Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 223
________________ मुखी की सेवा करने लगा । एक बार उनके (मुखी के) साथ राजगृही नगरी में गया, वहाँ गाँव के मुखी को नगर के मुख्यमंत्री श्रेष्ठी को नमस्कार आदि करते देखकर इनसे (मुखी से) भी ये (मंत्री आदि) बड़े हैं अतः मंत्री आदि की सेवा करने लगा। प्राकृत · महंतयं । तं पि सेणियस्स विणयपरायणमवलोइऊण सेणियमोलग्गिउमारद्धो, अन्नया तत्थ भगवंवद्धमाणसामी समोसढो । सेणिओ सबलवाहणो वंदिउं निग्गओ । तओ फलसालो भगवंतंसमोसरणलच्छीए समाइच्छियं नियच्छंतो पविम्हिओ । नूणमेस सव्वुत्तमो जो एवं नरिंदविंददाणविंदेहिं वंदिज्जइ, ता अलमन्नेहिं । एयस्स चेव विणयं करेमि । तओ अवसरं पाविऊण खग्गखेडमकसे चलणेसुनिवडिऊण विन्नविउंपवत्तो । भयवं! अणुजाणह, अहं भेओलग्गामि । भगवया भणियं, भद्द ! नाहं खग्गफलगहत्थेहिं ओलग्गिज्जामि, किंतु रओहरणमुहपोत्तियापाणीहिं । जहा एए अन्ने ओलग्गंति । तेण भणियं जहा तुब्बे आणवेह तहेवोलग्गामि । तओ जोग्गो त्ति भगवया पव्वाविओ, सुगइं च पाविओ। एवं विणीओ धम्मारिहो होइ त्ति ।। धर्मरत्नप्रकरणे । संस्कृत अनुवाद विनयपरायणमवलोक्य श्रेणिकमवलगितुमारब्धः, अन्यदा तत्र भगवान् वर्द्धमानस्वामी समवसृतः । श्रेणिकः सबलवाहनो वन्दितुं निर्गतः । ततः फलशालो भगवन्तं समवसरणलक्ष्या समागतं पश्यन् प्रविस्मितः । नूनमेष सर्वोत्तमो य एवं नरेन्द्रवृन्ददानवेन्द्रैर्वन्द्यते, ततोऽलमन्यैः । एतस्यैव विनयं करोमि । ततोऽवसरं प्राप्य खड्गखेटककरश्चरणयोर्निपत्य विज्ञपयितुं प्रवृत्तः, भगवन् ! अनुजानीहि, अहं युष्मान् अवलगामि । भगवता भणितम्-भद्र !, नाऽहं खड्गफलकहस्तैरवलग्ये, किं तु रजोहरणमुखपोतिका हिन्दी अनुवाद उनको (मंत्री आदि को) भी महाराजा श्रेणिक की सेवा में तत्पर देखकर श्रेणिक महाराजा की सेवा प्रारम्भ की । एक बार वहाँ भगवान वर्द्धमानस्वामी समवसरे (=पधारे) । श्रेणिक महाराजा सैन्य और वाहनसहित वंदन करने निकले। अतः फलशाल समवसरण की समृद्धि से सुशोभित प्रभु को देखते आश्चर्यचकित हुआ । सचमुच येही सर्वश्रेष्ठ हैं, जो इस प्रकार राजाओं के समूह तथा दानवेन्द्र २०४

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