Book Title: Abhayratnasara
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Danmal Shankardas Nahta

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Page 756
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय-रत्नसार। ७२५ लगनेके पहले ही तिलका तेल पेरवाकर रख लेना चाहिये ; क्यों कि तिलमें बहुतसे उस जीवोंकी उत्पत्ति होती है, इसलिये ८ महीने पहलेसे ही तेल भर कर रख लेना चाहिये। तिल-शकरी, तिलके लड्डु, और रेवड़ियाँ नहीं खानी चाहिये । पोस्ता बहुबीज है, इसलिये इसका खाना सर्वथा वर्जित है । जिस चीजमें पोस्ताके दाने पड़े हों, वह सब तरहसे श्रावकोंके लिये अभक्ष्य है। अकसर लोक चूरमेके लड्डू घुघुरो आदि मिठाइयोंमें पोस्ताके दाने डालते हैं, इस बातका पूरा-पूरा ख़याल रखना चाहिये। होलीके दिनसे ऋतु बदलने लगती है, इसलिये अनेक चीजोंमें अस जीव उत्पन्न होते हैं । इसलिये इस समय भक्ष्याभक्ष्यका पूरा विचार रखना चाहिये । काजू, अंगुर और सूखे अजीर आदिमें जीव पड़नेका सम्भव रहता है । अतएव ये अभक्ष्य हैं। ये चीजे जाड़े के दिन में ही खानेकीहै, अतः ८ महीनेतक (कातिक सुदी १५ नक) इनका व्यवहार न कर, उसके बाद करना चाहिये। ___ जो शाग-भाजी या पत्ते आदि तरकारो या आचारके लिये रखे जाते हैं, वे आठ महीने बाद अभक्ष्य हो जाते हैं, क्योंकि नव महीनेमें उनमें त्रस जीव उत्पन्न होने लगते हैं। ___ जो लोग आठ महीने भाजी या पत्ते नहीं खाते, वे पानके पत्ते भी नहीं खा सकते और कढ़ीमें मीठे नीबूका रस भी नहीं डाल सकते, यह बात ध्यानमें रखनी चाहिये। २-असाढ़ चौमासेसे कातिक चौमासे तक सूखे मेवे, जैसे, बदाम, पिस्ता, चिरौंजी, किशमिश, दाख, अखरोट, कुकणी केला, For Private And Personal Use Only

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