिवर्षः स्यात्, कलभस्त्रिंशदब्दकः । यूथनायो यूथपतिमत्ते प्रभिन्नगजितौ ॥१२२०॥ मदोत्कटो मदकलः, समावुद्रान्तनिर्मदौ । सज्जितः कल्पितस्तिर्यग्घाती परिणतो' गजः ।।१२२१॥ व्यालो दुष्टगनो गम्भीरवेचैवमताकुशः । रानवाह्यस्तूपवाडैः, सन्नाटेः समरोचितः उदादनीषादन्तौ, बहूनां घटना घटी । मदो दानं प्रवृत्तिश्चै, वमथुः करशीकरः ॥१२२३॥ हस्तिनासा करैः शुण्डौ, हस्तोऽस्याग्रं तु पुष्करम् । अङ्गलिः कर्णिको दन्तौ, विषाणौ स्कन्धे आसनमै १२२४ कर्णमूलं चूलिका स्यादीषिको त्वक्षिकटकम् । अपाङ्गदेशो निर्याण, गण्डस्तु करटैः कटैः ॥१२२९॥ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः अवग्रहो' ललाटं स्यादारक्षः कुम्भयोरघः । कुम्भौ' तु शिरसः पिण्डौ, कुम्भयोरन्तरं विदुः ॥ १२२६॥ वातकुम्भस्तु तस्याधो, वाहित्थे तु ततोऽप्यधः । वाहित्याधः प्रतिमान' पुच्छमूलं तु पेचकैः ॥ १२२७॥ > १६७ दन्तभागेः पुरोभागः, पक्षभागस्तु पार्श्वकः । 3 ॥ १२२९॥ पूर्वस्तु जङ्घादिदेशो, गात्रं स्यात्पश्चिमोऽपरी ॥। १२२८॥ बिन्दुजालं पुनः पद्मं शृङ्खलो' निगेडोऽन्दुकैः । हिर्जिरश्च पादपाशो, वारिस्तु गजबन्धभूः त्रिपदी' गात्रयोर्बन्ध, एकस्मिन्नपरेऽपि च । तोत्रं' वेणुकमालानं', बन्धस्तम्भोऽङ्कुशैः सृणिः ॥ १२६० ॥ अपष्ठं त्वङ्कस्यायं यातेमङ्कशवारणम् । । निषादिनां पादकर्म, यतं' वीतं' तु तद्वयम् ॥१२३१॥ कक्ष्यां दृष्या वस्त्र स्यात् कण्ठबन्धेः कलापकैः । घोटे कस्तुरे गस्ताक्ष्यैस्तुरङ्गोऽश्वैस्तुरङ्गमैः ॥१२३२॥ गन्धर्वा सप्तिवीती, वाहो वाजी हयो हरिः । वडवावी प्रभूर्वामी, किशोरोऽल्पवया हयः ॥१२३३॥ जवाधिकस्तु जवनो', रथ्यो' वोढा रथस्य यः । आजानेयैः कुलीनैः स्यात्, तत्तद्देशास्तु सैन्धवाः ॥१२३४ ॥ ११ ૧૧ १३ १४ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः ॥। १२३६ ॥ वानायुजी: पारसीकोः, काम्बोजी वाह्निकादयैः । विनीतस्तु साधुवाही', दुर्विनीतस्तु शूकलेः ॥१२३५॥ कश्येः कशार्हो हृद्वक्रावर्ती श्रीवत्सकी हयः । पञ्चमद्रस्तु हृत्पृष्ठमुखपार्श्वेषु पुष्पितः पृच्छोरः खुरकेशाम्यैः, सितैः स्यादष्टमङ्गलैः । fed तु कर्कोका हौ, खोङ्गा हैः श्वेतपिङ्गले ॥१२३७॥ पीयूषवर्णे सेराहैः, पीते तु हरियो ' हये । कृष्णवर्णे तु खुङ्गाः, कियाहो' लोहितो हयः ॥ १२३८॥ आनीलस्तु नीलकोsय, त्रियूहैः कपिलो हयः । वोल्लाहस्त्वयमेव स्यात्, पाण्डुकेशरवालधिः ॥१२३९॥ उराहस्तु मनाकपाण्डुः, कृष्णजङ्घो भवेद्यदि । सुरूहको' गर्दभाभो, वोरुखानैस्तु पाटल: ॥। १२४० ॥ कुलाहेस्तु मनाकू पीतः, कृष्णः स्याद्यदि जानुनि । उकनाहैः पीतरक्तच्छायः स एव तु क्वचित् ॥ १२४१ ॥ कृष्णरक्तच्छविः प्रोक्तः, शोर्णः कोकनदच्छविः । हरिकैः पीतहरितच्छायः स एव हालकैः पङ्गुलेः सितकाचामो, हला चित्रितो हयः । ययैरश्वोऽश्वमेधीयैः, प्रोथमश्वस्य नासिका ॥। १२४२॥ ॥ १२४३ ॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १६९ मध्यं कश्यं निगालस्तु, गलोद्देशः खुराः शफोः । अथ पुच्छे वालहस्तो, लाङ्गूल लूम वालधिः ॥१२४४॥ अपावृत्तपरावृत्तछुठितानि तु वेल्लिते ।। घोरित वलिगत प्लुतोत्तेजितोत्तेरितानि च ॥१२४१॥ गतयः पञ्च धाराख्यास्तुरङ्गाणां क्रमादिमाः । सत्र धौरितकं धौर्य, धोरण धोरितं च तत् ॥१२४६॥ चभ्रकङ्कशिखिकोडगतिवत् वलिंगंतं पुनः । भनकायसमुल्लासात्, कुञ्चिकास्यं नतत्रिकम् ॥१२४७॥ छुतं तु लङ्कुनै पक्षिमृगगत्यनुहारकम् । उत्तेजित रेचित स्यान्मध्यवेगेन या गतिः ॥१२४८॥ उत्तेरितमुपकण्ठेमास्कन्दितकैमित्यपि । उत्प्लुत्योत्प्लुत्य गमनं, कोपादिवाखिलैः पदैः ॥१२४९॥ आश्वीनोऽध्वा स योऽश्वन, दिनेनैकेन गम्यते । कवी खलीने कविकों, कवियं मुखयन्त्रणमे ॥१२५०॥ पञ्चाङ्गी वऋपट्टे तु, तलिको तलसारकम् । दामञ्चन' पादपाशैः, प्रक्षरं प्रखरैः समौ ॥१२५१॥ चर्मदण्डे कशा रश्मी, वल्गोऽवक्षेपणी कुशौं । पाणन्तु पल्ययन, वीतं फल्गु हयद्विपम् ॥१२५२॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्ड: वेसरोऽश्वेतरो वेगैसरश्वाथ क्रमेलकः । कुलनाशः शिशुनामा, शैलो भोलिमरुप्रियः ॥१२५३।। मयो महाङ्गो वासन्तो, द्विककुदर्गलाईनः । भूतध्न उष्ट्रो दाशेरों, रवणः कण्टकाशनः ॥१२५४॥ दीर्घग्रीवः केलिकीर्णः, करमस्तु त्रिहायणः । स तु शृङ्खलकः काष्ठमयैः स्यात्पादबन्धनैः ॥१२५५॥ गर्दमस्तै चिरमेही , वालेयो रासः खरः । चक्रीवान शङ्ककर्णोऽथ, ऋषभो' वृषभो वृषः ॥१२५६॥ वाडवेयः सौरभेयो, मदः शक्करशारौ । उक्षाऽनड्डानं ककुझौन् गौर्बली वर्दश्च शाङ्करः ॥१२५७॥ उक्षा तु जातो जातोक्षः, स्कन्धिकः स्कन्धवाहकः। . महोक्षः स्यादुक्षतरो', वृद्धोक्षस्तु जरद्वैः ॥१२५८० पण्डतोचित आर्षभ्यः, केटो भग्नविषाणकैः । इट्चरो गोपतिः षण्डो, गोवृषो मदकोहलेः ॥१२१९॥ वत्सः शकृत्करिस्तों, दम्यवत्सतरौ समौ । नस्योतो' नस्तितः षष्ठवा तु स्याद्युगपार्श्वगैः ॥१२६०॥ युगादीनान्तु वोढारो, युग्य-प्रासङ्गयै-शाकटौः । स तु सर्वधुरीणः स्यात्, सर्वो वहति यो धुरम्॥१२६१॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अभिधानचिबामणौ तिर्यकाण्डः १७१. एकधुरीणकधुरावुभावकधुरावहे । धुरीण-धुर्य-धौरेय-धौरेय धुरन्धराः ॥१२६२॥ धूर्वहेऽय गलिदुष्टवृषः शक्तोऽप्यपूर्वहः ।। स्थौरी पृष्ठ्यः पृष्ठवाह्यो, द्विदने षोडनं द्वि-षट्-रदौ १२६३ वहः स्कन्धो शकूटं तु, कहुँदै नैचिकं शिरः । विर्षाणं कणिको शृङ्गं, सानो तु गलकम्बलेः ॥१२६४॥ गौः सौरभेयी माहेयी, माहीं सुरभिरर्जुनी । उस्राऽन्या रोहिणी गृहिण्यनहाय डेयुषौ ॥१२६५॥ तम्पी निलिम्पिको तम्बो, सा तु वर्णैरनेकधा । पृष्ठोही गर्भिणी वन्ध्या, वशा वेहद्वषोपा ॥१२१६॥ अवतोको स्रवद्गर्भा, वृषाक्रान्ता तु सन्धिनी' । प्रौढवत्सा बष्कयिणी', धेर्नुस्तु नवसूतिका ॥१२६७॥ परेष्टुर्बहुसूतिः स्याद् , गृष्टिः' सकृत्प्रसूतिका । प्रजने काल्योपसर्या', सुखदोह्या तु मुव्रता ॥१२॥८॥ दुःखदोह्या तु करटी, बहुदुग्धा तु कजुली । द्रोणदुग्धा द्रोणों, पीनोनी पीवास्तनी ॥१२६९॥ पीतदुग्धी तु धेनुष्यो, संस्थिता दुग्धवन्धके । नैचिकी तूत्तमा गोषु, पलिक्नी बालगर्भिणी ॥१२७०॥ २ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः समांसमीनों तु सा या, प्रतिवर्ष विजायते । स्यादचण्डी तु सुकरी, वत्सकामो तु वत्सला ॥१२७१॥ चतुस्त्रेर्हायणी येकहायन्येकादिवर्षिका ।। आपीनैमूधो गोविट तु, गोमयं भूमिळेपन ॥१२७२॥ तत्र शुष्क तु गोग्रन्धिः, करी-च्छगणे अपि । • गवां सर्वं गव्यं त्रैजे, गोकुलं गोधनं धनम् ॥१२७४॥ अंजने स्यादुपसरः, कीलः पुष्पलकैः शिवः । बन्धनं दामै सन्दान, पशुरन्जुस्तु दामनी ॥१२७४।। अः स्याच्छगलच्छागेश्छंगो बस्तः स्तमः पशुः । अना तु छौगिका मौं, सर्वभक्षी गलस्तनी ॥१२७५॥ गुवाऽजो बर्करोऽवौ तु, मेषोर्णायुहुँडोरणाः। उरभ्रो मेण्डको वृष्णिरेडको रोमॅशो हुँदुर ॥१२७६॥ सम्फाल: शृङ्गिणो भेडो, मेषी तु कुररी रुनौ । जालकिन्यविलोवेर्णयथेटिक शिशुवाहकः ॥१२७७॥ पृष्ठशृङ्गो वनाः स्यादविदुग्धे त्वः परम् । सो दस मरीसं च, कुक्करो वक्रबालेधिः ॥१२७८॥ * अस्थिभुग्मषणः सारमेयः कौलेयकः शुनैः । . शुनिः श्वांनो गृहमृग :, कुर्कुरो रात्रिमागरैः ।।१२७९॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १७३ रसनालिट रतपराः कीलशायिणान्दुकाः । शालाको मृगदंशः, श्वाऽलर्कस्तु त रोगितः ॥१२८०॥" विश्वकर्दुस्तु कुशलो, मृगव्ये सरमा शुनी। विट्चरैः शूकरे ग्राम्ये, महिषो' यमवाहनः ॥१२८१॥ रजस्वलो वाहरि लाय: सरिभो महः । धीरस्कन्धः कृष्णशृङ्गो, जरन्ता देशभीरुके: ॥१२८२॥ रक्ताक्षः कासरो हंसकालीनयलालिको"। अरण्यजेऽस्मिन् गवलः, सिंहः कण्ठीरवो हैरिः॥१२८३ हर्यक्षः केसरीभारिः, पञ्चास्यो नखरायुधः। महानादेः पञ्चशिखः, पारीन्द्रः पत्थरी मृगात् ॥१२८४ श्वेतपिङ्गोऽव्यय व्याघ्रो, द्वीपी शार्दूलचित्रको । चित्रकायैः पुण्डरीकस्तरक्षुस्तु मृगादनः ॥१२८५॥ शरमः कुञ्जरारातिरुत्पादकोऽष्टपादपि । गवर्यः स्याद्वनगवो, गोसदृक्षोऽश्ववारणः ॥१२८॥ खड्गी वाध्रीणसेः खड्गो, गण्डेकोऽय किरैः किरिः।। भूदारैः सूक: कोलो, वराह: क्रोडपोत्रिणौ ॥१२८७॥ घोणी घृष्टि स्तब्धरोमी, दंष्ट्री किट्योऽस्यलाङ्गलौ । भासनिकः शिरोमर्मी, स्थूलनासो बहुप्रैजः ॥१२८८॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १७१ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः मालके भालूकीच्छमलमल्लकमल्लुकीः । शृगालो जम्बुकैः फेः, फेरण्ड: फेरवः शिवा ॥१२८९॥ घोरवासी भूरिमायो, गोमायुर्मुगधूत्तकैः । हरवो मरुजः क्रोष्टा, शिवाभेदेऽल्पके किर्खिः ॥१२९०॥ पृथौ गण्डिवलोपाको, कोकस्त्वोहामंगो वृकः । अरण्यों मर्कटस्तु, कपि': कीश: प्लवङ्गमः ॥१२९१॥ प्लवङ्गः प्लवर्गः शाखामुंगो हरिबलीमुखः । वनौकी वानरोऽथासौ, गोलाङ्गलोऽसिताननः ॥१२९२॥ मृगैः कुरङ्गः सारङ्गो, वातायुहग्णिापि । - मृगभेदा रुन्यङ्करङ्कगोकर्णशम्चाः ॥१२९३॥ चमूरुचीनचमरौंः, सद्गश्यरौहिषोः । कदैली कन्दली कृष्णशीर: पतरोहितौ ॥१२९४॥ दक्षिणी तु स मृगो, यो व्याधैर्दक्षिणे क्षतः । वातप्रेमीर्वातमृर्गः, शशस्तु मृदुलोमकैः ॥१२९५॥ शूलिको लोमोऽय, शैल्ये शललशल्यको । श्वाविच तच्छलाकायां, शलल' शलपित्यपि ॥१२९६॥ गोधी निहाको गौधेरैगौधारौ दुष्टतत्पुते । . गौधेयोऽन्यत्र मुशली, गोधिकौगोलिके गृहात् ॥१२९७॥ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १७५ माणिक्यों भित्तिको पल्ली, कुड्यमत्स्यो गृहोलिका। स्यादञ्जनाधिको हालिन्यजनिको हलाहलेः ॥१२९८॥ स्थूलाअनाधिकायान्तु, ब्राह्मणी रक्तपुच्छिको । कृकलामस्तु सरः, प्रतिसूर्यः शयानः ॥१२९९॥ मूषिको' मूषको बज्रदशनैः खनकोन्दुरौं"। उन्दुरुष आखुश्च, सूच्यास्यो वृषलोचनः ॥१३००॥ छछैन्दरी गन्धमूष्यो, गिरिको बालमूषिको । पिडाल ओतुर्मार्जारो', हीकुश्च वृषदंशकः ॥१३०१॥ जाहको गात्रसङ्कोची, मण्डली नकुलः पुनः । पिङ्गलः सर्पही बघैः, सर्पोऽहिः पवनाशनः ॥१३०२॥ भोगी भुजङ्गेभुजगावुरगो द्विजिह्व व्यालौ मुनङ्ग सरीसंपदीर्घनिहीः । काको दरो विषधरः कण त् पृदाकुकर्णकुण्डलिबिलेशैयदन्दशूकाः ॥१३०३॥ दीकरः कञ्चुकिचे क्रिगूढपात्पन्नगा जिह्मगलेलिहाँनौ । कुम्भीनसाऽऽशीविषैदीर्घपृष्ठः, स्याद्राजसर्पस्तु भुमङ्गभोनी ॥१३०४॥ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकार: चक्रमण्डल्यजगरः, पारीन्द्रो वाहसः शयुः । अलगः जलव्याले:, समौ राजिलदुन्दुमौ ॥१३०५॥ भवेत्तिलि सो गोनासो', गोनसो घोणसोऽपि च । कुक्कुटाहि': कुक्कुटामो, वर्णेन च रवेण च ॥१३०६॥ नागौः पुनः कावेयास्तेषां मोगावती पुरी । शेषो नागाधिपोऽनन्तो, द्विसहस्रारूँ आलुकः ॥१३०७॥ स च श्यामोऽथवा शुक्लः, सितपङ्कजलाञ्छनः । वासुकिस्तु सर्पराजः, श्वेतो नीलसरोजवान् ॥१३०८॥ तक्षकस्तु लोहिताङ्गः, स्वस्तिकाङ्कितमस्तकः । महापौस्त्वतिशुक्लो, दशबिन्दुकमस्तकः । ॥१३०९॥ शङ्खस्तु पीतो बिभ्राणो, रेखामिन्दुसितां गले । कुलिकोऽर्धचन्द्रमौलिज्वालाधूमसमप्रमः ॥११॥ अथ कम्बलाश्वतरधृतराष्ट्रबलाहकाः । इत्यादयोऽपरे नागास्तत्तत्कुलसमुद्भवाः ॥१३११॥ निर्मुक्तो" मुक्तनिर्मोकः, सविषा निर्विषाश्च ते । नागाः स्युर्दग्विषो लुमविषास्तु वृश्चिकादयः ॥१३१२॥ व्याघ्रादयो लोमविषो, नखविषो नरादयः । लालाविषास्तु लूताद्याः, कालान्तरविषोः पुनः ॥१३१३॥ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १७७ मूषिकाद्या दृषीविष', वीर्यमौषधादिभिः । कृत्रिमं तु विषं चौरं, गरश्वोपविष च तत् ॥१३१४॥ भोगो'ऽहिकायो दंष्ट्रीऽऽशी देवीं भोगैः फटः स्फुः । फणोऽहिकोशे' तु निलयनीनिर्मोककञ्चुकाः ॥१३१५॥ इति स्थलचराः । विहंगो विहङ्गमेखगौ पतंगो विहङ्ग, शकुँनिः शकुन्तिशकुंनौ विवय शकुन्तीः । * नमसमो विकिरपत्ररथौ विहायो" पिक्षिविष्किरपतत्रिपैतत्पतीः ॥१३१६॥ पिस्सनीडाण्डमोऽगौकाश्चञ्चुश्चम्चः सुपाटिको । नोटिश्च पत्रं पतंत्रं, पिच्छ वाजस्तनूरुहम् ॥१३१७॥ पक्षो गाँच्छदश्चापि, पक्षमूलं तु पक्षतिः। मंडीनोईडीनसण्डीनडयनानि नभोगतौ ॥१३१८॥ शीकोशोटे कुलायो, नीडे केकी तु सर्पमुक् । परबर्हिणौ नीलकण्ठो मेघसुहँच्छिखी ॥१३१९।। पाल्लापङ्गिोऽस्य वाक् केको, पिच्छे यह शिखण्डकः ।। गः कलापश्च, मेचकश्चन्द्रकः समौ ॥१३२०॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ अभिधामचिंतामणो तिर्यकाण्डः वनप्रियः परभृतस्ताम्राक्षः कोकिलें: पिकः । कलकण्ठः काकपुष्टः, काकोऽरिष्टैः सकृत्प्रजः ॥१३२१॥ आत्मघोचिरजीवी", घूारित करटो द्विः । एकह बलिमुक् ध्वोझो, मौ कुंलिर्वायसोऽन्य त १ ३२२ वृद्धद्रोणदाघकृष्णपर्वतेभ्यस्त्वसौ" परः। पवनाश्रयस्तु काकोडो, मद्गुस्तु जलवायसः ॥१३२३॥ धके निशा: काकारिः, कौशिकोलुपेचकाः । दिवान्योऽय निशावेदी', कुक्कुटेश्वरणायुधः ॥१३२४॥ कृकवाकुन्ताम्रचूडो", विवृताक्षः शिखण्डिकः । हंसीश्चक्राङ्गरकाङ्मानसौकःसितच्छदौः ॥१३२५॥ राजईसीस्त्वमी चन्चुचरणैरतिलोहितः । मल्लिकाक्षास्तु मलिनैर्धातरराष्ट्रीः सिततः ॥१३२६॥ कादम्बास्तु कलहंसाः, पक्षः स्युरतिधूसरैः । । वारली वरली हंसी, वारौँ वस्टौ च सा ॥१३२७॥ दा घाटः शतपत्रः, खञ्जरीटैस्तु खञ्ज। सारसस्तु लक्ष्मणः स्यात्, पुष्कराख्यः कुरकुरैः॥१३२८॥ सारसी लक्ष्मणोऽथ क्रुङ्, क्रौञ्च चाषे किकीदिविः । चातक: स्तोकको बप्पीहै: सारङ्गो नमोऽम्बुपैः॥१३२९॥ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः १७९ चक्रवाको स्थाङ्गाई, कोको द्वन्द्वरोऽपि च । टिट्टिमस्तु कलुक्वाण, उत्पादशयनैश्च सः ॥१३३०॥ चटको' गृहबलिमुळे कलविङ्कः कुलिङ्ककैः । तस्य योषित्तु घटको, स्त्रयपत्ये चटको तयोः ॥१३३१॥ प्रमपत्ये चाटकैरो, दात्यूहे कालकण्टकैः । अलरकुलरञ्जो, बके कहो बकोटवेत् ॥११३२॥ बलाहकः स्याङ्कलाको', बलाको विसकण्ठिको । भृङ्गः कलिङ्गो धूम्याटः, कङ्कस्तु कमनच्छदैः॥१३३३॥ लोहपृष्ठो दीर्घपार्दैः, कर्कटः स्कन्धमल्लकः । चिल्लैः शनिरातापी, श्येनः पत्री शशादनः ॥१३३४॥ दाक्षाय्यो दूरह धोऽयोत्क्रोशो मत्स्यनाशनः । कुररैः कीरस्तु शुको', रक्ततुण्डः फलादनः ॥१३३५॥ शारिको तु पीतपादो, गोराटी गोकिराटिका । स्याच्चर्मचटकायां तु, जतुकोऽमिनपत्रिका ॥१३३१॥ वलालिको मुखविष्ठी, परोष्णी तैलपायिकों । कर्करे?ः करे?: स्यात् , कर?ः कर्कराटुकैः ॥१३३७॥ आटिरीतिः शरारि: स्यात्, कृकणक्रारी समौ । मासे शकुन्तैः कोयष्टौ, शिखरी जलकुक्कुभैः ॥१३३८॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः पारावतैः कलरवैः, कपोतो' रक्तलोचनः । ज्योत्स्नाप्रिये चलचचुंचकोरैविषसूचीः ॥१३३९॥ जीवंजीवस्तु गुन्द्रालो, विषदर्शनमृत्युकैः ।। व्याघ्राटस्तु भाद्वाजैः, प्लवस्तु गात्रसंप्लवः ॥१३४०॥ तित्तिरिस्तु खरकोणो', हारीतस्तु मृदङ्कुरः । कारण्डवस्तु मरुलेः, सुगृहश्चन्चुसूचिकैः ॥१३४ १॥ कुम्भकारकुक्कुटस्तु, कुक्कुभैः कुहकत्वनैः । पक्षिणा येन गृह्यन्ते, पक्षिणोऽन्ये स दीपकः ॥१३४२॥ छेको गृह्याचे ते गेहासता ये मृगपक्षिणः । इति खचराः पञ्चेन्द्रियाः। मत्स्यो मीनैः पृथुरोमा, झपो वैसारिणोऽण्डनः ॥१३४३॥ सङ्घचारी स्थिरजिई, आत्माशी स्वकुलःथः । विसौरः शकली शल्की, शम्रोऽनिमिषस्तिभिः १३४ १ सहस्रदंष्ट्रे वादालः, पाठीने' चित्रवल्लिकः। शकुले' स्यात्कलकोऽथ, गडकैः शकुलार्भकः ।।१३४५॥ उलूपी शिशुके प्रोष्ठी, शफरः श्वेतकोलके । नलमीनश्चिलिचिमो, मत्स्यरानस्तु रोहितः ॥१३४ ॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः " मद्गुरेस्तु राजशृङ्गेः शृङ्गी' तु मङ्गुरप्रियो । क्षुद्राण्डमत्स्यजातं तु, पोताघानं जलाणुकमै ॥ १३४७१ महामत्स्यास्तु चीरिल्लितिमिङ्गिलगिलादयः । ॥ १३४९ ॥ अथ यादांसि नकाद्या, हिंसका जलजन्तवः ॥१३४८ ॥ नक्रः कुम्भीरे आलास्यैः, कुम्भी महामुखोऽपि च । तालुजिहुः शङ्खमुखो, गोमुख जलसुकरः शिशुमारस्त्वम्बुकर्म, उष्णवीर्यो महावः । उद्रस्तु जलमाज्जारैः पानीयनकुलो' वसी माहे तन्तुस्तन्तुनांगोsवहारो नागतन्तु । अन्येऽपि यादोभेदाः स्युर्वहवो मकरादयः कुलीरैः कर्कटैः पिङ्गचक्षुः पार्श्वोदरप्रियः । ॥ १३५० ॥ સ ε 14 द्विधागतिः षोडशाङ्घिः, कुरचिलौ बहिश्वरः ॥१३५२॥ ॥१३५१॥ LÊS ॥ १३५३॥ कच्छपः कमठेः कुर्मः, क्रोडपादश्चतुर्गतिः । पञ्चाङ्गगुप्त दौलेयौ, जीवर्थः कच्छपी दुली मण्डूके' 'हरिशालू प्येकेप्लवङ्गमः । वर्षाभू : वर्गः शांकुरनिव्य-दर्दुराः स्थले नरादयो ये तु, ते जले जलपूर्वकः । अण्डजाः पक्षिसर्पाद्याः, पोतनोः कुञ्जरादयः ॥१३५५॥ १२ ॥ १३९४॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८. अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः रसमा मथकीटाद्या, नृगवाया जरायुनोः । यूकाद्याः स्वेदनों मत्स्यादयः सम्मूर्च्छनोद्भवाः ॥१३५६॥ खलनास्तूद्भिदोऽथोपपादुको देवनारकाः । प्रसयोनर्य इत्यष्टावुद्भिदुद्भिज्जमुद्भिज ॥१३५७॥ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायामभिधानचिन्तामणौ नाममालायां तिर्यकाण्डश्चतुर्थः ॥ ४॥ अथ नरककाण्ड: म्युरिकौस्तु परेतप्रेतयात्यातिवाहिकोः । आजेविष्टिर्यातनी तु, कारणों तीववेदना ॥१३५८॥ नरकस्तु नारकः स्यान्निरयो दुर्गतिश्च सः । घनोदेधिधनवातंतनुवातनमःस्थिताः ॥१३५९॥ शर्करीवालुकापघूमत:प्रभाः । महातमःप्रमा चेत्यधोऽधो नरकभूमयः ॥१३६०॥ क्रमात्पृथुतराः सप्ताथ त्रिंशत्पञ्चविंशतिः । पञ्चदश दश त्रीणि, लक्षाण्यूनं च पञ्चमिः ॥१३६१॥ लक्ष पञ्च च नरकावासाः सीमन्तकादयः। एतासु स्युः क्रमेणाथ, पातालं' वडामुखम् ॥१३१२॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधामचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १८३ बलिवेश्मौधोमुने, नागलोको रसातलम् । रन्ध्र बिलं निर्व्ययन, कुहरं शुषिरं शुषिः ॥१३६३॥ छिद्रं रोपं विवरं च, निम्नं रोके वर्षोंन्तर । गतश्वनौवटीगाँधस्तु विवरे भुवः ॥१३६४॥ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायामभिधानचिन्तामणौ नाममालायां नरककाण्डः पञ्चमः ॥ ५॥ अथ सामान्यकाण्डः । स्याल्लोको विष्टपं विश्व, भुवनं जगतो जगत् । जीवाजीवाधारक्षेत्र, लोकोऽलोकस्ततोऽन्यथा ॥१३६५॥ क्षेत्रझै आत्मौ पुरुषैश्चेतन: स पुनर्भवी'। जीवः स्यादसुमा सत्वं', देह जन्युनन्तवः ॥१३६६॥ उत्पत्तिजन्मजनुषी, जननं जनिद्रवः । जीवेऽसुनीवितप्रा), जीवातुं जीवनौषधम् ॥१३६७॥ श्वापस्त श्वसित सोऽन्तर्मुख उच्छ्रास आहरैः । आनो बहिर्मुखस्तु स्यान्निःश्वाः पाने एतनैः॥१३१८॥ आयुनर्जीवितकालोऽन्तःकरण मान मनैः । हेचतो हृदयं चित्तं, स्वान्तं गढपयोच्च ॥१३६९॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः १८४ मनसः कर्म सङ्कल्पैः स्यादथो शर्म 3 सात सौख्यं सुखं दुःखं, स्वसुखं वेदना व्यर्थी ॥ १३७०॥ पीडा बाधऽतिशभील", कृच्छ्रं कष्टं प्रसूतिज॑म् । Q २ निर्वृतिः । आमनस्य प्रगाढं च स्यादीधिर्मानसी व्यथा ॥ १३७१॥ सपत्राकृति - निष्पत्राकृती त्वत्यन्तपीडने । क्षुज्जाठराग्निजा पीडा, व्यापादो' द्रोहचिन्तनम् ॥ १३७२ ॥ उपज्ञा ज्ञानमाद्यं स्याच्च सङ्ख्याँ विचारणा । वासना भावना संस्कारोऽनुभूताद्यविस्मृतिः ॥ १३७३ ॥ निर्णयो' निश्रयोऽन्तः सम्प्रधारणो समर्थनम् । भविथोऽहम्मेन्यज्ञाने, भ्रान्तिमिध्यामेतिभ्रमैः ॥ १३७४ ॥ सन्देहेद्वापरोऽरेको, विसिनः । परभागों गुणोत्कर्षो, दोषे वादीनेवाश्रवौ ॥१३७२ ॥ स्याद् रूपं लक्षणं मावैश्वात्प्रकृतिरीतयः । 3 सहजो रूपतत्त्वं च धर्मसग निसर्गवत्' १२ १३ १४. शीलं सतत्त्वं संसिद्धिरवस्था तु दर्शा स्थितिः । स्नेहः प्रीतिः' प्रेमहार्हे", दाक्षिण्यं त्वनुकूलता ॥ १३७७॥ विप्रतिसारोऽनुशयैः पश्चात्तापोऽनुताप । 3 अवघा समाधानप्रणिधानानि द ॥ १३७६॥ समाधौ स्युः ॥ १२७८ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ १५ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १८५ धर्मः पृण्यं वृषः श्रेय:सुकृते नियतौ विधिः । देवं भाग्य भागधेय, दिष्टं चीयस्तु तच्छुभम् ॥१३७९॥ अलक्ष्मीनिर्ऋति: कालकर्णिको स्यादथाशुभम । दुष्कृत दुरितं पामेनः पाप्मा च पातकम् ॥१३८०॥ किल्बिर्ष कलुषं किण्वं, कल्मषं वृजिनं तमः । अहः कल्कमध पळे, उपाधिधर्मचिन्तनम् ॥ १३८१ ।। त्रिवर्गो' धर्मकामार्थाश्चतुर्वर्ग:' समोक्षकाः । बलतुर्याश्चतुर्भद्र', प्रमादोऽनवधानता ॥१३८२॥ . छन्दोऽभिप्राय आतं, मतभावाशया अपि । हृषीकमक्ष करणं; स्रोतः ख विर्षगीन्द्रियम् ॥१३८३॥ बुद्धीन्दि मार्शनादि, गादि तु क्रियेन्द्रिय । स्पर्शादयस्विन्द्रियार्थी', विषयों गोच अपि ॥१३८४॥ शीते' तुषार: शिशिरैः, सुशीमः शीतलो जड़ः । हिंमोऽयोष्णे' तिमस्तीबस्तीक्ष्णश्चण्डः खः पटुः॥१३८५ कोणः कवोणेः कदुष्णो, मन्दोणश्चेषदुष्वत् । निष्ठु: कक्खटः क्रूरः, परुषः कर्कशः खरः ॥१३८६ ॥ हर: कठोर: कठिनो, जरठः कोमलः पुनः । मृदुलो मृमोमालेसुकुपारो अकर्कर्शः ॥१३८७॥ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः मधुरस्तु रसन्येष्ठो', गुल्यैः स्वार्दुधूलकैः । अम्लस्तु पाचनो' दन्तौठोऽथ लवणः सरः ॥१३८८॥ सर्वरतोऽथ कटु स्यादोषणो मुखशोधनः । वक्रभेदी तु तिक्तोऽथ, कषायस्तुवरो रसौः ॥१३८९॥ गन्यो' जनमनोहारी, सुरभिर्घाणतर्पणः । समावर्षी निहारी च, स आमोदो विदुरगः ॥१३९०॥ विमर्दोत्थः परिमलोऽथामोदी' मुखवासनः । इष्टगन्धैः सुगन्धिय, दुर्गन्धैः पूतिगन्धिकः ॥१३९१॥ आमगन्धि तु विस्त्रं स्याद्वर्णाः श्वेतादिका अमी । श्वे: श्येतः सितैः शुक्लो, हरिणो विश६ः शुचिः १३९२ अवदातगोरेशुभ्रवलक्षधवलार्जुनौ ।। पाण्डुः पाण्डे पाण्डुरीषत्पाण्डुस्तु धूमः ॥१३९३॥ कापोतस्तु कपोतामः, पीतस्तु सितरञ्जनैः ।। हान्द्रिः पीतलो गौरः, पीतनीले: पुनहरित ।।१३९४॥ पालाशो हरितस्तालकाभों रक्तस्तु रोहितः । माञ्जिष्ठो लोहितः शोण:, श्वेतरक्तस्तु पाटलः॥१३९५॥ अरुणो' बालसन्ध्यामः, पीतरक्तस्तु पिञ्जरैः । कपिल: पिङ्गल: श्याः, पिशङ्गः कपिशो हरिः १३९६ - ३ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः १८७ बो केंद्रुः कडारश्च, पिङ्ग कृष्णस्तु मेचकैः। स्याद्रामः श्यामले: श्यामः, कालो नीलोऽसितः शितिः ॥१३९७॥ रक्तश्यामे पुनधूनधूमलौवथ कर्बुः । किर्मीरे एतः शवलचित्र रमाईचित्रलाः ॥१३९८॥ शब्दो निनादो निर्घोषैः स्वानो ध्वानः स्वरो ध्वनिः । निर्दोदो निनदो हादो, निःस्वानो निःस्वनः स्वनः १३९९ वो नौदः स्वनिषिः, संन्याङ्गभ्यो राव आरवः ।। कणनं निवणः क्वाणो, निक्वाणश्च क्वगो रणः १४०० पडूनऋषभंगान्धारा', मध्यमः पञ्चमंस्तथा। धैवतो निषधः सप्त, तन्त्रीकण्ठोद्भवाः स्वगः ॥१४०१॥ ते भन्द्रमध्यतारीः स्युरु:कण्ठशिरोद्भवाः । रुदित कन्दितं क्रुष्ट, तदपुष्टं तु गहरै। शब्दो गुणानुरागोत्थः, प्रणा३: सीत्कृतं नृणाम् । पर्दन गुदजे शब्दे, कर्दन कुक्षिसंभवे ॥१४०३॥ श्वेडी तु सिंहनादोऽथ, क्रन्दनं' भटध्वनिः । कोलाहलेः कलकलस्तुमुलो' व्याकुलो रवः ॥१४०४॥ ।१४०२॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः मर्मरो' वस्त्रपर्णादेर्भूषणानां तु शिञ्जितम् । हेषी हेषो तुरंगाणां, गजानां गर्जबृंहिते ॥१४०५॥ विस्फारों' धनुषां हम्भारम्भे गोर्जलदस्य तु । स्तनितं गर्जितं गर्जिः, स्वनितं रसितादि च ॥१४०६॥ कूजित' स्याद्विहङ्गानां, तिरश्चां रुतवासिते । वृषस्य रेषण' रेषा, बुक्कणं भषणं शुनः ॥१४०७॥ पीडितानां तु कणित', मणितं' रतिकूजितम् । प्रक्वार्णः प्रवर्णस्तन्त्र्या, मर्दलस्य तु गुन्दलैः ॥१४०८॥ सीजनं तु श्री चकानां, मेर्या नादस्तु दरः ।। आरोऽन्युचर्ध्वनिर्मन्द्रो', गम्भीरो मधुरः कः ॥१४०९॥ काकली तु कल: सूक्ष्म, एकतालो' लयानुगः । काकुर्वनिविकारः स्यात्प्रतिश्रुत्तु प्रतिध्वनिः ॥१४ १०॥ सङ्घाते' प्रकरौघैवानिकरव्यूहाँः समूहश्चर्यः, सन्दोहः समुदायरोशिविसरबातोः कलापो" नः । कूट मण्डेलचक्रवॉलपटलेस्तोमी गे: पेटके', वृन्द चक्रकेदेम्बके समुदयः (जोत्करौ संहतिः ॥१४११॥ तात्कर Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १८९ समवायर्यो निकुरम्ब, जालं निवेहसञ्चयौं। जातं तिरश्चां तथं, सङ्घसार्थों तु देहिनाम् ॥१४ १२॥ कुलं' तेषां सजातीनां, निकायस्तु सधर्मिणाम् । वर्गस्तु सदृशां स्कन्धो', नरकुञ्जरवाजिनाम् ॥१४१३।। ग्रामो' विषयशब्दास्त्रभूतेन्द्रियगणाद् बजे । समस्तु पशूनां स्यात्समानस्त्वन्यदेहिनाम् ॥१४१४॥ शुकादीनां गणे शौकमायूरतैत्तिरादयः ।। भिक्षादेभैक्षसाहस्रगार्मिर्णयौवोदयः ॥१४ १५॥ गोत्रार्थप्रत्ययान्तानां, स्युरौपगवोदयः ।। उक्षादेरौक्षकं मानुष्यकं वार्द्धकमौष्ट्रकम् ॥१४१६॥ स्याद्राजपुत्रक' राजन्यक राजकमाजकम् । वात्सकौरभ्रके' कावचिक कवचिनामपि ॥१४१७॥ हास्तिकं तु हस्तिनां स्यादापूपिकोद्यचेतताम् । धेनूनां धेनूकं धेन्वन्तानां गौधेनुकादयः ॥१४ १८॥ कैदारक' कैदारिक, कैदार्य्यमपि तद्गणे। ब्राह्मणादेाह्मण्यं, माणव्य वाडव्यमित्यपि ॥१४ १९॥ गणिकानां तु गाणिक्य, केशानां कैश्यकैशिके। अश्वानामाश्वेमश्वीय, पशूनां पार्श्वमप्यथ १४२०॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः व तुलवात्ये' वातानां गव्यां गोत्रे ' पुनर्गवाम् । पाश्योखल्यादि पाशादेः, खलादेः खलिनीनिभाः ॥ १४२१ ॥ जनतो बन्धुतो मानतो गनती सहायती । जनादीनां रथानां तु स्याद्रथ्यो रथकेट्यया ॥१४२२॥ राजिलेखाँ ततिर्वीर्थी, माल्यवलिपङ्कर्थः । 3 2 धोरणी श्रेण्युभौ द्वौ युगले द्वितयं द्वयम् ॥ १४२३ ॥ तु 1 गुर्गे द्वैतय द्वन्द्वं युग्मं यमलैयामले पशुभ्यो' गोयुगं युग्मे, परं षट्त्वे तु षड्गवैम् ॥ १४२४ ॥ परः शताद्योस्ते येषां परा सङ्ख्या शतादिकात् । १ 3 ४ e ।। १४२५ ॥ १२ 93 प्राज्यं प्रभूतं प्रचुरं, बहुलं बहु पुष्कलम् भूयिष्ठ पुरुई भूयो भूय्यदभ्रं पुरु स्किम् । स्तोकं झूले तुच्छैमल्पं, दभ्राणुतलिनानि च तनुं क्षुद्रं कृशं सूक्ष्मं, पुनः लक्ष्णं च पेलवम् । त्रुटी मात्रा लवों लेशः, कणो स्वं पुनर्लवे ॥ १४२७॥ अत्यल्पेऽपिष्ठेमल्पीयैः, कनीयो ऽणीये इत्यपि । ॥१४२६॥ १० १ दीर्घायते समे तुमुखे मृनमुद्धरम् प्रांशुच्छ्रितमुग्रं च न्यगे नीचे इस्वैपरे , ५ Ε ख कुन वामनं च विशालं तु विशङ्कटम तु विशङ्करम् २ ॥ १४२८ ॥ I । ॥ १४२९ ॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः १९१ 6 पृथूरु पृथुल व्यूढं, विकट पिपुलं बृहत् । १३ ર स्फारं वरिष्ठ विस्तीर्ण, ततं बैहुँ महद् गुरु || १४३० ॥ दैर्व्यमायामै आना है, आरोहस्तु समुच्छ्रयैः । उत्सेधै उदयोच्छ्राय", परिणाहो' विशालता ॥१४३१ । प्रपश्यामोगे विस्तारैव्यासः, शब्दे सविस्तरैः । समास्तु समाहारः, संक्षेपैः संग्रहोऽपि च सर्वे समस्तमन्यूनं समयं सकलं समम् । विश्वशेषाखण्डे कृत्स्नेपक्षाणि " निखिल खिले ॥ १४३३॥ ॥ १४३२ ॥ ४ ५ १३ 3 खण्डेऽर्देशक भित्ते, नेमशकंदलानि च । अशो' मागश्चे वण्ठैः स्यात्, पादैस्तु स तुरीयकः १४३४ २ 3 मलिनं कच्चरं म्लानं, कश्मलं च मलीमसम् । पवित्र पावने पूतं पुण्यं मेध्ये मोज्ज्वलम् ॥१४३५॥ विमलं' विशदं वीघ्रमेवदातमनाविलं । विशुद्धं शुचि चोक्षं तृ, निः शोध्यै मनवस्करम् ॥ १४३६ ॥ निर्णिक्तं शोधितं मृष्ट, मौत क्षालितैमित्यपि । सम्मुखीनमभिमुखं', परराचीनं पराङ्मुखम् ॥१४३७ ॥ 9 २ 3 ४ मुख्यं प्रकृष्टं प्रमुख प्रब, ये वरेण्यं प्रवरं । १२ १३ १४१५ १० 99 अनुत्तरं प्रागहरं प्रवेक, प्रधानमप्रेसरमुत्तमाये ॥१४३८॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकार: ग्रामय ग्रायग्रिमैनात्याग्यौनुत्तमान्यनवरौद्धयवरे २३ । प्रष्ठपैरार्द्धराणि श्रेयसि तु श्रेष्ठसत्तमे पुष्कलेंवत् ॥१४३९॥ स्युरुत्तरपदे व्यापृङ्गवर्षौंकुञ्जराः । सिंहशार्दूलनागाद्याँस्तल्लनच मतल्लिको १४१०॥ मचर्चिको प्रकाण्डो"द्वौ, प्रशस्यार्थप्रकाशकाः । गुणोपसर्ननोपांग्राण्यप्र(नेऽधर्म' पुनः ॥१४४१॥ निकृष्टेमणके गीश्वयं काण्डै कुत्सिते । अपकृष्ट प्रतिकृष्टं, याप्य रेकोऽवमं ब्रुव ॥१४४२॥ खेट पापशदं, कुपुर्य चेलम च। तदासेचनकै यस्य, दर्शनाद्दग् न तृप्यति ॥१४ ४ ३॥ चारु हारि' रुचिरं मनोहरं, वल्गुकान्तमभिरामचंधुरे । वामाच्यसुषमाणि' शोभनं २, मञ्जु मञ्जुलमनोरमाणि च सौंधुरम्य॑मनोज्ञानि, पेशल हृबैसुन्दरे । काम्यं कर्मे कमनीय, सौम्यं च मधुरं प्रियम् ॥१४४५॥ ॥१४४४॥ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः १९३ व्युष्टि: ' फैलमसार' तु, फल्गु शून्यं तु रिक्तकर्म । शुन्यं तुच्छे बशिकं च, निविडं तु निरन्तरमै ॥१४४६॥ 3 3 ५ निबिरीस बनं सान्द्रं, नीरन्ध्र बहले ढम् । गाढेम विरलं " चाथ, विरलं तनुं पेलवमे १ 3 E नवं नवीनं सद्यस्क, प्रत्य नेनूतने । १ नव्यं चाभिनवे जीर्णे, पुरातनं चिरन्तन में ४ E पुराणं प्रतनं प्रत्नं, जन्मूर्त उच्चावचं' नैकमेदैमतिरिक्तांधिके २ 1 मूर्त्तिते । मे ८ पार्श्व समीपं सविधं ससीमम्या सवेशन्ति कँसन्निकर्षाः ' । सदेशमभ्यमे सनीडेसे निधान्युपान्तं निर्केटोपकण्ठे १५ 93 .२० सन्निकृष्ट समर्थ्यादीम्यर्णान्यासन से निधी । अव्यवहितेऽनन्तरं, संसक्तमपटान्तरम् મ नेदिष्ठमतिकतमं विप्रकृष्टे परे पुनः । 9 3 दूरेऽतिदूरे दविष्ठं, दवीयोऽय समातनम् १३ ॥१४४७ ॥ ॥ १४४८ ॥ ॥१४४९ ॥ ॥ १४१० ॥ ॥ १४५१ ॥ ॥१४५२॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ भभिधानचिंतामणौ तिवाण्डः शाश्वानश्वरे नित्यं, ध्रुवं स्थेयस्त्वतिस्थिरम् । स्थाम्न स्थेष्ठ तस्कूःस्थं', कालव्याप्येकरूपतः ॥१४५३॥ स्थावरन्तु बङ्गमान्यज्जङ्गमं तु असं चरैम् । चराचरं नगेंदिङ्ग, चरिष्णुं चाय चञ्चलम् ॥१४५४॥ तरल कम्पनं कम्प्रं, परिप्लवैचलाचले । चटुलं चपले लोल, चलें पारिप्लास्थिरे ॥१४५५॥ ऋनीवनिप्रगुणांववाग्रेऽवनतीनते ।। कुञ्चितं नमाविद्धं, कुटिले वक्रेवेल्लिते ॥१४५६॥ वृजिनं भगुरं मुग्नमैरालं नि मूर्मिम । अनुगेऽनुपर्दान्वक्षान्वश्चयेकाक्येक एककैः ॥१४६७॥ एकात्तानीयनसर्गाण्यैकाग्रं च तद्गतम् ।। अनन्यवृत्त्येकायनगत चाथायमादिम ॥१४५८॥ पौरस्त्यं प्रथम पूर्वमादिरग्रंमचान्तिमम् । जघन्यमन्त्य चरममन्तः पाश्चात्यपश्चिमे ॥१४५९॥ मध्यम पाध्यमं मध्यमीयं माध्यन्दिनं च तत् । अम्यन्तरमन्तरालं, विचाले मध्येमन्तरे ॥१४६०॥ तुल्यः समानः सदृक्षः, सस्पैः सदशः समः । साधारणसधर्माणौ', सर्वर्णः सन्निभः सह ॥१४६१॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधामचिंतामणौ तिर्यकाण्डः १९५ स्युरुत्तरपदे प्रख्यः, प्रकारैः प्रतिमो निमः । भतेर पोपमाः काशः, सं-नी-प्र-प्रति-तः परः ॥११६२॥ औपम्यमनुकौरोऽनुहारैः साम्य तुलोपर्मा । कक्षोपमानमर्चा तु, प्रतेर्मा यातनौ निधिः ॥१४६३॥ छायाँ छदैः कायो रूपं, बिम्ब मीनकृती अपि । सूर्मी स्थूगोऽयःप्रतिमा, हरिणी' स्याद्धिरण्मयी॥१४६४॥ प्रतिकूलन्तु विलोममपसव्यमपष्ठुरमें । वाम प्रसव्यं प्रतीपं”, प्रतिलोममपष्टुं च ॥१४॥५॥ वाम शरीरेऽहं सव्यमपसव्यन्तु दक्षिणम् । भनाधोच्छृङ्खलोहामान्ययन्त्रितमनर्गलम् ॥१४६६॥ निरङ्कुशे स्फुटे' स्प?, प्रकाश प्रकटोरवणे । *क्तं वर्तुलं तु वृत्तं, निस्तल परिमण्डलम् ॥१४६७॥ बन्धुरं तून्नतानतं, स्थपुटं विषमोन्नतम् ।। अन्यदन्यतरैक्निं, त्वमेकॅमितरच तत् ॥१४१८॥ करम्भः कवरो' मिश्रः, सम्मृतः खचितः समाः । विविधस्तु बहुविधो', नानारूपः पृथग्विधः ॥१४६९॥ त्वरित मत्वरं तूर्ण, शीघ्र क्षिप्रं द्रुत लर्छ । चपलाविलम्बिते' च, झम्पा सम्पातपाटवम् ॥१४७०॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्ड: अनारतं त्वविरतं, संसक्तं सतता निशे । नित्यानवरतानातक्ताश्रान्तीनि सन्ततम् ॥१४७१ ।। साधारण तु सामान्य, दृढसन्धि तु संहतम् । कलिलं गहने सङ्कीर्णे तु सङ्कुलैमाकुलम् ॥१४७२॥ कीर्णमाकीर्ण च पूर्णे, त्वाचित छन्नैपूरित । मरितं निचितं व्याप्त, प्रत्याख्याते निराकृतम् ॥१४७३॥ प्रत्यादिष्ट प्रतिक्षिप्तमपविद्धं निरस्तवत् । परिक्षिप्ते वलयितं, निवृत्तं परिवेष्टितम् ॥१४७४॥ परिष्कृतं परीत च, त्यक्तं तूत्सृष्टैमुन्झितम् । धूर्त हीने विधूतं च, विन्नं वित्त विचारित ॥१४७५॥ अवकीणे त्ववध्वस्त, संवीते रुद्धमावृतम् । संवृतं पिहित छन्न, स्थगित चापवारित ॥१४७६ ॥ अन्तर्हित तिरोहितमन्तैद्धिस्त्वपवारणमै । छदनैव्यवधाऽन्तििपधानस्थगनानि च । व्यवधानं तिरोधानं, दर्शितं तु प्रकाशितम् । आविष्कृत प्रकटितैमुच्चण्ड' स्ववलम्बितम् ॥१४७८॥ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः C.. अनादृतमवात् ज्ञात, मानित गणित मतम् । रीढोऽज्ञोऽवहे लॉन्यसूक्षण चाप्यनादरे ॥१४७९॥ उन्मूलितमावहि, स्यादुत्पाटितमुद्भुतम् । प्रेडोलितं तरलितं, लुलितं प्रेङ्कितं धुतम् ॥१४८०॥ चलित कम्पितं धृतं, वेल्लितान्दोलिते अपि । दोली प्रेजोलनं प्रेजो, फाण्टं कृतमयत्नतः ॥१४८१॥ अधःक्षिप्त न्यञ्चित स्यादुर्द्धक्षिपमुदश्चितम् । नुन्ननुत्तास्तनिष्ठ्यूान्याविद्धं क्षिप्तमीरितम् ॥१४८२॥ समे दिग्धेलिप्ते रुग्णमुग्ने रूपितंगुण्डिते । गूढगुप्ते च मुषितमूषित गुणिताहते . ॥१४८३॥ स्यान्निशाल शितं शातं, निशित तेजित श्णुतम् । वृत्ते तु वृत्तवावृत्तौ, हीतहीणौ तु लजिते ॥१४८४॥ सट्टैः स्यात्सङ्कलिते, संयोजित उपाहित । पक्के परिणतं पाके, क्षीराज्यहविषां शृतम् ॥१४८५॥ निष्पक्वं कथिते प्लुटष्टदग्धोषितॊः समाः । तहत वटैतष्टी, विद्ध छिद्रितवेधितौ l २ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः सिद्धे निवृत्तनिष्पन्नौ, क्लिीने द्रुतविद्रुतौ । उतं प्रोते स्यूतमूतमुप्तं च तन्तुसन्तते ॥१४८७॥ पाटितं दौरितं भिन्ने , विदरः स्फुटनं भिदौ । अङ्गीकृतं प्रतिज्ञातमूरीकृतोररीकृते ॥१४८८॥ संश्रुतैमभ्युपगतमुररीकृतमाश्रुतम् । सङ्कीर्ण प्रतिश्रुतं च, छिन्ने लूनं छित दित ॥१४८९॥ छेदित खण्डित वृक्ण, कृत्तं प्राप्तं तु भाक्तिम् । लब्धमासादित भूत, पतिते गलितं च्युतम् ॥१४९०॥ स्रस्तं भ्रष्टं स्कन्नपन्न, संशितं तु सुनिश्चितम् । मृगितं मार्गिोन्विष्टान्विषितानि गवेषिते ॥१४९१॥ तिमिते स्तिमितैक्लिन्नौोिन्नाः समुन्नवत् । प्रस्थापित प्रतिशिष्ट, प्रहितप्रेषिते अपि ॥१४९२॥ ख्याते प्रतीतप्रज्ञातविर्त्तप्रथितविश्रताः । तप्ते सन्तापितो दुनो, धूपायितश्च धूपितः ॥१४९३॥ श्रीने स्स्यानमुपनतस्तूपसन्चे उपस्थितः । निर्यातस्तु गते वाते, निर्वाणः पावकादिषु ॥१९॥ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानभित्तोमणौ तिचा प्रवृद्धमेधित प्रौद, विस्मृतान्तर्गत समे। उद्वान्तमुद्गते गर्न, हने मीढं तु मूत्रिते ॥१४९५॥ विदित बुधित बुद्धं, ज्ञातं तिगत अवात् ।। मुनित प्रतिपन्न च, स्यन्ने रीणं उतं श्रुतम् ॥१४॥६॥ गुप्तगोपायितैत्रातावितत्राणानि रक्षिते । कर्म क्रिया विधा हेतुशून्या वास्या विलक्षणम्॥१३९७ कार्मणं' मूलकीथ, सम्बनने वशक्रियो । प्रतिबन्धे' प्रतिष्टम्भः, स्यादास्याऽस्योऽपनी स्थितिः ।। परस्परं स्यादन्योऽन्यमितरेतरैमित्यपि । अवेशोटोपो' संरम्भ, निवेशो रचना स्थितौ ॥१४९९॥ निबन्धोऽभिनिवेशः स्यात्प्रवेशोऽन्तर्विगाहनमें। . गतौ' वीडा विहारपैिरिसर्पपरिक्रमाः ॥१५००॥ वन्याऽटाट्या पर्यटन, चर्या' त्वीर्यापथस्थितिः । व्यत्यासस्तु विपर्यासो, वैपरीत्य विपर्यायः ॥१५०१॥ व्यत्ययेऽथ स्फीतिवृद्धौ', प्रीणेनेऽवनेतर्पणे । परित्राण' तु पर्याप्तिहस्तधारणमित्यपि ॥१५०२॥ प्रणतिः' प्रणिपातोऽनुनयेऽथ शयने क्रमात् । विज्ञाय उपशायश्चै, पर्यायोऽनुक्रमः क्रमः . ॥१९०३॥ Www.jainelibrary.org Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २.० अभिधानचिंतामणौ निर्यकार: परिपाट्यानुपूर्योदतिपातस्त्वतिक्रमः। उपात्ययः पर्यायचे, समौ सम्बाधै सङ्कटौ ॥१५०४॥ काम प्रकामं पर्याप्त, निकोंमेष्टे यथेप्सितम् । अत्यर्थे गाढमुद्राढे, बाद ती भृशं दृढम् ॥१५०५॥ अतिमात्रातिमर्दिनितान्तोत्कर्षनिर्भराः । भरैकान्ततिबेलौतिशयों जृम्भौ तु जृम्भणम् ॥१५०१॥ आलिङ्गन' परिष्वङ्गः, संश्लेष उपगृहनम् । अङ्कपाली परीरम्भः, क्रोडीकृति रथोत्सवे महः क्षणोद्धेवोद्धर्षा, मेलके सङ्गसङ्गमौ । अनुग्रहोऽभ्युपपत्तिः, समौ निरोधैनिग्रहः ॥१५०८॥ विनेऽन्तरार्थप्रत्यूहव्यवार्योः समये क्षणः । वेलौवा ववसरः, प्रस्तावः प्रमोऽन्तरम् ॥१५०९॥ अभ्यादानमुपोद्घात, आरम्भः प्रोपतः क्रमः । प्रत्युत्क्रमः प्रयोगः स्यादारोहण त्वमिक्रमः ॥१९१०॥ आक्रमेऽधिक्रमकान्ती, व्युत्क्रमस्तूत्क्रमोऽक्रमः । विसम्मो विप्रयोगो, विवोगो विरः समाः ॥१५११॥ ॥१५०७॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः २०१ आमा राढी विभूषी श्रीरभिख्या हातिविभ्रमाः । लक्ष्मी छायां च शोभायां, सुषमा साऽतिशायिनी १५ १२ संस्तवः स्यात्परिचय, आकारस्त्विङ्ग इङ्गितम । निमित्त कारणं हेतु/न योनिर्निबन्धन ॥१५१३॥ निदानमथ कार्य' स्यादैर्थः कृत्य प्रयोज में । निष्ठानिर्वहणे तुल्ये, प्रवहो' गमनं बहिः ॥१५१४॥ जातिः' सामान्य व्यक्तिस्तु, विशेषः पृथगास्मिको । तिर्यक् साचिः संहर्षस्तु, सार्की द्रोहस्त्वपक्रियो १५१५ वन्ध्ये मोघाफलमुधों, अन्तर्गडे निरर्थकम् । संस्थान' सन्निवेशः स्यादर्थस्थापगमे व्ययः ॥१५१६॥ सम्मूर्छन त्वभिन्याप्तिधेशो अंशों यथोचितात् । अभावो नाशे संकामसंकमी दुर्गसञ्चरे ॥१५१७॥ नीवा कस्तु प्रयामः स्यादवेक्षी प्रतिजागरः । समौ विश्रम्भविश्वासौ', परिणामस्तु विक्रिया ॥१५१८॥ चक्रावर्ती भ्रमो भ्रान्तिर्धमिवूर्णिश्च घूर्णने । विप्रलम्भो विसंवादो', विलम्भस्त्वतिसर्जनम् ॥१५१९॥ उपलम्भस्त्वनृमवेः, प्रति सम्भस्तु लम्भनम् । नियोगे विधिसम्प्रेषौ, विनियोगोऽर्पणं फले ॥१५२०॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः लेवोऽभिलावो लवन, निष्पावैः पवन पवैः । निष्ठेवष्ठीवनैष्ठ्यूतष्ठवनानि तु थूत्कृते ॥१५२१॥ निवृत्तिः स्यादुपरमो, व्यवोपाभ्यः परा रतिः । विधूननं विधुवनं, रिङ्खण स्खलनं समे ॥१५२२॥ रक्ष्णस्त्राणे ग्रहो ग्राहे, व्यधो वेधे क्षये क्षियो । स्फरणं स्फुरणे ज्यानिजीर्णावय वरो वृतौ ॥१५२३॥ समुच्चयः समाहोरोऽपहारीपचयो समौ । प्रत्याहार उपादान, बुद्धिशक्तिस्तु निष्क्रमः ॥१५२४॥ इत्यादयः क्रियाशब्दा, लक्ष्या धातुषु लक्षणम् । अथाव्ययानि वक्ष्यन्ते, स्वः स्वर्गे भू रसातले ॥१५२१॥ मुवो' विहायसी व्योम्नि, द्यावाभूम्योस्तु रोदसी' । उपरिष्टोदुपयुंर्द्ध, स्याद_स्तादधोऽप्यवाक् ॥१५२६॥ वर्जने त्वन्तरेणर्ते', हिरु नानों पृथग विना । साकं सत्रो सम सार्द्धममा सह कृतं त्वलम् ॥१५२७॥ भवत्वस्त च किंतुल्याः, प्रेत्यांमुत्र भवान्तरे । तूष्णीं' तुष्णीकां जोषं च, मौने दिष्टयों तु सम्मदे ॥ ॥१५२८॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचितामणौ तिर्यक्काण्डः ૧ ४ 3 परितः सर्वतो विष्वक्, समन्ताचे समन्ततः । पूरेः पुरस्तात्पुरतोऽयैतः प्रायस्तु भूमनि साम्प्रतेमधुनेदानीं ", सम्प्रेत्ये तथाञ्जसा । द्राक् सागरं झटित्या, महार्थं च सत्वरम् ॥११३० ॥ सदी सनोऽनिशं शश्वदें, भूयोऽभीक्ष्णं पुनः पुनः । असकृन्मुहुः सायं तु दिनान्ते दिवसे दिवा ॥ १५३१ ॥ सहसैकपदे सद्योऽकस्मात सपदि तत्क्षणे । . चिराये चिररात्रायें, चिरस्यै च चिञ्चिरम् ॥१९३२॥ चिरेण दीर्घकालार्थे, कदाचिंजातु कर्हिचित् । दोषी नक्तेषाँ रात्रौ प्रगे' प्रीतरहर्मुखे तिर्य्यगर्थे तिरैः साचि', निष्फले तु वृथो मुधो । मृष मिथ्याऽनृतेऽवर्णे, समय निकष हिरुकै ॥१९३४ ॥ शं' सुखे बलवत्सुष्ठु किमुताती निर्भरे । ॥। १५३३ ॥ ॥१५३५॥ 3 प्राके पुरी प्रथमे वर्षे संवत् परस्परे मिर्थः उषो निशान्तेऽल्पे किञ्चिन्मनोगीषच्चै चिर्ने । आहो उताहो किमुतें, वितर्के किं किमूर्त च ॥ ११३६ ॥ इति स्यात्संप्रदाये, हेतौ यत्तद्यतस्ततः । सम्भो सम्बोधने २०३ ॥१५२९॥ ५ भोः प्यार्ट पॉट, है है हो अरे रे ॥ ॥ ११३७॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः औषटै वौषटै वषटै स्वाहाँ, स्वों देवहवि तौ । रहस्युपांशु मध्येऽन्तरन्तरेणान्तरेऽन्तरों ॥१५३८॥ प्रादुरी विः प्रकाशे स्यादभावे त्वं न नौ नहि । हठैः प्रप्सर मी मास्मै, वारणेऽस्तमदर्शने ॥१५३९॥ अकामानुमतौ काम, स्यादों आं परमं मते । कच्चिं दिष्ट परिप्रश्नेऽवश्य नूनं च निश्चये ॥१५४०॥ बहिर्बहिर्मवे खैः स्यादतीतेऽह्नि श्वै एष्यति ।। नीचैररूपे महत्युच्चैः', सत्वेऽस्ति दुष्ठु निन्दने ॥१५४१॥ नच्च स्याद्विरोधोक्तौ, पक्षान्तरे तु चेयेदि । शनैपन्देऽबरे त्वाक , रोषोक्तावूनतौ नमः ॥१५४२॥ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायामभिधानचिन्तामणौ नाममालायां सामान्यकाण्ड: षष्ठः समाप्तः ॥६॥ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्यवर्यश्रीहेमचन्द्रविरचिता । शेषनाममाला ॥ प्रणिपत्यार्हतः सिद्धसांगशब्दानुशासनः । शेषाख्यनाममालाया, नामानि प्रतनोम्यहम् ॥१५४३॥ निर्वाणे स्यात् शीतीमावः शांतिनैश्चिन्त्यमंतिकः । शिष्ये छात्रो भद्रे मध्यं, काम्यं सुकृतसूनृते ॥१५४४॥ फलोदेयो मेरुष्ठं, वासावाससैरिको । दिदिविर्दीदिविद्युश्च, दिवं च स्वर्गवाचकाः ॥१५४९॥ निलिंपीः कामरूपाश्च, साध्याः शोभॊश्चिरायुषैः । पूजिता मर्त्यम हिताः, सुवाली वायुभोः सुराः ॥१५४६॥ द्वादशार्का वसवोऽष्टौ, विश्वे देवास्त्रयोदश । षट्त्रिंशत्तुषिताश्चैत्र, षष्टिराभास्वग अपि ॥१५४७॥ पट्त्रिंशदधिके माहाराजिकाश्च शते उभे । रुद्रा एकादशकोनपंचाशद्वायवोऽपरे ॥१९४८॥ चतुर्दश तु वैकुंठाः, सुशर्माणः पुनर्दश । साध्याश्च द्वादशेत्याधा, विज्ञेया गणदेवताः ॥१५४९।। For Private & Personal Use Onły Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः सूर्ये वाजी लोकधुर्भानेमिर्मानुकेशरः । सहस्रांको दिवापुष्टः, कालभूद्रात्रिनाशनः ॥१५५०॥ वधीः सदागतिः पीतुः, सांवत्सरेरथः कपिः । दृशानः पुष्करो ब्रह्मा, बहुरूपश्च कर्णसूः ॥१५५१॥ वेदोदेयः खतिलकः, प्रत्यूषोडं सुरावृतः । लोकप्रकाशनः पीथो, जगद्दीपोऽजुतस्करः ॥१५५२॥ अरुणे विपुलस्कंधो, महासारथिराश्मनः । चंद्रस्तु मास्तपोरानौ, शुभांशुः श्वेतवाहनः ॥१५५३॥ जर्णः संप्रो रानजो, यजतः कृत्तिको भवः । यराडौषधीगर्भः, तपसः शयतो बुधः ॥१५५४॥ स्वदः स्वसिंधुः सिंधूत्यः, श्रविष्ठारमणस्तथा । आकाशमसः पीतः, क्लेदुः पर्वरिचिक्लिदौ ॥१५५५॥ परिया युवनो नेमिश्चंदिरः स्नेहुरेकभूः । भौमे न्योमोलमुकैकांगौ, गीष्पतिस्तु महामैतिः ॥१५५६।। प्रख्याः प्रचैमा वागें वाग्ग्मी, गौरी दीदिविगीरथौ । शुक्रे भंगुः शनौ पंगुः, श्रुतकर्मा महाँप्रहः ॥१५५७॥ श्रुर्तश्रवोऽनुमः कॉलो, ब्रह्मण्यश्च यमः स्थिरैः । कुरामा चाथ राहौ स्यादुपराग उपप्लवः ॥१५५८॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषनाममालायाम् । २०७ केलाय कनो न्योतीरथग्रहांश्रयो ध्रुवे । अगस्त्ये विध्यकूटः स्याद् ,दक्षिणाशारैतिर्मुनिः ॥१५५९॥ सत्याग्निर्वारुणिः क्वांथिस्तपैनः कलशीसुतः । ब्युष्टे निशास्ययगोसौं निशि चक्रभेदिनी ॥१५६०॥ निषेद्ररी निशीथ्या निई, घोरो वासरन्यका । शताक्षी राक्षसी याम्या, पूताचिस्तामैसी तमिः२१९६१ शविरी क्षेणिनी नक्तं, पैशाची वासुरा उशीः । दिनास्ययः प्रदोषे स्याद् , ध्वांते वृत्रोरजोबलम्॥१५६२।। रात्रिरोगो नीलपंको, दिनोंडं दिनकेसरः ।। खपरागो निशावर्म, वियभृतिदिगंबरः ॥१९६३॥ पक्षः कृष्णः सितो द्वेषा, कृष्णो निशाह्वयोऽपरः । झुक्को दिवाइयः पूर्वो, मासे वर्षोशको भवेत् ॥१५६४॥ वर्षकोशो दिनमल:, फाल्गुनालस्तु फाल्गुने । मैत्रे मोहनिकः कामसेखश्च फाल्गुनाजः ॥१५६५॥ वैशाखे तूसेरो ज्येष्ठमासे तु खरकोमलः । ज्येष्ठामूलीय इतिच, कार्तिके 'सैरिकोसुंदौ ॥१५६६॥ हिमागमस्तु हेमंते, वसंते पिकाधवः । पुष्पसाधारणश्यापि, ग्रीष्मे तूष्मायणो मतः ॥१५६७॥ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ ममिधानचिंतामणी तिर्यकाण्डः आँखोरपद्मौ वर्षे तु, ऋतवृत्तिर्युगांशकः । कालग्रंथिर्मासमलः, संवत्सर्वर्तुशारदौ ॥१५६८॥ प्स इडसर इडावत्सरः परंवाणिवत् । नक्षत्रवमनि पुनर्ग्रहेनेमिनभोवंटी ॥१५६९॥ छायाँपधश्च मेघे तु, व्योमधूमो नमोद्धनः । गडयित्नुर्गदयित्नुमिसिरिवाहनः ॥१६७०॥ खतमालोऽप्यथासारे, धारासंपात इत्यपि । करकेऽम्बुधनो मेघकैफो मेधास्थिमिनिका ॥१६७१॥ बीजोक तोडिभो, वर्षाची अमिरावरम् । यथा परेतरा पूर्वा, परा पूर्वेतरी तथा ॥१५७२॥ यथोत्तरेतरराऽपाची, तथाऽपाचीतरोत्तरा ।' इंद्रे तु खैदिरो नेरी, त्रायस्त्रिंशपैतिर्नयः ॥१५७३॥ गौरावस्कंदी बन्दीको, बराणो देवदंदुभिः । किणालीतश्च हरिमान् , योमैनेमिरसन्मही: ॥१५७४॥ शंपीविमिहिरो वजेदेक्षिणो वयुनोऽपिच । स्यात्पौलोम्यां तु शक्राणी, चारुधारा शतावरी।।१५७५॥ महेंद्राणी परिपूर्णसहस्रचंद्रवत्यपि । जयंते यागसंतानो, वृषणाबो हरेहये Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषनाममालायाम्। . मातलौ हयंकषः स्यादैरावणे मदावरैः । सदादानो भद्ररेणुः, पुरे वैद्रे सुदर्शनम् । ॥१५७७॥ नाशिक्ययोस्तु नासत्यदस्रौ प्रवरवाहनौ । गदातको यज्ञवहौ, यमे तु यमुनाग्रजः ॥१५७८॥ महासत्यः पुराणांतः, कालकूटोऽथ राक्षसे । पलप्रियः खसापुत्रः, कर्बरो नरविध्वणः ॥१९७९॥ भाशिरो हर्नुषः शंकुर्विधुरो जललोहितः । उद्धरः स्तब्धसमारो, रक्तश्रीवः प्रवाहिकः ॥१५८०॥ संध्यालो रात्रिबलत्रिशिरौंः समितीपेक्ष । घरुणे तु प्रतीचीशो, दुंदुभ्युद्दामसंधूताः ॥१९८१॥ धनदे निधनोक्षः स्यान्महासत्त्वः प्रमोदितः । गर्भ उत्तराशोधिपतिः सत्यसंगरः ॥१५८२॥ धनकेलिः सुप्रसनः, परिविद्धोऽलका पुनः । वपुप्रैमा बमुसारा, शंकरे नंदिवर्द्धनः । ॥१५८३॥ बहुरूपैः सुप्रसौदो, मिहिराणोऽपरीजितः । कैकटीको गुह्मगुरुर्भगनेत्रांतकः खः ॥१५८४॥ परिणीहो दशबाहः, सुभगोऽनेकलोचनः । गोपोलो वरवृद्धोऽहिपर्यंकः पांसुचंदन ॥१९८५॥ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१. अमिधानर्षितामणौ तिर्यकाण्डः कूटन्मंदरमणिर्नवशक्तिर्महांबुकः । कोणवादी शैलधेन्वा, विशालाक्षोऽक्षतस्वैनः ॥१५८६॥ उन्मत्तवेषः शबरः, सितांगो धर्मवाहनः । महांकांतो वह्रिनेत्रैः, स्त्रीदेहों॰ नृवेष्टेनः। ॥१५८७|| महानादो नराधारो, {रिरेकादशोत्तमः । मोटी जोटींगोऽर्द्धटः, समिरो धूम्रयोगिनौ ॥१५८८॥ उलंदो यतः कालो, जटाधरदशीव्ययौ । संध्यानटी रेरिहींणः, शंकुश्च कपिलांजनः ॥१५८९॥ जगेंद्रोणिरर्द्धकीलो, दिशांप्रियतमोऽतलः जगत्तेष्टा कौंटंकः, कहीरहँत्कः ॥१५९०॥ गौतमी कौशिकी कृणा, तामसी बाभ्रेवी जया । कालरात्रिमहामाया, भ्रामरी यादवी वरी ॥१५९१॥ बहिजा शूलधैरा, परमब्रह्मचारिणी । अमोघा विध्यनिलया, षष्ठी कांतावासिनी ॥१५९२॥ जांगुली बैदेरी वासी, वरदी कृष्णपिंगला । दृषद्वैतींद्रेभगिनी, प्रगल्भॊ रेवती तथा ॥१५९३॥ महाविद्या सिनीबोली, रक्तदंत्येकपाटला । एकैपर्णा बहु ना, नंदपत्री महाजया ॥१९९४॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ शेषनाममालायाम् । मकाली महाकाली, योगिनी गणौयिका। हासी भीमा प्रकूष्मांडी, गदिनी वारुणी हिमी १९९५ अनंती विजयाँ क्षेमा, मानस्तोको कुहाँवती । चारणी च पितृगणा, स्कंदमाता धनांनी ॥१५९६॥ गांधर्वी कर्बुरा गार्गी, सावित्री ब्रह्मचारिणी। कोटिश्रीमदर्शवासा, केशी मलयवासिनी ॥१५९७॥ कालायिनी विशालाक्षी, किराँती गोकुलोद्भवा । एकानसी नारॉयणी, शैली शौकंभरीश्वरी ॥१५९८॥ प्रकीर्णकेशी कुंडों च, नीलवस्त्रोचारिणी । भष्टादशभुमा पौत्री, शिदूती यमस्वसा ॥१५९९॥ सुनंदी विकचा लंबी, जयंती नकुला कुली। विलकी नंदिनी नंदा, नंदयंती निरंजनी १६००॥ कॉलंजरी शतर्मुखी, विकराली करालिका। विराः पुरला जारी, बहुपुत्री कुलेश्वरी ॥१६०१॥ कैटभी कालदमनी, दईरा कुलदेवता। . . रौद्री कुंदा महारौद्री, कालंगी महानिशा ॥१६०२॥ बलदेवस्वैसा पुत्री, हीरी क्षेमकरी प्रभा । मारी हैमवती चापि, गोला शिखरवासिनी ॥१६०३॥ ११८ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१९ अभिवानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः चामुंडायां महींचंडी, चंदेमुंडाऽप्यथाऽऽखुगे। पृश्निगर्भः पृश्नि,गो, द्विशरीरस्त्रिधातुकः ॥१६०४॥ हस्तैिमल्लो विषाणातः, स्कंदे तु करवीरकः । सिद्धसेनो वैनयंतो, बालचर्यो दिगंबरैः ॥१६०५॥ भंगी तु चर्मी ब्रह्मा तु, क्षेत्रज्ञः पुरुषः सनत् । नारायणे तीर्थपादः, पुण्यश्लोको बलिदमैः । ॥१६०६॥ उरुक्रमोरुगायौ च, तमोः श्रर्वणोऽपि वा। उदारथिलतापर्णः, सुभद्रः पांशुनौलिकः ॥१६०७॥ चतुव्यूहो नव-यूहो, नवशक्तिः षडैगनित् । द्वादशमूलः शतको, दशावतार एक के ॥१३०८॥ हिरण्यकेशः सोमोऽहिस्त्रिधीमा त्रिकर्षात् त्रिपौत् । मानरः पैराविद्धः, प्रग्निगर्भोऽपरी नितः ॥११.९॥ हिरण्यनीभः श्रीगैर्भो, वृषोत्साहः सहमित् । ऊर्ध्वकर्मा यज्ञवरो, धर्मनेमिरसंयुतः ॥१६१०॥ पुरुषो योगनिद्रौलुः, खंडात्यः शालिकोऽजितौ । कालकुंठो वस्रोहः, श्री कगे वायुाहनः ॥१६११॥ वर्द्धमानतुष्ट्रिो, नृसिंहपुरध्येयः। कपिलो भइकपिला, सुषेणः समितियः ॥१॥१२॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषनाममालायाम् । ऋतुधौमा वासुमद्रो, बहुँरूपो महाँक्रमः । विधाताऽऽधार एकांगो, वृषाक्षः Kषोऽक्षनः ॥१६१३॥ रंतिदेवः सिषो, जितमन्युकोः । पश्रृंगो रवगाहुः, पुष्पहासो महातपाः ॥१६१४॥ लोकनाभः सूक्ष्मनामो, धर्मनाभः पराक्रमः । पहासो महहिंसः, पगर्भः सुरोत्तमः ॥१६११॥ तिवीरो महीमायो, ब्रह्मनीमः सरीसृपः । वृंदाकोऽधोमुखो धन्वी, सुधन्वा विश्वभुक् स्थिरः ॥१६१० शतानंदः शरश्चापि, यवनौरिः प्रेमर्दनः । यज्ञनमिर्लोहिताक्ष, एकोविदः कपिः ॥१६१७॥ ऐक,गो यमकील, भासंदः शिवकीर्तनः । शेवंश: श्रीवरी हैंः, सदायोगी सुयोभुनः ॥१६१८॥ बलमद्वे तु मद्रीगः, फालो गुप्तचरो बली । प्रलापी भद्रटनः, पौरः शेषाहिनीमभृत् ॥१६१९॥ लम्यां तु भैरी विष्णुशक्तिः क्षीराब्धिमानुषी। कामे तु यौवनोद्भवः, शिखिमृत्युमहोत्सवः ॥१६२०॥ शमतिकः सर्वधन्वी, रागरन्जुः प्रकर्षकः । ममोवाही मयनम्ब, गल्लास्त विषाहः ॥१९२१॥ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः पैक्षिसिंहो महापैक्षो, महावेगो विशालकः । उन्नतीशः स्वमुखंभूः, शिलानीहोऽहिर्मुक सः ॥ १६ २२॥ बुद्धे तु भगवान् योगी', बुधो विज्ञानदेशनः । महासत्वो लोकनाथो, बोधिरर्हन् सुनिश्चित: ॥१६२३॥ गुणीब्धिविगतद्वंद्वो, वचने स्यात्तु जल्पितम् । लैपितोदितमणिताभिधानगदितान्यपि ॥१६२४॥ हूतौ हेक्कारकाऽऽकारौ, चांडालानां तु वल्ले की । कांडवीणा कुवीणों च, डकारी किनरी तथा ॥१६२५॥ सारिका खुर्खणी चाथ, दर्दरे कलेशीमुखः । सूत्रकोणो डमरुक, समौ पणव किंकणौ ॥१६२६॥ शृंगवाये शृंगमुखं, हुडेक्कस्तालमैर्दकः । काहलो तु कुहोला स्यात्, चंडकोलाहला च सा १६२७॥ संवेशप्रतिबोधार्थ, गवद्रकटावुभौ । देवतार्चनतूर्ये तु, धूमलो बैलिरित्यपि । ॥१६२८॥ क्षुण्णकं मृतयात्रायां, मांगले प्रियवादिका । रणोअमे त्वर्धतूरो, वाद्यभेदास्तथाऽपरे ॥१६२९॥ डिडिमो झझरो मस्तिमिला किरिकिच्चिका । लंबिका टहरी वेध्या, कलापूरावयोऽपिच ॥१६३०॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषनाममालायाम् पयंकरे तू उमेरमो मीलं मौसुरं तथा । आश्चर्ये फुल्लेकं मोहो', वीक्ष्यं कोतस्तु हग्जले ॥ १६३१ ॥ निद्रायां तामसी सुप्ते, सुष्वीपः सुखसुप्तिका । आकारगूहने चावकेटिकाऽत्रकुटारिका गृहजालिका सूत्रधारे स्याद्वीजदर्शकः । पूज्ये भरटेको मट्टैः, प्रयोज्यः पूज्यनामतः इति द्वितीयकांडशेषः ॥ २ ॥ ૨૨ चौरे तु चोरेडो रात्रिचरो याच्ञा तु अभिस्तिर्मार्गणाँच, बुमुक्षायां क्षुधा ॥१६३२॥ ॥१६३३॥ ॥ अथ तृतीयकांडशेषः प्रारभ्यते ॥ अथ प्रवीणे क्षेत्रज्ञो, नदीष्णो निष्ण इत्यपि । छेकालछे किलो छेके, काहेलोडस्फुटभाषिणि ॥१६३४॥ मूके जडकडौ मूर्खे, त्वेनेडो नामैवर्जितः । परतंत्रे वैशाऽऽयैत्तावधी नोऽप्यथ दुर्मते क्षुद्रो दीनेश्व नीचैश्य, माटिस्तु गणिकाभृतौ । प्रस्तुत्रस्तौ तु चकितेऽय क्षुद्रेप्रखलौ खले ॥ १६३६ ॥ मिक्षणा । ॥१६३५॥ ॥१६३७ ॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ अभिधामचिंतामणौ तिर्यकाण्डः मक्तमंडे तु प्रस्रावप्रस्वाऽऽछोटनाऽवाः । अपूपे पारिशोलोऽय, करंबो दधिसक्तुषु ॥११३८॥ ईडेरिका तु वटिका, शकुली त्वलोष्टिका । पर्पटास्तु मर्मराला, धृताडी तु धृतौषणी ॥१६३९॥ समिताखंडाज्यकृतो, मोदको बडुकैश्च सः ।। एलामरिचादियुतः, स पुनः सिंहकेसरः ॥१६४०॥ लाजेषु महेनोद्देषखटिकापरिवारकाः । दुग्धे योग्यं बालसात्म्य, जीवनीयं रसोत्तमम् ॥११४१॥ सर गव्यं मधुज्येष्ठं, धारोष्णं तु पयोऽमृतम् । दनि श्रीनमंगल्ये, तक्रे कट्टरसोरणे ॥१६४२॥ अशोघ्नः परमरसः, कुल्माषामिषुते पुनः । गृहांबुमधुरा चाथ, स्यात् कुस्तुंबुरुरल्लुका ॥१६४३॥ मरिचे तु द्वारवृसं, मरिचं बलितं तया । पिप्पल्याभूषणा शौंडी', चपैला तीक्ष्णतण्डुला ॥१९४४॥ उपेणा तण्डुलःला, कोलौं च कृष्णतण्डुला । जीरे जीरणजरणो, हिंगौ तु भूतनाशनम् ॥१९४५॥ अगूढेगंधमत्युग्रं, लिप्सौ लालसलपदौ । लोलो लिप्सा तु धाया, हेचिरीप्सा च कामना १६४। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषनाममालायाम | ॥१६४८ ॥ पूजा त्वपेचितिरथ, चिपिटो नम्रनासिके । पंगुलस्तु पीठसप, किरातस्त्वल्पवर्म्मणि खवें ह्रस्वोऽनेड भूकस्त्वंधे न्युब्स्त्वधोमुखे । पित्ते पलोभि: पटलवरः स्यादग्निरेचैकः कफे शिङ्खनकः खेटः स्यात् कुकुदे तु कूपेदः । पारिमितोऽय कार्यस्थः, करणोऽक्षरजीविनि ॥१६४९ ॥ क्षमे समेयोऽभूष्णुः पादोत पैदगौ समौ । जांबूळमोलिकोद्वाहे, वरयोत्रा तु दौंदुभी गोपाली वर्णके शांतियात्रा वरनिमंत्रणे । स्यादिद्राणीमहे 'हेलिरुललु मंगलध्वनिः स्यात्तु स्वस्त्ययनं पूर्णे, कलशे मंगल हिकम् । शांतिके मंगलस्नानं, वोरि पलववारिणा हस्तलेपे तु करेणं, हस्तबंधे तु पीडनम् । तच्छेदे समभ्रंशो, धुलिमक्ते तु वार्तिकम् कुलटायां तु दु:शृंगी, बन्धुर्दा कलेकणिका । घर्षणी लांडेनी खंडशीला मदनेनालिका त्रिलोचना मनोहोरी, पोलिः सश्मश्रुयोषिति । श्रवणायां मिणी स्याद्वेश्यायां तु स्वगोलिका ॥ १३११॥ ॥१६५९॥ ॥१६५२॥ ॥। १६५३॥ ५१३९४॥ २१७ ॥१६४७॥ ॥१६५० ॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः वारंवाणिः कामलेखौ, क्षुद्रों चेट्यां गणेरुका। वडवा कुंभैदासी च, पुत्र तु कुलधारकः ॥१६५६॥ सदीयादो द्वितीयश्च, पुत्र्यां धिदी समर्धका । देहसंचारिणी चाप्यपत्ये संतोनसंतती ॥१६१७॥ नेप्ता तु दुहितुः पुत्रे, स्यात्कनिष्ठे तु कन्यसः । ज्येष्ठमागिन्यां तु वीरभवती स्यात्तु नर्मणि ॥१९५८॥ सुखोत्सवो रामरसो, विनोदोऽपि किलोऽपिच । वथ्यो जनित्रो रेतोधास्ताते जानी तु मातरि ॥१६५९॥ देहे सिने प्रजवुकश्चतुःशाख षडंगैकम् । व्याधिस्थानं च देहैकदेशे गात्रं कचे पुनः ॥१६६०॥ वृजिनो वेलितायोऽश्रो(स्रो), धम्मिल्ले मौलिजूटैको । बर्बरी तु कवों स्यात् , प्रलोभ्यो विषदे कचे ॥१६६१॥ मुखे देतालयस्तरं, वैन चरं घनोसेंमम् । कर्णप्रांतस्तु धारा स्यात् , कर्णमूलं तु शीलकम् ॥१६६२॥ अक्ष्णि रूपग्रहो देवेदीपो नासा तु गंधहृत् । नसा गंधवहा नस्या, नासिक्यं गंधर्नालिका ॥१६॥३॥ ओष्ठे तु दशनोच्छिष्टो, रसालेपी च वादलम् । ... श्मश्रुणि व्यननै कोटो, दंते मुखखुरः खः । ॥१६६४॥ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषनाममालायाम् । २१९ दालजिह्वा तु रसिका, रानी च रसमातृका । रसी कोकुर्ललना च, वक्रदलं तु तालुनि ॥१६६५॥ अवटौ तु शिरैःपीठं, कफोणौ रनिष्ठकम् । बाइपबाहुसंधिश्व, हस्ते मुमैदलः सलैः ॥१६६६॥ अथ व्यामे वियामः स्याहाहुचीपस्तनतलः । हृयसह मर्मचैरं, गुणाधिष्ठानकं त्रैसम् ॥१६६७॥ स्तनौ तु धरणावग्रे, तयोः पिप्पलमेचेको । जठरे मलुको रोमलताधारोऽथ क्लोमनि ॥१६६८॥ स्वात्ताडचं क्षं क्लोमैमथ नाभौ प्रतारिका । सिरामूलं कटीकूपो, तूचेलिंगौ रताबुके ॥१६६९॥ शिश्ने तु लंगुलं शंकु, लांगलं शेफशेकसी। रक्ते तु शोध्यकीलाळे, मांसे तूधः समरिटम् ॥१६७०॥ लेपनं च रोमणि नु, त्वम्मल वालपत्रकः । कूपनो मां निर्यातः, परित्राणमय स्त्रमा ॥१६७१॥ तंत्री नखोरुस्नावानः, संधिबंधैनमित्यपि । अगुरौ प्रवरं श्रृंगं, शीर्षकं मृदुलं लघु ॥१६७२॥ वरद्रुमः परमँदः, प्रकर गंधदारु च । चंदने पुनरे कांग, मदॆश्रीः फलकीत्यपि ॥१६७३॥ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૨૦ अभिधानथितामणौ तिर्यक्काण्ड: जातीफले सौमनसे, पेटकं मदैशडकम् । कोशर्फेलं कुंकुमे तु, करेटं वासैनीयकम् प्रियंगु पीतकारं, घोरं पुष्पैरो वरम् । कुसुंभं च जशपुष्पं, कुसुमन्तं च गौरवम् ॥ ११७१ ॥ ॥१६७४ ॥ ॥ १६७८ ॥ वृक्षधूपे तु श्रीवेष्टो', दधिक्षीरघृतार्हेयः । रचनायां परिस्पंदः प्रतियेत्त्रोऽथ कुंडले कर्णादेश मेखला तु लोलिनी कटिमलिका | अथ किङ्किणयां धैर्वरी, विद्यां विद्यामैणिस्तथा ॥१६७७॥ नूपुरे तु पार्दशीली, मंदीरं पादनलिका | पादांगुलीयके पादपोलिका पादकीलिको वस्त्रे निवसनं वैस्नं, सैनं कॅटमित्यपि । दशा वस्त्रपेरेयोऽय, हिमवाताहांशुके द्विखंडेको वरकैश्व, चक्रवर्तिन्यधीश्वरः । अर्जुने विजयश्चित्रयोधी चित्रांगदनः योगी व कृष्णपक्षो, नंदिघोषस्तु तद्रथः । ग्रंथिस्तु सहदेवो, नकुलस्तंति पौळकः माद्रेयाविमौ कौंतेया, मीमार्जुनयुधिष्ठिराः । येsपि पांडवेयोः स्युः, पांडवा: पांडवायनाः ॥ १६८२॥ ॥१६८१ ॥ ॥१६७६॥ ॥१६७९ ॥ 112&2011 Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषनाममालायाम् । राज्ञ नृपक्ष्म, चर्मरः स्यात्तु चामरे । स्यान्यायद्दष्टरि स्थेयो, द्वाःस्थो द्वाः स्थितिदर्शकः १६८३ ॥ v क्षुद्रोपकरणानां स्यादध्यक्षः पारिकर्मिकः । पुराध्यक्षे कोट्टेपतिः, पौरिको दांडपाशिकः ॥१६८४॥ वेध्ये निमित्तं बाणे तु, लक्षहा मर्मभेदनैः वारब्ध वीरशंकुब्ध, कौदबोऽप्यस्त्रकंटकः ॥ ११८५ ॥ ॥१६८८॥ नाराचे लोहनालोऽसयकोऽसिस्तु सार्थकः । श्रीगैर्भो विभैयः शास्ता, व्यवहारः प्रजाकरः ॥ १६८६ ॥ धर्मपालोऽक्षरो देवस्तीक्ष्णं कर्मा दुरोंसदः । प्रसंगो रुद्रतनयो, मनुज्येष्ठः शिवंकरैः करपको विशसनस्तीक्ष्णधारो विषजः । धर्म्मप्रचारो धौरांगो, धारा धेरै कलि कौ चन्द्रसश्व शैखोऽय, सूर्यस्त्री कोशशायिका । पैच धेनुका पत्रपाले तु हुलमातृका क्रुहंती पत्र फैलाऽय, शक्तिः कासूर्महाफैला । भष्टताकाssवत सा च पट्टिशंस्तु खुरोपैमः || १६९०॥ लोहदंडस्तीक्ष्णधारो, दुःस्फोटौ समौ । चक्रं तु वलये प्रायमरसंचितमित्यपि ॥१६८९॥ ॥ १६९१ ॥ ॥१६८७ ॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ अभिधानचिंतामणौ तिर्यकाण्डः शतघ्नी तु चतुस्तौला, लोहकंटकैसंचित्रा । अय:कंटकसंछन्ना, शतघ्न्येव महाशिला ॥१६९२॥ मुषेण्ढी स्याहारुमयी, वृत्तायःकीलसंचिता। कर्णयो लोहमानोऽथ, चिरिका तु हुलाका ॥१६९३॥ वराहकर्णकोऽन्वर्थः, फलपत्राग्रके हुलम् । मुनयोऽस्त्रशेखरं च, शराम्यास उपासैनम् ॥१६९४॥ जिष्णौ तु विनयी नैत्रः, स्यात् श्रृगाली तु विप्लवे । करमध्ये सौम्य तीर्थमथ स्यान्नियमे तपः ॥१६९५॥ सत्यवत्यां गंधर्वती, मत्स्योदैर्यथ वक्रये। भाटकोऽथ साक्षिणि स्यान् ,मध्यस्थःप्राश्निकोऽप्यथ १६९६ कूष्टमीक्षी मृपासाक्ष्ये, सूची स्याद् दुष्टसाक्षिणि । पादुकायां पादरथी, पाईनंगुः पदत्वरा ॥१६९७॥ पार्दैवीथी च पेशी च, पादपीठी पदार्थता । नापिते प्रामणी डिवाहक्षौरिकमांडिकाः ॥१६९८॥ इति शेषनाममालायां नरकांडस्तृतीयः अथ पृथ्वी महाकांता, क्षांती मेद्रिकर्णिका । गोत्रकीला घनश्रेणी, मध्यलोका जगहा ॥१६९९॥ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषनाममालायाम्। २२३ देहिनी केलिनी मौलिमहास्यास्यबस्थली । गिरौ प्रपाती कुट्टार, उपगः कंदरीकरः ॥१७००॥ कैलासे धनीवासो, हरौद्रिहिमवैद्धसः । मलयश्चंदैनगिरिः, स्याल्लोहेऽधीनधीवेरे ॥१७०१॥ ताने पवित्रं कांस्यं च, सीसके तु महाबलम् । । चीनपट्ट समोलकं, कृष्णं च त्र(बंधक ॥१७०२॥ त्रपुणि श्वेतरूप्यं स्यात्, शठं सलवणं रजः । परोसं मधुकं ज्येष्ठं, घनं च मुखभूषणम् ॥१७०३॥ रजते वाष वर्ग, जीवनं वसु भीरुकम् । शुभ्रं सौम्यं च शोध्यं च, रूपं भीजवीर्यसम् ॥१७०४।। सुवर्णे लोमनं शुक्रं, तारजीवनमौनतम् । दाक्षायण रक्तवर्ण श्रीमकुंभं शिलोद्भवम् ॥१७०५॥ वैणवं तु कर्णिकारच्छायं वेणुतेटीभवम् । मले दिव्यमिरौसेव्यं, कृपीटं घृतमकुरम् ॥१७०६॥ विषं पिपलपातालनलिनानि च केवलम् । पावनं पसं चापि, पल्लरं तु सितं पयः ॥१७०७॥ किट्टिी तदतिक्षारं, शालूक पंकगंधिकम् । अधं तु कषे तोयमतिस्वच्छं तु कौथिमम् ॥१७०८॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अमिधामपितामणौ तिर्यकार: समुद्रे तु महाकच्छः, दारदो धरणीप्लेवः । महीपावार उबंगस्तिमिकोशो महाशयः ॥१७०९॥ मुरन्दला तु मुरेला सुरखेला सुनंदिनी।। भर्मण्वेती रतिनंदी, संभेदैः सिंधुसंगमः ॥१७१०॥ नीका तु सारणावग्नौ, वैमिप्रैिः समंतभुक् । पपरीके: पैवि सिः, पृथुर्षमुरिराशिरः ॥१७११॥ जुहुर्राणः पृौकुश्च, कुषाकुहनो 'हविः । वृतीचिर्नाचिकेतच, पृष्ठो व तिरं चतिः ॥१७१९॥ भुजियपीयौ चास्वनिः पनवाहनः । वायौ सुरालेयः प्राणः, संभृतो जलभूषणः ॥१७१३॥ शुचिर्वहो लोलघंटः, पश्चिमोत्तरदिपंतिः । अंकतिः क्षिपणुर्मकों, स्वभप्रहरणश्चलः ॥१७१४॥ शीतलो जलेकीतारो, मेधारिः मुमरोऽपिच । वृक्षे त्वारोहेकः स्कंधी, सीमिको हरितछदः ॥१७१५॥ उरुजहिभूश्च, स्यात्तु श्वेतैः कपर्दके । खद्योते तु कीटमेणियोतिमाली तमोमणिः ॥१७१६॥ पगर्बुदो निमेषद्युत्, ध्वांतचित्रोऽथ कुंमरे । पेचकी पुकरी पनी, पेचिलेः सुचिौधरः ॥१७१७॥ १ . Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ शेषनाममालायाम् । २२५ विलोमंजिह्वोऽनःस्वेदो, महाँकायो महामदः । सूर्पकर्णो जलोकांक्षो, 'टी च षष्टिहीयनः ॥