Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 222
________________ (15) विणओ सव्वगुणाणं मूलं प्राकृत मगहमंडलमंडणभूओ धणधन्नसमिद्धो सालिग्गामो नाम गामो । तत्थ पुप्फसालगाहावई (तस्स य) फलसालो नाम पुत्तो अहेसि । पयइभद्दओ पयइविणीओ पलोगभीरु य । तेण धम्मसत्थपाढयाओ सुयं । जो उत्तमेसु विणयं पउंजइ सो जम्मंतरे उत्तमुत्तमो होइ । तओ सोममेसजणओ उत्तमो त्ति सव्वायरेण तस्सविणए पवत्तो । अन्नया दिट्ठो जणओ गामसामिस्स विणयं पउंजंतो । तओ एत्तो वि इमो उत्तमो त्ति जणयमापुच्छिऊणं पवत्तो गामसामिमोलग्गिउं । कयाइ तेण सद्धिं गओ रायगिहं । तत्थ गामाहिवं महंतस्स पणामाइ कुणमाणमालोइऊणइमाओ वि एस पहाणो त्ति ओलग्गिओ (15) विनयः सर्वगुणानां मूलम् संस्कृत अनुवाद मगधमण्डलमण्डनभूतो धनधान्यसमृद्ध: शालिग्रामो नाम ग्रामः । तत्र पुष्पशालगृहपतिः, (तस्य च) फलशालो नाम पुत्र आसीत् । प्रकृतिभद्रक: प्रकृतिविनीतः परलोकभीरुश्च । तेन धर्मशास्त्रपाठकाच्छ्रुतम् । य उत्तमेषु विनयं प्रयुङ्क्ते स जन्मान्तरे उत्तमोत्तमो भवति । ततः स ममैष जनक उत्तम इति सर्वाऽऽदरेण तस्य विनये प्रवृत्तः । अन्यदा दृष्टो जनको ग्रामस्वामिनो विनयं प्रयुञ्जानः । तत एतस्मादप्ययमुत्तम इति जनकमापृच्छय प्रवृत्तो ग्रामस्वामिनमवलगितुम् । कदापि तेन सार्द्धं गतो राजगृहम् । तत्र ग्रामाधिपं महतः प्रणामादि कुर्वन्तमालोक्याऽस्मादप्येष प्रधान इत्यवलगितो महन्तम् । तमपि श्रेणिकस्य हिन्दी अनुवाद मगधदेश के आभूषण समान, धन-धान्य से समृद्ध शालिग्राम नामक गाँव था । वहाँ पुष्पशाल नाम का गृहस्थ और उसका फलशाल नाम का पुत्र था । स्वभाव से भद्रिक, विनयशील और परलोक से भयभीत था । उसने किसी धर्मशास्त्र पाठक के पास सुना कि-जो बड़ों का विनय करता है, वह भवांतर में श्रेष्ठ बनता है । अतः मेरे ये पिताजी बड़े हैं इसलिए संपूर्ण आदरपूर्वक उनके विनय में प्रवृत्त हुआ । एक बार गाँव के मुखी का विनय करते पिताजी को देखा, इसलिए इनसे (पिताजी से) भी यह (मुखी) श्रेष्ठ है, पिताजी को पूछकर गाँव के रू - -२०३ Hश्री

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