Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 21
________________ अपने को उनसे जोड़े नहीं । तटस्थ दर्शक के समान बना रहे । तो वे स्मृतियाँ दुःखदायी नहीं होती। यदि वह ऐसा कर सका तो अतीत की स्मृतियों के भार से मुक्त हो सकता है। समत्व एवं हृदयगत साम्यावस्था का अभिप्राय है तटस्थ बनना, चिन्ता को चित्त तक न आने देना । सामायिक या शुभ ध्यान से चित्त को भविष्य की गलियों में भटकने से रोका जा सकता है । चिन्ता के चक्र से छुटकारा दिलाया जा सकता है-समभाव साधना से । भविष्य की चिन्ताओं से मुक्ति मानव-मन की शान्ति में विक्षेप डालने वाला सर्वाधिक प्रभावकारी तत्व है चिन्ता । यह चिन्ता विशेष रूप से भविष्य के प्रति होती है । इसका कारण यह है कि मनुष्य (१९)

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