१७१८॥ असुरो दीर्घपर्वनः, शुंडॉल: पिरित्यपि । वशायां वासितो कर्णधारिणी गणिका(कणिका)पिच ॥१९॥ अश्वे तु क्रमणः कुण्डी, प्रोयी हेषी प्रकीर्णकः । पाठकः पहल: किग्वी, कुर्टरः सिंहविक्रमः ॥१७२०॥ माषाशी केसरी हंसो, मुहुँ ग् गूढेभोजनः । वासुदेवः शालिहोत्रो, लक्ष्मीपुत्रो मरुद्रयः ॥१७२१॥ चामय्यकशफोऽपि स्यादवायां पुनर्वती । मल्लिकांक्षः सितै त्रैः, स्याद्वाजींद्रायुधोऽसितैः ॥१७२२॥ ककुदी ककुदावों, निर्मुष्कस्त्विद्रवृद्धिकः । शुनि क्रोधी रसापायी, शिवारिः सूचको रुरुः ॥१७२३॥ वनंतपः स्वजातिद्विद, कृतज्ञो भलहश्च सः । दीर्घनादः पुरोगामी, स्यादिद्रमेहकामुकः ॥१७२४॥ मंडेल: कपिलो ग्रामगश्चेद्रमहोऽपिच । महिषे कलुषः पिंगः, कटाहो गद्देस्वरः ॥१७२५॥ हेरंबः स्कंधश्रृंगश्च, सिंहे तु स्यात्पलकषः ।। शैलौटो वनरौनश्च, नमःॉतो गणेश्वरः ॥१७२६॥ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ अभिधानचितामणौ तिर्यकाण्डः शृंगोष्णीषो रक्तनिहो व्यादीस्यिः सुगंधिः । शूकरे कुमुखः कामरूपी च सलिलैप्रियः ॥१७२७॥ तलेक्षणो वक्रदंष्ट्रः, पंककीडनकोऽपिच । मृगे त्वजिनयोनिः स्यादयो मुनगमोजिनि ॥१७२८॥ अहीरणीर्द्विमुखश्च, भवेत् पक्षिणि चंचुमान् । कंठौग्निः कीकसैमुखो, लोमकी रसनारदः ॥१७२९॥ वारंगनोंडीचरणौ, मयूरे चित्रपिंगलः ।। नृत्यप्रियः स्थिरमैदः, खिलखिल्लो गरव्रतः ॥१७३०॥ मारिकंठो मकैको, मेघनादानुलासकः । मयूको बहुलग्रीवो, नगासिश्च चंद्रकी ॥१७३१॥ कोकिले तु मदोल्लोपी, काकनौतो रतोद्वैहः । मधुघोषो मधुकंठः, सुधाकंठः कुहूर्मुखः ॥१७३२॥ घोषयित्नुः पोषयित्नुः, कामतीलः कुनालिकः । कुक्कुटे तु दीर्घनादेः, चर्मचूडो नखायुधः ॥१७३३॥ मयूरचकः शौंडो", रणेच्छुश्च कलाँधिकः । आरंणी विकिरो बोधिनदीकापृष्टिवर्धनः ॥१७३४॥ चित्रानो महायोगी, स्वस्तिको मणिकंठकः । उपाँकीलो विशोच, व्राजस्तु प्रामकुक्कुटः ॥१७३६॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨e शेषनाममालायाम्। हंसेषु तु मरालाः स्युः, सारसे दीर्घनानुकः । मोनैर्दो मैथुनी कामी, श्येनाक्षो रक्तमस्तकः ॥१०३६॥ गृधे तु पुरुषव्याघ्रः, कामायुः कूणितेक्षणः । सुदर्शनः शकुन्याजौ, शुके तु प्रियदर्शकः ॥१७३७॥ श्रीमान् मेधातिथिर्वाग्मी, मत्स्ये तु जलपिप्पैकः । मूको जलाशयः शेः, सहस्रदंष्ट्रस्त्वेतनः ॥१७३८॥ जलवालो वदालोऽथ, पाठीने मृदुपाठकः । इति शेषसंग्रहनाममालायां चतुर्थकांडः ॥ अथ रत्नप्रभा धर्मा, वेशा तु शर्कराप्रमा ॥१७३९॥ स्याद्वालुकाप्रभा शैली, भवेत्पंकप्रभाजना। . धूमप्रमा पुना रिष्टा, माधव्या तु तमःप्रमा ॥१७४०॥ महातमप्रमा माधव्येवं नरकभूमयः । इति नारककांडः पंचमः ॥५॥ भानुकूल्यार्थकं प्राध्वंमसाकल्ये तु चिच्चन ॥१७४१॥ तु हि च स्म ह वै पादपूरणे पूजने स्वती । वद् वा यथा तथैववं, साम्येऽहो ही च विस्मये॥१७४२॥ स्युरेवं तु पुनवेत्यवधारणवाचकाः । ऊं पृच्छायामतीते प्राक्, निश्चयेऽद्धांजसा द्वयम् ॥१७४३॥ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः अतो हेतौ महः प्रत्यारंभेऽथ स्वयमात्मनि । प्रशंसने तु सुष्ठु स्यात्, परश्वः श्वैः परेऽहनि ॥ १७४४॥ अद्यात्राह्रयथ पूर्वेऽह्णीत्यादौ पूर्वेद्युरादयः । समानेऽहनि सद्यः स्यात् परे हि परेद्यवि ॥ १७४५ ॥ उभययुस्तूभयेद्युः, समे युगपदेकँदा । स्यात्तदानीं तदा तर्हि, पैदा यैर्ह्यन्येदेकेदा 42 ॥ १७४६॥ परुत्परायेंषमोऽब्दे, पूर्वे पूर्वतरेऽत्र च । प्रकारेऽन्यथेतरथा, कथमित्थं यथा तथा द्विधा द्वेषा विधा त्रेधा, चतुर्द्धा द्वैवमादि च । द्विस्त्रिचतुःपंचकृत्व, इत्याद्यावर्त्तने कृते दिग्देशकाले पूर्वाद, प्रागुदक्प्रत्यगादयः । अव्ययानामनंतत्वाद्दिग्मात्रमिह दर्शितम् इयंत इति संख्यानं, निपातानां न विद्यते । प्रयोजनवशादेते, निपात्यंते पदे पदे ॥१७५०॥ इत्याचार्य श्री हेमचंद्रविरचिता शेषनाममाला || ॥१७४७॥ ॥ १७४८ ॥ ॥ १७४९ ॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ श्रीमजिनदेवमुनीश्वरविरचितः शिलोञ्छः अहं बीजं नमस्कृत्य, गुरूणामुपदेशतः । श्रीहैमनाममालायाः, शिलोज्छः क्रियते मया ॥१७५१॥ सर्वीय इत्यपि जिने, संभवः शंभवेऽपि च । श्रीसुव्रते मुनिरपि, नेमौ नेमीत्यपीष्यते ॥१७५२॥ षष्ठे गणेशे मण्डितपुत्रोऽपि कथ्यते बुधैः । मरुदेव्यपि विज्ञेया, युगादिनिनमातरि ॥१७५३॥ चक्रेश्वर्यामप्रतिचक्रोऽप्यनितीपि कविमिरजितबली । श्यामा त्वच्युतदेव्यपि सुतोरिकोक्ता सुतारापि ॥१७५४॥ भद्रकृद्भद्रकरोऽपि, श्रमणः श्रवणो'ऽपि च । भद्रभद्रमपि प्राहुः, प्रशस्तैमपि कोविदाः ॥१७५५॥ प्रवन्याऽपि परिबन्या, शिष्योऽन्तेषदेपि स्मृतः । इति प्रथमकाण्डस्य, शिलोच्छोऽयं समर्थितः ॥१७१६॥ (१) शिलोञ्छो नाम उपात्तशस्यात् क्षेत्रात् शेषावचायनं, तद्वदत्रापि हैमनाममालायाः अवशेषशब्दावचयनं कृतम् । ( २) 'भद्रोऽपि' इत्यभिधानचिन्तामणिः । Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाममालाशिलो देवकाण्डः व्योमयानमपि प्रोक्तं, विमानं बुधपुङ्गवः । स्यात्समुद्रनवनीतं, पियूषमपि चामृतम् ॥१७५७॥ कथ्यन्ते व्यन्तरा वानमन्तरा अपि सूरिभिः । द्योतस्तथा पृष्णिमुष्णी,प्रोक्ता रश्म्यभिधायकाः।।१७५८ समुद्रनवनीतं च, विदुश्चन्द्रमसं बुधाः । चन्द्रिका चन्द्रिमाऽपि स्यादिल्वला इन्वको अपि॥१७५९ अनुराधाऽप्यनुराधा, गुरुः सप्तर्षिनोऽपि च । सौरि: सौरोऽपि राहुस्तु, ग्रहकल्लोले इत्यपि ॥१७६०॥ अभ्रपिशाचोऽपि तथा, नाडिका नालिकोऽपि च । रात्रौ यामवतीतुङ्गयौ, निःसंपातो निशीथवत् ॥१७६१॥ तमः स्यादन्धतमस, वर्षाः स्युर्वरिषा अपि । खेऽन्तरीक्ष सांसृष्टकमपि तत्कालजे फले ॥१७६२॥ मेघमाला कालिकोऽपि, वादल' चापि दुर्दिने । सूत्रामायीन्द्रे शताः, शतधारोऽपि चाशनौ ॥१७६३॥ आश्विनेयो स्वर्गवैद्यौ, हर्यक्षोऽपि' धनाधिपे । अजगमनगावैमपि शङ्करधन्वनि ॥१७६४॥ १ 'धृष्णिरित्यन्ये' इत्यभिधानचिन्तामणिः । २ 'बाहुलकादीर्घत्वे ' अन्धातमसमित्यपि ' इत्यभिधानचिन्तामणिः । ३ सूत्रामायी इनंतः शशिवत् । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाममालाशिलो देवकाण्डः २३१ गौयों दाक्षायणीश्वयों, नारायणे जलेशयः । कौमोदकी कोपोदकी', ओ ई शब्दो श्रियां मतौ॥१७६५ कन्तः कन्दर्षे सिद्धार्थः, सुगते परिकीर्तितः । अङ्गे व्याख्या विवाहाभ्यां, प्रज्ञप्तिरपि पञ्चमे ॥१७६६॥ दृष्टिपातो' द्वादशाङ्गयां, कल्याणेऽनन्ध्यमप्यथ । निंदा गैर्हा जुगुप्सायां, क्षारणा रतिगालिषु ॥१७६७॥ समाख्यापि समाज्ञावद्रुशतीवदुर्शत्यपि । काल्याऽपि करया संधायां, समाधिरपि कथ्यते॥१७६८॥ बीडः सूको मन्दाक्षेञ्च, हियामूहोऽपि चोहवत् । तन्द्रिस्तैन्द्री च न्द्रिायांमहंप्रथमिकीपि च ॥१७१९॥ अहंपूर्विकायां केलीकीलोऽपि स्याद्विदुषके । मार्षवन्मारिषोऽसीति, शिलोञ्छो देवकाण्डगः ॥१७७०।। स्तनन्धये स्तनपश्च, क्षीरपश्चाभिधीयते।। तारुण्यं स्याद्यौवनिको, दशमीस्थो जरत्तरः ॥१७७१॥ कवितापि कविः स्यात् तत्कर्मणि कृतकृत्यकृतिकृतार्थाश्च । कुटिलाशयोऽपि कुचरोऽन्धनडशठेष्वप्यनेडमूकस्तु।१७७२ १' अहमग्रिका च' Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ नाममालाशिलोञ्छे नरकाण्डः वेदान्यौ' पृथगित्यन्ये, दानशीले प्रियंवदौ । मूर्खे यथोद्गतोऽपीभ्ये, श्रीमानपि बुधैः स्मृतः ॥१७७३॥ विवधवीवधिकापि वैवधिक प्रतिरोऽपि भृत्ये स्यात् । संमार्नको' बहुकरे बहुषान्याऽनके इतीष्यते च परैः॥१७७४ विहनिकायां च विहङ्गिमोऽप्यथौर्द्धदेहिके। औद्भुदैहिकमप्याहुग्न नौ शण्ठे इत्यपि ॥१७७५॥ मायाविमायिको धूर्ते, कपटे तृपंधा मता। चौरैश्चोरोऽपि विज्ञेयः, स्तेयं स्तन्यमपीष्यते ॥१७७६॥ दाने प्रादेशनमपि, क्षमा स्यात् क्षान्तिरित्यपि । क्रोधन: कोपनस्तृष्णक्, पिपासितोऽपि कथ्यते॥१७७७॥ मक्षकः स्यादाशिरोऽपि, मनितापि च मानिती । पेयूषमैपि पीयूष, कुचिकापि च कर्चिका ॥१७७८॥ द्रप्से द्रप्स्यमपि प्रोक्तं, विजिपिलं' च पिच्छिले । व्योषे त्रिकटुक जग्धौ, जमर्न जवनं तथा ॥१७७९॥ आघ्राणोऽपि भवेत्तृप्तौ, शौष्कलः पिशिताशिनि । मनोराज्यमनोगव्यावपि स्यातां मनोरथे ॥१७८०॥ १ 'दानशीलप्रियवाचौ वदान्यौ पृथक्' इत्यभिधानचिन्तामणिः। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाममालाशिलोञ्छे नरकाण्डः कामुके कपनोऽपि स्यादाक्षारितोऽपि दूषिते । संशयालुः सांशयिकी', जागरितापि जागेरी ॥ १७८१ ॥ पूजितेऽपचायितोऽपि ', तुन्दिभोदरिकावपि । तुन्दिले न्युनोऽपि कुब्जे, खेलतोऽप्यैन्द्रलुप्ति के । । १७८२ पामरोऽपि कच्छुरोऽतीसारक्यैष्यतिसारकी । कुण्डतिरपि खर्जूतिर्विस्फोर्ट: पिटके स्मृतः कोढे मण्डलमपि, गुदकीलोऽपि वार्शसि । मेहः प्रमेहवदायुर्वेदकोऽपि चिकित्सके आयुष्मानपि दीर्घायुः, कथ्यतेऽथ परीक्षकः । स्यादाक्षपाटलिकोऽपि', पारिषद्योऽपि सम्यवत् ॥ १७८५ स्युनैमित्तिनैमित्तेमौहूर्ता गण लिपौ । ॥ १७८३॥ ॥ १७८४ ॥ लिखितोऽपि मषी मेला, कुलिके कुलेकोऽपि च ॥ १७८६ अष्टापदे बुधैः शारिफलकोऽपि निगद्यते । मनोजवैस्तात तुल्ये, प्रभविष्णुरेपि क्षमे जाङ्घिके जङ्घाकरोऽपि', चानुगोऽप्यनुगामिनि । पर्येषणोपासनाऽपि शुश्रूषायामधीयते २३३ ॥ १७८७॥ ॥ १७८८ ॥ १ ' कुण्ठयत्यङ्गम्' इत्यभिधानचिन्तामणिस्थव्युत्पत्त्या द्वितीयान्तं लभ्यते । २ ' आयुर्वेदिकः ' इत्यभिधानचिन्तामणिः । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ नाममालाशिलोछे नरकाण्डः आतिथ्योऽप्यतिथौ तुल्येऽभिजो गोत्रे तु सन्ततिः । महेला योषितौ च स्त्री, तरुणी युवतीत्यपि ॥१७८९॥ सुवासिनी चरिण्टी च, चिरण्टी च चरण्ट्यपि । वधूट्यां पत्न्यां करात्ती, गेहिनी सहधर्मिणी ॥१७९०॥ सधर्मचारिणी चापि, स्नुषायां तु वधट्यपि । प्रेमवत्यैपि कान्तायां, प्राणिग्रहो' विवोढरि ॥१७९१॥ परिणेतोपैयन्ता च, यौतके दाय इत्यपि । दिधीपूर्दिधिषींवत्पत्नी जीवत्पतिः समे ॥१७९२॥ तुल्ये अवीरीनिर्वीरे', श्रवणोश्रवणे तथा । रण्डोपि विधवा पुष्पवती स्यात्पुष्पितापि च ॥ १७९३॥ पुष्पे कुसुममप्युक्तं, पशुधर्मोऽपि मोहने । सहोदरे सगर्भोऽपि, स्यादग्रजवदनिमः ॥१७९४॥ शण्ठः शठः पण्डुरैपि, क्लीबो माता जनित्र्यपि। चिहुरा अपि केशाः स्युः, कर्णः शब्दाहोऽपि च ॥१५॥ नेत्रं विलोचनमपि, शृक्कणी सृक्कणी अपि । दाडिको द्राढिकापि स्वास्कपोणिस्तु कफोणिवत् IR६॥ कूपरे कूपरः सिंहतले संहतलोऽपि च । चलुकोऽपि' चलौ मुष्के, स्यादाण्ड: पेलकोऽपि च॥९७॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाममालाशिलोछे नरकाण्डः २३५ पत्पादेशिश्च चरणे, कीकसं हडुमित्यपि । कपालं शकलमपि, पृष्ठास्थनि कशारुको ॥१७९८॥ मज्जायामस्थितेनोऽपि', नाडीषु नाडिनाटिके । सिङ्घाणकोऽपि सिङ्घाणः, स्तृणीका स्तृणिकोपि च॥१९॥ शान्तः पातिषश्च विड्गुथेऽशुचिं वेशोऽपि वेषवत् । उत्सादनोच्छार्दने च, प्लप्लावौ तथा समौ २ ॥१८००॥ वंशाक कृमिनग्धं चागरौ स्यादथ वाह्निकम । सङ्कोचं पिशुनं वय॑मसृसंज्ञ च कुङ्कुमे ॥१८०१॥ जापके कालानुप्ताये, यावनोऽपि च सिलके । मकुटोऽपि' कोटीरे, चित्रकञ्च विशेषके ॥१८०२॥ वतंसोऽध्यवतंसे स्यात्पत्रभंग्यां तु वल्लरी' । मञ्जरी' च पत्रात्पारितथ्यौ पर्यवतथ्यया ॥१८.३॥ कर्णान्दुरपि कर्णान्दुः, परिहार्येऽपि कङ्कणः । किङ्कणी' किङ्किणी तुल्ये, आच्छादाच्छादने' समे कासेऽप्यङ्गिकी कक्षापटे कक्षापुटोऽपि च । कुथे वर्णपरिस्तोम इत्वखण्डं नबुः परे ॥१८०५॥ 'सृणीका, सृणिका' इत्यभिधानचिन्तामणिः । १ 'भाप्लवालावौ ' इत्यभिधान० । ३ पत्रमजरी । Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ नाममालाशिलोछे नरकाण्डः तत्रास्तरणमिति च पल्यकोऽप्यवसक्यिको । यमन्यपि प्रतिसीरा, संस्तरः प्रस्तरोऽपि च ॥१८०६॥ पतग्राहप्रतिमाहोवपि स्यातां पतद्ग्रहे । मकुरोऽप्यात्मदर्शेऽथ, कशिपुः कैसिपुः समौ ॥१८.७॥ यावकालतकौ यावे, तुल्ये व्यजनवीनने । गीरीयको' गिरिकोऽपि, बालक्रीडनके मतौ ॥१८०६॥ गण्डकोऽपि गन्दुको' राट्, मूर्द्धावसिक्त इत्यपि । भरतः सर्वदमनोऽप्यथ दाशरथावुभौ ॥१८०९॥ रामचन्द्रशमभद्रौ, हनुमानषि मारुतौ । वालौ सुग्रीवाग्रजोऽपि', पार्थे बीम-सुरित्यपि ॥१८१०॥ सातवाहनवत्सालवाहनोऽपि प्रकीर्तितः । परिच्छदे परिजनः, परिवर्कर्णमित्यपि ॥१८११॥ मन्त्री बुद्धिसहायोऽपि, वेत्री वेत्रधरोऽपि च । हेमाध्यक्षे हैरिकोऽपि, टंकपतिस्तु नैष्किके ॥१८१२॥ शुद्धान्ताध्यक्ष आन्तवैश्मिकान्तःपरिकावैपि । सहायसाप्तपदीनौ', सख्यावसुहृदप्यौ ॥१८१३॥ नये नीतिरैपि स्कन्धावारेऽपि शिविरो मतः । नयन्त्येपि वैनयन्त्यां, पटाकोपि प्रकीर्त्यते ॥१८१४॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाममालाशिलोछे नरकाण्डः २३७ ध्वजः पताकादण्डोऽपि, झम्फानं याप्ययानवत् । सादी सव्येष्टोऽपि सुते, कवंचितोऽपि वर्मिमते ॥१८१५।। कवचे दंशन त्वक्रं, तनुत्राणमपि स्मृतम् । अक्ष्यिांगं धियोंगं चाधिकाङ्गवदुदाहृम् ॥१८१६॥ शिरस्कं खोलेमप्याहुः, स्यान्निषङ्गपि ताणेनि । चापे धधनुशरःसैनान्यपि विदुर्बुधाः ॥१८१७॥ फरकैस्फरको खेटे, श्रुरिका छुरिको छुरी। इत्म्यां तरवालिकोपि, परिघः पलियः समौ ॥१८१८।। उर्मस्व्युनस्वान् मगधो, मेषो बोधकरोऽर्थिकः । सौखशायनिकैः सौख्यंशय्यिको सौखसुप्तिके ॥१८१९॥ रणे संस्फेटेंसंफेटौ, बले दविणमू तथा । अवस्कन्धोऽपि धाट्यां स्यान्नश-ञ्च एलायने ॥ १८२०॥ चारकोऽपि भवेद् गुप्तौ, तापसे तु तपस्यपि । विप्रे ब्रह्माऽपि चाग्नीध्राऽनीध्रोऽप्यथ वृषी वृसी' ॥१८२१॥ शासने शमनश्चाथ, दधि प्राभ्यं पृषातके । अग्निहोत्र्यान्योहितोऽप्यथोपवासे समाविमौ ॥१८२२।। , 'मङ्खः' इत्यभिधानचिन्तामणौ । Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ नाममालाशिलोञ्छे मरकाण्डः उपवस्त्रमौपवस्त्रमुपवीते प्रचक्षते । ब्रह्मसूत्रं पवित्रञ्च, वाल्मीको द्वाविपावपि ॥१८२३॥ मौत्रावरुण्यादिकवी', पशुरामोऽपि भार्गवे । योगीशो याज्ञवल्क्योऽपि, दाक्षीपुत्रोऽपि पाणिनौ॥२४॥ स्फोटायनः स्फौटायनः, कात्यो' वररुचौ तथा । कारेणवैः पालकाप्ये, चाणक्यश्चणकात्मजे ॥१८२५॥ वैशेषिके कर्णादोऽपि, जैनोऽनैकान्तवाद्यपि । चार्वाके लौकोयतिकः, कृषिः प्रसतमित्यपि ॥१८२६॥ न्यासार्पणे परिदानं, वणिक् प्रापणिकः स्मृतः । अयुते नियुतं' पोते, स्मृतं प्रवहणं' बुधैः ॥१८२७॥ कर्णोऽपारित्रे दुर्गस्य, गवेश्वरोऽपि गोमति । कर्षके क्षेत्रजीवोऽपि, कोटीशो लोष्टमेदनः ॥१८२८॥ मार्दीकमपि मद्येऽनुतर्षोऽपि चषके स्मृतः । कुविन्दे तन्त्रवायोऽपि, वेमा व्योमापि कीर्त्यते ॥१८२९॥ रजको धावकोऽप्युक्तः, पादत्राणश्च पादुका । तैलिकस्तैलंतुदोऽपि, रथकारोऽपि वर्द्धकिः ॥१८३०॥ (१) ' प्रभृतः ' इत्यभिधानचिन्तामणौ । Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाममालाशिलोञ्छे तिर्यकाण्डः २३९ चित्रकारो लेखेकश्च, लेपैकृल्लेपैकोऽपि च । कुतूहले विनोदोऽपि, सौनिकः खट्टिकोऽपि च ॥१८३१॥ कूटयन्त्रे पाशयन्त्रं', समौ चाण्डालेपुष्कसौ । इत्थं तृतीयकाण्डस्य, शिलोच्छोऽयं समर्थितः ॥१८३२॥ रत्नवती भुवि दिवस्पृथिव्यावपि रोदसी' । माणिबन्ध माणिमंत', सैन्धवे वसुके वर्मु ॥१८३३॥ सङ्कनष्टकणे उपावर्तन' चापि नीवृति । जङ्गलः स्याज्जाङ्गलोऽपि, मालवन्मालको मतः ॥१८३४॥ पत्तने पट्टनमपि, कुण्डिने कुण्डिनापुरम् । स्यात्कुण्डिनपुरमपि, विपणौ पण्यवीथिको ॥१८३५॥ सुरङ्गायां सन्धिरपि, गृहे धाममपि स्मृतम् । उपकार्योपकार्यापि, प्रासादे च प्रसादनः ॥१८३६॥ शान्तीगृहं शान्तिगृहे, प्राङ्गणं त्वङ्गणं मतम् । कपाटवत्कवाटोऽपि, पक्षद्वारे खडक्किको ॥१८३७॥ कुसुलवत्कुसुलोऽपि, सम्पुटे पुट इत्यपि । पेटायां स्यात्पेटकोऽपि', पेडापि कृतिनां मते॥१८३८॥ षवन्यपि समूहिन्यामयोनि' मुसलं विदुः । कण्डोलके पिटकोऽपि', चूल्यामन्तीति कथ्यते ॥१८३९॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० नाममालाशिलोम्छे तिर्यकाण्डः खनः खजाकोऽपि मथि, विष्कम्भैः करकोऽस्य तु । अगोऽपि' पर्वते क्रौञ्चः, क्रोश्चन्मन्यते बुधैः ॥१८४०॥ कखट्यपि खटिन्यां स्यात्ताम्रमौदुम्बरं विदः । शातकुम्भमंपि स्वर्ण, पारदश्चपलोऽपि च ॥१८४ १॥ रसजात' रसायं च, तुत्थे दावीरसोद्भवे । गौक्षिके वैष्णषोऽपि स्याद्गोपित्तं हरितालने ॥१८४२॥ मनःशिलायां नेपाली', शिली च सुधियां मता । शृङ्गारेमपि सिन्दुरे, कुरुविन्दे तु हिङ्गुलः ॥१८४३॥ बोलो' गोपरसोऽप्युक्तो, रत्नं माणिक्यमित्यपि । पद्मगगे शोणिरा', पैराहो' राजपट्टवत् ॥१८४४॥ नीले मणौ महानील', कमन्धमपि वारिणि । धूमिको धूपमहिषी, धूमर्यो मिहिकाः समाः ॥१८४५॥ अकूवारोऽपि' जलधौ, मकरालय इत्यपि। निम्नगायां हादिनी' स्याज्जनुकन्यापि जाह्नवी ॥४६॥ कलिन्दपुत्री कालीन्दी', रेवा मेकलकन्यको । चान्द्रभागा चन्द्रभागो, गोमती गोमतीत्येपि ॥१८४७॥ चक्राण्यपि पुटभेदाः, पङ्के चिखल्लं इत्यपि । उद्धांतनोद्धाटने च, घटोयन्त्रे प्रकीर्तिते ॥१८४८॥ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाममालाशिलोञ्छे तिर्यकाण्डः २४१ सरस्तडागस्तटोकोऽप्यथ तलश्च पल्वले । आशयाशशुष्मंबहिहित्थदमूनेसः ॥१८४९॥ अग्नौ क्षणप्रभा विद्युद्गन्धवाहसदागती । वायौ चरणपेऽपि द्रुस्त्व त्वचा स्तबके पुनः ॥१८५०॥ गुलुन्छेलुन्छयौ मान्दरसालावपि चूतवत् । किङ्कराते कुरण्टक कुरुण्डकावपि स्मृतौ ॥१८५१॥ कर्कन्धरपि कर्कन्धौ, हूस्वादिश्वाटरूषकैः । वाशा च स्नुहिः स्नुहोऽपि, पियालोऽपि' प्रियालवत् ॥ ॥१८५२॥ नायङ्गोऽपि च नारङ्गोऽक्षे विभेदक इत्यपि। भवेत्तमालस्तापिच्छो', निर्गुण्डी सिन्दुवारंवत् ॥१८५३॥ जपा जवी मातुलुङ्गो, मातुलिङ्गोऽपि कीर्तितः । धत्तूर इव धुत्तूरो, वंशस्त्वक्सार इत्यपि ॥१८५४॥ हीवर केशसलिलपर्यायैः स्मथते बुधैः । पङ्कजिन्यां कमलिनी, कुमुदिनी' कुमुद्वती ॥१८५५॥ विसप्रेसूनं कमले, कुमुत्कुमुदवन्मतम् । शेपालं च जलनीली, सातीनोऽपि सतीनवत् ॥१८५६॥ कुल्मासवत्कुल्माषोऽपि, गवेधुको गवीधुको । कणिशं कनिशं रिद्धे, धान्ये त्वावासितं' मतम् १८५७ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૩૨ अभिधानचिंतामणौ तिर्यक्काण्डः हालाहलं हालहेलं, मुस्तायां मुस्तकोऽपि च । । कृमि: क्रिमिष गण्डूपदः किंचुलेकोsपि च ॥ १८५८॥ शब्बुका अपि शब्बूका, वृश्चिको दुते इत्यपि । मसलो' मधुकरोलि, पिको विक्के: कैरिः करी ॥१८५९॥ व्यालो व्याडोऽप्यौपत्राह्योऽप्युपह्योऽपरा वर्ग । ॥ १८६१ ॥ शृङ्खले निगेलोऽण्डुचे, कक्षा कक्ष्यपि वाह्निके ॥ १८६० ॥ वाह्रीकोऽपि वल्गवागे, खलिनञ्च खलीनवत् । मार्योऽष्टे गोप्तौ तु शंले इत्वरे इत्यपि स्यौरी स्थूवि ककुदे, ककुत्ककुदैमित्यपि । 'नैचिकं नैचिकी' च स्यान्मलिनी बारगर्भिणी ॥१८६२ ॥ पवित्र गोमये छागे, शुभोऽय भषकैः शुनि । सैरमो देवशुन्यां च यमरथोऽपि सैरिभे पारिन्द्र इव पारीन्द्रेः शरंभेऽष्टापदोऽपि च । सृगालव च्छ्रगोलोऽपि, प्लवगः प्रगोऽपि च वानायुरपि वातायुरुन्देशेऽपि च मूषके । ह्रीकुर्वनविडालोsपि, गोकर्णोऽपि भुजङ्गमे जलव्यालेली गर्छौंsपि शेषः स्यादेककुण्डले । आशीराशी' च दंष्ट्रायां, निर्मोके निलयन्यपि ॥ १८६६ ॥ | १८६३॥ ? ॥ १८६४ ॥ ॥ १८६५॥ : Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाममालाशिलोच्छे तिर्यक्काण्डः नरककाण्डच २४३ ॥ १८६७ ॥ पती' पतत्रिरपि, पिच्छं पिछेमपि स्मृतम् । परपुष्टोन्यभृतौ च पिके बर्हिण बर्हिणः वायसे बलिष्टोऽपि द्रोणोऽपि द्रोणकाकवत् । सारसा लक्ष्मणी' क्रौञ्चा, कुचो चाषे दिविः किकीः ॥ १८६८ किकिदीविरेपि प्रोक्तष्टिट्टिभे टीटिमोऽपि च । कलविङ्के कुलिङ्गोऽपि दात्यूहे कालकण्ठकैः ॥ १८६९ ॥ सिकण्ठिक 1 ॥१८७० ॥ ॥१८७२ ॥ दात्यूहोऽपि बलाका च, मेधान्यपि शुके तैलपायिकायां निशाटनी' कपोते पारावतोऽपि, मत्स्ये मच्छोऽथ तन्तुणे । स्मृतो वरुणपाशोऽपि, नक्रे शङ्कुमुखोऽपि च ॥ १८७ १ ॥ उहारेः कर्मा इत्येष, तिर्यक्काण्डः शिलोञ्छितः । नारकास्तु नैरयिकी, पाताले तु तुलें' रसो इति पञ्चमकाण्डस्य, शिलोन्छोऽयं समर्थितः । जीवोsपि चेतने जन्तौ प्राणी जन्मोऽपि जन्मनि १८७३ जीवातुर्जीवितेऽपाये:, पुंस्युदन्तोऽपि वायुषि । सङ्कल्पे स्याद्विकल्पोऽपि मनो नेन्द्रियमप्यथ ॥ १८७४॥ शर्म सौख्यं पीडा बाधों, चर्चा चर्चेऽपि कथ्यते । विप्रतीसारोऽनुशयेऽयार्थी अपीन्द्रियार्थवत् ॥ १८७५ ॥ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ नाममालाशिलोज्छे साधारणकाण्डः सुसीमस्तु सुषीमोऽपि', कक्खटे खकेटोऽपि च । जन्ठे नरेढोऽम्लेऽम्ब्लो', रोवो रव इव स्मृतः ॥१८७६॥ निषादो निषधो' गर्नो, गर्जा' मैद्रोऽपि मन्द्रवत् । आकरो' निकरे युग्मे, जकुटोऽथ कनीयसि ॥१८७७॥ कनिष्ठं विग्रहः शब्दप्रपञ्चे निखिले पुनः । स्यान्निःशेषेमनञ्च, खण्डहचापि खण्डवत् ॥१८७८॥ मलीमसे कल्मषं च, निकृष्टे याव्यरेपसी' । लडह' रमणीयं च, रम्ये नित्ये सदातनम् ॥१८७९॥ शाश्वतिक च नेदीय, इत्यन्तिकतमे स्मृतम् । एकाकिन्यवर्गणोऽपि, प्रागप्यादौ प्रकीर्तितम् ॥१८८०॥ मध्यमे मध्यंदिन च, निरर्गलेमनर्गले । बहुरूपपृथग्रूपैनानाविधाः पृथग्विधे ॥१८८१॥ झम्पा झेम्पोऽथ छन्ने स्याच्छादित' पिहितेऽपि च । प्रकाशिने प्रादुष्कृतमवज्ञायामसूक्षणम् ॥१८८२॥ बुधैरवमाननोऽवगणने अपि कीर्तिते ।। अन्दोलनमपि प्रेखाऽयोदस्तमप्युदश्चितम् ॥१८८३॥ भिदा मिञ्चोदितमपीरितेऽथाङ्गीकृते पुनः । कक्षीकृत स्वीकृतं च, छिन्ने छातैमपि स्मृतम् ॥१८८४॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाममालाशिलोञ्छे साधारणकाण्डः २४५ प्राप्ते विनं विस्मृते च, भवेत्प्रस्मृतमित्यपि । अटाटोऽध्या पर्यटनैमानुपूर्य मनुक्रमे ॥१८८५॥ परीरम्मोऽपि संश्लेषे, स्यादुद्घोतोऽप्युपक्रमे । जातो जातमपि स्पर्द्धा, सङ्घर्षोऽप्यथ विक्रिया ॥१८८६॥ विकारो विकृतिश्चापि, विलम्मस्तु समर्पणे । दिष्टया समुपजोष' सर्वदा सदा सन सनात् ॥१८८७॥ निर्भरे च स्वती हेतो, ये तेनै च कीर्तितौ । अहो' सम्बोधनेऽपीति, षष्ठः काण्डः शिलोन्छितः१८८८ वैक्रमेऽब्दत्रिवस्विन्दुमिते (१८३१) राधाद्याक्षतौ । ग्रन्थोऽयं दद्दमे श्रीमज्जि नदेवमुनीश्वरैः ॥१८८९॥ ॥ इति श्रीजिनदेवमूरिदृब्धः शिलोञ्छः ॥ F00000000000000000000000000ccoococoop इति श्री हेमचन्द्राचार्य दुग्धे नाममालाशेषमाले? 8 श्रीजिनदेवसूत्रितः शिलोञ्छश्च समाप्ताः SoccCOOC00000000ROIROO000000000000 Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितो निघण्टुशेषः। Poooooविहितैकार्थनानार्थदेश्यशब्दसमुच्चयः । निघण्टुशेषं वक्ष्येऽहं, नत्वाऽर्हत्पादकङ्कजम् ॥ १८९० ..............................॥ १८९१ १८९२ ........ ॥ १८९३ ...... ॥ १८९४ . . . . . . . . . . . . . . . १८९५ ॥ . १८९६ १८९७ १६-भ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ निघण्टुशेषः। ..............................। ..... ॥ १८९८ •........ ............ ....... ॥ · १८९९ ................॥ ॥ १९०० ....... ॥ १९०१ ....... ॥ १९०२ .................. ...... ॥ . १९०३ .................. १९०४ .............................. । .............................. ॥ १९०५ ...............वं, बीजं भद्रयवाह्वयम् । . शिरीषे विषाणभंडी, भंडीरः शंखिनीफलः ॥ १९०६ मृदुपुष्पः शूकपुष्पः, शुकवृक्षः शुकप्रियः । कपीतनः कर्णपूरो, भण्डिलः श्यामवल्कलः ॥ १९०७ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। पाटल्यां पाटला स्थाल्यमोघा तोयाधिवासिनी । वसन्तकामयोर्दूती, कुम्भिका कालवृन्तिका ॥ १९०८ अन्यस्यां तत्र तु श्वेता, पाटला काष्ठपाटला । शीतला श्वेतकुम्भीका, कुबेराक्षी फलेरुहा ॥ १९०९ अगुरावगुरुर्लोहं, वंशिकं विश्वरूपकम् । कृमिजं प्रवरं राजार्ह, स्याद् योगजमनार्यकम् ॥ १९१० मल्लिगन्धेऽत्र मङ्गल्या, कृष्णे तु काकतुण्डकः । । श्रीखण्डे स्यान्मलयजं, चन्दनं श्वेतचन्दनम् ॥ १९११ गोशीर्षकं गन्धसारं, भद्रश्रीस्तैलपर्णिकम् ।। फलकी सुरभिः सारं, महार्ह रोहणोद्भवम् ॥ १९१२ अथ बर्बरके श्वेतं, निर्गन्धं बर्बरोद्भवम् । स्याद्रक्तचन्दने क्षुद्रचन्दनं भास्करप्रियम् ॥ १९१३ ताम्रसारं रक्तसारं, लोहितं हरिचन्दनम् । कुचन्दने तु पत्राङ्गं, पत्त(त्र)ङ्गं पट्टरञ्जनम् ॥ १९१४ सुरङ्गकं रक्तकाष्ठं, पत्तूरं तिलपर्णिका । अथ द्रुमोत्पलव्याधः, परिव्याधः सुगन्धकः ॥ १९१५ निर्गन्धेऽस्मिन् कर्णिकारो, निषीथः पीतपुष्पकः । पुंनागे तु महानागः, केसरो रक्तकेसरः ॥ १९१६ देववल्लभकुम्भीको, तुङ्गः पुरुषनामकः । अथागस्त्ये वङ्गसेनः, शुकनासो मुनिद्रुमः ॥ १९१७ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० निघण्टुशेषः । करवीरे कणवीरः, श्वेतपुष्पोऽश्वमारकः । प्रतिहासः शतप्राशोऽश्वारोहः कुमुदोद्भवः ॥ १९१८ रक्तपुष्पेऽत्र लगुडश्चण्डातश्चण्डगुल्मको । १९२१ १९२२ कालस्कन्धस्तमाले स्यात्तापिच्छो रजतो वसुः ॥ १९१९ तमालपत्रे वस्त्राख्यं, रोमशं तामसं दलम् । सूक्ष्मैलायां चन्द्रबाला, द्राविडी निष्कुटित्रुटि: ॥ १९१० कपोतवर्णिका तुच्छा, कोरजी बहुला तुला । स्थूलैलायां बृहदेला, पत्रैला त्वक्सुगन्धिका ॥ त्रिदिवोद्भवा पृथ्वीका, कर्णिका त्रिपुटा पुटा । कर्पूरे घनसारः स्याद्धिमाहो हिमवालुकः ॥ सिताभ्रः शीतलरजः, स्फटिकश्चन्द्रनामकः । कोलके कटुफलं, कोमलं मागधोत्थितम् ॥ १९२३ कोलं कोषफलं कोरं, मारीचं द्वीपमित्यपि । लवङ्गे शिखरं दिव्यं, भृङ्गारं वारिजं लवम् ॥ श्रीपुष्पं श्याह्वयं देवपुष्पं चन्दनपुष्पकम् । नलिकायां कपोताङ्गिर्निर्मध्या शुषिरा नदी || धमन्यञ्जनकेशी च शून्या विद्रुमवलयपि । अतिमुक्त मुण्डकः स्यात्पुण्ड्रको भ्रमरोत्सवः || १९२६ पराश्रयः सुवासन्ती, कामुको माधवी लता । पिप्पले बोधिरश्वत्थः, श्रीवृक्षश्चलपत्रकः ॥ १९२४ १९२५ १९२७ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। २५१ मङ्गल्यः केशवावासः, श्यामलो द्विरदाशनः। गर्दभाण्डे कन्दरालश्छायावृक्षः कमण्डलुः ॥ १९९८ प्लक्षो वटप्लवः शुश्री, सुपार्श्वश्चारुदर्शनः। . कपीतने कपीनः स्यात्पीतनप्लवकावपि ॥ १९२९ कर्पटोऽपर्कटी प्लक्षः, सतीदो लक्षणे नटी। वटे वैश्रवणावासो, न्यग्रोधो बहुपाद्धवः ॥ १९३० स्कन्धजन्मारक्तफलः, क्षीरी शुङ्गी वनस्पतिः। उदुम्बरे जन्तुफलो, यज्ञाङ्गो हेमदुग्धकः ॥ १९३१ सदाफलो वसुवृक्षः, श्वेतवल्को मशक्यपि । काकोदुम्बरिकायां तु, फाल्गुनी फल्गुवाटिका ॥ १९३२ फलराजी मलभारी, फलयूर्जघनेफला । राजादने तु राजन्या, क्षीरिका प्रियदर्शनः ॥ १९३३ कपिप्रियो दृढस्कन्धो, मधुराजफलो नृपः । मियाले तु राजवृक्षो, बहुवल्को धनुप्पुटः ॥ १९३४ सन्नकदुः खरस्कन्धश्चारस्तापसवल्लभः । आम्रातके वर्षपाकी, कपिचूतः कपिप्रियः॥ १९३५ कपीतनः पीतनकस्खनुक्षीरोऽअपाटकः । शृङ्गी कपिरसादयः खादुष्पकलो विभीषणः ॥ १९३६ अर्के विकीरणोऽक्राहो ज्यंभला स्फोतविच्छुरा । क्षीरापर्णो राजा, त्वलर्को गणरूपकः ॥ १९३७ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ निघण्टुशेषः। एकाष्ठीलः सदापुष्पो, मन्दारश्च प्रतापसः । बुट्यां वज्रो महावृक्षोऽसिपत्रः खक्सुधा गुडा ॥ १९३८ समन्तदुग्धा सीहुण्डा, शण्डेरी वक्रकण्टकः । करमर्दे करमन्दः, कराम्रकसुषेणकौ ॥ १९३९ स्थलपर्केट आविग्नः, कृष्णपाकफलोऽपि च । जम्बीरे जम्भलो जम्भो, जम्भीलो दन्तहर्षणः ॥ १९४० वक्रशोधी दन्तशठो, गम्भीरो रोचनोऽपि च । करुणे तु छागलाख्यो, मल्लिकाकुसुमः प्रियः॥ १९४१ बीजपूरे बीजपूर्णः, पूरकः फलपूरकः ।। सुपूरको मातुलुङ्गः, केसराम्लोऽम्लकेसरः ॥ १९४२ वराम्लो बीजको लुङ्गो, रुचको मध्यकेसरः ।। कृमिघ्नो गन्धकुसुमः, केसरी साधुपादपः ॥ १९४३ मातुलुङ्गी वर्धमाना, मधुरा मधुकुक्कुटी । मधुवल्ली पूतिपुष्पा, देवदूती महाबला ॥ १९४४ आम्लिकायां चुक्रिकाम्ला, शुक्तिकाम्ली विकाम्लिका । चुक्रा चिञ्चा तिन्तिडीका, तिन्तिला गुरुपुष्पिका ॥ १९४५ वृक्षाम्ले स्यादम्लवृक्षस्तिन्तिडीको महीरुहः । शाकाम्लमम्लशाकं चाम्लपूरो रक्तपूरकः ॥ १९४६ अथाम्लवेतसे भीमो, भेदनो रक्तपूरकः । रुधिरस्रावकश्चक्रं, मांसारिर्वानिकप्रियः ॥ १९४७ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः । २५३ १९४८ शाखाम्लो वेतसोऽम्लोऽम्लस्तिन्तिडीको रसाम्लकः । स शङ्खद्रावको हीनो, लौहद्रावक उत्तमः ॥ तावेव तु शतवेधिसहस्रवेधिनौ क्रमात् । कपित्थे वानरावासो, गन्धपत्रः कपिप्रियः ॥ १९४९ पुष्पफलो दधिफलो, दधित्थग्राहिमन्मथाः । अक्षिस्यंदो दन्तशठो, राजाम्रश्विरपाक्यपि ॥ अश्मन्तके श्लक्ष्णपत्रः, पाषाणावूक इन्द्रकः । अम्लपत्रस्ताम्रपत्रः, कुशली यमलच्छदः ॥ नारङ्गे स्यान्नागरङ्गस्त्वक्सुगन्धो मुखप्रियः । ऐरावतो योगसारो, योगी तक्राधिवासनः ॥ खदिरे स्याद्रक्तसारः, कण्टकी दन्तधावनः । गायत्री बालपत्रश्च, जिह्वाशल्यं क्षितिक्षमः ॥ सिते तु तत्र कदरः, कार्मकः कुब्जकण्टकः । सोमवल्को नेमिवृक्षः, श्यामसारः पथिद्रुमः ॥ १९५४ विट्खदिरे त्विरिमिदो, गोधास्कन्धोऽरिमेदकः । अरिमारोऽरिमः पूत्यरिमेदो मुखशोधनः ॥ शाल्मली तूलिनी मोचा, पिच्छिला विरजा विता । कुक्कुटी पूरणी रक्तकुसुमा घुणवल्लभा ॥ कण्टकाढ्याऽनलफली, पिच्छा तु तस्य वेष्टकः । कुशाल्मलौ शाल्मलिका, रोचनः कूटशाल्मलिः ॥ १९५७ १९५५ १९५६ १९५० १९५१ १९५२ १९५३ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ निघण्टुशेषः। शिशिपायां महाश्यामा, पिच्छिला पाण्डुरच्छदा । कृष्णसाराऽङ्गारवर्णा, गुरुरल्पा तु शिशिपा ॥ १९५८ कुशिशिपा भस्मगर्भा, कपिला भसपिङ्गला । बदर्या कुवलिः कोलिः, कर्कन्धुः फेनिलच्छदा ॥ १९५९ राष्ट्रवृद्धिकरी कोली, सौवीरी वज्रशिल्पिका । घुटा घोण्टा कोपघोण्टा, व्याघ्रगृध्रनखीत्यपि॥ १९६० शम्यां सक्तुफला लक्ष्मीः, शिवा तुझाऽमिपादपः । अजप्रिया भस्मकाष्ठा, शंकरः शिवकीलिका ॥ १९६१ शिवलोमा यतफला, लोमपामविनाशिनी । मङ्गल्या शुचिपत्रा च, फले तस्यास्तु सागरः ॥ १९६२ इङ्गयां तापसतरुर्मार्जारः कण्टकीटकः । बिन्दुकस्तिक्तमज्जा च, पूतिपुष्पफलोऽपि च ॥ १९६३ गुग्गुलौ तु पुरो दुर्गों, महिषाक्षः पलङ्कषः । । जटायुः कालनिर्यासो, वासवोलूकनामकः ॥ १९६४ नक्तंचरः शिवधूपः, कुम्भोलूखलकः शिवः ।। पारिभद्रे निम्बतरुर्मन्दारः पारिजातकः ॥ १९६५ करीरे स्यात्तीक्ष्णसारः, शाकपुष्पो मृदुः फलः । मरुजन्मा गूढपत्रो, प्रन्थिलककरावपि ॥ १९६६ विककते सुवावृक्षो, प्रन्थिलः स्वादुकण्टकः । केकणिः काकपादश्च, व्याघ्रपादोऽपकण्टकः ॥ १९६७ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। २५५ बिल्वे महाफलः श्याः, शलाटुः पूतिमारुतः । महाकपित्थं शाण्डिल्यः, शैलषो नीलमल्लिका ॥ १९६८ श्रीवासः श्रीफलो हृद्यगन्धो मालरकर्कटौ। , हरीतक्यां जया पथ्या, हैमवत्यभयाऽमृता ॥ १९६९ कायस्था पूतना चेतक्यव्यथा श्रेयसी शिवा । ... बिभीतके भूतवासो, वासन्तोऽक्षो वहेडकः ॥ १९७० संवर्तकः कर्षफलः, कल्को हार्यः कलिद्रुमः । कों दैत्यो मधुबीजो, धर्मद्वेषी बिभेदकः ॥ १९७१ आमलक्यां शिवा धात्री, वयस्था षड्रसाऽमृता । पर्वकाढ्या तिष्यफला, माकन्दी श्रीफला च सा॥१९७२ अरणावनिमन्थः स्यात्तर्कारी वैजयन्तिका। जया जयन्ती श्रीपर्णी, कर्णिका गणिकारिका ॥ १९७३ तेजोमन्थो हविर्मन्थो, नादेयी वहिशोधनः । अरलो दुन्दको दीर्घवृन्तानतः कुटंनटः ॥ १९७४ श्योनाकः शोषणो जम्बुः, शुकनासः कुटंभरः । मयूरजङ्कः कटुङ्गः, सल्लकः प्रियजीवकः ॥ १९७५ मण्डूकपर्णः पत्रोर्णो, गोपवृक्षो मुनिद्रुमः । शिनौ शोभाञ्जनस्तीक्ष्णगन्धो मूलकपल्लवः ॥ १९७६ विद्रध्यरातिः काक्षीवो, मुखभञ्जः सुभञ्जनः । दृशोऽक्षीवः सुरङ्गी च, मोचको मधुगृञ्जनः ।। १९७७ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ निघण्टुशेषः। श्वेतेऽत्र श्वतमरिचो, रक्ते तु मधुशिकः । तिनिशे रथकृन्नेमिर्वञ्जुलो रथसाधकः ॥ १९७८ दीर्घवृक्षश्चककरो, रथनामातिमुक्तकः । अश्मगर्भः सर्वसारः, क्रमसंधारणोऽपि च ॥ १९७९ पलाशे किंशुकः पर्णः, वरपर्णस्त्रिपत्रकः ।। त्रिवृन्ताख्यो रक्तपुष्पो, बीजस्लेहः समिद्वरः ॥ १९८० क्षारश्रेष्ठो वातपोथो, याज्ञिको ब्रह्मपादपः। धवे भारोद्वहो गौरः, सकटाक्षो धुरंधरः ॥ १९८१ कुलावो नन्दिनश्चापि, सितः कृष्णश्च स द्विधा । श्रीपा काश्मरी कृष्णा, वृन्तिका मधुपर्णिका ।। १९८२ गम्भारी सर्वतोभद्रा, कटफला भद्रपर्णिका । विहारी कुमुदाहारी, महाकुम्भी च कश्मरी ॥ १९८३ नित्यभद्रा महाभद्रा, काश्मर्यो मधुमत्यपि । सप्तच्छदे शुक्तिपर्णो, गुच्छः पुष्पः सुवर्णकः ॥ १९८४ स्थूलपर्णो दीपवृक्षः शारदो विषमच्छदः । मदगन्धिर्विशालत्वग्गजद्विद शाल्मलीदलः ॥ १९८५ शिरोरुर्गेहविटपः, सुमनो ग्रहनाशनः । आरग्वधे कृतमालः, कर्णिकारः सुवर्णकः ॥ १९८६ पीतपुष्पो दीर्घफलः, शम्पाकश्चतुरङ्गुलः। व्याधिहा रेवतः स्थूलः, प्रग्रहो राजपादपः ॥ १९८७ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। २५७ आरोग्यशिम्बिका कर्णी, स्वर्णशेफालिकेत्यपि । बीजके प्रियकः शौरिौरो बन्धूकपुष्पकः ॥ १९८८ कृष्णसों महासर्जः, कल्याणः पीतरोऽसनः । महाशालः पीतशालो, जीवकः प्रियशालकः ॥ १९८९ सुगन्धिीलनिर्यासस्तिष्यः पुष्पोऽलकप्रियः । स तु द्विधा शिखिग्रीवः, श्रेष्ठो गोमूत्रगन्धकः ॥ १९९० अश्वकर्णे दीर्घपत्रः, कषायः सस्यसंवरः । सर्जकः शर्जकः शूरः, कार्यशालो लतातरुः ॥ १९९१ अर्जुने ककुभः सेव्यः, सुवर्णो धूर्तपादपः । देवशाकः शक्रतरुनंदीसोंऽर्जुनाभिधः ॥ १९९२ शाके कोलफलो द्वारदारुयोगी हलीसकः । गन्धसारः स्थिरसारः, स्थिरको ध्रुवसाधनः ॥ १९९३ अभ्रंलिहो महापत्रो, बलसारो बलप्रभः ।। धर्मणे तु धनुर्वृक्षो, गोत्रवृक्षो रुजासहः ॥ १९९४ महाबलो महावृक्षो, राजाहो धन्वनः फलम् । खादुफलो मृत्युफलः, सारवृक्षः सुतेजनः ॥ १९९५ सिल्लके तु सिद्धवृक्षः, कोलिपत्रे तु जोरणः। महापत्रे त्वगदी स्याद्विषशङ्कः पलाशकः ॥ १९९६ पारिभद्रे दुकिलिमं, किलिमं देववल्लभः । . दारुकं स्नेहविद्धं च, देवदुः खर्गतो द्रुमः ॥ १९९७ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ निघण्टुशेषः। पीतपूतिमहादेवभरेन्द्रा काष्ठदारुणी । मधूके मधुशाकः स्यान्माधवो मधुको मधुः ॥ १९९८ मधुष्ठीलो मधुष्ठालो, मधुकाष्ठो मधुस्रवः । रोधः कोषमधुर्मुडपुष्पो गोलफलोऽपि च ॥ १९९९ जलजेऽस्मिन्मधूलः स्यादिरिजो दीर्घपत्रकः । तीरवृक्षो गौरशाको, ह्रखपुष्पफलोऽपि च ॥ २००० तिन्दुके स्फूर्जनस्तुष्टः, कालस्कन्धो विरूपकः । निःस्यन्दनः कालशाको, द्रावणो नीलसारकः ॥ २००१ द्वितीयतिन्दुके कालस्तिन्दुर्मर्कटतिन्दुकः । काकेन्दुकः काकपीलुः, कुपालुकुलकावपि ।। २००२ रोधे लोध्रः सिते तत्र, शाबरस्तनुवल्कलः । उत्सादनो महारोधोऽनम्भः शंबरपादपः ॥ २००३ रक्ते तु पट्टिका तिल्वः, पट्टी लाक्षा प्रसादनः । तिरीटो मार्जनश्चिल्ली, कानीनः क्रमुकः शिशुः ।। २००४ स्थूलवल्को बृहत्पत्रः, कृष्णरोधे तु गालवः। भूर्जे भुजो बहुपटो, मृदुवल्को मृदुच्छदः ॥ २००५ रेखापत्रश्छत्रपत्रो, बहुत्वक्चर्मिणावपि । श्लेष्मान्तके भूतवृक्षः, पिच्छिलो द्विजकुत्सितः ॥ २००६ वसन्तकुसुमः शेलुः, कफेलुर्लेखशाटकः । विषधाती बहुवारः, शीत उद्दालकः शलुः ।। २००७ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २००८ निघण्टुशेषः । लकुचे लकुटो ग्रन्थिफलाम्बुपनसा मदुः । लघुत्वक् क्षुद्रपनसस्तनु स्यात्कुब्जकं फलम् ॥ आम्रे रसालो माकन्दः, कामाङ्गः पिकबान्धवः । वनपुष्पोऽशवश्वतः परपुष्टो मदोद्भवः ॥ मधुदूतो मधुफलः, सुफलो मदिरासखः । वसन्तपादपोऽसौ तु, सहकारोऽतिसौरभः ॥ क्षुद्राम्रे स्यात्कृमितरुर्लाक्षावृक्षो जतुद्रुमः । सुकोशको घनस्कन्धः, केशाम्बुश्च सुरक्तसः ॥ २०११ टको नीलकपित्थोऽन्यो, राजपुत्रो नृपात्मजः । २०१३ जम्ब्वां महाफला राजजम्बूनलाम्बुजच्छदा || २०१२ सुगन्धिपत्रा सान्या तु, काकजम्बूः कुजम्बुका । उशीरपत्रा नादेयी, वैदेशी काकवल्लभा ॥ मदने श्वसनो राठः, शल्यको विषनाशकः । करहाटो मरुबकः, पिण्डी पिण्डीतकः फलः ॥ २०१४ सूर्यपुत्रकर्कटको, विषगन्धो विषोदरः । मत्स्यान्तकफलो राजपुत्रकः कफवर्धनः || कुब्जके कामुकं श्यामसारः फुल्लो मिसिद्धमः । निचुले तु नदीकान्तोऽम्बुजो हिज्जुल इज्जलः ॥ २०१६ गन्धपुष्पो गुच्छफलोऽनुवाकः कच्छकोस्यपि । बेतसे विदुलः शीतो, नदीकूलप्रियो रथः ॥ २०१७ २५९ २००९ २०१० २०१५ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० निघण्टुशेषः। अभ्रपुष्पः पत्रमाली, वाणीरो वञ्जलोऽपि च । स्थादम्बुवेतसे भीरु देयी बालभीरुकः ॥ २०१८ विदुलो मञ्जरीनम्रः, परिव्याधो निकुञ्जकः । वरुणे गन्धवृक्षः स्यात्तिक्तशाकः कुमारकः ॥ २०१९ श्वेतपुष्पः श्वेतफलस्तमालो मारुतापहः । साधुवृक्षः श्वेतवृक्षः, सेतुरश्मरिकारिपुः ॥ २०२० अकोटे स्यात्पीतसारो, दीर्घकीलो निकोचकः । अकोलकस्ताम्रफलो, रेचको गन्धपुष्पकः ॥ २०२१ भिल्लातके वीरतरुररुष्कोऽरुष्करो व्रणः । भौतिको भूतनुभृरिनेहः शोफकरो धनुः ॥ २०२२ अमिमुखी बहुपत्रो, भल्ली सूर्यामिसंज्ञकः । अरिष्ठे स्यात्कृष्णवर्णो, रक्तबीजोऽर्थसाधनः॥ २०२३ शुभनामा शीतफेनः, फेनिलो गर्भपातनः । निम्बे तु सर्वतोभद्रः, पारिभद्रः सुतिक्तकः ॥ २०२४ पिचुमन्दो यवनेष्टः, शुकेष्टः शुकमालकः ।। अरिष्ठो हिङ्गुनियोसो, वेता नियमनोऽपि च ॥ २०२५ महानिम्बे निम्बकरः, कार्मुको विषमुष्टिकः । रम्यकः क्षीबको वृक्षोऽक्षिपीलुः केशमुष्टिकः ॥ २०२६ पीली संसी सहस्राङ्गः, शीतः करभवल्लभः । गुल्मारिर्गुडफलश्वाथास्मिंस्तु गिरिसंभवे ॥ २०२७ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः । अक्षोटः कर्परालश्च, फलस्नेहो गुहाशयः । पारावते तु साराम्लो, रक्तमालः परावतः ॥ आरेवतः सारफलो, महापारावतो महान् । कपोताण्डतुल्यफलो, रुद्राक्षे तु महामुनिः ॥ स तु चतुर्मुखो ब्रह्मा, द्विमुखस्तु वरार्गलः । षण्मुखस्तु कार्तिकेयः, पञ्चमुखस्तु शंकरः ॥ माधवस्त्वेकवदनो, विजयाशस्त्रधारणः । पुत्रजीवे त्वक्षफलः, कुमारजीवनामकः ॥ करने स्यान्नक्तमालः, पूतीकश्चिरबिल्वकः । करजः श्रीपदारिश्व, प्रकीर्णः कलिनाशनः ॥ भेदास्त्वस्य त्रयस्तत्र, षड्ग्रन्था हस्तिवारुणी । कर्मद्यां तु कृतमाल, उदकार्यः प्रकार्यकः ॥ अङ्गारवल्यां शार्ङ्गस्था, कासनी करतालिका । रोहीतके रोहितको, रोही दाडिमपुष्पकः ॥ रोहेडकः सदापुष्पो, रोचना प्लीहरक्तहा । कट्फले तु सोमवल्कः, कैडर्यो गोपभद्रिका ॥। २०३५ कुम्भी कुमुदिका भद्रा, श्रीपर्णी भद्रवत्यपि । दाडिमे कुट्टिम: कीरवल्लभः फलपाण्डवः ॥ करको दन्तबीजश्वा घोडपुष्पे जपा जवा । तक्यां तु धातुपुष्पा, बर्हिपुष्प्यभिपुष्पिका ॥। २०३७ .२६१ २०२८ २०२९ २०३० २०३१ २०३२ २०३३ २०३४ २०३६ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ निमग्दुशेषः। ताम्रपर्णी सुभिक्षा च, कुञ्जरा मद्यपावनी । सल्लक्यां वल्लकी हादा, सुवहा सुखवा रसा ॥ २०३८ अश्वमूर्तिः कुन्दरुकी, गजभक्ष्या महेरणा । गन्धवीरा गन्धकारी, सुरभिर्वनकर्णिका ॥ २०३९ एरण्डे तरुणश्चित्रो, दीर्घदण्डो व्यडम्बकः ।। पञ्चाङ्गुलो वर्द्धमान, आमण्डो रुवको रुवूः ।। २०४० व्याघ्रपुच्छो व्याघ्रतलश्चधुरुत्तानपत्रकः । गन्धर्वहस्तकश्वञ्चुरादण्डो हस्तिपर्णकः ॥ २०११ उरुबूको हस्तिकर्णः, शुक्लो रक्तश्च स द्विधा । । किम्पाके तु महाकालः, काकर्दः काकमर्दकः ॥ २०४२ कम्पिल्लके तु काम्पिल्लो, रक्ताङ्गो रक्तचूर्णकः । चन्द्राहयो रेचनकः, कर्कशाहः पटोदयः ॥ २०४३ केतकच्छदनीयोऽम्बुप्रसादनफलः कतः । कार्पास्यां तु समुद्रान्ता, बदरा तुण्डिकेर्यपि ॥ २०४४ सा तु वन्या भरद्वाजी, भद्रा चन्दनबीजिका । वन्दायां स्यात्तदरहो, शौखर्यपदरोहिणी ॥ २०४५ वृक्षादनी वृक्षरुजो, जयन्ती कामपादपः। स तु क्षीरवृक्षभवो, नन्दीवृक्षो जयनुमः॥ २०४६ आटरूषे वृषो वासा, वाशिका वाजिदन्तकः । भिषङ्माता सिंहमुखः, सिंहांका सिंहपर्णिका ॥ २०४७ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः । २०४९ २०५०. " तुम्बरौ सानुजः सौरः, सौरलो (सो) वनजोदकः । तीक्ष्णवस्कस्तीक्ष्णफलस्तीक्ष्णपत्रो महामुनिः ॥ २०४८ कदल्यां तु हस्तिविषा, रम्भा मोचाऽंशुमत्फला । काष्ठीला वारणवशा, स्यात्कालीरस इत्यपि ॥ तगरे कालानुसार्य, चक्राख्यो मधुको नृपः । तूले तूदं ब्रह्मदारु, ब्रह्मण्यं ब्रह्मकाष्टकम् || ब्रह्मनिष्ठं च दापं च क्रमुकं ब्रह्मचारि च । मुष्कके मूर्खको घण्टा, क्रन्दालो मोक्षमुंचकौ ॥ २०५१ पाटलिगलिहः क्षारश्रेष्ठः कृष्णः सितश्च सः । वंशे यवफलो वेणुः, शतपर्या तृणध्वजः ॥ मस्करस्त्वचिसारस्त्वक्सारकर्मारितेजनाः । गारुच्यां विश्वदेवदेवा हखा गवेधुका | खण्डारिष्ठा नागबला, स्वरबन्धनिकेत्यपि । दाव दारुहरिद्रायां, पीता कण्टकसेरुका ॥ पीतद्रुमः पीतदारु, पीतनं पीतचन्दनम् । पर्ज़नी कर्कटकिनी, कालेयकः पचम्पचा || ग्रन्थिपर्णे श्लिष्टपर्ण, विकीर्ण शीर्णरोमकम् । हरितं कुकुरं पुष्पं, शुकगच्छं शुकच्छदम् ॥ २०५६ स्थtयकं वह्निचूडा, सुगन्धग्रन्थिकावपि । स्पृक्कायां ब्राह्मणी पङ्कमुष्टिकापि शुनावधूः || १६-ब २६३ २०५२ २०५३ २०५४ २०५५ २०५७ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। समुद्रान्ता मरुन्माला, निर्माल्या देवपुत्रिका । लङ्कातिका कोटिवर्षा, देवी पङ्कजमुष्टिका ॥ २०५८ गोमी स्वर्णलतेन्द्राणी, मरुन्माला तला लधुः ।। विडङ्गे केरला मोघा, तन्दुलः कृष्णतन्दुलः ॥ २०५९ वेल्लकः (भस्मकः) कृमिहा जन्तुघातको मृगगामिनी । इन्द्राक्षे ऋषभो वीरः, श्रीमान्वृषभनामकः ॥ २०६० धूधुरो गोपतिः शृङ्गी, बन्धुरः पृथिवीपतिः । ऋद्धौ सिद्धिर्युगं योग्यं, रथाङ्गं मङ्गलं वसु ॥ २०६१ ऋषिसृष्टसुखं लक्ष्मीर्वृद्धेरप्याह्वया अमी। पझके मालकः पीतो, रक्तश्च रुसरुश्यवः॥ २०६२ सुशुभः शीतवीर्यश्च, पाटलः पीतवर्णकः । कष्टे स्यात्काककुष्टः, पुलकः काकपालकः ॥ २०६३ रेचनः शोधनो हासो, विडङ्गो रङ्गदायकः । परूषके स्यादल्पास्थिः, परुषो नीलपर्णकः ॥ २०६४ परोऽपरः परश्चैष, परिमण्डल इत्यपि । खर्जूरे त्वजः पिण्डी, निःश्रेणिः खादुमस्तकः॥२०६५ खजूरिकायां स्याद्भूमिखर्जूरी काककर्कटी । ताले तलो लेख्यपत्रस्तृणराजो ध्वजद्रुमः ॥ २०६६ नालिकेरे रसफलो, लाङ्गली कूर्च केसरः । दाक्षिणात्यो प्रौढफलो, नारिकेरो लतातरुः ॥ २०६७ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। २६५ पूगे गुवाकः क्रमुकः, पूगी च (खपुरा) नीलवल्कलः । घण्टाऽस्य फलमद्वेग, चिक्के तु तत्र चिक्कणम् ॥ २०६८ विन्ताके तु रजःपुष्पो, जम्बूलः क्रमुकच्छदः। हिन्ताले तु तृणराजो, राजवृक्षो लताङ्करः ॥ २०६९ ताल्यां तु मृत्युपुष्पा स्यादेकपत्रफलापि च ।। खजूरतालखर्जूरीतालीहिन्तालकेतकाः॥ २०७० क्रमुको नालिकेरश्च, स्युरेते तृणपादपाः ॥ २०७१ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते निघण्टुशेषे प्रथमो वृक्षकाण्डः। सिन्दुवारे तु निर्गुण्डी, सीन्दुको नीलसन्धिकः । शीतसहा च सुरसा, चेन्द्राणी सिन्दुवारकः ॥ २०७२ सा नीला वनशेफाली, सुपुष्पा नीलमञ्जरी । श्वेता तु श्वेतसुरसा, गोलोमा भूतकेश्यपि ॥ २०७३ शेफालिकायां सुवहा, निर्गुण्डी नीलिकासुता । सुरसा रक्तवृन्ता च, श्वित्रघ्नी पुष्पवर्षिणी ॥ २०७४ सा तु शुक्ला भूतकेशी, सत्यनान्नी बहुक्षमा । प्रियङ्गौ प्रियकः कः, प्रियवल्ली प्रियालता ॥ २०७५ विष्वक्सेना गन्धफली, कारम्भा फलिनी फली । गुन्द्रा गोवन्द्रनी श्यामा, योषाह्वा पर्णभेदिनी ॥ २०७६ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ निघण्टुशेषः। मधुरायां यष्टीमधुस्तल्लक्षणा मधुसवा । क्लीतकं च जलजासौ, मधुपर्णी मधूलिका ॥ २०७७ अश्वगन्धायां तुरगी, कम्बुकाश्वावरोहकः । । अश्वकन्दो बहुगन्धा, पुत्रदा कोलकर्ण्यपि ॥ २०७८ मेषशृङ्गयामजशृङ्गी, वर्तिका सर्पदंष्ट्रिका । सैव स्यादक्षिणावता, वृश्चिकाला विषाणिका ॥ २०७९ उष्ट्रधूमकपुच्छा च, काली च विषघातिनी । शृङ्गी तु कर्कटशृङ्गयां, नताङ्गी शिशिरेफला ॥ २०८० कर्कटाहा महाघोषा, वका मञ्जरिशिम्बिका । निदिग्धिकायां कण्टाली, दुःस्पर्शा कण्टकारिका ॥२०८१ व्याघ्री क्षुद्रा दुष्प्रधर्षा, धावनी हेमपुष्पिका । . बृहत्यां क्षुद्रभण्टाकी, वार्ताकी राष्ट्रिका कुली॥ २०८२ विशदः सिंह्यनाक्रान्ता, महोटिका महत्यपि । विदार्या तु खादुकन्दा, पुष्पकन्दा मृगालिका ॥ २०८३ वृक्षादनी चर्मकषा, भूकुष्माण्ड्यश्ववल्लभा । बिडालिका वृक्षपर्णी, महाश्वेता परा तु सा ॥ २०८४ क्षीरशुक्ला क्षीरकन्दा, क्षीरवल्ली पयखिनी । ऋष्यगन्धेक्षुगन्धेक्षुवल्ली क्षीरविदारिका ॥. २०८५ पृश्निपा पृथक्पर्णी, लाङ्गली क्रोष्टुपुच्छिका। . शृगालवर्णा कलशी, घृतिका धावनी गुहा ॥ २०८६ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। २६७ सिंहपुच्छी चित्रपर्ण्यशिपर्णी तिलपर्ण्यपि । गोक्षुरे स्थलशृङ्गालवनशृङ्गाटगोक्षुराः ॥ २०८७ कण्टी षडङ्गी गोकण्टस्त्रिकण्टस्तु त्रिकस्त्रिकः । इक्षुगन्धा व्यालदंष्ट्रः, श्वदंष्ट्रः स्वादुकण्टकः ॥ २०८८ पलङ्कषा कण्टफलः, षडङ्गस्तुक्षुरः क्षुरः । दन्त्यां शीघ्रोपशल्या च, चित्रोदुम्बरपर्णिका ॥ २०८९ मकूलको रामदूती, निकुम्भो घुणवल्लभा । नागदन्त्यां हस्तिदन्ती, वारुणी चापि चिभिटी ॥ २०९० मृगादनी मृगैर्वारुमंगाक्षी भुजगस्फटा । श्वेतपुष्पा मधुपुष्पा पर्वपुष्पा, विषौषधिः ॥ २०९१ अपामार्गे त्वधःशल्या, किणिही खरमञ्जरी। धामार्गवः शैखरिको, वशिरः कपिपिष्पली ॥ २०९२ कपिवल्ली मर्कटिका, शिखर्याघाटदुर्ग्रहौ । प्रत्यक्पुष्पी पत्रपुष्पी, केशवल्ली मयूरकः ॥ २०९३ पुनर्नवायां वृश्चीरो, दीर्घपत्रा शिलाटिका । विशाखः क्षुद्रवर्षाभूः, कटिलः प्रावृषायणी ॥ २०९४ शोफन्नी चापरा त्वेषा, करमण्डलपत्रकः ।। श्वेतमूला महावर्षा, भूवर्षकेतुरित्यपि ॥ २०९५ ज्योतिष्मत्यां खर्णलता, दुर्मना लवणाग्निभा । पारावतपदी पण्या, ज्योतिष्का कटभीत्यपि ॥ २०९६ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ निघण्टुशेषः। माषपा(माईमाषा मांसमासा)सूर्यपर्णी, पाण्डुश्चापि महा सहा। अश्वपुच्छा सिंहवृन्ता, कम्बोजी कृष्णवृन्तिका ॥ २०९७ मुद्गपा काकमुद्दा, वन्या मार्जारगन्धिका । शिवा क्षुद्रसहा हासी, रङ्गणी सूर्यपर्णिका ॥ २०९८ भूम्यामलक्याममला, बहुपुत्रा वितुन्नकः।। तामलक्युज्झटा ज्ञायतालिका नुन्नमालिनी ॥ २०९९ हरिद्रायां वर्णवती, काञ्चनी वरवर्णिनी। निशाख्या रञ्जनी गौरी, पीतिका मेहघातिनी ।। २१०० वेश्या विटप्रिया पिंडा, हरिता च तरङ्गिणी । प्रपुन्नाटे तु दद्रुघ्नश्चक्राकश्चक्रमर्दकः ।। २१०१ मेषाक्षो मेषकुसुमः, पद्माटैडगजावपि । मुण्ड्यांमुण्डतिका भिक्षः, श्रावणी जीवबोधिनी॥ २१०२ श्रवणा श्रवणशीर्षा, प्रव्रजिता तपखिनी । महाश्रावणिकायां तु, व्यथा कदम्बपुष्पिका ॥ २१०३ ग्रन्थिका लोभनीया च, च्छिन्नग्रन्थनिकापि च । वाकुच्यां स्यात्कालमेषी, दुर्गन्धा कुष्ठनाशिनी ॥२१०४ पूतिपर्णी सोमराजी, सुवल्ली सोमवल्लिका । अवल्गुजः कृष्णफला, दुलेखा पूतिफल्यपि ॥ २१०५ रास्नायां श्रेयसी रस्या, रसन्यतिरसा रसा। एलापर्णी गन्धमूला, सुवहा मारुतापहा ॥ २१०६ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। नाकुल्यां सर्पगन्धा तु, सुगन्धा वारिपत्रका । गन्धनाकुलिकायां तु, साक्षी विषमर्दिनी ॥ २१०७ महासुगन्धा सुवहा, छत्राकी नकुलप्रिया ।। कुठेरके त्वर्जकः स्यात्क्षुद्रपत्रः कुठिञ्जरः ॥ २१०८ वैकुण्ठस्तीक्ष्णगन्धश्च, द्वितीयों वटपत्रकः । पर्णासो बिल्वगन्धश्च, स तु कृष्णः सरालकः॥ २१०९ कालतालः कृष्णमल्ली, मालुकः कृष्णमालुकः । तुलस्यां सुरसा प्रेतराक्षसी बहुमञ्जरी । २११० यस्या गौरी शक्रपत्नी, भूतघ्नी देवदुन्दुभिः । फणिज्जके मरिचकः, खरपत्रोऽत्रपत्रकः ॥ २१११ मरूपको मरुबको, जम्भीरो मारुतः फणी । त्रायन्ती त्रायमाणायां, कृतत्राणाशिसानुजा।। २११२ वार्षिकं बदरा घृष्टिाराही बलभद्रिका । बलदेवा सुदुत्राणा, विष्वक्सेनप्रियापि च ॥ २११३ यवासके धन्वयासो, यासो धन्वयवासकः ।। दूरमूलो दीर्घमूलो, बालपत्रो मरूद्भवः ॥ , २११४ कुनाशकोऽधिष्टकण्टस्ताम्रमूली प्रचोदनः । दुस्पर्शः कच्छुरानन्ता, समुद्रान्ता दुरालभा ॥ २११५ किराततिक्ते कैरातो, रामसेनः किरातकः । अनार्यतिक्तको हैमो, भूनिम्बः काण्डतिक्तकः॥ २११६ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० निघण्टुशेषः । " २११८ २११९. कुष्टे तु पाकलं रामं वानीरं वाप्यमुत्पलम् । वानीरजं वापिभाव्यं, कौरवं व्याधिनामकम् ॥ २११७ वालके जलकेशाख्यं, बर्हिष्टं दीर्घरोमकम् । ह्रीवेरो दिव्यवज्राणि, पिङ्गमाचमनं रुचम् ॥ शंढ्यां पलाशः षड्ग्रन्था, गन्धोली हिमजा वधूः । कर्बुरः सुत्रता ग्रन्थमूली पृथुफलाशिका | एलावालुका बैलेयं, वालुकं हरिवालुकम् । सुगन्ध्याकमेल्वाल, दुर्वर्ण प्रसरं दृढम् ॥ कुङ्कुमे रक्तपर्यायं, संकोचपिशुनं शुकम् । हीरं कुसुम्भं घुसृणं, पीतं वाल्हीकपीतने ॥ काश्मीरजं वह्निशिखं, वरं लोहितचन्दनम् । जात्यां तु रजनीपुष्पा, मालती तैलभाविनी ॥ २१२२ प्रियंवदा हृद्यगन्धा, मनोज्ञा सुमनोलता । तस्यास्तु कलिकायां स्यात्पत्री सौमनसायिनी ॥ २१२३ जातीफले जातिकोशं, शालूकं मालतीफलम् । मज्जसारं जात्यमृतं, शौण्डं सौमनसं पुटम् || यूथिकायां बालपुष्पा, मागधी शङ्खयूथिका । गुणोज्ज्वला पुण्यगन्धा, चारुमोटा शिखण्डिनी ॥ २१२५ अम्बष्ठा गणिका सा तु पीता स्याद्धेमपुष्पिका । कुन्दे माध्यः सदापुष्पो, मकरन्दो मनोहरः ॥ २१२६. " २१२० २१२१ २१२४ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। २७१ अट्टहासो भृङ्गमित्रं, शाल्योदनो यमश्वसः । स्यान्नवमालिकायां तु, मोमाली नवमालिनी ॥ २१२७ सत्सला मुकुरारातिः, सुरभिः शिशुगन्धिका । कान्ता विभावरी ग्रीष्मा, प्रैष्मिका शिखरिण्यपि॥ २१२८ मल्लिकायां शीतभीरुर्मदयन्ती प्रमोदनी । अष्टापदी तृणशूल्यं, गवाक्षा भूपदीत्यपि ॥ २१२९ वार्षिक्यां षट्पदानन्दी, श्रीमती सुभगा प्रिया। सुवर्षा त्रिपुटा व्यस्रसुरूपा मुक्तबन्धनात् ॥ २१३० कुमा- तु वर्णिचारुकेसरा भृङ्गसंमता । तरणी रामतराणिगेन्धाढ्या कन्यका सहा ॥ २१३१ अमिलाने स्यादम्लानौ........ महासहा। रक्तपुष्पः कुरुबकः, पीतपुष्पः कुरण्टकः ॥ २१३२ सैरेयके सहचरो, झिण्टी महावरश्च सः।। स तु रक्तः कुरबकः, स्यात्पीतस्तु कुरण्टकः ॥ २१३३ नील आर्तगलो दिसी, बाण ओदनपाक्यपि । किंकिराते किंकिराटः, पीतभद्रः प्रलोभ्यपि ॥ २१३४ चित्रके वल्लरीव्यालः, पाठीनो दारुणः कुटः । ज्योतिष्को जरणोऽम्याख्यो, बलिनद्धिपिपाठिनः॥२१३५ वासन्त्यां स्यात्प्रहसन्ती, सुवसन्ता वसन्तजा । सेव्यालिबान्धवा शीतसंवासा सीतला वसा ॥ २१३६ Www.jainelibrary.org Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ निघण्टुशेषः । २१३८ नील्यां श्रीफलका काला, दोला मेला विशोधनी । तूणी तुच्छा भारवाही, रञ्जनी मधुपर्णिका ॥ २१३७ द्रोणी क्लीकिका ग्राम्या, नीलकेशी महारसा 1. दमने स्याद्राजटा, मुनिर्दानर्षिपुत्रकौ ॥ गन्धोत्कटः पुण्डरीकः, पाण्डुरागस्तपस्व्यपि । धतूरे धूर्तधत्तूरौ, कितवो देवता शठः ॥ घण्टापुष्पस्तलफलो, मातुलः कनकाह्वयः । उन्मत्तो मदनश्चास्य, फलं मातुलपत्रकम् ॥ शङ्खपुष्प्यां क्षीरपुष्पी, शिवब्रह्मकिरीटिनी । मधुपुष्पी मधुगन्धा, शङ्खाह्वा शङ्खमालिनी || २१४१ धूसरच्छदना श्वेतपुष्पी वनविलासिनी । कर्चूरे द्रविडः काल्यो, वेधान्यो गन्धमूलकः ॥ २१४२ मोचामस्त्वजमोदायां, मयूरो लोचमस्तकः । खराश्वा कारवी वस्तगन्धा हस्तिमयूरकः ॥ दीप्यो वल्ली ब्रह्मदर्भा, लोचमर्कट इत्यपि । यवान्यां स्यादुग्रगन्धा, यमनी यवसाह्वयः । सहदेव्यां तथा दण्डोत्पला गोचन्दना वसा । गन्धवर्णा सितैः पुष्पैर्विश्वदेवा तु सारुणैः ॥ २१४३ २१४५ पर्पटके वरतिक्तो, रजः कवचनामकः । गोजिकायां शृङ्गबेरी, दार्विका भूमिकालिका ॥ २१४६ २१३९ २१४० २१४४ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। २७३ बलायां शीतपाकी स्याद्भवोदन्योदनाया । वाट्यालकस्तथा वाट्यपुष्पिका पीतपुष्पिका ॥ २१४७ देवसहा सहदेवाऽतिबला बाह्यपुष्पिका । ऋष्या प्रोक्ता ऋष्यगन्धा, ककता वर्षपुष्पिका ॥ २१४८ वाट्यायिनी भूरिबला, तिष्या वीर्या बृहर्ला । महागन्धा गन्धबली, मङ्गल्याऽर्थप्रसाधनी ॥ २१४९ मुसल्यां तु तालमूली, दुर्नामारिर्म(श ?)त्विषा । वृष्यकन्दा तालपर्णी, सुमूला बलदा शिवा ॥ २१५० हिङ्गो जतुकवाल्हीकगूढगन्धानि रामठम् । सहस्रवेधि भूतघ्नं, जरणं सूपधूपनम् ॥ २१५१ हिङ्गुपत्र्यां पृथुः पृथ्वी, दीर्घिका चारिपत्रिका । जातूका रामठी वंशपत्रा पिण्डा शिवाटिका ॥ २१५२ कारवी करवी तन्वी, बाष्पिका बिल्वकेत्यपि । काकजङ्घायां तु दासी, लोमहीना प्रभाबलः ॥ २१५३ नदीकान्तो नद्यास्या च, पारावतपदीत्यपि ।.. काकनासायां सुरङ्गा, वायसी वायसाङ्गिका ॥ २१५४ वारुणी तस्करस्नायुः, काकतुण्डफला च सा । . . पाषाणभेदे नगभिच्छिलाभिच्चित्रपर्णकः ॥ २१५५ हमुषायां विस्रगन्धा, वपुषा मत्स्यगन्धिनी । साऽन्याऽश्वत्थफला ध्वायनामिका कच्छुनाशिनी ॥२१५६ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ निघण्टुशेषः। घण्टारवायां स्यान्मल्यपुष्पिका श(र)घण्टिका । अल्पघण्टा बृहत्पुष्पी, शणपुष्पी महाशणः ॥ २१५७ शणे तु किंकिणी जाली, जन्तुनन्तुर्महाशणः । शीघ्रप्ररोही बलवान् सुपुष्पः क्षेत्रमण्डनः ॥ २१५८ कुसुम्भेऽमिशिखं महारञ्जनं कमलोत्तरम् । शालपण्या दीर्घमूला, त्रिपर्णी पीतिनी ध्रुवा ॥ २१५९ विदारि गन्धातिगुहा, स्थिरा भौमांशुमत्यपि । भाया वर्वरकः पद्मा, वन्दकोऽङ्गारवल्लिका ॥ २१६० गर्दभशाकब्राह्मण्यो, हञ्जी ब्राह्मणयष्टिका । आवर्तक्यां चर्मरङ्गा, विभाण्डी पिच्छिका लता॥ २१६१ रक्तपुष्पा बिंदुकिनी, स्यान्महाजालिनी च सा । नाकुल्यां स्यात् पक्षिपीडा, वेत्रमूला विसर्पिणी ॥२१६२ शङ्खनी वृद्धपादा च, यवतिक्तायसीश्वराः । तेजखिन्यां पारिजाता, पीताऽश्वप्ना महौजसी ॥ २१६३ तेजोवती तेजिनी च, तेजोबा वल्कलेत्यपि । पथिकायां तु तुलसी, तालपत्री लवङ्गकम् ॥ २१६४ कन्दपत्रं त्वचं पत्रा, मलपत्रकमुत्तरा।। मांस्यां यशी कृष्णजटा, नलदा जटिला जटा ॥ २१६५ तपखिन्यामिषी हिंस्रा, क्रव्यादी पिशिता च सा । गन्धमांस्यां पुनः केशी, भूतकेशी पिशाचिका ।। २१६६ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। २७५ सुलोमशा भूतजटा, भूतना केशिकेत्यपि । सुरायां सुरभिर्दैत्या, गन्धाढ्यां गन्धमादनी ॥ २१६७ भूरिगन्धा गन्धवती, कुटी गन्धकटी च सा । प्रपौण्डरीके शौण्डर्य, सानुजं पौण्डरीयकम् ॥ २१६८ प्रपुण्डरीकं चक्षुष्यं, सत्पुष्पं सानुमानकम् । जतुकायां तु जतुका, जतुकृच्चक्रवर्तिनी ॥ २१६९ जन्तुका जतुकारी च, सहर्षा जननी जनी । मांसरोहायां विकसा, वृत्ता चर्मकंषा रुहा ॥ २१७० रक्तपाद्यां नमस्कारी, समङ्गाऽञ्जलिकारिका । गण्डकाली शमीपत्रा, रास्ता खदिरिका च सा॥ २१७१ तद्विशेषस्त्रिपादी स्यात्सुपादी हंसपादिका।... विषग्रन्थिहंसपदी, घृतमण्डलिकापि च ॥ .. २१७२ अथ स्वाज्जलपिप्पल्यां, शारदी शकुलादनी । ....... मत्स्यादनी मत्स्यगन्धा, लागली तोयपिप्पली ॥ २१७३ शिवमल्ल्यां पाशुपतः, सुव्रतो वसुको वुकः । . कुलपुष्पः किण्वमूलः, पाण्डुरोगप्रियः कुलः ॥ २१७४ अतिविषायां तु विश्वा, भङ्गुरा श्वेतकन्दिका। उपविषा श्यामकन्दा, शृङ्गी प्रतिविषारुणा ॥ . २१७५ मेदायां स्यान्मणिच्छिद्रा, मधुरा शल्यपर्ण्यपि । .. महामेदायां तु वसुच्छिद्रा देवमणिर्वसुः ॥ २१७६ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते निघण्टुशेषे द्वितीयो गुल्मकाण्डः । Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ દ્ निघण्टुशेषः । गुञ्जायां कृष्णला काकचिञ्चिका काकणिन्दिका । काकादनी काकनखी, रक्तिका काकवृन्तिका ॥ २१७७ काकपीलुश्चक्रशल्या, दुर्मेषा तात्रिको चटा । " चूडामणिदुर्मेधा च शतपाकी शिखण्डिनी ॥ २१७८ पाठायां श्रेयसी पापचेलिका वृद्धकर्णिका | वृकं तिक्ता वरतिक्ता, प्राचीना स्थायिनी वृकी ॥ २१७९ एकाष्ठीला रसाम्बष्ठाऽम्बष्ठकी वृकदन्तिका ! शतावर्या बहुसुता, पीवरीन्दीवरी वरी ॥ शतमूला शतपदी, शतवीर्या मधुस्रवा । नारायणी द्वीपिशत्रुद्वीपिका भीरुपत्रिकाः ॥ महापुरुषदत्तोर्ध्वकण्टका वरकण्टका । सहस्रवीर्या (च) सुन्यभीरुः सवरणीत्यपि ॥ कटुकायां मत्स्यपित्ता, रोहिणी कटुरोहिणी । अशोकरोहिणी कृष्ण भेदा तिलकरोहिणी ॥ कटम्भरा काण्डरुहा, रास्ना तिक्तकरोहिणी । तिक्ताऽरिष्टा कटुर्मत्स्या, चक्राङ्गी शकुलादनी ॥ २१८४ कपिकच्छा महागुप्ता कण्डुरा दुरभिग्रहा । अजहा मर्कटी व्यण्डा, कच्छुरा कपिकच्छुरा ॥ २१८५ ऋष्यप्रोक्ता शूकशिम्बी, लाङ्गली प्रावृषायणी । आर्यभी वह्निपर्याया, कपिरोमा दुरालभा ॥ २१८६ २१८० २१८१ २१८२ २१८३ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७७ निघण्टुशेषः। मञ्जिष्ठायां रक्तयष्टिः, समङ्गा विकसाऽरुणा। भण्डीरी मञ्जका भण्डी; जिङ्गी योजनवल्ल्यपि ॥ २१८७ कालमेषी कालगोष्ठी, मण्डूकपर्णिकापि च । मरिचे मलिन कृष्णं, वेल्लजं धर्मपत्तनम् ॥ २१८८. पवनेष्टं शिरोवृन्तं, मूषणं कोलकं च तत् । पिप्पल्यां च पला कृष्णा, वैदेही मागधी कणा ॥ २१८९ शौण्डी श्यामोषणा कोलोपकुल्या कृष्णतन्दुला । तन्मूलं ग्रन्थिकं सर्वग्रन्थिकं चटकाशिरः ।। २१९० समूलकं कोलमूलं, कटुग्रन्थिकमूषणम् । चविकायां तथा चव्यं, चवनं कालवल्यपि ॥ २१९१ तत्फले वसिरो हस्तिपिप्पली श्रेयसीत्यपि । गिरिपामरस्फोता, विष्णुकान्ता पराजिता ॥ २१९२ सा तु श्वेता श्वेतनामा, कटभी श्वेतपुष्पिका । श्वेतस्यन्दाऽश्वखुरश्च, कृष्णा त्वव्यक्तगन्धिका ॥ २१९३ नीलस्यन्दा नीलपुष्पी, महाश्वेताऽङ्गवन्दना । स्मादिन्द्रवारुणी त्वैन्द्री, विषादनी गवादनी ॥ २१९४ इन्द्रैर्वारुः क्षुद्रफला, गोदुधा च गवाक्ष्यपि । द्वितीयेन्द्रवारुण्यां तु; चित्रफला महाफला ॥ २१९५ आत्मरक्षा विशाला च, त्रपुसी तुम्बसीत्यपि । .. वचायामुग्रगन्धोग्रा, जटिला शतपर्विका ॥ २१९६ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ निघण्टुशेषः। इक्षुकर्णिका गोलोमी, लोमशा सूतनाशिनी । अन्या श्वेतवचा मेध्या, षड्ग्रन्था हैमवत्यपि ॥ २१९७ शारिवायां गोपकन्या, गोपवल्ली प्रतानिका । .. गोप्या स्फोता लता श्वेता, शरटा काष्ठशारिवा॥ २१९८ नागजिह्वाथ सा कृष्णभद्रा चन्दनशारिवा । मद्रवल्ली कृष्णवल्ली, चन्दनोत्पलशारिवा ॥ २१९९ मूर्वायां मोरटा देवी, मधुश्रेणी मधूलिका। . देवश्रेणी मधुरसा, गोकर्णी तेजनी सवा ॥ २२०० धनुःश्रेणी चापगुणी, पीलुर्ना तिक्तवल्कली। पीलपर्णा स्निग्धपर्णी.................. ॥ २२०१ लाङ्गल्यां हलिनी नन्दा, विशल्या गर्भपातिनी । अनन्ताग्निमुखा शैरीपुष्पिका कलिकारिका ॥ २२०२ गुडूच्याममृता सोमवल्ली वत्सादनी धरा। छिन्नोद्भवा छिन्नरहा, विषघ्नी देवनिर्मिता ॥ २२०३ विशल्या कुण्डली छिन्ना, तन्त्रिका चक्रलक्षणा । देव्यनन्ता मधुपर्णी, जीवन्त्यमृतवयपि ॥ २२०४ देवताडे देवदाली, वृत्तकोशा गरागरी । . जीमूतकस्तालकश्च, वेण्या सुविषघातिनी। २२०५ कोशातक्यां कृतच्छत्रा, जाली घोषा सुतिक्तका । .. मृदङ्गफलिनी कुंटा, घण्टाली कृतवेधना ॥ २२०६ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। २७९ धामार्गवे पीतपुष्पो, महाजला महाफला। कर्कोटकी कोशफला, राजकोशातकीति च ॥ २२०७ हस्तिकोशातकी स्वेभा, विशाला कर्कशच्छदा। क्षीरिण्यां स्यात्कटुपर्णी, धर्षणी पीतदुग्धिका ॥ २२०८ फेनक्षीरा हेमक्षीरा, पीतक्षीरा करीषणी । हेमाह्वया हेमशिखी, हेमवती हिमावती॥ . २२०९ शजिन्यां स्याद्वनहरी, तस्करी चोरपुष्पिका। किशिनी ग्रन्थिका चण्डा, श्वेतबुध्ना निशाचरी॥ २२१० आखुपा पुत्रश्रेणी, न्यग्रोधा शम्बरी वृषा। चित्रोपचित्रा रण्डाख्या, प्रत्यक्श्रेणी द्रवत्यपि ॥ २२११ पभिन्यां तु महावल्ली, बिसिनी बिसनाभयः । पलासिनी नालकिनी, नलिनी पुटकिन्यपि ॥ २२१२ कमले नलिनं पद्ममरविन्दं कुशेशयम् । परं शतसहस्राभ्यां, पत्रं राजीवपुष्करे ।। २२१३ बिसप्रसूनं नालीकं, तामरसं महोत्पलम् ।। तज्जलात्सरसः पंकात्, परै रुहजन्मजैः ॥ २२१४ पुण्डरीकं सिताम्भोजमथ रक्तसरोरुहम् । रक्तोत्पलं कोकनदं, कैरविण्यां कुमुद्वती॥ २२१५ उत्पले स्यात्कुवलयं, कुवेलं कुवलं कुवम् । श्वेते तु कुमुदं चैव, कैरवं गर्दभाह्वयम् २२१६ नीले तु स्यादिन्दीवरं, हल्लकं रक्तसंधिकम् । १६-क Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। सौगन्धिके तु कल्हारं, बीजकोशे बराटकः ॥ २२१७ पनमाले तु मृणालं (बिसिनी) तन्तुलं बिसम् । किञ्जल्के केसरं नव्यदले संवर्तिका भवेत् ।। २२१८ यद्मकन्दे करहाटशिफे शालूकमौत्पले । पद्मवीजे तु पद्माक्षं, पद्मकर्कटिकेत्यपि ॥ २२१२ वारिपा तु पानीयवृष्टगा कुम्भिका हठः। जलशूके जलनीली, तथा शैवालशैवले ॥ २२२० इत्माचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते निघण्टुशेषे तृतीयो लताकाण्डः। शतपुष्पायां तु घोषा, शताहा माधवी मिषिः । अतिच्छत्रा छत्रपुष्पाऽर्वाक्पुष्पा कारवी सहा ॥ २२२१ जीरके तु कणाजाजी, जरणः कणजीरकः । कृष्णेऽस्मिन् कारबी पृथ्वी, सुगन्धा तुषवी पृथुः ।। २२२२ उपकुची कुञ्चिका च, कालोपकुञ्चिकापि च । रसोने लशुनो म्लेच्छकन्दोऽरिष्ठो महौषधम् ॥ २२२१ महाकन्दोऽपदोऽप्येष, गृञ्जनो दीर्घपत्रकः । पलाण्डौ यवनेष्टः स्यात्सुकन्दो वक्रभूषणः॥ २३ करणः स तु हरितो, लतार्को दुनुमोऽपि च । सप्तलायां बहुफेना, सातला बिन्दुलाऽमली ॥ २२२५ सारी मरालिका दीप्ता, फेना च मकसा यवा। प्रसारण्यां चारुपी, मद्रपर्णी प्रतानिका । . २२२६ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निबटुले। भवलल भद्रलता, भद्रकाली महाबलाः। सारणी सुप्रसारा च, सजा बलाचसापिः चः॥ २२२७ ब्राबी: वयःस्था मत्स्माक्षी, ब्राह्मणी सोमवल्लरी। सरखती सत्यवती, सुख(सुसुखा) ब्रह्मचारिणी॥.२३२८ करणेः कण्कुरः: कन्वोऽर्शोघाती चित्रदण्डकः । वृद्धदारुके त्वावेगी, जीर्णवालुकजुङ्गको ।। २२२९ अजाण्टी ऋक्षगन्धा स्यादन्तकोटकपुष्पिका। सुवर्चलायां मण्डूकी, बदराऽऽदित्यवल्लभा ॥ २२.३० मण्डकपर्यभक्तादित्यमल्ली सुखोद्भिदा । भृजराजे भृङ्गरजो, भृकारः केशरञ्जनी ॥ २२.३.१. अमारको भेकरजो, भृङ्गो मार्कव इत्यपि । कासमर्दे त्वरिमर्दः, कालं कतककर्कशौ. ॥ २२३२ वास्तुकतु शाकडः, प्रवाल: क्षारपत्रकः । शाकवीरो वीरक्षाकरतानपुष्पः प्रसादकः ॥ २२३.३ पालकमायां तु पालसा, छुरिका मधुसूदनी । जीवन्त्यां स्याज्जीवनीयं, जीवनी जीववर्द्धिनीः ।। २२३३ माकरसतामधेया च, शाक श्रेष्ठा यशस्करी । स्यादम्ललोणिकायां तु, चाहेरी चुनिका रसाः।। २२३४५ अम्बष्ठाऽम्लोलिका वस्तशठाटोलाम्लटोलकः ।। नरेन्द्रमाता क्षुद्राम्ली; चतुष्पर्णी च लोणिकाः॥ २२३ तन्दुस्लीवे मेघनाबस्तन्दुही तन्दुलेरकः ।। Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ निघण्टुशेषः। गण्डीरको रक्तकाण्डो, विषहार्यल्पमारिषः ॥ २२३७ समण्ठो तु तोयवृत्तिर्गण्डीरस्तोयमञ्जरी । समष्ठीला शोषहरी, जलापा मार्गतूलकः ॥ २२३८ अन्यः सुस्थलगण्डीरः, कर्बरष्टक्कदेशजः।। काकमाच्यां काकमाची, काकसाह्वा वृषायणी ॥ २२३९ श्रीहस्तिन्यां तु भूरुण्डी, कुरुण्डी काश्मरीरिपुः । सुनिषण्णे सुचिपत्रः, स्वस्तिकः शिरिवारकः ॥ २२४० श्रीवारकः शितिवरो, वितुन्नः कुक्कुटः शितिः । मूलके तु महाकन्दो, रुचिष्यो हस्तिदन्तकः ॥ २२४१ वुस्तिका नीलकण्ठश्च, सेकिमो हरिपर्णकः । चाणाक्यमूलके शालमर्कटो मरुसंभवः ।। २२४२ विष्णुगुप्तमतो मिश्रः, स्थालयो मर्कटोऽपि च । हिलमोच्यां शङ्खधरा, जलब्राझी च मोचिका ॥ २२४३ कलम्ब्यां तु शतपूर्वा, केलम्बूर्यायसी च सा । कारवेल्लयां तु सुषवी, कटिल्ला मृदुपर्णका ॥ २२४४ पटोले तु पाण्डुफलः, कुलकः कर्कशच्छदः। राजीफलः कफहरो, राजिमानमृताफलः ॥ २२४५ कङ्कोटे तु किलासघ्नस्तिक्तपर्वः सुगन्धकः ।। कूष्माण्डके तुकारुः, कलिङ्गयां बहुपुत्रिका | २२४६ तुम्ब्यां पिण्डफलेक्ष्वाकुस्तिक्तबीजा महाफला । अलाबूः क्षत्रियवरा, कटुका लाबुनी च सा ॥ २२४७ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषः। चिठ्यिां त्रपुसी वालुक्येारुफ्डपत्रिका। ऊर्वारुः कर्कटीस्तत्र, फला राजादनीलता ॥ २२४८ छर्दनीव विषाडश्च, तस्याः पक्कफलस्फुटी। कूर्चके शृङ्गकः सों, दीर्घायुः कूर्चशीर्षकः ॥ २२४९ माल्यनामधेये च, जीवकः प्रियजीवकः । ह्रखाङ्गको मधुरकः, प्राणकश्चिरजीव्यपि ॥ २२५० पुष्करमूले स्यान्मूलं, वीरपुष्करनामकम् । पौष्करं पुष्करजटा, कश्मीरं पद्मवर्णकम् ॥ २२५१ मस्तुगन्धायां तु गन्धा, खरपुष्पा शकम्भरा। कर्वरी बर्बरी तुङ्गी, पूतिमयूर इत्यपि ॥ २२५२ बिम्ब्यां रक्तफला गोल्हा, प्रवालफलघोषिका । ओष्ठोपमफला तुण्डी, तुण्डिका पीलुपर्ण्यपि ।। २२५३ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते निघण्टुशेषे चतुर्थः शाककाण्डः। रोहिषं कामकं पौरं, भूतिकं भूतिकत्तृणम् । सौगन्धिकं देवजग्धं, शकलिव्यामपुद्गले ॥ २२५४.. भूस्तृणं, रोहितं छत्रातिच्छत्रककटुम्बके । ............... भूतिकं भूतपालनं, माला तृणसुगन्धके ॥ . २२५५ दर्भ दमः खरो बर्हिर्वीरास्तवीक्रुधः कुशः ।. सारी वानीरजो गुन्द्रा, पवित्रा कुतसावपि ॥ . २२५६ काशे.स्यादिक्षुगन्धेक्षुकाण्डश्वामरपुष्पकः। Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EN निघण्टु रोषः। वायसेक्षुः पोटगला, कासेक्षुः कोकिल क्षामः ॥ २ उत्पू वल्वजो बालकेशी हटलतापिः च.। इक्ष रसालो गण्डीरी, गण्डकी क्षुद्रपत्रकः ॥ २२५८ तस्यैकादश मेदाः स्युः, पुण्डकान्तारकादयः । नले नडः शून्यमध्यो, गमनो नर्तको नटः ॥ २२५९ अरण्यनलको रन्ध्री, पोटगलो विभीषणः। नलिनु मनलिका, नाकुली लेखकाञ्चिताः॥ २२६० शरे. तु मुञ्जो बाणाल्या, स्थूलदर्भः पितामहः । गुञ्जस्तजनको भद्रमुञ्जो याजनकक्षुरः॥ २२.६.१ मुलस्तु यजिको मध्ये, दृढत्वरब्रह्ममेखलः । अथ बालतृणे शष्पं, शुकं शालिकमङ्गलम् ।। २२.६२ तृणं स्यादर्जुनं घासे, यवसं चारि इत्यपि । दीयां तु शतपर्वा, भार्गवी विजया जया ॥ २२६३ मङ्गल्या स्यादलाऽनन्ता, मरी प्रतानिका रुहा । सहसवीर्या श्यामाजी, हरिता हरिताल्यपि.॥ २२६४ श्वेशदूर्वा तु गोलोमी; शतवीर्या शता लता। गण्डदूवायां मुण्डाली वारुणी शकुलाक्षकर । २२६५५ मुखायां भद्रको भद्रमुस्ता राजकशेरुकः ।। गुन्द्री वरोहो गानेया, कुरुविन्दोऽम्बुदायः ॥ २२६६ कुट नढे तु कैवर्ती, मुस्तक जीवनाहयम् । काण्डीरकं जीवबुनं, गोनद गोपुरप्लवम् ॥ २२६७, Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८५ निघण्टुशेषः। शतपुष्पं दारपुर, बानेयं परिपेलवम् । जलमुक्ता मुस्तकाभ, शैवालदलसंभवम् ।। २२६८ पीरणे तु वीरतरं, कीरभद्रं समूलकम् । मूलेऽस्योशीरमभयं, समगन्धि रणप्रियम् ।। २२६९ लामजके बु नलदममृणालं लवं लघु । इष्टकापथकं शीघ्रं, दीर्घमूलं जलाशयम् ॥ २२७० इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते निघण्टुशेषे पञ्चमस्तृणकाण्डः। , अथ धान्ये सस्यं सीत्यं, व्रीहिः स्तम्बकरी अपि । .. आशौ स्यात्पाटलो व्रीहिर्गर्भपाकिनि षष्टिकः ॥ २२७१ शालौ तु कलमाद्याः स्युः, कलमे तु कलायकः । लोहिते रक्तशालिः स्यान्महाशालौ सुगन्धिकः ।। २२७२ यवे हयप्रियस्तायशूकस्तोक्यस्त्वसौ हरित् । माल्यके स्यान्मसूरः, कलाये तु सतीनकः ॥ २२.७३ हरेणुः खण्डिकश्चाथ, चणके हरिमन्थकः । माषे तु मदनो नन्दी, सरी बीजवरो बली ॥ २२७४ मुद्रे तु प्रधनो लोभ्यो, बलाटो हरितो हरिः । पीतेऽस्मिन् वसुखण्डीरः, प्रवेलजयशारदाः ॥ २२७५ कृष्णे प्रवरवासन्तहरिमन्थजशिम्बिकाः । वनमुद्रे तु वरका, निगूढककुलीनकाः ॥ २२७६ खण्डिको राजमुद्रे तु, मकुष्टकमयुष्टको । Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ निघण्टुशेषः । गोधूमे सुमनो वल्ले, निष्पावः शितिबिम्बिकः ॥ २२७७ कुलत्थे तु कालवृन्तस्ताम्रवृन्ते कुलत्थिका । आढक्यां तुवरी वर्णा, स्यात्कुल्माषे तु यावकः ॥ २२७८ नीवारस्तु वनत्रीहिः, श्यामाके श्यामकः समौ । कौ तु कडुनी कडुः, प्रियङ्गौ पीततन्दुला ॥ २२७९ सा कृष्णा मधुका रक्ता, शोधिता मुशटी शिता । पीता माधव्यथो दोला, कोद्रवः कोरदूषकः ॥ २२८० चीनकेतु काककङ्कुर्यवनाले तु योनलः । जूर्णाय देवधान्यं, जोर्णाला बीजपुष्पिका ॥ २२८१ शणे भङ्गा मातुलानी, स्यादुमा तु क्षमाsतसी । गवेधुकायां गवेधुर्वन्यतिले तु जर्तिलः ॥ षण्ढतिले तिलपिंजस्तिलपेजोऽथ सर्षपे । कदम्बकस्तुतुंभोऽथ, सिद्धार्थः श्वेतसर्षपः ॥ माषादयः शमीधान्यं, शूकधान्यं यवादयः । स्यात्सस्यशूके किंसारु, कणिशं सस्यशीर्षकम् ॥ स्तम्बे तु गुच्छो धान्यादेर्नालः काण्डोsफले त्विह । पलालो धान्यत्वपलः, तुषे बुसे कडङ्गरः ॥ २२८४ २२८२ २२८३ २२८५ इत्याचार्य श्री हेमचन्द्रविरचिते निघण्टुशेषे षष्ठो धान्यकाण्डः । इति श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितो निघण्टुशेषः समाप्तः । Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ लो०पा० ५-२ १ ३ "" ४ ५ ५ ५ 35 99 श्री अभिधानचिन्तामणी शुद्धिपत्रकम् । १ देवाधिदेवकाण्डः प्रथमः । अशुद्ध शुद्ध "" १२ १७-४ १९-४ २६ "" ६ ४०-२ सुवता चिरा ४२-१ सुमुखश्चापि मृग छागो १२ ॥ ४६ ॥ २८-१ शान्ति: १३ ३० - २ वीरश्रमतीर्थकृत् महावीरो ,, - ३ ३३- २ जम्बूस्वाम्यथे प्रभवे ७ ४८-१ ९ ६०-२ ११ ६९ - २ ११ 'दाहा ॥ १३ ॥ वाड° लिङ्ग ७२ - ३ टीप्पन पंक्ति ७ प्रभुः प्रभुः ३४-३ महागिरि सुहस्त्याद्या महागिरि सुहस्त्याद्या ७५ - २ वैरेतयो धर्मार्थ° रस्यरती 'दाह ॥ १२ ॥ वड लिङ्गा साहसी पतता निर्वाण ॥ २६ ॥ शान्ति: १६ वीरेश्वेरमतीर्थकृत् महावीरो जंम्बूस्वाम्यथ प्रेभव सुव्रताऽचिरा कुसुमश्चापि मृगइछागो वैरेर्तयो धर्मार्थ रत्यरती साहसोपेतता निर्याण Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घृणि पृष्ठ श्लो०पा० अशुद्ध . १२ ७७-१ अभाषणं पु० इत्यादि मोक्षोपायो योगो ___श्लो. ज्ञानश्रद्धानचरणा स्मकः । अभाषणं पुनमौनं, गुरुर्धर्मोपदे शकः ॥ ७७ ॥ , ८१-३ सूनता सूनृता २ देवकाण्डः द्वितीयः। ९४ . १६ ९९-४ घणि. "-, वृ १०२ १०५ १७ १०६-१ , शोशः । शोऽशः प्यs. " " ११५-१ भाद् भद्र ११८-४ फाल्गु० फल्गुरु १२१-२ र्भाणु १९ १२३ , १२४-१ 'ची . १२५-३ उप. " "-, रिष्ठं " १२७-३. टीको टिको १०१ . " १०५ फ भर्भानु रिष्टं । Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध श्लो०पा० १२८-२ त पञ्चा पश्चा सबली वसतिः वस्या १४०-२ १४२-३ १५०-३ १५१-३ १५५-३ १५६-१ १५७-२ १५८-१ सवली वसती वश्या, वाली ज्यो, प्रश 'बाली, जी, प्रस० ज० शरदु शरद् ऽब्दं । अब्दः वर्षादयस्त्रयः पुंक्लीबलिङ्गाः इति खोपज्ञटीकायाम्। श्यक २४ विडो १७१-१ " -२ , -४ १७६-३ श्य बिडौ • सङ्क मातली: २५ सङ्क मातलिः ईन्तो : श्वेत इन्तो "-४ १८०-३ १९२-१ वंत शम्बो, पृक्थं शंवो, ८ पृक्थ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ श्लो०पा० अशुद्ध १९३-२ शङखो १६ पङ्किः ५ति १९७-१ व्रतो. २०३-२ अम्बिको २१०-२ रिटिनों ,, -४ नदि १२१ । २१२-१ शम्भूः शुद्ध शङ्खो. ५ इति व्रती बको रीटिनों नन्दि २१५ शम्भुः दैनौ °षद जह षड जन्हु ग्वसुः सुवण অৰাৱাথী, शाङ्ग वसुः २१५-१ २१६-१ , -२ २१७-४ २१८-३ २१९-१ , -४ २२०-२ २२३-४ २२५-३ २२७-३ २२८-४ सुवर्ण जंगनाथो, शालार्जुनाः लर्जुनाः 'रिष्ट OY दुन्दुमिः २ मुशलं थिस्सरी शम्ब० २१८ दुन्दुभिः मुसलं थिः स्मरौ शंव २२८. नि Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्ण - नृतं ४२ पृष्ठ श्लो०पा० अशुद्ध । शुद्ध स्वण २३७-२ गौतमा गोतमा २५८-३ कलि कल २५९-२ °लिका लिहका २७०-१ श्लांघा श्लाघा २८०-३ नत्तं २८५-३ कौशि कैशि २८६-२ स्मरजः स्मरध्वजः " । २९१-२ ककुम्भ ककुभ " २९२-४ तत्वं तत्वं २९५-३ सात्विक सात्विक ३०६-२ मुल्ला ३०७-४ सात्विकाः सारिवकाः ३१३-२ संल्लयाः संलयाः ३३१-४ पल्लविको पल्लवको ३३२-१ ३३४ २३६-४ प्रयोज्याः प्रयोज्यः ३ मर्यकाण्डस्तृतीयः । ३३९-३ वृद्ध', वृद्धः, ३५१-३ सवदान्यो स वदान्यो ३५२-३ . ज्ञौ ५२ ३६७-१ रो,दान्तो', 'रोदात्तो मुल ६ वुक र्णाज्ञा Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लो०पा० ३७१-३ ३७२-२ अशुद्ध निसूदनानि निष्कारणा निषूदनानि निष्कारण' ॥३७२॥ गतो °धिश्छलम् ३७४-२ गतो, "धिछलम् ३७८-२ ३६८ ३७९-२ प्रतारणंम् ३९०-१ विसत्वरो " " विसमरः, ३९५-२ दादि ४००-१ घृतचरः ४०३-२ कृतिः ४०७-३ हवो ४१५-१,२ धान्याम्लाना ४१७-२ वेसवार ४१९-१ आसुरी ४२७-२ खोदरं ४३१-४ प्रसृतो ४३२-३ पृष्ठस्तु कृष्णुजी ६५ . ४३९-१ "संययतश्च ४४१-१ विप्रकृती, ६२४४५-१ , “गृहीतरि प्रतारणम् विसृत्वरो विसमरः, दीदि . घृतवरः कृती ह्यो धान्याम्लारना वेषवार असुरी स्वोदर प्रश्रितो धृष्टस्तु कृष्णजौ सय्यतश्च विप्रकृतो, ग्रहीतरि " -४ M०.०० Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षण छदौं , श्लो.पा. अशुद्ध ४४६-४ 'र्जितोऽहि जितेऽर्हि' ... ४५०-१ पिचण्डिलोपिचिण्डिलो, ,, -३ विख्नु विखु । ४५२१ खुरणसा, खुरणस ४५६-४ बलिनौ .वलिनो बलिभौ वलिभः ४५८-३ बलिरः वलिरः ४६१-४ किलासिनिः किलासिनि ४६५-१ क्षणा ४६९-१ छर्दे ४७१-१ अनाह? आनाह ४८०-२ सङ्क ४८३-४ चुञ्चवः चञ्चवः ४८८-४ शस्ता शास्ता ४९४-२ जद्धिको जाडिको ४९९-२ प्राघूगों प्राघूर्णको प्राघूर्णकेऽ ५०७-३ र्बोकः बोका ५०८-१ कुट्ट ___ अयोदशपसौ , - चतुर्दशपतौ ल्लतितं ल्ललितं ५१३-४ कुटुम्विना कुटुम्बिनी ५१४-४ परस्पम् परस्परम् ६ प्राघू! ". Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लो०पा० ५१५-३ ५१६-१ ५१७-२ ५२१-३ ५२२-१ , ७३ , -४ ५३२-३ पयसी प्रेयसी दयेशा हृदयेशा वनयिता घरयिता क्यन्त अयन्तः प्राज्ञी प्रज्ञा प्रज्ञा प्राज्ञी प्रजानन्त्यां प्रजानत्यां 'चार्याणी, चार्यानी श्या यी साधारणा स्त्री साधारणस्त्री नन्ना स्त्रीधमः स्त्रीधर्मः स्यागम वद्भद्र °वभाद्र सभगा सुभगा सौरस्यौ, सोरस्यो, बेर वेर' मस्तक मस्तिक वेणि वेणिः श्रोतं श्रोत्रं ५७९ ५७४ ऽक्षिण्य ऽक्षण्य' निमिलनम् निमीलनम् स्यादर्भ ५३८-४ ५४६-४ ५४७-२ ५५०-१ ५६३-४ ५६७-२ ५७०-३ ५७४-१ ": ५७६-३ ५७८-४ " Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ७९ 33 "" ८० 23 "3 ८१ 29 ८२ 33 >> ८३ > ८५ 23 ८६ 23 A >> ८७ 44 "" "" ८९ लो०पा० "" -४ ५८०-१ ५८७-२ -." ५८८-४ ५८९-२ ५९६-४ ५९७-२ ६०३-३ ६०४-३ ६०६-४ ६१४-१ -२ ६२५-२ ६३०-३ ६३२-१ ६३३-३ ६३४-२ ?? ६४५-२ ६५१-३ ६५५-३ १, ३ ६५६-१ ९ अशुद्ध भ्रविकारे --- भ्रवो कृकपार्श्व 'रोsसगः दोर्बाहा सिंहतालस्तु मुलु 'चूचुकन्तु कलखण्ड बस्ति' नलकीलो श्वारो° लङ्गकः छवि' जैभं, बस्ति' “बस्करः वाहि सिह घ, वाला' ताडपत्र L शुद्ध : भ्रूविकारे 171 -भ्रू भ्रुवो कृकपाव isसगः दोहा सिंहतलस्तु स्तु चूचुकं तु कालखण्ड चस्ति र्नलकीलो श्वाद्गो 'लुङ्गकः छवि ० जैहूं वस्ति' वस्करः वहि सिल्ह X वाल ताडपत्र Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लो.पा. ६५८-२ ६६३-२ ६६४-१ ६६५-२ ६७०-३ ६७४-३ ६७६-२ अशुद्ध वलीलता वापा मुंद्रा, किङ्किणी हर्णायु ९ . चौला . नक्रक स्वामो मुकुरा प्राजपत्य 1 0m ६९५-१ ० वृथु० शुद्ध वलीलताः वापौ मुद्रा, किणी रूयु चोलः नक्तक व्यामो मकुरा प्राजापत्य पृथु सवंदमः बीभत्सुः(सः) परिवह करको रूप्या गोपो प्रत्यर्थ्य "पूरुषः सामदान मृगया ह्वरम् समञ्जसम् , ९५ सर्वदमः बीभत्सुः परिबर्ह करङ्का " ७०२-२ ७१०-१ ७१६-१ ७१८-१ ७२३-४ ७२६-२ ७२९-४ ७३३-२ रूपा ९८ गोपा प्रत्यर्य परुषः सामदामुंगया ur 1०० ७३८-३ ७४१-४ ७४२-४ समञ्जमम् Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ श्लो०पा० ७४६-२ ७४९-१ ७५१-४ ७५७-४ अशुद्ध ध्वजिना पताकिना अनीकिना शतङ्गः यानमुख रथा सन्नद्धा वम कवच नुत्र कूर्पासा, शुद्ध ध्वजिनी पताकिनी .. अनीकिनी शताङ्गः यानमुखं रथ० . सन्नद्धो वमें कवचं नुत्रं कूर्पासो ७६६-२ १०४ ७६७-१ ७६९-३ ६७२-४ यसी यसा लक्षतः लक्ष्यतः मुक्त ७७६-३ , -४ ७७८-१ ७७९-३ ७८३-३ ७८५-२ सिञ्जिनी शिञ्जिनी कारणम् वारणम् गार्द्धपक्षी, गाधपक्षी प्रहिते प्रहितो चम्म दिला दीली भिन्दिपाल भिन्दिपाले शदुस्फो ___ सदुःस्फो ऊर्जस्यू ऊर्जव्यू चर्म १०७ ७८७-३ " ७९२-४ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ १०७ १०८ पृष्ठ श्लोपा० ७९३-३ ७९६-२ ७९७-१ ७९८-३ ७९९-४ १०९ ८०२-४ ८०३-४ ११५ ११२ ८१३-३ ८१४-२ ८१५-३ ८२१-३ ८२२-१ ८२५-१ ८२७-१ ८२८-१ ८३०-१ ८३६-३ ८३८-१ अशुद्ध शक्यत शक्यते · पहसी सहसी हयानि, याभि, समीक समीकं तुमुल तुमुलं सन्द्राव सन्दाव डमरं डमरे बटुः वटुः बटू · वटू रोच्यः , रोच्यः , होत्र होत्रं तच्छ्राद्धंः तच्छ्राद्ध कटको कटके समीधेनी सामिधेनी ' र्भसित र्भसितं शमनं (शसनं), शसनं (शमनं), :: होगाग्नि होमाग्नि ब्रह्मासन ब्रह्मासनं पारायण पारायणं काय कायं ब्रह्मत्व ब्रह्मत्वं संस्कारपूर्व संस्कारपूर्वपुण्यक 'पुण्यकं ११३ ११४ 10-२ ८४१-१ ८४२-१ ८५३-२ १०५ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध पृष्ठ श्लो०पा० ८४५-१ ८४७-१ "-४ ८५२-१ शुद्ध यज्ञसूत्रं वाल्मीकि मैत्रा माठरः ..पाराशर्यः कालिकी याजी कात्यायनो स्पृष्टो, निषिद्ध वेतने सेवावृत्तिः क्रयी केयदे नीवी न्यासे, मात्रके १७ यज्ञसूत्र वाल्मीकी मत्रा माठः पराशर्यः, कालिका याजा कात्यायने स्पृष्ठो, निष? वेतन सवावृत्तिः क्रया ऋयद नीवा न्यासं, मात्र क्रय्य षणितव्यं °स्तुल्यो गणेय दशामुतः मयुत, ८५९-२ ८६५-२ ८६६-३ ८६८-२ ८६९-२ क्रय्यं . ८७२-२ पणितव्यं स्तुल्यौ गणेयं दुशायुतः .मयुतं, ८७३-२ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ट १.८ ११९ श्लो.पा. ८७३-४ ८७५-१ " " " ८७६-१ " " ,, -२ . शुद्ध कोटयः असत्यं वहिनकम् वोहित्थं वहनं पोतवाहो तरीण्यौ बेडाऽथ, सेकपात्रं कोलो स्यात्तर साक्षी, पोतवं " " अशुद्ध कोटवः असय बहिनकम् बोहित्थं वहन पोतवाहा तरीण्यों बेडऽथ, सेकपात्र कोला स्यात्तरी साक्षो, पोतव तत्पल चतुर्विंशत्या हस्ता गवीश्वर गाभी, गो " " ८७४-४ ८७९-१ , -२ ८८२-३ ८८३-१ ८८४-४ ८८७-१ , -२ ८८८-४ ८८९-१ , -२ ८९०-२ तत्पले चतुर्विशत्य हरतो . गवीश्वरे गाभीर गोस हली कार्षकों मत्य कार्षको मत्यं विशः १२२ ८९७-२ विराः Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मित पृष्ठ श्लो०पा० अशुद्ध ८९८-२ वैदेहका वैदेहको ९०२-३ मिरा ९०३-३ माध्वीक माध्वीक ९०४-४ किण्वन्तु किण्वं तु " : ९०८-२ कलादा कलादो प्रसेविका प्रसेविका " .९१०-३ काम्बविव काम्बविक पिष्पलकं, पिप्पलकं, १२५ ९२०-१ वर्मारो कारो ९२२-१ मालख्य °मालेख्य ९२६-१ कुहक ___,, -३ कौतूहल कौतूहलं " " । कुतुक, कुतुकं, १२६ ९३३-१ चण्डालो चण्डाले ४ तिर्यकाण्डश्चतुर्थः ९३९-१ तु ९४१-२ । तदक्षीव .. तदक्षी सैन्धव सैन्धवं ९४२-३ वस्तुकं वस्तूकं , -४ विडषाक्य विड़पाक्ये ९४३-१ ,, -१ रुचक रुचक m Mmm 0 ऽक्ष ऽक्षं Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ १२८ १२९ वर्षे श्लो०पा० ९४६-२ ९४७-१ ९५३-३ ९५७-१ ९५९-२ "-४ १३२ YY ९७५-१ ९७९-१ ९८१-२ ९८३-३ ९८६-३ ९८८-१ ९९०-४ ९९१-२ ९९२-१ ९९६-१ अशुद्ध शुद्ध कुरून् वर्ष निर्जला निर्जलो बङ्गास्तु वास्तु वाहीका वालहीका वालिका पालिहका. कारुषा. कारूषा० माष्य. माष्यं कोशला कोसला दामलिप्त दामलितं क्षौमाहाहाहा. औमाहाहा. सराण सरणि. चारपथो, चारपथो विवणि. विपणि. सभाद० सभोद. पस्त्यः पस्त्यं घामागारं धामागार सन्धाना, सन्धानी होत्रीयन्तु होत्रीयं तु : राङ्गणे रागने बलजं वलजं कुञ्चिकायान्तु कुचिकायां तु ०म्बुरों ..म्बरो " ३ १००४-२ MY m " १००५-२ " १००९-४ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ १३७ १३८ "" "" १३९ "" "" "" १४० "" १४१ 99 १४२ १४३ 99 "" १४४ "" १४५ 99 "" "" 39 श्लो०पा० १०११-१ १०१४-१ १०१८३ १०१९-१ १०२०-२ ,, - ३ १०२१ - ३ १०२३-२ १०२७-२ १०२९-४ १०३५-२ १०४१-१ १०४२-२ १०४६-१ -२ "" १०५०-४ १०५४-२ १०५६-४ १०६२-२ १०६३-४ १०६४-२ ,, -३ १०६५-३ १७ भशुद्ध नीध्रं शालभञ्जी चुल्य' कुण्ड, पात्री ऽम्बरीवसृ न्त्याल, मन्थनो राण बालकः 'पात्यका भव, पुरु कुप्यन्तु द्रूप्यन्तु रसश्चलम् पौष्पक खेचर गैय Q बाल" हरिणमणि: पद्मरागे वज्र O शुद्ध नीवं सालभञ्जी चुइय कुण्डं, पात्रयो sम्बरीष ऋ 'न्त्यालुः, मन्थानो राड् 'वालकः 'पत्यका 'भवं, गुरु कुप्यं तु 'द्र्यं तु रसश्चलः पौष्पकं खेचरं गैरेय वाल हरिन्मणिः पद्मरागो वज्रप Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध पृशि पृष्ठ श्लो०पा० १४६ १०७०-४ १०७३-२ १४७ १०७८-४ १०८०-१ १४८ १०८३-२ ध्यर्णवी जेल स्पृशि ध्यर्णवो जले हृदिनी कालिन्दी 'द्विजा हृदिनी कालिन्दो °द्रिना ऽर्जनी चुरा चुण्डी म्भमां तरिः ऽऽर्जुनी चुरी चुण्डी म्भसा सरिः मन्त्र बहुलो °रिरम्मदः , १०८६-१ १४९ १०९३-२ " " -" १०९६-१ " १०९६-२ १५० १०९९-१ , ,, -४ १५१ ११०१-२ ११०२-४ ११०३-१ ११०४-४ १९०५-३ ११०६-४ १५२ ११०८-४ १११२-३ १५३ १११६-३ " १११८-२ °रुल्लका रिदम्मदः झलका अम्मसू शरपा सौदामिनी न्धवह गोचरः। रुद्यनं वशी गुल्भि अम्भःसूः शम्पा सौदामनी गन्धवहः पाणिगः।११०८ रुद्यानं बकेशी गुल्मि Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध किशलयं किसलं सुमनभः, प्रफुल्लप नुन्निद्र 'विनुद शुद्ध किसलयं किसलं सुमनसः त्फुल्लसं मुन्निद्र विमुद्र पृष्ठ श्लो.पा. १५४ ११२३-१ " -२ " ११२५-१ ,, ११२८-३ १५५ ११२९-२ , -३ ,, ११३०-, ११३१-१ ११३७-३ " " -४ १५६ ११३८-१,२ " ११४३-३ १५७ ११४७-४ ११४८-२ " ११५०-१ ऽश्वत्यः, वतसः वानीरा कोली, ब भद्रपर्णा स्तु नम्मालिका मातुलङ्गो नारिकेर दाक्षा त्रिवण्टकः हीवेरे अश्वत्थः , वेतसः वानीरो कोलिर्ब भद्रपर्णी स्तु नवमालिका मातुलिङ्गो नालिकेर द्राक्षा त्रिकण्टकः हीबेरे दर्द्धन विसप्र० सौगन्धिकं तु " ११५६-२ १९५८-२ , -४ ११६१-३ ११६५-१ "-४ W0 दर्दुन १५९ " बिसप्र सौगन्धिकन्तु बिसम् विसम् Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० मकुष्ट मकुष्ठ सर्षपः पृष्ठ श्लोपा० अशुद्ध शुद्ध १५९ ११६८-२ व्रीहि व्रीहिः " -३ पटलो पाटलो १६० ११७४-२ , , -२ मयुष्टको मयुष्ठको १६१ ११८०-२ सर्षेपः " ११८४-२ शिग्रुकञ्च शिकं च 'तुण्ड तुण्डि ५६२ १९८९-४ शृङ्गाबें शुजवे , ११९४-१ बल्वजा वल्वजा , ११९६-३ सौल्कि शौलिक ११९७-२ कुष्ट ११९८-२ सक्तक ,, १२०३-४ सा नपा " " " जलोकसः जलौकसः ४ १२०९-३ . निरजी निरजो , १२१०- पूर्वार्द्ध १२१० पूर्वार्द्ध १२११ पूर्वार्द्ध , -४ ॥१२१०॥ १६५ द्वितीयपतो सः। सः ॥१२१०॥ १२१२-४ षडध्रयः षडंहयः . , १२१३-१ भोज्यन्तु भोज्यं तु १२१४-३ वर्षणा चर्वणा १६६ - - , १२२३-१ दन्ती, दन्तो , . कुष्ठ सक्तुक Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ पृष्ठ श्लो.पा. १६६ १२२४-२ १६७ १२२९-३ १६० १२३५-२ " १२३६-२ " ५२३८-४ ,, १२३९-४ १६९ १२४७-४ ,, १२५१-३ " १२५२-३ १७० १२५३-१ , १२६१-१ १७१ १२६६-१ शुद्ध ऽअग्रंस्वस्य हिजीरश्च वालिहका . श्रीवृक्षकी क्रियाहो वालधिः कुञ्चितास्यं दामाञ्चनं पाणं तु वेग दीनां तु अशुद्ध ऽस्याग्रं तु हिजिरश्च वाह्निका श्रीवत्सकी कियाहो 'बालधिः कुञ्चिकास्यं दामञ्चनं पाणन्तु वग दीनान्तु तम्बा पृष्ठीही येक हा० १२७४ च्छगलच्छा बस्तः बर्करो कुकरो बालधिः शालाका जरन्ता गण्डिव तंवा प्रष्ठीही ब्येकाद् हा १७२ १२७२-१ , १२७३ ,, १२७५-१ " "-, १२७६-१ १२७८-४ च्छगलः छा० वस्तः वर्करो कुकुरो १७३ १२८०-३ , १२८२-४ १७४ १२९१-१ वालधिः शालाको जरन्तो गुण्डिव Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ पृष्ठ श्लो०पा. १७४ . १२९३-२ , ,, -४ ,, १२९७-३ १७५ १२९९-३ " १३००-४ अशुद्ध हरिणा शम्बतः मुशली सग्टः °लोचनः छछु दुदुभी १७६ १३०५-४ १७७ १३१५-२ , १३१६-४ , १३१७-३ १७८ १३२८-२ शुद्ध हरिणा शंवराः मुसली सरटः °लोचने छुछु दुण्डुभौ स्फटः द्विजपक्षि पत्रं पतत्रं खञ्जनः रुयपत्ये वकोट विस चटकायां राटुकुः क्रकरौ पारापतः शंवरो स्तिमिः मद्गुर षोडशांहिः जीवथः ,, स्फुटः -पक्षि पत्रं पतत्रं, खानः स्त्रयपत्ये बकोट बिस चंटंकायां राटुकः करौ पारावत: शम्बरो स्तिभिः मङ्गुर षोडशाङ्गिः . जीवव १३३२-४ १३३३-२ १३३६-३ १३३८-२ ३ ३ " १३४४-४ " १३४४-४ १८१ १३४७-२ " १३५२-३ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ १८२ "" "" १८३ در "" "" "" "" १८४ 39 १८५ 99 १८६ १८६ 33 १८७ "" "" "" १८८ 31 "" लो०पा० १३५७-४ प्रथमपङ्कौ अष्टम्यां पङ्को प्रथमपङ्की १३६४-२ सप्तम्यां पङ्कौ १३६६-३ 39 -3 १३६७-४ प्रथमपौ १३७६- १ प्रथमपङ्कौ १३८१-१ प्रथमपङ्कौ १३८९-३ १३९०-१ प्रथमपङ्कौ १४००-२ १४०२-१ ,, -३ प्रथमपङ्क्तौ १४०५-४ १४०७-२ २३ अशुद्ध जम तिर्यक्काण्ड: नरकका तिर्यक्काण्ड: वर्षा नरककाण्ड: पुन सत्वं 'जीव' तिर्यक्काण्डः स्याद् तिर्यक्काण्ड : किल्बिषं तिर्यक्काण्डः वक्र गन्वो तिर्यक्काण्ड: संव्याङ्ग भन्द्र° क्रुष्ट तिर्यक्काण्डः गजानां गर्ज' वासिते शुद्ध दम नारककाण्ड: नारकका सामान्यकाण्डः वपा नारककाण्डः पुन सवं 'जीव' सामान्यकाण्डः स्वाद् सामान्य काण्डः किल्विषं सामान्यकाण्डः वक्त्र गन्धो सामान्यकाण्डः संख्याङ् मन्द्र क्रुष्टं सामान्यकाण्ड: गर्जनं गज वाशिते Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध शुद्ध :: : वृषस्य रति दर्दुरः पेटक पृष्ठ श्लो०पा० १८८ , -३ ,, १४०८-२ १४०९-२ १४१०-३ १८९ प्रथमपतौ १४१८-३ १९० प्रथमपङ्गो ,, १४२१-१ १४२३-३ १४२९-३ प्रथमपतौ १४३०-१ " , -२ " -२ १४३१-१ १४३६-१ १४३८-१ प्रथमपतौ १४३९-३ १४४१-४ " १४४३-४ प्रथमपनौ वृकस्य रत दद्रुर: पेटकं सामान्यकाण्डः धैनुकं सामान्यकाण्डः वातूल धोरणी कुख सामान्यकाण्डः पुथुलं विकटं है :: :: :: :: : :: तिर्यकाण्डः धेनूकं तिर्यकाण्डः वतूल घोरणी कुजं तिर्यकाण्डः पुथुल विकट पिपुलं दैव्य वीघ्र प्रबह तिर्यकाण्डः परार्द्ध घमं °द्दर तिर्यकाण्डः विपुलं दैर्ध्य वीध्र प्रवई सामान्यकाण्डः परार्थ ऽधमं °द् हर सामान्यकाण्डः Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ शुद्ध निबिर्ड पृष्ठ श्लो०पा० अशुद्ध १९३ १४४६-४ निविडं १४४७-२ बहलं १९४ प्रथमपतौ तिर्यकाण्डः " १४५४-१ स्थावरन्तु ,, १४५६-४ कुटिले १४५८-३ नगरं १९५ प्रथमपती तिर्यकाण्डः १४६५-१ प्रतिकूलन्तु ,, १४६६-२ सव्यन्तु ९६ प्रथमपतौ तिर्यकाण्डः वहलं सामान्यकाण्डः स्थावरं तु कुटिलं नगतं सामान्यकाण्ड: प्रतिकूलं तु सव्य तु सामान्यकाण्डः १९७ गूढ १४८४-१ प्रथमपनो १४८७-३ १४८८-४ ,, १४८९-३ १४२१-४ १४९२-२ १९९ प्रथमपतौ , १४९६-३ , ,, -४ ,, १४९८-२ गूढ “ৰিয়ার निशातं तिर्थक्काण्डः सामान्यकाण्डः मुतं मुतं रीकृते 'रुरीकृते सङ्कीर्ण सङ्गीण विषितानि न्वेषितानि समुन्न समुत्त तिर्यकाण्डः सामान्यकाण्डः मुनितं मनितं श्रुतम् सुतम् सम्वननं संवनन Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ पृष्ठ श्लो.पा. অন্তু २०० प्रथमपतौ तिर्यकाण्डः " १५११-४ सः प्रथमपतौ तिर्यकाण्डः , १५१२-३ लक्ष्मीच्छा __ श्रृंशो २०२ प्रथमपतौ तिर्यकाण्डः " १५२१-४ ठवनानि शुद्ध सामान्यकाण्डः समाः सामान्यकाण्डः लक्ष्मीश्छा भ्रेषो सामान्यकाण्डः ठेवनानि प्यू सामान्यकाण्डः ० प्रथमपतौ तिर्यकाण्डः ० Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषनाममालाशिलोच्छसहितस्य अभिधानचिंतामणिकोशस्य अकारादिवर्णानुक्रमेण शब्दानुक्रमणिका शब्दः अंश. अंशकूट अंशु. } अंशुक. अंशुहस्त. अंस. अंसल अंहति. अ. अंहस्. अंहि. अंड्रिनामन्. श्लोकः शब्दः अंह्निप. १४३४ अंह्रिस्कन्ध १२६४ अकम्पित. ९१ | अकर्कश. ९९ | अकर्ण. ६६६ अकल्कन. ९६ | अकस्मात्. १८८ | अकिञ्चन ४४८ ३८७ | अकुप्य. अकूपार. अक्त. अक्रम. अकिञ्चनता. १३८१ ६१६ ११२१ श्लोकः १११४ ६१७. ३२ १३८७ ४५४ ४९० १५३२ ३५८ ८१ १०४९ १०७३ १४९२ १५११ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মিম্বালম্বিয়ামী ___४८६ अक्षीव., ११३४ १०९४ १११४ ४७३ ४७२ १११४ ७३८ क्ष. अक्षौहिणी. ९४३ अखंड. १३८३ अखात. अक्षत. ४०१ अखिल, अक्षदर्शक ७२० अखेदित्व. अक्षदेविन्. ४८५ अग. अक्षधूर्त.. अगद. अक्षमाला. अगदङ्कार. अक्षर अगम. अक्षरचञ्चु. ८३ अगरु. अक्षरचण. ४८३ अगस्ति . अक्षरजीवक. ४८३ अगस्त्य. अक्षवती ४८६ अक्षवाट ८०१ अगाध अक्षान्ति. ३९१ अगाधजल. ५७५ अगार, अक्षिकटक, १२२५ अगुरु. अक्षिगत. ४४८ अगोकम. अक्षिविकूणित. ५७८ | अन्नायी. १२२ १२२ १३६४ १०७० १०९१ ९९२ अक्षि . १३१७ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ হান্তসিদ্ধা १४३८ ११२१ १४५९ ११८३ ८१४ अग्रज. ५५१ १०९ २०९ ८१२ अग्नि. १०९९ अग्र. भग्निक. १२०९ अग्निकारिका. ८१४ अग्निकार्य. अग्निचित्. अग्निदेवा. अग्रजवा. अग्निभू. अग्रजन्मन् अग्निभूति अप्रजाति. भग्रणी. अग्निमारुत. अग्रतः अग्निरक्षण. अग्रबीज. अग्निरजी. १२०९ अग्रयान अग्निवल्लभ. अग्रसर. अग्निवाह. ११०३ अग्रायणीय. अग्निसंभव. २१° अग्रिम. १ अग्निसिंहनंदन. | अग्रेदिधीपू. ८३६ आग्नहोत्र. अग्निहोत्रिन. अग्रेसर. अनीन्धन. अग्य. अग्न्याधान ८३६ | अघ. १४३९ १५२९ १२०० ४९८ २४७ ६२३ १४३९ ५२५ ६६ A १४२८ १४३९ १३८१ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी अघमर्षण. अध्या , . अङ्क. अङ्कपाली. अङ्किन. अङ्क. अङ्कर. अङ्कश. अङ्कशा. अळूर. अङ्कोलसार ८४४ अङ्गद. १२६५ अङ्गना. ५०५ १०६ अङ्गमदे. ४९२ २८४ अङ्गरक्षणी. ७६९ अङ्गराग. ६३५ १५०७ अङ्गिराज. ७११ २९३ अङ्गविक्षेप. २८२ १२९३ अङ्गसंस्क्रिया ६३५ अङ्गहार. २८२ अङ्गारक. १२३० अङ्गारधानी. १०२० ४५ अङ्गारपात्री. १०२० १११८ अङ्गारशकटी. १०२० ११९८ । अङ्गिका. ५६६ । अङ्गीकार. २७८ अङ्गीकृत. ९५७ अगुरी. ५९२ १६३७ १०११ २२७ अगुलि. १२२४ ५४२ | अङ्गुलिमुद्रा.. ६६४ १००४ | अगुली. ५९२ १४८८ अङ्ग. ६९२ | अगुल, इ अङ्गक. अङ्गण. Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शद्वानुक्रमणिका ९८ अङ्गुलीयक. ११३ २११ अङ्गुष्ठ. ५९२ | अजः '. २१४ अघ्रि . १२७५ भनिनामन्. ११२१ अनकाव. २०१ अविप. १११४ अनगर. १३०५. अजजीविक. ८८९ अघिस्कन्ध. ६१७ अजदेवता. ११४ अचल. अजनामक. १०५४. १०२७ अचलभ्रातृ. ३२ अजन्य. १२६ अचला. ७९६ अजप. ८५७ अचिरप्रभा. अजमीढ, ७०७ अचिरा. ४० अजये. अचेष्टता. ३०७ अजस्त्र. १४७१ अच्युत. २१४ १२७५ अच्युतज. अजाजी. ४२२ अजातशत्रु. अच्युताग्रज. २६ . ४२ इच्छ. १° 0 अजितबला. ४४ पच्छमल्ल. ६३० छुप्ता. २४० | अजिनपत्रिका. १३३६ अजा. अजित.. १०७१ अजिन. Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ ९८१ १००२ २९७ ९८१ ७८३ १४४२ अजिर. अजिह्म. १४५६. अजिह्मग. ७७८ अट्टहास. अजिह्व. १३५४ अट्टहासिन्. मज्जुका. अट्टालक. अज्ञ. ३५२ अडन. अणक. 'अज्ञान. १३७४ अणव्य. अञ्चल. अणि. अञ्चित. ४४७ १७० अणिमन्. अञ्जन. ६८६ | अणीयम्. १०५३ | अणु. अञ्जनाधिका. १२९८ अण्ड अञ्जनिका. १२९८ भञ्जलि. ५९८ अण्डक. अञ्जलिकारिका. १०१४ अण्डकोश. अञ्जस. ३७५ अञ्जसा. १५३० भण्डज. अटनी. अटवी. १११० अतसी. भटाट्या. १६०१ अतिकुत्सित १०१३ २०२ १४२८ १६२४ १३१९ ६१२ १३१७ १३४३ १३६५ ११७९ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिकम अतिजव. अतिथि. अतिथिपूजन. अतिदूर. अतिपथिन् अतिपात. अतिभी. अतिमर्याद. अतिमात्र. अतिमुक्तक, अतिरक्त. अतिवाहिक. अतिवृष्टि. अतिवेल. शद्वानुकमणिका १५०४ | अतीव. ४९४ अत्तिका. अतिशय. } अतिसर्जन. अतिसंधान अतिस्थिर. ४९९ अत्यंतगामिन्. ८२२ | अत्यंतीन. १४५२ अत्यय ९८४ मत्यर्थ १५०४ अत्यल्प. १८१ अत्याकार. १५०६ अत्रभवान्. १५०६ अहिग्न. ११४७ अत्रेयी. १४४९ अथर्वन् १३५८ अदन. ६० अदभ्र १५०६ अदृष्ट. ५८ १५०६ १५१९ ३७९ १४५३ अतिस्निग्धमधुरत्व ६८ अद्रि. अतिहास. २९८ अद्भुत. } अद्भुतत्व. झर. } १५३५ ३३५ ४९५ ४९५ ३२३ १५०५ १४२८ ४४२ ३३६ १०५ ५३९: २४९ ४२४ १४२६ ३०२ २९५ ३०३ -06 ३९४ १११४ १०२७ १७४ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अद्रिना. अद्विराज्. अद्वय. अधम. अधमर्ण. अधर.. २४ अभिधानचिन्तामणी २०४ । अधि. ३५८ १०२७ अधिरोहिणी. १०१३ २३४ अधिवासन. १४४१ अधिविना. ८८२ अधिश्रयणी. १०१८ ५८१ अधिष्ठान. अधीरा. ५३५ अधीश्वर. १५२६ अधुना. १५३० १५२६ / अधृष्ट ४३३ १४८२ अधोऽशुक ६७२ अधोऽसन. २१४ १४१९ अधोभुवन. १३६३ २५५ अधोमर्मन्. ७२५ अधोमुख. अध्यक्ष. ७४४ अध्ययन. ८२१ ७२२ अध्यवसाय. १५११ अध्याहार. अध्यूढा. १०३५ अध्येषणा. ३८८ ३५८ अध्वग. ४९३ अधवा. अधस् अधस्तात्. अधःक्षिप्त. अधि. अधिक. • अधिकरण. अधिकर्मिक. अधिकाङ्ग अधिकार. अधिकृत. अधिक्रम अधिक्षिप्त. अधित्यका. अधिप. م م م ew 30 9 v mno ३ ه س ३ م Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्वन्. अध्वनीन. अध्वन्य. अध्वर. अध्वरथ. अध्वर्यु. अनक्षर. अनक्षि. अनगार. अनङ्ग अनंगा सुहृद्. अनच्छ. अनड्डान्. अनडुही. अनड्डाही. अनतिविलम्बिता. अनन्त. - अनन्तक. अनन्तजित्. शानुक्रमणिका ९८३ | अनन्ततीर्थकृत्४९३ अनन्तवीर्य ४९३ अनन्तर. ८२० अनन्ता. ७५२ ८१९ | अनन्यज. २६६ अनन्यवृत्ति. ९७६ अनर्गल. ७६ अनल. २२७ | अनवधानता. २०० अनवरत. १०७१ अनवराध्यं. १२५७ अनवस्कर. १२६५ | अनवस्थिति. १२६५ | अनश्वर. ७० अनसू १३०७ | अनादर. २९ अनाहत. २२४ अनामय. १६३ | अनामिका ८७५ अनारत. २९ | अनार्यज. } २७ ५६ १४५१ ११९२ ९३६ २२७ १४५८ १४६६ १०९९ १३८२ १४७१ १४३९ १४३६ ३१५ १४५३ ७५३ १४७९ १४७९ ४७४ १९३ १४७१ ६४० Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० अनालम्बिन्. अनाविल. अनाह अनाहत. अनिमिष. } अनिरुद्ध. अनिल. } अनिलसख. अनिश. } अनिष्टदुष्टवी. अनीक. } अनीकस्थ. अनीकिनी. अनुक. अनुकम्पा. अनुकर्ष. अनुकामीन. अभिधानचिन्तामणौ २८८ | अनुकार. १४३६ | अनुकूल. ४७१ अनुकूलता ६७१ | अनुक्रम. ८८ अनुक्रोश. १३४४ | अनुग. २३० अनुगामिन् ११०६ अनुग्रह ५२ अनुचर. १४६३ ६२ १३७७ १५०३ ३६९ १४५७ ४९६ ११०८ ४९६ ५५२ ४९६ ९०६ १३७८ १४३९. ७४६ १४३८ ७९७ अनुत्तर. ३४७ ७२२ ९४ ७४५ अनुत्तरोपपातिकदशा २४४ ४३४ अनुनय. १५०३ ३६९ अनुपद. १४५७ ७५७ अनुपदिन् ४९१ ४९९ अनुपदीना. ९११. ९ अनुज. १०९९ | अनुजीविन् १५३१ | अनुतर्पण. १४७१ अनुताप. ४३८ अनुत्तम. Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका अनृत. १९२० ३२५ १५० २६३ अनेकजातिवैचित्र्य. ७० अनेकप. १२१७ अनेडमूक. - ३४८ अनेहस् १२६ अनोकह. १११४ २९६ २९६ ११३ अनुप्लव. भनुभव. भनुभाव. अनुमति. अनुयोजन. अनुयोगकृत्. अनुरति. भनुराग. अनुराधा. अनुरोध. अनुलाप. अनुवत्सर. अनुवृत्ति. अनुशय. अनुष्ण. अनुहार. अनूचान. भनूप. १५९ ७३३ अन्त. १३७४ १४५९ अन्तःकरण. १३६९ अन्तःपुर. ७२७ अन्तःपुराध्यक्ष. ७२६ अन्तक. १८४ अन्तकृशा. १४६० अन्तर. १५०९ अन्तर. १९३८ अन्तरा. १५३८ अन्तराय. १५०९ १४६३ अनूरू. अनृनु. ३७६ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ अभिधानचिन्तामणी अन्तेवासिन्. १९३३ अन्त्र. अन्तराल. १४६० । अन्तिक. १४५० अन्तरीक्ष. अन्तिकतम. १४५२ अन्तरीप. १०७८ अन्तिका. १०१८ अन्तरीय. अन्तिकाश्रय. १००१ अन्तरे. अन्तिम. १४५९ अन्तरेण. १५२७ अन्तर्गत. १४९५ अन्तर्गडु. अन्त्य. १४५९ अन्तर्धा. १४७७ अन्त्यवर्ण. ८९४ अन्तर्धि १४७७ अन्तार. १००७ १२२९ अन्दुक. अन्तर्मनसू. १२८० अन्तर्वनी अन्ध. ४५७ ५३८ अन्तर्वाणि. अन्धकार. ३४५ अन्धकासुहृद्. २०० अन्तर्वेदि. ९४९ अन्धतमत. १४६ अन्तर्विगाहन. १५०० अन्धसू. ३९५ अन्तर्वशिक. ७२६ अन्धु. १०९१ अन्तर्हित. १४७७ ३९५ अन्नकोष्ठक. १०१२ १४६८ س अन्न. अन्तावसायिन् } ९३३ । अन्यत्. Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका | १३२२ ८५७ १४३३ ४५९ ४७३ ५४२ १४९९ १४१७ ३११ ३९० ९८४ ९८४ १६७ १४५७ अपट्र. अपतर्पण. अपत्य. अपत्यपथ. अपत्रपा. अपत्रपिष्णु. अपथ. अपथिन्. अगदिश. अपध्वस्त. अपमित्यक. अपयान. अपस्मार. अपररात्र. अन्यतरत. अन्यभृत. अन्यशाखक. अन्यून. भन्योन्य. अन्वक्ष. अन्वच अन्वय. अन्वर्थ. अन्धवाय. भन्विष्ट, अन्वेषित, अन्वेष्ट्र. अपकृष्ट अपक्रम. अपक्रिया. अपचन. अपचय. अपचित. अपटान्तर. २५७ (८१ १४९१ १४९१ ३२१ १४५ १४४२ अपरा. ० १२२८ १५१५ ७७२ अपराजिता. अपराद्धेषु. अपराध. अपर्णा, अपलाए. अपलासिका. १५२४ ४४७ १४५१ १८० २०३ २७६ ३९३ अपटी. Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ re अपवरक. अपवर्ग. अपवन. अपवर्जन, अपवाद. अपवारण. अपवारित. अपविद्ध. अपशद. अपष्ठ. अपष्ठु. अपष्ठुर. अपसव्य. अपस्कर. अपस्नान, अपहार. अपहास. अपांग. } अपांगदर्शन. अपाची. अपाच. अभिधानचिन्तामणौ ९९९ ११११ ३८७ २७१ १४७७ १४७६ अपाश्रय. १४७४ १२३१ १४६५ १४६५ अपासन. १४४३ अपिधान. १४६६ १४६५ अपाचीन.. अपाटव. अपान. ७५८ ३७६ १५२४ २९८ ५७९ ५७८ १६७ १६८ } अपावृत्त. } अपिनद्ध. अपुनर्भव. अपूप. अपोह. अप् अप्पित्त. अप्रकीर्णप्रसृतत्व, अप्सरसं. अप्सरःपतिः अप्रधान. अफल. भबद्ध. अबद्धमुख. १६८ ४६२ ६१२ ११०८ १२४५ ३५५ १.१२ ३७२ १४७७ ७६५ ७४ ३९८ ३११ १०६९ १०९८ ६८ १८३ १७३ १४४१ १५१६ २६७ ३५१ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अबला. अबाध. अब्ज.. अब्जबांधव. अब्जहस्त अब्जिनीपति. अब्द. अब्धिकफ. अब्धिज. अब्धिजा. } अब्रह्मण्य. अभयद. अभया. शब्दानुक्रमणिका अभाव. अभाषण. अभिक, अभिक्रम. } ५०४ १४६६ ४७ १०५ ९६ ९६ ९७ १५९ १०७७ अभिख्या. १८२ ९०३ अभिघ्या. अषिमंडूकी. १२०४ अभिनंदन. अब्धिशयन. २१४ अभिनय. अन्ध्यग्नि. ११०० अभिनव. ३३५ २५ ११४५ १५१७ ७७ ४३४ ७९१ १५०१ अभिचर. अभिचार. अभिजन. अभिजात. अभिज्ञ. अभिज्ञान. अमिघा. } अभिनिर्मुक्त. अमिनिय्र्याण. अभिनिवेश. अभिनीत. अभिपन्न, अभिप्राय. अभिभव. १५ २६० २७३ १५१२ ४९६ ८३० ९०३ ५०२ ३४३ १०६ २६० ४३१ २६ २८२ १४४८ ८६० ७८९ १५०० ७४३ ४७९ १३८२ ४४ १ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ २७२ ل ه ७२९ १४५० ४१७ १४६० ४५९ ७९२ ७९२ ७९२ १४५१ २०० ४४० । अभीक्ष्णम्. ८०५ अभीषंग. २६१ | अभीषु. अभ्यग्र. अभ्यंजन, ३१७ अभ्यंतर. ७२८ अभ्यमित. अभ्यमित्रीम. १४४४ अभ्यमित्रीय. अभ्यमित्र्य. अभ्यर्ण. अभ्यवस्कंद. अभ्यवहार. अभ्याख्यान. अभ्यागत. १५१७ अभ्यागम. अभ्यागारिक. अभ्यादान. ७९० अभ्यांत. अभ्यामई. ५२९ अभ अभिभूत. अभिमंत्रण. अभिमुख. अमिमाति. अभिमान. अभियाति. अभियोग. अभिशम. अभिरूप, अभिलाव, अभिलाष, अभिलाषुक. अभिवादक. अभिवादन. अभिव्याप्ति. अभिशस्त. अमिषव. अभिषेणन. अभिसंपात. अभिसारिका. अभीक. 2000 ४२३ २६८ ४९९ ७९७ '४४ 6 10.00 ४६९ ७९८ ७९७ । c १४५० Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ८०० । अमर्ष. ५०१ । अमर्षण. rv0 ३२० ३९२ १५० अमा १५२७ ४४९ ७१४ ७१९ अभ्यासादन. अभ्युत्थान. अभ्युदित. अभ्युपगत. अभ्युपगम. अभ्युपपत्ति. अभ्युपाय. अम्यूषा. अभ्योष. अभ्र. अभ्रक, अभ्रपथ. अभ्रमातंग, अभ्रमुप्रिय, अभ्रि. १४८९ २७८ । अमांस. १५०८ अमात्य, २७८ ३९९ अमावसी. ३९९ अमावस्या. अमावासी. १०५१ अमावास्या. १६३ अमित्र. अमुक्त. अमुत्र. अमुष्यपुत्र. १५० १५० १५१ ७२९ ७७४ १५२८ ५०२ अभ्रष. aoras १०२६ ५५ । अमृत. अमत्र. अमम. अमर. अमरावती. अमर्य. अमर्मवेधिता. VH ८८ ६९ अमृतद्युति. अमृतसू. १०५ १०४ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ટ अमृता. अमृतासंग. अमेघ. अंबक. अंबर. अम्बरीष, अंबष्ठ. ejat. } } अंबिका. } अंबु. अंबुकू . अंबुप. अंबूकृत. अंभल् अम्भस्सू. अम्ल अम्लवेतस. अम्लिका. 'अय. अभिधानचिन्तामणौ ११५७ १०५३ ३९२ ५७५ १६३ ६६६ १०२० ८९६ ३३५ ५५७ ४६ २०३ १०६९ १०६९ ११०४ १३८८ अयः प्रतिमा. ४१७ ११४३ १३७९ अयन. अयंत्रित. अयस्. अयाचित. अयि. १३५० १३२९ २६७ अरघट्टक. अयुकूछदः. अयुत. अयोन. अयोधन. अयोध्या. अर. } अरजस्. अरणि. अरण्य. अरण्यश्वन्. अरति. } १४६४ ११८ ९८३ १४६६ १०३८ ८६६ १५३७ ११३३ ८७३ १०१७ ९२० ९७६ २८ १२८ ६९३ १०९३ ५१० ८२५ १११० १२९१ ३१४ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ५०१ ८४९ अरनि. अरविंद. अरर. अररि. अराति. अराल. ५९९ । अरुंतुद. ११६० अरुंधती.. अरुंधतीजानि. १००७ अरुसू. ७२९ अरे. १५३७ भरि. १४५७ ७२८ ७५५ २ १८२ अर्क. अर्कन. अकेतनय. अर्कबांधव. अकरतोन. अरित्र. Mr. अरिष्ट. ११३९ ९९७ २३६ १०३ १८४ १२५ असूनु. भरिष्ठ, १७७ २२० १३२१ १००४ अरिष्टनेमि. अर्कसोदर. अर्गला. अर्गलिका. अर्घ. अj. ८६८ अरुण अर्चा अरुणसारथि. अरुणावरमा भरुणापक. २३० अW. १.११ । भर्चित. Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणौ अचिस अचिमत्. अर्थिक. अर्थिन्. अर्थ्य. अर्दना, ३८८ १०६२ १०९८ ११६५ ११९५ १३९३ ७०८ अर्ध. १४३४ अर्जुन, १०८४ ६५९ १०४४ अर्जुनध्वज. अर्जुनी. ६७७ अर्णव. अर्धगुच्छ. अर्धनाह्ववी. अर्धमाणव. अर्धरात्र. अर्धवीक्षण. अर्धहार. अर्धाबु. अर्धेदु. अर्बुद, भर्भ. अर्यमदेवा.. अर्थमन्. १०७३ १८८ १०६९ ७७५ १९२ अर्णवमंदिर. अर्णस. अर्ति. अर्थ. ४०९ ७८० ८७४ ३३८ ११२. अर्थषण. ७३८ १५ अर्थना. अर्थप्रयोग, अर्थवाद. अर्थविज्ञान. ८. भा . · ५२३ । ५२४ ३११ । भर्याणी. Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ ५०६ ११०३ अलाबू. শহী, १२१२ ५७३ १०२२ १०१० अहत्. शब्दानुक्रमणिका १२१३ । अलसेक्षणा. अर्वन्. अलात. अर्वाक्. १५४२ अर्शम्. ४ ६१ अलि. ११८९ अलिक. अर्घायुज्. ४६१ अलिंजर. अर्हणा. ४४७ अलिंद. २४ । अलीक. अहित. ४४६ अल. १२११ अलोक. भलं. १५२७ अल्प. अलक. ५६९ अल्पतनु. अलका. अल्पमारिष. अलक्त. अस्पिष्ट. अलक्ष्मी , अल्पीयस्. अलंकरिष्णु. ३८९ अवकर अलंकर्मीण. ३५४ । अवकृष्ट. अलंकार. अवकीर्ण. अलंकारसुवर्ण. १०४६ | भवकीर्णिन. अलर्क. १२८० अवकेशिन्. अलगद १३०५ / अवगणित. अलस. ३८३ | अवगत. ६८३ १३६५ १४२६ ११८४ १४२८ १०१६ ४४० १४७६ ८५४ ११.१६ १९९६ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧ अवग्रह. } अवग्राह. अवघात. अवचूल. अवज्ञा. अवज्ञात. } अवट. अवटीट. अवटु. अवतंस. व्यवऩमस. अवतार. अवतोका. अवदंश. अवदात. } अवदान. अवदारण, अवध. अवधान अभिधानचिन्तामणौ १६ ६ १२२६ १६६ १०१७ ७५० १४७९ १४७९ १३६४ ९३१ ४५१ ५८६ ६५४ १४६ १०८७ १२६७ ९०७ १३९३ १४३६ ८११ ८९२ १४४२ १३७८ अवधि. अवध्वस्त. अवन. अवनत. अवनाट. अवनि. भवंति. अवन्तिसोम. अवन्ती. अवपात. अवभृथ. अवभ्रट. अवम. अवपत. अवमतांकुश. अव पर्छ. अवमानित. अवयव. अवरज अवरति. अवरोध. •अवरोधन. ९६२ १४७६ १५०२ १४५६ ४५१ ९३६ ९.९६ ४१५ ९७६ ९३१ ८३४ ४५१ १४४२ १४७९ १२२२ ८०० १४७९ ५६६ ५५२ १९२२ ७२७ ७२७ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ७२६ । अवहार. २७१ अवहित्था. ६०७ । अवहेलन. १४७८ १३५१ ३१४ १४७९ १५२६ ३४९ ४६७ अवाच. अवरोधिक. . अवर्ण. अवलग्न, अवलम्बित. अवलिप्तता. भवलोकन. भववाद. अवश्यम्, अवश्याय. अवष्वाण. अवसक्थिका. अवसर. अवसर्प. अवसर्पिणी. अवसाद. ६७७ २७७ अवाक्श्रुत. १५४० अवान. १०७२ अवाच्य. ४२४ अवार. अवारपार. अवि. ७३३ अवित. १२७ अविदुग्ध. ३१२ अविदूस. अविद्या. अविनीत. १४९६ अविनीता. अविमरीस. अविरत. १३७७ / अविरति. ५९३ । अविरल. १४५६ २६६ १०७९ १०७३ १२७६ १४९७ १२७८ १२७८ १३७४ अवसान. ३२४ अवसित. अवसेकिम. अवस्कर. अवस्था . अवहFत. ५२८ १२७८ १४७१ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ अभिधानचिन्तामणौ १०३५ १०१८ १२७८ अविलंबित. अविला. अविसोढ. अवी. अवृष्टि. अवेक्षा. अव्यवहित. अव्याहतत्व. अव्युच्छित्ति. १४७० । अश्मन् १२७७ अश्मंतक. अश्मरी. अश्रांत. अश्रि . १६१८ अश्रु. अश्लोल. अश्लेषा. १४७१ १०१३ ३०७ अश्लेषाभ. अश्व. अशन, अशन. ३९५ ४२३ अशनाया. अशनायित. ३९३ ३९२ अशनि. । ११०५ ९२९ १३८० । १४३३ अशिश्वी. অযুশ, अशेष. अशोक. अशोका. अश्मगर्भ. " अश्मन. १२३२ अश्वकिनी १०८ अश्वग्रीव. १३११ अश्वतर. १२५३ अश्वत्थ ११३१ अश्वमेधीय. १२४३ अश्वयुज्. अश्ववारण. १२८६ अश्ववार. अश्वसेन. अश्वसेननृपनंदन. १९२ १०६२ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अश्वा. अश्वारोह. अश्विन. अश्विनी. अश्विनीपुत्र. अश्वीय. अषडक्षीण. अष्टपाद्. } अष्टमंगल. अष्टमूर्ति. - अष्टश्रवण, अष्टापद. अष्टिवत्. - अमकृत्. असद्ध्येतृ. असंकुल. असक्त. असती. } असहन. असंमति. शब्दानुक्रमणिका १२३३ असंख्य. ७६१ असार. १८१ असि. १०८ असिक. १८१ असिक्की. असित. } असितानन. असिधावक. १४२० ७४१ १२८६ १२११ १२३७ १९६ २११ ४८७ १०४३ ६ १४ १५३१ ८५७ ९८६ १४७१ असुराह. असिधेनु. असिपत्रक. असिपुत्री. असु. असुख. असुमत्. असुर. ५२८ असूया. ७२९ असूर्क्षण. ४९१ असृकूप. } २५ ८७५ १४४६ ७८२ ५८१ ६२१ १२० १३९७ १२९२ ९१६ ७८४ ११९४ ७८४ १३६७ १३७० १३६६ ९० २३८ ६२१ १०४९ ३२३ १४७९ १८८ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ अभिधानचिन्तामणी अस्थि. । ६१९ असृज. अस्थिर । ४३७. Y असूक्कर. १२० । असृग्घरा. ६१९ अस्थिकृत. ६२४ अस्थिधन्वन्. १९७. मसौम्यस्वर. ३४९ अस्थिपंजर. २८ १४८२ अस्थिभुज. १२७९. १९३९ अस्न. १०२७ १४५५ ३२४ अस्थिविग्रह. २१० अस्तर. अस्थिसंभव. अस्ताग. ५२ अस्थिस्नेह. १२८ अस्ताघ. १०७० अस्फुट, अस्ति . अस्फुटवाच. ३४९ अस्तिमत्. ३०७. ४७७ अस्तिनास्तिप्रवाद. २४७ १०१३ १५२८ अस्त्रपा. १२०३ अस्तेय. अनु. ७७५ अस्वप्न. ७७३ अस्वर, अस्त्रग्राम. १४१४ अस्मश्लाघान्यभस्थाप. १०७० । निंदिता. अस्त्र, ६२२ अस्तु. ३०७ ८९ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ १३८ १५३० आं. १५४० १०३६ ६३६ 20 शब्दानुक्रमणिका अहंयु. ४३३ । अहिमा. अहंकार. अहोपुरुषिका. महंकृत. ४३३ अहोरात्र. अहन्. १३८ अहाय. अहमहमिका. अहंपुर्विका. ३१८ महंमति. १३७४ आकर. अहर्मणि. आकल्प. अहर्वाधव, आकल्य. अहर्मुख. आकार. अहस्कर. आकारगोपन. अहि. १३०२ आकारण. अहिकोश. १३१५ आकालिकी, आकाश. १११७ आकीर्ण. अहित ७२९ आकुल, अहिकांत. ११०६ आकृत. अहितुंडिक. ४८८ आक्रंद. अहिभृत. १९९ । आक्रम. अहिभय. ३०१ आक्रीड. अहिर्बुध्न. १९७ आक्रोश. अहिर्बुध्नदेवता. ११४ | आक्षाद. १५१३ ३१४ ur ११०५ अहिच्छत्र । ९६० १४७३ १४७२ १३८३ ७९९ १११२ २७२ ८६२ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ अभिधान चिन्तामणी १ ८३७ ३९६ Vm vor आक्षेप. आखडल आखनिक. आखु. आखुग. आखेट. आख्या . आगंतु. आगम. आगसू. आगु. आग्नीध्रा. आग्नेय. २४३ ७८ له لم २७२ । आङ्गिरस. १७१, आचमन. १९८८ आचाम. १३०० आचार. २०७ आचारवेदी. ९२७ आचारांग. २६० आचार्य. ४९९ आचार्ग । २४२ ७४४ आचार्याणी. २७८ आचित. ८१४ ६२१ आच्छाद. आच्छुरितक. आच्छोदन. ११२ आजक. आजगव. आजि. ४०७ आजीव आज. ४२६ आज्ञा. २८३ । आज्य. १२३ ८८५ १४७३ m م م م م م २९८ ९२७ १४१७ م م م m आग्नेयी. आग्रहायणिक. आग्रहायणी. आघाट. आधार. आघ्रात. आघ्राण. आंगिक. ७९७ ८६५ ४२६ २७७ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका . आज्यवारि... १०७५ आंजनेय. भाटि १३३८ आटोप. आडंबर. ७९९ आढक ८८६ आढकिक. आढकी. १०५६ आतोय. आत्तगंध. आत्मगुप्ता. आत्मघोष. आत्मन. आत्मदर्श. २८६ ४४० ११५१ १२२२ आत्मन्. । १३६६ १३७६ २४७ आत्मप्रवाद. ३५७ 1 २१३ आट्य. आणवीन. भात्मभू. २१७ आतंक. ३०१ ४१२ ३७२ ४२७ २२९ १३४४ आत्मभरि. आत्मयोनि. आत्माशिन्. आत्मीय. आत्रेय. भाथर्वण. आदर्श. आदि. आदितेय. आततायिन्. आतप. आतपवारण. भातर. आतापिन्, भाति. आतिथेयी. आतिथ्य. आतुर. ६२० ९९७ ८७९ १३३४ १३३८ ४९९ ४९९ ४५९ १४९९ | आदित्य. १११ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी ३१६ आदित्यसूनु. आदिम. आदिराज. आदीन. आदेश. आदेशिन्. आदेष्ट्र. आद्य. आघून. २००/ war ४८२ ८१७ आधि. ७०५ | आनंदथु. १४५८ आनंदन. ७३१ आनंदप्रभव. ६२९ १३७५ आनय. ८१४ २७७ आनाय. ९२९ आनाह. १४.१ आनिली. १४५८ आनुपूर्वी. १५०४ ४२८ आंदोलित. १४८१ १३७१ आन्वीक्षिकी । २५१ ३१२ २५३ ८८२ भापगा. ३०८ आपण. १००२ १३६८ आपणिक. २९३ आपद्. ४७८ २२३ आपन्न. ४७८ आपन्नसत्या. ५३९ १४५६ आपान. ९०७ २८७ आपी. ११३ १७२ आपीड. ३१६ आपीन. १२७२ ६९८ । आपूपिक. १४१८ आध्यान. आन. आनक. आनकदुंदुमि. आनत. आनद्ध. आनन. आनंद. Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ५०२ १३९० १३९१ १५४० ६५० २४९ ११३३ ११५२ आपृच्छा . २७४ आमुक्त. आमुष्यायण. माप्त. ७३४ आमोद. माप्तोक्ति. आप्रपदीन.. १७८ आमोदिन. आठव. . आम्. आबद्धमुख. आम्नाय. आमरण. आभा. १५१२ आम्र. आभिनात्य, ६८ आम्रातक. आभीरपल्लिका. १००२ आम्रेडित. आभीरी. ५२२ आम्लवेतप्त. आभील. आयत. आभोग. १४३२ आयति. आम आयत्त. भामगंधिन्. १३९२ आयसी. आमनस्य. १३७१ आयःशुलिक. आमय. आयाम. आमयाविन्. ४५९ आयुक्त. आमलकी. ११४५ आमिक्षा. ८३१ आमिष. ६२२ । आयुधिक. १३७१ er & 200 orm १०,१०, wron or 9 o 2 आयुध. आयुध, ७७० Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ ७६९ आरंका. ४७२ १३६९ आराव. १४०० १३७५ आरोग्य. ४७४ आरोपितविशेषता ७० आयुधीय. आयलका. आयुर्वेदिन. आयुस्. आयोगव. आयोधन. आरकूट. आरक्ष. ८९७ ७९६ १०४७ १४३१ १०१३ १५१० १०८६ १२२६ आर. २०४७ ११४० आरग्वध. आरण. आरनाल. आरति. आर्जुनी. आर्तव. आति. आई. आईक. आ. आर्यपुत्र. १३७१ १४९.२ ११८९ ११० ४१५ १५२२ १४०६ १५१० ३३५ आरंभ. २३२ ३३३ WWW आर्य. १४०० ३६९ ३७९ आरभटी. आरव. आरा. आराधन. आराम. आरालिक. ४९७ २०३ आर्या. ११११ | आर्यावर्त, ७२३ । आर्षभि. ६९२ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ९२२ आर्षभ्य. भाईत. आल. आलंभ. आलय. आलवाल. १०२६ १२५९ | आलेख्य. आलेख्यशेष. १०५९ आलोक. आवरन. ९९० आवरण. १०९५ आवर्त. आवहित. ३८३ आवलि. २७४ आवसथ. ६८८ १२११ आवसथ्य, १२११ आवसित. आलस्य. १०७६ १४८० १४२३ ९९४ आलाप. आलावत. आलिन्. ९९४ ११८३ आलि. ७१५ १०९५ २९३ १०९५ ९९१ आलिक. आलिंगन. आलिंगिन्. आली. आलीढ. आलीनक. आलु. आलुक. १४२३ आवाप. १११४ १५०७ आवाल. आवास. ५२९ आविक, आविद्ध. १०४२ १०२१ आविल. १३०७ । आविष्कृत. ওওও १४८२ १४५६ १०७१ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মিখানক্ষিণাগী 'आविस्. : आइ माविष्ट. ४९१ | आशिस. १५३९ | आशीविष, आवुक. आमा । ११६८ आवृत्त. ३३२ १५३० आवृत. १४७६ आशुग. आवृत. १५०४ ११०६ आवे. ३२२ आशुशुक्षणि. १०९७ आश्चर्य. आवेश. ३०४ १४९९ आश्रप. आवेशन ८०८ आश्रम. आवेशिक. आवेष्टक. ९८२ आश्रय, आशंमित. __९९१ आशंपा. आश्रयाश, १०९९ आशंसु. ३५० २७८ आशंका. ३०१ आश्रव. ४३२ आशय. १३८३ १३७५ ४३० आश्रुत. १४८९ आशा, आश्व १४२० आश्वत्थ. आश्वयुज. भाशितंगवीन. ९६४ । आश्विन. १५५ ४९९ | ܘ ܘ ? ७३६ ३० ३९४ आशित, आशित. ४२६ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका भाश्वीन. ४१९ ७९७ आषाढ. आषाढाभू. आसक्त. ८२ • आसन. आसना. आसंदी. आसन्न. १२५० । आसुर. आसुरी. १५४ आस्कंदन. १०२९ आस्कंदितक. १२४९ आस्तर. ३८५ आस्तिक. १२२४ १४९८ आस्था . २७८ ४८१ आस्थान. ४८१ १४९८ आस्थानगृह. ९९७ आस्पद. ९८८ १४५१ आस्फोटनी. ९०४ आस्य. ५७२ ९०५ आस्यलागल. १२८८ १४९० आस्यलोमन्. ५८३ ७९० आत्या . १४९८ आस्यासव. ४९२ आहत. १४८३ ९०५ आहतलक्षण. ४३७ आहर. १३६८ ९०१ आहव. आसव. आसादित. आसार. आसीन. आसुति. १६५ आसुतीबल, १८१८ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधामचिन्तामणौ ४३० १८९ आहवनीय. आहार. आहारतेजस्. आहार्य. आहाव. आहिक आरिताग्नि. आहुति. आहो. आहोपुरुषिका. आहिक. आय. आह्वा. आह्वान. ८२६ । इच्छा . ४२३ । इच्छावसु. ६२० इज्जल. २८३ इन्याशील. इट्च र. इडिक्क. ८३५ इतर. इतरेतर. १५३६ इतिह. ३१८ इतिहास. २२५ । इत्वरी. २६० । इदानीम्, २६० इध्म. २६१ इन. ११९४ इंदिरा. १०७५ इंदिदिर. ३५ इंदीवर. १४५४ इंदु. इंदुकांता. १५१३ । इंदुना. ११४३ । इंदुभृत. ८१८ १२५९ १२७७ ९३२ १४९९ १५३७ २५९ ५२८ १५३० ३५९ इक्षु. इक्षुवारि. इक्ष्वाकु. २२६ १२१२ ११६४ १०५ इंग. इंमित. इंगुदी. १९९ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्द्रक. इन्द्रकील. इन्द्रकोश. इंद्रगोप. इन्द्रजाल. } इन्द्रनील. इन्द्रभूति. इन्द्रलुप्तक. इंद्रवारुणी. इंद्रसुत. इन्द्राग्निदेवता. इंद्राणी. इंद्रानुज. इंद्रिय. } इंद्रियग्राम इंद्रियायतन. शब्दानुक्रमणिका ११९९ १६९ १७१ ३५९ ९९७ इंद्रियार्थ. इंधन. इम. १०३० इभ्य. १०११ इरंमद: ७३८ १०६५ इमपालक इभारि. १२०९ इरा. ९२६ इला. इल्वला. ३१ इपीका. इरिण. १७५ २१४ १३८३ ६२९ १४ १४ ५६३ ** इषु. इष्ट. ११५७ 1908 ११२ इष्टगंध. इष्टापूर्त. इष्य. इष्वास. } ईक्षण. } cro ३७ १३८४ ८२७ १२१८ ७६२ १२८४ ३५७ ११०१ ९०२ ९३९ ९३७ ११० ११९५ ७७८ ८३४ १५०५ १३९१ ८३५. १५६ ७७५. ५७५ ५७६ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ সমিখালবিলাসী ईक्षणिक. १३८६ ईति. ४८३ । ईषदुष्ण. २६९ ईषा. ईषादन्त. १४८२ ईरित. १२२३ १२.२५ ईषिका. ९२० ईयो. १५०० ईर्ष्यापथस्थिति. १५०१ ईया. ३९१ ईर्ष्यालु. ३९१ ईषीका. ईहा. ईहामृग. २८४ १२९१ ईश. ] ३९८ १९५ ईशसख. १८९ १६९ उकनाह. उक्षतर. उक्षन् उखा. उख्य. १२४१ १२५८ १२५८ १.१९ ईशान. ईशित. ईशित्व. ८९६ उग्र. १९५ ईश्वर. १९५ ३५९ २०२ ३५९ १९६ ३५७ २०४ १५५ १.५३६ ३१८ ईश्वरा. उग्रत्व. उग्रधन्वन् उचित. उच्च. उच्चण्ड. ईष. ७४३ १४२८ ईषत. Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्चताल. उच्चग. उच्चल. उच्चार, उच्चावच. उच्चल. उच्चः श्रवस्. उघुष्ट. उच्चसू उच्छृंखल. उच्छ्राय उच्छिष्टभोजन, उच्छ्रित. उच्छीर्षक. उज्जयन्त. उज्जयिनी. उज्ज्वल. शब्दानुक्रमणिका उज्जृम्भ. उज्झित. २८१ उञ्छ. ५६८ उटज. ६७३ उडु. १३६९ उड्डुप. ६३४ उडुपथ. १४६९ उड्डीन. ७५० उड्डीश. उत. १७६ २६९ १५४१ १४६६ १४३१ उतथ्यानुज, उताहो. उत्क. ६८३ उच्छ्राम. १३६८ उत्कर. उच्छ्रसित. ११२८ उत्कर्ष. १०३१ ९७६ १४३५ उत्कुण. ११२७ उत्कोच. १४७५ उत्क्रम. ८५७ उत्कट. १४२९ उत्कंठा. उत्कंठित. उत्कलिका. } ३९. ८६५ ९९४ १०७ ८७९. १६३ १३१८ १९९. १५३६ १४८७ ११९. १५३६ ४३६. ४३६ ३१४ ४३६ १४११ १९०६ ३१४ १०७५: १२०९. ७३७. १५११: Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्क्रोश. उत्क्षिप्तिका. उत्तप्त उत्तम. उत्तमर्ण. उत्तमांग, उत्तर. उत्तरङ्ग उत्तरच्छद. उत्तर फल्गुनी. उत्तरा. उत्तराभाद्रपद. उत्तरायन. उत्तराषाढा. उत्तरासंग. उत्तरीयक. उत्तंस. उत्तान. उत्तानपादज, उतानशय. उत्तेभित. } अभिधानचिन्तामणौ १३३५ ६५६ ६२४ उत्पतितृ. उत्पत्तिष्णु. उत्पत्ति. उत्पल. २६३ उत्पश्य. १००६ उत्पाटित. उत्पात. १४३८ ८८२ ५६६ ६७६ ११२ १६७ ११५ उत्तेरित. } १२४५ १२४९ ३८९ ३८९ १२६७ ११.३ ४५७ १४८० १२६ १२८६ २४७ १३३० ३६६ ६७१ ६५४ १०७१ १२२ ३३८ १२४५ १२४८ उत्पादक. उत्पाद पूर्व. उत्पादशयन. १५८ उपिजल. ११३ उत्फुल. ६७२ उत्स. उत्संग. उत्सर्जन. उत्सर्पिणी. उत्सव उत्सादन. उत्तारक. उत्साह. ११२८ १०९६ ६०२ ३८६ १२७ १५०७ ६३५ ७२१ २९९ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका . १०२७ ५४ १४३१ ४२८ ४२७ उत्साहन. उत्सुक. उत्सूर. उत्सृष्ट उत्सेध. उदक. 'उदक उदक्या . उदगद्रि. उदगयन. उदग्भूम. उदग्र. ७६८ ७३५ । ४३६ र उदय. १४. उदर. १४३१ उदरपिशाच. उदरंभरि. उदरत्राण. उदरिणी. १०२७ उदरिन्. १५८ उदग्लि . ९५३ उदर्क. १४२९ उदरग्रंथि. ४६७ उदवसित. १२२३ उदश्वित्. १०२६ उदात्त. उदान. १०७३ उदार. ५३८ ४५० ४५० . . . ४६९ उदग्रदत् mm ooo ccm w 40 a owo o ११०९ ३८५ ३६७ उदंचन.. उदचित. उदधि. उदधिकुमार. उदंत. उदन्या . उदन्वत. उदपान. aus 9 are, w n । ३९४ उदावत. १०७३ | उदासीन. १०९१ । उदाहार, १६९ ७३२ as Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨ अभिधानचिन्तामणी उदीची. उदीचीन. उदीच्य. उदीर्ण. १०१८ ८८१ १४२८ १४८० ३६७ उदखल. उद्गत. १३५७. १३५७. १३५७. उद्मनीय. उद्गाढ. उद्गात. उद्घन. उद्घाटक. १६७ | उद्धान. उद्धार. उद्धर. उद्भुषण. ११३२ उद्धृत. १००९ उद्भट, १०३९ उद्भव. उद्भिज. उद्भिज. ६६८ उद्भिद्, १५०५ उद्यम. ८१९ उद्यान. ९१९ उद्योग. १०९३ उद्योत. १२०९ उद्र. ४३९ उद्वत्सर. उद्वर्तन, ११७७ । उद्वह. ८०३ उद्वांत. } १५०८ उद्वासन. १५०८ । उद्वाह. उदंश. १०१ १३५०. १९९. उद्दान. उद्दाम. उद्दाल. उद्राव. उद्धर्ष, १४९५ १२२१ उद्धत. उद्धव. Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ४३. ९९३ ४२१ २८२. उपक्रम. १५१० उद्वेग. उंदुर. उन्दुरु. उन्नत. उन्मतानत. उन्नयन. उन्नसत्. उन्नाह. उन्निद्र उन्मदिष्णु. उन्मनसू. उन्मथ. उन्माथ. उन्माद. उन्मिषित. उन्मीलन. उन्मुख. उन्मूलित. उन्मेष. ११५४ । उपकारिका, १३०० उपकार्या, १३.० उपकुल्या. १४२८ १४६८ ३२२ उपक्रोश. ४५२ उपगृहन. उपग्रह. १५२९ उपप्राह्य. उपघ्न. १५०७ ७३७ १००१ उपचो . ४७३ ७३७ ४९७ ४४९ ९३२ उपचार. ३२० ११२८ उपचारपरीतता. उपचित. उपजाप. १४८० उपजिह्वा. ५७८ उपज्ञा. १२४९ उपताप, १४५० उपत्यका. ७१६ । उपदंश. ४५७ १२०७ १३७३. उपकंठ. १०३५ उपकरण. १९ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ કર उपदा. उपदीका. उपदेहिका. उपद्रव. उपधा. उपधान. उपधृति. उपधि. उपनत. उपनय. उपनाय. उपनाह. उपनिधि. उपनिषद्. उपनिष्कर उपनिष्क्रमण. उपनीतरागत्व. ● उपन्यास. उपपति. उपपादुक. उपपुर. उपप्रदान. अभिधानचिन्तामणौ ७३७ १२०८ १२०७ उपभुत. १२५ ७४० ६८३ उपमा. ९९ ३७८ उपमातृ. १४९४ उपमान ८१४ उपयम. ८१४ २९० ८७० २५० ९८७ ९८७ ६६ २६२ ५१९ १३५७ उपप्लव. उपबर्ह. ९७२ ७३७ उपयोग. } } उपयाम. उपरक्त. उपरक्षण. उपरति. उपरम. उपराग. उपरि. उपरिष्टात्. उपल. उपलब्धि. उपलंभ. उपलिंग. १२५ ६८३ ८२८ ७२ १३८ १४६२ १४६३ १९८ १४६३ ५१८ ५१८ ३८१ ७४९ १९२२ १५२२ १२५ १५२६ १५२६ १०३६ ३०९ १५२० १२५ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ११११ ९४७ उपस्कर. उपस्य. ६११ १४९४ उपस्थित. उपस्पर्श. उपहार. १२२२ १३१४ ४९२ ८४५ ७३७ १ "200, our0 - . 20 -- - उपवन. उपवर्तन उपवसथ. उपवास. उपवार. उपविष. उपविष्ट. उपवीत. उपवैणय. उपशम. उपशल्य. उपशाय. उपश्रुति. उपसंग्रह. उपमन. उपसंपन्न, उपसव्यान. उपसर. उपसर्ग. उपसर्जन. उपप्ता . ९१३ १५०३ उपहालक. उपलहर. उपाकरण. उगकृत. उगन. उपात्यय. उगदान. उपाधि. ८२९ १४४१ ११०४ १५२४ ४७८ १३८१ ७८ १४९४ ३७३ उपाध्याय. उपाध्याया, । ५२३ १२७४ १२५ १४४१ १२६८ १०१ उपाध्यायानी. ५२३ उपाध्यायी. १२४ उपानह. ९१४ उपसूर्यक. Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी उमा २०३ ११७९ उपान्त. १४५० उपाय. (चतुष्टय) ७३६ उपायन. ७३७ उपालंम. २७४ उपासकदशा. २४४ उपासंग. ७८१ उपास्ति. ४९७ १३०३ १२७६ १४८९ उपाहित. । १४८५ १९३८ V Cur ०१ent v v ७९२ ७३८ उम्य. उरःसूत्रिका. उग. उरण. उम्भ्र. उरीकृत. उरश्छद. उरसिल. उग्स. उम्स्य . उरस्वान्, उराह. उरु उरोज. उर्णायु. उर्वरा उर्वशी. उर्वी. उलप. उलप. ६५० २६२ , v १५१० उपांशु. उपेक्षा. उपेंद्र. उपोद्घात. उप्तकृष्ट, उभ. उमापति. उमावन. उमासुत. उम्. उबर. उम्बुर. १२४० १४३० १४२३ ९७७ २०८ १९४२ १००९ १२७६ ९३९ १८३ ९३५ ११९४ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उलूक.. १४८६ उलखल. उष्मक. उलपी. उल्का . २३० १२५४ १५७ ११०२ १३८५ १५७ ३८४ उल्व, .. शब्दानुक्रमणिका १३२४ । उषित. ८१६ | उषेश. १०१६ | उष्ट्र.. १३४६ उष्मन्. ५४० ५४० उष्ण. १४६७ उष्णक. ३०६ उष्णवीर्य. ४७४ उष्णागम. उष्णांशु. ६८१ उष्णिका. १०७६ उष्णीष. १११८ उस्त्र. १०९९ उना. .. १३५० १५७ उत्खण. उल्मुक. उल्लाकसन. उल्लाघ. उल्लाप. उल्लोच. उल्लोळ. उशनस. उशीर. उपर्बुध. उषस्. २७५ १२६५ .१४८७ उषा. १९६५ ऊत. १५३६ ऊधसू. १५३३। ऊपत्य. १२७२ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ अभिधानचिन्तामणी ऊरव्य. ऊरीकृत. उरुरीकृत. ८६४ / उर्मिमत. १४८८ ऊर्वशीरमण.. ऊष. ऊषण. ऊपर. ३०० ९४० ८६४ उरुन. ऊन. ऊर्मस्वल. ऊसिन. ४१९ ९३९ ३११ ३२३ उह. १५५ ७९२ ऊर्णनाभ. ऊर्णायु. १९२ १२८९ ७९२ ऋण. १२१० ऋक्य. ४९२ ऋक्ष. २९३ ऋग्विद्. १४८२ । ऋच्.-ग. ऋचीष. ऋजीष. ४५५ ४९२ ऋजु. १९६ । ऋजुरोहित, ७ ऋण. १०७५ ऊर्ध्व. ऊध्र्वक. ऊर्ध्वक्षिप्त. ऊर्ध्वनानुक. ऊर्ध्वज्ञ. ऊर्ध्वजु. ऊवंदम. ऊर्ध्वलिंग. ऊ लोक. ऊर्मि. ऊर्मिका. २४९ १०२० १०२० १४५६ १७९ ८८१ । ऋत. ८६६ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ऋतु. ऋतुमती. ऋते. ५३६ ५३५ ऋद्ध. ऋद्धि ऋभु. ऋभुक्षिन्. ऋश्य. १५५ । एकक. . १४५७ एमकुंडल. २२१ एकगुरु. १५२७ एकतान. १४५८ ३९७ एकताल. ३५७ एकदंत. २०७ १३२२ १७२ एकश. १९६ ४५३ एकधुर. १२६२ १२५६ एकधुरीण. १२६२ १४०१ एकपत्नो. ५२८ १४४० एकपदी. ९८३ २९ एकपदे. १५३२ एकपाद, १०८२ एकपिंग, १८९ ७८२ एक प्रत्ययसंतति. ८४ २३० एकयष्टिका. १६१ एकसर्ग. ८७३ एकहायनी. १२७२ ११५७ । एकाविन्. १४५७ १४६८ | एकाग्र ऋषभ. ऋषि, ऋषिकुल्या, ऋष्टि. ऋष्यांक. एक. Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० अभिधानचिन्तामणौ .एकांत. ७४२ । एति. १५०६ एषण. १३१ । एषणा. १२९ एषिणी. ११८९ ७७९ ३८८ ९२४ एकांतदुःषमा. एकांतसुषमा, एकायन. एकायनगत. एकावली. १४५८ २५९ ४५२ एडक. एडगन. एडमूक. एडूक. एण. एणभृत्. ऐकागारिक, ६६१ । ऐकाग्र. ४५४ । ऐतिह्य. १२७६ ऐद्रलुप्तिक. एंद्रि. . | ऐंद्री. १००३ ऐरावण. १२९४ ऐरावत. १२९८ १३६८ ऐरावती. १५३० ८१३ । ऐलविल. ८२७ । ऐशानी. १४९५ । ऐश्वर्य. 09 .४० ४, "v१ ० or or or एतन. एतहि.. एतस. १८० १७७ ११०४ ७०१ १८९ एधस्. २०२ एधित. 'एनस्. एरंड ११५० । ओकस. ९९१ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओघ. बर. ओंकार. m ओजस्. ओण्डू. ओतु. ओदन. N400 20 am ओम्. ओषण. शब्दानुक्रमणिका १४११ औदार्य, । ६९ २९२ ५०९ १०८७ २५० औपगवक. १४१६ ७९६ औपम्य. १४६३ ९६१ औपयिक. १३०१ औपरोधिक. ३९६ औपवस्त. १५४० औमीन. ९६७ १३८९ औरच. औरभ्रक. १४१७ ५८१ औरस. औरस्य. ५५० और्द्धदेहिक. ३७४ १४१६ ११४७ और्वशेय. ३१४ औलुक्य, ७२२ औशीर. ६८५ ४११ औषध. ४७२ औषधि. ४२८ औषधीपति.. १०४ ६५ औष्ट्रक. ओषधि. १११७ ओष्ठ. औक्षक. और्व औपुष्पं. औत्सुक्य. औदनिक. आदश्वित. । औदश्वित्क. औदरिक. औदात्त्य. . Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधामचिन्तामणौ कक्ष्या ... कंक. १२३२ ७०७ ६८८ १०६९ २२० १०२४ १०५७ १०५६ १२६४ १२५७ १०७ कङ्कट. कंकण. कंकत. कंकपत्र. कंकमुख. कंकाल. कंकेलि. कंसक. कंमोद्भवा. ककुद. ककुमत. ककुद्मती. ककु ककुम, ककुम. ककोटक. कक्ख ट. ६२८ ११३५. ११७६ ११७६ कंगु कंगुनी. कच. ११३५ २९१ कचश्मश्रुनखाप्रवृद्धि. ६३ कञ्चर, १४३५ कञ्चित. १५४० १३८६ कक्ष. कच्छ. १४६३ १०७७ १९३ कक्षा. ५८९ । कच्छप. कच्छप. २८८ कक्षापट, कक्षीवत्, ६५६ कच्छपी. } कच्छपी १३५३ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका १९८८ कच्छा . कच्छाटिका. कन्डुर. कज्जल. कजलध्वन. १३८९ १३३.. २९० कंचुक. ६७५ | कटिल्लक. ६७५ कटिसूत्र. कटीर. कटु. कटकाण, ६८६ | कटोलवीणा. कटवर. कठिन. १३१५ । कठिनी. १३०४ कठोर. ७२७ कडंगर. ६७४ कडार. कण. १०१७ कंचुकिन्. } कंचुलिका. १३८७ २०३७. १३८७ ११८२ १३९७. १४२७. ४२१ ४२२ कट. कणा. .60. or rur कटक. कणित. कणिश. कल्याणप्रवाद. १०३३ ११८१ २४८ कंटक. . १०२२ ३०५ कटाक्ष. कटाह. कटि. कटिमोथ, कण्टकारिकाः ११५७ कण्टकाशन, १२५४ ६०९ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ প্রমিলম্বিয়ালী . ५८८ कदली. कदली । ११३६ १२९४ २८७ १२३२ . १२८३ कद्रु. १०१७ कंठ. . कंठकूणिका. कंठबंध. कंठिका. कंठीरव. कंठेकाल. कंडन. कण्डरा. कण्डू. कण्डूयन. कण्डूया. कंडोलक. कत्तण. कथंकथिकता. कदक. कदध्वन्. कदन. occ Anm कदाचित्. १९३३ कदुष्ण. १३८६ १३९७ कद्वद. कनक. १०४३ कनकाध्यक्ष, ७२३ कनकालुका. ७१८ कनकाय, . ११५१ कनन. ४५३ कनिष्ट. ५५२ कनिष्ठा. ५९३ कनी. ५१० कनीनिका. ५७५ ५९३ कनीयस. १०४० ४६४ १०१७ ११९१ २६३ ९८४ ३७० कदंब. । ११३८ १०१४ कनीयस्. । ९५२ कदंबक. | कंद, १९८९ कदर्य. . ३६८ कंदर. . १०३३ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका कन्दर्प.. कंदी. कंदली. ac ) क. कंदुक. कंधरा. कन्यकुकन. कन्या. कन्याकुब्ज कपट. Rs ९७४ ३७८ कपर्द. २२८ । कपिला. ..१०४८ कपिकोह. १०४७ १२९४ कशि . १३९६ ९२१ कपिशीर्ष. ६८९ कोत. ५८६ कपोतपाली. १०१० कपोताभ. . १३९४ कपोल. ६८२ कपोली. कफ. ४६२ २०० कफर्चिका. १२०६ कफणि. ५९० १९६ १००७ कफोणि. ५९० . ६२७ १९९ १०७० २०६ कबर. १४६९ १२९१ कबरी. ५७० कमठ. १३५३: ११५१ कमंडलु. २११ कमन. १३९६ २२७. कफिन्. कबंध. कपर्दिन्. कपाट. कपाल. कपालभृत्. कपालिनी. कपि, कपिकच्छू कपित्थ कपिध्वन. कपिल. Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মিনবিলাসী १२२४ कमनछद. कमनीय. कमर. १३३३ १४४५ | कर. is so od कमल.. ० ० ११६० १०६९ . २२६ १११९ ४३४ ३०६ कमला. कमलोत्तर. कमित. कम्प. कंप्र. AM करका १०२१ करकपात्रिका. १०२५ करंक. १०२२ करन. १११० १२२५ करट. १३२२ करटा. करटिन्, १२१७ करटु. १३३७ करंज. कंपन. कंपाक. १४५५ ११०६ १४८१ १३११ कपित. कंबल. कंबलिवाह्यक. कंबि. कंबु. कंबुग्रीवा. १०२१ १२०४ करण. १३८३ कम्र. ४३४ करणत्राण. १४४५ । करतोया. ५६७ १०८५ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करपत्रक, करवाल. करवालिका. -करवीर. करवीरा. करम. कर भूषण. करमाल. करंब. करंभ. करवीर. करवीरक. करशाखा. करशीकर. करशूक. कर हाट. करालिक. करिन्. करीर. } } शब्दानुक्रमणिका ९१८ करीष. करीषाग्नि. ७८२ ७८९ ९८९ १०६० १२५५ ५९२ ६६२ ११०४ १४६९ ३९९ ११३७ ११९७ १९२ १२२३ १९४ ११६६ १११४ १२१७ करुण करुणा. करुणापर. करेटु. करेणु. करेणुभू. करोटि. कर्क. कर्कट. कर्कटी. कर्कधू. " कर्कर. कर्करा टुक. कर्कराल. कर्कशी. ११५० कर्क रेटू. १०१९ कर्कश. ११८३ कर्कारु. } ५७ १२७३ ११०१ ११४९ २९४ ३६९ ३६८ १३३७ १२१८ ८५३ ६२६ १२३७ १३३४ १३५२ ११८९ ११३८ ६२६ १३३७ ५६९ १०२१ १३३७ १३८६ ११८८ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८. ३७२ ७८१ a swo १४०३ ११९८ १०९० ५८ জামিয়ামিলী कर्कोटक. ११९० । कर्णेनप. कर्णकीटा १२१० कर्तन. कर्ण. ५७४ कर्तनसाधन. ___ ७११ कर्णनलौक. १२१० कर्णनित् कर्णधार, कर्णपूर, कर्णपूर. कर्णभूषण. कर्णमूल. १२२५ कर्णमोटी. कर्णलतिका.. ५७४ कर्णवेष्टक. कर्णशष्कुली. ६७४ कर्णान्दु. कर्मकर. १२२४ कर्मकार. कर्णिका. कर्मक्षम. कर्मठ कर्णिकाचल. १०३१ कर्मण्या. कर्णिकार. ११४५ कमेन्. कर्णीरथ. ७५३ कर्मप्रवाद. २०६ १०२२ ६३८ १३९८ १०१४ ६५५ ३५४ ३५४ ३६२ १४९७ २४७. Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका कलधौत. १०४३ करम. कर्मभूमि. कदिन. कर्मवाटी. कर्मशील. कर्मशूर. कर्मसचिव. कर्मसाक्षिन्. १४७ ३५४ ३५४ ७१९ १०४४ १२२० ११६९ ७७८ कर्मसुद्यत. on om . कार. कर्मात. कलंबा कलंबिका. कलरव. करल. कलर्विक. कलश. कलशी. कलम. कटह. कलहंस. १३३९ ५४० १३३१ १०१९ १०२२ १०१९ क. c R V OB कर्षक. १०८० कर्षण. कबूं. कहिंचित कल. कलकण्ठ. कलकल. १३२७ ९०० । कलंक. } कलंक. कलाकेलि १३४५ कलाचिका. . ५१३ कलाद. ६०७ । कलान्तर. २२७ ५९० ९०८ । Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधामचिन्तामणौ १३२० । ८३९ कलाप. १६.. कल्प. १२३२ कलापक. कलाभूत. कलामक. कलाय. कलावती. कलि. २५० ३७२ ९११ ९२ २१७० .. २८९ कल्पन. कानी. कल्पमव. कल्पातीत. करपांत. कल्पित. कल्मष. कल्माष. कलिका ११२५ २९१ कलिकारक. कलिंग. १.३३.३ कलिन्दिका.. २५८ कलिरक्ष. ११४५ कलिल. १४७२ १२२१ १३८१ १३९८ ४७४ ९.२ १३९ कल्य. कलष. ९०१ कलेवर. कल्क. कल्यपाल. कल्यवर्त. .१३४१ । कल्या. ५६४ ४२५ २७३ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ८०१ कल्याण. कल्याणप्रवाद. कलत्व. कल्लोल. कवक कवच. कवल. 20 कष्ट. २४८ कश्मल. १४३५ कश्मीर. ९५८ २४८ कश्मीरजन्मन्. ९०२ १०७६ कश्य. १२३६ ४२५ १२४४ कष. ९०९ कषाय. १३८९ १६७१ कस्तीर. १०४२ कस्तूरी. कल्हार. १२५० कहः । १३३२ कांस्य. १२५० १०४९ कांस्यनील.. १०५२ १२५० १३८१ काककंगू. ८३२ कातुंड काकपक्ष. ५७२ काकपुष्ट. १३२१ ६२७ । काकमाची. .११८८ x rom v कविका... कविय. कवी. काक. कयोष्ण. कव्य. कशा.. कशिपु. कशेरुका. Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ काकलक. काकली. काकारि. काकु. काकुद. कोकोदर. काकोदुंबरिका, काकोल. } काक्ष. काक्षी. कांक्षा. काच. काच्छी. कांचन. } } कांचनगिरि. कांचनी. कांचिक. कांची. कांचीपद. अभिधानचिन्तामणौ १८८ १४१० काण. १३२४ १४१० ५८५ कांजिक. ५७८ १०५५ काण्ड. १३०३ ११३३ कांडपट. ११९६ कांडपृष्ठ. १३२३ . कांडवत. कांडस्पृष्ट. कांडीर. कातर. कात्यायन कात्यायनी. ४३० ३६४ १०६२ १०१६ १०४३ कादंब. २३६ कादंबरी. १०३२ कादंबिनी. ४१८ काद्रवेय. ४१९ कानन. ६६४ ६० कानीन. } ४१५ ४५३ ११८३ ७७८ ११८२ १४४२ ६८० ७७० ७७१ ८१८ ७७१ ३६५ ८५२ २०३ १३१ १३२७ ९०२ १६५ १३०७ १११० ५४७ ८४७ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कांत. कांता. कांतार. कांति. कांदविक. कांदिशीक. } कापथ. कापिस. कापिश. कापिशायन. कापोत. काम. कामं गामिनू. : कामकेलि. sarasafoet १४४४ कामन. ५०४ कामपाल. ५१५ ९८५ १११० कामयितृ ११९४ कामरूप. कामलता. कामारि. ५०९ १५१२ ९२१ ३६६ ९८४ ८६२ ९०३ ९०२ १०५१ ९४५ १३९४ ४३१ ७३ २२७ ४९५ १३७ कामं } कामायुष्. काम ङ्कुशः कामावसायित्व. कामुक कामुका. कामुकी. कांबल. कांबबिक कांबोज, काम्य. काय. कायमान. } ६३ ४३४ २२४ १५४० १५०५ ४३४ ९१६ ६१० १०५५ २३१ १९४ २०२ ४३४ ५२७ ५२७. ७५४ ९१० १२३५ १४४५ १४६४ १६३ ८४० ९९६ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी | कार्यास. ८९९ कारकाधविपर्यास. ६१९ कारकुक्षीय. . ९५७ ११३९ कारण १५१३ । कार्म, ३५४ कारणा.. १३५८ । कार्मण, १४९८ कारणिक. . ४७९ | कामुक. ७७५ कारंडव. १३४१, कार्य, १९१४ कारवेल्ल ११८८ । कार्षक, ८९० कारस्कर. १३९७ कारा. १२१ कारिका. काल. २५८ १८४ कारिन. : ३२३ कारु. ८९९ कालक. कारुण्य. ३६९ कारुष. ९५९ कालकण्टक. . १३३२ कारोत्तम. ९०५ कालकर्णिका. १३८० कार्तवीर्य. । कालकूट. कालखन्न. कार्तस्वर. १०४४ कालखंड. ६०४ काःतिक. ४८२ कालचक्र. १२८ कार्तिक १५५ कालधर्म. ३२४ कात्र्तिकिक. १५५ । कालनेमि. २२० कार्पण्य. ३१९ । कालपृष्ठ. ७११ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका . काश्यपि.. कालवृंत. ११७५ । काव्य. ११९ कालशेय. काश. ११९५ कालागुरु. ६४१ कारी. कालांतरविष. १३१३ । काश्मरी. ११४३ कालायस... १०३७ २३६ काश्यप. । कालासुहृद्. २०० ६२२ १०५५ १०२ कालिका २३१ काश्यपी. ९३७ कालिंग, काषायवसना. _ ५३१ कालिनी. काष्ठ. ११२२ १०८३ काष्ठकीट. १२०३ कालिंदीसोदर. १८५ काष्ठ-द. ९१७ काली. २०३ काष्ठा. कालीय. .. २२१ कालीयक. ६४६ काम. कासर. १२८३ कालेय. कासार. काल्य. १३९ कासीस १०५६ काल्या.... १२६८ किकीदिवि. १३२९ कावचिक. १४१७ । किखि. १२९० कावेरी. १०८४ किंकर कालिंदी. ६०४ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी - Rocm AR AM किंकिणी. किंकिरात, किंचन. किंचित्. किंचुलक. . किंनरक, किटि. किटिभ.. 'किव किट्टवजित, किण. किण्व. ६६५ । किंपचान. किंपाक. किंपुरुष. १२०३ । किंपुरुषेश्वर. कियदेतिका. १२८८ किर. १२.९ किरण. १२८७ ९३४ कितव. किनर. । किन्नर. ६२९ किरात. किरि. १२८७ १३८१ किरीट ६५१ किरीटिन्. ४८५ क्रिीर, १३९८ किर्मीरनिषूदन. ७०८ किलाटो. १९४ किलास. १५३६ | किलासन्न... ११९० १५३६ । कितासिन्. ४६१ १९३५ किलिकिंचित. ५७ १५२८ किलिंग. १०१७ १९३६ । किल्विष. ४०५ किमु. किमुत. } Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .शब्दानुकमणिका १०६९ ११३३ कीलाल. कीलित. की. १२९१ किशलय. किशोर. किसल. किंवदन्ती. किंशारु. किंशुक. कीकट, २६९ ९३६ ११३६ कृहुंदर. ११०१ १३२४ १३०६ कीकम । ६.२६ कीचक. कीचकनिषूदन. कीट. १६४२ १२७८ कोन. ९६० कुक्कुट. कुक्कुटाम. १२.२ कुक्कुटाहि. ११५३ कुक्कटि. ७०८ कुक्कुभ. १२०२ कुक्कुर, १२३ कुक्षि. कुर्सिमरि. १८४ इंकम. कुच. १३३५ कुवंदन. १४७३ कुघर. २७३ कुंचिका. ११०२ कुंचिकात्य. ४२७ कीनाश. १८७ कीर. कीर्ण. ४ कीर्ति. कील. कीला. १००५ १९४७ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणो १४५६ ११२६ कुंचित. कुंज. कुंजर.} कुंजराराति. कुंनराशन. कुंजळ. १२९८ कुडूमल. कुज्य. कुख्यमत्स्य. कुणप. कुणि. कुण्ठ.. १४४० १२१७ १२८६ ११३१ ४५३ ३५३ ६५० १०१९ ९९० कुंड. कुट. १०१९ कुंडगोलक, कुंडल. कुंडलिन्. कुण्डिका. कुंडिन. ६५६ १३०३ ११३७ १०२३ ५३४ १४५६ ९७९ ५४३ कुतप. १४१ कुटक. कुटन. कुटर. कुटहारिका. कुटिल. कुटुंबिन्. कुटुंबिनी. कुट्टनी. कुट्टमित. कुट्टिम. कुठार. कुडंग, ८९० १०२५ १०२५ कुतुक. ११३ कुतुप. कुतू. ९९२ । कुतूहल. . ७८६ | कुत्सा. १११५ कुत्सित. २७१ १४४२ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका कुमार, ३३२ .... ४२ २०९ ३३८ कुदाल कुनटी. ८९२ १०१० १९२ ७८५ ५६७ ९६१ कुमारक. कुमारपाल. कुमारसू. कुनामि. कुंत. कुंतल. कुमारी. २०३ ५१० कुमालक. १९३ १९३ कुपूय. कुमुद. १०४३ १९६४ कुमुदवांधव. कुमुदिनीपति. १०४ कुमृद्वत. ९५४ कुमद्धती. कुंबा. ८२४ . १२२६ कुष्य. कुप्यशाला ९९६ १८९ कुवेर. कुब्ज. । १४२९ १०१९ कुंमकार. १९७ / कुंभकारकुक्कुट, १३४२ ४५३ कुन्नित. Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणी कुंभशाला. कुंमिन्. ५२९ १९७६ कुंभी. १३४९ S १०६२ १२५३ ५१५ १३१९ कुंभीनस. कुंमीर. कुरंकर. कुरंग. कुरचिल. कुरंटक. कुरण्ड, कुरर. कुररी. कुरुक्षेत्र. कुरुल. __ ९९९ । कुलटा. १२१७ कुलत्थ. १०१९ कुलस्थिका. , १३०४ कुलनाश. १३४९ कुलबालिका. १३२८ कुलश्रेष्ठिन्. १२९३ कुलस्त्री. कुलाग. ११३५ कुलाल. ४७० कुळाली. कुलाह १२७७ कुलि. ९५० . १६९ कुलिङ्कक. ११९३ कुलिश. १०६१ कुलिशांकुशा. कुली. १२७९ १४१३ कुलीनक.. ९९० । कुलीनस. १०६२ १२४१ ४८५ १३३१ कुरुर्विद. ३ २३९ कुरुबिस्त. कुकुर. कुलीन. १ १२३४ ५०३ ५०२ ११७३ २०७० Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका कुशल. कुलीर. १३५२ कुलुक. कुल्माषाभिषुत. ४१५ कुरुमास. ११७५ । ६०२ कुशस्थल. कुशा. कुल्य. ९७४ १२५२ ३४४ ८५० ८९१ कुशाग्रीयमति. कुशारणि. कुशिक. कुशिन्. कुशी. १०८० १०८९ कुल्या . कुर १०३९ कुवल. कुवलय. कुवलाश्व. कुशेशय ११६० ११९७ कुवली. कुष्ट. १६६ १००७ कुवाट. कुवाद. कुर्विद. कुवेणी. ९१३ ९२९ ११६३ कुष्टारि. कुसीद. कुसीदिक. कुसुम कुसुमपुर. कुसुंभ. . १०५७ ८८० ८० ११२४ ९७६ १११९ १२०३ १०१३ कुवेल, कुश. ११९२ । कुसूल. Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “७२ अमिधामचिन्तामणौ कुमृति. ९२६ । कूटस्थ. १४५३ ३७७ २९१ ऋर्णिका. } ४१९ कुस्तुंबुरु. कुह. कुहक. कूप. १२६४ १०९१ कृपक ३७७ ९२६ १३४२ १०८८ कूवर कुहकस्वन, कुहन. कुहना. कूर. ३९५ ५८० 60 .. १५१ ४०५ कुचिका. कृनित. ____९२२ १४०७ १०३२ ३७८ ९२० कूर्चशिरस्. कृर्चिका, कर्दन. कर्प कूर्पर. कर्पास. कूर्णसक. ५९० ७६७ ६७४ १२५९ ९३२ । कूलभू. कूटयंत्र. १०७७ १०७७ Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ६३० ८४२ ३४२ कूलंकषा. १०८० | कृतांतजनक. कुष्मांडक. १ २१० कृतार्थ. ... ११८८ कृतिन. ३४१ कृक.. ५८७ कृत्त. १४९० कृकण. १३३८ । कृत्ति, कृकलास. १२९९ कृत्तिका. १०९ कृकवाकु. कृत्तिकासुत. २०८ कृकाटिका. कृत्तिवासस्. कृत्य. १५९४ कृत्रिमधूप. कृतकर्मन. कृतस्त्र. १४३३ कृतपुंख. ७७२ कृपण. कृतमाल. ११४० कृपा. ३६९ कृतमुख. ३४२ कृपाण. .. ७८२ कृतम्. ११२७ कृषाणिका. ७८४ कृतलक्षण. ४३७ कृपाणी. ९११ कृतवर्मन्. कृपालु. कृतमापत्रिका. ५२७ कृपीटयोनि. १०९७ कृतहस्त. । २४९ ७७२ १२११ | कृमिन, . ६४० २४२, कृमिजा. १२०२ कृमि. १८४ कृतात. । Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ कृमिपर्वत, कृमिला. कृश, कृशानु कृशाश्विन्. कृषक कृषि. कृषिक. कृषीवल. कृष्टि. कृष्ण. } कृष्ण कर्मन्. कृष्णकाक. कृष्णभूप. कृष्णा कृष्णवर्त्मन्. कृष्णश्रृंग अभिधानचिन्तामणौ ९७० कृष्णसार. १९८ कृष्णस्वसृ. ४४ १४२ १०९८ कृष्णामिष. ३१९. कृष्णवास. कृष्णिका. ८९१ ८६६ ८९० ८९० ३४१ कृष्णा. } कृसर. के कर. के का. केकिन. के णिका. केतक. केतन. १०५१ १३९७ २१५ ४१९ ६९७ ८५५ १३२३ ९५३ ११५५ | केयूर. १०९८ केरल. १२८२ के. केतु. के निपात. १२९४ २०४ ४२१ ७१० १०३८ ११३१ ४१९ ३९८ ४५८ १३२० १३१९ ६८१ ११५२ ७५० ९९ १२२ ७५० ८७९ ** ९६१ १९९ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केलिकिल. } के लिकीर्ण. केलिकुंचिका. केवल. केवलज्ञानिन् केवलिन्. केश. केशकलाप. केशन केशपक्ष. केशपाशी. केशभार. केशमार्जन. केशरचना केशरञ्जन. केशरित. .. केशव } केशहरुत. केशिक. शब्दानुक्रमणिका ३३१ २१० १२५५ के. शिन्. १९९ केशोच्चय. ७४२ केसर. : } ५० २५ केसरिन्. ५६७ कटभ. १६८ कैतव. } ४६६ कैदारक. ५६८ कैदारिक. ५७१ कैदार्य. ५६८ कैरव. ६८८ कैरविणी. १६८ कैराटक. ११८७ कैलास. ७०५ २१४ ४५८ ५६८ ४५८ कैलासौकस. कैवर्त्त : कैवल्य. कैशिक. कैशिकी. ७५ २२० ४५८ ५७१ ५६८ ११३५ ११६६. १२८४ २२० ३७८ ४८६ १४१९ १४१९ १४१९ ११६४ १.१६३ ११९७ १०२८ १९० ९२९ ७४ १४२० २८५ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाभिधानचिन्तामणी कैश्य. कोक. कोकनद. कोकाह. कोकिल. कोटर. कोटवी. १३८७ १३३८ ११२५ ११७७ १२८७ कोल. १४२० । कोपना. १३३० कोमल. १२९१ कोयष्टि. कोरक. १२३७ कोरदूषक. १३२१ ११२२ कोलक. १०१३ ८७३ कोलकुण. ८७९ कोलंबक, ९७७ कोलाहल. कोली. कोविद. ९७७ कोविदार. ९७३ कोटि. । १२० १२०९ २९० कोटिपात्र. कोटिवर्ष, कोटिश. कोटीर. कोटीवर्ष. ११३८ को कोठ. ११५२ १०४५ कोश. ७१४ कोण. कोदंड. २९४ १०१३ ७७५ कोशफल. ११७७ २९९ । कोशातकी. कोद्रव. कोशला. कोप. ११८८ Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ७७ १०२४ कौलेयक. । १२७२ ५०२ कोशिका कोशी. कोष्ण. कोक्षयक. कौटतक्ष. कौटिक. कौटिल्य. कोणप, कौतुक कौतूहल. कौद्रवीण. ११२४ १९८६ ७८२ ९१८ ९३० कौश. कौशालिक. कौशल्यानंदन. कौशांबी. ९७४ ७३७ ९७५ or a var कौशिक. ? १३२४ ९२६ ९२६ कौंतिक. ७७० ८५० ३१५ १६९ ६७. १२३ २२३ १०७ J कौशिय. कौशेय. । कौषितकी. कौस्तुभ. क्रकच. ककचच्छद. ककर. क्रकुच्छंद. कौपीन. कौबेरी. कौमुदी. कौमुदीपति. कौमोदकी. कौलटिनेय. कोलटेय. कौलटेर. कौलीन. १०१ ११५२ २२२ ५४९ ५४९ ११५० २३६. ८२० २७० क्रतु. ऋतुभुज्. Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ ६५५ कंदित. २९९ य.. क्रंदन. . १४०४ । क्रीडा. १४०२ क्रुच. १०२९ १५०३ Qच. १३२९ क्रम क्रुधा. .८३९ - २९९ क्रपण. कृष्ट. १४०२ क्रमुक. ११५४ क्रमेलक. १२५३ १३८६ क्रवविक्रथिक. ८६७ क्रेतव्यमात्रक. ८७१ क्रयिक. ८७१ क्रयिन. ऋयद. ८७१ १२८७ कन्य. ६ २२ । के १२१ १८८ काथ. क्रोडपाद. १३५३ कांति. क्रोडा. कायक. कोडीकृति. १५०७ १४९७ । क्रोध. २९९ क्रियावत. . ३५३ क्रोधन. ३९२ क्रियाविशाल. २४८ क्रोधिन् क्रियाह. ८८७ क्रियेद्रिय. १३८४ । क्रोष्टु. ८६८ कय्य. - - क्रव्याद्. क्रिया. W क्रोश. १२९० Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ४७ । क्षणिका. ११०५ कौंच. १३२९ क्षत.. १०२९ २०९ क्षतना. क्रौंचारि. ६८६ क्लम. ३१९ क्षतज. ६२२ क्लिन्न... क्लिन्ननेत्र. १४९२ क्षतव्रत. क्लिष्ट. r क्लीय. केश. क्लोमन. ३१९ । v११ Vv roor.wo wur or or २०७४ 0 9000. an क्वण. ११७६ १४०० १४०० क्षत्रिय. क्षत्रिया. क्षत्रियाणी. क्षत्रियी. कणन. कथित. १४८६ . क्वाण. १४०० १५०८ क्षत. ३९१ ४९९ क्षण. क्षम. १५०९ ३९१ क्षमा. ९३६ क्षणदा. क्षणन. क्षणानु. क्षमित. ४६५ । क्षमिन्. ३९. Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमिधानचिन्तामणौ सारन सीर ४०४ ४१८ क्षव. १९२३ । क्षीण. ४४९ ४६३ । क्षीणाष्टकर्मन्, १.१ क्षीजन. १४०९ क्षीब. ४३६ ११७ १०६९ क्षीरकंठ ४६४ । क्षीरज. ४४९ क्षीरस्फटिक. १०६८ ८२८ क्षीरवारि. १०७५ क्षीरशर. क्षीरोदतनया. २२६ १९८६ क्षुण्ण. ३४५ occc क्षवथु. क्षाम, क्षार. क्षारक. क्षारपत्र. क्षारित. क्षालित. श्रुत. १४३७ क्षुताभिजनन. क्षुत्. । ४१८ १३७२ क्षिति. क्षितिरुह. क्षिप्त. क्षिप्नु. १४८२ ३५० क्षिप. १४२७ १२०५ १२०२ १४७० । क्षुद्रकबु. १५२३ क्षुद्रकीट. क्षिया. Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षुद्रघंटिका. क्षुद्रनासिक. क्षुद्रा. क्षुद्रोपाय. क्षुधित, क्षुप. क्षुब्ध. क्षुमा. क्षुरप्र. क्षुरमर्द्दिन्. क्षुरिन्. क्षुरी. क्षुल. क्षुल्लक. क्षेत्र. क्षेत्रज. क्षेत्रज्ञ क्षेत्रिन्. क्षेप. क्षेपणी. शब्दानुक्रमणिका क्षेम. ६.५ ४५१ क्षेमंकर. १२१३ | क्षैरेयी. ७३८ क्षोणि. ३९२ क्षोद. १११७ क्षौम, } १०२३ ११७९ क्षौर. ७८० क्ष्णुत. क्ष्मा. ९२३ ९२२ ७८४ १४२५ १२०५ ड. क्ष्वेडा. ५६३ ख. ५१३ ९६५ ५४९ १३६६ ८९० २७१ ८७७ खग. खड्डूर. खचित. खजक. ख. } ८१ ८६ ४८९ ४०६ ९३६ ९७० ९८१ १९ ९२४ १४८४ ९३६ ११९५ १४.४ १६३ १०५१ १३८३ ९५ ७७८ १३१६ १६९ १४३९ .१०२३ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ अभिधान चिन्तामणौ खजाका. खजित्. खनक. खंजन. खंजरीट, खट, खटक. खटिनी. खटी. खट्टन, २३५ ४५५ । खंडित. १३२८ खण्डिन्. १३२८ खण्डीर. खद्योत. ६९७ खनक. १०३७ खनि. १०३७ खनित्र, ४५४ - ६८९ ११७१ १४९० ११७४ ११७२ १२१३ १३०० १०३६ ८९२ १२५६ खटा. खर. खटांग. खटांगभृत. १९९ १२८७ खड्ग. ... ७८२ खड्गपिधानक. ७८३ खरकुटी. खरकोण. खरणस. खरणस. खरांशु. १३८५ १००० १३४१ ४५१ ४५१ ७ १२८७ खरू. ८५९ खगिन्. । खंड .. ४०३ खर्जू. खंडपशु. १९८ १.५८ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ८२ 20 खर्वशाख. . ४९४ १०३६ १०८२ ८८६ खल. १४२९ । खादन. ४५४ खानि, खापगा. ९१७ खारी. ३८. खिल. खुङ्गाह. ४५२ खुर. ९६९ खुरणस. खुरणस. १४२१ । खुरली. १२५० खेचर. खेट, ८९४ १४२१ खेटक. १०२५ खेद, खेय. खेलनी. खेला. १०५१ खोङ्गाह. खोड. १०९५ खोर. १२३८ १२४४ ४५२ ४६२ ७८८ १०५६ खलति. खलधान... खलपू. खलिनीनिम. खलीन. खलुरिका. खलेवालिन्. खल्या . खल्ल. खल्बाट. खस. खस्फटिक, खाख्य. खातक. खातिका. ७८३ २९९ १०९५ १२३७ ४५५ १०९४ Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधामचिन्तामणौ ख्यात. गडोल. ४५३ ४२५ २०१ गण. १४११ ४८२ गगन. गगनध्वज. गगनाध्यग, गंगा. गंगाभृत् गंगासुत. गच्छ. १ १०८१ १९९ २०८ २ गणक. गणरात्र. गणि. गणिका. गणिकापति. गणिपिटक. गणेय. गणेश. ७५१ १२१७ गज. ५१९ २४५ ८७२ २०७ ५८२ १४२२ ११५२ ७६२ गर. गमता. गजप्रिया. गजाजीव. गजास्य. गनासुहृद्, गजाहय, १२२५ ११२. १२८७ गडि. गंडक. गंडमाल. गंडशैल. गण्य. जा । १००१ १०३६ ८७२ १२९१ १२०३ गडक. गडिव. १३४५ ४६६ गंडुपद. Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गंडूपदभव. गंडूपदी. गंडूष, गंडोल. गताक्ष. गति, } गद. गदाग्रज. गदाभृत्. गंत्रो. गंध. गंधक. गंध कालिका. गंधज्ञा. गंधधुली. गंधपिशाचिका. गंधमातृ. गंधमूषी. गंधरस. शब्दानुक्रमणिका १०४१ १२०३ १९८ ४२६ ४५७ ४७० १५०० ४ ३ ३ २६ २१९ ७५३ गंधर्व. गंधवह. गंधसार. गंधांबुवर्ष. गंधाश्मन्. गंधिक. गंधोत्तमा. गंधोली. गर्भस्ति. } गभीर, १३९० १०५७ ८४७ ५८० ६४४ ६४९ ९३६ गर. १३०१ गरम. १०६३ गरल. गमन. गंभीर. गंभीरवेदिन. गया. ૮૧ १२३३ १८३ ४३ ९१ ११०६ ६४१ ६३ १०५७ १०२७ ९०२ १२१५ ९१ १०० -१०७१ ७८९ १०७१ १२२२ ९७३ १३१४ ५४० ११९५. Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ गरुडापन. गस्त. गरुत्मत. गर्गरी. गर्न. ४३ । गर्भपाकी. गर्भवती. १०२, गर्मागार, १३१८ । गर्भाशय. २३१ गर्भिणी. ६४० १२६६ गर्व. गईणा. गह. . १२१८ १४०५ १४०६ १२२० १४०६ १३६४ १४४२ ५८८ १२६४ गनि, गर्जित. गर्त. मतिका. गर्दभ. गर्दभाहम. गल. गलकम्बर. गलगंड, गलशंडिका. गलंती. १०२१ १२७५ १२५६ गर्दमी. १२०८ गर्द्ध १२६३ १४९० ५८२ गद्धेन. गलस्तनी. गलांकुर. गलि. गलित. गल. गल्बर्क. गवय. गवल. गवाक्ष. ४२९ ५४० ६०१ १२८१ १२८३ १०१२ Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गात्र. } ५६३ गवीश्वर. मवेधु. गवेधुका. गवेषित. गव्य. गव्या. गांधर्व. गव्यूत. गन्यूति, शब्दानुक्रमणिका ८७ ८८८ ११७९ १२२८ ११७९ गात्रसङ्कोची. १३०२ गात्रसंप्ला. १३४० १२७३ गात्रानुलेपनी. ६३९ १४२१ गाधिपुर. ... ९७४ ८८८ गाधेय. <५० ७७६ गान. ..२८० ८८७ २८० १८३ गांधार, १४७२ गांधारी. १११० १०३३ गारुड, १०४४ गारुत्मत. १०६४ १०४३ गार्द्धपक्ष. ... ७५ १४४७ गार्मिण. १४१५ गार्हपत्य. १४२० गालव. । ७१० २७२ ७१० । गिर. २४१ गहन. २४० . १५०५ गांगेय. गाढ. गाढ. गाणिक्य, गांडिव. गांडीव. गालि. Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ गिरि. गिरिकर्णी. गिरिका. गिरिगुड. गिरिज. गीत. गीति. गीर्वाण. गीष्पति. } गिरिजामल. गिरिमल्लिका. ११३७ गिरियक. ६८९ गिरिश. १९६ गिरिसार. १०३८ गिरीश. १९६ २८० २८० गुच्छ. गुरुछ, अभिधानचिन्तामणौ १८८ १०२७ १११६ १३०१ १८९ १०६२ } गुञ्जा. गुडपुष्प. १०११ गुडफल. गुडाकेश. ८९ ११९ गुड. गुडूची. गुडेरक. गीष्पतीष्टिकृत. ८१८ गुणवृक्ष. गुग्गुलु. ११४२ गुणित. ६६० गुणोत्कर्ष. १९८२ गुंडित ११२६ गुण्डिव. ११२६ गुत्तक. गुण. } } गुणग्राम. गुणल्यनिका. ८८३ ११५५ ४०२ ६८८ ४२५ ११११ ११४२ ७.९ ११५७ ४२५ ७२२ ७७६ ९२८ १४४१ १४१४ ६८२ ८७७ १४८३ १३७५ १४८३ १२९१ ११२६ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका गुदाङ्क गुदग्रह. W०, - गुल्म . ७४८ ११२० गुंद. गुंद्रा. ११९२ ११९३ । गुल्मिनी. १३४० गुल्य. गुंद्राल. १३८८ २०९ १०३३ १४९७ गुहा. १ N गुह्य. १४८३ गुरुक्रम. १३०४ ७३३ ९८५ गुरुदैवत. गुर्वी. गुर्विणी. गुरुपत्र. १४३० गुह्यक. ७७ गूढपथ. गूढपात्. ८५८ गूढपुरुष. गढमार्ग. ५३९ गथ. गन. १०१२ गूवाक. गृजन. गृध्र. ११५ | गृध्नु. ११५४ ११८७ १३३५ गुल्फ. Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० गृष्टि. ' गृह. गृहगोधिका. गृहगोलिका. गृहपति. गृहबलिभुज्. गृहमणि. गृहमृग गृहमेधिन्. गृहयालु. गृहस्थ. गृहा. गृहावग्रहणी. गृहिणी. गृहिन्. } गृहीतदिश्. गृहोलिका. गृह्य. गृह्यक. गेंदु क. अभिधानचिन्तामणौ गेय. १२६८ ९८९ गेह. ५१२ | गेहभू. १२९७ | गेहेनर्द्दिन् १२९७ | गेहेशूर. ७३४ गैरिक. १३३१ ६८७ गैरेय. १२७९ ८०८ ४४५ ८०८ ५१२ १००९ गो ३.५६ ६८९ } ५१२ गोकर्ण. ८०८ ८०७ गोकिराटिका. ८०५ गोकुल. १२९८ गोक्षुर. १३४३ गोग्रंथि. गोचर. | गोणी. २८० ९८९ ९८९ ४७७ ४७७ १०३६ १०४४ १०६२ १२६५ ९३६ ८७ ९९ २४१ १२५७ १९६ १२९३ १३३६ १२७३ ११५६ १२७३ १३८४ ६७९ Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका गोतमान्वय, । २३७ १०२७ ७२६ ८८९ गोत्र. ९७ गोपतिः । १०३ गोत्रा. १२६९ १०६३ १००९. १४२१ गोदंत. ६२५ १०.५९ १०८४ गोपरस. गोपानसी. गोपायित. गोपाल. गोपालिका. गोपुच्छ. ८८९ १२०८ गोपुर. गोदा. गोदारण. गोदावरी. गोदुह. गोधन, ८८९ ९८१ २१८ ३६० ८८८ १८५ १२७२ १२०८ १२९० ०८४ गोपेंद्र, गोप्य.. १२७३ । गोमत. गोमती. १२९७ गोमय. गोमयोत्था, ११७४ । गोमायु. १४१८. गोमिन. गोधा. गोधि. गोधूम, गोधेनुक. गोनस. गोनीय. गोनास. २२ ८११ गामुख. , १३४९ १३०६ । गोमेध. Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ সমিষানবিলাসী गोयुग. ११५५ १४२४ । गोस्तनी. ४०४ गोस्थान. ४०६ गोहिर. गोरस. ४०८ ११९९ गौतम. ८५० ३१ गोराटी. गोरुत. गोलक. गोला. गोलिका. गोलांगूल. गोवर्द्धनधर. १३३६ । ८८७ ५५० १०६० गौधार. १२९७ : गौधेय. १२९२ २१८ गौर. २१५ १२७२ गौराईक. १२५९ ९९९ १२९७ १२९७ १२९७ गौधेर. गोविंद. ८८९ गोविड. १३९४ ५०० ११९८ गोवृष. गौरी. गोशाला. गोशीर्ष. गोष्ठ. ९६४ गोष्ठीन. गोष्ठश्व. २०३ २४० ९६४ ६५३ ११३० ४२१ ४७७ ग्रंथन. ग्रंथि ८८९ ग्रंथिक. १२८६ । प्रस्त गोष्ठी. गोसंख्य. गोसहक्ष. Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका प्राह. १५२३ १५२३ १३५१ ५८६ प्रह. ग्रीवा. ग्रीम. २५ v . वयक ६५७ in - ग्लह. ४८६ so ९७ ग्लान, ग्लानि. ग्रहक. ग्रहण. ग्रहणीरुज. ग्रहपति. ग्रहपुष. ग्रहीत. ग्राम. ग्रामणी. ग्रामतक्ष. ग्रामता. ग्रामीण. ग्रामेयक. ४९९ ३१९ ४९९ १०५ ग्लास्नु. ४४५ ९६१ ग्लो १४३९ ९१८ १४२२ वट For m १०१९ ५०१ ५०१ २६६ ५०१ ग्राम्य. ग्राम्यधर्म. घटिका, घटीयंत्र. घटोमव, १२२३ १३७ १०९३ . १२२ १०८७ १०२७ ग्रावन्. । ग्रावन १०१६ ग्रास. ४२५ धुंटक. Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ अभिधानचिन्तामणी ३०५ घंटापथ. घंटाशब्द. घंटिका. ३९४ १३८ ५८६ ७९४ ९८७ । धर्म. १०४९ घसि.. घस्मर. २९२ । घत्र. घाटा. १४४७ घांटिक. १६४ घातं. घातुक. घातिक. १०३७ १०४७ ६२० घुर्टिक. १३५९ (३७ घार, घासं. ११९५ Ammmoc . . घुण.. १२०३ . घनगोलक. घनधात. वनरस. घनवात. धनवाहन, घनसार. घनाधन घनात्यय. धनाश्रय. बनोदधि. धनोपल. वर्धर. घुण्टक. १६४ घुसूण. .१५८ . १६३ कारि. १३५९ घूर्णन. १६६ पूर्णि.. २९६ घूर्णित. १३२४ १३२२ १५१९ १५१९ ४४२ Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३०३ | प्राणतर्पण. १३९० घृणा. ३६९ पृणि. ९९ चकित. ३६५ ० चकोर ० घृत. घृतचर. घतपुर, घृतलेखनी. वतेली. Morocc ० ७५५ घष्टि. घोटक. घोणप. घोणा. बोणिन्. चोर. . घोरवासिन्, बोल. १४११ १०४२ १३६ चक्र. ७४६ १२०७ १२८८ ७८७ १२३२ चक्रजीवक. ९१६ १३०० चक्रनामन्. १०६४ चक्रबांधव. - १२८८ चक्रभृत्. २१९ ३०३ चक्रमईक. १२९० चक्रमंडलिन्. १३०५ ४०८ चक्रवतिन् १०४९ चक्रवाक. १३३० १००२ १०३१ चक्रवाल. १.४०० १४११ चक्रांग. १३२५ २८७ चक्रावत. ...५८० चकिन. .. १३०४ घोष. ... घोषणा. घोषवती. प्राण. Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ चक्रीवत् चक्रेश्वरी. } चक्षण. चक्षुषू. चक्षुष्य. चक्षुष्या. संचरीक. पंचल. मंचला. चंचु. चंचुसूचिक. चंचू. चटक. 'चटका. चटकाशिरस. चटु. चटुल. चणक • चणकात्मन. अभिधानचिन्तामणौ १२५६ ४४ २३९ ९०७ चंड. १३१७ १२४१ १३१७ १३३१ १३३१ चंडता. चंडा. चंडातक. ५७५ ४४८ १०६२ १२१२ चंडाल. } १४५४ चंडिल. ११०५ चंडी. चतुःशाल. चतुः सम. चतुर. ९९२ ६३९ ९९८ ३४३ ३८४ चतुरंगबलाध्यक्ष ७२५ १३५३ ४२१ चतुर्गति. २६४ चतुर्दत १४५५ | चतुर्दशी. ११७१ ४५५ ३९२ १८६ १३८५ ३१८ ४५. ६७४ ८९७ ९३३ चतुर्भद्र. ८५३ | चतुर्भुज. ९२२ २०३ १७७ १९१ १३८२ २१६ Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९९५ ७८२ शब्दानुक्रमणिका चतुर्मुख. २१२ । चंद्रशाला. चतुर्मुखांगता. ६२ चंद्रहास. .. चतुर्वर्ग. १३८२ चंद्रातप. चतुर्हायणी. १०७२ चंद्रिका. . चतुष्क. चंद्रगोलिका. चतुष्पथ. चतस्त्रिंशज्जातकज्ञ. २३३ चंद्रोपल. १०७ १०६ चंद्रोदय, १०६७ ४७६ १४५५ चत्वर चपल. १००४ चंदन. चपला. चपेट. १०५ ६४३ चमर, १२९४ चंद्रक. चन्द्रका. चंद्रकांत. चंद्रप्रम. १३२० । चपसी. १०८५. १०७. चमू. चमूरू. १०४१ चपक, चंपा. चंपाधिप. १०४ चंपोपलक्षित. १२९४ चंद्रभर्मन. . चंद्रभागा. चंद्रमणि. चंद्रमस्. ९७६ ७११ ..९६७ Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ অমিখান্বিামী चय, चर. ६३० चरण. चरणग्रंथि. चरणायुध. चरम. चरमतीर्थकृत. चरमाद्रि. चराचर. चरि, चरित. ९६० चर्चा ६३६ १४११ १३७३ चर्चिका. १४५४ चर्चिक्य. चर्मटी. २७३ चर्मकृत्. ६१५ चर्मचटका. १३३६ १३२४ । चर्मदंड. १२५२ १४५९ चर्मन्. । १०२७ चर्मप्रभेदिका. १५५४ चर्मप्रसेविका. ___९०८ चर्ममुंडा.. २०६ चा . १५०१ चर्वण. ४२४ ८४३ वर्षणा. १२१४ १४५४ चर्षणी. १२८ १०५.० १४५५ चलचंचु. १३३९ २७३ नरन. १९३ । चलनक. १२१६ चरित्र. चरिष्ण. चरी. चरु. चर्चरी. चर्चम. Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चलनी. चला, 'चलाचल. মুত্তালিকা ६७१। चामीकरपंकन. ११०४ चामुंडा. १ २०६ चलित. चकु. चषक. ३२९ ९८६ चषाल. २५ चाक्रिक. १४८१ | चार. ५९८ चारण. १.२४ चारपथ. चारमट. चारित्र. ९१७ चारु. चार्वाक. चालनी. चाष, चिकित्सक. १३२९ । चिकित्सा. चिकिल. १४४४ १३२९ ४७२ चाटकैर. चाटु. चाणूर. चांडालिका. चातक, चातुर्वर्ण्य. चांद्र. चांद्रमस. चाप. चापल. चामर. चामीकर. चिकुर, 9 Om . ७७५ C १०९ चिक्कण. चिक्कस. ७१७ चित् १०४४ चिता. ३०९ . ३७५ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.०० चिति. चित्त. चित्तप्रसन्नता. चित्तविप्लव. चित्तोन्नति, चित्या. चित्र. 1 चित्रक, चित्रकाय. चित्रकृत् चित्रकृत्त्वम्. चित्रगुप्त. चित्रपुंख. अभिधानचिन्तामणौ ३७५ | चित्रशिखंडिन्. १२४ चित्रा. १३३९ ११२ ३१५ चिद्रूप. ३४५ ३२० चिंता. ३१७ | चिपिट ३७५ चिबुक. १३९८ चिरक्रिय. . ३०३ ९२२ ६५३ १२८५ १२८५ ९२१ चिररात्राय. चिरस्य. चिरात्. चिराय. चिरिंटी. चिरेण. ९६ चिर्मिटी. ७० ५५ ७७८ १०९८ चिरजीविन्. चिरंतन. चिमेहिन्. चिरम्. चित्रभानु. .} चित्रल चित्रवल्लिक. चित्रशाला. ९९९ चित्रशिखंडिन, ११८ चिन्ह. १३९८ ११४५ चिलिचिम. चिह्न } ३२० ४०१ १८२ ३५३. १३२२ १४४८ १२५६ १९३२ १५३२ १५३२ १५३२. १५३२ ५१२ १५३३ ११८९ १३४६ ४६१ १३३४ १०६ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका चीन. १२९४ । चर्णकंतल चलिका. । २४५ १२२५. चेट. चीनक. चीनपिष्ट, चीर. चीरिलि. चीरी. चीरुका. चीवर. चेटी, ३३४. १३४८ १२१५ १२१५ चत. चेतन. orar w. चेतना. ३०८ चुक, चेतस्. चुंडी. ४१६ ४१७ १०९३ ५३३ ५९८ चेदि. चुंदी. चेदिनगरी. चुलुक. ac ACC चेल. चुल्ल. १४४३: १०१८ ०३ चैत्य. चैत्यद्रुम. चूचुक. ६२ चूडा. चत्र. १९० चूडामणि. चत. चतक. ११३३ चैत्ररथ. चैत्रिका १०९३ | चैद्य. चूर्ण. ९७० चोक्ष, चू... ६३७ । चोच, ११२१ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी बोटी. ३०४ ३८१ | छदन. छदिस. १४७७ ११२३ १०१० ३७८ १३८३ १.४६४ चोद्य. चोर. चोल. चौडपुष्प. चौरिका. चौर्य, चौलुक्य. च्युत. च्युति. ११४७ CWM ३८३ ७१२ १४९० r0 ४० १४७६ ७४१ च्युतेषु. ४६९ १२७५ १२७३ १२७५ ३७८ wa ११२१ "छग. छगण. छगल. उछुन्दरी. छत्र. छत्रत्रय. छत्रधार. a ० ७१७ छवि. - w oC ४८ १२७५ m ७६४ १२१८ लागण. ११२३ । छागरथ. १०९७ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका जगत. । १४५४ १२७५ ४४९ ६३० छागिका. छात. छादनी. छांदस. छायाकर. छायाभृत्. छायासुत. ८१७ १३६५ १३६५. ९३७. २१२ ७६४ १५१२ छाया. जगत्कर्त. जगचक्षुष्. जगत्प्रभु. जगत्प्राण. जगत्साक्षिन. जगन्नाथ. जगर. जगल. जग्धि . ११०७. ९८ २१८ १४८९ छित. छिद्र. छिद्रित. छिन्न. 9 vw to or v our १४८६ १४८९ ७८४, १३.४३ छुरी.. जघने फला. जवन्य. छेक.. १४९९ ५५२ ८९४ डेका. छेद.. ५१. जवन्यज. ३७२ । जङ्गम.. १४९० जंगल. छेदित. . ज. ९५३ जंघा.. Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानबिन्तामणी अवाकरिक. बात्राण. जयाल, जटा. जटाजूट. नटी. जटर. जड. ४९४ } जननी. ५५७ जनपद ९४७ मनप्रवाद. २७० जनमनोहारिन्. १३९० ११२० जनयित. ५५६ २०० जनयित्री. ५५८ ११३१ जनश्रुति. २५९ १०४ २१४ जनाश्रय. १००३ १३८५ १३६७ ६१८ ५१३ जनार्दन. ६५२ अनि जडुछ. जतु. ‘जतुक. जनुम ४२२ १३३६ १३६७ Wm Gc, avuru जतुका. जंतु. जत्रु. जंतुफल. जन्मन् जन. ५०१ ११९२ ११३२ १३६७ ५१७ जन्य. ७९६ जनका. जनङ्गम, जनता. मन्यु. १४२२ जा. ५०३ । नश. जनन, १३६७ अंपती. Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल. जंबालिनी. जंबीर. जंबुक जंबूस्वामिन्. जंभ. जंगल. जय. जयदत्त. जयवाहिनी. जयंत. जयंती. जया. "जय्य. 'जरठ. } शब्दानुक्रमणिका १०१० जरत. १०८० ११४९ जग्दुव. जरन्त. १२८९ ३३ ११४९ १७५ १८३ ११४९ ११७२ ६९४ १७५ ७९७ १७५ १७५ १७५ ( जरा. जराभीरु. जरायु. जरायुज. जरिन. जर्त्तिल, जल. जलकांतार. जलकुक्कुभ. जलन. जलजन्मन्. जलद. जलघर. जटधारा. जलधि. जलधिगा. १७६ ४० २०५ ७९३ १३८७ | जलनर. } 34 } ܕ ३३९ १४४९ १२५८ १२८२ ३४० २२७ ५४० १३५६ ३४० ११७९ १०६९ ११५८ १८८ १३३८ ११६२ ११६२ १६४ १६४ १०९६ १०७४ १०८० १३५५ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ अमिधामचिन्तामणी १२०० जलनिधि. १०७४ । जलुका. जलनीलिका, १९६७ जलोच्छास. जलपति. जलबालक. १०२९ जलौका. जरमानोर. १३५० जल्पाक. | जलौकस्. १२०३ १२०४ ३४७ ४९५ जलमुच्. १२३४ . . जलराशि. जलवाह. जलव्याल, जलरुह. जलरूह. जलरंकु. जलरंज. जलवालिका. जलशय. जलशूक. जत्रसूकर. जलाणुक. जलार्दा जलालोका. जलाशय. जलसर्पिणी. १०७४ जवन. १३०५ जवनी. जविन्.. १११२ जन्हु.. १३३२ जागर. १३३२ जागरण. ११.५ जागरा जागरिन्, ११६७ जागरूक. जागा. १३४७ मागुड १२०४ जागृवि. नाङ्गलिक. १२०४ / जांधिक. c P cocococococc ....6 0.c occc occoom A. N ___०० . c. १३४९ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ५१९ जात जातरूप. मातवेदस्. जातापत्या. जाति. ३१२ । जाया. ३०५ जायाजीव. ३५२ जायापती. जायु. १०४४ जार. १०९९ जारज. ५३९ जाल. १५१५ ११४७ मालक. ६४३ जालकारक १९३३ जालकिनी. १२५८ जालंधर १४३९ जालप्राया. ७०३ १४ जालिक. ५१९ ५५० ९२६ १४१२ १०१२ ११२५ १२१० १२७७ जातिकोश. जातिफल. जात. जातोक्षः जात्य. जानकी. ७६९ ९२८ ० जानु. जापक. जामदश्य. जामात. जामि. ३७७ ७६९ - oc c० ९९९ ८४८ जालिका. : ५.१८ जालिनी. ५५३ जारम. जावाल. १०४५ । माहक. जामेय, ३५३ ८८९ १३०२ जांबूनद. Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মিথালিনালী १०८१ १७३ जाहवी. जिगीष. जिवत्मा. जिष्णु. २१४ जिवत्सु. ३२१ ३९३ ३९२ ७२९ ७९३ ८०५ जिह्म. निघांसु. नित. जितकामिन. जितनेमि. ८०६ ८१६ ३६ जितशत्रु. निहा ३६ बिहानक १४५७ जिह्मग. निहु. १९५४ ५८५ जीन. जीमूत. जीमूतवाहिन. ११०४ जीरक. ४२२ १४४८ जीर्ण. १११४ जितारि. जिताहव. जितेन्द्रिय. ० ८०६ जित्या. जिन्वर ८९० ० जिन. २३२ जिनसमन् ९९४ २४ जीव. १३६७ मिनवर. जिनेश्वर. ३ १३६६ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २७१ जीवनीव. जीवत्तोका. जीवत्पति. जुगुप्मन. जुगुप्सा. ५३० ५३० ७२ जीवथ. जीवन. ८६० जूर्णाह्वय. जमण. ८२८ ११७८ १५०६ १०६९ ३९५ जमा. १५०१ ७९३ १२४ नेमन. जीवनक. जीवनी. जीवनीय. जीवनीया. जीवनौषध. जीवतो. जीववृत्ति. जेय. जीवसु. ४७९ ११७८ १५२८ ११७ ३४१ भीवा नैवातृक. ११८५ जोनाला. जोषम्. ७७६ ज्ञ. ११८५ ३६७ ज्ञात. ज्ञातनंदन. ज्ञाताधर्मकथा. १३१७ ज्ञाति. १३६९ । ज्ञान, ज्ञप्ति. - - - -- ९९० जीवात. जीवान्तक. जीविका. नीवित. जीवितकाल. २४३ ५६१ ३१० Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानाचिन्तामणौ ज्ञानप्रवाद. ज्ञानिन्. २४७ | ज्वाला. ४८२ ज्वालाजिह. ११०३ १०९९ न्या ॥ ७७६ , १५२३ ज्यानि. न्यायस. झंझा.. झटिति. झंपा. ११०७ १९३० १४७० 00. G o ज्येष्ठ. १३४३ १११० ११३९ १२१६ १२१६ २१.० ज्येष्ठश्वश्रू. ६५४. ज्येष्ठा ५९३ । झाबुक.. ज्येष्ठाश्रमिन, ८०८ झिलिका. ज्योतिरिंगण. १२२३ झिल्लीका. ज्योतिष. ज्योतिषिक... ४८२ टक्कनामन्. ज्योतिष्क. ९२ ज्योतिस. ज्योत्स्ना. ज्योत्स्नाप्रिय, १३३९ ज्योत्स्नी. टीका. टंक.. ९५९ ९१९ टिट्टिभ. १३३० २५६ ज्वलन. १०९९ | डमर. Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उयन. মানুসিদ্ধ ७५३ । तडित्वत्. १३१८ ९५६ वंडुलीय. तंडुलेर. ११८४ ११८४ 9 तत. डिंगर. डिंडोर. डिम. डिम्ब डिंभ, v NA.. १४३० १५.३७ . ततस्. तुति.. १६२ ढका. दोकन. २९२ तत्काल. ९.३ तत्कालधी. तत्त्व . तत्वज्ञान, तत्त्वनिष्ठता. तत्पर. तत्रभवान् तत्मद. तथागत. १०७८ तथ्य. १०८० १०९४ । तद्दत. ११.४ . तदात्व. ) ९. तद्धन. तक्र. 'तकमार. तक्षक तक्षणी. तक्षन्. तट. तटिनी. 'तडाग. तडित. तडित्कुमार. ३८४ ३३६ २३२ १९३७ १४५८ १६२ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधामचिन्तामणौ तहल. तनय, ७८० । तंतुसंतत. ५४२ १४४७ ११९ तंत्र. ५६३ १४२७ १७६ तनु. २०११ तंत्रक. तनुत्र. तनुवात. १३५९ तंत्रवाय. तंत्रिका. तनू, १२१० १०९१ ९२८ तनूकृत. तनूनपाद. तनूरुह. १४८६ १०९७ तंत्रिन्. तन्द्रा . ३१३ तंतु. तपःक्लेशसह. तप. तपनात्मजा. तपन. तपनी. तपनीय, १६७ १०८४ १३१७ ९१३ १३५१ १३५१ १३५१ ११८० १९६५ तंतुण. १०४४ तंतुनाग. तंतुम . तन्तुल. तंतुवाय. तंतुशाला. ८२ ९९९ तपस्तक्ष. १७३ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपस्य. तपस्या. तपात्यय. शब्दानुक्रमणिका ११३ तरंगिणी. ८१ तगणि. तरणी. १०७९ तत १४९३ तरंड. तमःप्रमा. तमङ्गक १३० १०११ तरल. ६५० १४५५ तमम् तरललोचना. तरला. तरलित. तरवारि. १४८० ccc १४२ ११४६ ४९४ ६२२ तरस. ७२६ तरी. तमस्विनी. तमा. तमाल. तमालपत्र. तमालिनी. तमित्र. तमिस्त्रा. तमी. तमोन तम्पा . तंबा. ८७७ १११४ १४३ तरुण ३३९ तरुणी ५११ ३२३ १०९८ तक. .१२६६ । तर्कविद्या. तरक्षु. १२८१ | तर्कुक. १०७५ । तर्जनी. ९११ ३८८ ५९२ तरंग. Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी १४८॥ २२६ ८२५ ६५६ २८० ५५६ ४८८ ७७६ ९५८ | तविषी. १२६० । तष्ट. तस्कर. १५०२ । ता. ताडक. ८२७ ताडपत्र, तांडव. तात. ११३६ ताततुल्य.. तात्रिक. १९६ तारन. ताप. तापसद्रुम. तापिच्छ. १२५१ तापी. ताप्य. १४२६ तामरम. तामलित. तामलिप्ती. तांबूल करंक. १४४० तांबूलवल्ली. | तांबूली. तलहृदय. तटसाक तलिका. १२५१ १०८४ १०५५ २१६१ ९७९ तलिन. तालम. तलनी. तर. तल्लम. तविष. Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ হামলিঙ্কা १०३९ । तायशैल. १०५३ १३२५ ताम्र. ताम्रकुट्टक. ताम्रचूड. ताम्रता. ताम्रशार. ताम्राक्ष. तायिक. २९२ ५९६ १३२१ ९५८ तालक. १००५ १३९५ २२४ ६८७ तार. तालकाम. ताललक्ष्मन्, तालवृंत. तालिका. १०४३ १४०२ ९२ तारक. १००६ ताली. तालु. १३४९ १०७६ .. ८७ १०५५ तारका. तारकारि. २०९ तालुनित १०७ तालर. तारा. ताविष. तारारि. ताविषी, तारुण्य, ३३९ । तिक्त. तिक्त. ताकिक. (१३ । तिग्म. ताय. } ताWध्वन. .. २१४ । तितिक्षा. १३८९ ११९० १३८५ १.०१८ ३९१ तितउ. Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४३. तित्तिम. ६५३ १४७ ११४२ ११६ अभिधामचिन्तामणी तितिक्षु. ३९१ । १२०९ तिलक तित्तिरि. १३४१ तिथि. तिथिप्रणी. तिलकालक. तिनिश. तिलपर्णिका. तितिडी. तिलपिंज, तितिडीक, तिलपेज. ४१७ तिलिस. तिमि. १३४४ तिल्य. तिमिङ्गिलगिल. १३४८ तिल्व तिमित. १४९२ तिष्य. तिमिर. तिरस्. १९३४ तीक्ष्ण, तिरस्करिणी. ६८१ तिरस्क्रिया. ४४१ तीक्ष्णगंधक. तिरोधान. १४७८ तीक्ष्णशूक. ११८० ११८० ११५९ १३८५ १०३८ ११३४ तीर. तिरोहित. । ८०१ तीरी १०७८ ७८० तीर्थकर. तीर्थकर, १२१६ / तीर्थवाक्. ००० Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका तुमुल. ७९९. १४०४ तीत्र. । तीवेदना. तुक. तुकाक्षीरी. तुंग. ११५५. १२३२ ७.१ १२३२. १२३२ तुरंग. १३८५ । १५.५ १३५८ तुंबरू. ५४३ तुंची. ११५४ १४२८ तुगिन्, १४२६ १४४६ तुरंगम. ५७२ तुरंगवदन, १९८५ तुराषाह. तुरीयक. ४५८ १०५२ १०५२ तुच्छ. 0/ o com १७२ तुंड, तुडिकरीका. तुहिम तुंडिल. तुत्थ. तुत्यांनन. ac ४५८ तुरुष्क. ९५९. ८६ तुला. तुंद. तंदपिका. तुंदपरिमृज. ६०६ तुलाकोटि. तुल्य. तुवर. ४५० तुदि. १४६३. १६५. १४६१ १३८९ ११७३ १०५६. ११७५. ११८२. तुवरक. तुंदिक. ४५० ४५० तुवरी. तुन्दिल. तुनवाय. ९१० । तुष, Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ अभिधानचिन्तामणौ तुषानल, १२०१ तुषार, तुषोदक. तुहिन, ११०१ तृणाटवी. १०७२, तृणादि. १३८५ तृणौकस. तृतीयाकृतम्. १०७२ तृतीयाप्रकृति. ४१५ ७८१ तृणिन्. तूणीर. ७७१ तृप्ति. तृष. ४२६ ४२६ ४३० तूर्ण. २८६ १४७० तृषा. तूर्णि. ६२२ तृषित. ३९४ ३९३ ४२९ तूर्य तृष्णक. तूलक. ३९३ ११३९ ९२१ ४३८ ४३८ १५२८ तूलिका. तूष्णींशील. तष्णीक. तष्णीकाम्. तुष्णीम. ४३० ३९३ तृष्णा. । तृष्णाक्षय. तेजस. १.१ तेनिम. ११९५ तेमन. तैनमावर्तनी. ११५३ तेत्तर १९३६ तैल. ३९९ ९०८ तृणध्वज.. तृणरान. Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २४९ तैलपर्णिक. तैलपायिका. तैलाटी. तैलिन् ६४२ । त्रयी. १३३७ त्रयीतनु. १२१५ त्रयीमुख. ९१७ त्रम. त्रसयोनि. त्रसर. १५२ त्राण. तैलिन. तैविशाला. ८११ १४५४ १३९७ ९१३ १४२७ १५२३ १४९७ तैष. तोक. तोक्म. त्रात. ३२१ तोत्र, त्राम. त्राहदायिन्. त्रिक. ४७९ ९८६ तोदन. तोमर. तोय. त्रिकुद. १०१९ १००५ तोरण. तौर्यत्रिक. त्रिकटु १०३० ४२२ तौलिकिक. : ९२१ त्यक्त. १४७५ त्याग ३८६ त्रपा. त्रिकंटक. त्रिकाय. त्रिकालविद् । त्रिकूट. त्रिगत. त्रिगुणाकृत. २३४ २४ २३० १०३० पु. त्रपुसी.. . ११८९ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० अभिधान चिन्तामणी १८९ त्रिश. १४० त्रिमर ३९८ १०८१ त्रिदश. ८८ त्रिशला. त्रिदशदोर्धिका. १०८१ । त्रिशास्. त्रिदिन. त्रिशीर्षक. त्रिसंध्य. त्रिपत्रक. ११.६ त्रिस्थ. त्रिसीत्य त्रिपथगा. १०८१ त्रिस्रोतसू. त्रिपदी. १२३० विहल्य. त्रिपुरी. त्रिहायणी त्रिपृष्ठ त्रुट. त्रिफला. ११४६ त्रिमुकुट. १०३० त्रैपुर. त्रिमुख. त्रिगामा, यंका. १२३९ त्रिरेग्व. व्यूषण, त्रिरेखा. त्रि; १३८२ त्रिवत्रीक. त्वक्षीरिन् त्रिविष्टप. त्वपुष्प. त्रिशंकुन. ७०१ । त्रिशंकुयाजिन्. त्रता. १२७२ १४२७ ८२६ ९५६ १३१७ प्रोटि. त्रियूह. १२०५ ४२२ १९८४ ११५४ ७ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुकमणिका सचिसार. त्वम्. स्वरा. स्वरि. त्वरित. दंष्ट्रिन्. दक स्पष्ट. ofar स्वाष्ट्री. विष्. ११५३ । दशिन् १४६८ दंष्ट्रा . ३०२ दंष्ट्राशीस्. १३१५ ३२२ दष्टिका ५८३ ४९४ १२८८ १०६९ १४८६ दकरावणिक. ९१७ दक्ष १८२ दक्षना. दक्षनापति. ८२६ दक्षिण. १४६६ दक्षिणत्व. दक्षिणस्थ. १५२ दक्षिणा. दक्षिणाचल. १.२९ दक्षिणायन. दक्षिणाई. १२१५ दक्षिणाशापति. १२८२ । दक्षिणीय. ७६६ । दक्षिणेमन्. . विषि. ० सरु, . ७६० ५८१ दंश. दंशमीरुक. दंशित. Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ अभिधानचिन्तामणौ ४४६ १४८६ दधिसार. दनुज दक्षिण्य. दग्ध. दग्धकाक. दग्धिका. दन. १३२३ । दंत. ३९६ ६०१ ८८७ २३८ १२२४ ५८४ १०११ १०३४ १२२८ दंड, : दंडधर, दंडनायक. दंडपारुष्य. ७४६ ७८५ १८४ ७२५ ७३९ दंतभाग. दतवस्त्र. दतशठ. दंतावल. दंतिन्. दंतुर. ददशूक. दभ्र. १३८८ १२१७ १२१७. ४५७ १३०३ १४२६ दंडभृत. दंवाहत. दंडित. दंडिन् . mc.co6 oc दम. दमुनस्. १.९७. दत्त. दंपती. दत्ततीर्थकृत. दम. दंभचो. दंभोलि. दम्य. दधि. दधिफल. दधिवारि. १८० Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका م दयाकूर्च. दयालु. दयिता. दर्शन. । ५७९ س ur م m ४६९ ५७७ दर्शयामिनी. १४३ ३०१ दर्शित. १४७८ ११२३ १४३४ ३५८ दटरनता. ११२४ १०३३ । दलि. ९७० १३५४ दलिक. ११२२ १४.९ दलित. ११२८ दल्मिन्. १७२ ११०१ ११११ दविष्ट. १४९२ दवीयस. १४९२ ११९२ दशकंधर. १०२१ दशन. ५८४ दशन. ८७३ १३१५ दशपारमिताधर, २३३ दशबल. २३४ दशभूमिग. २३३ ८२३ । दशमिन्. ३४० १० दुर्दुरोगिन. दर्प. दर्पक. दर्पण. व. २२७ ६८४ दी. दीकर, । दर्श. १५० २४ Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ अभिधान चिन्तामणौ दशश्वेतवाजिन्. दशा. १०४ । दातृ. १३७७ दात्यूह. ५६५ दात्र. ६६७ दाधिक. ।८७ दान. ३८५ १३३२ ८९२ ४१० १२२३ ३८६ ७२६ दशाकर्ष. दशाचित. दशाह. दशेधन. दसेरक. दस्यु. ३५१ ७२ ३८५ ८११ दस्त्र. १८२ दहन. दानवारि. ९५७ दानशील. दानान्तराय. ७२९ दानशौंड. दांत. १०९९ दापित. ११०३ दामंचन, १०६७ दामनी. दामन. १३३५ दामलिप्त. १३७७ दामोदर. } ५८३ । दार. दारक. ३७७ दारकर्मन्. दहनकेतन. दहनोपल दाक्षायणी. दाक्षाय्य. दाक्षिण्य. दाक्षेय. दाढा. दाढिका. दांडाजिनिक. १२५१ १२७४ १२७४ ५४२ ५१८ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दारद. दारित. दारु. दारुण. दारुहस्तक. दार्याघाट. दालव. दाव. } दाश. दाशरथि. } दाशार्ह. दाशेयी. दाशेर. दास. दासी. दासेय. दासेर. दिक्करी. दिक्कुमार. दिग्गज. शब्दानुक्रमणिका ११९६ १४८८ ११२२ ३०३ १०२१ १३२८ ११९९ ११११ ११०१ ९२९ ६९७ ७०३ १२५४ ८४८ २१४ ३६० ५३४ १४८ दिग्व. } दिग्वासस्. दित. दितिज, ९.० १७० दिधिषू. दिन. दिनकर. दिनावसान. दिन्दु दिव. दिवस. दिवसकर. दिवस्पृथिवी. दिवा. दिवाकर. दिवाकीर्त्ति. } ५४८ दिवान्ध. ५११ दिवामध्य. दिवू. } ९२५ १४८३ ७७९ १९८ १४८९ २३८ ५२५ १३८ ९७ १४० २२३ १३८ १३८ ९७ ९३९ १५३१ ९७ ९२३ ९३३ १३२४ १३९ ८७ १६३ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ अभिधानचिन्तामणौ ३२४ ११८७ दिश. . दिश्य. दिष्ट. दिष्टांत. दिष्टया. दीक्षणीयेष्टि. दीक्षा. दीक्षित. दीदिवि. दीधिति, ३५३ १६६ । दीर्घनिद्रा. दीर्घपत्रक. दीपाद. १३७९ दीर्घपृष्ठ. ३२४ दीर्घर्जु. १५२८ | दीर्घसूत्र. दीर्घायुस्. ८२३ दीर्घिका. दुःख. ३९५ दुकूल. दुगूल, दुग्ध. १३४२ दुन्दुभ. दुंदुभि. दुदुभिनाद. ५.९ दुरित. १४२८ दुरितारि. १०९२ १३७० ६६९ दीप. दीपक. दीपन. HA100M ४०४ १३०५ २९३ दोति. दुरध्व. ९८४ १३८० दीर्व. 30 ४८६ दीजिह्व. दीर्वकोशी. दीर्घग्रीव. दीर्घदर्शिन्. १२०६ दुरोदर. दुर्ग. ७१४ १२५५ ३४४ । दुर्गत. ९७३ ३५८ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका दुगध दुर्गलंघन, दुर्गसंचर. १३५९ । दुष्कृत. ९४३ । दुष्टगज. १३९१ । १२५४ दुःषमा. १५१७ दुःषमसुषमा. दुस्थ. ३८० दुस्फोट. १६५ दुहित. १३८० १२२२ १५४१ १३१ १३० दुर्गा. २ दुर्जन. दुर्दिन. ३५८ ७८७ ७३४ दुर्नामन्. । | दूती. ४४९ दुर्बल. दुर्भिक्ष. दुर्मनस्. दुर्मुख. दुर्वर्णक. ४३५ १३३५ ७७३ १०४३ दूरदृश. दूरवेधिन्. दूरापातिन्. दूर्वा.. दूषिका. __७७३ दुवाच ११९२ दुर्वासस्. दुर्विध. (५० . ३५८ दृषित, दूषीका. ७२९ . १३५३ ६३२ १३१४ दुली. दुऋयवन. दुश्वर्मन दृषी विष. दृष्य । ४५४ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ अभिधानचिन्तामणौ २१८ दृष्या . दूस. हक्वर्ण. इग्विष. v० ० १०९४ ११९१ दृढमुष्टि. दृढरथ. दृढसंधि, २३७ दृति . १२३२ । देवकीसूनु. १२७८ । देवकुसुम. १३०३ देवखात. १३१२ देवगायन. १५०५ देवच्छंद. १३८७ देवजग्ध. १४४७ देवता. ३६८ देवताप्रणिधान. देवदत्ताप्रज. १४७२ देवद्यच. १०२५ देवघान्य. ५७५ देवन. १०३५ ३०२ ५११ । देवनंदिन. ३०९ । देवपति. ५७५ । देवप्रश्न. २४५ | देवब्रह्मन् ३३६ / देवभूय. ३३३ । देवमातृक. देवयज्ञ. ८८ | देवर. दृश. दृषद्. दृष्ट. दृष्टरजस. देवन, ५५६ ५५३ १७६ १७३ २६३ ८१९ दृष्टि. दृष्टिवाद. (२१ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवल. देववर्द्धकि. देवश्रुत. देवसृष्टा. देवाजीव. देवाधिदेव. देवानांप्रिय. देवायुध. देवार्थ. देवी. } देवीकोट. . देवृ. देश. देशक. देशरूप. देशिक. देह. देहधारक. देहभृत्. देहली. दैत्यगुरु. शब्दानुक्रमणिका ९२४ | दैत्यदेव. दैत्यारि १८२ १२ दैन्य. ९०३ दैर्घ्य. ९२४ दैव. २५ दैवज्ञ. ३५३ १७९ दैवत. ५० ४० ३३४ ९७७ दोर्मूल. ५५३ दोला. ९४७ दोष. दोषज्ञ ४८८ ७४२ ४९३ ५६३ } दैवपर. दोः सहस्रभृत्. दोषा. ६२६ १६६६ दोषैः दृश्. १००९ | दोस्. .१२० दोहद. } } १२९ ११०७ २१४ ३१९ १४३१ १३७९ ४८२ ८८ १५९ ८४० ३८३ ७०२ १८९ ७५८ १४८१ १३७९ ३४१ ४७२ १४३ १५३३ १८० ९८९ ५४१. Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी दोहदलक्षण. दोहदान्विता. दोहृद. ५४० । द्रप्स. ५३९ | द्रव. ५४१ ७२१ द्रविण. १३६३ द्रव्य. दौवारिक. दौलेय. दौष्यति. द्रह. ५५५ ८०२ . १९२ १९२ .. १०९१ १५३० ११५५ .८५४ १११४ ५४४ ९३८ दौहित्र, द्यावाक्षमा. द्यावापृथिवी. द्यावाभूमी. द्राक. द्राक्षा. द्रामिल. ९३८ द्युति. ७७५ धुपति. c ४८५ ४८५ चूत. चतकारक द्युतकृत. यो द्योतन. द्रग. १४८७ २९२ १४७० १११४ । ९७७ द्रम. द्रुमानति. द्रुमामय. द्रुमोत्पल. ६८५ १९४५ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका द्रुवय. द्रुहिण. द्रोण. १३७५ १००४ . ९८० ७२१ द्रोणकाक. द्रोणदुग्धा. द्रोणदुघा. ९८० ७२१ द्वार द्रोणी. द्रोह. द्रौणिका. द्रौपदी. द्विक. ८३ द्वापर. २११ द्वारका. १३.२३ द्वारपालक. १२६९ द्वारयन्त्र. १२६९ द्वारवती. ८७७ द्वारस्थ, १०३४ १५१५ ९६९ ७१० द्विककुद्. ५३८ ७९७ १४२४ १३३० १४२३ / द्विजपति. ६०१ २०९ द्विजब्रुव. २३४ द्विजाति. २४५ १४२३ १३२२ १२५४ १३१६ ८१२ द्वंद्व. द्वंद्वचर. ५८३ ८०७ द्वय. द्वयत. १०४ द्विजन्मन्. <१२ ८५५ द्वादशाक्ष. ८१२ द्विजिह्व. द्वादशांगी द्वादशात्मन्. द्वादशार्चिस्. . ११८ द्वितय. १३०३ १४२२ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ अमिधानचिन्तामणौ ७२९ द्वितीया. द्विदत. द्विधागति. द्विनग्नक. ५१३ / द्वेषिन्. १२६३ द्वेष्य. १३५२ । द्वैगुणिक. ८.. द्विप. १२१७ ९८६ ७४५ द्विपथ. द्विपाद्य. द्विपृष्ठ, द्वैपायन. द्वैमातुर ०. A ६९५ ५४६ १०३९ द्विरद. १२६३ द्विरेफ. द्विविद. १२१२ २२० द्विषत. ७२९ द्विष. more १९२ १२७३ ७०८ १०९७ धनद. ७२९ द्विसहस्राक्ष. १३०७ द्विहल्य. द्विहायनी. १२७२ द्वीप. द्वीपकुमार. द्वीपवती.. १०८० द्वीपिन्, १२८५ ७३ १०७८ - धनिन्. धनिष्ठा. धनुर्धत. धनुस. धनेश्वर. ३५७ ४७७ ११४ ७७१ ७७५ १९० Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धन्य. धन्या. धन्याक. धन्वन्- } धमन. धमनि धमनी. धम्मिल्ल. धर. धरणप्रिया. धरणि. धरणिधर. धरणीसुता. धरा. धरित्री. धर्म. धर्मक्षेत्र. धर्मचक्र, } } शब्दानुक्रमणिका ४८९ धर्मचिंतन. ४१९ धर्मधातु. धर्मध्वजिन्. ४१९ ७७५ धर्मपुत्र. ९४० धर्मराज. ११९३ १८६ ६३१ ५७० २६ १०२७ ४५ ९३५ २१७ धर्तीपुत्र. धर्मोपदेशक. } धर्मशात्र. } २५३: २५१ धर्महिता. धर्माधिकरणिन् ७२९. ७२४ धर्माध्यक्ष. धर्मार्थप्रतिबद्धता ६९ ३२८ ७०३ धत्र. ९३५ धवल.. ९३५ घवित्र. १३७६ घाटि १३७९ २८ ९५० ६ १ १३२ धातकी. धातु. वातुकासीसम् धातुघ्न १३८१ २३२ ८५६ ७०७ १८४ २३५. २५१ ७७. ५१७ १३९३ ६८७ ८०० ११५० १०३६. १०५६ ४१६. Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * धातुपुष्पिका. धातुशेखर. धातृ. धात्री. घाना. धानुष्क. धान्य. धान्यक. धान्याक. धान्याम्ल. घामन् } घाय्या. धारण. धारणा. धारा. अभिधानचिन्तामणौ ११५० । धाराधर. १०५६ धारिका. २१२ धारिणी. १९४१ | वार्त्तराष्ट्र. ५५८ धार्मपत्तन. ९३५ ४०१ धार्मिक, धिक्कत. ७७ १ विक्किया. ११६८ विषण. ११८३ विपणा. ४१९ ४१९ ४१५ ९९ ९९२ ८२७ ८४ ७४४ १०८७ ७५५ १२४६ धिष्ण्य. धी घीति. धीर. धीरत्व. वीरस्कंध, धीवर. धीलख. धुत. } } १६४ १३७ ४५ १३२६ ४ २० ७२४ ४४० २७६ ११८ ܢܪ १०८ १२० ९९१ ३०८ ३९४ ६४५ ३४१ ५०९ १२८२ ९२९. ७१९ १४८० Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका १३५ चुनी. १०८० ४८५. १०३८ १२६३ धुन्धुमार. धुरंधर. धुरीण. धुर्. धुर्य. धुर्वी. 100 ९१७ १३९३ १३११ ३०८ ४३२ धूप, १२६२ १२६२ धूर्वह. ७१७ १२६२ ७५७ १४८१ धृतराष्ट्र, धृति. ६४९ १४९३ वृष्णज. १४९३ ११०३ १०९८ घेनुक. १३६ . धेनुका. धेनुष्या. १३९८ धेनुक. १८५ । धवत. १३३३ a घडणु. धेनु. धूायित. धूपित. धूम. घूमध्वज. वूमप्रमा. धूमयोनि. धूमल. धूमोर्णा. धूम्याट, धूम्र. नटि. ४३२ १२६७ २१९ १२१८ १२७० १४१८ १४०१ . ७५९ १३९८ धोरण. १९५ धोरणी. १२४६ १४२३ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ अभिधानचिन्तामणौ धोरित. धौत. १२४६ । ध्वनिग्रह. ध्वांक्ष. १४३७ । धान ध्वांत. १२४६ ध्वान्ताराति. १२६३ ५७३ १३२२ १३९९ धौतकौशेय. धौरितक. धौरेय. धौश्यक. धौर्य. १०६२ न. १२४६ नःक्षुद्र. १५३९ ४५१ १३०२ ध्यान ३२० नकुल. नक्तक. नक्तमाल. नक्तम्. धुव. ११४० १५३३ ध्रुवक, ११२२ नक्र. ध्रुवा. ८२९ १३४९ ९०१ o नक्षत्र, ध्वज. १०७ ध्वनिनी. ध्वज्या. ध्वनि. ७५० नक्षत्रमाला. ७४६ नख. ९०१ नवर, नम्वरायुध. १३९९ । नखविष. ५९४ ५९४ १२८४ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका नग. नगरी. नग्न. १०२७ । नदीमातृक. १११४ । नदीश. नद्ध. ७९५ ९०५ नमहु. नाहू. ९०४ ५३४ नग्ना. नग्निका नट. ननांह. ननुच. नंदक. ९५५ १०७३ ४३८ ९१५ ५९४ ५५४ १५४२ २२२ ११९७ ६९८ .१७८ ५४१ ६१० नटन. नटमंडन, ३२९ २८० १०५९ ११९३ ९५४ नड. नरकीय. नडप्राय. ९५४ नंदा. 200r. नडत. नंदिनी. नंदिनीतनय. ९५४ ९५४ नड़क. नत. नतत्रिक. १४५६ १२४७ नंदिन. ११७१ ३३० नद. २१० ३१३ नदी. नदीज. नंदीमुखी. १०५५ नंदीसरस्.. ९४१ नंदीश. १७८ २१. नदीभव, Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ नंद्यावर्त्त. } नपुंसक. लप्त. नमःश्वास. नभःसंगम. नमः स्थित. नमस्. नमस्य. नभस्वत्. नभोगति. नम्राज्. नमसित. नमस्. नमस्थित. } नमि. नमुचि. नयन. अभिधानचिन्तामणौ ४८ । नयनौषध. १०१५ १११४ ५६२ ५४४ ११०६ नरकभूमि १३१६ १३५९ १५४ नमोऽम्बुप. १३२९ नभोमणि. } नरक. } नर. ९५ १६४ ४४७ १५४२ ४४७ २८ १७४ ५७५ नरकस्था. नरकीलक. १६३ १५४ नरमालिनी. नरदत्ता. } ११०६ नरवाहन. १३१८ नरायण. नर्कटक. नर्त्तन. नर्मदा. नर्मन्. नलक. नलकिनी. नलकील. नलकूबर. नलमीन. १०५७. ३३७ ७०९. २२१ १३५९. १३६० १०८६ ८५८ ४६ २३९ १३१ १८९ २१४ ५८१ २८० १०८३ १९९ ६२७ ६१४ ६१४ १९१ १३४६ Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागन. ३ १०११ १०११ नलिन.. नलिनी. नव.. नवत. नवनीत. नवमालिका. नवार्चिस्. . नवीन, नवोद्धत. नव्य. . नष्ट नष्टशीन. नष्टानि. नस्तित. नस्योत. नहि. नाक. नाकिन. नाकु. शब्दानुक्रमणिका १३९ नागकुमार. ९० ११६० नाराज । १०४२ १४४८ नागनिह्निका. १०६. ४.८ नागजीवन. १०४२ ११४८ नागदन्त. ११७ नागमाता. १०१० १४४८ नागर. ४२० ४०८ नागरक्त. १०११ नागरंग ११४३ नागलोक. १३६३ नागवल्ली. ११५५ ८५५ नागाधिप. १३०७ १२६० नागोद. ७६८ नाटक. २८४ १९३९ नाटेर. ५४८ ८८ नाट्य. ९७१ नाट्यधर्मिका. ९७९ नाट्यप्रिय. १९८ १२१७ नाडिका. १०४१ नाडी. ४९२ २०९ नाय. Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ জমিখালবিনামী | नारक. १३५९ १३५८ १९४३ ३५९ ७७९ ९२४ १९७ २१४ नाडींधम. नाडीविग्रह. २१० । नाडीव्रण. ४७० नारंग. नाथ. नारद. नाथवत्, ३५६ नाराच. नाद. १४०० नाराचिन्. नाना. . १९२७ नानारूप. १४६९ नारायण. नांदीपट. १०९२ नारी. नांदीमुख. १०९२ नाल. नापित. नालिकेर. नापितशाला. १००० नालिकेरन. नामि. नालीक. नाविक. नामिमू. नाश. नामधेय. नासत्य. नामन. नामशेष. नासा. नामसंग्रह. १९८२ ११५१ १०२२ १५१७ ३२४ १८२ ५८० ५८० २५८ नासिका. ५९ / नासिक्य. नायक । १५० | नासीरः Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नास्तिक. } नाहल. निःशलाक. निःशोध्य. निःश्रेणि. निःश्रेयस निःश्वास. निःसरण. निःस्व. निकट. निकर. निकष. निकषा. निकलात्मज. निकाम. निकाय. निकाय्य. निकार. निकुंज. निकुरंब शब्दानुक्रमणिका | ८६२ ४९० ९३४ निकृति. ७४२ निकृष्ट. १४३६ निकेतन. निवण. १०१३ निक्काण. ७४ निक्षेप. १३६८ ९८२ ३५८ १४५० १४११ ९०९ १९३४ १८७ निकृत. } निखर्व. } निखिल. निगड. निगडित. निगण. निगम. } निगरण. १५०५ १४१३ निगाळ. ९९० निगूढक. ४४२ निग्रह. ११११ निघंटु. १४१२ निवस. L ३७६ ४४१ ३७७ १४४२ ९८९ १४०० १४०० ८७० ४५४ ८७४ १४३३ १२२९ ४३.८ ८३७ ९७२ ९८३ ५८८ १२४४ ११७३ १९०८ २५८ ४२३ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ઉર अभिधानचिन्तामणौ निम्न. निचित. निद्राण. । ४४३ १४७३ निद्राकु. निचुल. ११२९ ४४२ ३२४ १९२ १९२ निचोल. निचोलक, निज. १९० ५७७ नितंब. नितबिनी. नितांत. ११४५ निधन. निधान. ७६७ निधि. निधीश्वर. निधुवन. निध्यान, ५०४ निनद. १५०६ निनाद. १४५३ निंदा. १४७१ ११०६ ७१० निपान. निपुण. ३०५ निबंध. १९१४ ।। निबंधन निबर्हण. निबिड. ३१३ | निबिरीस. १३९९ २७१ नित्य. निंदु. निप. नित्यगति नित्ययौवना. १०१९ १०९२ ३४२ ११७ निदाघ, २५७ १५. निदान. निदेश. ३७० २७७ ७३ निद्रा. Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका निम. । १४.२ | नियोग. १ ३७८ २७७ १९२० ५७७ निभालन. निभृत. निमय. निमित्त. निमित्तवित्. नियोगिन. नियोन्य. निरंकुश. निरंतर. निरय. ४८२ १३५९ २६७ निमीलन. निरर्थक. १९१६ ३२४ ५२ निरस्त. . २६७ ७७९ निमीश्वर. निमेष. निम्न निम्नगा. निंब. नियति. । निरवग्रह. १७८ १०७१ निरस्तक्त. १४७४ १०८० निराकरिष्णु ३५० निराकृत. १४७३ निराकृतान्योत्तरत्व. ६७ ७६० निराकृति निरुक्त. २५४ निरुक्ति. २५० निरोध. १५०८ ८७६ निति. १३८० ७९९ निर्ग. १९७९ नियंत. नियम. नियमस्थिति. नियामक. नियुद्ध. ११ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४७ । निर्वाण. १२२५ ७५ ३७१ ३८७ ५७७ १५१४ १४९४ १४४ অখিলখিলামী निर्गुडी. निर्वाण. निग्रंथ. निर्ग्रथन. निर्यातन. निर्घोष. १३९९ निर्याम. निर्लक्षण. १०९६ निर्जर. निर्खयनी. निर्जल. निर्वपन. निर्झर. १०९६ निर्वर्णन. निर्झरिणी. निर्वहण. निर्णय. १३७४ निर्णिक्त. निर्णेनक. निर्वाणिन. निर्वाणी. निर्दिग्ध. ४४९ निर्वात. निर्दिग्धिका. ११६७ निर्वाद. निर्देश. २७७ निर्वाषण. निबंध. १५०० निर्भर. १५०६ निर्वीरा. निर्मद. १२२१ निर्मम. | निर्वृति. निर्मुक्त. १३१२ निवृत्त निर्मोक. १३१५ निवेद, निर्वाण. } १४३७ ९१४ १४९४ २७१ ३७१ निर्याप्सन. ३७१ ५३० १३७० १४८७ ३२१ Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३६२ निशाट. निर्वेश. निर्व्यथन. ३८ निशात. १३२४ १४८४ ९९२ १३२४ १४८४ ३७१. निशान्त. निर्झरिन. १३९० निशापति. निद. १.३९९ निशामन. निलय. निशारत्न. निलिम्पिका. १२६६ निसावेदिन. निवसथ. निशित. निवसन. निशीष. निवह. १४१२ निशीथिनी. निवाप. निवास. निशुंभ. । निवीत. .८४५ निशुममथनी. निवृत्त. १४७१ निश्चय. निवृत्ति. १५२२ निषंग. निवेश. १४९९ निवेशन. ९७२ निषद्वर, निशमन. ६७७ निषध. निशा. १४१ निषधा. निशाकर. निषाद.. निशाख्या. निशागण. १४३ - निषादिन्. ६९९ निषद्या. १३७४ ७८१ १००२ १०९. १४०१ .. . ९८० orar0 १३३ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । १५२१ . C १४६ अभिवानचिन्तामणी निष्क. १०४४ | | निष्पाव निष्कल. १९२ ११७४ निष्कला. निष्पुलाक. .. १५ निष्कषाय. निष्प्रवाणि... १७१ निष्कारण. निसर्गवत. निष्कासित. निसूदन. निष्कुट '१११२ निस्तल. निष्कुह. ११२२ निस्तहण. निष्क्रम. १५२४ निस्त्रिंश. ७८२ निष्क्रय. ३९६ निष्क्वाथ. निस्वन. निष्टय. १९९९ ९३४ निस्वान. १३९९ १५१४ निहाका. १२९७ निष्ठान. ३९९ २७६ निष्ठुर. २१९ नीकाश. १४१२ ९३२ निष्ठेव.. १५२१ ३८० निष्णात. १४२९ निष्पक्क. । नीचेस् .१५४१ निष्पत्राकृति. १३७२ नीड. १३१९ নিল, ..१४८७ | नीरन, निनाव. निष्ठा. ON निहव. नीच. Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका १४७ नीप. नीर. नीरंध्र, ८९९ ९४७ १०११ नीरुज, नील ११३८ । नीवी. १०६९ १४४७ नीवृत. ४७४ नीव. १९३ नीशार. १३९७ नीहार. १२३९ । नुत्त. १३१९ नुन्न. १२०२ नूतन. १०६५ नून. नीलक. नुति. २०७२ २६९ १४८२ नून. १४४८ १५४० ३३७ नीलकंठ. नीलंगु. नीलमणि. नीललोहित. नीलवस्त्र. नीलवाससू. नीला. नीली. नीलीराग. नीलोत्पल. नीवाक. नीवार. १२१४ नृचक्षस. नृजल. नृत्त. . ६३३ २८० .२८० १८९ ४७६ नृत्य. नृधमेन्. नृप. नृपासन. नृयज्ञ. १५१८ १९७६ ७१६ . ८२२ Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ मभिधानचिन्तामणौ १५३९ नृशंस. नेतृ. नेत्र. ६७५ ८७७ नेत्रांबु. ३७१ नो. . ३५८ नौ. नौकादंड. ३.७ । न्यकार. १४५२ न्यकृत. न्यक्ष. १०० न्यग्रोध. न्या . नेदिष्ठ. नेपथ्य, नेपाली. नेम. १४३३ ११३२ १२९३ १४२९ १४८२ नेमि. न्य. न्यचित. न्याद. ७४२ १०९१ १४४९ ८६७ १२६४ १२७०. न्याय. न्याय्य. न्यास. , v नेमी. नेकभेद. नैगम. नैचिक. नैचिकी. नैमेय. नैयायिक. नैर्ऋत. नैष्किक. नैस्त्रिशिक. पक्क.. १४८५ ४१२ १००२ पकण. १८८ -- १३१८ .१४७ -- Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ८९४ पक्षति. ३२४ पक्षक.: १००७ | पंगुल. १२४३ १४७ पज्ज.. १३१८ पंचजन. पक्षद्वार, १००७ पंचज्ञान. पक्षभाग. १२२८ पंचत्व. पक्षांत. पंचदशी. पक्षिन्. पंचत्राण. २२९ पक्षिणी. पंचभद्र. पक्षिमृगगत्यनुहारक १२४८ १२३६ पक्षिलस्वामिन. ८५४ पंचमः पक्षिस्वामिन्. २३१ पंचमुख. पक्ष्मन् पंचलोह, १०५० १०९० । पंचशाख. ५९१ १६८१ । पंचशिख. १२८४ पंकन, पंचांगगुप्त.. १३५३. पंकजन्मन. ११६२ पंचांगी. १२५१ पंकजिनी. ११६० पंचांगुल. पंकप्रभा. १३६० पंचार्चिस. ११७ - ११६२ पंचास्य. १२८४ ११६२ पंजिका. १४२३ ४५२ । पटकुटी. पंकरूह. पंकरह. २५६ पंक्ति . पट, गु. Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी पटचर. ६७८ १००२ ५३२ पण्यशाला. पण्यांगना. पण्याजीव, पतग. पटल, १०१० १४११ १३१६ पटवासक. पटह. पटु. २९५ । पतंग. ७९९ १३८५ । पतङ्गिका. पतंजलि. ३८४ प-त्. ४७४ पात्र. ११८८ पतत्रिन्. पतद्ग्रह. पतयालु. पताका. ५३२ पताकिन्. पताकिनी. १२१३ १२१४ ८५१ १३१६ १३१७ १३१६ ६८३ ४१५ ७५० पटोलिका. पट्टिश. ३६२ एण. पण. १८६ पणांगना. पणास्यिक. पणितव्य. ३५९ पति. पण्ड. ८१६ पंडा. पंडित. ३१० पतित. १४९० पण्य. ८७१ / पतिवत्नी. १३० Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका १५१. ६५५ पतिव्रता. पतिवरा. ५११ पत्तन. १३३४ पत्ति. ५२७ । पत्रांगुलि पत्रिन्. ९७१ ४९७ पत्रोर्ण. पथिक. ५१२ पथिन. ११८३ पथ्या . पत्नी . ४९३ ९८३ पत्र १३१७ ९८८ २४२ १ , २५४ २५६ ९८३ १५५ ४९८. पत्रणा. पत्रपरशु. पत्रपाल. पत्रपाश्या. पत्रमंगी. पत्ररथ. पत्रल. पत्रलता. पत्रलेखा. पत्रवल्ली. पत्रवाह. पत्रांग. १३१६ पदभंजन. पदभंजिका. पदवी. पदाजि. पदाति. पदातिक. पदासन. पदिक. पद्. १५५ ४९७. ४९७. ७१८ ४९८ पद्धति. ] पद्धति. ९८३ २५७ Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ । ११६० पसद्धा. पयसू. ९५४ १०४ १०६९ पद्म. ६९३ ६९८ U१२२९ पयस्य. पयस्या . ८३१ पयोधर. पद्मनाभ. पर:शत. "पद्मभू. १४३९ १४५२ ७२८ ३५६ पद्मनाल, 'पद्मप्रम. २१३ पद्मराग, १०६४ पद्मावासा. २२६ पद्मा. २२६ पद्माकर. १०९४ पद्मावती. पद्मेशय. २१५ पद्मोत्तरात्मन.. पद्य. पद्या... १४९१ पन्नग. १३०४ परच्छंद. परजात. परंजन. परतंत्र. परपिंडाद. परमाग. १८८ 0 १३७५ १३२१ 0 परभृत्. परमान. परमार्हत. ' ७१२ ___९८३ परमेष्ठिन्. । पन्न. २११ परंपर. Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका "परंपराक. परलोकगम. 'परवत. परवा . ३२३ । परार्थ. परार्ध. परश्वध. परश्वधायुध. 'परस्परं. ३७४ 'पराक्रम. ८१० | परायण. ८७४ ३५६ १४३९ ३५६ परावृत्त. १२४५ परावर्त. ८७० परासन. ३७० ७७० परासु. १४९९ परास्कंदिन. ७३९ परिकर. } ६७९ परिकर्मन्. । ६३५ परिकर्मिन् ३६० १४३७ परिकूट. ९८२ परिक्रम. .१५०० ८०५ परिक्षिप्त. ११७४ परिखा. १०९५ ३६१ 'पराग. 'पराङ्मुख. पराचित. पराचीन. पराजय. पराजित. पराधीन. परान्न. पराभव. परिग्रह. , ७१५ परिघ. } १००४ परामत. परामर्श. परायत्त ३२२ ३९६ | परिघातन. ७८६ Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ परिचय. परिचर. परिचर्या. परिचारक. परिच्छद. परिणत. } परिणय. परिणाम. परिणाय. परिणाह. परितस् परित्राण. परिदान. परिदेवन. परिधान, परिधि. परिधिस्थ. परिपण. परिपन्थक परिपंथिन् परिपाटी. अभिधानचिन्तामणौ परिप्लव. परिलुता. ४९६ परिवर्त १९१३ ७६१ परिभव. परिभाव. परिभाषण. परिभूत. परिमंडल. ३९९ ७१६ १२२१ १४८९ ११८ १९१८ परिमल. ४८७ १४३१ परिवत्सर. १५२९ परिवर्त १५०२ परिवर्तन, परिमोषिन् ८६९ परिवसय २७५ परिवाद. ३७२ परिवादिनी. १०२ परिवापण. ७६५ परिवार. ८६९ परिवित्ति. ७२९ परिवृढ. ७२९ परिवेत्तृ. १५०४ परिवेदिनी . १४५५. ९०२ ४४१ ४४ १ २७१ ८०१ १४३७. १३९१ ३८२ १५९ १६१ ८६९ ९३१ २७१ २८८ ९२३ ७१९ १२ ३१८ ५२६ १२६: Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिवेष. परिवेष्टित. परिवज्या. परिव्राजक. परिशिष्ट. २६९ १३८६ परिश्रम. মানুষিক १०२ | परीष्टि. १४७४ परीहास. परुष, ८०९ २५७ पष्. ३१९ परेत. ६५० परेष्टु. १४७५ परेधित. १५०७ परोष्णी. ९६३ १५०० १३५८ १२६८ पर्कटिन. परिषद्. परिष्कार. परिष्कृत. परिष्वंग. परिसर. परिसर्प. परिस्कंद. परिस्तोम. परिस्यंद. परिखत. ११३१ पर्जन्य. १७२ ९९४ १११४ १४०३ १०१५ ६७९ परिखता. पर्णशाला. ७१५ पर्णिन . ९०२ पर्दन. ९०२ पर्पटी. ४७९ १४७५ १५०७ पर्यटन, ७८३ पर्यय. १.८८ पर्यस्तिका. परीक्षक. परीत. परीरम्भ. परीवार. परीवाह. १५०१ ११०३ ६७९ २६ Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी १२५२ १५०५ ११४२ ५८५ ६२२ १५६ पर्याण. पर्याप्त. पर्याप्ति. पर्याय. पर्ययुदंचन. पर्वत. पर्वतकाक. पर्वतजा. पर्वताधारा. पलंसष पलंकषा. पटल. पलाद. पलायन. पलायित. पलाल. १६०२ १५०३ ८१ १०२७ १३२३ १०८० ९३७ १४८ ११३० १४८ ८०२ ८०५ ११८२ ११२३ ११३१ पलाश. १३४ पर्वन्. पर्वमूल. १२७० ६७१ पर्वसंधि. १४९ पलिनी. पलित. पल्यंक. पल्ययन. पल्लव. पल्लविक. पशुक, पशुपाणि. ६२७ २०७ पर्षद. ४८१ पल्ली. ६२३ पल. पत्वल. पव. ११२३ ३३१ १२९८ १०९५ १५२१ १०१७ १५२१ ११०१ ८८४ ११८२ पर्वयोनि. पलगंड. पवन. ९२२ Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका पवनाशन. पवमान. पाक्य. ९४२ १४४ पवि. पवित्र. । पशु. पशुक्रिया. पशुपति. पश्चात्ताप. पश्चानुपूर्वी. पश्चिम, पश्चिमा. पश्यतोहर. १६७ पाचन. १३८८ ११९२ पाचनक. ९४४ १४३५ पांचजन्य. २२२ १२७५ पांचालिका. १०१४ ५३७ पांचाली. __७१० १९९ पाट १५३७ पाटक. ९६२ पाटचर. १४५९ पाटल. १३९५ पाटला. ११४४ पाटलि. ११४४ ९९१ पाटलिपुत्र. पाटित. १४८८ पाठक. ५२८ पाठीन. १७४ पाणि. १९१ '३३८ पाणिगृहीती. १०३७ । पाणिग्रहण. ६१८ ९९८ । पाणिघ. ९२५ ३८२ पस्त्य . पांशु. पांसु. ९७० पांसुला पाक. ५९८ पाकपुटी. पाकशुक्ला. पाकस्थान. Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ अभिधान चिन्तामणौ १०६९ ८५१ | पाथस. ५१७ | पाथेय. ७७४ । पाणिनि. पाणिपीडन. पाणिमुक्त. पाणिवादक. पांडर. पांडवायन. १०३४ १०० ३३० १६९३ पाद. पांडु. १४३४ १३९३ ७५४ पांडुकंबलिन्. पांडुभूम. ४९८ पादकटक. पादग्रहण. पादचारिन. पादजल. पादप. पादपाश, पांडुरपृष्ठ. पातक. १३९३ ४३७ १३८० १११४ १२२९ १२५१ ७१८ पाताल. पातालौकस. पातुक. ९१४ पादपीठ. पादमूल, २३८ ४४५ पादरक्षण. १०७९ पादवल्मीक, ३२७ पादस्फोट, ८२८ । पादान. १०२६ । पादांगद. ४६५ १६५ पात्र, ६१७ 5 Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ४९ १०९३ पादातिक. पादावर्त. पादुका. पादुकाकृत. पादु. पाथ. पाप्मन्. पामन. पामर. पामा. पामारि. १३८० ४६० ९३२ पायस. १०८९ पान. पायु. पाय्य. १०५७ ४०६ ६४८ ६१२ ८८३ १०७९ २४ १०५० १०५० पार. पानगोष्ठिका. ९०७ पारंगत. पानभाजन. १०२४ पारत. पानवणि. पारद. पानीय. १०६९ पारंपर्य. पानीयनकुल. पारशव. पानीयशाला. १००१ पारश्वध. पाम्थ. पारश्वधिक. पाप १४४३ पारसीक. १३८० । पारस्त्रैणेय. पापद्धि. ९२७ । पारायण. १०३७ १९३ ७७० १२३५ ८३९ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० অমিখালবিলাসী ८४७ ८१० १७९ पारावत, १४२० पारावार. १०७३ १४५० पाराशरिन् ८१० पार्श्व. ५८९ पाराशर्य. पारिकांक्षिन्. पारिजात. पार्श्वक. ४७५ पारितथ्या. ६५५ पार्श्वस्थ. ३३० पारिपंथिक, पार्थोदरप्रिय. १३५२ पारिपाश्चिक. ३३० पार्षद. २०१ पारिप्लव. १४५५ पाषेच. पारिभद्रक. ११४१ पाणि. पारियात्रिक. १०३१ पाणिप्राह. पारियानिक. पारिरक्षक. ८१. पालकाप्य. पारिहार्य. पारक्या. पारी. १०२४ पालाश. ८१५ पारींद्र, १२८४ १३९५ १३०५ पालि. ५७४ पार्थिव पाली. १०१३ पार्वती. १ १०५५ पावक. १०९ २०३ | पावन. १४३५ 360c Vrav पाल. पार्थ. ७०८ ६९० Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका पाश. ११३९ ११३९ पाशक. पाशिन. पाशुपाल्य. १८८ ११३९ १०१२ १३१७ १३२० पिच्छिल. विज. पाश्चात्य. पाश्या. पाषाण. पाषाणदारक, पिक. पिंग. पिङ्गकपिशा. पिंगचक्षुष. ५६८ । पिचच्य. ९३१ । पिचु. पिचुमन्द. पिचुल. पिचट, ८८८ पिच्छ. १४५९ १४२१ १०३५ ९१९ पिंजन. १३२१ पिंजर. १३१७ १२०७ पिंजल, १३५२ १९९ पिट. १३०३ पिटक. १३९६ ११९९ ३७२ ९१२ १०५८ १३९. ३६६ पिंजुष. . पिजट १०१७ पिंगल. १०१९ १०३७ १९९ पिंगेक्षण. पिचंर. पिचंडिका. पिचंडिल. १०१३ ४५० पिंडक. Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी ८२२ । पित्सत. ६१५ | पिधान. १३१७ १०२६ पिंडदान. पिंडिका. पिंडीशूर. पिंडोलि. पिण्याक. पितामह. है पिनद्ध. पिनाक. १७७ ४२७ पिनाकभृत. पिपासा. २११ पिपासु २०१ १९९ ३९४ ३९३ १२०६ १२०७ ४२१ ६३२ पिपीलक. पिपीलिका. पिप्पली. पिप्पिका. पितृ. पितृगृह. ९८९ १८४ ६१८ ११४२ पियाल. पिल. पितृपति. पितृयज्ञ. पितृवन. पितृव्य. ८२१ ९८९ ५५२ १४० १३९६ पितृसू. पित्त. पिशग. पिशाच. पिशाचकी. पिशित. पिशिताशिन् १८९ ६२३ ४२९ १.४७ पित्तल. पित्र्य. पित्र्या, । ५५१ । पिशुन. ८४० 5. . ८४९ १११ पिष्टक. Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका पिष्टपुर. पिष्टवर्ति. पिष्टात. विष्पलक. १२२ २१० पिहित. १०. । पीता. ४०. पीताब्धि. पीतांबर. पीन. १४७६ पीनस. | पीनोनी. पीयूष. पीछक. पीठ. १२६९ १२०६ १२१७ पीलु ११४२ पीठभ. पीठमर्द. पीटन. पीडा. पीत. पीततंदुला. पीतदुग्धा. १९८५ ४४८ १३९४ ११७६ १२७० १०५९ पीलुपर्णी. पीवन् पीवर. पीवास्तनी. पुंश्चली. . पीतन १२६९ ५२८ ६१० ४०४ पुश्चित. ३३७ पीतनील. पीतपादा. पीतरक्त. पीतल. पीतलोह. पीतमाल. १३९४ पुंसवन. पुस्. १३९६ पुंस्त्र . १३९४ पुंख. १०४८ पुंगव. ११४४ पुच्छ. ६२९ ७८१ १४४० Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ पुंज. पुटकिनी. पुटभेद. पुटभेदन. पुंडरीक. } पुंडरीकाक्ष. पुंडू. } } पुण्य. पुण्यक. पुण्यजन. } पुण्यभू. पुण्यवत. पुत. पुत्तिका, पुत्र. } अभिधानचिन्तामणौ १४११ पुत्रिका. ११६० पुद्गल. १०८८ ९७१ ११६२ १७० १२८५ पुनर्भू. २१७ ६५३ ११९४ १४३५ १३७९ पुनः पुनः पुनर्नव. पुनर्भव. ६०९ १२१४ ५४२ १६ ० पुनर्भविन् पुनर्वसु. पुनर्वह पुन्नाग. } ८४३ पुर. } १८७ १९४ पुरःसर. ९४८ पुरतस्. ४८९ पुरंदर. पुरंध्री. पुरम्. पुरस्तात्. पुरा. १०१४ ५६४ १९३१ १९४ ५९४ १३६६ १२५ ८१२ ११० २१६ १०९०. ११३४ ५६४ १००३ ४९८ १९२९ १७१ ११३ १५२९ १९२९ १९३९ Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ७०१ ४९८ १४३८ ४९८ ४९८ ७२० ३८० ७२० ९७१ ३०६ १२०२ २६२ । पुरूवस्. पुराण. १४४९ पुरोग पुरोगम. । पुराणग. २१२ पुराणपुरुष. पुरोगामिन्. पुरातन. पुरोधस्. पुरावृत्त. पुरोभागिन्. पुरामुहृद्. पुरोहित. पुरी. ९७१ पुरीतत्. पुलक. पुरीष. १४२६ पुलिन. १३६६ पुरुष. ३३७ पुलोमन पुरुषपुंडरीक, ६९६ पुरुषसिंह. १९६ पुष्कर पुरुषास्थिमालिन् १९७ २६९ पुलिंद, ९३४ १७४ १२२४ पुरुषोत्तम. पुष्कराख्या पुष्करिणी. १३२८ १.९० १४२५ १४२१ पुरुह. पुरुहूत. पुष्कल. १४३९ Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुष्प. पुष्पक. पुष्पकरंडिनी. पुष्पकाल. पुष्पकेतन. पुष्पकेतु. पुष्पचाप. पुष्पद. पुष्पदंत. } पुष्पदामनू. पुष्परथ. पुष्पलक. पुष्पलाविनू. पुष्पवती. पुष्पवत्. पुष्पवाटी पुष्प १. पुष्पाजीव. अभिधानचिन्तामणौ ११२५ पुष्पांजन. ५३६ पुष्पात्र. पुष्पिका. पुष्पिकासीस. ११८४ १९० ९७६ १५६ २२८ १०५४ २२८ पुष्य. पुष्येषु. पुस्त. पूग. पूजा. १११४ पूजित. १७० पूज्य. २९ पूत. १२४ ६११ पूतना. ७५२ पूतिगंधिक. १२७४ ९०० ५३५ १२४ १११३ ६०५ ९ पूप. पूपली. पूपिका. पूय. पूर. पूरित. पुरुष. } १०१४ २२८ ६ ३४ १०५७ १११ २२८ ९२२ ११९४ ४४७ ४४ ६ ३१६ १४३१ ११८३ २१९ १३९१ ३९८ ३९९ ३९८ ६२४ १०८७ १४७३ ३३७ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ११३ ३९८ पूर्णकुंभ. पूर्णपात्र. पूर्णानक. पूर्णिमा. पूर्णिमारात्रि. १४७३ । पूर्वाषाढा. ७१८ पूलिका. ६७७ । पूषन् ६७७ पूषासुहृद्. १४९ १४३ पृच्छा . पृतना. पृक्थ. १६२ २६३ ७४८ ७४५ पूर्त ८३४ पूरि. ९८१ १४५९ पूर्वगंगा. पूर्वगत. पृतनाषाह. पृथक्. पृथगात्मता. पृथगात्मिका. पृथग्जन. पृथग्विध. पृथिवी. पृथिवीशक, १५२७ ७९ १५१५ ९३२ २४६ ५५१ १७३ २३८ पूर्वन. पर्वदिक्पति. पूर्वदेव. पूर्वभाग. पूर्वरंग. ९३५ थ २८२ १६७ १०२७ । पृथुरोमन्. ११५ । पृथुल. पूर्वाद्रि. पूर्वानुयोग. पूर्वाभाद्रपद. | पृथुक. ११३० ३३८ ४०१ १३४३ Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ १०१५ पृथ्वी. पृदाकु पृश्नि . पृश्निशृंग. ९३५-३९ । पेटा. १३०३ ९९ ४५३ पेल. २१७ पेढाल. पेयष. ४०५ पृषत. ४४९ १४४७ १४२७ . पत्. पृषत्क. पृषदश्व. पृषदाज्य. पृषातक. १०८९ १०८९ ७७८ ११०७ ८३२ १४४५ ६२३ १३१९ ५७३ (३२ पेशल. पेशी. पेशीकोश. पैञ्जूष. पैठर. पैतृष्वसेय. पैतृष्वस्त्रीय. cm. पृष्ठ. o ar ao ५४५ ५४५ पृष्ठग्रंथि. पृष्ठमांसादन. पृष्ठवंश. पृष्ठवाह्य. पृष्ठशंग. पृष्ठय. पेचक पैत्र. १२६३ १२७८ पैलव, १५९ ८१५ ४५५ ११९३ पोगंड. पोटगल. १२२७ १३२४ । पोटा. पेटक. १ ५३२ ५३४ Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका पोहिल पौरोगव. १७६ | पौर्णमास. ७२२ ८२३ १४९ १८९ पौर्णमासी. पौलस्त्य. । १२१९ १३.५ पोता. पोतवणिज, पोतवाह. पोताधान. ८७५ ८७६ पौधी. ३५९ पौलोमी. १३४७ १२८७ ३९८ ३९८ पोष. पोष्ण. पोत्रिन्. पोलि. 'पोलिका. पोलिंद, पौतव. पौष्पक. प्याट्. प्रकट. प्रकटित. प्रकम्पन. पौत्र. १७५ १६२ ११५ १०५४ १९३७ १४६७ १४७८ ११०६ १४११ २५४ २८४ १४४१ ११२० १५०५ १४६२ पौनर्भव. ५४७ ११९१ प्रकर. और. पोरक. प्रकरण. पौरस्त्य. १४५९ प्रकांड. प्रकाम. ७३९ | प्रकार, Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० प्रकाश. प्रकाशित. प्रकीर्णक. प्रकृति. प्रकृष्ट. प्रकोष्ठ. प्रक्रम. प्रक्रिया. प्रक्कण. प्रकाण. प्रक्षर. प्रक्ष्वेडन. प्रखर. प्रख्य. } प्रगड. प्रगल्भ. अभिधानचिन्तामणौ १०४९ १४६२ प्रगाढ. १०१ १४६७ १४७८ ७१७ १३७६ ७१४ प्रगल्मता. प्रगुण. प्रगे. प्रग्रह. प्रग्रीव. प्रघण. प्रघाण. ८९९ १४३८ १९० १५०९ ७४४ १४०८ प्रचुर. १४०८ प्रचेतसू. १२५१ प्रच्छदपट. प्रघात. प्रचक्र. ७७९ प्रच्छन्न. १२११ १४६२ | प्रच्छर्दिका. प्रख्यातवन्तृक. ५०२ प्रच्छादन. १९१ १४३ } प्रचलाक. प्रचलाथित प्रजन. प्रजनन २९९ १३७१ १४५६ १९३३ ९९ ८०६ १०१२ १०१० १०१० ७९७ ७९० १३२० ४४२ १४२९: १८८ ६७६ ७३१ १००७ ४६९ ६७१ १२७४ ६११ Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ যন্তজালিঙ্কা प्रणिपात. १५०३ प्रजा. प्रणीत. प्रमाता. प्रजाप. प्रजापति. प्रजावती. ६०. ५४३ ९३९ १९० २१२ ५१४ ८२६ ४३२ १४१९ १९६ 20 प्रज्ञप्ति. २३९ प्रज्ञा. ३०९ प्रणेय. प्रतति. प्रतन. प्रतल. प्रताप. प्रतारण. प्रतिकर्मन्. प्रतिकाय. प्रतिकाश. प्रतिकूल. प्रतिकृति. प्रतिकृष्ट. ३७९ ६३६ RAN: ० प्रज्ञात. १४९३ ० १४६५ १३१८ १५.३ ३८८ १४४२ प्रतिक्षिप्त । ४४० प्रडीन. प्रणति. प्रणय, प्रणयिनी. प्रणव. प्रणाद. प्रणाय्य. प्रणाली. प्रणिधान. प्रणिधि. १४७४ २५० १४०३ । प्रतिग्रह.. प्रतिग्राह. १०८९ प्रतिघ. १३७८ प्रतिघातन. ७३३ | प्रतिच्छंद. .२९९ ३७० Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी १४६२ १४१३ २७८ oc १२२७ १४६४ प्रतिच्छाया १४६४ । प्रति प्रतिनंबा. ११५ प्रतिम. प्रतिजागर. १५१८ प्रतिमा. प्रतिज्ञा. प्रतिमान. प्रतिज्ञात १४८६ प्रतिताली. १००६ प्रतिमुक्त. प्रसिदान. ८७० प्रतियातना. प्रतिध्वनि. १४१० प्रतिरूप. प्रतिनप्तृ. ५४४ । प्रतिरोधक. प्रतिनादविधायिता, ६५ प्रतिलोम. प्रतिनिधि. १४६३ प्रतिवचस्. प्रतिपक्ष, ७२८ प्रतिवसथ. १४७ प्रतिशासन. प्रतिशिष्ट प्रतिपन्न, प्रतिश्याय. प्रतिपादन. प्रतिश्रय. प्रतिवद्ध. प्रतिश्रव प्रतिबंध. १४९८ प्रतिश्रुत. प्रतिबिंब. प्रतिश्रुत. प्रतिमय. ३०२ प्रतिष्टंभ. प्रतिमा. प्रतिष्ठ प्रतिभान्वित.. ३४३ प्रतितर. २६३ प्रतिपत. ३०९ २७७ १९९२ १००० २७८ १११० १४९८ Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका १७३ प्रतिसर्ग. प्रतिसीग. प्रतिसूर्य. प्रतिहत. प्रतीक LI ८३ प्रत्याहार. २५२ । प्रत्यर्थिन. ७२९ प्रत्यवसान. ४२३ १२९९ प्रत्यवस्थात. ७२८ ४३९ प्रत्याकार. प्रत्याख्यात. १४७३ प्रत्याख्यानप्रवाद. २४८ १६७ प्रत्यादिष्ट. १४७४ प्रत्यालीढ. ७७७ १४९३ प्रत्यासार. १४६५ १०७८ १५२४ १००४ प्रत्युत्क्रम. प्रत्युत्पन्नमति. ३४४ प्रत्यूष. १३९ प्रत्यूषस्. १३९ १४४९ प्रत्यूह. १५०९ १४१८ प्रथन. ११७२ ९० प्रथम. २४१९ १६८ १४९३ ७२८ प्रदक्षिण, प्रदर. ७७८ ७३४ । प्रदिश. प्रतीक्ष्य. प्रतीची. प्रतोचीन. प्रतीन प्रतीप. प्रतीर. प्रतीहार. प्रतोद. प्रतोली. प्रब प्रत्यग्र. प्रत्यप्रथ. प्रत्यच प्रत्यनीक. प्रत्यंत प्रत्ययित. ७२१ प्रथित. ९५२ Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ अभिधानचिन्तामणी ११२८ प्रबुद्ध. ३८६ १९२ प्रबोध. प्रदीप. प्रदीपन. प्रदेशन प्रदेशिनी. प्रदोष. प्रद्युम्न. प्रद्योतन. प्रद्राव. प्रघन. ११९७ ३१९ ११०६ ३३ प्रभञ्जन. प्रभव. २२८ प्रभा. ७९७ ७२० प्रधान. प्रमाकर. प्रभात. प्रमाव १३८ १४३८ ७४० प्रधानधातु. ६३० प्रभावती. प्रधि. २८९ १३१८ १४३२ प्रभाम. प्रभिन्न. प्रनीड. प्रपंच. प्रपद. प्रपा. १२२० प्रभु. १००१ ३५९ ११२५ प्रभूत. प्रपात. प्रभूत्व. ७३५ प्रपितामह. प्रपुन्नाट. प्रपौत्र. १०३२ সমুন্ত, प्रभ्रष्टक. ५४४ । प्रमथ. ४९१ ६५२ २०१ Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमथन, प्रमथपति. प्रमद. प्रमदवन. प्रमदा. प्रमनस् . प्रमय प्रमाद. प्रमापण. प्रमीत. प्रमीला. प्रमुख. प्रमेह. प्रमोद प्रयस्त. प्रयाणक. प्रयाम. प्रयास, प्रयुत. प्रयोग. प्रयोजन. प्ररोहा. शब्दानुक्रमणिका प्रलंबभिदू. प्रलंबांड. प्रलय. प्रलाप. प्रवण. प्रवयण. प्रवयस् प्रवर. ३७३ ३१३ प्रवर्ग. १४३८ प्रवई. ४७० प्रवह. ३७० १९९ ३१६ १११३ ५०५ ४३५ ३.७० १३८२ ३७० ३१६ प्रवहण. ४११ प्रवह्निका. ७८९ प्रवाच. १११८ प्रवाल. ३२० ८७३ प्रवासन. १५१० प्रवासिन् १५१४ प्रवाह. १११८ प्रवाहिका. } } १७५ २२४ ४५७ १६१ ३०७ २७५ ३८१ ८९३ ३३९ १४३८ ११७३ ८३६ १४३८ १५१४ ७५३ २५९ ३४६ २९१ १०६६ ३७१ ४९३ १०८७ ४७१ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ अभिधानचिन्तामणौ ३४२ २६० प्रसन्ना. प्रसम. प्रसर. ८०४ प्रविदारण. प्रवीण. प्रवृत्ति. प्रवृद्ध. प्रवेक. प्रवेणी. प्रसल, १५६ १४९५ . १४३८ ५७० प्रसव. ११२५ प्रसव्य. प्रसा . प्रमादन. प्रसादना. ७६० ११७२ १५०० ९९३ १५३९ ३९५ ४९६ ६३६ प्रसाधन. ५८९ ६८८ प्रवेत. प्रवेल. प्रवेश. प्रवेशन. प्रवेष्ट. प्रशंमा. प्रशमन. प्रशस्यता. प्रश्न. प्रश्नव्याकरण. प्रश्वासरोधन. २७० ७९१ ३९० प्रसार. प्रप्तारिन् प्रतित. | प्रसीदिका. १११३ ५५७ | प्रसू. १२३३ ८३. ४९९ प्रसूति. १.४ ३९ प्रसूतिका. १२६६ प्रसूतिज. १०७१ । प्रसून, ५४२ ५३९ १३७१ प्रष्ठोहा. प्रसन्न. Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ४३१ । प्रहर. प्रसूत. ५९८ प्रहरण प्रसृता. प्रसूति. ७७३ ७९६ ११७ ५९८ २९१ प्रसेवक. प्रहषुल. प्रहसन. प्रहस्त. प्रहासिन्. प्रहि. ५९६ ३३१ प्रस्कन्न. प्रस्तर. प्रस्तार. ८०६ १.३५ प्रस्ताव प्रहित. १४९२ प्रस्तावौचित्य. २५४ १७ प्रहेलिका. प्रह्लाद. २५९ प्रस्थ, प्रस्थान. प्रस्थापित. १०३५ ७८९ १४९२ १०१७ प्रह्व. प्रांशु. प्रस्फोटन. १०२९ १४२९ २०२ ९८० ९८१ ९३२ ५०९ ९५६ १४३८ प्राकाम्य. प्राकार. प्राकाराग्र. प्राकृत. प्रागल्भ्य. प्राग्ज्योतिष. प्राग्रहर प्रस्रवण. . प्रस्ताव. प्रहत. ६३३ २४५ Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ঋষিখালসিয়াম १०१३ प्राग्वंश. प्राघुण. प्राण. प्रापूर्णक. ४९९ प्रांगण. १००४ प्राची. १६७ प्राणतज. प्राचीन प्राणद. प्राचीनबर्हिष्.. १७१ प्राणयम. प्राचीनावीत. प्राणसमा. प्राचेतस. प्राणायाम. १५३५ प्राणावाय. प्राणाहिता. प्राच्य. ९५२ प्राणेशा. भाजन, प्रातर. प्रानापत्य. १९५ प्रातराश. प्राजित. प्रातिहारिक. प्राज्ञ. ३४१ प्राथमकल्पिक. प्राज्ञा. ५२२ प्रादुम्. प्राज्ञी. ५२२ प्रादेश. प्राज्य. १४२५ । प्रांतर. प्रांजल. प्राप्त. प्राड़िवाक. प्राच २४८ ९१५ ५१५ १५३३ ८९३ ९२५ ७५. १५३९ १९५ ९८५ Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शादानुक्रमणिका १७९ प्राप्तरूप. प्राप्ति. प्राभृत. ७३७ २६४ २२४ ३५१ २६४ प्राय. १९२९ ३४१ । प्रियप्राय. २०२ प्रियमधु. प्रियंवद. प्रियसत्य. प्रिया. प्रियाल. प्रीणन. १५७ १०७२ ६७१ प्रीतिद. ६७२ १५७ प्रेक्षा. ११४२ १५०२ १३७७ पीति. १४८० प्रायस. प्रालंब. प्रालविका. प्रालेय. प्रावरण. प्रावार. प्रावृष्. प्रास. प्रासक. प्रासंग. प्रासंग्य. प्रासाद. प्रासिक. प्रिय. ७५८ प्रेखा. ४८६ ७६७ १२७१ खित. प्रेखोलन, प्रेखोलित. प्रत. १४८१ १४८० १३५८ ३७३ ९८९ ७७० १४४५ ११४४ ११४९ ११७६ प्रियक. प्रेतगृह. प्रेतपति. प्रियंगु. प्रेतवन. Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० अभिधानचिन्तामणौ प्रेत्य. १५२८ १३७७ १३५४ १२९२ पूवग. -~ प्रेमन्. प्रेयसी. प्रेषित. प्रेष्ठा. प्रेष्य. प्रोक्षण. प्रोज्जासन. १४९२ ५१६ प्लवंग. w ० लवंगम. no ० ३७० प्लीहन. १०३ १२९२ १२९१ १३५४ ०५ १२४८ १२४५ १४८६ ४२४ प्रोत. १४८७ १२४३ प्रोथ. प्रोष्ठपदा. प्रोष्ठी.. सान. १३४६ फण. प्रौढ. प्रौदि. प्रौष्ठपद. १४९५ ३०० फणभृत. फणिन. . प्लक्ष. १४४६ ११३० १३४० प्लव. ८९१ ११८३ Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ७८३ फेरंड. १११४ फेरव. फलपाकावसानिका १११७ | फेरु ९४६ फेला. १११६ फेली. १३३५ १११६ बक. ११४९ १११६ चकोट. १११६ बकुल. बंग. बदरी. फलक. फलद. फलभूमि. फलवत्. फलादन. फालन. फलिनी. फलिन्. फलेग्रहि. फल्गु. } फाणित. फांट. फाल. फाल्गुन. } फाल्गुनिक. फाल्गुनीभव. फुल. फेन. फेनिल. १४४६ ११३३ १४८१ बकनिसूदन. ४०३ बद्ध. बधिर, बन्दिन. बन्दी. बंध } ८९१ १५३ व. ७०८ १९३ बंधक. ११८ ११२७ बन्धकी. १०७७ ११३८ बंधन. } १८१ १२८९ १२८९ १२८९ ४२७ ४२७ १३३२ ७०८ १३३२ ११३५ ९५७ ११३८ ४३८ ४५४ ७९४ ८०६ ५६४ १०९६ ८८२ ५२८ ४३९ १२७४ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮૨ अभिधानचिन्तामणी ९३१ । बंधनग्रंथि. बन्धु. बंधुजीवक. बंधुता. बंधुर. १११ १२९ १७४ बंधुल. बंधूक. बप्पीह. १००४ २२१ १४२२ । बल. १४४४ १४६८ ५४८ ११४९ बलज. १३२९ बलदेव. १३९७ बलमद्र. १३०२ बलवत्. २१७ बला. ४५३ बलाक. १२७६ मलाका. ९३२ बलांगक. १३२० ११२३ बलाट. बलात्कार १३१९ । बलाश. २२५ १५३५ १३३३ १३३३ १५६ ११७२ ८०४ ४६२ १३११ १०९९ बहियोतिष, बर्हिन. बहिर्मुख बर्हिशुष्मन्. बहिष. १०९९ । बलाहक. ८२० Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बलि. बलिन्. बलिन बलिम. बटिसुज्. बलिवेश्मन्. बलिश.. बली मुख. बलीवई. बष्कयिणी, बहिर्द्वार. बहिश्वर. बहिष्. बहु. बहुकर. बहुकरी. } शब्दानुक्रमणिका ७४५ | बहुगर्ह्यवाच्. बहुत्वक. ६९९ २२१ बहुपाद्. ४४७ बहुप्रन. ८२२ बहुप्रद. बहुरूप. ४४८ ११७१ ४५६ ४५६ १३२२ १३६३ १११९ १२९२ १२५७ बहुल. ३६३ १०१६ बहुला. बहुवर्णपुष्पवृष्टि. बहुविध. बाद. बाण. १२६७ १००७ १३५२ १९४१ बाणासन, १४२१ बादर. १४३० बादरायण. बाधा. } बाणपुर, बाणमुक्ति. } } १८३ ३४७ ११४४ ११३२ १२८८ ३८५ ६४७ १०९९ १४७ १४२५ १०९ ६३ १३६९ १९०५ २२१ ७७८ ९७७ ७८० ७७६ ६६९ ११३९ ८४७ १३७१ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणी बांधकिनेय. बांधत्र. १५१ V बाल ३५२ बालक्रीडनक. बालमूषिका. बालवायज, बालव्यजन. बालमंध्याग. बालिका. बालिनी. बालिश. बाल्य. बाहुल. १२१९ बाहुसंभव. ३३८ बिडाल. १३०१ बिडालक. १०५८ ६८८ बिडौनस्. १३०१ । बिमीतक. ११४० १०६३ बिंदु. बिंब. १४६६ १३९६ बिम्बी. ११८ ६५६ बिल. १०८ बिलेशय. १३० ३५१ बिल्व. बिस. ३०७ बिप्तप्रसून. ११६ बीन. । १५१ ७६९ बीनकोश. १७२ । बीजकोशी. ११३ १०८६ बीजपुष्पिका. ११७ ६६२: बीजपूर. बाष्प. ११०२ बाहुत्राण. बाहुदंनेय. बाहुदा बाहुभूषा. Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका १८५ १२०१ । बीजरूह. बीजवर. बीमसु. | बुलि. ९३७ बुप्स. बीजिन् ११८२ १४०५ ११९ १४३० ४५० १०९७ २९५ ७१० १४०७ बेहित. बृहतीपति. बृहत. बृहत्कुक्षि. बृहद्भानु. बृहन्नट. बेडा. बीज्य. बीभत्स. बीभत्सु. खुकण. बुकस. बुक्का . बुद्ध. बुद्धि. बुद्धींद्रिय. बुबुद. ९३३ ६२३ १४९६ बेर. ८७७ ५६३ ८१५ बेल्व. बोधकर. बोधितरू. बोधिद. बोधिसत्त्व. बोल. १३८४ १०७७ ३४१ २३२ ११३१ १०६३ बौध. rrrrurvv अध्न. बुधित. बुध्न. दुमुक्षा. बुमुक्षित. १४९६ ११२१ ३९३ । ब्रह्मचारि ३९२ । ८०७ Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ ब्रह्मन. ब्रह्मत्व. ब्रह्मदत्त. ९३ । ब्रह्मसुनु. ब्रह्मांनलि. ब्रह्मावर्त. ब्रह्मासन. ब्राम. ब्राह्मण. २१२ ब्राह्मणी. ८३८ ९४९ ८३८ 20609 var ब्रह्मन्. ८११ १२९९ १२०७ १४ १९ ब्राह्मण्य. ब्राह्मतीर्थ. oc ११९६ १०८५ ८५५ ८३९ २४१ ब्राह्मी. . ८४१ C ब्रह्मपादप. ब्रह्मपुत्र. ब्रह्मपुत्री. ब्रह्मबंधु. ब्रह्मबिंदु. ब्रह्मभूय. ब्रह्मयज्ञ. ब्रह्मरात्रि. ब्रह्मरीति. ब्रह्मवर्चस. ब्रह्मवर्धन. ब्रह्मवेदि. ब्रह्मसंभव. ब्रह्मसायुज्य. ब्रह्मसू. ८२१ ८५१ १०४८ ८३८ १०४० म. मक्त. भक्तकार. मक्ति . मक्षक. ३९५ ७२३ ४९६ ३९४ ४२३ ९२१ भक्षण. २३० । भक्ष्यकार. Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका मग, मगंदर. भगवत. १२५० १२१८ ७१८ ३३६ भगवत्यंग. भगिनी. भग्न, भन्नविषाणक. भंग. मंगा. भंगुर. भग्य. मद्र. ४७१ २४ मद्रकुंम. २४३ भद्रकृत. भद्रपर्णी. ५६१ मद्रबाहु. ८०५ भद्रमातुर. १२५९ भद्राकरण. १०७५ मद्रासन. ११७९ भपति. १४५७ भम्भासार. भय. ७४३ भयंकर. ७६३ भयानक. ९३४ ४१२ भयावह. ३३३ । ३३६ मरण. भरणी. ३३५, भरणीभू. od 2 or 2 mm r mm oornaroo .. . 2000 Cror . .. मजमान. ३०२ भट. भटित्र. भर. ३०३ १५०१ मट्टारक. भट्टिनी. भदंत. १०८ १२१ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ মিখালবিনামী ६९२ भरत. ७०२ ३२८ भवनाधीश. भवानी. भवानीगुरु भवांतकृत. भविक. भक्ति २०४ १०२७ ३२८ भविन्. १२९० . ४१२ भविष्णु. भरतपुत्रक. मरद्वाज. मरुज. मरूटक. मरित. मर्ग. मर्तृ. । भर्तृदारक. मतदारिका. भर्मण्या. भर्मन्, Varv०१४ ०१० भषण. ३९९ २ भा. १९५ मसित. भस्त्रा . भस्मन्. ३३३ भाग. भागधेय. १०४४ १२८९ भागीनेय. १२८९ भागीरथी. १९८ भाग्य. १५२८ मांगीन. ९९० माजन ९०८ ८२७ १०० १४३४ ७४५ १३७९ मलुक. मल्लक. भव. भवतु. १३७९ मवन. १०२६ Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २८४ भार्गव. भार्या. भार्यापती. ११९ भाण. मांड. मांडागार, भाद्र. भाद्रपद. भाद्रमातुर. मानवीय. ५१३ १५५ ५१९ भाल. ५४६ भालश. मालुक. भालूक. १९६ १२८९ १२८९ २९५ ३३२ भानु. भाव. भामंडल. भामिनी. ५१० भावना. १३८३ १३७३ मार १४९० . भारती. . . भावित. ८८५ २४१ भावुक. २८५ ६२५ भाषा. भाषित. भाष्य. ३६३ । मास. भारद्वान. मारयष्टि. भारवाह. भारिक. ३३२ २४१ २८५ २४१ २५४ १३३८ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० भास्. भास्कर. भास्वत्. मिक्षा. fas.} भिक्षु. मिक्षुकी. भिक्षुसंघाटी. मित्त. भित्ति, भित्तिका. मिदा. भिदु. भिदुर. भिद्य. भिंदिपाल. भिन्न. मिया. भिल. भिषज्. } अभिधानचिन्तामणौ १०० ९७ ९८ ८१३ ८०९ ६७८ १४३४ १००३ १२९८ १४८८ ८०७ ५३२ मीम. १८० १८० १०९१ ७८५ १४८८ १४६८ मिस्सटा. मिस्सा. ३०१ ९३४ ४७२ भी. भीत. भीति भीरु. भीरुक. भीलुक. भीषण. } भीष्म. भीष्मसू. मुक्तशेषक. मुक्तसमुज्झित. } भुग्न. मुज. भुजकोटर. १९६ ३९९. ३०१ ३६५. ७२. ३०१ २०२ १९५ ७०७. ३६५ १०४. ३६५ ३६५. ३०३. ३०२. १०८१ ८३४ ४२६ १४५९७ १४८३ १८९ ९८९ Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भनग्राम. १४९० १४१४ १२५४ ९३६ २०५ ५९० शब्दानुक्रमणिका मुजग. ९१९ मत. मुनंग. १ १३०३ भुनंगभोजिन्. १३०१ भुजंगम. १३०३ भतघ्न. भूतधात्री. भुमशिरस्. ५८८ भतनायिका. भुजाकट. भतपति. भुनांतर. ६०२ मतयज्ञ. भुजामध्य. भूतात्त. भुजिष्य. भति. भुजिष्या. मुवन. । १३६५ १०६९ भूदार. भदेव. मुव. भूधर, भुविष्. भूध्र. ९३५ भू. १९२६ भूभृत. भकश्यप. २२३ भूमि. भूचन. भमिका. भच्छाया. १४६ । भूमिलेपन. १९९ ८२२ ४९१ ४१२ ८२८ १५१ १२८७ भूतेष्टा. १०२७ १०२७ ६९० भूप. ३२७ १२७२ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ মিখালবিনামগী भूमिस्पृश. AM १२१६ २१० U १४२० भयस्. भूयिष्ट. १४२६ VM Gov २१० CUU १४२६ भरि. भृङ्गारिका. मुंगिन्. भृगिरिटि. भृगिरीटि. भृतक. भृति. भृतिमुज्. भृत्य. भृत्या. भृश. ३६२ ३६१ . ३६० १०४५ १२९० ११४४ १२०३ ६४९ ३८९ भरिमाय. भर्न. भलता. मषण, भष्णु. मस्पृश. भृष्ट भेक. १५०५ ४१२ १३५४ १२७७ भेड. भृकुटि WococGN भेद. भृकुंस. भेरी. भेल. भेषज. २९३ ८७९ ४७२ १४१५ भृगु. भेक्ष. भृग. ३२९ १०३२ १२१२ १३३३ ११८७ ११८७ ७१८ १९८ भृङ्गाज. भृङ्गाराज. भृङ्गार. भैरवी. २०६ भैषज्य. ४७३ Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका भोक्त. भोग. । ५६९ १५१९ १४९१ ५१७ । भ्रमरक. भ्रमरालक. भ्रमासक्त. १३१५ भ्रमि. १३०७ ७९५ १३०३ ५२० ४२४ भ्रातृव्य. १२५३ भ्रात्रीव. १५३७ भ्रांति. भ्रष्ट. भ्रातुर्जाया. ६५० भ्रातृ. मोगावती. भोगावली. भोगिन् भोगिनी. भोजन. मोलि. मोस्. भौती. मौरिक. _श. भ्रकुस. भ्रकुटी. ५४३ س १३७४ १५१९ १०२. भ्राष्ट्र. ३२९ ७२३ १५१७ ३२९ ५७९ १०८८ १७९ ) भृकुटि. भ्र. भृकुंस. भ्रकुटि. - भ्रम. १९७४ १९१९ ३२९ ५७९ ५४० भ्रमर. भ्रेश. Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२१ अभिधानचिन्तामणी १९३० ४७ मंग, मकर. १९३ मंगल. २२९ ७९४ १०७४ ११७० मकरकेतन.. मकरधि. मकरनिधि. मकरंद. मकरराशि.. मकराकर. मकुष्ठक, मक्षिका. मख. मखक्रिया. मखासुहृद्. मगध. मगधेश्वर. मघवत. मंगलपाठक. मंगला. मंगल्यक. मंगश्या. मंगिनी. मचर्चिका. मज्जकृत्. ८७६ १४४१ our or orawwar aron o o o o o o orr VVN go w or w ar an मज्जन. ६२८ ११२१ ६२९ मज्जसमुद्भव. मंच. मंचक. मंजरि. मंना. १७४ । ६९२ मघवन्. ११२२ १२७५ ११२२ १०२३ ६६९ १११ मंजीर मघा. मघामव. ११९ मजार Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका मंजु. ७८२ मंजुल. मंजषा. मठ. १४४४ । मंडलाय. १४४४ मंडलाधीश. १०१५ मंडलिन्. मंडहारक. ६९१ मंडित. १३०२ ३२ मणि. मंडूक. १०३८ १३८३ मणिक. मणिकार. मणित. मणिबंध. मणिवक. २०६३ १०२२ ९१० १४०८ १९१ ११२५ मंडर. मत. मतंगन. मतल्लिका. मति. १४४०. ३०८ १२०९ मंड. मस्कुण. मंडन. ३८९ मत्त. मंडप. १२१९ ४३६ १२२० १०१२ मत्तवारण. ... १०७ मत्ता. ७७७ मत्तालंब. मत्तेभगमना. १४११ मत्य. ४१७ मत्सरिन. १०१२ ८९२ ३८ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ मत्स्य. मत्स्यजाल. मत्स्यंडी. मत्स्यराज. मत्स्यवेधन. मत्स्यनाशन. १३३५ मत्स्यबंधनी. ९२९ १३४६ ९२९ ४०९ १०२३ ९.७८ ३१२ १२२३ मथित. मथिन् मथुरा. मद. मदकल, मदकोहल. मदन. मदना मदिरा. मदिरागृह. मदिष्ठा. मदोत्कट. मदुर. } अभिधानचिन्तामणौ } १३४३ ९२९ ४०३ १२२१ १२५९ २२७ ११७१ ९.०३ ९०२ १००१ ९०२ १२२१ १३४७ मद्गुरप्रिया. मद्य. मद्यपंक. मद्यपाशन. मद्यवीज. मद्यमंड. मद्यसंघान. मद्र. मधु. मधुका. मधुकृत्. मधुक्रम. मधुदीप. मधुद्रुम. मधुधूलि. मधुपर्क. मधुमक्षिका. १३४७ ९०२ ९०४ ९०७ ९०९ ९०५ ९०५ ८६ ११२६ १२१३ १५३ २१९ ६९९ ९०२ ११७७ १२१२ ९०६ २२७ ११४१ ४०३ ८३३ १२१३ Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका मधुर, ६९० १३८८ ९७८ मध्यम. १४०१ १४६० ११४१ ५९ १९९८ २२९ मधुरा. मधुवार. मधुष्ठील. मधुसारथि. मधुसिक्थक. मधुसुहृद्. मधुस्त्रवा. मधुसूदनी. मधूक. मधूच्छिष्ट, मधूपन्न. मधूलक. ११८६ ११४१ १२१४ १३८८ २९२ मध्यमा. मध्यमीय. मध्यलोकेश. मध्या . मध्याह. मध्वासव. मनःशिला. मनस. मनस्ताल, मनाग. मनित. मनीषा. मनीषिन्, मनुज, मनुष्य. मनोगुप्ता. ६८९ ५९३ १३९ ९०४ १०५९ १३६९ २०६ १५३६ १४९६ ३०८ ३४१ ३३७ ३३७ १०५९ मध्य. १४०२ ८७४ १४१० मध्यदेश. मध्यंदिन. Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ १२१ १९८ मनोजवस. मनोज्ञ. मनोयोनि. मनोरथ. मनोरम, मनोहत. मनोहर. मनोहा. १४४५ २२९ । मंद. ४३० ३५२ ३५३ ३८४ ४९५ मंदर. १०३० م १०८१ मंतु. ه س मंत्र. । ११४१ १७९ ه मंदगामिन्. ४३९ १४४४ १०६० मंदाकिनी. मंदाक्ष. ७३५ मंदार. १०९९ ७३३ ७१९ मंदुरा. १०२३ मंदोदरीसुत. मंदोष्ण, १०२२ मंद्र. १४२९ ४९५ मन्मथ. १०२३ मन्या. मंदिर. । मंत्रजिह्व. मंत्रविद्, मंत्रिन्. मंथ. ९९० ع م ९९८ ل मंथदंडक. मंथनी. १०२३ १३८६ १४०२ १४०९ २२७ ५८७ मंथर. मंथान. Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्यु. ८९ मन्वंतर. ७०७ ममता. मय. शब्दानुक्रमणिका २९९ । | मरुत ८२० मरुत्पथ. २५२ । मरुत्पुत्र. मरुत्वत्. १२५४ मरुदेवा. १९४ मरुद्रय. ११७४ मरुप्रिय. मरुल. १३१९ १०५२ मर्कटक. मर्कटास्य. १०६४ मर्त्य. ११२७ मर्मर, ४१९ मर्मस्पृश्. मयु. मयुष्टक. मयूख. मयूर. मयूरक. मरक. मरकत. ७५२ १२५३ मर्कट, १२९१ ११९७ १२११ १०४० मरंद. मरिच. मरीचि. मरीचिका. मरीचिप्रमुख. मरीस. मरु. } १०१ १२४ १२७८ ९४० । मल. ९५७ १४०५ ५०१ ९.२ ७४४ १०७७ ६३१ ८५८ १०४९ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० अभिधानचिन्तामणौ मलय. मलयज. मलयु. ११५३ ८१० १०२९ | मसूर. मसृण. ११३३ मस्कर. १४३५ मस्करिन्. मस्तक. ६३५ मस्तकस्नेह. मस्तिक. मस्तिष्क. १४३५ मस्तु. मस्तुलुंगक. ६२५ मलिन. मलिनांबु. मलिनी. मलिम्लुच. मलीमप. मल्ल. मला. मलनाग. भलि ३८२ ६२५ ३९६ ६२५ ५८४ १५०८ १४३० २८९ मल्लिका. ११८७ मह. ८५३ २८ महत्. १०२४ महती. महस. १३२६ महाकंद. ११४९ महाकाल. ११३२ महाकाली. महाकुल. ४८४ महागंधा. ४८४ । महागिरि. मल्लिकाक्ष. मल्लिकापुष्प. मशकी. मषिकुपी. मषिधान, मषी. मसी. ११४१ २३९ Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महांग. महाचंड. महाज्वाल, महातमः प्रभा. महातरु महातेजस्. महात्मन्. महादेव. महादेवी. महाधातु. महानट. महानंद. महानस. महानाद. } महानिशा. महापथ. महापद्म. } महाबल. महाबीज्य. महाबोधि शब्दानुक्रमणिका १२५४ महामीरु. १८६ महामत्स्य. ८३६ १३६० ११४० २०९ ३६७ १९८ २०४ ६२० १९८ ७४ ९९८ १२८४ ५७३ १४५ ९८७ १३०९ १९३ ११०७ ६१३ २३२ | महामात्र. } महामानसिका. महामुख. महामृग. महामैत्र. महाम्बुज. महायक्ष. महायज्ञ. महायशस्. महारजत. महारजन. महारस. महाराज. महार्थता. महावस महाबीर. } महाव्रतिन् . महाशय. · ૨૦:૨ १२०८ १३४८ ७२० ७६२ २४० १३४९ १२१७ २३५ ८७१ ४ १ ८२२ ५० १०४३ ११५९ ४१. ५९४ ६६ १३५० ३० ८३६ १९७ ३६७ Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ अभिधानचिन्तामणौ ९७३ - ४२० ११८६ १९३९ २२६ १२२ महिष. महाशय्या. ७१६ । महाशाली. ११६९ । महोदय. महाशिरःसमुद्भव. ६९६ महाशुद्री. ५२२ महोरग. महासेन. महौषध. २०८ महास्नायु. मा. . महिमन्. महिला. मांसकारिन्. ५०४ ४७ मांस. मांसन. महिषध्वन. महिषमथनी. मांसतेजस्. २०५ मांसपित्त. महिषी. ५२० मांसल. मही. मांसिक. महीक्षित. १९. महेच्छ. ३६७ माक्षिक. महेश्वर. १९८ मागध. महेश्वरी. १०४८ महोक्ष. १२५८ मागधी. महोत्पल. १२८१ ६२२ V ६२४ ६२६ ४४९ 0 १०५५ १२१४ ८९८ Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २०३ माघ. मांनिष्ठ. १३९० मातुलानी. माठर. मातुली. मानुलुग मातृ. ५२३ ११७९ ५२३ ११५० २०१ ६५७ २०३ ३५२ ३५२ ५४५ माठी. मादि माणव. माणवक. माणव्य. माणिक्या. माणिमंथ. ११२४ ६६० १४९९ १२९८ मातृमात मातृमुख. मातृशासित. मातृष्वसेय. मातृष्वस्त्रीय. मात्र. मात्रा, १२१७ سم मातंग. Amnococ moc سم १४२७ १५३ २१५ माधव. ९३३ ५६० माधवक. १०४ ११७७ मातरपितर. मातरिश्वन. मातलि. मातापितर. माधवी. ११४७ माधुर्य. १०९ मातामह ५६० माधुमत. ५५७ माध्यंदिन, ५५२ । माध्यम. १४६० मातुल. Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ अभिधानचिन्तामणौ माध्वीक. . मान. मानव. m मानवी. r oc moc c २४० मानस. मानसी. मानसौकस. मानुष. मानुष्यक. मांद्य. मांधातृ. ९०३ , मारजित. २३५ ३१७ मारि. ३२५ ४० मारिवारक. मारुत. ११०७ मारुति मार्कव. ११८७ १३२५ मार्ग ३३७ ९८३ मार्गण. ३८८ ४६२ ७७८ मार्गशीर्ष. ३७ मार्गशीर्षी. १५० मार्मित. १४९१ ९२५ मा. ९२५ मार्जन. ११५९ २३७ मार्जना ३७७ मार्जार. मार्जारकर्णिका. २०६ १४१५ मानिता. ४०३ २२७ मतद ___ ३७२ । माड. माया. मायाकार. मायासुत. मायिन्. मायु. मायूर.. मार. } Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २०५ मार्दगिक. मार्ष. माटि. ९२४ । मासुरी. ३३३ मास्म. माहिष्य. माहेंद्रन. माहेयी. ५८३ १५३९ ८९. माल. ११४७ मितद्रु. मालती. मातातीरज. मालतीतीरज. मालव. १२६५ १०७३ ३६७ ९४४ मितंपच. ९५६ ६५१ माला. १४२३ ९०० . मिथसू. मालाकार. मालिक. मालिनी. मालूर. माल्य. माल्यवत्. माष. माषक. • माषीण. माध्य माम. मासर मित्र, ७३० ७३२ मित्रयु. मित्रवत्सल. ४८९ मिथःसाकांक्षता. ६७ १५३५ मिथिला. मिथुन. ५३८ मिथ्या. १९३४ मिथ्यात्व. मिथ्याभियोग. २६८ मिध्यामति.. १३७४ मिष. १०२९ ९६७ ९६७ १५२ ३९६ ३७८ Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ मिश्र. मिहिका, मिहिर. १४६९ । मुक्तावली. १२१८ । मुक्तास्फोट. १०७२ मुक्तास्त्रज, मुक्ताहार. १४९५ मुक्ति . १२०४ ६५८ ६५८ मीद. मीन. मीनकेतन. मुख. ५७२ ९८२ १.५० मीमांसा मीलित. मुकुट. १३९१ १३३७ ६५० २२९ २५१ मुखयंत्रण. २५३ मुखर. ११२९ मुखवासन. मुख विष्ठा. १९३ मुखशोधन. २१५ मुखसंभव. मुख्य. ११२६ मुचुटी. १३१२ मुंज. १०६८ | मुंजके शिन् ~ मुकुंद. १४३८ मुकुर. मुकुल. मुक्तनिर्मोक. मुक्ता . मुक्ताकलाप. मुक्ताप्रालम्ब. मुक्ताफल. मुक्तामुक्त. मुक्तालता. ११९२ २१७ ४५८ मुड ६५८ १०६८ मुंडक. ७७४ मुंडन, ६५८ मुण्डा, ९२३ ५३२ Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका मुंडित मुदिर, ४५८ मुत. मुत. } मुष्कवंक्षण. मुष्टि. मुष्टिक. मुसटो. मुसल. मुसलिन्. १३ ५९७ ९०८ ११७७ १०१७ २२४ १२९७ ११९९ मुद्. मुद्गर. मुद्रित. ११२९ मुधा. मुनि. १५३४ मुस्तक. मुस्ता . मुस्तु. मुहुस्. १९७ १५३१ १३७ ३४९ मुनिसुव्रत. २८ मूक. ३५२ मुनिस्थान. मुनींद्र मुमुक्षु. २३५ ४७० मुर. मुरम. मुरण्ड. मुषित. मुष्क. मुष्कर. १००१ मूढ. मूत्र. मूत्रकृच्छ्र. २२० मूत्रपुट. २९३ मूत्राशय. ९६० मत्रित. १४८३ मूर्ख. मो . ४५७ । मर्चील. . १४९५ ३५२ ८०१ Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ अभिधानचिन्तामणौ मूञ्छित. १०५२ मूर्त. ४६१ मूषातुत्थ. मुषिक, मूषित. १४४९ १.४८३ मूर्ति. मूर्तिमत. १४४९ मृग, मर्धन्. मर्धवेष्टन. मर्धाभिषिक्त, मूर्धावसिक्त. १२१८ १२९३ ९२८ १०१ १२८० १२९० ६४४ मृगजालिका. मृगतृष्णा. मृगदंश. मृधूतक. नृगनाभि. मृगनाभिजा. मृगपति. मृगमद ११२१ मलक. १९८४ و ११८३ ११९० ११९८ १४९८ १२०० ६२० ३६२ मूल कर्म, मूरज. मूलधातु. س मृगया. in w 9 o dd ا ८ ८ ६GAccc لم ९२७ मूल्य. मृगयु. मृगवधाजीविन्. मृगव्या. मृगशिरम.. मृगशीर्ष. له मषक. मूषा. १३०० ९०८ १०१ Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगाक्षी. मृगादन. मृगारि. मृगित. मृगेन्द्रासन. मृजा. मृड. मृडानी. मृणालिनी. } मृत. मृतक. मृतस्नान. मृतस्त्र मोक्त. मृति मृत्. मृत्तिका. मृत्यु. मृत्युंजय. मृत्ला. मृत्स्ना. } शब्दानुक्रमणिका ५०६ १२८५ १२८४ १४९१ ६ १ ६३६ १९७ २० ११६० ३७४ ८६६ ५६५ ३.७५ ७ १३ ३२३ ९४ ९४ १८४ ३.२३ १६६ ९४० ९४० ० मृदङ्कर. मृदङ्ग. मृदाह्वया. मृदु मृदुच्छद. मृदुल. मृदुलोमक. मृदङ्ग मृद्वीका. मृधू. मृषा. मृष्ट. मेखला. मेखलाद्रिना. मेघ. मेचकाल मेघगंभीरघोषत्व } मेघनाद. } २०९ १३४१ २९३ १०५३ १३८७ ११४४ १३८७ १२९९ १०४२ ११५६ ७९६ ११३४ १४३७ १०३३ ૪ १०८३ ३६ १६४ १९७ ६५ १८८ १ १८४ ७०६ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० अभिधान चिन्तामणी मेघनामन्. मेघपुष्प. मेघमाला. <५: मेघवत्. मेघवह्नि. मेघवाहन. मेघसुहृद्. मेघाख्यं. मेघागम. ११९३ | मेदोज. १०१९ मेध. मेधा. मेधाजित, मेधाविन्. ३४६ १७१ मेधि. १३१९ मेध्य. ११३८ १०५१ मेनकाप्राणेश. १०२५ १६७ मेनाद्रिना. १३९० मेरक. १९९ १३९७ १०३१ १५०८ १२७६ मेष. १२७६ मेषशृंग. ११९७ ९०४ मेषी. १२७७ मेह. ६२४ ६३३ मेचक. मेह. मेलक. मेह, मेण्ढक. मेतार्य. ३२ मेथि. भेदक. मेदसू. ६ १९ मेहन. मेदस्कृत. मेदस्तेजस्. मेदिनी. मैत्र. ८१३ मैत्रावरुण. मेदुर. ९३७ ४७६ मैत्रावरुणि. Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैत्री. मैथिली. मैथुन. मैनाक. मैनाकस्व. मैन्द. मैरेय. मोक्ष. मोक्षोपाय. मोघ. मोचक. मोचा. मोट्टायित. मोद. मोरट. मोह. मोहन. मौकुलि, मौक्तिक. } } शब्दानुक्रमणिका ११३ मोठ्य ७३१ ७०३ ५३८ १०२८ म. २०४ २२० मौर्वी. ९०४ ७५ १११६ ११३४ ११३६ ५०८ ३१६ ११९४ ३१२ ३२.० ८०१ ५३६ १३२२ १०६८ मौद्गोन. मौन मौर जिक मौर्यपुत्र. मौलि. } मौहूर्तिक. प्रक्षण. म्लान, मिलष्ट. म्लेच्छ. म्लेच्छकन्द. म्लेच्छमुख. यकृत् यक्ष. यक्षकर्दम. य. ३२० ९६६ ९२४ ३१२ ३२ ७७ ૧૧ ६५१ ४८२ ४१६ १४३५ २६६ १०४० ११८० १०३९ ६०४ ९१ १८९ १९४ ६३९ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ अभिधानचिन्तामणी 0000 w यक्षधूप. यक्षनायक. যাহা यक्षेश्वर. यक्ष्मन. यजपान. यजुर्वित् यमुष्. यज्ञ. यज्ञकाल. यज्ञपुरुष. यज्ञशेष. यज्ञसूत्र. यज्ञांत. यज्ञिय. यज्वन्. यत. यतस्. यति. } ६४७ । वतिन् यथाकामिन्. ३९५ यत्रकामावसायिस्व. २०२ यथाजात. ३५२ १९० यथातथम्. ४६३ यथार्हवर्ण. ७३३ ८१७ यथास्थित. २६५ ८१९ यथेप्सित. १५०५ ०४९ यदि. १५४२ ८२० यदुनाथ. २१९ १४८ यदृच्छा . २१४ १५३७ ८३४ यद्भविष्य. ८४५ यद्वद. यद. c ८ م ० . c यंत. यत. س ७६२ م. س १२३१ यन्त्रक. यंत्र गृह. यंत्रणी. रन्त्रमुक्त. ९९७ ५५५ ७७४ ४३८ २ ०९ । यात्रत. Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका यम. १०४१ ११९५. ३९७. ९४३ ५५२ ام و २९३. ३७४. २१९ م ه १८२ । यवनेष्ट. यवत. यवागू. १५२४ यवाप्रज. १०८ यविष्ट. १०८३ यवीयसू. १८५ यय. १४२४ यशःपटह. यशःशेष. १२८१ यशस्. १०८३ यशोधर. १०८३ ९५ यशोभद्र. २२४ यष्टि. १२४३ यष्ट. ११७० या. याग, याचक. ४२० याचनक. ११७८. याचना. याचित. ११५३ | याचितक. यमदेवता. यमभगिनी. यमराज. यमल. यमलार्जुन. यमवाहन. यमी. यमुना. यमुनाजनक. यमुनाभिद्. ययु, यव यवक्य, यवक्षार. यवनप्रिय. यवनाल. यवनाल्न. यवफल. aw a 99 or m vor irr م س ९४३ ८२० ३८७. ३८८ AmA Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ अभिधानचिन्तामणी याचा. १४४२ ७५८ -G m १४२४ १४२ ८१८ याज. याजक. याज्ञवक. याज्ञसेनी. यात. यातन. यातना. यातयाम. यातु. यातुधान. यात. यास्य. यात्रा. यादापति. यादईश. यादस्. यादोनिवास. याव. ३८८ याप्य. ३९५ याप्ययान. याम. यामक. यामल. १२३१ यामिनी. १३५८ यामुन. १४१३ याम्या. ३४० यायजुक. १८७ यावक. ११४ याष्टीक. १३५८ युक्त. ७९० युग, १८८ १०७३ युगकीलक. १३४८ युगंधर. युगपत्र. युगपार्श्वग. युगल. ८७५ । युगांत. ७५७ / युग्म, ११७५ ७७१ ७४३ ar.११ १४२४ ७५७ ७५६ ११६२ १२६० १४२३ ५९ यान. यानपात्र. यानमुख. १४२४ Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २१० युग्य. ७५९ । योगवाहिन. १२६१ योगेष्ट. योगेश ७९६ ७९६ योग्या. योग्यारथ. युद्ध. युद्धानिवर्तिन. युध् युधिष्ठिर. युवति. युवनाश्वज. युवन्. १०४१ ८५१ ७८८ ७५२ <<< ८४८ योजन. योजनगन्धा. योजनगामिनी. योत्र. योद्ध. ८९३ ७६३ ७०७ ५११ ७०० ३३९ ४०४ १२०८ १४१२ १२२० १२२० ११४८ ८२४ यूका. यूग. यूथनाथ. यूथपति. यूथिका. यूप. यूपकर्ण. योध. योनल. ११७८ ६०९ योनि. - योनिदेवता. योषा. योषित ५०४ ८२५ यूष. योक्त्र. ४०४ ८९३ ७६ POWc. योग. योग यौ क. यौवत. यौवन. १४१५ १६ - Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८७ ७०६ ८२८ १४९७ रङ्क. ग अभिधान चिन्तामणी | रक्तोत्पल ४९४ । रक्षम. ६४५ | रक्षईश. रक्त. रक्षा १०३९ रक्षित. १३९५ रक्तद. रक्षोन्न. रक्तचंदन. रक्ष्ण रक्ततुंड. १३३५ रक्ततनाम ६२२ रक्तपुच्छिका. १२९९ रंगमातृ रक्तफला. ११८ रंगाजीव रक्तफेनन. रक्तभव ६२२ रंगावतारक. रक्तलोचन. रक्तवसन. रचना. रक्तशालि. ११६९ रक्तश्याम. १३९८ रजक. रक्तसंध्यक. रजत. रक्तसरोरुह. ११६२ रक्ताक्ष. १२८३ रजताद्रि, रक्तांक. १०६६ । रजनी. १५२३ १२९३ २८२ ६८५ ३२८ ९२१ ३२८ १४९९ or cry ९१, १०४३ १०४५ १०२८ १४२ Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१७ रजस् १०७४ १०७४ रजस्वल. रजस्वला. रन्जु. रंजन. शब्दानुक्रमणिका ५३६ । रत्नगर्मा. ९७० रत्नधि, १२८२ रत्ननिधि. रत्नप्रभा. ९२८ रत्नगशि. रत्नसानु. रत्नसू. १४०० । रत्नाकर. १०७४ १०३२ ९३७ १०७४ रत्नि . ५९९ ७९९ रथ. रणरणक. रणसङ्कल. रत. रतकील. रतत्रण. रतशायिन्, रतान्दुका. ७५१ ११३७ १४२२ १२८० स्थकट्या. १२८० रयकारक १२८० रथकुटुंबिक. १२८० रथकृत. २९५ रथगर्मक. स्थगुप्ति स्यद्रुम. २२९ रथपाद १०६३ रथारोहिन्. १०६५ स्थांग. १८९ । रथांगाह्व. O v११, ur or or रति. ११४२ रत्न. रत्नमुख्य. रखकर. Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૮ रथिक. रथिन्. रथि. रथ्य. रथ्या. रद. रदन. रदच्छद. रंध. रमण. रमणी. रमा. रंभा. रम्य. रय. रल्लक. रव } } अभिधानचिन्तामणौ ७६१ ७६१ ६ १ १२३४ ९८१ १४२२ ५८३ ९८४ ५८१ १३६३ ५१७ रवण. ६७० १४०० रवि. रश्मि . रश्मिकलाप. रस. ५०५ २२६ ११३६ १४०६ रसक. १४४५ रसगर्म. ४९४ रसज. १०८७ } रसज्ञा. रसज्येष्ठ. रसले मस्. } १२९४ ६४८ १०४९ ९५ ९९ १२५२ ६९९ २९९ ६१९ ४०४ ३२७. ६२० १३८९. १०५० ११९१. ४१३. १०५३ १३५० १८१. १३८८ २१ Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका . राक्षस. १९ १२८० ___९१ ६८९ १८७ राक्षा. . राग. २९६ २१९ ६७० ९९८ ९४४ ९३७ राइव. रसना. रसनानिह. रसनेत्रिका. रसभव, रसवती. रसशोधन. रसा. रसातल. रसादान. रसायन. रसाल. रसाला. रसित. रसोद्भव. रसोन. राज्. राजक. राजदंत. राजधानी. ३९४ ४०९ ११९४ ४०३ so s dvar mv१ . 9000 राजन्. १०५ १९४ ८१३ १४१७ रहस्. ११८३ राजन्य. रानन्यक. ___ ७४१ राजपट्ट. १९३८ राजपुत्रक. राजबीजिन्. १४९ राजमुद्. ५३६ | राजयक्ष्मन्. १४१७ रहस्य. ७४२ राका. ११७४ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणी ७१२ । ७१३ ९८७ १२२२ रात्रिजागर. रात्रिचर. राद्ध. राद्धान्त. राघ राधा. राधातनय. राधावेधिन्. १२७९ १८७ ४१२ २४२ १५३ राजर्षि. राजवंश्य. राजवमन. राजवाह्य. रानशय्या राजशृंग. राजसपे. राजसर्षप. राजहंस. राजादन. राजाई. राजावत. राजि. राजिका. रानिल. राजीव. राज्ञी. राज्यांग. राटि. राढा. रात्रि. रात्रिचर, १३४७ १३०४ ११८ १३२६ ११४२ ६४० राम. ७०९ १३९७ ८४८ २२४ ६९८ ७०३ ४२२ . १४२३ - CC रामठ. १३०५ ११६१ १०४८ रामा. रांम. ५०५ ८१५ शल. C ७९८ . १५१२ १४१ १८७ रावण रावणि. राशि. . Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राष्ट्र. राष्ट्रीय. रासभ. राहु. राहुप्रास. राहुलसू. रिक्तक. रिक्थ. रिक्षा. रिखण रिद्ध. रिपु. रिी. रिष्टताति. रिष्टि. रीढक. रीवा. रीण. रीति. } } } शब्दानुक्रमणिका ७१४ ९४७ ३३३ १२५६ रुक्म. रुक्मिभिद्. रुग्ण. रुच्. २३७ रुचक्र. १४४६ रुचि, १९१ १२०८ रुचिर. १५२२ रुच्य. १२१ २२० १२५ रीतिपुष्प. रीरी. रुक्प्रतिक्रिया. ११८३ ७२८ १४०८ रुज्. रुजा. ४८९ ७८२ ६०१ रुंड. १४७९ रुत. १४९६ रुदित. १३७६ रुद्ध. १०४८ रुद्र. } } ૨૧૩ १०१४ १४०८ ४७३ १०४३ २२४ १४८३ १०० ९४३ ९९ ३९३ १४४४ ५१७ १४४४ ४ ६२ ६० ४६२ १२७७ ५६५ १४०७ १४०२ १४७६ १९५ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૨૨ अभिधानचिन्तामणी २०३ ६२९ १४४२ रुद्रतनय. रुद्राणी. रुधिर. रुमा. रुपाभव. रुरु. रुशती. रुषा. १२० २२१ १०३ रेवन्त. ६९५ | रेतस्. रेफ. ६२१ रेवती. ९४१ । रेवतीभव. ९४२ रेवतीश. १२९३ २७३ २९९ २९९ । ११९३ रै (राः) १११४ रैवतक. १३७६ रेवा. रेषण. रेषा. १४०७ रुहा. रुक्ष. १९१ १०४३ १०३१ रूपतत्त्व. रूपाजीवा. रोक. रोग. रूप्य. १०४६ १०४५ १०४३ १४८३ १५३७ १२४८ रोगहारिन् रोचक. रोचन. रोचनी. ४७२ ३९३ ४४५ १०६० रूषित. रोचिष्. ९९ रेचित. रेणु. रेणुकासुत. रोचिष्णु. ४४५ ८४८ रोदन. Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २२ रोदसी. } रोहिणी. रोधस् रोधोवक्रा. ९३९ । १५२६ १०७७ १०७९ ११५९ १०९ २३९ रोघ्र. रोहिणीपति. रोहिणीसुत. १०४ रोहित. १३९५ १२९४ १३४६ रोप. रोम. रोमगुच्छ, रोमन्. रोमलता. रोमविकार. रोमश. am. रोहिताश्व. रोच्य. ८१५ १५६ रौद्र. १२७६ २९४ रोमहर्षण. | रौद्री. ३०५ रोमाञ्च. रोमावली, रोमोद्गम. रोमक. रौहिणेय. ११० ९४२ २२४ रोहिष. रोलंब. } १२९४ रोष. शेषण. रोह १२१२ २९९ ३९१ १११८ । लक्ष. ७७७ रोहणदुम. - Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ लक्षण. लक्ष्मण. लक्ष्मणा. लक्ष्मन्. लक्ष्मी. लक्ष्मीपुष्प. लक्ष्मीवत्. लक्ष्य. लगुड. लग्न. लग्नक. लघिमन्. } } लघु. लघुहस्त. } अभिधानचिन्तामणी १०६ १३७६ ३५७ ७०४ १३२८ ३९ १३२९ लङ्केश. लड्डून. लज्जा. लज्जाशील. बज्जिका. लज्जित. १०६ २२६ ३५७ १५१२ लट्ठा. १०६४ कृता. ३५७ लपन. ७७७ लब्ध. ७८५ लब्धवर्ण. ११६ लभ्य. ८८२ लम्पाक. २०२ | लम्बिका. १४२७ लम्बोदर. १४७० लम्भन. ७७२ य्य. दञ्च. लञ्जिका. } } } ६९९ ७०६ ४७३ १२४८ ३११ ३९० ५३३ १४८४ ७३७ ५३३ १११९ १११७ ११४७ ५७२ १४९० ३४१ ७४३ ९६० १८५ २०७ १५२० २९२ Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ललन. कलना. छलंतिका. ललाट. ललाटिका. ललामक, ललित. लव. लवङ्ग. लवण वणवारि. लवन. लवित्र. लघुन. लस्तक. लहरी. लाक्षा. } } शब्दानुक्रमणिका १९६ लागल. १०१ ६५७ लाङ्गली. ५७३ लाङ्गलिक. १२३६ ६५५ ६५२ ५०८ ७०४ १३६ १५२१ १४२.७ ६४६ १३८८ ९४१ १०७५ ८९२ ११८६ लाङ्गल. a छाजा. ७७५ १०७६ ६८५ लाञ्छन. टान्तकज. लाभ. लावण. ११२१ लास्य. दिक्षा. लिंग. लाभान्तराय. लालसा. लाला. लालाविष. लालास्राव. लालिक. } लिंगवृत्ति, लिपि. लिपिकर. . २२५ ८९० १२८८ ११५१ ११९९ १२४४ ४०१ १०६ ९३ ८६१ ७२ ५४१ ६३३ १३१३ १२११ १२८३ ४११ २८० १२०८ ६१० ८५६ ४८४ ४८४ Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ अभिधामचिन्तामणी लिप्त. लिप्तक. लिप्सा. १३६ १४२७ लेष्टु. लिप्सु. लिवि. १४८३ ७७९ ४३० ४२९ ४८४ ५०७ ४१३ ४२४ ५०१ १३१५ लीला. WO० कुठित. कुब्ध. लुब्धक. ठुलाय. लुलित. लूता. १२४५ ४२९ ९२७ १२८२ २४८ २१३ लेहन. लोक. लोकनित. लोकबिंदुसार. लोकालोक. लोकेश. लोचन. लोध्र. लोपाक. लोपामुद्रा. लोत्रं. लोम. लोभ्य. लोमकर्ण. लोमन्. लोमपादपुर. लोमविष. ६७५ ११५९ १२९१ १२११ १४८२ १२४४ १३१२ लन. लमन्. लमविष. लेख. लेखक. लेखा. लेप्यकृत. लेलिहान. ३८३ ४३० ११७२ १२९६ ६३० .९७७ १३१३ १४२३ ९२२ १३०४ Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૭ लोमहत. शकदानुक्रमणिका १०५९ | लोकायतिक. लाहलमण. लौहोत्तम. लोल. लोला. ९४४ १०४४ लोलुप. ११५३ . लोलुभ. लोष्टभेदन. लोष्टु 2000 vour १० वंश. लोह. लोहकार. लोहन. लोहपृष्ठ. و १०३ वंशक्षीरिन्. ११५४ वंशत्रिक. १०५८ वंशरोचना. ११५४ वंशानुवंशचरित. २५२ वंशिक, वश्य. ७१३ वक्तृ. ३४३ वक्त्र , ५७२ वक्त्रमेदिन, १०८८ १०३७ १०३९ ९२० १०४९ १३३४ ३४९ ७८९ लोहल. लोहाभिसार. लोहित. वक्र. १३९५ वक्रबालधि. वक्रय. ११६ । वक्राङ्ग. लोहितक. लोहितचंदन. लोहितांग. १२७८ १३२५ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ अभिधानचिन्तामणी वति . १२६९. ११३२ ४०० .१९४ क्टु. वक्रोष्ठिका. २९७ | वंचक. वक्षस्. वंचन, वंचित. वक्षण. ६१३ वंजुल. १०४९ वंजुला. वङ्ग. ९५७ वट. १०४२ वटक. बङ्गारि. १०५९ वटवासिन्. वचन. २४१ पटिन्. वचनीयता. २७० वचस्. २४१ क्ट्रकरण. १८० वडवा. वन. वडवामुख. १ ४८ ११४० वडवासुत. वज्राण्टक. वडिश. वज्रतुंड. २३१ वणिग्मार्ग. वज्रदर्शन. १३०० वणिज्. वज्रपर्यायनामन. १०६५ वणिन्या. वज्रशृंखला. २३९ वजिजित्. २३१ । वज्रिन. १७१ वण्ड. ९२८ ८१३ ८१४ १२३३. १३६२. ११०० १८१ ९२९ ९८८ ७०५ ८१७ ८९२ वंट. १४३४ Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ - वत्स, बत्सकामा. वत्सतर. वत्सनाम. वत्सपत्तन. वत्सर. वत्सरादि. वत्सल. वत्सला. वत्सादनी. वद. वदन. वदन्य. पदान्या. वदावद. बद्धी. वध. शब्दानुक्रमणिका २१९ १११० १०६९ १२७१ वनगव. १२८६ १२६० वनप्रिय, १३२१ ११९ वनमालिन्. २१७ वनवह्नि. ११०१ १५८ वनव्रीहि. ११७६ १५२ वनस्पति. ४७८ वनाज. १२७८ १२७१ वनाश्रय. ११५७ वनिता. ५०३ वनीपक. ६७२ वनौकस्. १२९२ ३५१ वन्दनमालिका. १००८ वन्दारु. वन्ध्य . वन्ध्या . १२६६ वपन. ९२३. वपनी. १००० वपा. पांतर. १३६४ ११२ । वपुस्. वधू. . ६२४ वधूटी. Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० अभिधानचिन्तामणौ वप्त. ६५ १२१५ वरटा. बप्र. वरण. ९८० १०४१ . ९८० वरत्रा. १२३२ वप्रत्रय. वप्रा. वनीकूट. ४० ९७१ ४६९ १२३ ८५२ वमथू. वरद. वरप्रदा. वररुचि. वरयितृ. वरला. वरवर्णिनी. वरांग. वमन. वमि. चम्री. CC १३२७ ४१८ ४६९ ४६९ १२०८ ५६५ १३१६ ३३९ 2000 वयस. वराटक. वयस्थ. वयस्य. वयस्या. ११६५ १२०६ ९२८ ९७४ १०६५ ५२९ १४३९ १९२३ वराणसी. वरारक. वराशि. वराह. वर. वरिष्ठ. .१९८७ १०४० १४३० वरक्रतु. Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २३१ वरुट. ८०८ १०५० वरुण. ९३४ ] वर्णिन १८८ | वर्तक. ४३ | वर्तन. ७५८ वर्तनी. वर्तलोह. १४३८ वरूथ. वरूथिनी. वरेण्य. ९८३ १०५० ६३९ वर्ति. वर्कर. १२७६ १४१३ वर्ग. वर्चस्. पर्तिष्णु. वर्तुल. वमन्. वर्द्धकि. वर्द्धन. ३८९ १४६७ ९८३ ९१७ ३७२ १०१६ ६३४ ६३४ ३७२ वर्चस्क. वर्जन. वर्द्धनी. वर्ण. वर्धमान. १.२४ १०४१ धे ८१२ ६ १३९२ वर्णन्येष्ठ वर्णना. वर्णपदवाक्य विविक्तता. ७१ वर्णा. वर्णिनी. ५०४ वर्मन. वर्मित. १४३८ ५११ १२१४ वर्वणा. - Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ अभिधानचिन्तामणौ १५९ | वलियत. । वर्ष १२४५ १२४७ १४४४ १३३७ ४२३ वल्गु. वल्गुलिका. वल्मन. वल्मीक. १२१६ ९७० ११७४ २८८ वर्षकरी. वर्षण. वर्षधराद्यक. वर्षपाकिन् वर्षवर. वर्षा. वर्षाभू. वर्षीयस्. वर्मन्. वलक्ष. वलभी. वलय. वलयित. वलिर. वलीक. वल्क. वल्कल. वल्गा . वल्ल. ७२८ वल्लकी. १५७ वल्लभा. १३५४ वल्लरी. वल्लव. १३९३ वल्ली. १०११ वल्लूर. वल्वजा. १४७४ वश. ४५८ वशक्रिया. १०११ ११२१ । वशा. ११२२ ७२३ ८८९ १११८ ६२४ ११९४ ४३० १४९८ १२६॥ ५०४ १२१८ . १२५२ । वशिक. Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ হাসিক २३३ चशिता. वशिर. वशिष्ट पश्य. २०२ ९४१ ६९७ २२३ ११४ वषट् roo वषट्कार. वप्तति. १५३८ ८२१ ९९१ वसुदेव. । वसुदेवता. वसुदेवभू. वसुधा. वसुंधरा. वसुपूज्य. वसुमती. वस्त. वस्ति . वस्तिमल. वस्तुक. वस्त्र. वस्न. वस्त्रप्ता. वस्वोकसारा. ९३६ १२७५ वसथ. वसन. वसंत. वसा. ६३३ १२४ ९४२ बसिन्। १३५० १११४ १०४३ ८६८ V . १९१ १२६१ १०९० १९१ वह. ११७२ | वहन. १०९९ वहल. ९४२ । वहा. १४४७ १०८० वसुक. . Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A वहित्रक. वह्नि. वह्निकुमार. वह्निबीज. वह्निरेतस्. वह्निशिख. वयुत्पात. वद्य. वाक्पति. वाक्पारुष्य. वाक्य. वागीश. वागुरा. वागुरिक. वाग्मिन्. वाङ्मुख. वाच. वाचंयम्. वाचस्पति. वाचाट. वाचाल. अभिधानचिन्तामणौ ८७५ १०९७ ९० १०४४ १९७ ६४५ १२६ ७५१ ३४६ ७३८ २४२ ३४६ ९२८ ९२८ ३४६ २६२ २४१ ७६ ११८ ३४७ ३४७ वाचिक. } वाचोयुक्तिपटु. वाच्य. वाज. वाजिन् } वाजिशाला. वाञ्छा. वाट, वाडव. वाडवेय. वाडव्य वाणि वाणिज. } वाणिज्य, } वाणिनी. २८३ २७६ १४* ४३.६ ४९९ १९५ १३१७ ७८१ १२३३ ७५१ ९९८ ४३० ९८२ ८१२ ११०० १२१७ १४१९ ९ १३ ८६७ ८६४ ८६७ ११० Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका .वाणी. वानप्रस्थ. वात. ११०१ वानर. वानस्पत्य. वानायुज, वानीर. वापी. १२९५ १०९३ १४१५ वामदेव. बातकिन्. वातकुंभ. वातप्रमी. बातमृग. वातरोगिन्. बातापिद्विष. वातायन. वाता. वातूल. वात्या. वात्सक. वात्स्यायन. वादाल. वादित्र. वाच. वाघीणत. १०१२ १२९३ ११२१ ११२१ वामन. १७० वामलूर. वामा. वामाक्षी. मान. २८॥ वामी. १२८७ वायव्या. वायस. ९१३ | वायसी. १३२२ वानदंड Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ अमिधामचिन्तामणी वायु. वायु १११० ४८४ ४७४ वायुवाह. वार.. वार्ता. वार. ovo v ७३४ , वारटा. वारण. वारबाण. वारमुख्या . वारयंत्र. चारवधू. वारला. वाराणसी. ११०६ । वार्ड वार्णिक्र. वार्त. १०६९ १५०९ १४११ वार्तायन. १३२७ वार्तावह. १२१७ वार्ताशिन. वार्तिक. वार्द्धक.. १००५ १३३ वार्द्वानी. १३२७ वाद्धि. ९७४ वार्द्धषि. वार्द्धषिक. १०६९ वार्हस्पत्य. १२०४ वाल. वाटक. २०७३ वालधि. १६९ वालपाश्या. वालि. वालिन्. २५६ १४१६ ३४० १०२१ ८८. ८८० वारि. १२२९ ५८ वारिज. वारिवास. बारीश. वारुणी. Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका 'वालक. वालुका. वालुकाप्रमा. -वार्छकी. • वालेय. वाल्मीकि. वाल्हिक. OM १४०७ ९१८ १०८५ ९९५ १३०८ • वाल्हीक. ४२२ वावदुक. • वावृत्त. वाशिष्ट. • वासतेयी. ११९७ । वासम्. १०८९ वासा. वासित. ११८९ १२५६ वासिन्. वासिष्ठी. ९५९ वासोक. वासुकि. वासुदेव. वासुपूज्य. १४८४ वासू वासौकस्. वास्तु. १२१४ वास्तुक. ११७३ वास्तोष्पति. वाख. ११४७ १३७३ वाह. ६३७ वाहन. १३८ वाहरिपु. १७१ वाहस. ८४७ वाहिक. ९९५ ९८९ • वासंत. १७२ ७५४ • वासंतिक. वासंती. - वासना. • वास.योग. वासर. • वास • वासवी. १२३३ ७५९ १२८२ १३०५ ९५९ Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ ঋষিখালবিলী वाहित्य. C N- वाहिनी. v ८५८ ३६५. १२२७ । विकृत. विक. ७४५ विक्रम. ७४८ विक्रय. ७५९ विक्रयिक. १२३५ विक्रयिन. विक्रांत. विक्रायक. विकिया. विक्रुष्ट. १४३० विक्लव ९५८ विख. विगान. ११२८ विग्र. २.९. विक्रेय. वाहा. वाहिकादि. पाहीक. वि. विकच. विकट. विकत्थन. विकणिक. विकर्तन. विकलांग. विकसित. विकस्वर. विकाल. विकासिन. विकिर. विकुर्वाण. विकणिका. (७१ विख्नु. G م: CM V000 ४ . . 20 rrrrrr م م س विग्रह. १३१६ विघस. ४३५ । विन. ५८० / विघ्नेश. ८३४ १५०९. Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মসি विवक्षण. विचकिल. विचर्धिका. विचारणा. ४१४ ११२८ } ४६४ २५१ १३७३ १४७५ विचारित. विजाता. विजिल. विजिविल. विजृमित. विज्जल. विज्ञ. विज्ञान. विज्ञानमातृक. विट. ar.Mor Moon rror.ra विचाल. विचिकित्सा. विचेतस्. विच्छन्द. विच्छित्ति. विजन. विमनन. .. MA... Acc .. १०१५ ५०७ विट. विटंक. ००० १०१० ११२४ विटप. विजय. ४२ विटपिन. विटपाक्षिक. विट्चर. विडे. वितथ. वितरण. १२८१ विजयच्छंद. विजयनंदन. १९४ ०...Via विजया. २०५ । वितर्क. Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० अभिधानचितामणी बितदि. वितस्ति. वितान. १००४ । विद्ध. विद्याप्रवाद. विद्युत्. ८२० विद्युत्प्रिय. १०५२ विद्रधि, १४९३ विद्रव. १४७५ १९१ ११०४ १०४९. ४७१ वितुन्नक. वित्त. विद्रुत. विद्रुम. विद्वस्. विद्वेष. १४८७. १०६६ विदग्ध. विदर. विदर्भ. विदारक. विधवा. १४८८ ९७९ १०८८ १६७ १४९६ ५३० १४९७. विधा. विदिक विदित. विधात. विदिता. विदु २१२: १३७९ २१२ ८३९. १५२० विधि. विदुर. विदुल. विदुरग. विदुषक. विदेह. ११३७ १३९० | विधु. ३३१ विधुतुदः . ९७५ विधुवन . । १२१ १५२२. Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २४१ ४३२ विधूत. विधनन. विधेय.. विनतासूनु. विनयस्थ. विना. ه س विनायक. ४७८ १५०१ १५०१ ३४२ २३६ २४४ १०८६ विपाट्. १४७५ विपणि. १५२२ विपत्ति. विपथ. विपद. विपर्यय. १५२७ विपर्यास. २०७ . २३४ विपश्चित. विपश्यिन. ११२९ विपाकश्रुत. ३१९ विषादिका, विपाशा. विपिन. विपुल. विपुला. १०२९ विप्र. ८९२ विप्रकार. १४७५ विप्रकृत. विप्रकृष्ट. २८७ विप्रतिसार. ८७२ । विप्रयोग. ८६९ १५२० विनिद्र.. विनिद्रत्व. विनिमय. विनियोग. विनीत. विनेय. विन्दु. विध्य. विध्यवासिन्, विन. विपक्ष. विपंची. वि.ण. १०८६ १११० १४३० .८१२ ७२९ १३७८ Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ अभिषामचिन्तामणी विप्रलब्ध. विप्रलंभ. विभ्रम. } १९९२ विप्रलाप. विप्रश्निक. विप्रिय. विपुष्. विप्लव. विधत. विबंध. विबुध. विभव. विमा. विमाकर. 'विभात. विभाव. विभावरी. विभावसु. विमु. विभूति. विभूषा. १९११ १५१९ विभ्रमादिवियुक्तता. .९ २७६ विमनस्. ४८३ विमर्शन. ३२२ ७५४ १०८९ विमल. ८.३ ४३४ विमलाद्रि. १०३० ४७१ विमान. ८९ ८९ विमुद्र. ११२९ १९१ वियत. १०० वियात. ९७ वियोग. १५११ १३९ विरति. १५२२ ३२॥ विरल. १४४७ १४२ विरह. १५११ विरागाह. ४९० ११०० विराटन. विराव. . १४०० २५७ विरिंच. १५१२ | विरिंचन. Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४३ ४३८ विरिचि. विरुवशंसनं. विरूपाक्ष. १९७ विरोक. ७४२ विरोचन. विरोध. विलक्ष. विलक्षण. विलम. १३२५ विवोढ़. विलंबित. शम्दानुक्रमणिका २११ । विवश. २७२ विवस्वत्. विवाद. विवाह, विविक. १०९७ विविध. ७३० विवृताक्ष. विवेक. १४९७ विवोक. २९२ विश १५१९ विशंकट. ५०७ विशद. १४८७ विशरण. विशसन. विशाख. विशाखा. विशाय. विशारण. विशारद. ५०७ विलंम. विलाप. १४२९ १३९२ विलास, विलीन. विपन. विलेपी. विलोम. विवध. विवर. 6. - ० 66 १५०३ विवर्ण. ९३२ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪ माभिधानचिन्तामणौ विशाल. विशालता. विशाला. विशिख. विशिखा. ९८१ विशुद्ध. विशेष, विशेषक. विश. विश्रम्म. विश्राणन. विश्रुत. १.२६ । विश्वंभरा. १४२९ । विश्वरूप. २१५. १४३१ । विश्वरतम्. २१२ ९७६ । विश्वसेन. ११५७ । विश्वस्ता. ७७८ विश्वा. ९३५ ४२० १४३६ । विश्वामित्र. ८५० विश्वास. १५१८ विष. ११९५. विषण्णता. १५१८ विषदर्शनमृत्युक. १३४० विषधर. विषमायुध. २२७. १४३३ विषमोन्नत. १४६८ १३६५ १२८१ १८२ विषयग्राम. १४१४ १८२ विषयि. १३८३. विषसूचक. १३३९ १२२४ विश्व. १३८४ विषय. विश्वकद्रु. विश्वकर्मन. विश्वकृत. विश्वभू. विश्वभेषन. विश्वमर. ४२० | विषाण. १२६४ Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषाद. विषांतक. विषुव. विषुवत. विष्कम. विष्किर. विष्टप. विसंवाद विष्टा. ८३५ विष्टरश्रवस्. আন্তজালিকা २४५ ११२ । विष्वक्. १५२९ १९७ विष्वक्सेन. २११ १४६ विष्वद्यच. ४४४ विष्वाण. ४२४ १०२३ १५१९ १३१६ विसकण्ठिका. १३३३ १३६५ विसर. १४११ १११४ विसर्जन. विसार. १३४४ विस्तारिन्. २१८ ३९० १३५८ विसृत्वर. ३९० विस्मर. ३९० विस्त. ८८४ विस्तर. १४३२ विस्तार. १४३२ ९७९ विस्तीर्ण. ६९८ विस्कार. १४०६ विस्फुलिंग. ११९९ विस्मय २३० । विस्मृत. १४९५ विष्टि. विष्ठा. विष्णु. moc ८५४ विष्णुगुप्त. विष्णुगृह. विष्णुद्विष्. विष्णुपद. विष्णुपदी. विष्णुवाहन. . Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणो "विस्त्र. वीणावाद. विनगंधि. विस्त्रसा. विहग. ४९० विहंग. विहंगम. विहंगिका. विहनन. विहमित. .विहस्त. १३९२ । वीचिमालिन्. १०७३ वीणा. २८७ १०५८ ३४० १२५२ १३१६ १२३१ १३१६ वीतंस. ९३३ १३१६ वीतदंभ. बीतन. ५८७ वीतराग, २९७ १२३३ ३६६ वीतिहोत्र. १०९८ वीथी. १४२३ | बीघ्र, वीति. विहायसू. १३१६ विहायसा. विहायित. १०९२ विहार. १५०० ९९४ विहृत. ५०८ २९४ विह्वल. वीक्षापन्न. वीवा. वीचि. ४३३ वीरजयंतिका. १५०० वोरणीमूल. १०७५ । वीरपत्नी. २८१ ११५८ ५१५ Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका वीरपाणक. वीरमार्या. वीरमातृ. वीरविष्ठावक. ९१९. १११३ ८०२ | वृक्षभेदिन. ५१५ । वृक्षवाटी. ९५८ वृक्षादन. वृक्षाम्ल. ५५८ वृजिन. वीरसू. १३८॥ १४६७. १४८४ ८०१ वृत. वीरहन्. वीराशंसन. वीरुध. वीरोजा. वीरोपजीविक. ८६० ) १५२३ १२९ वृत्ताध्ययनद्धि. ८३८ वृत्तांत. वीर्य. वीर्यप्रवाद. वीपष. दृक. वृकधूप. वृका. वृकोदर, वृषण. ३६५ १२९१ वृत्ति. ६२३ वृत्र. | वृथा. १५३४ ३३९. १४९० १११४ वृक्ष. वृद्ध. वृद्धकाक. वृद्धनामि. वृद्धश्रवसस्. ४५८ वृक्षधुप. वृक्षमिद. ९१८ Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ अभिधानचिन्तामणी ४७० १०९८ | वृषाकपि. । वृषांक. वृषी. ८८७ १२५८ ११२७ १९५ ८१६ १२६६ वृद्धिजीवन. वृद्धोक्ष. वृंत. वृंद. वृंदारक. वृश्चिक. वृषोपगा. वृष्टि. वृष्णि . १२७६ ११७१ १३१२ वृष्य. वृहतिका. १३०० ११४० वृहती. २८९ १५९ वृष. वृहद्गृह. वृहस्पति. १३७९ १२५६ वेग. ४९. वेगवत. १६९ वेगसर. वृषण. वृषदंशक. वृषन् १२५३ १३०१ १७२ वेणि . वृषभ. वेणी. वृषल. १२७७ १०८७ ११५३ १२३० ९२६ | वेणु. १३०० वेणुक. ५२७ वेणुध्म वृषलोचन. वृष-यंती. Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेतन. वेतस. येतस्वत्. क्षेत्रासन. वेत्रिन्. वेद. वेदगर्भ. वेदना. वेदव्यास. वेदांत. बेदिना. वेदितृ. बेदी. ये. वैधनिका. बेवसू. बेधित. } } } } } शब्दानुक्रमणिका ३०२ ८६१ ११३७ ९५४ १८४ ७२१ २४९ २५३ २११ ८१३ १३७० ८४६ २९० ७११ ३४९ १००४ ८२४ १५२३ ९०९ २१२ २१७ १४८६. वेध्य. वेपथु. बेमनू. वेल. वेला. बेलन. वेल्लित. वेश. वेशत. वेश्मन्. वेश्या. वेश्याचार्य. वेश्याश्रय. वेष. वेष्टन. बेसवार. वेसर . बेहतू. } २४९ ७७७ २०६ ९१३ ११११ १९०९ १०७६ ४२० १२४५ १४५६ १४८१ १००३ १०९५ ९८९ ५३३ ३३० १००३ ६३५ ५७४ ४१७ १२५३ १२६६ Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মিনবিজী वैकक्ष. वैदेही. १२१ वैकटिक, ९१० ir वधेय. वैकुंठ.. वैखानस. वैजनन. वैध्यत. ८०९ २५२ १८. २२१ २३१ ५४१ वैनतेय. वैजयंत. वैनयिक. वैनीतक. ७५९. वैजयतिक. वैनयंती. वैजयिन. कैज्ञानिक. वैन्य. १५०१ 30-04 वैपरीत्य, वैमात्रेय. वैमानिक. वैमेय. वैणव. वैणविक. 9. वैयात्र. वैणिक वैतप्तिक. ७१५. ७३० ur ५९० वैतनिक. वैतरणी. वैतालिक. ९२४ वैर.. वैरंगिक. १०८ वैरनिर्यातन. वैरप्रतिक्रिया. | वैरशुद्धि. ८९८ | वैराट, . ८०४ वैदेह . वैदेहका. १२०९. Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका वैरिन् ७२९ । वौषट् वैरोट्या. व्यसक. ११३८ ३७७ वैवधिक. वैवर्य. २४० ३६४ ३०७ व्यक्त. ३४२ वैशाख. ७७७ | व्यक्ति. १५१५ वैशेषिक. व्यग्र. व्यंग. वैश्य. १०२३ ८६२ ८०७ ८६४ १८९ व्यंजन. १३५४ ६८७ २८२ वैश्या. वैश्रवण. वैश्रवणालय. वैश्वानर. वैश्वी. व्यंजक. व्यंजन. व्यतिहार. ८७० १०९८ व्यत्यय. वैसारिण. वैहासिक. वोटा. वोरुखान. ८३७ १३४३ ३३१ ५३४ व्यत्यास. व्यथक. व्यथा. व्यध. व्यध्व. व्यतर, व्यपदेश. व्यभिचारिन. व्यय. १५०२ १५०१ ५०१ १३७० १५१३ ९८४ १२४० बोलक. कोल्लाह, १०७६ १२३९ ८७६ ३२६ बोहित्य. १ Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ अमिधामचिन्तामणौ व्यलीक. व्याधाम. ७४४ व्याधि. व्यवच्छेद. व्यवधा. व्यवधान. व्यवहार. व्यवहारदृष्ट. १८१ ३१२ ४६२ ४५९ ११०९ १४७७ १४७८ २६२ ३७४ ७२० व्याक्षित. व्यान व्यापन. व्यापाद. व्यापादन. व्यात. व्याप्त. व्याम. १३७२ ३७० ७१९ १४७३ व्यवाय. , व्यसनसप्तकम् . व्यसनात. व्यसनिन्, व्याकरण. व्याकुल. व्याकोश. १५०९ ७३९ ३८१ ४३५ व्यायाम. २५. ३२० ६०० व्याघ्र. व्यायोग. ११२७ १२८५ व्याल. १४४० १३४० व्यालग्राहिन. ११५७ व्यास, ८१२ । व्याहार. ९२७ । व्युत्क्रम. २८४ १२२२ १२१० १३०३ ४८८ १४३२ ८४७ २४१ व्याघ्राट. व्याघ्री. व्याज, व्याडि. व्याध. Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका १५३ <१७ व्युत्पन्न. व्युष्ट. व्युष्टि. न्यूढ, व्यूढकंकट. व्यूति. ३४५ । वतिन् १३९ व्रश्चन. वात. १४३० वातीन. व्रात्य. ९१३ १४११ ९२० १४११ ४८० (५४ व्रीडा. व्रीहि. ovvv ७४७ ब्रैहेय व्यूहपाठिण. व्योकार. व्योमकेश, ७४७ ९२० शंवर. १२९३ २२० व्योमन्. शकट. ज्योष. ४२२ शकल. शकली. १४३४ १३४४ वन, १२७३ १५०१ शकुन. व्रज्या . १३३४ शकुनि, ४६४ शकुंत. व्रण. व्रत. व्रतति. व्रतसंग्रह. व्रतादान. १३३८ १११७ शकुंतलात्मज. ८१ | शकुंति. ७०२ १३१६ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमिधान चिन्तामणी ५७४. | शंख. शकुल. शकुलार्मक. शकृत्. शकृत्करि. शद्वार. शक्त. १२०५ १३१० १२०५ ७३५ शक्ति . १३४९ शठ. शक्तिभृत. शक्र. शक्रजित. शक्रशिरस. शक्ल. ७०६ ६३४ १२६० ६१२ शंखनक. शंखभृत. शंखमुख. शची २०९। शचीपति. १७२ शठता. शण. शत. शतकीर्ति. १९५ शतकोटि. शतक्रतु. ११२२ शतद्रु. ७८७ शतधति. शतपत्र. ४७९ शतपदी. १७३ ३७६ ३७७ ११.९ ८७३ १२५६ शक्कर. शंकर. १८० शंका. १०८४ शंकु. शङ्ककर्ण. शकुर. १२१० Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपर्वन्. शतपर्विका. शतभिषज़. शतह्रदा. शतांग. शतानंद. } शतावर्त्त. शत्रु. शत्रुंजय. शनि. शनैश्वर. शनैस्. शप. शपथ. ापन. शफ. शफर. शबर. शाबरावास. शबल. } शब्दानुक्रमणिका ११५३ शब्द. ११९२ ११४ ११०५ ७५१ २११ ८५० २१६ ७२८ ७३२ १०३० १२० १२० १५४२ २६२ २६२ २६२ शब्दप्राम. शब्दन. शब्दाधिष्ठान, शम. शम. शपथ. शपन. शमल. शमि. शमी. शमीगर्म. } शमीधान्य. १२४४ शंपा. १३४६ शं. ९३४ शंबर. १००२ १३९८ } शंबरारि. शम्बल. २५५ १३९९ १४१४ ३४८ ५७३ १५३५ ५९१ ७६ ३०४ ३०४ १८५ ८३० ६३४ ११३० ११३० ८१३ १०९८ ११११ ११०४ १८० १३४४ २२८ ४९३ Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधामचिन्तामणी २५६ शंगाकृत. शंबूक. शंभली. ९९१ १५९ १५८ शंभु. १२८१ २६ शम्मव. शम्या , शय. १५७ शयन. ९६८ | शरण. १२०५ शरणार्थिन. ५३३ । शरत्. २४ शरद्. १९५ शरधि. २१३ शरम. शरभ. शरव्य. ५९१ शरारि. शरारू. शराब. ९९५ शराश्रय. शरीर. १२९९ शर्करा. शराप्रभा. शर्मन. १३०५ शर्व. ३३ शर्वरी. ६८२ शर्वाणी. १०२४ ७८१ शयनास्पद, शयनीय. शयानक. शयालु. शयित. १३६० १३७० १९५ शयु. शय्यंभव. शय्या , शर. २०४ १२९१ १२५३. शर. ७७८ शल. ११९२ शरज. ४०७ शलम. Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २५७ १२९६ शस्त. शलल. शलाकापुरुष बालाट. ७७३ १०३७ ७६९ शालाटु. शारक. शल्की . शल्य. । शल्यक. शल्यारि. शव. ८५८ ७८४ ११८४ १२६१ ८८५ शश. शस्त्र. ८८५ ११३० शस्त्रनीविन्. १४३४ शस्त्रमार्ज. १३४४ शस्त्राजीव. १२९६ शस्त्री. ___७८७ शाक. १२९६ शाकट. ७०७ ५६४ शाकटीन. शाकशाकट, १२९५ शाकशाकिन. २१७ शाकुनिक. शाक्तीक. १३३४ शाक्यसिंह. शावर. शाखा. शाखापुर. शाखामृग. १३९१ । शाखारंड. ८३. शाखिन्. ९६५ ९.५ ९३. २३६ शशबिंदु. शशभूत. शशादन. शशिन् शशिप्रिया शशिभास्कर. शश्वत. शष्य शासन. १११९ ९७२ १२९२ ८१७ Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ পশিখালবিষয়গা शाटी. शाण. ७२८ शांकर. १२५७ । शार. शांकलायननी. ८४८ शांखिक. ९१० शारद. ११७२ शारि. ४८७ शाठ्य. ३७७ २९४ ९०९ शारिका. १३३६ शाणाजीव. शारिफल, शाणी. शा. २२२ शात. १४८४ शार्ङ्गभृत. शातकुंभ. . १०४५ शात्रव. १२८१ शाद. शालकायनजा. ८४८ शाद्वल. शालवृक. १२८० . शांत. ९९० २९५ शाला. १११९ शांता शालाजीर. १०२४ शालि. शांति. २८ शालीन. ६९३ शालुर. १३५४ शांतिगृह. शालुक. ११६७ शाप. २७२ शालूर. १३५४ घाम्बरी. ५२९ । शालेय. । ३०४ Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४० ४२९ शिखिन्. . शब्दानुक्रमणिका २५९ “शास्मलिन्. २३० । शाव. शिखा. ५७१ ११०२ शावर. ११५९ शिखांडक. शिखिग्रीव. शाश्वत. १४५३ १०५२ १०९९ शाष्कुल. १२२ शाशन. २७७ २३२ शास्तृ. } ४८८ शिखिवाहन. शास्त्रविद् शि. ११३४ शिक्य. २१०. शिकाण. शिक्षित. ३४२ शिविनी. ५८१ १३२० शिक्षा. शिञ्जित. ११०५ शिखंडिक. १३२५ शिञ्जिनी. ७७६ शिखंडिका. ९७६ शित. १४४८ शिखर । ११२१ । शितशिविक. ११७४ १३९७ शिखरिणी. . १०४ शिथिल. ४९६ शिक. शिक्षा. 'शिखंडक. ५७२ शिखर. १०३९ | शिति. Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० अभिधान चिन्तामणी शिला. १००८ ६ १०३६ १०६२ १०३८ १२०३ ४५६ शिलाजतु. शिलाजतु. ११२० शिलासार, ११६६ शिली. ७५९ शिलीमुख. ७४७ ११३० शिलोच्चय. ११३० शिल्प. शिल्पजीविनी. ११७३ शिल्पा. शिल्पिन. १४०१ शिल्पिशाला. १२१२ १०२७ ११३१ शिपिविष्ट. ) शिफा. शिबिका. शिविर. शिमि. शिंबा. शिंबि. शिम्बिक. शिरस. शिरस्क. शिरस्त्राण. शिरस्य. शिरोगृह. शिरोधरा शिरोधि. शिरोमणी. शिरोमर्मन, शिल. ६२१ १००० ८९९ १९७. १२७४ ७६८ शिक. ५७० ९९५ शिवकर. शिवगति. शिवकर. १२८८ शिवताति. ८६५ | शिवपुरी. ४८९ ४८९ Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २६१ ११३७ १३८५ शिवा. ११४५ । १२८९ शीतक. शीतल. १५६ १३८५ शीतशिव. शीधु. २७ १३८५ ९४२ शिशिर. शिशु. ३३८ शीन. १४९४ १२५३ २२१ १३५० १२७७ शीर्णाघ्रि. शीर्ष. शीर्षक. शीर्षच्छेद्य. ५६७ ७६८ ३७३ ५७० शीर्षण्य शिशुक. शिशुत्व. शिशुनामन्. शिशुपाल. . शिशुमार. शिशुवाहक. शिश्न. शिश्विदान. शिष्टत्व. शिष्टि. शिष्य. शीकर. शीघ्र. शीघ्रवेषिन्. ८५५ शील, शुक. शुकपुच्छ. शुक्त. १४७० शुक्ति. | शुक्तिज. ८४४ १३७७ १३३५ १०५८ ४१५ १२०४ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ शुक्र. १२८ शुक्रकर. शुक्रशिष्य. शुक्ल. शुक्लधातु. शुक्लापांग, शुंगा. शुच. १०९८ । शुतुद्रि. ६२९ शुद्धमति. ११९ शुद्धांत. शुद्धोदनसुत. ९३ शुन. शुनासीर. शुनि. १३९२ शुनी. १०३७ शुन्य. १३२० शुभ. ११२४ शुभंयु. २९९ शुमा. ७२७ २३७ १२७९ १७२ १२७९ १२८१ १४४६ १०९९ शुभ्र, २७३ १३९३ ९२८ २०५ ७२४ ७२४ शुचि. १५४ शुम्ब. शुममथिनी. शुल्क. १४२६ । शुल्काध्यक्ष. १३९२ ४२० १२२४ शुल्बज. ९०३ शुल्वारि. ९०६ | शुश्रूषा. शुल्व. . ९२८ १०३९ १०४९ १०५७ ४९७ Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुश्रूषा. शुषि. शुपिर. } शुष्क. शुष्म. शुष्मन्. शूक. शूकधान्य. शूकर. शूकल. शूद्र. शूद्रा. शूद्री. शून्य. शून्यवादिन्. शूर शूरदेव. शूर्प. शूर्प कारि. शूल. } शब्दानुक्रमणिका ३१० १३६३ शूलनाशन. शूलभृत् २८७ शूलाकृत. १३६३ शूलिक. ६२४ शूल्य. ७९६ ७९६ ३६९ श्रृंखलक. ११८१ ४७ १२३५ ८०७ ८९४ ५२४ ५२३ १४४६ ८६५ ३६५ ५३ १०१८ २२८ ७८७ श्रृंखल. } श्रृंग. श्रृंगवेरक. श्रृंगाट श्रृंगार. श्रृंगारभूषण. शृंगारयोनि श्रृंगिक. श्रमिण. शृगिणी. शृगिन्. शृगीकनक. } शृत. शेखर. . २६३ ९४३ १९९ ४१३ १२९६ ४१३ १२२९ ६६५ १२५५ १०३२ १२६४ ११८९ ९८८ २९४ १०६१ २२९ ११९८ १२७७ १२६५ १३४७ १०४६ १४८५ ६५४ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ शेप. शेपस्. शेपाल. शेमुषी. शेलु शेवधि. शेवळ. शेवाल. शेष. शैक्ष. शर्षच्छेदिक. शैल. शैलालिन्. शैलूष. शैव. शैवल, शैवलिनी. शैवाल. शैशव, शैष. शोक. } अभिधान चिन्तामणौ शोचन. शोचि. शोचिष्केश. ६१० ६१० ११६७ ३०९ १४४ १९२ ११६७ ११६७ १३०७ शोण. } शोणित. शोणितपुर. शोध. ७९ शोधनी. ३७३ शोधिका. १०२७ शोधित. } ३२९ ३२८ शोफ. ६९० ११६७ १०८० ११६७ शोभांजन. ३३९ शोष. १५६ शोषण. शोमन. शोभा. } २९९ शौक. शौच. ७२ २९९ ९९ १०९९ १०९० १३९५ १२४२ ६२१ ९७७ ४६८ १०१५ ११७७ ४१४ १४३७ ४६८ १४४४ ५०९ १५१२ ११३४ ४६३ ३९४ १४१४ ८२ Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शरदानुक्रमणिका २६५ शौंड. ४३६ येन. १३९६ १३९२ ४८ १३३४ ६४१ ५३९ ७३९ ४९० ७२४ ९१० ६५३ ३११ ७८८ ७५ श्याव. शौडिक. ९०१ श्येत. शौंडीर्य ७३९ शौरि. २१६ श्रद्धा. शौर्य. । ७९६ श्रद्धालु. शौकिक. शौखिक. अंथन. श्मशान. ९८९ "श्मशानवेश्मन, १९६ श्मश्रु. श्रमण. श्याम. १३९७ श्रव. श्यामक. ११७६ श्यामल. श्रवण. १४२ श्रवणा. श्यामा. श्रविष्टा. ११४९ श्रविष्ठाभू. श्यामाक. श्राणा. श्यामांग. श्राद्ध. श्याल. ५५२ झ्यालिका. ५५५ । श्राद्धकाल. ५७३ ५७४ १३९७ ४४ ११३ ३१० ५३२ ११४ ११७ ३९७ ८२२ ४९० १४१ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवृक्ष १२३६. श्री. - २४१ श्रावन १८५ | श्रीवत्सभृत्, श्रीवास. १५४ श्रावणिक १५४ श्रीवृक्षकिन्, ___३१७ श्रीसंज्ञ. श्रुत. २२६ श्रुतदेवी. । १५१२ श्रीकंठ, १९५ श्रुति. श्रीखंड. श्रीधन. श्रीदे. श्रीधर. श्रीनंदन. - C श्रेणि. Mor - १४२३ २२८ J १३७९ ११३५ यांसं. १ २९ १२२२ | श्रेयांसं. । - २७ श्रीवस . ४७ श्रेष्ठ. २१८ । श्रोण. १४३९ १५२ . Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका श्रोणी. ६०६ ५७४ श्वशुर. श्वश्रू. श्रोत्र. श्रोत्रिय. .८१७ श्वस. श्रौषट् श्वसन. श्वसित. श्वान श्वापद. श्वाविध्. १५३८ ४९२ १२२९ २७० ३५७ ४६५ ४०५ ४६० ४६२ .११४४ ५५९ ५५९ १५४१ ११०३ १३६८ १२७९ १२१६ १२९६ १३६८ श्वास. श्वासरोधन. श्वासहेति. श्वित्र. ३१३ ४६६ १०४३ श्लोक्ष्य. श्लाघा. श्लील. श्लीपद. श्लेषण. श्लेष्म. श्लेष्मन्. श्लेष्मातक. श्लोक. श्वःश्रेयस. श्वजीविका. श्वदंष्ट्रा. श्वदयित. श्वनः श्वपच.. श्वभ्र. श्वयथु. २७३ श्वेत.. श्वेतगज. ८६६ श्वेतकोलक. १.१५६ ६२६ श्वेतद्यति. १२८० ९३३ श्वेतमरिच. १३६४ श्वेतरक्त. .४६८ । श्वेतसर्षप. १३९२ १३४६ १७७ . १०५ १२८५ ११३४ १३९५ श्वेतपिंग. M Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ श्वेतहय. श्वोवसीयस. षट्कर्मन्. षट्पदी. षडंगी. षडभिज्ञ. षड्गव. षड्ज. षड्बिन्दु . षड्द षड्रसासव षण्ड. षण्ढ. प. षण्ढतिल. षण्मुख. षष्टिक. षष्टिक्य.. अभिधानचिन्तामणी { ७०९ ८६ ८१२ १२०८ २५३ २३३ १४२.४ १४०१ २१५ १२६३ ६२० १२५९ १११० ५६२ १९६ ७२८ ११८० ४२ २०९ ११६८ ९६६ षष्ठवाट् षाण्मातुर. षिड्ग. षोडशाघर्च. षोडशार्चिष्. षोडशांहि. ष्ठीवन. ठेवन. छ्यूत. संयत. संयत. संयमनी. संयुग. संयोजित. संरंभ. संराव. संलय. संलाप संवत्. संवत्सर. सवनन. स. १२६० २०८ ३३१ १२०५ १२० १३५२ १५२१ १५२१ १५२१ ७९६ ४३९ १८६ ७९९ १४८५ १४९९ १४०० ३१३ २७५ १५३५ १५९ १४९८ Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६९ । संवर. संवर्त. १०६९ संवर्चक. शब्दानुक्रमणिका ९६५ । संश्रुत संश्लेष. संसक्त. २२५ संसद्. ११६६ संसरण. संसिद्धि. ४९२ संस्कार. ३०९ संस्कारवत्त्व. २७८ संस्कृत. १४७६ १४७६ संस्तव. संस्त्याय. ५३७ संस्था. ६७१ १४८९ १५०७ १४७१ १४५१ ४८१ ९८७ .१३७७ १३७३ संस्तर. ८२० ६८२ १५१३ संवर्तिका. संवसथ. संवाहक. संवित्ति. संविद, संवीत. संवृत. संवेग. संवेश. संवेशन. संव्यान. संशप्तक. संशय. संशयालु. संशयित. संशित. संश्रव. ३२२ ३२३ २७४४ ९८६ संस्थान. १३७५ ४४५ ४१५ संस्थित. संस्थिता. संस्फोट. संहत. १५१६ ३७३ १२७० २७८ । .१४७२ Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० संहति. संहनन. संहर्ष. संहार.. संहूति. सकल. सकृत्प्रज. सक्तक. संकीर्ण. [१४७२ संकुल. . २६५ सक्तु. अभिधानचिन्तामणौ १४११ । संकल्प.. १३७० ..५६३ । संकल्पयोनि. २२९ १५१५ संकसुक. ४३७ संकाश.. १४६२ २६१ १४३३ 1१४८९ १३२१ संकुचित. ११२९ ११९८ । १४७२ ६१३ संकोचपिशुन. ६४५ संक्रंदन. १७१ ५२९ संक्रम. १५१७ संक्राम. १५१७ ६९२ संक्षेप. १४३२ ५५१ संख्य. संख्या. . ८७२ ४२५ । १३७३ १५०४ संख्यावत्. ३४२ .. २७५ संख्येय. .. ८७२ १०१६ संग. .१५०८ . २२४ संगत. । ७३१ १४८५ । २६८ सक्थि . सखि . सखी. सख्य.. संगर. ७३० ७३० सगर्भ. ४ सगोत्र. सग्धि . संकट. संकथा M . संकर. संकर्षण. संकलित. Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका संगम. संगर.. संगीत. संगुप्त संगूढ. संग्रह. संग्राम. संग्राह. १५०८ संचारिका. ५२१ । ७९८ संचारिन्. २९५ । २.७८ संजवन. ९९२: २७९ संज्ञ. ४५६ २३४ संज्ञप्ति. ३७१ १४८५ संज्ञा. २६० । २५७ संजु. ४५६ १४३२ संज्वर. ११०२ सटा. ८१६ ७८४ संडीन. .१३१८ ५९७ सतत.. १४७१ १४१२ सतत्त्व. १३७७ १३४४ ५२८ ४८० सती. २ २०४ १४११ (१०५५ ७१९ सतीनक. १.१७० ७६६ सतीर्थ्य. ( .७४९ सत्. ३४२ । ३७९ सत्तम. १४३९ १२२१ सत्त्व. १३६६ १.४१२ सत्त्वप्रधानता. ७१ ५६३ । सत्पथ.' संघ. संघचारिन्. संघजीविन्. संघात. सचिव. सज्ज. सज्जन.. सज्जित. संचय. संचर.. Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ सत्य. सत्यंकार. सत्यप्रवाद. सत्यवती सत्याकृति. सत्यानृत. सत्यापन. . २६४ । सदेश. सद्भूत. : २४७ सद्मन्. ८४७ सद्यस्. सद्यस्क. . ८६७ सधर्मन्. सधर्मिणी. सध्रीची. सध्यच्. १४५० २६५ ९९० १५३२ १४४८ १४६१ ५१२ ५२९ ८७१ सत्र. १११० ८२० ..४४४ १००० सत्रशाला. सत्रा. ६९३ सनत्कुमार. सत्रिन् सना. १५३१ २१६ १४५२ सत्वर. सनातन. सनाभि. सनि. सदृश. सदृक्ष.. सदन. सदृश. सदस्. सदस्य. सदा. सदानीरा. १५२७ ७३४ १५३० १४७० १४६१ १४६१ . ९९० १४६१ ४८१ ४८० १५३१ १०८५ । सनिभृति. सनीड. संततं. संतमस. संतान. संताप. ३८८ ३६२ १४५० १४७१ .. १४६ ५०३ ११०२ Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • शब्दानुक्रमणिका २७३ संतापित. संतोष संदर्भ. संदंश. संदान. संदानित. संदानिनी. संदेशहारक. संदेह. संदोह. १४५० १४५१ १४५० १४५१ १४६१ १५१६ ७२९ १३७२ ७३४ १५३२ सन्निकर्ष. । ३०८ सनिकृष्ट. सन्निधान. ६५३ सन्निधि. सन्निभ. १२७४ सन्निवेश. ४३९ सपल. सपत्राकृति. सपदि. १३७५ सपO. १४११ सपिंड. ८०२ सपीति. २७८ सप्तकी. सप्तजिह्व. सप्ततंतु. ४७५ सप्तपर्ण. १२६७ सप्तर्षि. ९८५ १४० सप्तसप्ति. ७६५ सप्ताचिस्. ७६६ १२२२ । सप्पोदर्चिस्. ४४७ ५६२ ९०७ संद्राव. ६६४ ७३५ संधा. संधानी. संधि. संधिजीवक. संधिनी. संधिला. संध्या. सन्नद्ध. सन्नाह. सन्नाहा. १०९९ ८२० ११३३ १२४ ११४८ सप्तला. सप्ति. १२० १२३३ ११०० Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभा. : ४८५ २७४ अभिधानचिन्तामणौ सब्रह्मचारिन्... ८० १५०९ समय. .. र २४२ १२६ सभाजन. ___ ७३१ समया. १५३४ समर. ७९६ सभासद् ४८० समरोचित. १२२२ सभास्तार. समर्थन. १३७४ सभिक. समधुक. . ४८० समर्याद. १४५१ सभ्य. ४८० समवकार. २८४ समवर्त्तिन्. १८४ १४३३ f.२४३ समवाय. समग्र १४३३ १४१२ समज. .१४१४ समसुप्ति. . १६१ समज्या. • ४८१ समस्त. १४३३ समस्थली. समंजस. *७४२ समा. समंततस्. , १५९ १५२९ समांसमीना. १२७१ समंतभद्र. २३४ समाकर्षिन्. १३९० समंतात्. १५२९ समाघात. समपाद. १४१४ समं.. १५२७ समाज.. ४८१ सम. . Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..शब्दानुक्रमणिका: समाज्ञा. समाधान. । ८५. समाधि. समान. समानोदर्य. समापन. समालभन. समास. २७३ । समीक. ७९८ १३७८ समीचीन. २६४ समीप. १४५० समीर: १.१०६ (१३७८ समीरण. . ११०६ १४६१ समुख, : । ११०९ समुच्चयः १५२४. ५५६ समुच्छ्य. १४३१ ३७१ समुत्पिंज. ३६६ .६३६ समुदय. १४३२ १४११ १५२४ समुदाय. १४३२. । १४११ २५७ समुद्ग. १०१५ समुद्र. १०७३ ७९७ समुद्रदयिता. १०८० ४०२ समुद्रविजय. समुन्नवत्. समुर. ७९७ समूह. १४११ ८२७ समूहनी. १०१६ ११०६ । समोदक. S. ७९८ समाहार. समाहृति. समाह्वय. समिता. समिति. समित्. समिध्. समिर. Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ संमद. संपत्ति. संपद् संपराय. संपात. संपातपाटव. संपुट. संपृक्त. संप्रति. २६४ ३५७ ] संभ्रम. ३२२ ३५७ ७९८ संमई. ७९७ संमार्जनी १०१६ १४७० संमुखीन. १४३७ १०१५ सम्मूछेज. १२०१ १४६९ संमूर्च्छन. १५१७ संमूर्च्छनोद्भव. १३५६ १५३७ संमृष्ट. ४१४ सम्यक्. १३७४ ५३७ सर. १३८८ सरक. १५२० सरधा. १२१३ १२७७ सरट. १२९९ ११२८ सरण. १०३८ १५०४ सरणि. ९८३ २६१ सरमा. १२८१ २७४ सरल. ३७६ ३३ सरलद्रव. ६४८ ३१२ सरस्. ५३७ । सरसी. १०९४ सम्राज. संप्रदाय. संप्रधारणा. संप्रयोग. संप्रहार. संप्रेष. संफाल. संफुल्ल. संबाध. संबोधन संभाष. संभूतविजय. संभेद. संभोग. ६९० Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरखत् . सरखती. सरि. सरित्. सरिद्वरा. सरूप. सरोज. शब्दानुक्रमणिका सरोरुहासन. सरोरुह. सरोरुह. सर्ग. सर्ज. सर्जमणि. सर्जरस. सर्प. सर्पभुज्. १०९१ १०७३ १०८२ १४६१ ११६२ ११६२ सरोजन्मन्. सरीसृप. १३०३ १०८५ १०८० २४१ १०९६ १०८० २१२ ११६२ ११६२ सर्पराज. सर्पहन्. सर्पाराति. सर्पिस् सर्व. सर्वसहा. सर्वकेशिन्. सर्वज्ञ. सर्वग्रंथिक. सर्वतस्. सर्वतोमुख. सर्वदर्शिन्. सर्वदुःखक्षय. सर्वधुरीण. सर्वदम. सर्वभक्षा. सर्वमंगला. २५२ १३७६ ११३८ ६४७ सर्वमूषक. ६४७ १३०२ .१३१९ सर्वरस { सर्वला. २७७ १३०८ १३०२ २३१ ४०७ १४३३ ९३७ ३२८ { २५ १९८ ४२१ १५२९ १०७० २५ ७५ १२६१ ७०२ १२७५ २०४ १२६ ६४७ १३८९ ७८७ Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ अभिधानचिन्तामणौ सर्वलौह. सवित्री. सावित्री. सर्ववेदस्. सर्वसन्नहन. ७८८ सविध. ५१ सवेश. सर्वानुभूति ५४ सव्य. सर्वान्नभक्षक. ४२८ सर्वान्नीन. ४२८ ७८८ सर्वाभिसार. सर्वार्थसिद्ध. २३७ सर्वास्त्रमहाज्वाला. २४० सर्वौध.: सर्षप. सलिल. सल्लकी. सव. सवन. सवयस्. सवर्ण. सवलि. सवितृ. सवितृदैवत. ७७९ ८१९ ७८८ ( १९९८ ११८० १०६९ ११५२ . ८२० ६३८ ७३०. १४६१ १४० ९५ ११२ सव्यसाचिन्. सव्येष्टः ससीम. संस्य. सस्यशीर्षक सस्यशूक. सह. सहकार - सहचर. सहचरी. सहज. सहन. सहपान. { ५५८ ५९३ १४५० १४५० १४६६ ७०८ ७६० . १४५० १.१३० १-१६८ ११८१ ११८१ ४९१ १५२ १५२७ ११३३ ७३० ५१२ । ५५१ १३७६ ३९१ ९०७ Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहस्. - - शब्दानुक्रमणिका २७९ सहभोजन. . ४२५ । सांवत्सर. ४८२ सहसा. १५३२ साकम् . १५२७ । ७९६ साकल्यवचन. ८३९ .. . १५२ साकेत. . ९७५ सहस्य. । १५२ साक्षिन् . . . ८८२ सहस्र.. । ८७३ साखि ९५९ सहस्रदंष्ट. । १३४५ सागर. सहस्रनेत्र. . १७२ । १०७३ सहस्रपत्र. ११६१ सागरनेमि. ९३८ सहस्रवेधिन् .. ४२२ सागरमेखला. ९३८ सहस्रांशु. सागरांबरा. ९३८ सहस्रार.. सांख्य. . ८६२ सहालिन् । ७६४ साचि. सहाय... । १५३१ सहायता. १४२२ सात.. १३७० सहिष्णु. ३९० सातवाहन. . ७१२ सहृदय. ३४५ सातिसार. ४६० सहोदर.. ५५० सात्वत. २२४ सह्य.. ४७४ सात्वती. .२८५ सा. २२६ सांयात्रिक. ८७५ सात्विक. सांयगीन. .७९३ । . . . . .. - - - २११ २९५ Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० अमिधानचिन्तामणी साद. सादिन ३१२ ७६१ ७६२ १४७२ साधारण. साधारणस्त्री. साधारणी. साधित. १४६१ ५३२ १००५ १४४५ सांदस्निग्ध. ४७६ सान्नाय्य. ८३१ सान्न्यासिक. ८०९ साप्तपदीन. सामन् . ७३६ सामयोनि. १२१७ सामवायिक. सामविद्. . ८१९ सामवेद. . २४९ सामाजिक. ४८१ १५१५. सामान्य. ।१४७२ सामिधेनी. . ८२७ ९४१ सामुद्र. सांपरायिक. ७९८ ५६५. साधु. ७६ साधुवाहिन्. १२३५ साध्वस. ३०१ साध्वी. ५२८ सानु. १०३५ सानुमत् . १०२७ सान्तपन. ८४२ सांत्व. २६६ सांत्वन. सांदृष्टिक. १६२ [.१४४७ । १४९२ सांप्रतम् . साम्मातुर. । १५३० ५४६ १४६३ साम्य. सद्रि. सायक. Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २८१ सायम् . सार्वभौम. । १५३१ ६२६ सार. सारंग. ११२१ । १२९३ १३२९ १०८९ - सारणि. सारथि. ७६० - - सारमेय. सारस. १२७९ १३२८ । ६६४ साल. । ११३८ सालभञ्जी. १०१४ सालवेष्ट. साला. १११९ सालातुरीय. ८५१ । ९५७ साल्व. । २२० सावित्र. ८१३ सावित्री. ५९३ साता- १२६४ साहस. ७३६ (१४१५ साहल. । ७६४ १२८३ सिंह. सारसन. सारसी. १३२९ सारखत. । ९५८ १४१२ ८६८ सार्थ. सार्थवाह. सार्धम् . सार्पिष्क. सापी. १५२७ सार्व. २५ सिंहतल. सिंहद्वार. . ५९६ .. ९९३ Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ सिंहनाद, सिंहयाना. सिद्ध. ४१२ सिंहल. सिंहसंहनन सिंहसेन. सिंहान. सिद्धार्थ. ११८० सिंहासन. अभिधानचिन्तामणौ १४०४ २०३ १४८७ १०४२ सिद्धांत. २४२ सिद्धापगा. १०८२ सिद्धायिका. ४६ १०३८ . . ३८ सिद्धार्था. १०८९ सिद्धि. . ७४ १२१४ सिध्म... . ४६७ सिध्मन्. ६६६ सिध्मल.. 5 ४३८ सिध्य.. ॥१३९२ सिन. ११४२ १३२५ सिनीवाली. १५१ १३९४ सिंदुवार. ११४७ ४०३ सिंदूरकारण. .१०४० ११६२ २२४ सिंधु. ११०८० ..१८९ १२१७ . ४०२ । सिरा. ६३१ ६६६ सिकता. सिक्थक.. सिचय. सिंच्. सित. सितच्छद. सितरंजन, सिताः - ० सिंदूर... सिताम्र. ० १०७३ सितांभोज. सितासित. सितोदर. सितोपला. सिंधुर. Jạin Education International Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीत्कृत. .0 WoCm ३७ सुत. शब्दानुक्रमणिका २८३ सिल्ह. ६४८ । सुखवर्चक. . ९४५ सुगत. .२३२ सीता. सुगंधक. ११९० १४०३ सुगंधि. १३९१ ( ९६८ सुगंधिक. सीत्य. १११६८ सुगृह. सीमन्. .९६२ सुग्रीव. सीमन्त. ७०५ सीमन्तिनी. ५०४ सुचरित्रा. ५२८ सीमा. सीर. ८९० सुतारका. . ४४ सीवन. सुतेजस्. सीवनी. सुनामन्. १०४० सीसपत्रक. , १०४०। सुदर्शन २२२ सुकरा. १२७१ सुकल. ३८७ सुदाय. सुकुमार.. १३८७ सुदारु. .१०३१ १३७९ सुधर्मन्. सुकृतिन्. सुधर्मा. ... १७८ सुखमुण. सुधा. सुख. .१३७० । सुधाभुज. ८८ सीस. ..१७२ ६९८ MOO ३८ ५२० २०० Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी सुधास्त्रवा. सुधाहृद्. सुमति. सुमधुर. ५२ ५८५ २३१ . ३४१ १०२८ सुधी. २६६ - ११२५ - - सुमनस्. ८८ - सुनाम. सुनिश्चित. सुंदर. सुंदरी. सुपथिन्, १४४५ ५०५ ९८४ २३१ ११७४ ३८ ६९२ । १०३२ .४० सुपर्ण. सुपर्णकुमार. सुपर्वन्. ८८ सुमित्र. सुमित्रभू. सुमेरु. सुयशस्. सुर.. सुरज्येष्ठ. सुरत. सुरपथ. सुरपर्णिका. सुपार्श्व. २७ सुपार्श्वक. सुप्त. ४४३ ३१३ ११३४ १५६ १२६५ १३९० सुप्रतीक. सुप्रभ. सुप्रलाप. सुभग. सुभद्रेश. सुभूम. सुम. .. ६९८ सुरभि. २७६ सुरर्षभ. ७०९ सुरस. ६९३ सुरा. ११२४ । सुराचार्य. ४४८ ६२३ ९०३ ११८ Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २८५ सुराजीविन्. सुरारि. २३८ सुरालय. सुरावारि. सुरुङ्गा. सुरूहक. सुलोहक. सुवचन. सुवर्चिका. सुष्छु. १०७५ ९८५ १२४० १०४८ । २७६ ९४५ । ८८४ ११०४३ १०४७ ११०४१ २१७ ३९ सुव्रता. ।१२६८ सुशीम. १३८५ सुषम. १४४४ सुषमदुष्पमा. १३० १२९ सुषमा. 1१५१२ १५३५ सुसीमा. सुस्मिता. सुहस्तिन्. सुहित. ४२६ [७१४ सुहृदः ।७३० सुहृद्दल. सूकर. १२८७ सूक्ष्म. १४२७ सूक्ष्मदर्शिन्. ३४४ सुवर्ण. । ३४ सुवर्णक. सुवर्णबिंदु. सुवासिनी. सुविधि. ५१२ AU0 । २९ ४१६ सुवीराम्ल. सुवेल. (३३० १०३० सूचक. । ३८० २५४ १००५ सुव्रत. सूचनकृत्. | सूचि. Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२५ ९३० ५४२ .. २६४ . ८१ ७२३ '७९४ २८६ अभिधानचिन्तामणी सूचिसूत्र. सून. सूनासूचीमुख. १०६५ सूनु. सूच्यास्य. १३०० सूनृत. . ८९८ 'सूत. ७६० सूप. ।१०५० सूपकार. सूततनय. • ७११ सूर. सूतिकागृह. . ९९७ 'सूत्थान. . ३८४ सूरण. 6.२५४ सूरत. सूत्र. २४६ सूरसूत. सूरि. सूत्रकंठ. ८१२ सूत्रकृत. सूर्य. सूत्रधार. ३३० सूर्यकांत. सूत्रवेष्टन . ९१३ सूर्यजा. ७२२ सूर्यमणि. 1 ३९७ सूर्याश्मन्. सूदशाला. . . ९९८ .सूदाध्यक्ष. ७२२ । सूर्योढ. ३९७ ७२३ । ३८ 1 ९६ ११८९ ३६९ १०२ सूर्मी. १४६४ . २४३ १०६७ १०८३ . १०६७ सूद. १५० Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका सकणी. सग. १२३८ ४९६ ९१२ ५८१ ७८५ १२८९ २३० ६३३ ९८३ १३१७ ८३७ ८७८ ११९० सुगाल. सणि. मणीका. सृति. सृपाटिका. सेक. सेकपात्र. सेकिम. सेराह. सेवक. सेवन. सेवनी. सेवा. सेवावृत्ति. सैंहिकेय. सैकत. सैतवाहिनी. सैद्धांतिक. सैनिक.. - - सेक्त. ५१६ सेचन. ८७८ सैंधव. ८३७ सेतु. ९६५ सैन्य. ८६६ १२१ १०७८ १०८६ ४८३ ७६३ ९४१ १२३४ ७४५ ७६३ ५२१ ७१० १२८२ १२७८ ५५१ ५५१ २४५ सेना. सैरंध्री. सैरिभ. सेनांग. ७४८ ७४५ ७५१ सोढ. सोदर. ७४८ सोदर्य. ७६३ । सोपांग. २०८ सेनानी. सेनामुख. सेनारक्ष. ७२५ Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ अभिधानचिन्तामणौ ८०१ सौप्तिक. सौभागिनेय. सौमिकी. सौमित्रि. ५४७ ८२३ ४०४ ८१८ ५०४ ..५७६ सौम्य. सौरभेय. सौरभेयी. सौराष्ट्रक. सोपान. १०१३ सोम. १०५ सोमज. सोमप. सोमपीथिन् ८१८ सोमभू. . ६९५ सोमयाजिन्. . ८१७ सोमसिंधु. २१८ सोमाल. . १३८७ सौखसुप्तिक. . ७९४ सौख्य. १३७० सौगत. (११६५ सौगंधिक. १०५८ सौचिक. सौदामिनी. ११०५ सौध.. ९९२ सौधर्म. ९३ सौनंद. २२५ सौनिक. ९३० सौपर्णेय. २३१ ११७ १४४५ १२५७ १२६५ १०५० ११९६ १०५५ १२० ११९६ सौराष्टिक. सौराष्ट्री. ८६१ س ة सौरि. सौल्किकेय. सौवर्चल. सौवस्तिक. सौविद. सौविदल. ७२१ ७२७ ७२७ ( ४१६ -९६० १०५१ ७३१ सौवीर. सौहाई. Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . शब्दानुक्रमणिका २८९ सौहित्य. स्तंब. ४२६ | स्तनशिखा. ६०३ सौहृद. ७३० स्तनांतर. ६०३ स्कंद. २०८ स्तनित. १४०६ १२२४ स्तनितकुमार. स्कंध. .५८८ स्तन्य. -४०४ १४१३ स्तबक. ११२६ १११९ स्तब्धरोमन्. १२८८ स्कन्धज. १२०० स्तभ. १२७५ स्कंधमल्लक. १३३४ 5 ११८२ स्कंधवाहक. १२५८ ११२० स्कंधशाखा. . १११९ स्तंबकरि. ११६८ स्तंबपुर ९७९ ९७३ । १०१४ स्कंधिक. १२५८ ३०५ स्कन्न. १४९१ स्तरि. ११०४ स्खलन. १५२२ स्तव. २६९ स्खलित. ८०४ स्तिमित. १४९२ स्तन. ६०३ स्तुति. २६९ स्तनधय. ३३८ स्तुतिव्रत. .७९५ स्तनमुख. ६०३ ३८१ स्तनयित्नु. स्तेय. . . ३८३ स्तनवृन्त. .६०३ । स्तोक. स्कंधावार. . ७४६ स्तंभ. स्तेन. w १.४२६ Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० स्तोकक. स्तोत्र. स्तोम स्त्यान. स्त्री. स्त्रीचिह्न. स्त्रीधर्म. स्त्रीधर्मिणी. स्त्रीपुंस. स्थगन. स्थगित. स्थगी. स्थंडिल. स्थंडिलशायिन् स्थपति. स्थपुट. स्थल. स्थलशृंगाट स्थली... अभिधानचिन्तामणी १३२९ २६९ १४११ ८२० १.४९४ ५०३. ७३८ ६१० ५३६ ५३५ ५३८ १४७७ १४७६ ७१८ ८२४ ८१० ( ८१८ । ९१७ १४६८ ९४० ११५६ ९४० स्थविर. स्थाणु. स्थांडिल. स्थान. स्थानक. स्थानाङ्ग. स्थानाध्यक्ष. स्थानिक. स्थानीय. स्थापत्य. स्थामन्. स्थायिन्. स्थायुक. स्थाल. स्थाली. स्थावर. स्थावर. ४. ३३९ । २११ १९५ ११२२ ८१० ७७७ ९८८ ९९१ १०९५ २४३ ७२४ ७२४ ९७२ ७२७ ७९६ २९५ ७२६ १०२६ १०१९ १४५४ ३४० Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सासक. १४५३ १२६३ शम्बानुक्रमणिका । ६४९ स्थेष्ट. १०७७ सौरिन् .१४५३ खसा. ४९२ स्नातक. १३७७ स्नान.. ७४४ स्नायु. थित. ..८०८ ६३८ स्थिति. स्निग्ध. स्थिरजिह्व. स्थिरा. १४९९ १३४४ ९३७ १०१४ स्थूणा. । १४६४ सुषा. स्नुहि. ६३१ ४७८ ७३० ४१३ १०३५ .५१४ ११४० (१३७७ ४१७ ६८७ ४६२ १५१५ . । ६८१ । ४४८ स्थूलनाश. १२८८ स्थूलभद्र. स्थूललक्ष.. __ ३८५ स्थूलशाट. ६७२ स्थूलशीर्षिका. १२०७ स्नेहप्रिय. नेहभू. स्पर्धा. स्पर्शन. [११०७ स्पश. ८८२ है ३८६ ७३४ १४६७ स्थेय.. Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ अभिधानचिन्तामणी - A स्पृहा. ४३० स्फुट. १३१५ स्फटिकाचल. १०२८ स्फाति. १५०२ स्फार. १४३० स्फि. ६०९ स्फिर. १४२६ १४६७ स्फुट. २११२८ १३१५ स्फुटन १४८८ स्फुटित. ११२८ स्फुर. ७८३ स्फुरण. १५२३ स्फुरणा. १५२३ स्फुलिङ्ग. ११०३ स्फूर्जथू. स्फोटक. स्फोटायन. ८५३ स्मय. ३१७ सर. २२७ स्मरकूपिका. स्मरण. मा ३०८ स्मरध्वज. २८६ स्मरमंदिर. ६०९ २९६ स्मित. ११२७ स्मृति. । २५१ । ३०८ स्मेर. ११२९ स्यद. स्पंदन. स्यंदिनी. स्यन्न. स्यमंतक. २२३ स्याद्वादवादिन्. ८६१ स्याद्वादिन्. . २५ स्यूत. स्यूति. . ९१२ सक. - - - or ur सव. ६३३ १०९६ Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्रवंती. स्रष्ट. शरत. · स्रस्तर. स्स्राक्. सुनी. सुच्. सुत. स्रुव. स्रोतईश. स्रोतस्. स्रोतखिनी. स्रोतोंजन. ख. स्वकीय. स्वकुलक्षय. स्वंग. शब्दानुक्रमणिका १०८० २१३ .१४९१ ६८२ १५३० ९४५ ८२८ १४९६ १०८० १०५१ १५२५ स्वच्छंद. स्वच्छपत्र. वजन. स्वतंत्र.. १९२ ५६१ ५६२ ५६२ १३४४ ३५५ खदन. स्वधा. ८२८ खन. १०७३ खनि. १०८० खनित. १०८६ १३८३ स्वधाभुज्. स्वधिति. स्वप्नक. खभावे. स्वभू. स्वयंवरा. स्वयंप्रभ. स्वयंभू. खर. स्वरापगा. स्वरभेद. २९३ ३५५ १०५१ ५६१ ३५५ ४२३ .१५३८ ८८ ७८६ १३९९ १४०० १४०६ ४४२ १३७६ २१६ ५११ ५४ २४ .६९५ .२११ १३९९ १०८२ ३०६ Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ खरू. स्वरूचि. स्वरूप. खर्. स्वर्ग. स्वर्गपति. स्वर्गसद. स्वर्गिगिरि. स्वर्गिरि. स्वर्गिवधू. स्वर्ग्यापगा. स्वर्जि. खज्जिका. स्वज्जिकाक्षार स्वर्ण. स्वर्णकाय. स्वर्णकार. स्वर्णज. स्वर्णार. स्वर्भानु स्वर्वधू. स्वर्वापी. अभिधानचिन्तामणौ स्वर्वेश्या. स्वर्वैद्य. १८० ३५५ १३७६ १५२५ ८७ १७३ ८७ १०३२ १०३२ १८३ १०८२ ९४५ ९४५ ९४५ १०४३ २३१ ९०८ १०४२ १०४१ १२१ १८३ १०८२ स्वलक्षण. स्वसृ. स्वस्तिक. स्वस्त्रिय. स्वाति. स्वादु. खादुरसा. स्वादुवारि स्वाध्याय. खान. खांत. खाप. स्वापतेय. स्वामिन्. १८३ १८१ १३७६ ५५३ ४७ ५४३ ११२ १३८८ ९०२ '१०७५ ८२ ८४२ २४९ १३९९ १३६९ ३१३ १९१ ५१ ७१४ ३५९ २०८ Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका. २९५ ४७४ सास्थ्य. । ३०८ (१५३८ ।११०० खाहा हंजे.. हह. हट्टाध्यक्ष. हठ. खाहाभुज. हत. खेच्छा. खेद.. खेदज. खेदनिका. खैरिणी. ३५६ ३०५ १३५६ ९२१ हनु. हनुमत्. ५२९ हन. खैरिता. हम. १५३७ ३३४ १००२ ७२५ ८०४ ३३४ ४३९ ५८३ ७०५ १४९५ १४०६ १२३६ । १७६ २२० ११७० ११३७ १०३ १९८ ५२० १०५० १०८२ ३५६ ३५५ खैरिन्. हय. . ९६ हंस. हयग्रीव. हयप्रिय. हयमार. हयवाहन. १०४३ १३२५ हंसक. ६६६ हंसकालीयतनय. १२८३ हंसग. २१२ हंसपाद. १०६१ हंसी. १३२७ हरण. हरबीज. हरशेखरा. Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ हरि. हरिक. हरिकेलिय. हरिचंदन. हरिण. हरिणी. हरिण्मणि. हरित्. हरित. अभिधानचिन्तामणौ हरिताल. हरितालि १२३३ ११७२ १८४ ९७ १७१ २१४ १३९६ हरिदु. १३५४ हरिपर्ण. १२८३ हरिप्रिया. १२९२ हरिमंथक. १२४२ ९५७ १७९ ६४१ हरिदश्व. हरिदेव . हरिद्रा. हरिद्राराग. १२९३ १३९२ १४६४ १०६४ ( १६६ । १३९४ ११७२ ११३९५ हरिमंथज. हरिय. हरिवंश. हरिश्चंद्र. हरिषेण. हरिसुत. हरितकी. हरेणु. हर्म्य. हर्यक्ष. हर्यश्व. हर्ष. १०५८ ११९३ ९८ ११४ ४१८ ४७६ १११४ ११९० ६ २२६. ११७० ११७३ १२३८ ३५. ७०१ ६९४ ६९४ ११४६. ११७० ९९३ १२८४ १७२ ३१५. Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षमाण. हल. हला. हलाह. हलाहल. हलि. हलिन्. हलिप्रिय. हलिप्रिया. हल्य. हल्लक. हल्लीसक. हव. हवित्री. हविरशन. हविर्गेह. हविष्य. हविस्. हव्य. { शब्दानुक्रमणिका ४३५ ८९१ ३३४ १२४३ ११९५ १२९८ ८९० २२४ ८९० ११३८ ९०२ ९६८ ११६४ २८१ २६१ ८३३ १०९७ ९९६ हव्यपाक. हव्यवाह. हव्याशन. हस. हसन. हसनी. हसंतिका. हसित. हस्त. हस्तधारण. हस्तबिंब. हस्तसूत्र. ४०७ हस्तिन्. ४०७ हस्तिदंतक. ८३१ हस्तिनख. ८३२ हस्तिनापुर. 1 २९७ ८३३ १०९९ १०९७ २९६ २९६ २९८ १०२० १०२० ११२९ २९७ ५९९ - ११२ -१२२४ ५९१ ८८७ १५०२ ६४९ ६६३ L १२१७ ११९० ९८२ ९७८ Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ हस्तिनासाहस्तिनीपुर. हस्तिन् : हस्तिपक. हस्तिमल्ल. हस्तिशाला. हस्त्यारोह. हाटक. हायन. हार. हारफल. हारहूर. हारहूरा. हारि. हारिद्र. हारीत. हार्द. हाल. हालक. हाला. हालिनी. अभिधानचिन्तामणौ हालि. ९७८ हाय. १२१७ हास. ७६२ १७७ हासिका. ९९८ हास्तिक. ७६२ १०४३ १५९ "६५९ ६६० १२२४ ९०३ ११५६ ४९३ १४४४ १३९४ १३४१ . १३७७ ७१२ १२४२ ९०३ १२९८ हास्तिनपुर. हास्य. हाहा. हिंसा { हिंस. हिक्का. हिंगु. हिंगुल. हिज्जल. हिखिर: हिडंबनिषूदन. हिम. हिमद्युति. हिमप्रस्थ. { ५५५ ५०९ २९६ ७२ २९६ १४१८ ९७८ २९६ २९४ १८३ ३७१ ३६९ .४६८ ४२२ १०६१ ११४५ १२२९ ७०८ १०७२ १३८५ १०५ १०२७ Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २९९ हिमवत्. । १०२७ । हीरक.. १०६५ हिमवालुका. ६४३ १२७६ हिमांशु. १०४३ १२७६ हिमानी. १०७२ हुतवह. हिमालय. १०२७ हुताशन. १०९७ हिरण्मयी. १४६४ इति. २६१ १२०६ हरव.. १२९० । १०४३ | हृच्छय. २२७ हिरण्य. 1. १९२ . ६०३ । १०४५ २ १३६९ हिरण्यकशिपु. २२१ ६२३ हिरण्यगर्भ. २१३ ६०३ हिरण्यनाभ. १०२८ हृदय. ६२३ हिरण्यबाहु, १०९० । १३६९ हिरण्यवर्णा. १०७९ हृदयंगम. २६८ हृदयंगमता. .६७ हृदयस्थान. ६०२ हृदयालु. ३४५ हिरकत । १५२७ हृदयेशा. हीन.. १४७५ हृद्य.. १४४५ हीनबादिन्. ३४८ हृल्लास ...४६८ होनागी. १२०७ हल्लेख. . WWW हिरण्यरेतम. { १९७ हिरण्यरतस्. । १०९७ १५३४ हिरुक्. Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० हृषीक. हृष्टमानस. होत. हेका. ४६८ हेति. । होम. अभिधानचिन्तामणौ १३८३ । हैयंगवीन. ४३५ हैहय. १५३७ होत्र. ७७३. होत्रीय. ११०२ १५१३ होमकुंड. १०४३ होमधूम. १०६६ होमामि. १०५२ हदिनी. १५६ ११४६ हाद. ११४८ हादिनी. २०७ ४०७ ७०२ ८१९ ८२१ ९९६ ८२१ ८३३ ८३७ ८३६ १०९१ १०८० १४२७ १३९९ हेमन्: हेमकंदल. - हेमतार. ११३२ हस. हेमदुग्धक. हेमंत. हेमपुष्पक. हेमपुष्पिका. हेरम्ब. हेरिक. हेला. हेलि. ही हीकु. हेषा. ५०९ हीण. १४०५ हीत. १५३७ हीवेर.. ११९७ १०८२ । हाद.. ३११ १३०१ १४८४ १४८४ ११५८ १४०५ ३१६ हैमवत. हेषा हैमवती. - -- - - Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषअकारादि. अङ्कुर. अधीश्वर. १६८० अक्षज. . १६१३ अधोमुख. १६१६ अक्षतखन. १५८६ अनन्ता. अक्षर. . १६८७ अनेकलोचन. १५८५ अगूढगन्ध. १६४६ अनेड. १६३५ अग्निरेचक. १६४८ अनेडमूक. १६४८ अधति १७१४ अन्तःखेद. १७१८ १७०६ अन्तिक. १५४४ अजित. १६११ अन्ध. १७०८ अजिनयोनि. १७२८ अन्यथा. १७४७ अञ्चति. १७१२ अन्यदा. १७४६ अञ्जना. १७४० अन्वर्थ १६९४ अञ्जसा. १७४३ अपचिति. १६४७ अतल. १५९० १५८४ अपराजित. १७४४ १६०९ अति. १७४२ अपरेतरा. १५७३ अत्युप्र. अपाचीतरा. १५७३ १७४३ अभिधान. १६२४ अद्य. १७४५ अभिषस्ति.. १६३७ अधान. १६३५ । अमृत. १६४२ अतस्. Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ अभिधानचिन्तामणी अमोधा. १५९२ | असन्महस. १५७४ अम्बरस्थली १७०० असह. १६६७ अम्बुधन १५७१ असुर. १७१९ अम्बुतस्कर. .१५५२ अस्त्रकण्टक. १६८५ अरसञ्चित. १६९१ अस्त्रशेखर. १६९४ अरापूल. १६८७ अस्त्रसायक. १६८६ अर्धकाल. १५९० अस्त्री. १६८९ अर्धकूट. १५८८ अस्र. . १६६१ अर्धतूर. १६२९ अहि, अर्धलोष्टिका. १६३९ अहिपर्यक. १५८५ अर्वती. १७२२ अहिभुज. १६२२ अर्शीघ्न. १६४३ अहिरणि....१७२९ अर्हत. १६२३ - अहो.. १७४२ अलम्भूष्णु. १६५० . . .. आ. ।। अल्लुका. १६४३ आकार. १६२५ अवकटिका १६३२ आकारगृहन. १६३२ अवकुटारिका १६३२ आकाशचमस. १५५५ अवटिन् १५६९ आखोर. १५६८ अव्यय, १६१२। आच्छोटेन. १६३४ अष्टतालाऽऽयता.१६९० आज. १७३७ अष्टादशभुजा ..१५९९ | आभाखर. १५४७ असंयुत. १६१० आभील. १.६३१ Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४६ शब्दानुक्रमणिका ३०३ आयत्त. .. १६३५ । आरणिन्. १७३४ | ईण्डेरिका. १६३९ आराफल. १६९१ ईप्सा. आरोहक. १७१५ ईश्वरी... १५९८ . .. .. .उ. आशिर. १५८० उग्रचारिणी. १५९९ आश्मन. १५५३ उच्चलिङ्ग. .१६६९ आसन्द. १६१८ उच्छर. १५६६ आस्रव. १६३८ उत्तरदिक्पति. १७१४ उत्तराशाधिपति. १५८२ इडवत्सर. १५६९ उत्तरेतरा. १५७३ इडावत्सर. १५६९ उदक्. १७४९ इतरथा. १७४७ उदारथि. १६०७ इति.. १७४३ उदित. .१६२४ इत्थम् १७४७ उद्ध. १६७० इन्द्रभगिनी. १५९३ उद्दाम. १५८१ इन्द्रमह... १७२५ उद्धर. ..१५८० इन्द्रमहंकामुक. १७२४ उद्धृष, इन्द्रवृद्धिक. १७२३ उन्नतीश. १६२२ इन्द्रायुध. १७२२ उन्मत्तवेश.. १५८७ इरा .. १७०६ । उपप्लव. १५५८ इरावर १५७२ । उपराग. १५५८ Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उरु. एकभू. ऊर्वङ्ग. ३०४ अभिधानचिन्तामणौ उपासन. १६९४ । उभयधुस्. .१७४६. एकदा. १७४६ उभयेद्युसू. १७४६ . एकदृश. १६०८ १५८० एकपणा. . १५९४ १६०७ उरुक्रम. एकपाटला. एकपाद्.. उरुगाय. १६०७ १५५६ १७०० एकशफ. १७२२ ऊर्वङ्ग. १७०९ एकङ्ग- १६१८ ऊलन्द. १५८९ १५५६ ऊलूल. १६१३ ऊशस्. १५६२ (१६७३ ऊषणा. ..१६४५ ऊषाकील. १७३५ एकादशोत्तम. १५८८ एकानसी. १५९८ एतन. १७४३ १७३८ ऊर्ध्वकच. १५५९ १७४२ ऊर्ध्वकर्मन्. १६१० । १७४३ ऊषणा. .१६४४ १७४२ एवम्. ऊष्मायण, . १५६७ । १७४३ ऋ. ऋतुवृत्ति. १५६८ | ऐषमस्. १७४७ एकाग. Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३०५ औ. कपिल. ) १६१२ औजस. औषधीगर्भ. १७०५ १५५४ क. ककुदावत. . १७२३ ककुदिन्. .१७२३ ककटीक. १५८४ कटप्रू. १५९० कटाटक. १५९० कटाह. १७२५ कटिमालिका. १६७७ कवर. १६४२ कड. १६३५ कणय. १६९३ कणिका. १७१९ कण्ठाग्नि. १७२९ कथम्. १७४७ कन्दराकर. १७०० कन्यस. १६५८ १५५१ कपि.. २१६१७ ) १७२५ कपिलाजन. १५८९ कम्बल. १७०७ करट. १६७४ १६४९ करण. । १६५३ करपाल. १६८८ करम्ब. १६३८ करवीरक. १६०५ करालिक. १६८८ करालिका. १६०१ कर्णधारिणी. कर्णसू. १५५१ कर्णादर्श. १६७७ कर्णिकारच्छाय. १७०६ कर्पट. १६७९ कर्षर. १५७९ कर्बुरा. १५९७ कलकूणिका. १६५४ कलशीमुख. १६२६ कलशीसुत. १५६० १७१९ । कलशास्त Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ अभिधानचिन्तामणौ काल... १५६८ कलाधिक. १७३४. कलापूर. १६३० १५८९ कलुष. कालकुण्ठ. । १.७२५ कालकूट. १५७९ कांस्य... १७०२ कालप्रन्थि. १५६८ काकजात... १७३२. कालङ्गमा. १६०२ काकु. १६६५ कालञ्जरी. काचिम. १७०८ कालदमनी. १६०२ काण्डवीणा. १६२५ कालभृतं. १५५० कालरात्रि. १.५९१ कादम्ब. १६२५ कालायनी. १५९८ कान्तारवासिनी. १५९२ कासू. १६९० कामताल. १७३३ काहल. १६३४ कामना. १६४६ काहला. १.६२७ कामरूप. १५४६ किङ्कण. १६२६ कामरूपिन्. १७२७ किट्टिम. १७०८ कामलेखा. १५७४ कामसख. १५६५ १७२० कामायु. १७३७ किन्नरीः १६२५ १७३६ किरात् १६४७ काम्य.. १५४४ किराती.. १५९८ कायस्थ. १६४९ किरिकिञ्चिका. १६३० १६५६ किणालात्. किण्विन्. कामिन्. Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किल, कीकसमुख. कीटमणि. कीलाल. कुटर. कुट्टन्ती. कुट्टार. कुण्डा. कुण्डिन् . कुण्डालिक. कुषाकु कुसुमान्त. शब्दानुक्रमणिका १६५९ कुहावती. १७२९ कुहूमुख. १७१६ १६७० १७२० १६९०. कुसुम्भ: कुहाला. कूटकृत्: कूटसाक्षिन्. कूणितेक्षण.. कूपज. १७०० कूपद १५९९ कृतज्ञ. : १७२० १७३३ १६०२ १७२७ कुन्द्रा. कुमुख. कुम्भदासी. १६५६ कुलदेवता. १६०२ कुलधारक. १६५६ कुला. १६०० कृष्णा. कुलेश्वरी. केलिनी. कुवीण. १६०१ १६२५ १७१२ १६७५ १६७५ १६२७ कृत्तिकाभव. कृपीट. कृष्ण. कृष्णतण्डुला. कृष्णपक्ष. कृष्णपिङ्गला. केशी. केसरिन्. कैटभी.. क्रोट. कोटिश्री. ३०७ १५९६ १७३२ १५८६ १६९७ १७३७ १६७१ १६४९ १७२४ १५५४ १७०६ १५६४ १७०२ १६४५ १६८१ १५९३ १५९१ १७०० १५९७ १७२१ १६०२ १६६४ १५९७ Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ अभिधानचिन्तामणो क्षुधा. कोट्टपति... १६८४ । (१६३६ क्षुद्र. कोणवादिन. १५८६ 1१६३६ कोला. १६४५ क्षुद्रा. १६५६ कोशफल. १६७४ १६३७ कोशशायिका. १६८९ क्षुध्. १६३७ कौन्तेय. १६८२ क्षुर्य. १६८९ कौमुद. १५६६ ६१६०६ कौशिकी. १५९१ क्षेत्रज्ञ. १६३४ क्रतुधामन्. १६१३ क्षेमङ्करी. १६०३ क्रमण. १७२० क्षेमा. १५९६ करात्मन्. १५५८ क्षौरिक. क्रोधिन्. १७२३ १६९८ ख. क्लपुष. खगालिका. १६५५ क्लोम. १६६९ खटिका १६४१ क्वाथि. १५६० खण्डशीला. १६५४ क्षणिनी १५६२ खण्डास्य. १६११ क्षान्ता. खतमाल. १५७१ .१७१४ खतिलक. १५५२ क्षीराब्धिमानुषी. १६२० खदिर. १५७३ क्षीराहय. खपराग. १५६३ क्षुण्णक. १६२९ । खरकोमल. १५५५ क्षिपणु. Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका खरु. (१५८४ गन्धवहा. १६६३ ११६६४ गन्धहृत. १६६३ खसापुत्र. १५७९ गरबत. १७३० खसिन्धु. १५५५ गव्य. १६४२ खिलखिल्ल. १७३० गात्र. १६६० खुङ्खणी. १६२६ गान्धर्वी. १५९७ खुरोपम. १६९० गीरथ. १५५७ खेट. . १६४९ गार्गी. १५९७ ग. गीष्पति. . १५५६ गडयितु. १५७० गुणाधिष्ठानक. १६६७ गणनायिका. १५९५ गुणाब्धि. १६२४ गणिका. गुप्तचर. १६१९ १६५६ गुह्यगुरु. १५८४ गणेश्वर. १७२६ गूढभोजन. १७२१ गदयित्नु. १५७० गृहजालिका. १६३३ गदान्तक. १५७८ गृहाम्बु. १६४३ गदित. १६२४ गोकुलोद्भवा. १५९८ गदिनी. १५९५ गोत्रकीला. १.६९९ गद्गद्रखर. .१७२५ गोनर्द. १७३६ गन्धदारु. १६७३ गोपाल. १५८५ गन्धनालिका. . १६६३ गोपाली. १६५१ गन्धवती. १६९६ । गोला... गणेरुका. Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घोषयिनु. ३१० अभिधानचिन्तामणौ गोसर्ग. .१५६० ! घृताण्डी. १६३९ गौतमी. १५९१ । घृतार्चिष. १७१२ गौर.. : १५५७ घृताहय. .१६७६ गौरव. १६७५ वृतौषणी. १६३९ गौरावस्कन्दिन्. १५७४ घोर. . १६७५ प्रन्थिक. १६८१ घोरा. . २५६ प्रहनेमि. १५६९ ग्रहाश्रय. १५५९ ग्रामकुक्कट. १७३५ च. . १७४२ ग्रामणी. .. १६९८ चकित. १६३६ ग्राममृग. ..१७२५ चक्र. : चक्रमेदिनी. १५६० चञ्चमत्. १७२९ १७०३ चण्डकोलाहला. १६२७ घनश्रेणी. १६९९ चण्डमुण्डा. १६०४ घनाञ्जनी. १५९६ चतुःशाख. १६६० घनोत्तम. १६६२ चतुर्दष्ट्र. १६१२ घरी. १६७७ चतुर्धा. १७४८ घर्मा.. १७३९ चतुर्दूह. १६०८ घसुरी. १७११ चतुस् १७४८ घासि. .१७११ । चतुस्ताला. १६९२ घृत.. १७०६ । चन.. १७४१ घन १६६२ Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्दिर. चौर. शब्दानुक्रमणिका चन्दनगिरि. १७०१ चिरिका. १५५६ चीनपट्ट. १७०२ चन्द्रकिन्. १७३१ चोरड. चन्द्रभास. १६८९ चपला. १६४४ छ. चमर.. १६८३ छात्र. १५४४ चर. १६६२ छायापथ. १५७० चर्मचूड. १७३३ छेकाल. . १६३४ चर्मण्वती. १७१० छेकिल. १६३४ चर्मिन्. १६०६ १७१४ चामरिन्. । जगत्स्रष्ट्र. १५९० १७२२ जगद्दीप. चारणा. १५९६ १५५२ चारुधरा. १५७५ जगद्रोणि. १५९० चिक्लिद. १५५५ जगद्वहा. १६९९ चित्. १७४१ जटाधर. १५८९ चित्रपिङ्गल. १७३० जटिन्. चित्रयोधिन्. १६८० १६३५ चित्रवाज़. १७३५ जनित्र. १६५९ चित्रामसूदन. १६८० जन्तु. चिपिट.... १६४७ । जय.. १५७३ चिरायुष. १५४६ । जयतः, १५८९ चल.. जड.. Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जया. ३१२ अभिघानचिन्तामणौ जयन्ती. १६०० । जीवनीय. . १६४१ १५९१ जुहुराण. १७१२ जरण. १६४५ जूटक. . १६६१ जर्ण. १५५४ जैत्र. १६९५ जलकान्तार. १७१५ जोटिन्. १५८८ जलपिप्पक. १७३८ जोटीङ्ग. १५८८ जलभूषण. १७१३ ज्येष्ठ. जललोहित. १७०३ १५८० जलवाल. ज्येष्ठामूलीय. १५६६ १७३९ जलाकाङ्क्ष. १७१८ ज्योतिर्मालिन्. १७१६ जलाशय. १७३८ ज्योतीरथ. जल्पित. जरापुष्प. १६७५ झर्झर. १६३० जवीयस. १७०४ जाङ्गली. १५९३ टट्टरी. १६३० जानि. जाम्बूलमालिका. १६५० डकारी. १६२५ जारी. डमर. १६३१ जितमन्यु. १६१४ डमरुका १६२६ जीर. १६४५ डिण्डिम. १६३० जीरण. १६४५ जीवन. १७०४ । तण्डुला. १६४५ Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३१३ तीक्ष्णधार. [१६८८ तीर्थ. (१७४२ तिमिकोश. १७०९ तथा. ११७४७ तिमिला. १६३० तदा. १७४६ तीक्ष्णकर्मन्. १६८७ तदानीम् १७४६ तीक्ष्णतण्डुला. १६४४ तनूतल. १६६७ तन्तिपालक. १६८१ ११६९१ तब्री. १६७२ १६९५ तपन. १५६० तीर्थपाद. १६०६ तपस. १५५४ ११७४२ १५५३ ।१७४३ तपस् ११६९५ तुषित. १५४७ तमि. १५६१ १६६२ १६०७ तोयडिम्भ. १५७२ तमोमणि. १७१६ त्रपुबन्धक. १७०२ तर्हि. १७४६ त्रस. १६६७ तलेक्षण. १७२८ त्रस्त. १६३६ ताड्य. १६३६ १५६१ त्रापुष. १७०४ तामसी. त्रायस्त्रिंशपति. १५७३ १६३२ त्रिककुत्. १६०९ तारजीवन. १७०५ तालमर्दक. १६२७ त्रिधातुक. १६०४ तेर.. तमोन. त्रिधा. Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ त्रिधामन्. १६०९ । १५६३ त्रिपात १६०९ १६०५ त्रिलोचना. १६५५ दिदिवि. १५४५ त्रिशिरस. १५८१ दिनकेसर. १५६३ त्रिस. १७४८ दिनमल. १५६५ त्रेधा. १७४८ दिनाण्ड. . १५६३ त्वग्मल. १६७१ दिनात्यय. १५६२ दिव.. १५४५ दक्षिणाशारति. १५५९ दिवापुष्ट १५५० दुध्याहय, १६७६ दिवाह्वय. १५६४ द्वन्तालय. १६६२ दिव्य. १७०९ दर्दर. दिशाम्प्रियतम. १५९० दर्दुरा.. . १६०२ दशनोच्छिष्ट. . १६६४ १५५७ दशबाहु. १५८५ दीन. १६३६ दशावतार. १६०८ दीप्र.. १७११ दशाव्यय. १५८९ दीर्घजानुक. १७३६ दाक्षायण. १७०५ दीर्घनाद. (१७२४ दाण्डपाशिक.....१६८४ (१७३३ दायाद १६५७ दीर्घपवन. १७१९ दारद दुन्दुभि. १५८१ दालु.. १६६५ । दुरासद. १६८७ दीदिवि. १५४५ Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका : १७२९ १६०४ १७४८ १७४८ १७४८ द्वेधा. दुःशृङ्गी. .१६५४ । द्विमुख. दुःस्फोट. १६९१ द्विशरीर. हगजल. १६३१ द्विस्.. इशान. १५५१ हषद्वती १५९३ द्वैधम्.. देव.. हेवदीप.. धनकेलि. विदुन्दुभि. . १५७४ धनदावास. हसंचारिणी. १६५७ धनाया. हिनी. १७०० धन्विन्. दौन्दुभी. १६५० १५४५ धरणः : हकट. १६२८ धरणीप्लव. गड. १६२८ धर्मनाभ. दाःस्थ. १६८३ धर्मनेमि. हाःस्थितिदर्शक..१६८३ धर्मपाल. दशमूल. . १६०८ पारवृत्त. १६४४ धर्मवाहन. देखण्डक. १६८० धर्षणी. द्वतीय. . १६५७ धार.. १५८३ १७०१ १६४६ (१६१६ १६८१ १६६८ १७०९ १६१५ १६१० १६८७ धर्मप्रचार. १६८८ १५८७ १६५४ १६१३ दघा . .१७४८ . धारा.. १६६२ द्वेपद.. . १६१७ । धाराङ्ग. १६८८ Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ नन्दीक. धीन. धूमल. धाराधर. १६८८ नन्दिनी. धारासम्पात. १५७१ नन्दिवर्धन. बीदा. १६५७ १७०१ नत. बीवर. १७०१ नभ. १६२८ नभःक्रान्त. धूम्र. १५८८ नभोध्वज. धेनुका. १६८९ नरविष्वण. ध्वजप्रहरण. १७१४ नराधार. ध्वान्तचित्र. १७१७ नलिन. नवव्यूह. नकुला. १६०० नवशक्ति. नक्ता. १५६२ नक्षत्रवर्मन्. १५६९ नसा. नखायुध. १७३३ नस्या. नखारु. १६७२ नचिकेत. नमावास. १७३१ नाडीचरण. नदीष्ण. नामवर्जित. नन्दपुत्री. १५९४ नारायणी. नन्दयन्ती. १६०० नासत्यदत्र. नन्दा.. १६०० नासिक्य. नन्दिघोष, १६८१ । निधनाक्ष. १६०० १५८३ १७३४ १६५८ १५६९ १७२६ १५७० १५७९ १५८८ १७०७ १६०८ १५८६ ॥१६०८ १६६३ १६६३ १७१२ १७३० १६३५ १५९८ १५७८ १६६३ १५८२ १६३४ www.jainelibrary. Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निमित्त. निमेषद्युत्निरञ्जना. निलिम्प. निवसन निशात्यय. १५६० निशावर्मन्. १५६३ १५६४ निशाहय. निशीथ्या. १५६१ निश्. निषद्वरी. निष्ण. नीका. नीच. नीलपङ्क. नीलवस्त्रा. नृत्यप्रिय. नृपलक्ष्मन्. वेष्टन. नृसिंहवपु. शब्दानुक्रमणिका १६८५ नैश्विन्त्य. १७१७ न्यायद्रष्टृ. १६०० न्युब्ज. १५४६ १६७९ नेमि. नेरिन् १५६१ १५६१ १६३४ १७११ १६३६ १५६३ १५९९ १७३० १६८३ १५८७ १६१२ १५५६ १५७३ पक्षिसिंह. पङ्कक्रीडनक. पङ्कगन्धिक. पङ्गु. पङ्गुल. पञ्चकृत्वस्. पट्ट. पणव. पत्र. पत्रफला. पदग. पदत्वरा. पदायता. पद्म. पद्मगर्भ. प. पद्महास. पद्मिन्. पपी. ३१७ १५४४ १६८३ १६४८ १६२२ १७२८ १७०८ १५५७ १६४७ १७४८ १७०२ १६२६ १६८९ १६९० १६५० १६९७ १६९८ १५६८ १६१५. १६१५ १७१७ १५५१ Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ अभिधानचिन्तामणौ परमद. १६७३ । पर्परीक. १७११ परमब्रह्मचारिणी. १५९२ पर्वरि. १५५५ परमरस. १६४३ पलङ्कष. .१७२६ परवाणि. , १५६९ पलप्रिय. १५७९ परश्वस्. .१७४४ पललज्वर. १६४८ पराक्रम. . १६१५ पलामि. १६४८ परारि. ... १७४७ १७०७ पराबुंद. पवनवाहन. १७१३ पराविद्ध. १६०९ पवि. १७११. परास.. . १७०३ | पवित्र.. १७०२ परिज्वन्. १५५६ पश्चिमदिक्पति..१७१४ परिणाह. १५८५ पांशुजालिक. १६०७ परित्राण. १६७१ पांसुचन्दन. १५८५ परिपूर्णसहस्रचन्द्र पाण्डव. १६८२ बती १५७६ पाण्डवायन. १६८२ परिवारक. पाण्डवेय. . १६८२ परिविद्ध. .१५८३ पाताला. .१७०७ परिस्पन्द. १६७६ पादकीलिका.. १६७८ परुत्. १७४७ पादजङ्गु. १६९७ परुल. १७२० पादनालिका. . १६७८ परेद्यवि १७४५ पादपालिका. १६७८ पूर्पद.. १६३९ पादपीठी. १६९८ Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीथ. . । १५५२ पुटक. पुत्री.. पुनः : पुरला. पालक. शब्दानुक्रमणिका ३१९ पादरथी. १६९७ पादवीथी. १६९८ ।.१७१३ पादशीली. १६७८ १६७४ पादाङ्गुलीयक. १६७८ पुण्यश्लोक. १६०६ पादात. १६५० पुतारिका. १६६९ पारिकर्मिक. १६८४ १६०३ १७४३ पारिमित. १६४९ १६०१ पारिशोल. १६३८ पुराणान्त. १५७९ १७२० पुराध्यक्ष. १६८४ पालि. १६५५ " । १६०६ पावन. १७०७ पुरुष.. पिकबान्धव. १५६७ पुरुषव्याघ्र. १७३७ पिङ्ग. १७२५ पुरोगामिन्. १७२४ पितृगणा. पुष्कर. १५५१ पिप्पल, पुष्करिन्. १७१७ । १७०७ पुष्टिवर्धन. १७३४ पीठसर्पिन्. १६४७ पुष्परजस्. १६७५ पीडन. १६५३ पुष्पसाधारण. १५६७ पीतकार. १६७५ पुष्पहास. १६१४ पूजित. पूतार्चिस्. १५६१ (१५५१ १५५५ १५४६ पीतु. : Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५७ १५९३ १५५७ १६६० १६८६ पृश्निगर्भ. प. १६०४ .३२० अभिधानचिन्तामणौ पूर्वतरा. १७४७ प्रख्यस्. पूर्वेधुस. १७४५ प्रगल्भा. पृथु. १७११ प्रचक्षस्. प्रदाकु. . १७१२ प्रजवुक. प्रजाकर. प्रतियन. पृश्निशृङ्ग. १६०४ प्रतीचीश. पृष्ठ. १७१२ प्रत्यक्. येचकिन्. १७१७ प्रत्यूषाण्ड. पेचिल. १७१७ .१६९८ प्रपातिन्. पैशाची... प्रभा. १७६२ प्रमर्दन. पोषयित्नु. . १७३३ पौत्री. १५९९ प्रमोदित. पौर. १६१९ प्रलापिन्. पौरिक. १६८४ प्रलोभ्य. प्रकर. १६७३ प्रकर्षक. १६२१ प्रवरवाहन. प्रकीर्णक. १७२० प्रवाहिक. प्रकीर्णकेशी. १५९९ ।। प्रसङ्ग प्रकूष्माण्डी. १५९५ प्रखल. १६३६ । प्रास्रव. पेशी १७४९ १५५२ १७०० १६०३ १६१७ १५८२ १६१९ १६६१ १६७२ १५७८ १५८० प्रवर. १६३८ १६३८ Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राच्. प्राण. माध्वम्. प्राश्निक. प्रियङ्गु १६७५ प्रियदर्शन. १७३७ प्रियवादिका प्रोथिन्. फ. फलकिन. फलोदय. फल्गुनाल. फाल. शब्दानुक्रमणिका १७४३ बलि. १७४९ बलित. १७१३ बलिन्. १७४१ बलिन्दम. १६९६ बहुपुत्री. बहुभुजा. ब. १६७३ १५४५ १५६५ १६१९ फाल्गुनानुज. १५६५ फुल्लक. १६३१ बदरीवासा. बन्धुदा. बर्बरी. १६२९ बहुरूप. १७२० १५९३ १६५४ १६६१ बर्हिध्वजा. १५९२ बलदेवखसृ. १६०३ बहुलग्रीव. बहुशृङ्ग. बाभ्रवी. बालचर्य. ३२१ १६२८ १६४४ १६१९ १६०६ १६०१ १५९४ १५५१ १५८४ १६१३ १७३१ १६१४ १५९१ १६०५ बालसात्म्य. १६४१ १६६७ बाहुचाप. बाहूपबाहुसन्धि. १६६६ बीजदर्शक. १६३३ बीजोदक. १५७२ बुध. बोधि. १५५४ १६२३ १६२३ १७३४ . Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भासुर. भट्ट. भीरु. ३२२ अंभिधानचिन्तामणौ ब्रह्मचारिणी. १५९७ । भाटक. १६९६ ब्रह्मण्य. १.५५८ भाटि.. १६३६ ब्रह्मनाभ. १६१६ माण्डिक. १६९८ ब्रह्मन्. भानुकेशर. १५५० भानेमि. १५५० भगनेत्रान्तक. १५८४ १६३१ भगवत्. १६२३ भिक्षणा. १६३७ १६३३ भिक्षुणी. १६५५ भणित. १६२४ भीमा. १५९५ भण्डिवाह. १७०४ भद्रकपिल. १६१२ भीरुक. १७०४ भद्रकाली. १५९५ भुजदल. १६६६ भद्रचलन. १६१९ १७१३ भद्ररेणु. १५७७ भूतनाशन. १६४५ भद्रश्री. १६७३ भूरि. १५८८ भद्राङ्ग. १५५७ भरटक. .. १६३३ भौम. १५५६ भरथ.. . १७१३ भ्रामरी. १५९१ भरुज.. ... १६४१ ... म. . . भर्भरी. १६२० मङ्गलस्नान. १६५२ भल्लह... १७२४ मङ्गलाह्निक. १६५२ १५४४ मङ्गल्य. . १६४२ भृगु. Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३२३ १६३० । मयुक.. . १७३१ मणिकण्ठक. १७३५ मयूरचटक. १७३४ मण्डल. १७२५ मराल. . १७३६ मत्स्योदरी. १६९६ मरीच. .१६४४ मंथन. १६२१ मरुद्रथः । १७२१ मदननालिका. १६५४ मरूक. १७३१ मदशौण्डक. १६७४ मर्क.. १७१४ मदाम्बर. १५७७ मर्त्यमहित. १५४६ मदोल्लापिन्. १७३२ मर्मचरः १६६७ मधुक. १७०३ मर्मभेदन. १६८५ मधुकण्ठ. १७३२ मर्मराल. .१६३९ १७३२ मलयवासिनी. १५९७. मधुज्येष्ठ. १६४२ १६६८ मधुरा. १६४३ मल्लिकाक्ष, . १७२२ मध्यलोका. १६९९ महस्.. १७४४ मध्यस्थ. १६९६ महाकच्छ. . १७०९ मनुज्येष्ठ. १६८७ महाकान्त. १५८७. मनोदाहिन्. १६२१ महाकान्ता. १६९९ मनोहारिन्. १६५५ महाकाय. . १७१८ मन्दरमणि. १५८६ महाकाली..१५९५ मन्दरावासा. १५९७ महाक्रम. १६१३ मन्दीर. १६७८ महाग्रह. १५५७ मधुघोष. WW. मलुक. Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ महाचण्डी. १६०४ महाजया. १५९४ महातपस्. १६१४ महानाद. १५८८ महानिशा. १६०२ महापक्ष. १६२२ महाफला. १६९० महाबल. १७०२ महामति. १५५६ महामद. .१७१८ महामाय. महामाया. . १५९१ महाम्बुक. १५८६ महायोगिन्. १७३५ महारौद्री. १६०२ महाविद्या.. १५९४ महावेग. . १६२२ महाशय. १७०९ महाशिला. १६९२ महासत्य. १५७९ महासारथि. १५५३ महास्थाली. १७०० महाहंस. महीप्रसार. १७०९ महेन्द्राणी. १५७६ महोत्सव. १६२० मांसनियर्यास. १६७१ माद्रेय. १६८२ माधवी. १७४१ माधव्या. १७४० मानञ्जर. १६०९ मानस्तोका. १५९६ मारी. १६०३ मार्गणा. १६३७ मार्जारकण्ठ. १७३१ माषाशिन्. १७२१ मासमल. १५६८ १५५३ माहाराजिक. १५४८ मिहिर. १५७५ मिहिराण. १५८४ १६६४ मासू. महासत्व महासत्त्व. १५८२ १६२३ ) Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३२५ मुखमूषण. , १७०३ । मौलि. मुद्गमुज्. १७२१ मौलि. १७०० मुनय. मुनि. ... १५५९ यजत. १५५४ मुरन्दला. . १७१० यज्ञधर. १५५४ मुरला. १७१० यज्ञनेमि. १६१० मुषुण्डी. १६९३ यक्षराज. १६१७ मूक. १७३८ यज्ञवह. १५७८ मृदुपाठक. १७३९ । १७४२ यथा. मृदुल. १६७२ । १७४७ मेघकफ. १५७१ यदा. १७४६ मेघनादानुलासक.१७३१ १५५८ मेघारि. १७१५ यमकील. मेघास्थिमिञ्जिका. १५७१ यमखसू. १५९९ मेचक. १६६८ यमुनाग्रज. १५७८ मेधातिथि. १७३८ यहि. मेरुपृष्ठ. १५४५ यवनारि. मेर्वद्रिकर्णिका. १६९९ यागसन्तान. १५७६ मैथुनिन्. १७३६ यादवी. .१५९१ यामनेमि. १५७४ १६३१ याम्या. १५६१ मोहनिक. १५६५ युगपत्. १७४६ यम. । मोदक. मोह. Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ युगांशक. युवन.... योगनिद्रालु. योगिनी. योगिन्. योग्य. यौवनोदभेद. र. रक्तमस्तक. रक्तवर्ण. रजस्. रजोबल. रणेच्छु. रक्तग्रीव. १५८० रक्तजिह्व- १७२७ रक्तदन्ती. १५९४ १७३६ १७०५ - रतावुक. रतोद्वहं. रत्नगर्भ. रत्नबाहु. अभिधानचिन्तामणौ रनिपृष्ठक. रन्तिदेव. रनिनदी. रसनारद. रसमातृका. १५६८ १५५६ १६११ १५९५ १५८८ १६२३ १६८१ .१६४१ १६२० १७०३ १५६२ १७३४ १६६९ १७३२ १५८२ १६१४ रसा रसापायिन् . रसालेपिन्. रसिका. रसोत्तम. रखा. राक्षसी. रागरज्जु. रागरस. राज. राजराज. रात्रिचर. रात्रिनाशन. रात्रिबल. रात्रिराग. रिष्टा. रुचि. १६६६ १६१४ १७१० १७२९ १६६५ १.६६५ १७२३ १६६४ १६६५ १६४१ १६६५ १५६१ १६२१ १६५९ १५५३ १५५४ १६३७ १५५० १५०१ १५६३ १७४० १६४६ Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · शब्दानुक्रमणिका ३२७ रुद्र. लाञ्छनी. रेरिहाण. १५४८ । लाङ्गुल. १६७० रुद्रतनय १६८७ १६५४ रुरु. १७२३ लालस.. १६४६ रूपग्रह. १६६३ लालिनी. १६७७ रूप्र. . १७०४ लिप्सा. रेतोधस. १६५९ १६४६ १५८९ लेपन. १६७१ रेवती. १५९३ लोकनाथ. १६२३ रोमलताधार. १६६८ लोकनाभ. १६१५ रौद्री. . .१६०२ लोकप्रकाशन. १५५२ लोकबन्धु. १५५० १६८५ लोत... १६३१ लक्ष्मीपुत्र. १७२१ लोभन.. १७०५ लघु. १६७२ लोभकिन्. १७२९ १६७० लोल.. १६४६ लड्डुक, . १६४० लोलघण्ट. १७१४ लतापर्ण. १६०७ लोहकंटकसंचिता १६९२ लपित. .१६२४ लोहदण्ड. .१६४६ लम्पट. लम्बा .' १६०० लोहनाल. १६८६ लम्बिको. १६३० लोहमात्र. १६९३. ललना, १६६५ लोहिताक्ष. १६१७ लक्षहन्. लङ्गुल. . 0 . Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ अभिधानचिन्तामणौ व. १५८५ वक्रदल. वक्रदंष्ट्र. वङ्ग. १६६५ १७२८ १७०४ १५७५ १७१२ १६३९ १६५६ १७४२ १५६९ वज्रदक्षिण. वञ्चति. वटिका. वडवा. वत्. वत्स. वदाल. वनन्तप. वनराज. वन्दीक. वष्य. वमि. वयुन. वरवृद्ध. वरा. वराण. वरारोह वराहकर्णक. वर्धमान. वर्षकोश. वर्षाशक. वर्षाबीज. वलयप्राय. वल्लकी. वश. वंशवंशा. १५७४ १६११ १६९४ १६१२ १५६५ १५६४ १५७२ १६९१ १६२५ १६३५ १६१८ १७३९ १६४७ १७०४ १५८३ १५८३ १६७९ १६७९ १७१४ १५८७ १७२४ १७२६ १५७४ १६५९ १७११ १५७५ १६७५ १६८० १५९३ १६७३ १६५० वसु. वर. वरक. वरदा. वसुप्रभा. वसुसारा. वस्त्रपेशी. वस्त्र. वह. वह्निनेत्र. वरद्रुम वरयात्रा. Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३२९ वाच. वहिभू.. १७१६ । वासवावास. १५४५ । १७४२ वासिता. १७१९ वा. । १७४३ वासुदेव. १७२१ वाग्दल. १६६४ वासुभद्र. १६१३ वासुरावारिम्मन्. १७३८ विकचा. .. १६०० १५५७ विकराला.. १६०१ वाजिन्. १५५० विगतद्वन्द्व. १६२४ वायुः १५४८ विजय. १६८० वायुभ. १५४६ १६८६ वायुवाहन. १६११ विजया. वार. १६८५ विजयिन्. वारङ्ग. १७३० विज्ञानदेशन. १६२३ . वारवाणि. १६५६ विथुर. १५८० वारिवाहन, १५७० विद्या. १६७७ वारुणि. १५६० विद्यामणि. १६७७ वारुणी. १५९५ विधातृ. १६१३ वार्तिक. १६५३ विनोद. वार्मसि. १५७० चिन्ध्यकूट. १५५९ वालपुत्रक. १६७१ विन्ध्यनिलया. १५९२ वासनीयक. १६७४ विपुलस्कन्ध १५५३ वासरकन्यका. १५६१ । वियद्भूति. १५६३ Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० वियाम. विरजस् बिलङ्का. विलोमजिह्व. विशसन. विशालक. विशालाक्ष विशालाक्षी . विशोक. अभिधानचिन्तामणौ १६६७ १६०१ १६०० १७१८ १६८८ १६२२ १५८६ १५९८ १७३५ विश्वभुज्. विश्वेदेव. विष. विषाग्रज. विषाणान्त. १६०५ विषापह. १६२१ विष्किर. १७३४ विष्णुशक्ति १६२० वीक्ष्य. १६३१ वीरभवन्ती. १६५८ वीरशङ्कु. १६८५ वृकोदर. १६१४ वृजिन. १६६१ १६१६ १५४७ . १७०७ १६८८ वृत्र. वृन्दाक. वृषणश्व. वृषाक्ष. वृषोत्साह. वेणुतटीभव. वेदोदय. वेध्या. वेल्लिताप्र. वैकुण्ठ. वैजयन्त. वैणव. व्राज. व्यञ्जन. व्यवहार. व्यादीर्णास्य. १५६२ १६१६ १५७६ १६१३ १६१० १७०६ १५५२ १६३० १६६१ १७४२ १५४९ १.६०५ . १७०६ १७३५ १६६४ १६८६ १७२७ व्याधिस्थान. १६६० व्योमधूम. १५७० व्योमोल्मुक. १५५६ Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका श. . शकुनि. शक्राणी. १७३७ १५७६ १५८० शङ्कु. १५८९ १६७० १७०३ १६०८ १६९२ १६०१ शठ. शतक. शतघ्नी. शतमुखी. शतवीर. शताक्षी. शतानन्द. शतावरी. शद्रु. शपीवि. शबर. शमान्तक. शयत. शराभ्यास. शरु. शलिक. १५६१ १६१७ १५७५ १६१८ १५७५ १५८७ १६२० १५५४ १६९४ १६१७ १६११ शष्कुली. १६३९ शस्त्र. १६८९ शाकम्भरी. .१५९८ शान्ति. १५४४ शान्तियात्रा. १६५१ शारद. १५६८ शार्वरी. १५६२ शालिहोत्र. १७२१ शालूक. १७०८ शास्तृ. १६८६ शिखरवासिनी. १६०३ शिखिमृत्यु. १६२० शिवानक. १६४९ शिरःपीठ. १६६६ शिलानीह. १६२२ शिलोद्भव. १७०५ शिवकीर्तन. १६१८ शिवकर. १६८७ शिवदूती. १५९९ शिवारि. १७२३ शीतल. १७१५ शीतीभाव. १५४४ Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ अभिधानचिन्तामणौ | शोध्य. १६७० शुक्ल. शीर्षक. १६७२ । शैलाट. १७२६ शीलक. १६६२ शुक्र. १७०५ १७०४ १५६४ शोभ. १५४६ शुचि. १७१४ शौण्ड. १७३४ शुण्डाल. १७१९ शौण्डी. १६४४ शुनि. १७२३ श्येनाक्ष. १७३६ शुभांशु. १५५३ श्रवण. १६०७ शुभ्र. १७०४ श्रविष्ठारमण. १५५५ शूलधरा. १५९२ श्रीकर. १६११ १६९५ श्रीगर्भ. १६१० शृङ्ग. १६७२ १६८६ शृङ्गमुख. १६२७ श्रीघन. १६४२ शृङ्गवाद्य. १६२७ श्रीमत्. १७३८ शृङ्गोष्णीष. १७२७ श्रीमत्कुम्भ. शेफ. १६७० १६१८ १६७० १६७६ शेव. १७३८ श्रुतकर्मन्. १५५७ शेषाहिनामभृत्. १६१९ श्रुतश्रव. १५५८ शैलधन्वन्. १५८६ १७४४ । १५९८ ।। श्वेत. १७१६ शैला. १७४० श्वेतरूप्य. १७०३ शृगाली. श्रीवराह. शेफस. श्रीवेष्ट. श्वस्. Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका: ३३३ श्वेतवाहन. १५५३ । सन्ध्याबल. सन्न. पडनक. १६६० समन्तभुज. पडझजित्. १६०८ समर्थ. षड्स. १७०७ समधुका. षष्टिहायन. १७१८ समवभ्रंश. षष्ठी. १५९२ समारट. समितिञ्जय. संवत्. १५६८ समितीपद. संवृत्. १५८१ समिर. सत्यवती. १६९६ समोलूक. सत्यसगर. सम्भृत. सत्याग्नि. १५६० सम्भेद. सदागति. १५५१ सर. सदादान. १५७७ सरीसृप. सदायोगिन्. १६१८ सर्वधन्विन्. सद्यस्. १७४५ सनत्. सल. सन्तति. १६५७ सलवण. सन्तान. १६५७ सलिलप्रिय. सन्धिबन्धन. १६७२ सहसजित्. सन्ध्यानाटिन्. १५८९ । सहस्रदंष्ट्र. १५८१ १६७९ १७११ १६५० १६५७ १६५३ १६७० १६१२ १५८१ १५८८ १७०२ १७१३ १७१० १६४२ १५८२ १६२१ १५६८ सर्वत. १६०६ १७०३ १७२७ १६१० १७३८ Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६५९ १७२७ १५७७ अभिधानचिन्तामणौ सहस्राङ्क. १५५० । सुखोत्सव. सांवत्सररथ. १५५१ सुगन्धिक. साध्य. १५४६ सुदर्शन. सायक. १६८६. सारण. १६२६ सुधन्वन्. सारिका. १६२६ सुधाकण्ठ. सावित्री. १५९७ सुनन्दा. सिंहकेसर. १६४० सुनन्दिनी. सिंहविक्रम. . १७२० सुनिश्चित. सित. १५६४ सुप्रसन्न. सिताङ्ग. .१५८७ सुप्रसाद. सिद्धसेन. १६०५ सुभग. सुभद्र. सिनीबाली. १५९४ सुयामुन. सिन्धुवृष. १६१४ सुरवेला. सिन्धुसङ्गम. १७१० सुरालय. सिन्धूत्थ. १५५५ सुरावृत. १६६९ सुरोत्तम. सीमिक. १७१५ सुवाल. १७४२ सुवृष. सुकृत. १५४४ सुशर्मन्. सुखसुप्तिका. १६३२ । सुषेण. १६१६ १७३२ १६०० १७१० १६२३ १५८३ १५८४ १५८५ १६०७ सिन. सिरामूल. १७१० १७१३ १५५२ १६१५ १५४६ १६१३ १५४९ १६१२ सु. Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "शब्दानुक्रमणिका ३३५ स्थिर. १५५८ मृप्र. १७४४ . १५८७ सुष्वाप. १६३२ सूक्ष्मनाभ. १६१६ सूचक. १७२३ स्थिरमद. १७३० सूचिकाधर. १७१७ स्थेय. १६८३ सूचिन्. १६९७ नावन्. १६७२ सूत्रकोण. १६२६ स्नेहु. १५५६ सूनृत. १५४४ म. १७४२ सूर्पकर्ण. १७१८ स्यन्द. १५५५ १५५४ खजातिद्विष. १७२४ सृमर. १७१५ खनि. . १७१३ १७०६ खमुखभू. १६२२ १५४५ खयम्. १७४४ १५६६ खस्तिक. १७३५ १६०९ वस्त्ययन. १६५२ सौमनस. १६७४ सौम्य. ( १६९५ १७४२ १७०४ १७२१ स्कन्दमातृ. १५९६ हक्कारक. १६२५ स्कन्धशृङ्ग. १७२६ हनुष. १५८० स्कन्धिन्. १७१५ हयङ्कष. १५७७ स्तब्धसम्भार. १५८० । हराद्रि. सेव्य. सैरिक. सैरिन्. सोम. हंस. Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ अभिधानचिन्तामणी हरितच्छद. हरिमत्. हवन. हविस्. हस्तिमल्ल. हासा. १५९० १६०३ १६२७ १७१२ हि. १७१५ । हीर. १५७४ हीरी. १७१२ हुडुक्क. हुल. १६०६ हुलाग्रका. १५९५ १७४२ हुलमातृका. १७०१ १५९५ हेरम्ब. १५६७ हेलि. १६०९ हेषिन्. १६१० हैमवती. १७४२ हख. हिमवद्वस. हिमा. हिमागम. हिरण्यकेश. हिरण्यनाभ. १६९० १६८६ १५९० १७२६ १६५१ १७२० १६०३ १६४८ ही. इति नाममाला शेषस्याकारादि । (TRAINITIATIMES Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शीलोन्छे अकारादि. १३ अंशुमत. अंशुमत्. १८ अ.. अजिता. १७५४ अंशुपति. १३ अटरूषक. १८५२ अटाटा. १८८५ अट्या . १८८५ अति. १८८८ अंशुमालिन्. 1 ९८ अतिसारकिन्. १७८३ अकूवार. १८४६ अत्रिनेत्रप्रसूत.१०५ टी० अदितिज. अकृश. ८८, अग. १८४० अद्रिद्विष. १७४ ,, अमिजन्मन्. २०९ अधियाङ्ग. १८१६ अग्न्याहित. १८२२ अनिन्द्रिय. १८७४ अग्रिम. १७९४ अनुग. १७८८ अग्रेगू. ४९८ टी० अनुतर्ष. १८२९ अङ्गना. ५४२ अनुयोग. २६३ टी० अङ्गण. १८३७ अनून. १८७८ अक्रि. १७९८ अनुराधा. १५६० अच्युतदेवी. १७५४ अजगव. १७६४ अजगाव. १७६४ । अनेडमूक. १७७२ अनेकांतवादिन २५टी० अनकातवार १८२६ Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ अन्तरीक्ष. अन्ती. अन्तेषद् अन्दोलन. अन्दू. अन्ध. अभिधानचिन्तामणी १८८३ १८६ १८४५ अन्धकारि २०० टी० १७६२ १८३९ १७५६ अन्धातमस.. १७६२ १८६७ १७८२ ९४ टी० अन्यभृत. अपचायित. अपराजित. अपांनाथ. १८८, अप्रतिचक्रा. १७५४ अब्दवाहन. १९७ टी० अभिज. अभिषुत. अभीषु. अभ्रपिशाचि. अमृतभुज. अमृत लिहू १७८९ ४१५ टी० ९९ टी० १७६१ अमृतप. ७ टी० अमृतपायिन् ७ टी० ७ टी० ७ टी० अमृतवत. अमृतान्धस् अमृताश. अमृताशन. अम्बुद. अम्ब्ल. ८८ ७ टी० १०५१ टी० १८७६ अयुक्पलाश. १५ टी० अयुक्शक्ति. १५ टी० १५ टी० १५ टी० अयुगिषु. अयुङ्नेत्र. अयोनि. अररे. अरिष्टहन्. अर्थ. अर्थिक. अर्धनाराच ७ टी० ७ टी० ७टी० अलक्तक. अलिन्. अलिगर्द. अवगण. अवगणना. १८३९ १५३७ टी० २२१ १८७५ १८१९ ७८० टी० १८०८ १८५९ १८६६ १८८० १८८३ Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका अहम्प्रथमिका. १७६९ अहिभुज्. १३ टी० अहिरिपु. १३ टी० अहो. १८८८ आ. अवनद्ध. २८७ टी० अवन्ध्य. १७६७ अवमानना. १८८३ अवरा. १८६० अवसक्थिका. १८०६ अवस्कन्द. १८२० अवाची. १६७ टी० अविनश्वर. १६६ टी० अविसंवादिवाच्.७३४,, अवीरा. १७९३ अव्यय. ७४२ टी० अशुचि. १८०० अष्टापद, . १८६४ असत्य. २६५ टी० असित. १६ टी० असुराचार्य. १२० टी० आ. १७६५ आकर. १८७७ आक्षपटलिक. १७८५ आक्षारणा. आक्षारित. १७८१ आग्नीध्री. १८२१ आच्छादन. १८०४ आण्ड. १७९७ आतपत्र. ७१७ टी० आतिथ्य. १७८९ आत्मज. ६ टी० आत्मजन्मन्. ६ टी० आत्मजा. ५४२ टी० .६ टी० असुहृत्. । १८१३ 'उह ७२९ टी० असूक्षण. १८८३ असृक्संज्ञ. १८०१ अस्थितेजस्. १७९९ अहमग्रिका. १७६९ आत्मभू. १२२९ टी० Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० अभिधानचिन्तामणी [ ११० इन्वका. r ६ टी० । आस्तरण. आत्मयोनि..२१३ टी० (२२९ टी० इ. १७६५ आत्मरुह. ६ टी० इत्वर. आत्मसम्भव. ६ टी० इन्द्रावरज. ९टी० आत्मसूति. ६ टी० आदिकवि. १८२४ १७५९ आदित्य. ८८ टी० इषुधि. ७८२ टी० आध्राण. १७८० आनुपूर्वी. . १८८६ ईश्वरी. १७६५ आन्तःपुरिक. . १८१३ इह. __ ४३० टी० आन्तर्वेश्मिक. १८१३ आप्लाव. १८०० उच्छादन. आयु. १८७४ उत्कण्ठ. ३१४ टी० आयुर्वेदिक. १७८४ उदरिक. ४५० टी० आवसित. १८५७ उदस्त. १८८३ आयुष्मत्. १७८५ उद्घाटन. १८४८ आशिस्. १८६६ उद्घात. १८८६ आशिर. १७७८ उद्घातन. १८४८ आशी. १८६६ उद्वहा. ५४२ आश्विनेय. १७६४ उन्दर. १८६५ आश्रयाश. १८४९ उपकर्या. १८३६ Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपधा. उपयन्तृ. उपवस्र. उपशोचन. उपवर्त्तन. उपासना. उरगभूषण. उरसिज. उर्वीधर. उर्वीभृत्. उशती. १७७६ १७९२ १८२३ २७५ टी० १८३४ १७८८ ऊर्जखत्. ऊर्ज. ऊर्ध्वदेहिक. ऊहा. शब्दानुक्रमणिका १९९ ६०३ टी० ऊ. १७६८ उषारमण. २३० टी० उष्णवारण ७१७ टी० उहार. १८७२ ऋ. १८ १८ १८१९ १८१९ ३७४ १७६९ ऋजुरोहित. १७९ ऋष्यकेतु. २३० टी० एककुण्डल. १८६६ एकनेत्र. औदरिक. औपवस्त्र. औपवाह्य. ए. १९६ एकाक्ष. ४५३ टी० एनतेन. १८८९ ओ. ओदुम्बर. १८४१ औ. औत्तानपाद. १२२ टी० 'औत्तानपादि. १२२ टि० और्ध्वदैहिक. औषधीश. क. कंस. कंसजित् ककुत्. ककुद् . कक्षापुट. ३४१ क. १७८३ १८२३ १८६० १७७५ १०४ टी० १८४५ १०४९ टी० २२१ टी० १८६२ १८६२ १८०५ Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ अभिधानचिन्तामणी कक्षीकृत. १८८४ । कलानिधि. १०५ टी० कखटी. १८४१ कलिन्दतनया. १८४७ कडिन्दिका. २५८ टी० कल्मष. १८७९ कणाद. १८२६ कवचित. १८१५ कण्डूति. ४६४ टी० कवार. १८३७ कद्वर . ३५० ,, कवित. १७७२ कनिश. १८५७ कशारुका. १७९८ कनिष्ठ. १८७८ कशिपु. १८०७ कन्तु. १७६६ काकलि. १४१० टी० कपालिन्. १९९ टी० कपोणि. २७५ टी० कात्य. २ १७९६ " ।१८२५ , कमन. १७८१ कान्त. ५१६ टी० कमलजन्मन्.२१३ टी० कामध्वंसिन्. २०० टी० कमलयोनि. २१३ टी० कारेणव. १८२५ कमलिनी. १८५५ कार्तिकेय. २०८ टी० कररुह. ५९४ टी० कालकण्ठक. १८६९ करात्ती. कालनेमिहर. २२१ टी० करि. १८५९ कालानुसार्थ. १८०२ कर्कन्धू. १८५२ कालिका. १७६३ कर्ण. १८२७ कालिन्दीकर्षण.९२४टी० । कालिन्दीसू. ९५ टी० कर्णारि. ७१० टी० । कालिन्दीसोदर. ९ टी० कर्णान्दू. १८०४ कालि Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किकी. किङ्किणी. किञ्चुलुक. शब्दानुक्रमणिका कालियदमन. कालियशासन. १० टी० कालियारि. १० टी० किकिदीवि. | १० टी० (२२१टी० १८६९ १८६८ १८०४ १८५८ किन्नरेश. १९० टी० किर्मीरारि ७०८ टी० कुकुन्दुर. ६०८ टी० कुमुदवत्. कुमुद्वतीश. कुरण्टक. १११४ टी० १०२३ टी० कुज. कुटक. कुटिलाशय. १७७२ १८३५ कुण्डिनपुर. कुण्डिनापुर. १८३५ कुध. १०२७ टी० कुमुदसुहृत्. १०४,, कुमुदिनी. १८५५ १८५६ १०४ टी० १८५१ ३४३ १८५१ १७९७ कुलक. १७८६ कुलपालिका. ५१५ टी० कुलिङ्ग. कुल्माष. कुरण्डक कुर्पर. कुहक. क्रूचिका. कूर्पास. कृतकृत्य. कृतान्त. कृतार्थ. कृतिन्. १८६९ १८५७ कुशूल. कुष्माण्डी. कुसुम. १७९६ कुसुमधन्वन्. २२८ टी० कुसुमबाण कुसुमायुध. कृपाण. कृमिजग्ध. कृशेतर. १८३८ ४६ टी० २२८,, २२८,, ९२६, १७७८ १८०५ १७७२ १९ टी० १७७२ १७७२ ७५८ टी० १८०१ १७ Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ कृषक. ८९० टी० ख. कृष्ण. १६, | ख. १०५१ टी० केलीकिल. १७७० खकट. १८७६ केशिहन्. २२१ टी० खजाक. १८४० कैटभारि. २२१, खडकिका. १८३७ कैरवबन्धु. १०४ ,, खट्टिक. १८३१ कोटीश. १८२८ खटाङ्गधर. कोपन. खण्डल. १७७७ १८७८ खररश्मि. ९५ टी० कौञ्ज. १८४० कोपोदकी. खर्जूति. १७८३ १७६५ खलत. १७८२ क्रव्याद. १८८ टी० खलिन. १८६१ क्रिमि. १८५८ खारीक. ९६९ टी० क्रुञ्चा. १८६८ खोल. १८१७ क्रौञ्चदारण. २०९ टी० क्षणप्रभा. १८५० गगन. १०५१ टी० क्षान्ति. १७७७ ६ टी० क्षान्तिमत्. ७६ टी० क्षिप्त. ७७९ ,, गजासुरद्वेषिन्.२००टी० क्षीरप. १७७१ गणनाथ. १९९ टी० झुरिका. .१८१८ गदाग्रज. ९टी० क्षेत्राजीव. गदाधर. २१९ टी० ६ टा० गङ्गाधर. गङ्गाधर. १९९, Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका गन्दक. १८०९ गोस. १३९ टी० गन्धवाह. १८५० गौसमी. १८४७ गभस्तिपाणि. ९६ टी० गौरीनाथ. १९० टी० गरुड. ७८० टी० गौरीप्रणयिन्. ८ टी० गरुडगामिन्. २२१ टी० गौरीप्रिय. गरुडाक. २१४ टी० गौरीरमण. ८ , गरुल. २३० टी० गौरीवर... ८, गर्जा. १८७७ गौरीश. ८ , गई. २७१ टी० ग्रहकल्लोल. १७६० गवीधुका. १८५७ ग्रहेश. ९७ टी० गवेश्वर. १८२८ गाङ्गेय. २०८ चक्र. १८४८ गाधिनन्दन. ८५० टी० चक्र. १३३० टी० गिरिक. १८०८ चक्रपाणी. २१९ टी० गिरीयक. १८०८ चक्रवाकबन्धु. ९६ टी० गुदकील. १७८४ चक्षुर्विकल. ४५७ टी० गुलुञ्छु. १८५१ चन्द्रमौलि. ६ टी० गुह्यकेश. १९० टी० चन्द्रशिरस्. ६ ,, गेहिनी. १७९० चन्द्रात्मज. ११७ टी० गोकर्ण. १८६५ चन्द्रात्मज. ९ टी० गोष. १८४४ चन्द्राभरण. ६ टी० १८४२ चन्द्रिका. . १७५९ गोपित्त. Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ अभिधानचिन्तामणौ चन्द्रमा- १७५९ चैत्रसख चपल. १८४१ चोदित. चरणप. १८५० चौर. चरण्टी. १७९० चरिण्टी. १७९० चर्च. १८७५ चर्मवसन. १९८ टी० चलुक. १७९७ चाणाक्य. १८२५ चाणूरसूदन. २२१ टी० चाण्डाल. १८३२ चान्द्रभागा. १८४७ चान्द्रमसायनि. ११७टी० १८२१ १८४८ १८०२ चित्रकर. १८३१ चिपिटक. ४०१ टी० चारक. चिक्खल्ल. चित्रक. चिरण्टी. चिहुर. १७९० १७९५ चूडारल. ६५० टी० चेतोभव. २२९ टी० छात. छादित. छायाङ्क छुरिका. छुरी. . जकुट. जङ्घाकर जनितृ. जन्म. जमन. जम्भद्विष्. जयन्त. जयन्ती. जरट. जलद. जलधि. जलनीली. २२९ टी० १८८४ १७७६ छ. १८८४ १८८२ १०५ टी० १८१८ १८१८ ज. १८७७ १७८८ १७९५ १८७३ १७७९ १७४ ९४ टी० १८१४ १८७६ १७ टी० १७ टी० १८५६ Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३४७ जलेशय) ३३४ टी० । १७६५ टङ्कण. १८३४ जवन. १७७९ टकपति. १८१२ जवा. १८५४ टीटिभ. १८६९ जहुकन्या. १८४६ त. जागरित. तटाक. १८४९ १७८१ तडाग. १८४९ जाङ्गल. १८३४ तडागिका. १०९४ टी० जात. १८८६ तनया. ५४२ ,, जानुदन्न. ६०१ टी० तनुत्राण. १८१६ जानुद्वयस. ६०१ टी० तन्तुवाय. १८२९ जीव. १८७३ तन्द्रि. १७६९ जीवत्पत्ती. १७९२ तन्द्री . १७९६ जीवातु. १८७४ तपसी. १८२१ जुगुप्सा २७१टी.१७६७ तपखिन्. . ८०९ टी० जैन. १८२६ तपोधन. ७६, ज्योत्स्लेश. १०४ टी० तरवालिका. १८१८ तल. १८७२ तर्षित. ३९३ टी० झम्प. तल्ल १८४९ झम्फान. १८१५ तापिच्छ. १८५३ झषध्वज. २२९ टी० । तारका. ५७५ टी० १८८२ Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ अभिधानचिन्तामणों तुङ्गी. १८६३ तारकान्तक. २०९ टी० । तिमिरारि. ९६, | दक्षाध्वरध्वंसक. २०० तिलन्तुद. १८३० दण्डकटक. १०२३ टी० १७६१ दण्डकरोटक.१०२३,, तुन्दिल. १७८२ दण्डासन. ७८० टी० तुभ. दधिप्राज्य. १८२२ तुषार. १२३५ टी० दध्याज्य. ८३२ टी० तोमर. ७८० ,, दनुजद्विष्. ८८,, तोयद. टी०१७ दमूनस्. १८४९ तोयधि. टी०१७ दम्भोलि. १०६५ टी० त्रिकटुक. १७७९ दयित. ५१६, त्रिदशावास. टी० ८७ दशकण्ठ. ७०६ , त्रिदिवाधीश. टी० ८८ दशन. १८१६ त्रिनेत्र. टी० १५ दशमीस्थ. ३४० टी० त्रिपिष्टप. टी० ८७ दशरथ. १९, त्रिपुरान्तक. टी० २०० दशवाजिन्. १०४ ,, त्रिमार्गगा. टी०१०८१ दशशतरश्मि. ९५,, त्र्यक्ष. टी०१५ दशशिरस्. ७०६,, त्वक्र. १८१६ दशाश्व. १०४ ,, त्वक्सार. १८५४ दशास्य. ७०६,, त्वचा. (२०३,, त्विषामीश. टी०९७ । दाक्षायणा: १७६५ . १८५० दाक्षायणी Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३४९ दाक्षायणीश. १०४ टी० देवगुरु. ११९ टी० दाक्षीपुत्र. १८२४ देवयान. ८९ दात्योह. देवराज. - १८ दानव. २३८ टी० देवलोक. ८७ ,, दाय. १७९२ देववर्मन्. १६३ ,, दारिका. ५४२ टी० देहभाज्. १३६६ दाशरथ. १८०९ दैतेय. २३८ दिग्वस्त्र. १९८ टी० दैवप्रमाणक. ३८३ ,, दिधीपू. १७९२ दैववादिन्. ३८३ , दिनकृत्. .. ९७टी० धुवसति. १० दिनप्रणी. ९७, धुवासिन्. १० दिनबन्धु. ९६, धुशय. दिनरत्न. . ९५, धुसदन. दिनेश. ९८ ,, धुसद्. दिवःपृथिव्यौ. १८३३ (१०, दिवाश्रय. . १० टी० द्युसमन्. दिवि. १८६८ द्योत.. १७५८. दिवौकस्. १० टी० द्रप्स्य. १७७० दुःसंज्ञा.१२०६ ,, द्रविण. १८२० दुराचार. ८५४ ,, द्राढिका. दृष्टिपात. १७६७ द्रुत.. . . १८५९ देवगणिका. १८३ टी० । द्रोण.. १८६८ . १०, 1८७, Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० अभिधानचिन्तामणौ द्रौणिक. । धूमिका. १८४५ द्वाःस्थ, ७२१ टी० धृष्णि . १७५८ द्वाःस्थित. ७२१,, धेनुकध्वंसिन्. २२१ टी० द्विगुणाकृत. ९६८ ,, द्विजेश. १०४ ,, नक्षत्रवर्मन्. १६३ टी० द्वितीयाकृत. ९६८ ,, नक्षत्रेश. १०४ , द्विविदारि. २२१ ,, नमिका. ५३२ ,, द्विसीत्य. ९६८ टी० नडि. ६३१ , नन्दना. ५४२ धनु. १८१७ नभःकेतन. ९७ धनुर्धर. ७७० टी० नभःपान्थ. धनुष्मत्. ७७० टी० नमुचिद्विष. १७४ ,, धनू. १८१७ नरकारि. २२१ धन्विन्. ७७० टी० नरपाल. ६९० धरणीसुत. ११६ (टी०) नवशक्ति. १५, धातूर. १८५४ नशन. १८२० ,, धाम. १८३६ नाकेश. १७३ टी० धावक. नाटिका. १७९९ धियाङ्ग. १८१६ नाटेय. ५४८ टी० धीमत्. नाड़ि. धूममहिषी. १८४५ । नानाविध. १८८१ १८४५ । नाभिजन्मन्. २१३ टी० १८३० धूमर्य. Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नैकसेय. शब्दानुक्रमणिक नारकिक. (१८७२) । नेमिन्. १७५२ नारकीय. (१८७२) १८७ टी. नार्यङ्ग. १८५३ नैचिकिन्. १८६२ नालिका. नेपाली. १८४३ निःशेष १८७८ नैमित्त १७८६ निःसम्पात. १७६१ । नैमित्तिक. १७८६ निगल. १८६० नैरयिक. १८७२ निधानेश. १९० टी० न्युज. १७८२ नियुत. १८२७ निरर्गल. १८८१ पक्षिन्. १४४ टी० निर्गुण्डी. १८५३ १८५५ निर्लयनी. १८६६ पञ्चबाण. । १५ टी० निर्वापण. ३८७ टी. १२२९,, निशाटनी. १८७० पञ्चेषु. १६, निशामणि. १०५ टी० पटचोर. ३८२ टी० निशेश. १०४ टी० पटाका. १८१४. निषङ्गिन्. १८१७ पट्टन. १८३५ निषध. १८७८ पट्टिस. ७८७ टी० १८७८ पण्डु. .१७९५ नीति. १८१४ पण्यवीथी. १८३५ १७ टी० पतङ्ग. ६४२ टी० नेदीयसू. १८८० । पतत्री. १८६७ निषाद. नीरद. Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ अभिधानचिन्तामणौ पतबाह. १८०७ पलिघ. . .१८१८ पताकादण्ड. १८१५ पवनी. .१८३९ पत्रमञ्जरी. १८०३ पवित्र. । १८२३ पत्रवल्लरी.. १८०३ । १८६३ प्रद. १७९८ पशुधर्म. पद्मपाणि. ९६ टी० पशुनाथ. १९९ टी० पद्मबन्धु ९.६ टी० पाकद्विष्. १७४ ,, प्रद्मिनीश. ९७ टी० पाकशासन. १७५ टी० परपुष्ट. १८६७ पाणिग्राह. १७९१ परशुधर. . २०७ टी० पाणिज. ५९४ टी० परशुराम. .१८२४ पादत्राण. १८३० परिजन. १८११ पादुका. १८३० परिणेतृ. १७९२ १७९८ परिदान. १८२७ पामर. १७८३ परिवर्हण. ७१६ टी० पायतिथ्या. १८०३ परिवार. ८८३ टी. पारावत. १८७१ परिहार्य. १८०४ | पारिषद. २०१ टी० परीरम्भ. १८८६ पारिषद्य. १७८५ पर्यनुयोग. २६३ टी० पारीन्द्र. १८६४ पर्यवतथ्या. , १८०३ पार्वतीनन्दन. २०८ टी० पर्येषणा. १७८८ पाशपाणि.. १८८. टी० पशुराम. १.८२४ । पाशयन्त्र. १८३२ पाद् Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिनाकपाणि. १९९,, . शब्दानुक्रमणिका ३५३ पिक्क.. १८५९ । पुरद्वेषिन्. १० टी० पिझ्छ. १८६७ पुरध्वंसिन्. .१० पिटक. १८३९ पुरनिहन्तृ. पिनाकपाल ६ टी० पुरभिद्. पुरमथन. पिनाकभर्तृ. ६, पुरशासन. पिनाकमालिन्. ६ ,, पुरसूदन. पिनाकशालिन्. ६ पुरहन्. पिपासित. १७७७ पिशुन. १८०१ पुरान्तकारिन्. १० १७७८ पुकस. १८३२ पुरुप्रेमद्विष. १७४ , पुट. १८३८ पुरुषदघ्न. ६०१, ५४२ टी० पुष्कस. १३३, पुरकेतु. पुष्पचाप. २२८ पुरघातिन्. पुष्पध्वन. २२८, पुरजयिन्. १०,, पुष्पन्धय. १२१३ , पुरजित्. १०, पुष्पलिइ. १२१३ , पुरदमन. १०, पुष्पास्त्र. २८८,, पुरदर्पच्छित्. १०, पुष्पिता.. १७९३ पुरदारिन्. १० पुष्पेषु २२८.टी० पुरहह्. . . . १०,, पूतनादूषण. २२१.. mmraonor womar m पुरान्तक. पीयूष. पुरारि. पुत्री. ०. ० Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेडा. प्राग. ३५४ अभिधानचिन्तामणौ पूर्वदिगीश. १७३ टी० । प्रव्रज्या. १७५६ पूषदन्तहर. २००, प्रशस्त. १७५५ पृथग्रूप. १८८१ प्रसादन. १८३६. पृष्णि १७५८ प्रस्तर. १८०६ पेटक. १८३८ १८२६ १८३८ प्रस्मृत. । १८८५ पेयूष. १७५७ १८८० पेलक. १७९७ प्राचीश. १७३ टी. पोली. ५९८ टी० प्राणसम. ५१६, पौलोमीश. १७३ ,, प्राणिन्. १८७३ प्रणयिन्. ५१६ टी० प्राणेश. ५१६ टी० प्रतिग्रह. १८०७ प्रादुष्कृत. १८८२ प्रतिचर. १७७४ प्रादेशन. १७७७ प्रतिसीरा. १८०६ प्रापणिक. १८२७ प्रतिसूर्यशयानक. १२९९ प्रिय. प्रतीपदर्शिनी. ५०६टी० ५१६ टी० प्रभविष्णु. १७८७ प्रियाल. १८५२ प्रमथाधिप. २०७ टी० प्रेमवती. १७९१ प्रमृत. ८६६, प्रेयस्. ५१६ टी० प्रलम्बन. २२४ ,, प्रवङ्ग. प्रवहण. १८२७ / फणिलता. ११५५ टी० प्रेष्ठ. Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५५ शब्दानुक्रमणिका १८१८ । ब्रह्मन्, १०३९ टी० ब्रह्मसूत्र. फरक. फाल. १८२१ १८२३ भद्र. भन्द्र. भल्ल. भषक. बकेरुका. १८७० .. १७५५ बर्हिरुक. १८४९ १७५५ बर्हिण. १८६७ ७८० टी० बर्हिष्. १८४९ १८६३ बलद्विष्. भसल. १८५९ बलवत्. ४४८ टी० भिदा. १८८४ बलिपुष्ट. १८६८ भिद. १८८४ बलिबन्धन. २२१ टी० भुजशिखर. ५८८ टी० बहुधान्यार्जक. १७७४ भूतनाथ. १९९, बहुरूप. १८८१ भूधर. १८॥ बाणजित्. २२१ टी० भूपाल. ६९० , बाणधि. ७८२ टी० । १८, बाध. १८७५ म. १०२७ ,, बाहुलेय. २०८ टी० भौम. ११६, बिडाल. १८६५ भ्रष्टबाण. ७७२ टी० बीभत्स. ७१० टी० बुद्धिसहाय. १८१२ मकरकेतन. २२९ टी० बोधकर. १८१९ मकरध्वज. ८६१ टी० । मकरालय, १८४६ बौद्ध. Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी मद्र. मकुट. १८०२ । मनोविलासा. १७८० मकुर १८०७ मन्दाक्ष. १७६९ मङ्ख. १८१९ मय. १८६२ मञ्जरी. ११२२ टी० मयूरथ. २०९ टी० मण्डलक. १७८४ मरुदेवी. १७५३ मण्डितपुत्र. १७५३ मरुमरीचिका. १०१ टी० मतिमत्. ३४१ टी० मर्जिता. १७७८ मत्स. १८७१ मलिनी. १८६२ १८७७ महानील. १८४५ मधुकर. १८५९ महीधर. १ । ३१७ टी० मधुप. १२१३ टी० ।१०२७ , मधुमथन. २२१, महीध्र १०२७, मधुलिह्. १२१३ ,, महीरुह्. १११४ टी० मधुव्रत. १२१३ ,, महेला. १७८९ मधुसख. ९, माकन्द. १८५१ मधुसुहृत्. २२९ टी० माणिक्य. १८४४ मध्यन्दिन्. १८८१ माणिबन्ध. १८३३ मनुष्यधर्मन्. १९० टी० माणिमन्त. १८३३ मनोगव. १७८० मानिनी. ५०७ टी० मनोजन... १७८७ | मायाविन्. १७७६ मनोयोनि. २२९ टी० मायिक. १७७६ मनोराज्य. १७८० मारिष. १७७० Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . शब्दानुक्रमणिका . ३५७ मार्ग. १८६१,टी०१५२ ) मैत्रावरुणि. १८२४ मावीक. १८२९ मैन्दमर्दन. २२१ टी० मालक. १८३४ मौहत. १७८६ माहेय. ११६ टी० य.. .... मीनकेतन. २२९, यज्ञाशन . ८८ टी० मुनि. १७५२ यज्ञोपवीत. ८४४ टी० मुरारि. २२१ टी० यथोद्गत. १७७३ मुष्णी. १७५८ यमनित्. २०० टी० मुस्तक. १८५८ यमनी. १८०६ मूर्छा ३०७ टी० यमरथ. १८६३ मूर्धावसिक्त. १८०९ यमराज्. १८५ टी० मूषिकरथ. २०७ टी० यमलार्जुनभञ्जनमृगलाञ्छन. १०५ टी० २२१ टी० मृत्तिका. १०५६ टी० यमसू. . ९५ टी० मृत्सा. १०५९ टी० यमखसू. ९ टी० मृत्स्ना. १०५९ टी० यादःपति. १०७३ टी० मेकलकन्या. .१८४७ यादोनाथ. १८८ टी० मेघ. १०५१ टी० यामवति १७६१ मेघवर्मन्, १६३ टी० यावक. १८०८ मेधाविन्. १८७० यावन. १८०२ मेला. .१७८६ याव्य. १८७९ मेह. १७८४ । युवती.. . १८७९ Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ अभिधानचिन्तामणौ योगिन्. ७६ टी० । राक्षसेश. ७०६ टी० योगीश. १८२४ । राजराज. १९० टी० योषिता. १७८९ रात्री. १४१ टी० यौवनिका. १७७१ राधेय. ७०९ टी० रामभद्र. १८१० रक्तिका. ८८३ टी० राव. १८७७ रजनीकर. १०५ टी० राहुमूर्धहर. २२१ टी० रण्डा. १७९३ रुक्मिदारण. २२४ टी० रतिपति. २२९ टी० रेपस्. १८७९ रतिवर २२९ टी० रेणुकेय. ८५९ टी. रत्नराशि. १०७४ टी० रोगित. ४५९ टी० रत्नवति. १८३३ रोहिणीश. १०४ टी० रथकार. १८३० रौहिणेय. ११९ टी. रथाङ्ग. १३३० टी० रमणीय. १८७९ लक्ष्मणी. १८६८ रविसारथि. १०२ टी० लक्ष्मीनाथ. २१४ रस. १८४४ लङ्कापति. ७०६ टी० रसजात. १८४२ लडह. १८७९ रसा. १८७२ लिखिता. १७८६ रसाग्र. १८४२ लिविकर. ४८४ टी० रसाल. १८५१ लीलावति. ५०७ टी० ७४१ टी० । लुम्बी. १८५१ रहस्. Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखक. लेपक. १८३१ १८३१ लोकपाल. ६९० टी० लोष्टभेदन. लौकायितिक वज्र. वडवामि. वडवानल. वडवावह्नि. वंशक. १८०१ वक्षोज. ६०३ टी० १०६५ टी० १७ टी० १७ टी० १७ टी० वतंस. वधूटी. वध्वटी. शब्दानुक्रमणिका व. १८२८ १८२६ वर्ण्य. वलभि. १८०३ १७९१ ५१२ टी० ५०७ टी० वरवर्णिनी. वरारोहा. ५०७ टी० वरिष्ट. १७६२ वरुणपाश. १८७१ वर्णपरिस्तोम. १८०५ १८०१ १०११ टी० वल्ग. वल्लभ. वागा. वानमन्तर. वानायु. वायुवर्त्मन्. वारिज. वारिद. वारिधर. वारिधि. ३५९ १८६१ ५१६ टी० १८६१ १७५८ १८६५ १६३ टी० ११६२ " १६४ " १६४ ” १०७४” वारिनिधि. १०७४, वावल्ल. वाशा. वारिमुच् १६४ ” वारिराशि. १०७४, वारिवाह. वार्दल. वार्धि. १६४ ” १७६३ १७ टी० ७८० "" १८५२ ९७ टी० वासरकृत्. वासवावरज. २१४," वाह्निक. वाह्लीक. १८०१ १८६१ Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० विकल्प. १८७४ विकार. विकृति. विक्क. विग्रह. विघ्नराज. विचका. विजय. विजिपिल. विदेश. विनोद. विन्न. अभिधानचिन्तामणी " विश्वकारक. १८८७ विश्वकृत्. १८८७ विश्वजनक. १८५९ १८७८ २०७ टी० १२०५, ९४ 77 १७७९ १९० टी० १८३१ १८८५ १८७५ १८५३ विप्रतीसारविभेदक. विमानयान. ८९ टी० विमानिक. ८९ " विलेप्या. विलोचन. ३९७, विवधिक. विवाहप्रज्ञप्ति. विश्वकर. विश्वकर्तृ. १७९६ १७७४ १७६६ ५ टी० ५११ ५ ५" ५ " विश्वविधातृ. विश्वसू. विश्वसृज्. विश्वस्पृश्य. २१२,, ५ " विश्वस्रष्टृ. विषमनेत्र. ५१ ५ " ५ ११ | १५, । १९६,,, १५,, विषमपलाश. 37 विषमशक्ति. १५” विषमस्पृहा. ४३१ विषमाश्व. ९६ "" विषमेषु. १६-२२९टी० विष्. १८०० विसकण्टिका. १८७० विसप्रसून. १८५६ विस्फोट. १७८३ विहङ्गमा. १७७५ वीजन. १८०८ वीराशंसनी. ८०१ टी० Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६” Do w o w ra warna वृषलाञ्छन.२ १९५,, शब्दानुक्रमणिका ३६१ वीवधिक. १७७४ । वैमानिक. ८९ टी० वृत्रद्विष्... १७४ टी० वैराट. १८४४ वृषकेतन. वैरोट्या. ४५ टी० वृषगामिन्. वैष्णव. १८४२ वृषध्वज. व्याख्याप्रज्ञप्ति. १७६६ वृषपति. १२, व्योम. १८२९ वृषयान. व्योमयान. १५५७ वृषलक्ष्म. ६ , व्योमरत्न. ९५ टी० वीड. १७६९ श. शंबरारि. २२८ टी० वृषवाहन. शकटारि. २२१ ,, वृषाङ्क. शकल. १७९८ वृषासन. ९९, शकुनावेदनी १२८९टी० वृष्णि . ९९ ,, शक्तिपाणि. २०९ ,,.. वृसी. १८२१ शङ्कमुख. १८७१ वेत्रधर. १८१२ शालपाणि. २१९ टी० वेश. १८०० शचीश. १७३ , वैजयन्त. ९४ टी० १७७५ शण्ठ. वैनतेय. १०२ ,, । १७९५ वैनतेयवाहन. २२१, १८६१ वैमनस्य. १३७१, शण्ड.. ५६२ टी० र १२, ११२, शण्ड .. . Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ शतधार. शतार. शब्दग्रह. शमन. शमभृत्. शम्बुक. अभिधानचिन्तामणी शिबिर. शिरोरल. शिला. १७६३ १७६३ १७९५ १८२२ ७६ टी० १८५९ शरजन्मन्. २०९ टी० शरासन. १८१७ शरीरिन्. १३३६ टी० शर्म. १८७५ शशधरः १०५ टी० शार्ङ्गिन्. शाश्वतिक. शिङ्खाणक. शशिभूषण. [१९९, शशिशेखर. ६ शाक्य. शायक. शातकौम्भ. १८४१ १८३७ शान्तिगृह. शारिफलक. १७८७ २१९ टी० "" २३७ " १२७३ ” शिवकान्ता. शिवप्रणयिनी . शिवप्रियतमा. शिवप्रिया. शिवरमणी शिववधूशिववल्लभा. शिवी. शिशुपालनिषूदन शीतांशु. शीतेतररश्मि शुष्मन्. शूर. शूर्पकारि. शूलभृत्. शूलायुध. १८१४ ६५० टी० १८८० शूलास्त्र. १७९९ १८४३ ८ टी० ८ ८ ८ "" 13 " 33 ८,, ८११ ८१ २०४ ” २२१ टी० १०५ " ९५," १८४९ ९६ टी० २२८ " ६ ११ ६ "" ६ " शूलिन्. ६-१९९, Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३६३ शृगाल, . ..११६४ शृङ्गार. १८४३ संस्फेट. १८२० शृङ्गारजन्मन्. २२९ टी० संहतल. १७९७ शृङ्गारयोनि. २२९ ,, सगर्थ्य. १७९४ शोणरत्न. १८४४ सङ्कल्पयोनि. २२९ टी० शौद्धोदनि. २३७ टी० सङ्कोच. १८०१ शौष्कल. १७८० सङ्घर्ष. १८८६ श्रमणा- १७९३ सत्येतरत्. २६५ टी० श्रवण, १७५५ सदागति. १८५० श्रीकण्ठसख. ९ टी० सदातन. १८७९ श्रीमत्. १७७३ सधर्मचारिणी. १७९१ श्रीवत्साङ्क. २१९ टी० सनत्. १८८८ श्रुतिविकल. ४५४ , सनात्. १८८८ श्वेतपत्ररथ. २१५, सनिष्ठेव. २६६ टी० श्वेतरस. ४०९ सन्तति. १७८९ श्वेतवाजिन्. १०४ सन्धि . १८३६ सप्तच्छद. १५ टी० षट्चरण. १२१२ टी० सप्तपलाश. १६, षट्पद. १२१२ , सप्तर्षिज. १७६० षडंहि. १२१२.,,, . सप्तर्षिपूता. १४ टी० Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी समर्पण. १८८७ । सर्वदमन. १८०९ समाख्या. १७६८ सर्वदा. १८८८ समाधि. १७६८ सर्वार्थसिद्ध. ९४ टी० समुद्रकाञ्चि. ९३८ टी० सर्वीय. १७५२ (१०५, सव्यष्ठ. १८१५ समुद्रनवनीत. १७५७ सहधर्मिणी. १७९० ।१७५९ सहाय. १८१३ समुद्ररशना. ९३८ टी० सांशयिक. १७८१ समुद्रवसना. ९३८ ,, सांसृष्टिक. १७६२ समुपजोष. १८८७ सातीन. १८५६ समृद्ध. ३५८ टी० सादिन. १८१५ सम्पा. ११०६,, साप्तपदिन. १८१३ सम्फेट. १८२० सालवाहन. १८११ सम्भव. १७५२ साल्वारि. २२१ टी० सम्मार्जक. १७७४ सिंहवाहना. २०३ ,, सरमा. सित. १८५७ सरसीरुह. ११६२ टी० सितांशु. १०५ टी० सरोज. १७ ,, सिताश्व, १०४ टी० सरोरुह. १७, सितेतर. १६ टी० सर्पवल्ली. ११५५ ,, सिद्धार्थ. १७६६ १८६३ Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सु. सुग्रीवाग्रज. सुता. सुतारा. सुधांशु. सुधासू. सुनासीर. सुरपति. सुरयान. सुरस्त्री. सुरस्त्रीश. सुरेश. सुषीम. सूका. सूत्रामन्. सूनु. सृक्किणी. सृणिका. शब्दानुक्रमणिका सौर. सौवर्ण. स्कन्धावार. स्तनप. स्तैन्य. स्थला. स्थापक. स्थूरिन्. १८८९ १८१० ५४२ टी० १७५४ १०५ टी० १०४ ” १०५ ” १८,, ८९ टी० १८३ ” १७३ ” १७३ टी० १८७६ १७६९ १७६३ ५४२ टी० १७९६ १७९९ सौखशायनिक. १८१९ सौखशाय्यक. १८१९ स्थूल. स्नुहा. स्फुरक. स्फोटन. स्फोटायन. स्फोटायन. स्मरवती. स्मृतिभू. स्वधाशन. स्वर्गस्त्री. स्वर्गिन् . स्वर्वासिनी. ३६५ . १७६० ६५६ टी० ७४६,, १७७१ १७७६ ९३९ टी० ३३० १८६२ १७ टी० १८५२ १८१८ १८२५ १८२५ १८२५ ५०७ टी० २२९ ” ८८ 33 १७३ ” ८८ ” १७९० Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ अभिधानचिन्तामणौ खाहाशन. ८८ टी० | हिङ्गुलु. १८४३ खीकृत. १८८४ हिमवद्दुहितृ. ९ टी० हिरण्यकशिपुदारण. ह. १७९८ २२१ टी० हनूमत्. १८१० हयग्रीवरिपु, २२१ टी० हृदयेश. ५१६ ,, हर्यक्ष. १७६४ हेम. १०४३ , हव्यभुज्. १०९७ टी० हैरिक. १८१२ हालहल.. १८४७ ल. १८५८ । हीकुर्वन्. हालाहल. ११८५८ । हदिनी.. १८६५ इति शेषनाममालाकारादि। इति कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यप्रणीताया नाममालायाः शीलोञ्छस्य शेषनाममाला__ याश्च मूलमकारादिक्रमश्च । इति श्रेष्ठि देवचन्द ला० जैन पु० ग्रन्थाङ्कः ८८. Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निघण्टुशेषेऽकारादिक्रमः अंशुमती. २१६० | अङ्कोलक. २०२१ अंशुमत्फला. २०४९ अङ्गारवर्णा. १९५८ अक्ष. १९७० अङ्गारवली. .. २०३४ अक्षफल. २०३१ अङ्गारवल्लिका. २१६० अक्षिपीलु. २०२६ अङ्गुल. २२६२ अक्षिस्यन्द. १९५० अङ्किपर्णी. . २०८७ अक्षोट. २०२८ अभिसानुज. २११२ अगस्त्य. १९१७ अजप्रिया. १९६१ अगुरु. अजमोदा. अगूढगन्ध. २१५१ २१४३ अमिपादप. १९६१ २०७९ अग्निपुष्पिका. २०३७ २१८५ अभिभा. २०९६ अजाण्टी. २२३० अमिमन्थ.. १९७३ अञ्जनकेशिन्. १९२६ अग्निमुखी..२०२३ अञ्जलिकारिका. २१७१ अग्निशिख. २१५९ अटोला. २२३६ अमिशिखा. २२०२ अट्टहास. . .. २१२७ अम्याख्य. २१३५ अण्डतुल्यफल. २०२९ अकोट. ..२०२१ अतल.' १५१० अजहा. Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ अभिधानचिन्तामणी १७४२ अश्वक. अति. २०४८ १८८९ अन्यथा. १७४७ अतिगुहा. २१६० अपामार्ग. २०९२ अतिबला. २१४८ अपामार्गतुल्यक. २२३८ अतिमुक्त. १९२६ अब्ज. २२१४ अतिमुक्तक. १९७९ अब्जजन्मन्. २२१४ अतिरसा. २१०६ अब्रुह. २२१४ अतिविषा. २१७५ अभया. १९५९ अतिसौरभ. २११० अभ्रष. १९९४ अत्रपत्रक. २१११ अभ्रपुष्प. २०१८ अदरोहिणी. २०४५ अमला. २०९९ अधःशल्य. २०९२ अमिलान. २१३२ अधिष्टकण्ट. २११५ अमृतवल्ली. २२०४ २११५ १९६९ २२०२ अमृता. १९७२ अनन्ता. २२०४ २२०३ २२६४ अमृताफल. २२४५ अनाकान्ता. २०८३ अम्बष्ठकी. २१८० अनार्यक. १९१० २१२६ अम्बष्ठा. अनार्यतिक्तक. २११६ २२३६ अनुवाक. २०१७ अम्बुज. २०१६ अनुस- २१४५ । अम्बुदाहृय. २२६६ Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बुप्रसादनफल. २०४४ अम्बुवेतस. २०१८ अम्रपाटक. अम्ल. १९४२ अम्लकेशर. अम्लटोलक. २२३६ शब्दानुक्रमणिक अम्लवृक्ष. अम्लवेतस . अम्लशाक. अम्ला. अम्लान. अम्लिका. अरणि. अम्लपत्र. १९५१ अम्लपूर. १९४६ अम्ललोणिका. २२३५ अरण्यनलक. अरलि. अरविन्द . अरस्फोता. अरिमर्द. अरिष्ठ. १९३६ अरिष्ठा. १९४८ अरुण. अरुणा. अरुष्क. अरुष्कर. अर्कभक्ता. अर्जक. अर्जुन. १९४६ १९४७ १९४६ २२३६ २१३२ अर्थप्रसाधनी. अर्थसाधन. अर्शोघाती. १९४५ अला. १९७३ अलाबू. २२६० अल्पघाटा. १९७४ अल्पमारिष. २२१३ अल्पास्थि. २१९२ अवगवाक्षी. २२३२ अवल्गुज़. ३६९ २२२३ २०२५ २१८४ २१४५. २१८७ २०२२ २०२२ २२३१. २१०८ १९९२. १९९२ २२६३. २१४९ २०२३ २२२९ २२६४ २२४७ -२१५७ २२३७ २०६४ २१९५ २१०५ Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अव्यथा - १९७० Y ० अभिधानचिन्तामणौ अव्यक्तगन्धिका. ११९४ | अहमग्रिका. १९६९ अहो. १८८९ मा २१०३ - आ. अशोकरोहिणी. २१८३ आकाण्डीरक. २२६७ अश्मगर्भ. १९९० आखुपर्णी.. २२११ अश्मन्तक. १९५१ आघाट. २०९३ अश्मरिकारिपु. २०२० आधेगी. २२२९ अश्वकण्ड. २०७८ आचमन. २११८ अश्वकर्ण. १९९१ आटरुष. २०४७ आढकी. अश्वगन्धा... २०७८ २२७८ आदण्ड. अश्वघ्ना. . २१६३ २०४१ आदित्यवल्ली: २२३१ अश्वत्थ. १९२७ आमण्ड. २०४० अश्वत्थफला. २१५६ आमलकी. १९७२ अश्वपुच्छा. २०९७ आम्र.. २००९ अश्वमारक. १९१८ आम्रातक. १९३५ अश्वमूर्ति. २०३९ आयतफला. १९३२ अश्वरोध. १९१८ आयसीश्वरा. २१६३ अश्ववल्लभा. . २०८४ आहेवत. २०२९ अश्वावरोहक. २०७८ आरोग्यशिम्बिकः १९८८ अष्टापदी. २१२९ आर्तगल. . २१३४ असन. .१९८९ । आर्यभि. २१८६ Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' शब्दानुक्रमणिका आवर्तकी. २१६१ २२७१ इन्द्रायुध. इष्टकापथक. .२०७२ २२७० आशु. इक्षुकर्णिका. २११७ २१४४ उग्रगन्धा. १ इक्षुकाण्ड. २२५७ । २१९६ इक्षुगन्ध. . २२५७ उग्रा. . २१९६ उच्चटा. २०८५ इक्षुगन्धा २१७८ २०८८ उज्झटा. २०९९ इक्षुवल्ली. २०८५ उत्तरा... २१६५ उत्तानपत्रक. २२५८ इथू. २०४१ उत्पल. २१२७ इक्ष्वाकु. २२४७ उत्पलशाखिन्. २१९९ इङ्गुदी. १९६३ उत्सादन. २००३ इज्जल्पू. २०१६ उदकीय. २०३३ इन्दीवर. ... २२१७ उदनाहया. २१४७ इन्दीवरी. .२१८४ उदुम्बरपर्णिका. २०८९ इन्दुक. १९५१ उद्दालक. २००७ इन्द्राक्ष. २०६० उद्वह. .. १९८१ इन्द्रवारुणी. २१९४ उद्वेग. .. २०६८ २११५ उन्मत्तः २१४० २०५९ उपकुञ्चि .२२२३ इन्द्राणी. । २०७२ । उपकुञ्चिका. २२२३ Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ अमिधानचिन्तामणौ एडगज. एनतेन. एरण्ड. एवोल. एलापर्ण. एलावालुक. एल्वालु. २१०२ १८८९ २०४० २२४८ २१०६ २१२० २१२० उपकुल्या. २१९० उपासन. १६९४ उलपवल्वज. २२५८ उलिका. २२३६ उशीरपत्रा. २०१३ उशीरममय. २२६९ उषणा. २१९० उष्ट्रधूमकपुच्छा. २०८० ऋ. २०६१ ऋषभ. २०६० ऋषिसृष्टसुख. २०६२ ऋष्यगन्ध. २०८५ २०८५ ऋष्यगन्धा. २१४८ ऋष्यप्रोक्ता. ऋष्या. २१४८ ऐन्द्री . ऐरवत. २१९४ १९५२ २०९१ ऐरु. । २१९५ ऐलेय. २१२० ओ. २१८६ ओडपुष्प. २०३७ ओदनपाकिन्. २१३४ एकपत्रफल. एकवदन. एकाष्ठील. एकाष्ठीला. २०७० २०३१ ककुत्र.. १९३८ ककता. २१८० । कष्ट. २२७६ १९९२ २१४८ २०६३ Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३७३ ककोट. कोलक. २२४६ १९२३ कङ्गुनी. { २०७५ कङ्गुना । २२७९ कच्छकोलि. २०१७ कच्छुनाशिनी. २१५६ कट्फल. २०३५ कट्फला. १९८३ कटुङ्गा. १९७५ कडङ्गर. २२८५ कणजीरक. २२२२ कणवीर. . १९१८ कणा. २१८९ कणाजाजी. २२२२ कणिश. २२८४ कण्टकाव्या १९५७ कण्टकारिका. २०८१ कच्छुरा. ( २११५ कटङ्कटेरिका. २०५४ कटभी. २०९६ कण्टकिन्. । १९५३ कटु. २१९४ कटम्भर. १९३५ कटम्भरा. . २१८४ कटिल्ल. २०९४ कटिल्ला. २२४४ २१८४ २१८३ कटुका. । २२४७ कटुग्रन्थिक. २१९१ कटुफल. १९२३ कटुम्बक. २२५५ कटुरोहिणी. २१८३ । २००८ कण्टकीटक. १९६३ कण्टफल. २०८९ कण्टली.. २०८१ कण्टी. २०८८ कण्डर.. २२२९ कण्डुरा. .२१८५ कत. २०४४ कतककर्कश. २२३२ Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ अभिधानचिन्तामणी १९२५ कथम. १९४७ । १९०७ कदम्बक्र. २२८३ कपीतन. १९३६ कदम्बपुष्पिका. २१०३ १९२९ कदली. २०४९ कपीन. १९३९ कदुपर्णी. २२०८ कपोत. २०२९ कनकाहय. २१४० कपोताङ्ग्रि. कन्द. २२२९ कफवर्धन. २०१५ कन्दपत्रत्वच्. २१६५ कफहर. २२४५ कन्दराल. . १९२८ कफेल. २००७ कन्यका. २१३१ कमण्डलु. १९२८ कमल. २२१३ कपिकच्छा... २१८५ कमलोत्तर. कपिकच्छुरा. २१८५ २१५९ कम्पिलक. ..२०४३ कपिचूत. १९३५ कम्बुक. कपित्थ. २०७८ १९४९ कम्बोजि. कपिपिप्पली. २०९२ २०९७ करकण्टका. २१८२ .: (१९३४ करच... २०३२ कपिप्रिय. २१९३५ करतालिका, २०३४ करमर्द. १९३६ कपिहोमा. २१८६ करवल्लभ. २०२७ कपिला. १९५९ करवी. २१५३ कपिवल्ली. २०९३ । करवीर. १९१८ १९४९ Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३७५ कर्णसू. करवीरक. १९०७ २०१४ कर्णिकार. १९१६ करहाट. २२१९ कर्णिकारच्छाय. १९८५ कराती. १७९० कर्णी. १९८८ कराम्रक. १९३९ कपेट. १९३० करी. १९९६ कपेराल. २०२८ करीषणी. २२०९ कपूर. १९२२ करुण. १९४१ कर्बर. २२३९ कर्कटक. २०१५ कर्बरि. २२५२ कर्कटकिनी. २०१५ कर्बुर. २११९ कर्कटशृङ्गी. २०८० कार. २०५३ कर्कटाहा २०८१ कर्षफल. . १९७१ कर्कटी. २२४८ कर्षि. १९७१ कर्कन्धु. १९५९ कलम. २२७२ कर्करी. २२४८ कलम्बी. २२४४ कर्कशच्छदा. २२०८ कलशी. २०८६ कर्कशाह. २०४३ कलायक... २२७२ ककारु. २२४६ कलिङ्गी. . २२४६ कर्कोटकी. २२०७ कलिद्रुम. १९७१ कचेर. २१४२ कलिनाशन. २०३२ कर्णधारिणी. कलिवास. १९३१ कर्णपूर. १९०७ । कलिहारिका.. २२०२ Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी काकपीलु. । २००२ कवच. कल्याण. १९८९ कल्हार. २२१७ २९७८ २१४६ काकमर्दक. २०४२ कवल. २२१६ काकमाची. २०४२ कश्मरी. १९८३ काकमुद्रा. २०९८ कश्मीर. २२५१ काकर्द. २०४२ कषाय. १९९१ काकवल्लभा. २०१३ काककर्कटी. २०६६ काकसाहा. २२३९ काककुष्ठ. २०६३ काकादनि. २१७७ काकचिञ्चिका. २१७७ काकेन्दुक. २००२ काकजङ्घा. २१५३ काकोडुम्बरिका. १९३२ काकजम्बु. २०१३ काक्षीव. १९७७ काकणिन्द्रिका. २१७७ काचिम. १७०८ काकतथू. २२८१ काञ्चनी. २१०० काकताल. २११० काण्ड. २१८५ कायतुण्डक. १९११ काण्डतिक्तक. २११६ काकतुण्डपूली. २१५५ काण्डरुहा २१८४ काकनखी. २१७७ कानीन. २००४ काकनन्तिका. २१७७ कान्ता. २१२८ काकनाशा.. २१५४ कान्तारक. २२५९ काकपाद. १९६७ कामक. . २२५४ काकपालक.. २०६३ । कामदूती. १९०८ Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३७७ कामुक. १९१९ कालस्कन्ध. २२२२ कामपादप. २०४६ । कालवल्ली. २१९१ कामागा. २००९ । कालवृन्त. २२७८ ( १९२७ कालवृन्तिका. १९०८ । २०१६ कालशाक. २००१ काम्पिल्ल. २०४३ कायस्था. १९१० २००१ कारम्भा. २०७६ २१३७ काला. २१४३ २२२३ २१५३ कारवी. कालानुसाय. २०५० २२२१ कालिरस २०४९ कालेयक. २०५५ कारवेली. २२४४ काल्य. २१४२ कार्तिकेय. २०३० काश. २२५७ कार्पाशी. २०४४ काश्मरी. १९८४ कार्मुक. २०२६ काश्मीरज. २१२२ कार्यशाल. १९५१ काश्मीररिपु. २२४० । २००२ काष्टदारुणी. १९९८ काल. । २२३२ काष्टपाटला. १९०९ कालगोष्ठा. २१८८ काष्टशारिवा... २१९८ कालनियति. १९६४ काष्ठीला. २०४९ कासन्नी २०३४ ।.२१८८ कासमर्द. २२३२ कालमेषी. २१०४ Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ कासू. कासेक्षु काहल. अभिधानचिन्तामणौ किरात किरातक. १९६० २२५७ १९३४ १९२७ १९८० २२८४ काहला. किंशुक. किंसारु किङ्कण. १९२६ किङ्किणी. २१५८ २१३४ किङ्कीराट्किङ्कीरात. २१३४ किल्क. २१५८ किणीही. २०९२ कुट. किण्वमूल. २१७४ किण्विन्. १७२० कितव. २१३९ किम्पाक. २०४२ कीरवल्लभ. कुक्कुट्ट. कुक्कुट्टी. २११६ २११६ २११६. किराततिक्त. किलासन्न. २२४६ किलिम. १९१७ किशिनी. २२१० कुकुर. कुघ. कुङ्कुम. कुचन्दन. कुजम्बुका. कुञ्चिका. कुञ्जरा. कुटी. कुट्टिम. कुठिञ्जर. कुठेरक. कुण्डली. कुण्डिन् . कुतसु. कुनालिक. कुनाशक़.. २०३६ २२४१ १९५६ २०५६ २२५६ २१२१ १९१४ २०१३ २२२३ २०३८ १९७४ २१३५ २२६७ २१६८ २०३६ २१०८ २१०८ २२०४ १७२० २२५६ १७३३ २११५ Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुब्जक. । २०१६ कुब्जक. र २००८ शब्दानुक्रमणिका कुन्द. २१२६ कुरबक. २१३३ कुन्दरुकी.. २०३९ कुरुण्डी. २२४० कुपालु. २००२ कुरुबक. २१३२ कुबेराक्षी. १९०९ कुरुविन्द. २२६६ कुल. २१७४. २००२ कुलक. कुब्जकण्टक. १९५४ । २२४५. कुमारक. २०१९ कुलत्थ. २२७८ कुमारजीवनामक.२०३१ कुलस्थिका. २२७८ कुमारी. . २१३१ कुलपुप्प. २१७४ कुमुद. २२१६ कुलाव. १९८२ कुमुदाहारी. १९८३ २०८२ कुमुदिका. २०३६ कुल्माष. २२७८ कुमुदोद्भव. १९१८ २२१६ कुमुद्वती. २२१५ १९५९ कुम्भिका. २२२० २२१६ कुम्भी. २०३६ कुश.. २२५६ कुम्भीक. कुशलिन. कुम्भोलूखलक. १९६५ कुशिशिपा. १९५९ का २१३२ कुशेशय, . २२१३ । २१३३ । कुष्ठनाशिनी. २१०४. कुली. कुवलय. कुवलि. कुवेल. ४० Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० अभिधानचिन्तामणौ कुसुम्भ. २१२१ । कृष्णफला. २१०५ ' । २१५९ कृष्णभद्रा. ..२१९९ कूटशाल्मली. १९५७ कृष्णभेदा. २१८३ कूरमण्डलपत्रकः २०९५ कृष्णमल्लिन्. २११० कूर्चक. २२४९ कृष्णमालुक. २११० कूर्चकेसर.. २०६७ कृष्णला. २१७७ कूर्चशीर्षक. २२४९ कृष्णवर्ण. . २०२३ कूष्माण्डक. २२४६ कृष्णवल्ली. २१९९ कृतच्छत्रा.. २२०६ कृष्णवृन्तिका. २०९७ कृतत्राण. २११२ कृष्णसर्जस्. १९८९ १९८६ कृष्णसारा. १९५८ कृतमाल. २०३३ कृमिघ्न. १९४३ कृष्णा . २. १९८२ कृमिज. १९१० २१८९ कृमितरु. २०११ केकणि. कृमिहा. २०६० केतक. २०७० कृष्ण. २१८८ केतकच्छदनीय. २०४४ कृष्णजटा. २१६५ केरलन्. २०५९ कृष्णतन्दुल. . २०५९ केलम्बू. . २२४४ कृष्णतन्दुला. २१९० केशमुष्टिक. २०२६ कृष्णपाकफल. १९४० । केशरञ्जन. २२३१ Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९३ २२१८ शब्दानुक्रमणिका केशवल्ली. कोलक. २१८९ केशवावास. .१९२८ कोलकर्णी.. २०७८ केशाम्बु. .२०११ कोलफल. केशी. २१६६ कोलमूल. २१९१ केसर. १९१६ कोला. २१९० कोलि. १९५९ केसराम्ल. .१९४२ कोलिपत्र. १९९६ केसरी. १९४३ कोली. १९६० कैटरी. २०३५ कोशफला. २२०७ कैरव.. .२२१६ कोशातकी. २२०६ कैरविणी. २२१५ कोषपुष्प. १९९९ कैवर्तिमुस्तक. २२६७ कोषफल. १९२४ कोकनद.. २२१५ कौरव. २११७ कोकिनाक्षमः.. २२५७ ककरा. १९६६ कोटिवर्षा. २०५८ क्रन्दाल. २०५१ कोद्रव. २२८० क्रमसन्धारण. १९७९ १९२३ २००४ कोर. १९२४ २०५१ क्रमुक. कोरगी. १९२१ २०६८ कोरदूषक. २२८० २०७१ कोल. १९२४ । क्रमुकच्छद. २०६९ कोमल. Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षारश्रेष्ठ. । १९८१ । २०५२ क्षुद्रा. ३८२ . अभिधानचिन्तामणौ क्रव्यादिन. २१६६ क्षुद्रपत्र. २१०८ क्रोष्टुपुच्छिका.. २०८६ क्षुद्रपत्रक. २२५८ क्लीतक. २०७७ क्षुद्रपनस. २००८ क्लीतकिका. २१३८ क्षुद्रफला. २१९५ क्षत्रियवरा. २२४७ क्षुद्रभण्टाकी. २०८२ क्षारपत्रक. २०९४ क्षुद्रवर्षाभू. २२३३ क्षुद्रसहा. .२०९८ २०८२ क्षितिक्षम. १९५३ क्षुद्राम्र. २०११ क्षीबक. २०२६ क्षुद्राम्ली. २२३६ क्षीरकन्दा. २०८५ २०८९ क्षीरपुप्पी. २१४१ क्षेत्रमण्डन. . २१५८ ख. क्षीरवल्ली. २०८५ खण्डारीष्टा. २०५४ क्षीरविदारिका. २०८५ क्षीरशुक्ला. २०८५ २२७७ क्षीरार्कपर्ण. १९३७ खदिर. १९५३ क्षीरिका. १९३३ खदिरिका. क्षीरिणी. २२०८ खर. २२५६ क्षीरिन्. १९३१ खरपत्र. २१११ क्षुद्रचन्दन. १९१३ । खरपुष्पा. २२५२ खण्डिक. । २२७४ २१७१ Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स २१६६ शब्दानुक्रमणिका खरमञ्जरी. २०९२ । गन्धकारी. २०३९ खरस्कन्ध. १९३५ गन्धकुसुम. १९४३ खरावा. २१४३ गन्धनाकुलिका. २१०७ । २०६५ गन्धपत्र, १९४९ खजूर. । २०७० गन्धपुष्प. २०१७ खजूरिका... २०६६ गन्धपुष्पक. २०२१ २०७० गन्धफली. २०७६ गन्धबली. २१४९ गजद्विश. १९८५ गन्धमांसी. गजभक्ष्या. २०३९ गन्धमूलक. २१४२ गणरूपक. १९३७ गन्धमूला. . २१०६ गणिका, २१२६ गन्धर्वहस्तक. . २०४१ गणिकारिका. १९७३ गन्धवणी. २१४५ गण्डकाली. २१७१ गन्धवती. २१६८ गण्डकी. २२५८ गन्धवीरा. २०३९ गण्डदूर्वा. २२६५ गन्धवृक्ष. २०१९ गण्डाली. २२६५ गण्डीर. । १९१२ २२३८ गन्धसार. । १९९३ गण्डीरक. २२३७ २१६० गण्डीरी. २२५८ गन्धा . २२५२ गन्धकटी. २१६८ । ( २२५२ . - -- - - - Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ गन्धादी. गन्धाढ्या. गन्धाली. गन्धोत्कट. गमन. गम्भारी. गम्भीर... गरागरी. गर्दभ. अभिधानचिन्तामणी गिरिज. गिरिपर्णी. २११९ गुग्गुली. २१३९ गवाक्षा. गवादनी. २१६७ २१३१ गर्दभशाक. २१६१ १९२८ गर्दभाण्ड. गर्भपाकिन्न. २२७१ गवेधु. गवेधुका. गाङ्गेय. २२५९ १९८३ १९४१ २२०५ २२१६ गर्भपातन. २०२४ गर्भपातिनी. २२०२ २१२९ २१९४ गुञ्जा. गुडपुष्प. गुडफल. गुच्छ. गुच्छफल. गुञ्जस्तजनक. २२६१ २१७७ गुडा. गुडूची. गुणोज्ज्वला. गुन्द्रा. गुन्द्री. गुरुपुष्पिका. २२८२ गुल्मक. २२८२ गुल्मारि. २२६६ गुवाक. गायत्रिन्- १९५३ गुहा. गालव. २००५ गुहाशय. २००० २१९२ १९६४ { २२८५ २०१७ १९९९ २०२७ १९३८ २२०३ २१२५ २०७६ २२५६ २२६६ १९४५ १९१९ २०२७ २०६८ २०८६ २०२८ Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गूढगंधः गृञ्जन, - शब्दानुक्रमणिका ३८५ २१५१ ) गोमी. .. २०५९ २२२४ गोमूत्रगन्धक. १९९० गृध्रनखी. १९६० गोलफल. गेहविटप. १९८६ गोलिह. २०५२ गोकण्ट. २०८८ गोलोमा. २०७३ गोकर्णी.. २२०० २१९७ गोलोमी. गोक्षुर.. २०८७ 1 २२६५ गोचन्दना. २१४५ गोल्हा. २२५३ गोजिका. २१४६ गोवन्द्रनी. २०७६ गोत्रवृक्ष. १९९४ गोशीर्षक. १९१२ गोदुधा. २१९५ गोधास्कन्ध. . १९५५ गार. १९८८ गोधूम. २२७७ गौरशाक. २००० गोनर्द. २२६७ (२१०० गोपकन्या. २१९८ २१११ गोपति. २०६१ ग्रन्थमूली. २११९ गोपभद्रिका. २०३५ । ग्रन्थी. २००८ गोपवल्ली. २१९८ २०५७ गोपवृक्ष. ग्रन्थिक. १९७६ गोपुरप्लव. २२६७ ।२१०४ गोप्या. २१९८ - गौरी. । २१९० ग्रन्थिका. । २२१० Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रीष्मा. अभिधानचिन्तामणौ ग्रन्थिपर्ण. २०५६ । घुसृण. २१२१ ग्रन्थिल १९६६ । धृतमण्डलिका. २१७२ । १९६७ घृतिका. २०८६ ग्रहनाशन. १९८६ घोण्टा. १९६० ग्रामनलिका. २२६० घोण्टा. १९६० ग्राम्या. २१३८ घोषा. २२०६ ग्राहि. १९५० २२२१ २१२८ प्रैष्मिका. २१२८ चक्रवर. १९७९ घ. चक्रमर्दक. २१०१ घण्टा. २०५१ चक्रलक्षण. २२०४ घण्टापुष्प. २१४० चक्रशल्या. . २१७८ घण्टाखा. २१५७ चक्राक. २१०१ घण्टाली. २२०६ चक्राख्य. घनसार. १९२२ - चक्राङ्गी. २१८४ घनस्कन्ध. चक्षुष्य. २१६९ 'घावनी. २०८६ .२०४१ घास. २२६३ । २०४१ घुटा. १९६० चटकाशिर. २१९० चणक. धुणवल्लभा. २२७४ । २०९० चण्ड. २०५० २०११ 'चञ्चु. Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिकाः चण्डा . २२१० चाणाक्यमूलक. २२४२ चण्डात. १९१९ चामरपुष्पक. २२५७ चतुरङ्गुल. १९८७ चार .१९३५ चतुष्पर्णी. २२३६ चारि.. २२६३ चन्दन.. १९११ चारिपत्रिका. २१५२ चन्दनपुप्पक. १९२५ चारुदर्शन. १९२९ चन्दनबीजिका. २०४५ चारुपी. २२२६ चन्दनशाखि. २१९९ चारुमोटा. २१२५ चन्दना. २१९९ चिक्कणं. २०६८ चन्द्रनामक. १९२३ चिच्चा. १९४५ चन्द्रबाला. १९२० चित्र. २०४० चन्द्राहय. २०४३ चित्रक. २१३५ २०८४ चित्रदण्डक.' २२२९ चर्मकषा. । २१७० चित्रपर्णक. २१५५ चर्मरङ्ग. २१६१ चित्रपर्णी. २०८७ चर्मिण. २००६ चित्रफला. २१९५ चलपत्रक. १९२७ चवन. २१९१ २२११ चविका. २१९१ चिरजीविन्. . २२५० चव्य.. २१९१ चिरपाकिन्. . १९५० चाङ्गेरी- २२३५ । चिरबिल्वक... २०३२ चित्रा. २०८९ Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ अभिधानचिन्तामणौ चिर्भिटि. चुक्र. . चुका. [२०९० छिन्नरुहा. २२०३ । २२४८ । छिन्ना. २२०४ चिल्लिन्. २००४ छिन्नोद्भवा. २२०३ चीनक. २२८१ छुरिका. . २२३४ १९४७ १९४५ जघनेफला. १९३३ चुक्रिका. २२३५ जटा. २१६५ चुकिकाम्ला. १९६४ जटायु. १९४५ चूडामणि. २१८७ जटिला. (२१६५ । २१९६ चूत.. २००९ जतुक. चेतकी. २१५१ २१६९ चोरपुष्पिका. २२१० जतुका. 1 २१६९ जतुकारी. २१७० छत्रपत्र. २००६ जतुकृत्. २१६९ छत्राकी. २१०८ जतुदुम. २०११ छत्रातिच्छत्रक. २२५५ जननीजनी. २१७० छर्दनी. २२४९ जन्तुका. २१७० छागलाख्य. १९४१ जन्तुघातक. २०६० छायावृक्ष. १९२८ जन्तुनन्तु. छिन्नग्रन्थनिका. २१०४ । जन्तुफल. १९३१ १९७० २१५८ Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका ३८९ जपा.. जम्बीर. जम्बु.. जम्बू. जम्बूल. जम्भ. : जम्भल. जम्भीर. जम्भील. जलरुह. जय. जयद्रुम. २०३७ । २००० जलज.. १९४० । २२१४ १९७५ | जलजन्मन्. २२१४ २०१२ जलजा... २०७७ २०६९ जलनीली.. २२२० १९४० जलपिप्पली. २१७३ १९४० जलब्राह्मी. २२४३ २११२ जलमुकता. २२६८ १९४० २२१४ २२७५ जलशूक.. २०४६ २२२० जला. २२३८ १९७३ जलाशय. । २०४६ २२७० ( १९७३ २०३७ जातिकोश. २१२४ १९६९ जातिफल. २१२४ २१३५ जाती.. २१२२ २१५१ जातूका. .२१५२ २२२२ जात्यभृत. २१२४ २२८२ (२१५८ जाली.. । २२०६ जयन्ती. जवा. जया.. २२२६३ जरण. AA जर्तील. जलकेश. २११८ । . . . . Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९० जिङ्गी. जीवक. १९८९ टङ्क. अभिधानचिन्तामणौ २१८७ । ज्योतिष्का. २०९६ जीमूतक. २२०५ ज्योतिष्मति. २०९६ जीरक. . २२२२ झिण्टिन्. २१३३ जीर्णवालुक. २२२९ टक्कदेशज २२३९ २२५० २०१२ जीवनाह्वय. २२६७ जीवनी. २२३४ जीवनीय. २२३४ तक्राधिवासन. १९५२ तगर. २०५० जीवन्ती. २२०४ 1 २२३४ तटरुह २०४५ जीवबुध्न. २००८ तनु. २२६७ जीवबोधिनी. २१०२ तनुक्षीर. १९३६ जीववद्धिनी. २२३४ तनुवल्कल. २००३ जुङ्गक. २२२९ तन्तुल. २२१८ जूर्णाह्वय. . २२८१ । २२०४ जोरण. १९९६ तन्दुल. २०५९ जोर्णाला. २२८१ तन्दुली २२३७ ज्ञायतालिका. · २०९९ २२३७ ज्यमल. १९३७ । तन्दुलेरक. २२३७ ज्योतिष्क. २१३५ । तन्वी. २१५३ तन्त्रिका.. तन्दुलीय Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका २१०३ । नाम तपस्विनी. तरणी. तरुण. तोरी. तल. २१६६ तपस्खी. . २१३९ १९१९ तमाल. २०२० तमालपत्र. १९२० तरङ्गिणी. २१०१ २१३१ २०४० १९७३ २०६६ तलफल. २१४० तस्करस्नायु. २१५५ तस्करी. २२१० तापसतरु. १९६३ तापसवल्लभ. १९३५ तापिच्छ. १९१९ तामरस. तामलकि. २०९९ तामस. १९२० ताम्रपत्र. १९५१ २०३८ ताम्रपुष्प.. २२३३ ताम्रफल. २०२१ ताम्रमूलिन्. २११५ ताम्रवृन्त. २२७८ ताम्रसार. १९१४ ताम्रिका. २१७८ तायशूक. २२७३ 5२०६६ ताल. २०७० तालक. २२०५ तालपत्री. २१६४ तालपर्णी. २१५० २१५० ताली. २०७० तिक्तकरोहिणी. २१८४ तिक्तपर्व. २२४६ तिक्तबीजा. २२४७ तिक्तमज्जा. १९६३ तिक्तवल्कली. २२०१ तिक्तशाक., २०१९ तालमूली. २२१४ Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९२ तिन्तिडीक. १९४६ तिन्दुक. अभिधानचिन्तामणौ तिक्ता. (२१७९ । तीक्ष्णपत्र. २०४८ २१८४ । तीक्ष्णफल. २०४८ तिनिश. १९७८ तीक्ष्णवल्क. २०४८ तिन्तिडी. १९४५ तीक्ष्णसार. १९६६ तीरवृक्ष. २००० १९४८ तुङ्ग. १९१७ तिन्तिला. १९४५ तुझा. तिन्दु. २००२ तुङ्गी. २२५२ - (२२०२ १९२१ २००१ तुच्छा. २१३७ तिरीट.. २००४ तुण्डिका. २२५३ तिलकरोहिणी. २१८३ तुण्डी . .२२५३ तिलपर्णिका. १९१५ तुण्डीकेरी. . २०४४ तिलपर्णी. २०८७ तिलपिञ्ज. २२८३ तुभ. २२८३ तिलपेज. २२८३ २०४८ तिल्व. २००४ तुम्बसी. २१९६ २२४७ तिष्यपुष्प. १९९० तिष्यफला. १९७२ २०७८ तिष्या. . २१४९ तुलसी. 5.२११० 1 २१६४ १९२१ तुम्बरु. तुम्बी. तुरगी तीक्ष्णगंध. 3 १९७६ । तुला. सी २१०९ Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुवरी. तुष तुषवी. तुषा. तुष्ट. तूक्षुर. तूणी. तूदं. तूल. तूलिनी. तृण. तृणध्वज. तृणराज. तृणशुल्य. तेजन. तेजनी. तेजखिनी. तेजिनी. शब्दानुक्रमणिका २२७८ २२८५ २२२२ २२८५ २००१ २०८९ २१३७ २०५० २०५० १९५६ | २२५५ २२६३ २०५२ २०६६ २०६९ २१२९ २०५३ २२०० २१६३ २१६४ तेजोमन्थ. तेजोवती. तेजोहा. तैलपर्णिक. तैलभाविनी. तोकय. तोयपिप्पली. तोयमञ्जरी. २२३८ तोयवृत्ति. २२३८ तोयाधिवासिनी. १९०८ २१९६ २२४८ त्रपुसी. { त्रायन्ती. त्रायमाणा. त्रिक त्रिकण्ट. त्रिदिवोद्भवा ३९३ १९७४ २१६४ २१६४ त्रिपर्णी. त्रिपादी. त्रिपुटा. १९१२ २१२२ २२७३ २१७३ २११२ २११२ २०८८ २०८८ १९२२ २१५९ २१७२ १९२२ २१३० Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ दाप. त्वलर्क त्रिवृन्ताख्य. .१९८० । दन्ती. २०८९ प्रटि १९२० दभ्र. २२५६ १९३८ दमन. २१३८ त्र्यरूसुरूपा. . २१३० दर्भ. २२५६ त्वक्सार. . २०५३ दलम्. १९२० त्वक्सुगन्ध १९५२ दाक्षिणात्य. २०६७ त्वक्सुगन्धिका. १९२१ दाडिम. २०३६ त्वगदिन्. १९९६ दाडिमपुष्पक. २०३४ त्वग्रुज. २०६५ दानर्षि. २१३८ त्वचिसार. २०५३ २०५१ १९३७ दारुक. १९९७ दारुण. २१३५ दण्डोत्पला. २१४५ दारुहरिद्रा. २०५४ दद्रुघ्न. २१०१ दार्विका. २१४६ दधित्थ. १९५० दार्वी. २०५४ दधिफल. १९५० दासी. २१५३ दन्तधावन. १९५३ दिण्य. १९२४ दन्तबीज. . २०३७ दिसिन्. २१३४ १९४१ दिच्यवज्र. दन्तशठ. २११८ । १९५० दीपवृक्ष. १९८५ दन्तशठा. २२३६ दीप्ता. . २२२६ दन्तहर्षण. १९४० दीप्य. Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीर्घपत्रक. १ २२२४ २००० शब्दानुक्रमणिका दीर्घकील. २०२१ २१०४ दीर्घदण्ड २०४० । दुग्रह. .२०९३ दीर्घपत्र. १९९१ | दुर्नामारि. २१५० दुर्मेषा. २१७८ दुर्मोघा. २१७८ दीर्घपत्रा. २०९४ दुर्लखा. २१०५ दीर्घफल. १९८७ दुर्वणप्रसर. २१२० दीर्घमूल. २११४ दुर्वा. २२६३ दीर्घमूला. २१५९ दुष्पवर्षा. २०८२ दीर्घरोमक. २११८ दुस्पर्श. २११५ दीर्घवृक्ष. १९७९ दूरमूल. २११४ दीर्घवृत्तान्त. १९७४ दीर्घायु. २२४९ दृढलता. . २२५८ दीर्घिका. २१५२ दृढस्कन्ध. १९३४ दुःस्पर्शा. २०८१ दृशोक्षीव. १९७७ २२२५ देवजग्ध. २२५४ दुन्दक. १९७४ देवता. २१३९ दुरभिग्रहा. २१८५ देवताड. २२०५ २११५ - देवदाली. २२०५ २१८६ । देवदुन्दुभि. २१११ १९६४ । देवदूति. १९४४ दृढ. २१२० दुद्रुम. दुरालभा दुर्ग. Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ देवदु.. १९९७ । दुकिलिम. . १९९७ देवधान्य. २२८१ द्रुम.. .१९९७ देवनिर्मिता..२२०३ द्रुमोत्पलव्याध. १९१५ देवपुत्रिका. २०५८ द्रोणी. २१३८ देवपुष्प. १९२५ द्वारदारु. १९९३ देवमणि. २१७६ द्विजकुत्सित्. २००६ द्वितीय. १९१७ देववल्लभ. २१०९ । १९९७ द्विरदाशन. १९२८ देवशाक. १९९२ द्वीप.. १९२४ देवश्रेणि. २२०० द्विपिशत्रु. .. २१८१ देवसहा. २१४८ द्विपिका. २१८१ २०५८ देवी. २२०४ २१३९ २०२२ दैत्य. १९७१ धनुर्वृक्ष. दैत्या. २१६७ धनुःश्रेणि. २२०१ दोला. २१३७ धनुष्पुट. १९३४ द्रवती. २२११ धन्वन्. .. १९९५ द्रविड. २१४२ धन्वयवासक. २११४ द्रावण. . २००१ धन्वयास. २११४ द्राविडी. १९२० । धमनि. . २२०० घन. . Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धरा, धर्मद्वेषिन् धर्मपत्तन. धर्षणी. धब. धातंकी: धातुपुष्पी. धान्य. धावनी. धुरन्धरः धूर्त. धूर्तपादप. धूर्धर. शब्दानुक्रमणिका २२७१ धान्यत्वपल. २२८५ धामार्गव. ༥ ध्रुवा. ध्वजद्रुम. २२०३ १९७१ १९८१ २०३७ २०३७ २१८८ २२०८ नक्तञ्चर. २०९२ २२०७ २०८२ २०८६ १९८१ २१३९ १९९२ २०६१ धूसरच्छदना. २१४२ ध्रुवसाधन. ३९७ ध्वाङ्गनामिका. २१५६ न. १९९३ २१५९ २०६६ नकुलप्रिया. २१०८ १९६५ नक्तमाल. नगभित् नट. नटिन्. नटी. + नन्दा. नन्दिन. नन्दी. २०३२ २१५५ १९७४ २२५९ २२६७ १९३० १९२५ २२५९ २०८० नड. नताङ्गी. २०१६ नदीकान्त. २१५४ नदीकुलप्रिय. २०१७ नदी सर्जस्. १९९२ नद्यास्या. २१५४ २२०२ १९८२ २२७४ Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८ अभिधानचिन्तामणौ | नादेयी. । नालिकेर ५ २०६७ नन्दीवृक्ष. २०४६ । १९७४ नमस्कारी. २१७१ २०१३ नम्भ. २००३ २०१८ नरेन्द्रमाता. २२३६ नारङ्ग. १९५२ नर्तक. .२२५९ नारायणी. २१८१ नल. २२५९ नारीकेर २०६७ नलदममृणाल. २२७० नाल. २२८५ नलदा. २१६५ नालकिनी. २२१२ नलिका. १९२५ नलिन. २२१३ . २०७१ नलिनी. २२१२ नालीक. २२१४ २२६० निःश्रेणि. २०६५ नवमालिका. २१२७ निःस्यन्दन २००१ नवमालिनी. २१२७ निकुञ्जक. २०१९ २१०७ निकुम्भ. २०९० नाकुली. २ २१६२ निकोचक..२०२१ २२६० निगूढ. २२७६ नागजिहा. २१९९ निचुल. २०१६ नागदन्ती. २०९० नित्यभद्रा. . १९८४ नागबला. २०५४ निदिग्धिका. २०८१ नागरग. १९५२ निम्ब. २०२४ नलिनु. Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निम्बकर. निम्बतरु. नियमन. निर्गन्ध. शब्दानुक्रमणिका २०२६ . १९६५ २०२५ १९१६ १९१३ निर्गुण्डिन् २०७२ निर्गुण्डी. २०७४ निर्मध्या. १९२५ निर्माल्या. २०५८ निशाख्या. २१०० निशाचरी. २२१० १९२० २२७७ २१३४ २२४२ ३९९ नीलमल्लिका. १९६८ नीलवल्कल. २०६८ नीलपर्णक. २०६४ नीलपुष्पी. २१९४ नीलमञ्जरी. २०७३ नीलसन्धिक. २०७२ नीलसारक. २००१ नीलस्यन्दा. २१९४ नीलाम्बुजच्छदा. २०१२ नीलिकासुता. २०७४ निष्कुटि. निष्पाव. नील. नीलकण्ठ. नीलकपित्थ. २०१२ नीलकेशी. २१३८ पङ्कज. नीलनिर्यास. १९९० नीली. नीवार. नुन्नमालिनी. नृप. नृपात्मज. नेमिवृक्ष. न्यग्रोध. न्यग्रोधा. प. पङ्कजमुष्टिका. पङ्कमुष्टिका. पङ्करुह. पचम्पचा. २१३७ २२७९ २०९९ २०५० २०१२ १९५४ १९३० २२११ + २२१४ २०५८ २०५७ २२१४ . २०५५ Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० अभिधानचिन्तामणी २१६० पत्र. पञ्चागुल. . २०४० पद्मकर्कटिक. २२१९ पटोदय. . २०४३ पद्मनाल. २२१८ पटोल... २२४५ पद्मवर्णक. २२५१ पट्टरञ्जन. . १९१४ पद्मा. पट्टिका. . २००४ पद्माक्ष. । २२१९ पट्टी... २००४ पद्माट. २१०२ पण्या... २०९६ पद्मिनी. २२१२ पत्तङ्ग. १९१४ पनसा.. २००८ पत्तूर. १९१५ पयखिनी. २०८५ १९६६ परपुष्टमदोद्भव. २००९ पत्रपुष्पी. २०९३ पराजिता. २१९२ पत्रमालिन्. २०१८ परावतः २०२८ पत्राङ्ग. १९१४ पराश्रयः १९२७ पत्री. २१२३ परिपेलव. २२६८ पत्रोण. १९७६ परिमण्डल. २०६५ पथिका. २१६४ पथिद्रुमः १९५४ " । २०१९ पथ्या... १९६९ परुष. । २०६४ पद्म.. . २२१३ परूषक ___ . २०६४ पद्मक.. २०६२ पर्जनी. २०५५ पद्मकन्द. २२१९ । पूर्ण.. . १९८० परिव्याध. १९१५ Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका पर्णभेदिनी. २०७६ । पाटलि. २०५२ पर्णास. २१०९ । पाटली. १९०८ पर्पटक. . पाठा. . २१७९ पर्वकाढ्या. . १९७२ पाठीन. २१३५ पर्वपुष्पा. २०९१ पाण्डु. २०९७ पलङ्कष. .. १९६४ पाण्डुफल. २२४५ पलकषा. २०८९ पाण्डुरच्छदा. १९५८ पला. २१८९ पाण्डुराग. २१३९ पलाण्ड. २२२४ पाण्डुरोगप्रिय. २१७४ पलाल. २२८५ पापचेलिका. २१७९ । १९८० पारावत. । २०२८ पलाश. . २११९ पलाशक. १९९६ । २१५४ पलाशिनी. २२१२ पारिजातक. १९६५ पवनेष्ट.. २१८९ पारिजाता. २१६३ पवित्रा.. २२५६ । २०२४ पाकल. २११७ पारिभद्र. १ १९६५ । २०६३ पाटल.. । २२७१ पालया. २२३४ पाटला.' १९०८ , पाशुपत. २१७४ पारावतपदी. २०९६ Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ पिच्छिला. । १९५६ १९५८ अभिधानचिन्तामणौ पाषाणभेद. २१५५ । पीतं. . २१२१ पाषाणवूक. १९५१ । पीतक्षीरा. २२०९ पिकबान्धव. २००९ पीतचन्दन. २०५५ पिचुमन्द. २०२५ पीततन्दुला. २२७९ पिच्छा. १९५७ पीतदारु. २०५५ पिच्छिका. २१६१ पीतदुग्धिका. २२०८ पिच्छिल. २००६ पीतद्रुम. २०५५ १९२९ पीतन. २०५५ पिण्डफला. २२४७ २१२१ पिण्डा. . २१५२ पीतनक. १९३६ २०१४ पीतपूति. १९९८ पिण्डी. २०६५ १९८७ पिण्डीतक. २०१४ । २२०७ पितामह. । २२६१ पीतपुष्पक. १९१६ पिपाठीन. . २१३५ पीतपुष्पिका. २१४७ पिप्पल. १९२७ पीतभद्र. २१३४ पिप्पली. २१८९ पीतर.. १९८९ पिशाचिका. पीतवर्णक. २०६३ पिशिता. २१६६ पीतशाल. १९८९ पिशुन. २१२१ पीतसार २०२१ पीतपुष्प. Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका. ४०३ पीता. ع पीतिका. पीतिनी. पीलु.. पीलुपर्णा. पीलुपी. पीवरी. पुटकिनी. पुटा. पुण्डरीक. २२५३ । २०५४ पुत्रदा. .२०७८ २२८० पुत्रश्रेणि. २२११ २१२६ पुद्गल. • २२५४ २१६३ पुनर्नवा. ___ २०९४ २१०० पुन्नाग. १९१६ २१५९ पुर. १९६४ । २०२७ पुरुषनामक. '. १९१७ । २२०१ पुलक. २०६३ पुष्कर. २२१३ पुष्करजटा. २२५१ २१८० पुष्करमूल.. २२५१ २२१२ पुष्पकन्दा. २०८३ १९२२ ( १९५० २१३९ पुष्पफल. २२१५ । २००० २२५९ पुष्पवर्षिणी. २०७४ १९२६ पूग. २०६८ पूगिन्. २०६८ २१३८ पूतना. १९७० २०३१ । पूतिपर्णी २१०५ पुण्ड. पुण्डक पुण्यगन्धा. पुत्रक. २१२५ पुत्रजीव. Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूरणी.. ४०४ अभिधानचिन्तामणौ पूतिपुष्पा. १९४४ पौष्कर. २२५१ पूतिफल. प्रकीर्ण. २०३२ पूतिफली. २१०५ प्रकार्यक. २०३३ पूतिमयूर. २२५२ प्रग्रह. १९८७ पूतिमारुत. १९६८ प्रधन. २२७५ पूतीक. २०३२ प्रचोदन.. पूत्यरिभेद. २११५ १९५५ २१९८ पूरक. : १९४२ प्रतानिका. २२२६ १९५६ । २२६४ पृथक्पर्णी. २०८६ पृथिवीपति. - २०६१ प्रतापस. १९३८ प्रतिविषारुणा. २१७५ S२१५२ प्रतिहास. १९१८ प्रत्यक्पुष्पी. २०९३ । २२२२ प्रत्यक्श्रेणी. २२११ पृथ्वीका. १९२२ प्रपुण्डरीक., २१६९ पृश्निपर्णी. २०८६ प्रपुन्नाट. २१०१ २२५७ प्रपौण्डरीक. २१६८ प्रभाबलं. २१५३ पौण्डरीयक. २१६८ प्रमोदनी. २१२९ पौर २२५४ । प्रलोभी. पृथु. . ) २२२२ पृथ्वी., २१५२ पोटगल. २२६० Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रियजीवक. १ २२५० प्रवर.. शब्दानुक्रमणिका ४०५ प्रवङ्ग.. १८६४ १९७५ १९१० प्रवरवासन्त. २२७६ प्रियदर्शन. १९३३ प्रवाल. २२३३ प्रियवल्ली. २०७५ प्रवालफलघोषिका२२५३ प्रियशालंक १९८९ प्रवेल. प्रिया. २२७५ २१३० प्रियाल. प्रव्रजिता. १९३४ २१०३ प्रियालता. ... २०७५ प्रसादक. २२३३ प्रेतराक्षसी. २११० प्रसारणी. २२२६ १९२९ २१३६ प्राचीना. २१७९ प्लवक. १९२९ प्राणक. प्लीहिरक्तहा. २०३५ प्रहसन्ती. - प्लक्ष. १९३०. २२५० २०९४ प्रावृषायणी. फणिन्.. प्रिय. प्रियंवदा. _ प्रियक. २१८६ फणिज्जक. .१९४१ २१२३ फरण. १९८८ फल. फलकिन्. फलपूरक. २२७९ . फलयू.. २१११ २११२ २२२५ २०१४ १९१२ १९४२ .... १९३३ १ २०७५ २०७५ Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बर्हि. ४०६ अभिधानचिन्तामणौ फलषाण्डव. २०३६ । बर्बरक. फलनेह. २०२८ । बर्बरी. फलाम्बु. २००८ बर्बरोद्भव. फलराजी. १९३३ फलिनी. २०७६ बर्हिपुष्पी. फलिन्. २०७६ बर्हिष्ट. फलेरुहा. १९०९ वलदा. फल्गुवाटिका. १९३२ बलदेवा. फाल्गुनी. १९३२ बलप्रभ. २०१६ बलभद्रिका. फेनक्षीरा. २२०९ बलवान्. फेना. २२२६ बलसार. फेनिल. २०२४ बला. फेनिलच्छदा. १९५९ बहुक्षमा. बदरा. २०४४ बहुगन्धा. बदराष्टि. २११३ बहुत्वक्. बदरादित्यवल्लभा.२२३० बहुप. बदरी. बहुपट. बन्धुर.. .२०६१ । बहुपत्र. वन्धूकपुष्पक. १९८८ | बहुपुत्रा. १९१३ २२५२ १९१३ २२५६ २०३७ २११८ २१५० २११३ १९९४ २११३ २१५८ १९९४ २१४७ २२७४ २०७५ २०७८ २००६ १९३० २००५ २०२३ २०९९ बलिन्. Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका बहुपुत्रिका. २२४६ बिम्बी.. बहुफेना. २२२५ बिल्व. बहुमञ्जरी. बहुला. बहुवल्क. बहुवार. बहुसुता. बाण. बाणाख्य. बालकेशी. बालतृण. बालपत्र. २११० १९२१ १९३४ २००७ २१८० - २१३४ २२६१ २२५८ २२६२ ऽ २११४ १९५३ बालपुष्पा. २१२५ बालभीरुक- २०१८ बाष्पिका. २१५३ १९६३ बिन्दुक बिन्दुलामली. २२२५ बिभीतक. १९७० बिभेदक. १९७१ 請 बिल्वक. बिस. बीजपूर. बीज पूर्ण. बीजवर. बीजस्नेह. ४०७ बिसनाभय बिसप्रसून. बिसिनी. बीजक. बीजकोश. २२१७ बीजपुष्पिका. २२८१ १९४२ १९४२ २२७४ १९८० २२८५ बुसा. बृहत्पत्र. बृहत्पुष्पी. बृहदेला. बृहदूवला. २२५३ १९६८ २१५३ २२१८ २२१२ २२१४ २२१२ १९४३ १९८८ २००५ २१५७ १९२१ २१४९ Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ अभिधानचिन्तामणौ भद्रक. २१३८ बोधि.. १९२७ । भण्डी. २१८७ ब्रह्मकाष्टक. २०५० भण्डीर. १९०६ ब्रह्मकिरीटिनी. २१४१ भण्डीरी. २१८७ ब्रह्मचारी. २०५१ २२६६ ब्रह्मचारिणी. , २२२८ भद्रकाली. २२२७ ब्रह्मजटा. भद्रपर्णिका. १९८३ ब्रह्मण्य. २०५० भद्रपर्णी. २२२६ ब्रह्मदर्भा.. भद्रबला. २२२७ ब्रह्मदारु. २०५० भद्रमुज. ब्रह्मनिष्ठ. २०५१ २२६१ ब्रह्मपादप. १९८१ भद्रमुस्ता. २२६६ ब्रह्ममेखल.. २२६२ भद्रलता. २२२७ ब्रह्मा. २०३० भद्रवती. २०३६ ब्राह्मणयष्टिका. २१६१ भद्रवल्ली. २१९९ २०५७ भद्रश्री. १९१२ ब्राह्मणी. २२१६१ 5२०३६ (२२२८ २०४५ भद्रेन्द्रा. १९९८ भङ्गा. .२२८२ भरद्वाजी.. २०४५ भङ्गुरा, २१७५ भल्ली. २०२३ भण्डिल. , १९०७ । भवोदन्या. २१४७ भद्रा. Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . शब्दानुक्रमणिका. भस्मकाष्ठा. १९६१ भूतनाकेशिका. २१६७ भस्मगर्भा. १९५९ भूतनुत् २०२२ भस्मपिङ्गला. १९५९ भूतपालनं २२५५ भारवाही. . २१३७ भूतवास. १९७० भारोध्वहो. १९८१ भूतवृक्ष. , २००६ भार्गवी. . २२६३ २२५४ भार्गी. . २१६० मूतिक. २२५५ भास्करप्रिय. १९१३ भूतिकतृण. २२५४ भिक्षु. २१०२ भूनिम्ब. २११६ भिल्लातक. . २०२२ भूपदी.. २१२९ भिषङ्माता. २०४७ भूमिकालिका. २१४६ भीम. २०१८ भूमिखर्जूरी. . २०६६ भीरुपत्रिका. २१८१ भूम्यामलकी. २०९९ २००५ भूरिगन्धा २१६८ भूकूष्माण्डी. २०८४ भूरिबला. २१४९ ( २०७३ भूरिस्नेह. भूतकेशी. २ २०७५ भूरुण्डी. २२४० २१६६ भूर्ज. २००५ २१११ | भूवर्षकेतु. २०९५ भूतजटा. २१६७ । भूस्तृण, २२५५ १९४७ भीरु. भुज. २०२२ भूतनी. Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मङ्गल्या. २१४९ ४१० अभिधानचिन्तामणौ भृङ्ग. . २२३२ भृङ्गमित्र २१२७ १९६२ भृङ्गरज. २२३१ भृङ्गराज. २२३१ । २२६४ भृङ्गसम्मता. २१३१ मञ्जसार. २१२४ मञ्जरिशिम्बिका. २०८१ १९२४ भृङ्गार. । २२३१ मञ्जरीनम्र. २०१९ मेकरज. २२३२ मञ्जिष्ठा. २१८७ भेदन. १९४७ मञ्जका. २१८७ भौतिक. २०२२ मणिच्छिद्रा. २१७६ भौभा मण्डुकपर्ण . १९७६ . २१६० मण्डूकपर्णिका. २१८८ भ्रमरोत्सव. १९२६ मण्डूकपर्णी. २२३१ म. २१२६ मण्डूकी. मकरन्द. २२३० मकसा. २२२६ मत्स्यगन्धा. २१७३ मकुष्टक. २२७७ मत्स्यगन्धिनी. २१५६ मकूलक. २०९० मत्स्यपिता. २१८३ मङ्गल. २०६१ मत्स्या. २१८४ मङ्गली. २२५० मत्स्याक्षी. २२२८ मङ्गल्य. १९२८ मत्स्यादनी. २१७३ मङ्गल्यक. २२७३ । मत्स्यान्तकफल. २०१५ mr 00 Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९८ .. शब्दानुक्रमणिका मंदगन्धि. १९८५ मधुपुष्प.. २०१४ मधुपुष्पा., २०९१ मदन. २२१४० मधुपुष्पी. २१४१ । २२७४ मधुफल. २०१० मदयन्ती. २१२९ मधुबीज. - १९७१ मदिरासख. २०१० मधुमती. मद्यपावनी. २०३८ मधुर. २०५० मधु. १९९८ मधुरक. २२५० मधुरसा. २२०० मधुक. २०५० मधुकर्कटी. १९४४ मधुरा. २०७७ मधुका. . २२८० । २१७६ मधुकाष्ठ. १९९९ मधुराजफल. १९३४ मधुगन्धा. २१४१ मधुवल्ली. १९४४ मधुगृञ्जन. १९७७ मधुशाक. १९९८ मधुदूत. २०१० मधुशिक. १९७८ मधुश्रेणी. २२०० १ २१३७ मधुष्ठास. १९९९ मधुष्ठील. १९९९ मधुपर्णी. २ २०७७ मधुसूदनी. २२३१ । २२०४ मधुसव. मधुपर्णिका., १९८२ Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ मधुसवा. मधूक. मधूल.. मधूलिका. { मध्यकेसर. मध्यदृढत्वकू. मनोज्ञा. मनोहर, मन्दार. मरिच. मरिचक. अभिधानचिन्तामणी मरी. मरुजन्मनू. २०७७ २१८१ १९९८ २००० २०७७ २२०० १९४३ २२६२ २१२३ २१२६ १९६५ १९३८ मयूर. मयूष्टक. मयूरक. २०९३ मयूरजङ्घ. १९७५ मरालिका. २२२६ २१४३ २२७७ -२१८८ .२१११ २२६४ १९६६ मरुन्माला मरुबक. मरुसम्भव. मरूपक. मरुद्भव. मर्कट. २११४ २२४३ मर्कटतिन्दुक. २००२ मर्कटिका २०९३ मर्कटी. २१८५ .२१६५ १९३३ १९११ २१८८ २१५२ २१७९ १९४१ मलपत्रक. मलभारी. मलयज. मलिन. ९ २०५९ 7 २०५८ २०१४ { २११२ २२४२ २११२ मल्यपुष्पिका. मल्लिका. ! मल्लिकाकुसुम मल्लिगन्धा. मशकिन्. 'मरकर. · १९११ • १९३२ २०५३ Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका मसूर. मस्तुगन्धा. महती. २२७३ २२५२ २०८३ महाफला. २२४१ २०१२ २१९५ २२०७ २२४७ १९९५ 5 १९४४ र २२२७ १९८४ महाबल. महाबला. महाभद्रा. महाभेदा. महाकन्द. । २२२४ महाकपित्थ. १९६८ महाकाल. २०४२ महाकुम्मी. १९८३ महागन्धा. २१४९ महाघोषा. २०८१ महाजला. २२०७ महाजालिनी. २१६२ महादेव. १९९८ महान्. २०२९ महानाग. १९१६ महानिम्ब. २०२६ महामुनि. महारल. महारसा. महारोध. महाई. महावर. महावर्षा. महावल्ली. महाविषा. २०२९ २०४८ २१५९ २१३८ २००३ १९१२ २१३३ २०९५ २२१२ २१५० 5 १९९५ महापत्र. १९९६ महापारावत. २०२९ महापुरुषदत्ता. २१८२ महाफल. . १९६८ महावृक्ष. १९३८ Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी २०९७ महासहा. २१५८ मांसरोहा. २१७० महाशण मांसारि. . १९४७ महाशाल., १९८९ मांसी. २१६५ महाश्यामा. १९५८ माकन्द. २००९ महाश्रावणिका. २१०३ माकन्दी. १९७२ महाश्वेता. २०८४ २१२५ मागधी. महाश्वेताङ्गवदना.२१९४ १२१८९ महासजस्. १९८९ मागधोत्थित. १९२३ माध्य. २१२६ २१३२ माङ्गल्य. २२३५ महासुगन्धा. २१०८ माणिबन्ध. १८३३ महिषाक्ष. माणिमन्त. १८३३. महीरुह. १९४६ मातुल. २१४० महु. २००८ मातुलपत्रक. २१४० महेरणा. मातुलानी. २२८२ २०३९ मातुलुङ्ग. १९४२ महोटिका. २०८३ मातुलगी. १९४४ महोत्पल. २२१४ 5२०३१ महौजसी. २१६३ माधव. । १९९८ महौषध. माधवी. २२२१ मद्यगुप्ता. २१८५ । माधवीलता. १९२७ २२२३ Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारीच. मारुत. मारुतापह. मारुतापहा. मार्कव. मार्जन. मालक. मालती. मालतीफल. २१०६ २२३२ २००४ मार्जार. १९६३ मार्जारगन्धिका २०९८ माला. मालुक. मालूर. भाष. माषपर्णी. मिषि { शब्दानुक्रमणिका १९२४ २११२ २०२० मुक्तबन्धना. मुखप्रिय. २०६२ २१२२ २१२४ २२२५ २११० १९६९ २२७४ २२८४ मिसिद्रुम. २०१६ २१३० १९५२ मुखभक्ष. मुखशोधन. मुञ्चक. मुझ. मुण्डक. मुण्डतिका. मुण्डी. मुद्ग. मुद्रपर्णी. मुनि. सुनिद्रुम. { मुशटी. मुष्ककः. मुसलिनः. मुस्तकाभ. २०९७ २२२१ मुस्ता मूर्वा. # मूल.. मूलक { ४१५ . १९७७ १९५५ २०५१ २२६१ २२६२ १९२६ २१०२ २१०२ २२७५ २०९८ २१३८ १९१७ १९७६ २२८० २०५१ २१५० २२६८ २२६६ २२०० २२५१ २२४१ Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोघन्. अभिधानचिन्तामणी मूलकपल्लव. १९७६ । मेषशृङ्गी. भूषण. २१८९ मेषाक्ष. मृगगामिनी. २०६० मेहघातिनी. मृगा. २०९१ मोक्ष. मृगाक्षी. २०९१ मोक्षक. मृगादनी. २०९१ मृगालिका. २०८३ मोघा. मृणाल. २२१८ मोचक. मृत्युपुष्प. २०७० मोचा. मृत्युफल. १९९५ मोचाम. मृदङ्गफलिका. २२०६ मोचिका. मृदुच्छद. २००५ मोमाली. मृदुपर्णका. २२४४ मोरटा. मृदुफल. १९६६ म्लच्छकन्द. मृदुवल्क. २००५ य. मेघनाद. २२३७ यजिक. २१७६ यज्ञान मेध्या. २१९१ यमलच्छद. २१३७ यमश्वस. मेषकुसुम. २१०२ । यक. २०७९ २१०२ २१०० २०५१ २०५१ २०५९ १९०८ १९७७ १९५६ २०४९ २१४३ २२४३ २१२७ २२०० २२२३ मेदा. २२६२ १९३१ मेला. २१२७ २२७३ Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योनल. योषाहा. रक्त. शब्दानुक्रमणिका यवतिका. .२१६३ । योगज. यवनाल. . २२८१ योगसार. १९५२ योगिन्. २०२५ यवनेष्ट. १९५२ २२२४ योगी.. यवकल. २०५२ योग्य.. -२०६१ यवस. २२६३ योजनवल्ली. २१८७ यवसाय. २१४४ २२८१ यवा. २२२६ २०७६ यवानी. २१४४ यवांसक. २११४ . २०६२ यशस्करी. २२३५ रक्तकाण्ड.. २२३७ यशी. २१६५ रक्तकाष्ठ. १९१५ यष्टीमधु. २०७७ रक्तकुसुमा. १९५६ यस्या. २१११ रक्तकेसर. याजनकक्षुर. २२६१ रक्तचन्दन. याज्ञिक. १९८१ रक्तचूर्णक. २०४३ यायसी. २२४४ रक्तपर्याय. २१२१ यावक. २२७८ रक्तपादी. २१०१ यास. २११४ २०६१ र १९८० यूथिका. २१२५ । ८२१३२ युग.. Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी २०६९ २१२२ १९१९ रजनी. २१०० रथ. रक्तपुष्पा. २१६२ | रजःपुष्प. १९४६ रजनीपुष्प. रक्तपूरक. रजत. रक्तफल. १९३१ रक्तफला. २२५३ रक्तबीज. २०२३ रणप्रिय. रक्तमाल. २०२८ रण्डाख्यु. रक्तयष्टि. २१८७ रक्तवेधना. २२०६ रथकृन्नेमि. रक्तशालि. २२७२ रक्तसन्धिक. २२१७ रथनाम. रक्तसरोरुह. २२१५ रथसाधक. १९१४ रथाङ्ग. रक्तसार. १९५३ रन्ध्री . रक्ताङ्ग . २०४३ रम्भा . रक्तिका. २१७७ रम्यक. रक्तोत्पल.. २२१५ रसना. रङ्गणी. २०९८ रसफल. रङ्गदायक. २०६४ जि २१४६ रसा.. । २२५६ : २१३७ २२६९ २२२१ २०१७ १९७८ १९७९ १९७८ २०६१ २२६० २०४९ २०२६ २१०६ २०६७ । २०३८ २१०६ २२३५ Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामठ. शब्दानुक्रमणिका रसाम्बष्ठा. २१८० । राजाई. १९१० रसाग्लक. १९४८ राजाह. १९९५ . २००९ राजिमान्. २२४५ रसाल. २२५८ राजीफल. २२४५ रसोन. २२२३ राजीव. रस्था. २१०६ राठ. २०१४ राजकशेरुक. २२६६ । राम. २११७ राजकोशातकी. २२०७ २१५१ राजजम्बू. २०१२ रामठी. २१५२ राजन्या. १९३३ रामतरणि. २१३१ राजपादप. १९८७ रामदूति. २०९० राजपुत्र. २०१२ रामसेन. २११५ राजपुत्रक. २०१५ राष्ट्रवृद्धिकरी. १९६० राजबला. २२२७ राष्ट्रिका. २०८२ राजमुद्. २२७७ राजवृक्ष. । १९३४ रास्ना. । २१७१ । २०६९ २१८४ राजादन. १९३३ रिम.. १९५५ राजान. १९५० रिमेदक. १९५५ राजार्क. १९३७ । रुचक. .. १९४३ Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० अभिधानचिन्तामणौ रुचिष्यः २२४१ | रोहिणी. २१८३ रुजासह. १९९४ रोहित. २२५५ रुद्राक्ष. २०२९ रोहितक. २०३४ रुधिरसावक. १९४७ रोहिष. २२५४ रुवक.. २०४० रोहि.. २०३४ रुवू. २०४० रोहितक. २०३४ २१७० २२६४ लकुच... २००८ रेखापत्र. २००६ रेचक. लक्षण. १९३० २०२१ रेचन. २०६४ लक्ष्मी. रेवत. १९८७ । २०६२ १९४१ लगुड. १९१९ रोचन. १९५७ लघु. . २०१० रोचनक. २०४३ लङ्कातिका. २०५८ २०३५ २१६१ लता.. रोध्र. : २००३ २२६५ रोध्रपुष्प २०६९ रोमश. १९२० १९९१ रोहड़क. २०३५ लतातरु. २०६६ रोहणोद्भव. १९१२ । लतार्क. २२२५ रोचना. लताड्डुर. Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका .१९२४ । लोचमस्तक. २१४३ २२७० लोणिका. २२३६ लवा. १९२४ लोध्र. २००३ लवङ्गक. २१६४ लोभनीया. २१०४ लवणा. २०९६ लोभ्य. २२७६ लशुन.. २२२३ लोमपामविनाशि०१९६२ लाक्षाप्रसादन. २००४ लोमशा. २१९७ लाक्षावृक्ष. २०११ लोमहीना. २१५३ लागलिन्. २०६७ लोह. २०८६ लोहितः १९१४ २१७३ लोहितचन्दन. २११२ २२०२ लौहद्रावक. १९४८ लाबुनी. २२४७ : व. लामज्जक. २२७० वंश. : २०५२ लीमका, वंशपत्रा. २१५२ १९४३ वंशिक. १९१० लेखकाचश्चिता. २२६० वक्त्रभूषण. २२२४ लेखशाटक. २००७ वशोधिन्. १९४१ लेख्यपत्र. २०६६ वक्रा. . २०८१ लोचमर्कट. २१४४ । वङ्गसेनः १९१७ लागली. २ २१८६ २२७६ Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वज्र. ४२२ अभिधानचिन्तामणी बचाया. २१९६ । वन्यतिल. २२८२ वन्या. २०१८ २०९८ वजुलः १९३८ वपुषा.. २१५६ वयःस्था. २२२८ वञ्जल. १९७८ वयस्था. १९७२ वट.. १९३० वर. २.१२२ वटपत्रक. २१०९ वरका. २२७६ वटप्लव. १९२९ वरतिक्त. २१४६ वत्सादनी. २२०३ वरतिका. २१७९ वधू. २११९ वराटक. २२१७ वनकर्णिका. २०३९ वराम्ल. १९४३ वनज. २०४८ वरागेल. २०३० वनपुष्प. २००९ २१८० वनविलासिनी. २१४२ वरुण. २०१९ घनव्रीहि. २२७९ वरोह. २२६६ वनशृङ्गाट. २०८७ वर्णवती. २१०० वनशेफाली. २०७३ वर्णा. २२७८ वनस्पति.. १९३१ वर्णिचारुकेसरा. २१३१ बनहरी. . २२१० वर्तिका. २०७९ २१६० । वर्धमान. २०४० बन्दा.. २०१५ । वर्धमाना. १९४४ वरी. - - - Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२० वर्षपाकिन्. वर्षपुष्पिका. वल. : वलाट. वलिनथिन्. वल्कला. वल्लकी. वल्लरीव्याल. वल्ली. वशिर. वसन्तकुसुम. वसन्तजा. वसन्तदूती. वसन्तपादप. शब्दानुक्रमणिका : ४२३ १९३५ वसुखण्डीर. .. २२७५. २१४८ । वसुच्छिद्रा. २१७६ २२१६ वसुत्राणा. २११३. २२७५ वसुवृक्ष. १.९३२ २१३५ वस्तगन्धा. २१४३ २१६४ वस्राख्य. २०३८ वस्नेहविद. १९९७ २१३५ वहिचूडा. २०५७ २१४४ वहिपर्याया. २१८६ २०९२ वहिशिख. २१२२ २००७ वहिशोधन. १९७४ वाकुची. २१०४ १९०८ २०१० वाक्पुष्पा. २२२१ वाजिदन्तक. २०४७ २१४५ २१६६ वाट्यायिनी. २१४९ २१६८ वाट्यालक. २१४७. २१९२ वाणीर. २०१८ वातपोथ. १९८१ २१७६ वायपुष्पिका. २१४७ २१७४. वानरावास. १९४९ वसा. बसिर. वसु. वसुक. ३ Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२१ अभिधानचिन्तामणी वानिकप्रिय. , १९४७ । वालुकी. २२४८ वानीर. २११७ वाल्हीक. वामीरज. २११७ । २१५१ वानेय. २२६८ वाशिका. २२४६ वापगुणी. २२०१ वासन्त. १९७० वापिभान्य. २११७ वासन्ती. २१३६ वायसाङ्गिका. २१५४ वासवोलूक. १९६४ वायसी. २१५४ वासा. २०४७ वायसेक्षु. २२५७ वास्तुक. २२३३ वारास्तवी. २२५६ वाराही. वाह्यपुष्पिका. २१४८ २११३ विककत. १९६७ वारिज. १९२४ वारिपंत्रिका. २१०७ S२१७० २०९० विकाम्लिका. १९४५ वारुणी. २१५५ २२६५ विकीरण. १९३७ वार्ताकी. २०८२ विकीर्ण. वार्षिक. २११३ विजया. २२६३ वार्षिकी. २१३० विजयाशखधारण.२०३१ वालक. . २११८ विटप्रिया.. २१०१ वालुक.. २१२० विदखदिर. १९५५ विकसा. २१८७ २०५६ Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशाला. २१९६ विदुल. २०१७ शब्दानुक्रमणिका ४२५ २०५९ । विशालत्वम् । १९८५ २०६४ विडालिका. २०८४ विशालयः २२०८ वितुन्न. २२४१ विशोधिनी. २१३७ विदारि. २१६० विष्वक्सेना... २०७६ विदारी. २०८३ विश्वदेव. २१४५ विश्वदेवदेवा. २०५३ । २०१९ विश्वरुपक. विद्रध्यराति. १९७७ १९१० विश्वा. . २१७५ विद्रुमवल्ली. १९२६ विषगन्ध. २०१५ विभावरी. २१२८ विषग्रिन्थ. २१७२ विभीषण.. २२६० विरजाविता. १९५६ विषघातिनी. २०८० विरूपक. २००१ विषघातिन्. २००७ विल्वगन्ध. २१०९ विषघ्नी. २२०३ विषमच्छद. १९८५ विशद. . २०८३ विशनाशन. २०१४ विषमर्दिनी. २१०७ ( २०८३ विषमुष्टिक. २०२६ विशल्या. २२२०४ विषशङ्क. २२०२ विषहारी. २२३७ विशाख. .२०९४ । बिषाड्ड. २२४९ Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृकी. वृक्षादनी. ) २०४६ ४२६ अभिधानचिन्तामणौ विषाणिका. २०७९ वृक. २१७९ विषादनी. २१९४ वृकदन्तिका- २१८० विषोदर. २०१५ २१७९ विषौषधि. २०९१ वृक्ष.. २०२६. विष्णुकान्ता. २१९२ वृक्षपर्णी. २०८४ विष्णुगुप्त. २२४३ वृक्षभक्ष्या. २०४६ विष्वक्सेनप्रिय. २११३ विसर्पिणी.. २१६२ २०८४ विसगन्धा.. २१५६ वृक्षाम्ल. १९४६ वृकोत्तशा. विहीरा. २२०५. . १९८३ वृत्ता. २१७० वीर. २०६० वृद्धकर्णिका. २१७९ वीरण. २२६९ वृद्धपादा. २१६३ वीरतर. २२६९ १९७४ वीरतरु. वृन्तिका. १९८२ वीरपुष्कर. २२५१ वृश्चिकाला. २०७९ २२६९ वृश्चीर. २०९४ वीरशाक. २२३३ २०४७. वीर्या. २१४९ वृषभनामक २०६० २१७४ वृषा. २२११ वृस्तिका. २२४२ २२३९ वृन्त. २०२२ वीरभद्र वृष. वुक. वृषायणी. Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेण्या २०८२ वेतस. वेल्लक. वेल्लज. व्रण. ब्रीहि. शब्दानुक्रमणिका वृष्यकन्दा. २१५० व्याघ्रपाद. २२०५ व्याघ्रपुच्छ. २०४१ वेत. २०२५ व्याघ्री. १९४८ व्याधिनामक. २११७ २०१७ व्याधिहन्. १९८७ वेत्रमूला. २१६२ व्यालदंष्ट्र. २०८८ वेधान्य. २१४२ २०२२ २१६० २२७१ २१८८ वेश्या. २१०१ शकम्भरा. २२५२ २१०९ २२५४ वैजयन्तिका. १९७३ १९०८ वैदेशी. २०१३ शकुलाक्षक. २२६५ वैदेही. २१८९ वैश्रवणावास. १९३० । २१८४ व्यडम्बक. । २०४० शक्रतरु. व्यडिपत्रिका. २२४८ शक्रपत्नी. २१११ व्यण्डा. २१८५ शक्रपुष्पिका. २२०२ व्याघ्रतल. २०४१ १९६१ व्याघ्रनखी. शङ्कर. १९६० । २०३० वैकुण्ठ. शकलि. शकुन्ती. २१७३ शकुलादनी. Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणौ शङ्खघण्टिका. २१५७ शतपर्विका. शङ्खद्रावक. १९४८ | शतपाकिन्. २२४३ शतपुष्प. २१६३ शतपुष्पा. २१४१ शतप्राश. शङ्खमालिनी. २१४१ शतमूला. शङ्खयूथिका. २१२५ शतवीर्य. २१४१ शतवीर्या. २२१० शतवेधि. २१३९ २११९ ૪૨૮ शङ्खधरा. शङ्खनी. शङ्खपुष्पी. शङ्खाङ्खा. शङ्खिनी. शठ. शढी. { शण. शणिपुष्पी . शण्डेरिन्. शतपत्र. शतपदी. शतपर्वन्. शतपर्वा. { शता. शतावरी. २१५८ शतावा. २२०२ २१५७ १९३९ २२१३ २१८१ २०५२ २२४४ २२६३ शबरपादप. शमीधान्य. शमीपत्रा. शम्पाक. शम्बरी. शर. शरश. शलाटु. २१९६ २१७८ २२६८ २२२१ १९१८ २१८१ २१८१ २२६५ १९४९ २२६५ २१८० २२२१ २००३ २२८४ २१७१ १९८७ २२११ २२६१ . २१९८ १९६८ Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शालक. शव. ) २२१९ शष्प. शिखण्डिनी. २१२५ शब्दानुक्रमणिका ४२९ शल्यक. . २०१४ । शालिक. २२६२ शल्यपर्णी. २१४६ S२१२४ २००९ २२६२ शाल्मलि. १९५६ शाक. १९९३ शाल्मलिदल, १९८५ शाकपुष्प. १९६६ शाल्योदन. २१२७ शाकवीर. २२३३ शिशिपा. १९५८ शाकश्रेष्ठ. २२३३ शाक श्रेष्ठा. २२३५ 1 २१७८ शाकाम्ल. १९४६ शिखरिणी. २१२८ शाखाम्ल. १९४८ शिखरी. . २०९३ शाण्डिल्य. १९६८ शिखीग्रीव. १९९० साबर. २००३ शिग्रु. १९७६ शारद. १९८५ शारदा. २२४१ २२७५ शारदी. .२१७३ शितिशिम्बिक. २२७७ शारिवा. २१९८ शितिवर. २२४१ शाईस्था. २०३४ शिफा. २२१९ शालपर्णी. २१५९ शिम्बिका. २२७६ २२४२ शिरिवारक.. २२४० २२७२ / शिरोरु. १९८६ शिति. शालमर्कट. शालि. Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० ममिधानचिन्तामणौ शिरोवृन्त. २१८९ । शीघ्रपरोहिन्. २१५८ शिलाटिका. २०९४ २००७ शिलाभित्. २१५५ २०२७ शिव. १९६५ २०१७ शिवकिरीटिनी. २१४१ शीतपाकी. २१४७ शिवकीलिका. १९६१ शीतभीरु. २१२९ शिवधूप. १९६५ शीतलरजः. १९२३ शिवमल्ली- २१७४ शीतला. १९०९ शिवलोमा. १९६२ शीतवीर्य. २०६३ १९६१ शीतसंवासा. २१३६ शिवा. शीतसहा. २०७२ २०९८ २१५० शीर्णरोमक. २०५६ शिवाटिका. २१५२ शुक. शिवाधात्री. १९७२ २२६२ शिशिरेफला. २०८० शुकच्छद. २०५६ शिशु. २००४ 5 १९१७ शुकनास. शिशुगन्धिका. २१२८ । १९७५ शिषर. १९२४ 5 १९०७ २०८९ । २०५६ शुकप्रिय. १९०७ १९७० २१२१ शुकपुष्प. शीघ्र. २२७० Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुकवृक्ष. । शैवला. शुङ्गिन्. ५ १९२९ २०६४ शम्दानुक्रमणिका शुकमालक. २०२५ । शखरिक. . २०९२ १९०७ शैलूष. १९६८ शुकष्ट. २०२५ २२२० शुक्तिकाम्ली. १९४५ शैवाल. २२२० शुक्तिपर्णी. १९८४ शवालदलसम्भव. २२६८ शोधन. शोधिता. २२८० शुचिपत्रा. १९६२ | शोफूकर. २०२२ शुभनामन्. २०२४ शोकनी. २०९५ शुषिरा. १९२५ शोभाजन. १९७६ शूकधान्य. २२८४ शोषण. १९७५ शूकशिम्बी. २१८६ | शोषहरी. २२३८ शून्यमध्य. २२५९ । शौण्ड. २१२४ शून्या. १९२६ शौण्डर्य. २१६८ शृङ्गक. २२४९ शौण्डी. २१९० शुझवेर. शौखरी. २०१५ शृङ्गिन्. २०६१ शौरि. १९८८ २१७५ महाकन्द. २२२४ शोफालिका. २०७४ श्यव. .. २०६२ शेल. २००७ | श्यामक. २२७९ रङ्गी. Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणी श्यामकन्दा... २१७५ । श्रीमान्. . २०६० श्यामल, १९२८ श्रीवारक. ..२२४१ श्यामवल्कल. १९०७ श्रीवास. १९६९ श्यामसार. २०१६ | श्रीवृक्ष. . १९२७ २०७६ श्यामा. श्रीहस्तिनी.. २२४० २१९० । १९७० श्यामाक. २२७९ २१०६ श्यामाजी. २२६४ २१७९ श्योनाक. १९७५ २१९२ श्रवणशीर्षा. २१०३ श्याह. १९६८ श्रवणा. २१०३ श्याहय. १९२५ श्रवणी. २१०२ श्लक्ष्णपत्र. १९५१ श्रीखण्ड. १९११ श्लिष्टपर्ण. २०५६ १९७३ श्लीपदारि. २०३२ श्रीपर्णी. १९८२ श्लेष्मान्तक. २००६ २०३६ श्रीपुष्प. श्वखुर. २१९४ श्रीफले. १९६९ श्वनावधू, २०५७ श्रीफला. ... १९७२ श्वेत्. १९१३ श्रीफलिका. २१३७ श्वेतकन्दिका..२१७५ श्रीमती. २१३० । श्वेतकुम्मीका. १९०९ १९२५ Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८३ २२७१ शब्दानुक्रमणिका श्वेतचन्दन. १९११ । षडङ्गी. २०८८ श्वेतदूर्वा. २२६५ (२०३३ देत १९१८ षड्रग्रन्था. २११५ श्वेतपुष्प. २ २०२० (२११९ श्वेतपुष्पा. २०९१ षण्ढतिल. श्वेतपुष्पिका. २१९४ षष्टिक. श्वेतपुष्पी. २१४२ श्वेतफल. २०२० संवर्तक. १९७१ श्वेतबुध्ना. २२१० संवर्तिका. २२१८ श्वेतमरिच. १९७८ सकटाक्ष. श्वेतमूला. २०९५ सक्तुफला. श्वेतवचा. २१९७ सङ्कोच. २१२१ श्वेतवल्क. १९३२ १९३० श्वेतवृक्ष. २०२० सतीनक. २२७३ श्वेतसर्षप. .. २२८३ सत्पुष्प. २१६९ श्वेतसार. .१९५४ सत्यनाम्नी. २०७५ श्वेतसुरसा. , २०७३ सत्यवती. २२२८ श्वेतस्यन्दा. .२१९४ सत्सला. २१२८ १९३८ षट्पदानन्दी. २१३० सदापुष्प. २०३५ षदरसा. १९७२ . ८२१२६ सतीद. सा. . Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ अभिधानचिन्तामणी २२४९ सर्वतोभद्र. सदाफल. १९३२ । सर्ज. सनकद्रु. १९३५ सर्जकस्. सप्तच्छद. १९८४ सर्पगन्धा. सप्तला. २२२५ सर्पदंष्ट्रिका. समगन्धि. २२६९ सपाक्षी. २१७१ समझा. २१८७ सर्वतोभद्रा. समण्ठ. २२३८ सर्वसार. समन्तदुग्धन्. १९३९ सर्षप. समष्ठीला. २२३८ सल्लक. २०४४ २०५८ सल्लकी. समुद्रान्ता. २११५ सवरणी. सस्य. समूलक. २१९१ समूला. २१५० सस्यशीर्षक. सरखती. २२२८ सस्यशक. सरालक. २१०९ सस्यसंवर. सरी. २२७४ सहकार. २०६२ सहचर. सरोज. . २२१४ सहदेवा. सरोजन्मन्. २२१४ । सहदेवी. २१०७ २०७९ २१०७ २०२४ १९८३ १९७९ २२८३ १९७५ २०३८ २१८२ २२७१ २२८४ २२८४ १९९१ २०१० २१३३ २१४८ Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका सहर्षा. 'सहस्रपत्र. सहस्रवीर्या. ON १९६२ २१७० । सिंहपर्णिका. २०४७ २२१३ | सिंहपुच्छी. २०८७ २१८२ सिंहमुख. २०४७ २२६४ सिंहवृन्ता. २०९७ सहस्रवेधि. २१५१ सिंहि. २०८३ सहस्रवेधिन्. १९४९ सिंहिका. २०४७ सहस्रा. २०२७ सित. १९५४ २१३१ सिताम्भोज. २२१५ सहा. । २२२१ सिद्धवृक्ष. सार. सिद्धार्थ.. २२८३ सातला. २२२५ २०६१ साधुपादप. १९४३ २०७२ साधुवृक्ष. २०२० सिन्दुवार. २०७२ २०४८ सिन्दुवारक. २०७२ सानुज. र २१६८ सिल्लक. सानुमानक. २१६९ सीतप्लावसा. २१३६ सारणी. २२२७ सीत्य. २२७१ सारफल. २०२९ २२२४ सारवृक्ष. १९९५ सुकुराराति. २१२८ साराम्ल. २०२८ सुकोशक. २०११ सारीवानी. सुखदा. २२२८ सिद्धि. सिन्दुक. Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ अमिधानचिन्तामणौ सुखोद्भिदा. २२३१ । सुप्रसारा. १९१५ सुफल. सुगन्धक. २२४६ सुभगा. २२५५ सुभञ्जन. २१०७ सुभिक्षा. सुगन्धा. २२२२ सुमन. सुमनस्. सुगन्धि. २१२० सुमनालता. सुगन्धिक. २२७२ सुमूलक. सुगन्धिपत्रा. २०१३ सुरक्तस. सुचिपत्र. २२४० सुरङ्गक. सुतिक्तक. २०२४ सुतिक्तता. २२०६ सुरङ्गिन्. सुत्तेजन. १९९५ सुरति. १९३८ सुनिषण्ण. . २२४० सुन्यमीरु. २१८२ सुपादी. २१७२ सुरसा. सुपावे. १९२९ सुपुष्प. २१५८ सुरा. सुपूरक. १९४२ | सुलोमशा. २२२७ २०१० २१३० १९७७ २०३८ २२७७ १९८६ २१२३ २२६९ २०११ १९१५ २१५४ १९७७ २१२८ १९१२ २०३९ २१६७ २०७२ २११० २१६७ २१६७ सुरङ्गा. सुधा. सुरमि. Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका सुवर्चला. सुवर्ण. सुवर्षा. सुवल्ली. २२३० । सुतघ्न. .. २१५१ सूतनाशिनी.. २१९७ 5 १९८४ सुवर्णक. सूपधूपन.... २१५१ १९८६ सूरण. २२२९ २१३० सूर्यपर्णिका. २०९८ २१०५ सूर्यपर्णी. २०९७ सुवसन्ता. २१३६ सूर्यपत्र. २०१५ २०३८ सूर्यामिसझिक. २०२३ २०७४ सुवाहा. सेकिम. २२४२ २१०६ सेतु.. .. २०२० २१०८ सेव्य. १९९२ सुवासन्ती. १९२७ सेव्यालिबान्धवा.२१३६ सुविषघातिनी. २२०५ सेहुण्ड.. १९३९ सुव्रत. २१७४ २११९ सैरेयक. २१३३ सुषवी. २२४४ सोमराजी. २१०५ सुषेणक. १९३९ 5 १९५४ सोमवल्क. सुसम. २०६३ " २०३५ सुस्थलगण्डीर. २२३९ सोमवल्लरी.. २२२८ सुखवा. २०६८ सोमवल्लिका. २१.०५ सूक्ष्मैला. १९२० सोमवल्ली. २२०३ सुव्रता. Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थूलैला. १९६० ४३८ अभिधानचिन्तामणी सौगन्धिक. २२१७ | स्थूलदर्भ. . २२६१ सौमनसम्पुट. २१२४ । स्थूलपण. १९८५ सौमनसायिनी. २१२३ स्थूलवल्क. २००५ सौर. २०४८ १९२१ सौरभ. २०४८ स्थौणेयक. २०५७ सौवीरी. स्निग्धपी. २२०१ स्कन्धजन्मन्. १९३१ स्पृक्का. . . २०५७ स्तम्ब. २२८५ स्फटिक. १९२३ स्तम्बकरि. २२७१ स्फूर्जक. २००१ स्तोगन्धिक. २२५४ स्फोता. २१८९ स्त्रिपत्रक. १९८० स्मारक्षीपीडा. २१६२ स्थलपर्केट. संसिन्. २०२७ स्थलशृङ्गाल. २०८७ सवा. २२०० स्थायिनी. २१७९ सुच्. १९३८ स्थालय. २२४३ सुवावृक्ष. १९३७ स्थाली. १९०८ २०८८ स्थिरक. १९९३ खरबन्धनिका. २०५४ स्थिरसार. १९९३ स्वर्गज. १९९७ स्थिरा. २१६० २०५९ खर्णलता. २०९६ खदंष्ट्र. Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रमणिका वर्णशेफालिक. १९८८ । हरिताली. २२६४ खस्तिक. २२४० हरित्. २२७३ { १९६७ हरिदा. २१०० खादुकण्टक. २ । २०८८ हरिपर्णक. २२४२ खादुकन्दा. २०८३ हरिमन्थ. २२७६ खादुफल. १९९५ हरिमन्थक. २२७४ हरिवालुक. २०६५ २१२० खादुमस्तक. हरीतकी. १९६२ हरेणु. २२७४ हंसपदी. २१७२ हलिनी. २२०३ हंसपादिका. २१७२ हलीमक. १९९९ हली. २१६१ २२१७ २२२० हविर्मन्थ. १९७४ हद्दविलासिनी. २१०१ हस्तविषा. २०४९ हपुषा. २१५६ हस्तिकर्ण. २०४२ हयप्रिय. २२७३ हस्तिकोशातकी. २२०८ २२७५ हस्तिदन्तक. . २२४१ हरिचन्दन. १९९४ हस्तिदन्ती. २०९० हस्तिपर्णक. २२२५ हरित. २०४१ २२७५ हस्तिपिप्पली. २.१९३ हरिता. २२६४ । हस्तिमयूरक. २१४३ हल्लक. हट. हरि. Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० अभिधानचिन्तामणौ हस्तिवारुणी. २०३६ । हृद्यगन्ध. १९६९ हिंस्रा. २१६५ हृद्यगन्धा. २१२३ २१५२ हेमक्षीरा. २२०९ हिङ्गुनिर्यास २०२१ हेमदुग्धक. १९३१ हिडपत्री. २१५२ हेमपुष्पिका. ।२१२६ हिज्जल. २०१६ २०८२ हेमवती. . २२०९ । २०७० हेमशिखी. हिमजा. हेमाया हिमवालुक. १९२२ । हैम. २११६ हिमा. १९२२ १९६९ हैमवती. हिलमोची. २२४३ । २१९७ हीर. २१२१ / हीवेर. २११८ २०६९ हिन्ताल. इति श्रेष्ठि देवचंद लालभाई जैनपुस्तकोखारे-ग्रन्थाङ्कः ९२ Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजैन आनंदपुस्तकालये लभ्यग्रन्थाः - १ अहिंसाष्टकं, सर्वज्ञसिद्धि; ऐन्द्रस्तुतिश्च २ अनुयोगद्वार - चूर्णि हरिभद्रीयवृत्तिश्च ३ उत्तराध्ययन-- चूर्णिः ४ ऋषिभाषितानि ५ ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णकम् (सटीकम् ) ६ जिनस्तुति - देशना (हिन्दी) ७ तस्वतरंगिणी ८ त्रिषष्टीयदेशनासंग्रहः ९ दशवैकालिक - चूर्णिः १० प्रकीर्णक दशकम् (संस्कृतच्छायान्वितम्) ११ द्रव्यलोकप्रकाशः १२ नंदी आदि अकारादिक्रमो विषयक्रमश्च १३ नंदीचूर्णिहरिभद्रीयवृत्तिश्व १४ नवपद प्रकरण-बृहद्वृत्तिः १५ परिणाममाला ( लेजर पेपर) ( ड्रोईंग पेपर) १६ प्रवचन - सारोद्धारः (पूर्वार्द्धः ) 93 99 १७ , (उत्तरार्द्धः ) "" १८ पंचाशकादिशास्त्राष्टकम् मूलमात्रम् १९ पंचाशकादिशास्त्रदशकस्याकाराद्यनुक्रमः २० पंचवस्तुकग्रन्थः (सटीकः ) "" 0-&-0 १-१२-० ३-८-० ०-२-० ३-०-० ०-६-० 01610 01-0 ४-०-० १-८-० १-०-० १-८-० १-४-० ३-०-० ०-१२-० ०-१०-० ३-०-० ३-०-० ३-०-० ३-०-० २-४-० Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ २१ पयरणसंदोहो २२ प्रव्रज्या - विधान- कुलका दि २३ प्रत्याख्यानादि - विशेषणवती - वीरावीशी २४ बारसासूत्रं (सचित्रं ) २५ मध्यमसिद्धप्रभा व्याकरणम् २६ यशोविजयजीकृत १२५, १५०,३५०, गाथायाः स्तवनानि (साक्षिपाठसहितानि) २७ युक्ति-प्रबोधः २८ ललितविस्तरा (सटीप्पना ) २९ वस्त्रवर्णसिद्धिः ३० विचार - रत्नाकरः ३१ विशेषावश्यक विषयानुक्रमः अकारादिक्रमः ३२ बंदारुवृत्तिः ३३ श्राद्धविधिः ( हिन्दी ) ३४ क्षेत्रलोक-प्रकाश: बृहतसिद्धप्रभाव्याकरणम् आचारांग सूत्रवृत्तिः भगवतीसूत्रं दानशेखरसूरिकृतवृत्तिसहितम् पुष्पमाला अपरनाम उपदेशमाला प्रकरणवृत्तिः तत्वार्थ सूत्रम् ( हारिभद्रीयटीका सहितम् ) ०-१२०० ०-३-० 9-8-0 १२-०-० ०८-० 01410 १-८-० ०-१०-०. 0-8-0 २-४-० ०-३-० १-४-० १-८-० २-०-० श्री - जैन - आनंद - पुस्तकालय, ओशवाल महोल्ला, गोपीपुरा, सुरत. Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितं लिङ्गानुशासनम् । पुंलिङ्गं कटणथपभमयरषसस्न्वन्तमिमनलौ किश्तिव् । ननौ घघौदः कि वे खोऽकर्तरि च कः स्यात् ॥ १ हस्तस्तनौष्ठनखदन्तकपोलगुल्फ केशाध्वगुच्छदिनसर्तुपतद्रहाणाम् । निर्यासनाकरसकण्ठकुठारकोष्ठ हैमारिवर्षविषबोलरथाशनीनाम् ॥ २ श्वेतप्लवात्ममुरजासिकफाभ्रपङ्क मन्थत्विषां जलधिशेवधिदेहभाजाम् । मानद्रुमाद्रिविषयाशुगशोणमास ___ धान्याध्वरामिमरुतां सभिदां तु नाम ॥ ३ बर्होऽच्छदेऽहिर्वप्रे ब्रीह्यग्न्योर्हायनबर्हिषौ । मस्तुः सक्तौ स्फटिकेऽच्छो, नीलमित्रौ मणीनयोः ॥ ४ कोणेऽसश्चषके कोशस्तलस्तालचपेटयोः । अनातोघे घनो भूग्नि, दारपाणासुवल्वजाः ।। कान्तश्चन्द्रार्कनामायःपरो यानार्थतो युगः । यश्च स्यादसमाहारे, द्वन्द्वोऽववडवाविति ॥ Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .... . .. . .. .. ... IAMAKAL लिङ्गानुशासनम् । वाकोत्तरा नक्तकरल्लकाङ्का, न्युडोत्तरा सातरगारमाः । परागपूगौ सृगमस्तुलनकुडाकालिङ्गतमङ्गमनाः॥ ७ वेगसमुद्गावपाङ्गवर्गौ घार्घा मञ्चसपुच्छपिच्छगच्छाः । वाजौजकिलिञ्जपुञ्जमुना अवटपट्टहठप्रकोष्ठकोष्ठाः॥ ८ अङ्गुष्ठगण्डौ लगुडप्रगण्डकरण्डकूष्माण्डगुडाः शिखण्डः । वरण्डरुण्डौ च पिचण्डनाडीव्रणौ गुणभ्रूणमलक्तकुन्तौ ॥९ पोतः पिष्टातः पृषतश्चोत्पातवातावर्थकपर्दी । बुद्बुदगदमगदो मकरन्दो, जनपदगन्धस्कन्धमगाधः ॥ १० अर्धसुदर्शनदेवनमहाभिजनजनाः परिघातनफेनौ । पूपापूपौ सूपकलापौ रेफः शोफः स्तम्बनितम्बौ ॥ ११ शम्बाम्बौ पाश्चजन्यतिष्यौ पुष्यः सिचयनिकाय्यरात्रवृत्राः । मत्रामित्रौ कटप्रपुण्ड्राऽऽराः कल्लोलोल्लौ च खल्लतल्लौ ॥ १२ कण्डोलपोटगलपुद्गलकालवाला... वेला गलो जगलहिङ्गुलगोलफालाः । स्याद्देवलो. बहुलतण्डुलपत्रपाल... वातूलतालजड्डुला भृमलो निचोलः ॥ १३ कामलकुद्दालावयवखाः, सवरौरवयावाः शिवदावौ।। माधवपणवादीनवहावध्रुवकोटीशांशाः स्पशवंशौ ॥ १४ कुशोड्डीशपुरोडाशवृषकुल्मासनिष्कुहाः । अहनिर्वृहकलहाः, पक्षराशिवराश्यषिः ॥ १५ Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । दंदभिर्वमतिवृष्णिपाण्यविज्ञातिरालिकलयोऽञ्जलिङ्घणिः । अग्निवहिकृमयोऽहिदीदिविग्रन्थिकुक्षितयोऽर्दनिर्ध्वनिः ।। गिरिशिश्रुजायुको हाहाहूहूश्च नमहूर्गर्मुत् । पादश्मानावात्मा पाप्मस्थेमोष्मयक्ष्माणः ॥ इति पुंलिङ्गाधिकारः। स्त्रीलिङ्गं योनिमद्वग्रीसेनावल्लितडिन्निशाम् । वीचितन्द्रावटुप्रीवाजिह्वाशस्त्रीदयादिशाम् ॥ शिंशपाया नदीवीणाज्योत्साचीरीतिथीधियाम् । अङ्गुलीकलशीकङ्गुहिङ्गुपत्रीसुरानसाम् ॥ रामाशिलावचालालाशिम्बाकृष्णोष्णिकाश्रियाम् । सूक्यपण्याऽतसीधाय्यासरघारोचनाभुवाम् ॥ हरिद्रामांसिदूर्वाऽऽलूबलाकाकृष्णलागिराम् । इत्तु प्राण्यावाचि स्यादीदूदेकखरं कृतः ॥ पात्रादिवर्जितादन्तोत्तरपदः समाहारे । द्विगुरन्नाबन्तान्तो वाऽन्यस्तु सर्वो नपुंसकः ॥ २२ लिन्मिन्यनिण्यणिज्युक्ताः, कचितिगल्पहखकए। विंशत्याद्याशतोद्वन्द्वे, सा चैक्ये द्वन्द्वमेययोः ॥ २३ झुग्गीतिलताभिदि ध्रुवा, विडनरि वारि घटीभबन्धयोः । शल्यध्वनिवाघभित्सु तु, क्ष्वेडा दुन्दुभिरक्षबिन्दुषु ॥ २४ Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । गृह्या शाखापुरेऽश्मन्तेऽन्तिका कीला रताहतौ । रज्जौ रश्मिर्यवादिर्दोषादौ गञ्जा सुरागृहे ॥ २५ अहंपूर्विकादिर्वर्षा, मघा अप्कृत्तिका बहौ । वा तु जलौकोऽप्सरसः, सिकतासुमनःसमाः॥ २६ गायत्र्यादय इष्टका बृहतिका संवर्तिका सज्जिका. . दूषीके अपि पादुका झिरुकया पर्यस्तिका मानिका । नीका कञ्चलिकाऽलुका कलिकया राका पताकाऽन्धिका, शूका पूपलिका त्रिका चविकयोल्का पञ्जिका पिण्डिका २७ ध्रुवका क्षिपका कनीनिका, शम्बूका शिबिका गवेधुका । कणिका केका विपादिका, मिहिका यूका मक्षिकाऽष्टका २८ कूर्चिका कूचिका टीका, कोशिका केणिकोर्मिका । जलौका प्राविका धूका, कालिका दीर्घिकोष्ट्रिका ॥ २९ शलाका वालुकेषीका, विहङ्गिकेषिके उखा । परिखा विशिखा शाखा, शिखा भङ्गा सुरङ्गया ॥ ३० जङ्घा चचा कच्छा पिच्छा, पिञ्जा गुञ्जा खजा प्रजा । झञ्झा घंटा जटा घोण्टा, पोटा भिस्सटया छटा ॥ ३१ विष्ठा मञ्जिष्ठया काष्ठा, पाठा शुण्डा गुडा जडा। बेडा वितण्डया दाढा, राढा रीढाऽवलीढया ॥ ३२ घृणोर्णा वर्वणा स्थूणा, दक्षिणा लिखिता लता। .. तृणता त्रिवृता त्रेता, गीता सीता सिता चिता॥ ३३ Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । ३४ मुक्ता वार्ता लूताऽनन्ता, प्रसृता मार्जिताऽमृता । कन्या मर्यादा गदेक्षुगन्धा गोधा स्वधा सुधा ॥ साना सूना धाना पम्पा, झम्पा रम्पा प्रपा शिफा । कम्बा भम्भा सभा हम्भा, सीमा पामारुमे उमा || चित्या पद्या पर्या योग्या, छाया माया पेया कक्ष्या । दूप्या नस्या शम्या संध्या, रथ्या कुल्या ज्या मङ्गल्या ॥ ३६ उपकार्या जलार्द्रेरा, प्रतिसीरा परम्परा । ३५ कण्डरा सृग्धरा होरा, वागुरा शर्करा सिरा ॥ ३७ गुन्द्रा मुद्रा क्षुद्रा भद्रा, भस्त्रा छत्रा यात्रा मात्रा । दंष्ट्रा फेला वेला मेला, गोला दोला शाला माला || ३८ मेखला सिमला लीला, रसाला सर्वला बला । कुहाला शङ्कुला हेला, शिला सुवर्चला कला || उपला शारिवा मूर्वा, लदा खट्टा शिवा दशा । कशा कुशेशा मञ्जूषा, शेषा मूषेषया स्वसा ॥ arrer विसा भिस्सा, नासा वाहा गुहा खाहा । कक्षाssमिक्षा रिक्षा राक्षा, भन्यावल्यायतित्रोटिः ॥ ४१ पेशिर्वासिर्वसतिविपणी नाभिनाल्यालि पालिभल्लि पल्लिभ्रुकुटिशकटी चर्चरिः शाटिभाटी । खाटिर्वर्तिर्व्रततिवमिशुण्ठीतिरीतिर्वितर्दिदर्विनविच्छविलिबिशठिश्रेदिजात्याजिराजि ॥४२ ३९ ४० Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । रुचिः सूचिसाची खनिः खानिखारी, ___ खलिः कीलितूली क्लमिर्वापिधूली । कृषिः स्थालिहिण्डी त्रुटिदिनान्दी, किकिः कुकुटिः काकलिः शुक्तिपती ॥ ४३ किखिस्ताडिकम्बी द्युतिः शारिराति स्तटिः कोटिविष्टी वटिष्टिवीथी । दरिर्वल्लरिर्मञ्जरिः पुञ्जिभेरी, शरारिस्तुरिः पिण्डिमाढी मुषण्डिः ॥ ४४ राटिराटिरटविः परिपाटिः, फालिगालिजनिकाकिनि कानिः । चारिहानिवलमि प्रधिकम्पी, चुल्लिचुण्डितरयोऽहतिशाणी ॥ ४५ सनिः सानिमेनी मरिारिरश्यो षधी विद्रधिझल्लरिः पारिरभिः । शिरोधिः कविः कीर्तिगन्त्रीकबर्यः, __ कुमार्याढकी खेदनी हादिनीली ॥ ४६ हरिण्यश्मरी कर्तनीस्थग्यपट्यः, करीर्येकपद्यक्षवत्यः प्रतोली । कृपाणीकदल्यौ पलालीहसन्यौ वृसी गृध्रसी घर्घरी कर्परी च ॥ ४७ Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिशानुशासनम् । काण्डी खल्ली मदी घटी, गोणी खण्डाल्येषणी गुणी।। तिलपर्णी केवली खटी, नीरवसत्यौ च पातली ॥ ४८ वाली गन्धोली काकली गोष्ठयजाजी दाणी मत्स्यण्डी दामनी शिञ्जिनी च । शृङ्गी कस्तूरी देहली मौर्व्यतिभ्या. सन्दी क्षैरेय्यः दर्दुपशूशष्कुली। कर्णान्दुकच्छू तनुरज्जुचञ्चु स्नायुर्जुहूः सीमधुरौ स्फिगर्वाक् । द्वार्थोदिनी मुक्त्वगृचः शरद्वा- . श्छर्दिहरत्पामदृषडशो नौः ॥ : ५० इति श्रीलिङ्गाधिकारः। __४९ नलस्तुतत्तसंयुक्तररुयान्तं नपुंसकम् । वेधआदीन् विना सन्तं, द्विखरं मन्नकर्तरि ॥ ५१ धनरत्ननभोऽनहपीकतमोघुसणाङ्गणशुल्कशुभाम्बुरुहाम् । अघगूधजलांशुकदारुमनोविलपिच्छधनुर्दलतालुहृदाम् ५२ हलदुःखसुखागुरुहिङ्गुरुचत्वचभेषजतुत्थकुसुम्भदृशाम् । मरिचास्थिशिलाभवसृक्कयकृन्नलदान्तिकवल्कलसिध्मयुधाम् सौवीरस्थानकद्वारकोमधौतेयकासृजाम् । लवणव्यानफलप्रसूनद्रवतां सभिद् ॥ ५४ Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । पुरं साङ्गयोश्छत्रशीर्षयोः पुण्डरीकके। मधु द्रवे ध्रुवं शश्वतर्कयोः खपुरं घटे॥ ५५ अयूपे दैवेऽकार्यादौ, युगं दिष्टं तथा कटु। असे द्वन्द्वस्थले धन्वारिष्ठमद्रुमपक्षिणोः ॥ ५६ धर्म दानादिके तुल्यभागेऽध ब्राह्मणं श्रुतौ । न्याय्ये सारं पद्ममिभबिन्दौ काममनुमतौ ॥ ५७ खलं भुवि तथा लक्षं, वेध्येऽहः सुदिनैकतः । भूमोऽसंख्यात एकार्थे, पथः संख्याव्ययोत्तरः ५८ द्वन्द्वैकत्वाव्ययीभावौ, क्रियाऽव्ययविशेषणे । कृत्याः क्तानाः खलजिद्भावे, आ त्वात्त्वादिः समूहजः ५९ गायत्र्याधण्खार्थेऽव्यक्तमथानकर्मधारयः । तत्पुरुषो बहूनां चेच्छाया शालां विना सभा राजवर्जितराजार्थराक्षसादेः परापि च । आदावुपक्रमोपत्रे, कन्थोशीनरनामनि ॥ सेनाशालासुराच्छायानिशा वोर्णा शशात्परा । भाद्गणो गृहतः स्थूणा, संख्याऽदन्ता शतादिका ॥ ६२ मौक्तिकं माक्षिकं सौप्तिकं क्लीतकं, नाणकं नाटकं खेटकं तोटकम् । आह्निकं रूपकं जापकं जालकं, वैणुकं गैरिकं कारकं वासुकम् ॥ ६३ Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । रुचकं धान्याकनिःशलाकाली कालिकशल्कोपसूर्यकाल्कम् । कवककिवुकतोकतिन्तिडीकै डूकं छत्राकत्रिकोल्मुकानि ॥ ६४ मार्तीककदम्बके बुकचिबुककुतुकमनूकचित्रके । कुहुजकं मधुपर्कशीर्षके, शालूकं कुलकं प्रकीर्णकम् ॥ ६५ हल्लीसकपुष्पके खलिङ्गं, स्फिगमङ्गं प्रगचोचबीजपिञ्जम् । रिष्टं फाण्टं ललाटमिष्टव्युष्टकरोटकृपीटचीनपिष्टम् ॥ ६६ शृङ्गाटमोरटपिटान्यथ पृष्ठगोष्ठे, भाण्डाण्डतुण्डशरणग्रहणेरिणानि । पिङ्गाणतीक्ष्णलवणद्रविणं पुराणं, त्राणं शणं हिरणकारणकार्मणानि ॥ ६७ पर्याणर्णघ्राणपारायणानि, श्रीपर्णोष्णे धोरणझूणभूतम् । प्रादेशान्ताश्मन्तशीतं निशान्तं वृत्तं तूस्तं वार्तवाहित्थमुक्थम् ॥ अच्छोदगोदकुसिदानि कुसीदतुन्द वृन्दास्पदं दपदनिम्न सशिल्पतरूपम् । कूर्पत्रिविष्टपपरीपवदन्तरीप रूपं च पुष्पनिकुरम्बकुटुम्बशुल्बम् ॥ ६९ Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिशानुशासनम्। प्रसभतलभशुष्माध्यात्मधांमर्मसूक्ष्मं, किलिमतलिमतोमं युग्मतिग्मं त्रिसंध्यम् । किसलयशयनीये सायखेयेन्द्रियाणि, द्रुवयभयकलत्रद्वापरक्षेत्रसत्रम् ।। शृङ्गवेरमजिराम्रपुष्करं, तीरमुत्तरमगारनागरे । स्फारमक्षरकुकुन्दरोदरप्रान्तराणि शिबिरं कलेवरम् ॥ ७१ सिन्दूरमण्डूरकुटीरचामर__क्रूराणि दूराररवैरचत्वरम् । औशीरपातालमुलूखलातवे, सत्त्वं च सान्त्वं दिवकिण्वयौतवम् ॥ ७२ विश्वं वृशं पलिशमर्पिशकिल्विषानु तर्षार्पिषं मिषमृचीषजीषशीर्षे । पीयूषसाध्वसमहानससाहसानि कासीसमत्सतरसं यवसं बिसं च ॥ ७३ मन्दाक्षवीक्षमथ सक्थि शयातु यातु, खाद्वाशु तुम्बरु कशेरु शलालु चालु । संयत्ककुन्महदहानि पृषत्पुरीतत् , पर्वाणि रोम च भसच्च जगल्ललाम ॥ ७४ इति नपुंसकलिङ्गाधिकारः। Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । ७५ पुंस्त्रीलिङ्गश्चतुर्दशेऽङ्के शङ्कुर्निरये च दुर्गतिः । दोर्मूले कक्ष आकरे गजो भूरुहि बाणपिप्पलौ || नाभिः प्राण्यङ्गके प्रधिमौ वचन बलिर्गृहे कुटः । श्रोप्यौषध्योः कटो भ्रमो मोहे पिण्डो वृन्दगोलयोः ॥ ७६ भकनीनिकयोस्तारो, भेऽश्लेषहस्तश्रवणाः । कणः स्फुलिङ्गे लेशे च वराटो रज्जुशस्त्रयोः ॥ कुम्भः कलशे तरणिः, समुद्रार्कांशुयष्टिषु । भागधेयो राजदेये, मेरुजम्ब्वां सुदर्शनः ॥ करेणुर्गजहस्तिन्योरल्याख्यापत्यतद्धितः । लाजवस्त्रदशौ भूम्नीहाद्याः प्रत्ययभेदतः ॥ शुण्डिकचर्मप्रसेवक सल्लकमलकवृश्चिका अपि । शल्यकघुटिको पिपीलिकश्चुलुकहुडुक्कतुरुष्कतिन्दुकाः ८० शुङ्गोऽथ लञ्चभुजशाटसटाः सुपाटः, कीटः किटस्फटघटा वरटः किलाटः । चोटश्च पेटफटशुण्डगुडाः सशाणाः, स्युर्वारिपर्णफणगर्तस्थाजमोदाः ॥ ८१ विधकूपकलम्बजित्यवर्द्धाः, सहचरमुद्गरनालिकेरहाराः । बहुकरकसरौ कुठारशारौ, वल्लरशफरमसूरकीलरालाः ८२ पटोल: कम्बलो भल्लो, दंशो गण्डूषवेतसौ । लालसो रभसो वर्तिवितस्तितुटयस्तृटिः ॥ ११ ७७ ७८ ७९ .८३ Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । ऊर्मिशम्यौ रत्न्यरत्नी अवीचि लव्यण्याणिश्रेणयः श्रोण्यरण्यौ । पार्णीशल्यौ शाल्मलियष्टिमुष्टी, योनीमुन्यौ खातिगव्यूतिबस्त्यः ॥ ८४ मेथिर्मेधिमशी मषीषुधी ऋष्टिः पाटलिजाटली अहिः । पृश्निस्तिथ्यशनी मणिः सृणिमौलिः केलिहलीमरीचयः ८५ हन्वाखूः कर्कन्धुः सिन्धुर्मृत्युमन्वादेर्वारुः । उरुः कन्दुः काकुः किष्कुर्बाहुगवेधू रा गौर्भाः ॥ ८६ इति पुंस्त्रीलिङ्गाः। पुनपुंसकलिङ्गोऽब्जः, शङ्ख पद्मोऽब्जसंख्ययोः । कंसः पुंसि कुशो बर्हिर्बालो हीबेरकेशयोः ॥ द्वापरः संशये छेदे, पिप्पलो विष्टरोऽतरौ । अब्दो वर्षे दरस्वासे, कुकूलस्तुषपावके । परीवादपर्ययोर्जन्यतल्पो, तपोधर्मवत्सानि माघोष्णहृत्सु । _. वटस्तुल्यतागोलभक्ष्येषु वर्णः, : सितादिखरायो रणे संपरायः ॥ सैन्धवो लवणे भूतः, प्रेते तमो विधुतुदे । खदायौ कखरे कृच्छू, व्रते शुक्रोऽमिमासयोः ॥ ९० Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिझानुशासनम् । कर्पूरवर्णयोश्चन्द्र, उडावृक्षं छदे दलः । धर्मः स्वभावे रुचको, भूषाभिन्मातुलङ्गयोः ॥ पाताले वाडवो वः, सीसे आमलकः फले। पिटजङ्गलसत्त्वानि, पिटकामांसजन्तुषु ॥ .. ९२ मधुपिण्डौ सुरातन्वोर्नाम शेवालमध्ययोः । एकादात्रः समाहारे, तथा सूतककूलकौ ॥ ९३ वैनीतकभ्रमरको मरको वलीक वल्मीकवल्कपुलकाः फरकव्यलीको । किंजल्ककल्कमणिकस्तबका वितङ्क वर्चस्कचूचुकतडाकतटाकतङ्काः॥ बालकः फलकमालकालका, मूलकस्तिलकपकपातकाः । कोरकः करककन्दुकान्दुका ऽनीकनिष्कचषका विशेषकः ॥ ९५ शाटककण्टकटकविटङ्का, मञ्चकमेचकनाकपिनाकाः । पुस्तकमस्तकमुस्तकशाका, वर्णकमोदकमूषिकमुष्काः॥९६ चण्डातकश्चरकरोचककञ्चकानि, मस्तिष्कयावककरण्डकतण्डकानि। आतङ्कशकसरकाः कटकः सशुल्कः, पिण्याकझर्झरकहंसकशङ्खपुजाः ॥ ९७ ९१ . Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिशानुशासनम्। नखमुखमधिकाङ्गः संयुगः पद्मरागो, __ भगयुगमथ टङ्गोद्योगशृङ्गा निदाधः । क्रकचकवचकूर्चाधर्चपुच्छोञ्छकच्छाः, ब्रजमुटजनिकुञ्जौ कुञ्जभूर्जाम्बुजाश्च ॥ ९८ ध्वजमलयजंकूटाः कालय कवटकपटखेटाः कर्पटः पिष्टलोष्टौ । । नटनिकटकिरीटाः कर्वटः कुक्कुटाडौ, कुटयकुटविटानि व्यङ्गटः कोदृकुष्ठाः ॥ ९९ कमठो वारुण्डखण्डषण्डा, निगडाकीडनडप्रकाण्डकाण्डाः । कोदण्डतरण्डमण्डमुण्डा, दण्डाण्डौ दृढवारबाणबाणाः ॥ १०० कार्षापणश्रवणपक्कणकंकणानि, द्रोणापराहचरणानि तृणं सुवर्णम् । खर्णत्रणौ वृषणभूषणदूषणानि, भाणस्तथा किणरणप्रवणानि चूर्णः ॥ १०१ तोरणपूर्तनिकेतनिवाताः, पारतमन्तयुतप्रयुतानि । क्ष्वेडितमक्षतदैवतवृत्तैरावतलोहितहस्तशतानि ॥ १०२ Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिहानुशासनम् । व्रतोपवीतौ पलितो वसन्तध्वान्तायुतद्यूतघृतानि पुस्खः । . शुद्धान्तवुस्तौ रजतो मुहूर्तद्वियूथयूथानि वरूथगूयौ १०३ प्रस्थं तीर्थ प्रोथमलिन्दः, ककुदः कुकुदाष्टापदकुन्दाः। गुददोहदकुमुदच्छदकन्दाधुंदसौधमथोत्सेधकबन्धौ १०४ श्राद्धायुधान्धौषधगन्धमादन प्रस्फोटना लग्नपिधानचन्दनाः । वितानराजादनशिश्नयौवना पीनोदपानासनकेतनाशनाः ॥ १०५ नलिमपुलिममौना वर्धमानः समानौ-- दनदिनशतमाना हायनस्थानमानाः। .. धननिधनविमानास्ताडनस्तेनवना, . भवनभुवनयानोद्यानवातायनानि ॥ १०६ अभिधानद्वीपिनौ निपानः, __ शयनं लशुनरसोनगृञ्जनानि । खलिनखलीनानुमानदीपाः, कुणपकुतपावापचापशूर्पाः ॥ १०७ स्तूपोडुपौ विटपमण्डपशष्पवाष्प द्वीपानि विष्टपनिपौ शफडिम्बबिम्बाः । जम्भः कुसुम्भककुभौ कलभो निभोऽर्म- .. . संक्रामसंक्रमललामहिमानि हेमम् ॥ १०८ Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । उद्यमकामोद्यामाश्रमकुट्टिमकुसुमसंगमा गुल्मः । क्षेमक्षौमौ कम्बलिवाह्यो मैरेयतूर्यौ च ॥ १०९ पूयाऽजन्यप्रमयसमया राजसूयो हिरण्या रण्ये संख्यं मलयवलयौ वाजपेयः कषायः । शल्यं कुल्याव्ययकवियवद्गोमयं पारिहार्यः, पारावारातिखरशिखरक्षेत्रवस्त्रोपवस्त्राः ॥ ११० अलिंजरः कूबरकूरबेरनीहारहिञ्जीरसहस्रमेंदाः । संसारसीरौ तुबरश्च सूत्रशृङ्गारपद्रान्तरकर्णपूराः ॥ १११ नेत्रं वऋपवित्रपत्रसमरौशीरान्धकारा वरः, केदारप्रवरौ कुलीरशिशिरावाडम्बरो गह्वरः । क्षीरं कोटरचक्रचुक्रतिमिराङ्गारास्तुषारः शरो, प्राष्ट्रोपहरराष्ट्रतक्रजठरार्द्राः कुञ्जरः पञ्जरः ॥११२ कर्पूरनूपुरकुटीरविहारवार___ कान्तारतोमरदुरोदरवासराणि । कासारकेसरकरीरशरीरजीर मञ्जीरशेखरयुगंधरवज्रवप्राः ॥ ११३ आलवालपलमालपलालाः, पल्वलः खलचषालविशालाः। शूलमूलमुकुलास्तलतैलौ, तूलकुङ्मलतमालकपालाः ११४ Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम्। कवलप्रवालबलशम्बलोत्पलो पलशीलशैलशकलाङ्गुलाञ्चलाः । कमलं मलं मुशलशालकुण्डलाः, कललं नलं निगलनीलमङ्गलाः ॥ ११५ काकोलहलाहलौ हलं, कोलाहलकङ्कालवल्कलाः । सौवर्चलधूमले फलं, हालाहलजम्बालखण्डलाः ॥ ११६ लाङ्गुलगरलाविन्द्रनीलगाण्डीवगाण्डिवाः ।। उल्वः पारशवः पार्धापूर्वत्रिदिवताण्डवाः ॥ ११७ निष्ठेवः प्रग्रीवः शरावरावौ भावक्लीवशवानि । दैवः पूर्वः पल्लवनल्वौ, पाशं कुलिशं कर्कशकोशौ ११८ आकाशकाशकणिशाङ्कशशेषवेषो प्णीषाम्बरीषविषरोहिषमाषमेषाः । प्रत्यूषयूषमथ कोषकरीषकर्ष वषामिषा रसबुसेक्कसचिक्कसाश्च ॥ ११९ कर्पास आसो दिवसावतंसवीतंसमांसाः पनसोपवासौ । निर्यासमासौ चमसांसकांसस्नेहानि बों गृहगेहलोहाः १२० पुण्याहदेहौ पटहस्तनूरुहो, लक्षोऽररिस्थाणुकमण्डलनि च । Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । चाटुश्चटुर्जन्तुकशिप्वणुस्तथा, जीवातु कुस्तुम्बरु जानु सानु च ॥ १२१ कम्बुः सक्तुर्विगुरुर्वास्तु पलाण्डु हिङ्गुः शिग्रुर्दोस्तितउः सीध्वथ भूम । वेम प्रेम ब्रह्म गरुल्लोम विहायः, कर्माष्ठीवत्पक्ष्मधनुर्नाममहिम्नी ॥ १२२ इति पुंनपुंसकलिङ्गाः । स्त्रीक्लीबयोनखं शुक्तौ, विश्वं मधुकमौषधे, माने लक्षं मधौ कल्यं, कोडोऽके तिन्दुकं फले । तरलं यवाग्वां पुष्पे, पाटलं पटलं चये । वसन्ततिलकं वृत्ते, कपालं भिक्षुभाजने ॥ १२३ अर्धपूर्वपदो नावट्यणकनटौ क्वचित् । चौराद्यमनोज्ञाद्यकञ् , कथानककशेरुके ॥ १२४ वंशिकवक्रौष्ठिककन्यकुब्जपीठानि नक्तमवहित्थम् । रशनं रसनाच्छोटनशुम्ब, तुम्बं महोदयं कांस्यम् ॥ १२५ मृगव्यचव्ये च वणिज्यवीर्यनासीरगात्रापरमन्दिराणि । तमिस्रशस्त्रे नगरं मसूरत्वक्क्षीरकादम्बरकाहलानि ॥ १२६ Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । स्थालीकदल्यौ स्थलजालपित्तला गोलायुगल्यो बडिशं च छर्दि च । अलाबु जम्बूडुरुषः सरः सदो, रोदोऽर्चिषी दाम गुणे त्वयट तयट् ॥ १२७ इति स्त्रीनपुंसकलिङ्गाः। खतस्त्रिलिङ्गः सरकोऽनुतर्षे शललः शले। करकोऽब्दोपले कोशः, शिम्बा खड्गपिधानयोः ॥ १२८ जीवः प्राणेषु केदारे, वलजः पवने खलः । बहुलं वृत्तनक्षत्रपुराद्याभरणाभिधाः ॥ १२९ भल्लातक आमलको, हरीतकबिभीतकौ । तारकाढकपिटकस्फुलिङ्गा विडङ्गतटौ १३० पटः पुटो वटो वाटः, कपाटशकटौ कटः । पेटो मठः कुण्डनीडविषाणास्तूणकङ्कतौ ॥ १३१ मुस्तः कुथेङ्गुदजृम्भदाडिमाः, पिठरप्रतिसरपात्रकंदराः । नखरो वलरो दरः पुरश्छत्रः कुवलमृणालमण्डलाः १३२ नालप्रणालपटलार्गलशृङ्खलकन्दलाः ।.. पूलावहेलौ कलशकटाही षष्टिरेण्विषु ॥ १३३ इति खतस्त्रिलिङ्गाः। Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गानुशासनम् । परलिङ्गो द्वन्द्वोऽशी हेऽर्थो वाच्यवदपत्यमिति नियताः । अख्यारोपाभावे गुणवृत्तेराश्रयाद्वचनलिङ्गे ॥ १३४ प्रकृतर्लिङ्गवचने बाधन्ते स्वार्थिकाः क्वचित् । प्रकृतिर्हरीतक्यादिर्न लिङ्गमतिवर्तते ॥ १३५ वचनं तु खलतिकादिर्बह्वथाऽत्येति पूर्वपदभूता । स्त्रीपुनपुंसकानां सह वचने स्यात् परं लिङ्गम् ॥ १३६ नन्ता संख्या डतियुष्मदस्मच्च स्युरलिङ्गकाः । पदं वाक्यमव्ययं चेत्यसंख्यं च तद्बहुलम् ॥ १३७ निःशेषनामलिङ्गानुशासनान्यभिसमीक्ष्य संक्षेपात् । आचार्यहेमचन्द्रः समदृभदनुशासनानि लिङ्गानाम् ॥ १३८ इत्याचार्य श्रीहेमचन्द्रविरचितं लिङ्गानुशासनं समाप्तम् ॥ Ver Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - एकाक्षरकोशः। my अकारो वासुदेवः स्यादाकारस्तु पितामहः । पूजायामपि माङ्गल्ये आकारश्च प्रकीर्तितः ॥ १ ॥ इकार उच्यते कामो लक्ष्मीरीकार उच्यते। : उकारः शङ्करः प्रोक्त ऊकारश्चापि लक्षणे ॥ २ ॥ रक्षणे चापि ऊकार अकारो ब्रह्मणि स्मृतः ।। ऋकारो वेदमाता स्याहकारो दनुजप्रसूः ॥ ३ ॥ लकारो देवजातीनां माता सद्भिः प्रकीर्तिता। . लकारः स्मर्यते पूर्वैर्जननी शब्दकोविदः ॥ ४ ॥ एकार उच्यते विष्णुरैकारः स्यान्महेश्वरः ।। ओकारस्तु भवेद्ब्रह्मा ओंकारोऽनन्त उच्यते ॥ ५॥ अं स्याच परमं ब्रह्म अ: स्याच्चैव महेश्वरः । . कः प्रजापतिरुद्दिष्टः कोऽर्कवाय्वनलेषु च ॥ ६ ॥ कश्चात्मनि मयूरे च कः प्रकाश उदाहृतः । के शिरो जलमाख्यातं कं सुखं च प्रकीर्तितम् ॥७॥ पृथिव्यां कुः समाख्यातः कुः शब्देऽपि प्रकीर्तितः । खमिन्द्रिये खमाकाशे खः खर्गेऽपि प्रकीर्तितः ॥८॥ सामान्ये च तथा शून्ये खशब्दः परिकीर्तितः । गो गणेशः समुद्दिष्टो गन्धर्वो गः प्रकीर्तितः ॥९॥ Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गं गीतं गा च गाथा स्वाद्वौध धेनुः सरखती । घा घण्टाथ समाख्याता घो धनश्च प्रकीर्तितः ॥१०॥ घो घण्टाहननेऽधर्मे कुषोंणा घूलनायपि । डकारो भैरवः ख्यातो डकारो विषयस्पृहा ॥११॥ चश्चन्द्रमाः समाख्यातो भास्करे तस्करे मतः । निर्मलं छं समाख्यातं तरले छः प्रकीर्तितः ॥१२॥ छेदके छः समाख्यातो विद्वद्भिः शब्दकोविदैः । जकारो गायने प्रोक्तो जेमने जः प्रकीर्तितः ॥१३॥ जेता जश्व प्रकथितः सूरिभिः शब्दशासने । रखो झकारः कथितो नष्टे शश्वोच्यते बुधैः ॥१४॥ झकारश्च तथा वायौ नेपथ्ये समुदाहृतः । अकारो गायने प्रोक्तो अकारो झर्झरध्वनौ ॥१५|| टो धरित्र्यां च करके टो ध्वनौ च प्रकीर्तितः । ठकारो जनतायां स्याहो ध्वनौ च शठेऽपि च ॥१६॥ ठो महेशः समाख्यातष्ठश्च शून्ये प्रकीर्तितः । बृहद्धनौ च ठः प्रोक्तस्तथा चन्द्रस्य मण्डले ॥१७॥ डकारः शङ्करे त्रासे ध्वनौ भीमे निरुच्यते । ढकारः कीर्तिता ढका निर्गुणे निर्धने मतः ॥१८॥ णकारः सूकरे ज्ञाने निश्चये निर्णयेऽपि च । सकारः कीर्तितश्चौरे क्रोडपुच्छे प्रकीर्तितः ॥१९॥ Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिलोच्चये पकारः स्यात्थकारो नयरक्षणे । दकारोऽभ्रे कलत्रे च छेदे दाने च दातरि ॥२०॥ धं धने सधने धः स्याद्विधातरि मनावपि । धिषणा धीः समाख्याता धूश्चैवं भारबित्तयोः ॥२१॥ नेता नश्च समाख्यातस्तरणौ नः प्रकीर्तितः । मकारः सौगते बुद्धौ स्तुतौ वृक्षे प्रकीर्तितः ॥२२॥ नशब्दः स्वागते बन्धौ वृक्षे सूर्ये च कीर्तितः । पः कुबेरः समाख्यातः पश्चिमे च प्रकीर्तितः ॥२३॥ समाख्यातःप: स्यात्पाने च पातरि । कफे वारे फकारः स्यात्तथाऽऽहाने प्रकीर्तितः ॥२४॥ फूत्कारेपि च फः प्रोक्तस्तथा निष्फलभाषणे । बकारो वरुणः प्रोक्तः कलशे षः फलेऽपि च ॥२५॥ वक्षःस्थले च बः प्रोक्तो गदायां समुदाहृतः । नक्षत्रे भं बुधाः प्राहुर्भवने भः प्रकीर्तितः ॥२६॥ दीप्तिर्भास्याच भूभूमि र्भयं कथितं बुधैः । मःशिवश्चन्द्रमा वेधा मा लक्ष्मीश्च प्रकीर्तितः ॥२७॥ मा च मातरि माने च बन्धने मः प्रकीर्तितः। यशो यः कथितः प्राज्ञैर्यो वायुरिति शब्दितः ॥२८॥ याने यातरि यस्त्यागे कथितः शब्दवेदिभिः । रश्च रामेऽनिले वह्नौ भूमावपि धनेऽपि च ॥२९॥ Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्द्रियेन्धनरोगे च रुर्भवे च प्रकीर्तितः । लो दीप्तौ द्यां लश्च भूमौ भये चाह्लादनेऽपि च ॥३०॥ लो वाते लवणे च स्याल्लो दाने च प्रकीर्तितः । लः श्लेषे चाशये चैव प्रलये साधनेऽपि लः ॥ ३१ ॥ मानसे वरुणे चैव लकारः सान्त्वनेऽपि च । विश्व पक्षी निगदितो गगनं परिकीर्तितम् ॥ ३२ ॥ शं सुखं शंकरः श्रेयः शश्च सीम्नि निगद्यते । शयने शः समाख्यातो हिंसायां शो निगद्यते ॥३३॥ षः कीर्तितो बुधैः श्रेष्ठे षश्च गम्भीरलोचने । उपसर्गे परोक्षे च षकारः परिकीर्तितः ॥ ३४ ॥ सः कोपे वरणे सः स्यात्तथा शूलिनि कीर्तितः । साच लक्ष्मीबुधैः प्रोक्ता गौरी सा च स ईश्वरः ३५ हः कोपे वारणे हश्च तथा शूली प्रकीर्तितः । हि: पद्मावरणे प्रोक्तो हिः स्याद्धेत्ववधारणे ॥३६॥ क्षः क्षेत्रे वक्षसि प्रोक्तो बुधैः क्षः शब्दशासने। क्षिा क्षेत्रे क्षत्ररक्षे च नृसिंहे च प्रकीर्तितः ॥३७॥ आगमेभ्योऽभिधानेभ्यो धातुभ्यः शब्दशासनात् । एवमेकाक्षरं नामाभिधानं रचितं मया ॥ ३८ ॥ इत्येकाक्षरकोशः समाप्तः॥ Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीः । श्रीपुरुषोत्तमदेवप्रणीतः कोशः शब्दभेदप्रकाशः। ॥ श्रीगणेशाय नमः॥ प्रबोधमाधातुमशाब्दिकानां कृपामुपेत्याविशतां कवीनाम् । कृतो मया रूपमवाप्य शब्द भेदप्रकाशोऽखिलवाङ्मयार्थः ॥ १॥ विन्द्यादगारमागारमपगामापगामपि । अरातिमारातिमथो अम आमः प्रकीर्तितः ॥ २ ॥ भवेदमर्ष आमर्षोऽप्यकुरोऽङ्कर एव च । अन्तरिक्षमन्तरीक्षमगस्त्योऽगस्तिरेव च ॥ ३ ॥ अटरूपश्चाटरूषोऽप्यवस्योऽवश्य एव च । प्रतिश्यायः प्रतीश्यायो भल्लूको भल्लुकोऽपि च ॥४॥ उल्मूकमुल्मुकं प्राहुः शम्बूकमपि शम्बुकम् । जतुका स्याज्जतूकापि मयूरो मयुरो मतः ॥ ५ ॥ वास्तुकं चापि वास्तूकं देवकी दैवकीति च । ज्योतिषं ज्यौतिषं चापि ष्ठेवनं ष्ठीवनं तथा ॥६॥ Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रामापि च सुत्रामा हनूमान्हनुमानपि । दुषणं स्यादृषणं च भवेदुषरमूषरम् ॥ ७ ॥ बन्धुरं बन्धुरं च स्यादूरीकृतमुरीकृतम् । वाह्रीकं वाहिकं चापि गाण्डीवं गाण्डिवं तथा ॥८॥ उषाप्यूषा ननन्दा च ननान्दापि प्रकीर्तिता। चाण्डालोऽपि च चण्डालो वादान्योऽपि वदान्यवत्॥९॥ हालाहलं हालहलं वदन्त्यपि हलाहलम् । हल्लालं च हलालं च हाहलं च प्रचक्षते ॥ १० ॥ प्रकाणः प्रकणश्चापि श्यामाकः श्यामकोऽपि च । साहचरः सहचरः स्फाटिकं स्फटिकं तथा ॥ ११ ॥ गन्धर्वोऽपि च गान्धर्वश्चमरचामरस्तथा । चोरश्चौरश्चटुश्चाटुश्चोलं चेलं चमुश्चमूः ॥ १२ ॥ चञ्चुश्वञ्चूस्तलस्तालः श्यामलः स्यामलस्तथा । धान्याकमपि धन्याकं युतकं यौतकं तथा ॥ १३ ॥ कवाटं च कपाटं च कविलं कपिलं तथा । करवालः करपालोऽक्नीपकवनीपकौ ॥ १४ ॥ पारावतः पारवतो जरा स्याज्जरसा सह । जटायुषा जटायुश्च विन्द्यादायुस्तथाऽऽयुषा ॥ १५ ॥ सायं सायो भवेत्कोशः कोषः शण्डच षण्डवत् । भाविकं भविकं चापि मुपलं मुसलं तथा ॥१६॥ Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेशो वेषध कथितो मुषोऽपि स्यानुसस्तथा । स्वाद्धनुर्धनुषा सार्थ जरसा च जरां विदुः ॥ १७ ॥ सूकरः शूकरोऽपि स्यात्सृगालश्च शृगालवत् । सूरः शूरश्च कथितः कलसः कलशोऽपि च । तनुश्ध तनुषा सार्धं धनुना च धनुर्विदुः ॥ १८ ॥ सुनासीरः शुनासीरो नारायणनरायणौ । यातुधानो जातुधानो लक्षणो लक्ष्मणोऽपि च ॥ १९॥ श्वशुरः स्वसुरोऽपि स्याच्चरित्रं चरितं तथा । पारदं पारतं वासा बासकः कृमिणः कृमिः ॥ २० ॥ त्रिफला त्रिफलं चापि कसरा किशरापि च । भवेदृष्टिस्तथा विष्टिः मियालः स्यात्पियालवत् ॥ २१॥ कलाटिनः कलाटीनो बलिशो बडिशोऽपि च । संकरः शंकरोऽपि स्यान्मलो मुगलोऽपि च ॥ २२॥ मुद्गरो मनुरश्वापि मकुटं मुकुटं त्विह । सुकृतं सुकृतं चापि चुलुकं चूलकं तथा ॥ २३ ॥ करञ्जः करजोऽपि स्यात्परेतः प्रेत उच्यते । किर्मीरोऽपि च कर्मी हायनं हयनं स्मृतम् ॥ २४ ॥ शौण्डीयमपि शौण्डीरं ज्येष्ठे ज्यैष्ठोऽपि दृश्यते । सौदानी च सुदानी च सौदामन्यपि दृश्यते ॥२५॥ Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जरठो जठरोऽपि स्यान्निमेषो निमिषोऽपि च । बुको बकश्च कुसुमे मदनो मलयो द्रुमे ॥ २६ ॥ आराग्वधारग्वधौ च खुरकक्षुरकावपि । पृष्णिः पृश्निश्च सरयू: सरयुश्च निगद्यते ॥ २७ ॥ नीलङ्गुरपि नीलाङ्गुरीश्वरी चेश्वरापि च । तापिच्छमपि तापिञ्छं त्रपुषं त्रापुषं तथा ॥ २८ ॥ डिण्डिरोऽपि च डिण्डीरः परशं पशुना सह । वालुका वालिका चापि दोर्दोषापि भुजा भुजः ||२९|| बाहुर्बाहा तृषा तृष्णा संध्या स्यात्संधिना सह । भगिनीमपि भमीं च झल्लरीं जल्लरीं विदुः ॥ ३० ॥ वेत्रं च वेतसा सार्धमेधमाहुस्तथैधसा । संवलनं संवरणं तलुनी तरुणी तथा ॥ ३१ ॥ प्रमदावनं प्रमदवनं प्रवणं परिकीर्तितम् । वरूलिका खुरलिका वज्रं वज्रोऽशनिस्तथा ॥ ३२ ॥ शिलमुञ्छं शिलोञ्छं च भवेदुञ्छशिलं तथा । आशिराश्याऽहिदंष्ट्रायां लक्ष्मीर्लक्ष्मी हरेः प्रिया ॥ ३३ ॥ कुमुदं कुमुदश्चापि योषित् स्याद्योषिता सह । तमस्तु तमसा प्रोक्तं रजसापि रजः समम् ॥ ३४ ॥ जलकास्तु जलौकाभिः कथितोऽयं जलौकसः । दिवा दिवं च कथितं पर्षः स्यात्पर्षदा सह ॥ ३५ ॥ Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्षाः स्युर्वरिषामिस्तु हविषापि हविता सर्षपः स्यात्सरिषपः कर्षः स्यात्करिषेण च ॥ १६ ॥ मारिषो मर्ष इत्युक्तः परशुः पर्श एव च । हारितो हरितोऽपि स्यान्मुनिपक्षिविशेषयोः ॥३७॥ तुवरस्तूवरोऽपि स्यात्कुवरः कूवरस्तथा । . उत्तमोऽनुत्तमोऽपि स्यादाहतं स्यादनाहतम् ॥ ३८ ॥ उदारे चानुदारः स्यादुदने चानुदग्रवत् । कोंकोणः कोंकणश्चापि मिहिरो महिरस्तथा ॥ ३९ ॥ महिलायां महेलापि महला स्यान्महेलिका । छेदश्छेकश्च छेकालो विदग्धे छेकिलोऽपि च ॥४०॥ गूगुलो गुग्गुलोऽपि स्याद्धिले चापि हिङ्गुलम् । मन्दिरे मन्दिरापि स्याद्वीर्ये वीर्यापि कथ्यते ॥४१॥ भुक्तेऽप्यवालं चावालमुदके स्यादुदं समम् । दुष्टभेदे शतरुषः शतारुश्च निगद्यते ॥ ४२ ॥ नेकद्रेकाणद्रकाणा भवन्त्यपि दृकाणवत् । पत्राकमपि पत्राओं कुद्दालश्च कुदालवत् ।। ४३ ॥ मारुषं मारिषं शाके प्रीहा प्लीहा गदेऽपि च । फेणाफेणिस्तथाध्यादौ करिण्यां कारिणीति च ॥४४॥ धरित्री धारयित्री च तरीषी तारषी तथा । कन्याकुब्ज कान्यकुब्जं. कोशलोत्तरकोशला ॥४५॥ Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाराणसीत्यपि प्रोक्ता वारणासी वराणसी । ताम्रलिप्ता दामलिप्ता तुङ्गोऽप्युत्तुङ्ग इत्यपि ॥ ४६॥ अन्तस्थीययकारश्च पवनस्य तु कथ्यते। तन्त्रवायस्य बायेऽपि तत्रादित्वं च दृश्यते ॥ ४७ ॥ एवमन्येऽपि चार्हादाबूह्या वर्णप्रयोगतः । मूर्धरेफादयो ज्ञेयाश्छन्दोभङ्गभयादिह ॥ १८ ॥ छन्दावभिप्रायवशौ कलजः स्यात्कलाजवत् । हखादिरपि पीडायां धनुःकोट्यामपीष्यते ॥ ४९ ॥ एतौ मध्यतवर्गीयौ बैडूर्यमणिशाद्वौ। तालव्यमध्यो विशद ऊर्ध्वशब्दो बकारवान् ॥५०॥ यावन्यां च भवान्यां च श्रावणे मासि मध्यवः । शफे खुरं कवर्गीयं क्षकारश्च क्षुरपके ॥ ५१ ।। नापितस्योपकरणे कषसंयोग इप्यते । अव्ययान्यव्ययं शत्रौ दोषाशब्दः प्रचक्षते ॥ ५२ ॥ प्रायो भवेयुः प्रचुरप्रयोगाः प्रामाणिकोदाहरणे प्रतीताः । रूपादिभेदेषु विचारणेषु विचक्षणो निश्चयतामुपैति ॥ ५३ ॥ कचिन्मात्राकृतो भेदः कचिद्वर्णकृतोऽत्र च । कचिदर्थान्तरोल्लेखाच्छन्दानां रूडितः कचित् ॥५४॥ Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जागर्ति यस्यैष मनःसरोजे - स एव शब्दार्थविवर्तनेशः । निजप्रयोगार्पितकामचारः परपयोगार्थविशारदश्च ॥ ५५॥ इति पुरुषोत्तमदेवकृतः शब्दभेदप्रकाशः समासः। उदयानन्द बालोपाध्यायस्येदं पुस्तकं परार्थम् । श्रीमत्सुधाकलशमुनिपुङ्गवप्रणीता ॥श्रीएकाक्षरनाममाला॥ श्रीवर्धमानमानम्य सर्वातिशयसुन्दरम् । एकाक्षरनाममालां कीर्तयामि यथाश्रुतम् ॥ १ ॥ अपुंलिङ्गशाधारिण्यः खल्पोऽर्थेऽव्ययः पुनः । विरिञ्चावाश्च पुल्लिा आ वाक्ये स्मरणेऽव्ययः ॥२॥ आ: संतापेऽव्ययः क्रुध्यामव्ययोऽप्यधृतौ स्मृतौ । इ कामे पुंलिङ्गइ चाव्ययः कोपोक्तिखेदयोः ॥३॥ ई: पायामव्ययस्त्वी प्रत्यक्षे दुःखभाक्ने । प्रकोपे संनिधौ चैव पुल्लिा उर्वृषध्वजे ॥ ४॥ रोषोक्तौ ममणेऽप्यर्थेऽव्यय उं त्वव्ययस्तथा । प्रश्ने चाङ्गीकृते रोषे पुंलिङ्ग अस्तु रक्षणे ॥ ५ ॥ Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊमव्ययः प्रकर्षोक्तौ प्रश्ने ऋर्देवमातरि । अव्यय ऋतु कुत्सायां वचनेऽपि तथैवच ॥ ६ ॥ ऋस्त्वजे दानवाञ्छायां ऋश्व स्याद्देवमातरि । ऋर्वाराह्यां भवेदेस्तु विष्णावस्तु वृषध्वजे ॥ ७ ॥ ओरुवंलिङ्ग आहूतावव्ययः स्यादनन्त ओ। संबोधने चाव्यय ओ परब्रह्मण्यमः शिवे ॥ ८ ॥ कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि के नीरसुखमूर्धसु ॥ ९ ॥ कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ वितर्काश्चर्यनिन्दासु किंशब्दः स्यात् कियानपि । खमिन्द्रियवर्गशून्यभूषाकाशसुखेषु च ॥ ११ ॥ संविदि शून्यखण्डे च वर्तते खश्च भास्करे । गो गन्धर्वे गणेशे च गीते गं गश्च गातरि ॥१२॥ गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रवर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतेश्वर्या गणेशे चापि गौः स्मृतः ॥१३॥ घः कुम्भे हनने घोषान्तर्भावकिङ्किणीष्वपि । को विषये भैरवे च चस्तरौ चन्द्रचौरयोः ॥ १४ ॥ चुश्चकोरे समाख्यातश्चकारः पुनरव्ययः । अन्योऽन्यार्थे विकल्पार्थे समासे पादपूरणे ॥.१५ ॥ Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३. पक्षान्तरे समूहार्थे हेताववधृतावपि । अन्वाचये तथा तुल्ययोगितायां च कीर्तितः ॥१६॥ छः सूर्ये छेदके ख्यातस्तथा संवरणे भवेत् । छञ्च छन्दसि तडिति निर्मले च तथा स्मृतः ॥१७॥ जश्च जेतरि जनने विगते जिस्तु जेतरि । जूर्विहायसि जवने पिशाच्यां विगतेऽपि च ॥१८॥ झो नक्तं गायने नष्टे घर्घरध्वनिनामनि । चारुवाक्चारयोझस्तु व्यूहने गूढरूपके ॥ १९ ॥ टः पृथिव्यां ध्वनौ वायौ करके पुनर्भुवि । चकोरेऽब्दे तथा ठस्तु घटे शून्ये बृहद्ध नौ ॥२०॥ चन्द्रस्य मण्डले रुद्रे डो वृषाङ्के ध्वनावपि । बन्दिवृन्दे तथा डः स्यात् यामिनीपतिमण्डले ॥२१॥ ढो ढक्कायां समाख्यातस्तथा ढा निर्गुणे ध्वनौ । णः प्रकटे निष्कले च प्रस्तुते ज्ञानबन्धयोः ॥२२॥ तकारस्तस्करे युद्धे कोडे पृच्छे च ता श्रियाम् । तु स्यात्पूर्वे निवृत्तौ च पूर्वस्मादवधारणे ॥ २३ ॥ विलक्षणे विकल्पार्थे थो भवेद्भयरक्षणे । भूधरे च तथा भारे दो दाने दायकेऽपि च ॥२४॥ दाने दातरि दा केचिद्विदुर्दा छेदबन्धयोः । दं कलत्रं तथा धञ्च धीरे च धनदे धने ॥ २५ ॥ Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धस्तु चित्रेऽश्ववारे च धीर्बुद्धाविषुधावपि । गुह्यकेशे विरिश्चौ धा तथा धूर्मारकम्पयोः ॥ २६ ॥ धूते धुराकम्पने च नो बुद्धौ ज्ञानबन्धयोः । असानसभ्यमस्माकमेषां स्थाने भवेश्च नः ॥ २७ ॥ निषेधार्थेऽव्यये नो च नकारश्च नरस्तु ना। निःश्रुते नेतरि ख्यातो नुःस्तुतौ च प्रकीर्तितः ॥२८॥ निः स्यात् क्षेपे च नित्यार्थे भृशार्थाश्रयराशिषु । कौशले बन्धने मोक्षे संशये दारुकर्मणि ॥ २९ ॥ अधोभावोपरमयोः संनिधानेऽव्ययो मतः । नुःप्रश्ने च वितर्के च विकल्पेऽनुशयेऽव्ययः ॥ ३०॥ तरण्यां नौस्तथा ख्यातः पः पाने पवने पथि। प्रौढे च वर्णके पश्च पा पातरि तथा श्रुते ॥ ३१ ॥ फकारो निष्फले जल्पे पुष्करे भयरक्षणे । फफा वाते फले फेने फूत्कारे फूस्तथोदितः ॥३२॥ बः कुम्भे वरुणे पझे कलहे विगतौ तथा । भश्चालिशुक्रयो वे भश्च दीप्तौ भये तु भीः॥३३॥ भं धिष्ण्ये भूर्भुवि स्थाने मश्चन्द्रे च विधौ शिवे । मौलौ च बन्धने मूः स्यान्मा माने मारणेऽव्ययः॥३४॥ अस्मच्छब्दे द्वितीयायां मा च पष्ठयां च मे पुनः । मा मातरि तथा लक्ष्म्यां यस्तु बाते यमेऽपि च ॥३५॥ Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JM । यश्च घातरि सूर्ये स्वाद्या माने बातरि खानेऽपि च रः कामे तीक्ष्णे वैश्वानरे नरे ॥ ३६ ॥ रामे वज्रे च शब्दे स्याद् राद्रव्ये कनके पुनः । आश्रये नीरदे च स्याद् रुः सूर्ये रक्षणेऽपि च ॥३७॥ भये शब्दे च री भ्रान्तौ लकारश्चलने पुनः । लादाने लूश्व लवने लश्च लूश्च बिडौजसि ॥ ३८ ॥ लश्चामृते दिशायां च ली: श्लेषे वलये तथा । वो बाते वरुणे रुद्रे सान्त्वने चाव्ययः पुनः ॥३९॥ एवार्थे उपमाने च विकरूपे च समुच्चये । विः श्रेष्ठे भीते नानार्थे वै तौ पादपूरणे ॥ ४० ॥ द्वितीयायाश्चतुर्थ्याश्च षष्ठ्या युष्मद्बहुत्वके । वश्वासां च विभक्तीनां द्वित्वे वां कथितो बुधैः ॥ ४१ ॥ आकाशे विहगे विश्वेशं श्रेयसि सुखेऽव्ययः । शस्तु शान्ते च सास्नायां शीः शये हिंसनेऽपि ॥ ४२॥ शुश्चन्द्रे षः सदारः स्यात्तथेष्टे प्रसवे तु षूः । सः सूर्ये च परोक्षे च सं सङ्कोचेऽव्ययस्तु सम् ॥४३॥ संगार्थे शोभनार्थे च प्रकृष्टार्थसमर्थयोः । प्रथमान्तस्तदः स्थाने स्मृतौ लक्ष्म्यां च सोच्यते ॥४४॥ Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हः शूलिनि करे नीरे क्रोधे गर्भप्रभाषणे।। निवासेऽथाव्ययो हः स्यात्संबुद्धौ पादपूरणे ॥ ४५ ॥ अव्ययो हा स्मृतः शोके तथा दुःखविषादयोः । हि हेतौ पादपूर्ती च विशेषे चावधारणे ॥ ४६ ।। स्फटे दानेऽथाव्ययो ही दुःखहेतौ च विस्मये ॥ विषादे चाव्ययो हं तु नये काये च भाषणे ॥ ४७॥ हुमव्ययः परिप्रश्ने वितर्के वचने तु हो। हे कुत्सायां तथा हेतौ हूतौ संबोधने तु हो ॥४८॥ राक्षसे क्षस्तथा क्षेत्रे शब्दा ये यक्षरादयः। खरान्ता व्यञ्जनान्ताश्च ज्ञेया ग्रन्थातरात्तु ते ॥ ४९ ॥ मलधारिगच्छभर्तुः सूरेः श्रीराजशेखरस्य गुरोः । शिष्यः सुधाकलश इत्येकाक्षरनाममालिकामतनोत्५० इति एकाक्षरनाममाला समाप्ता॥ Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________