Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 583
________________ [८३ ] स्वाध्याय आज का दिन चातुर्मासिक पर्व के नाम से जाना जाता है । चार मास पर्यन्त, इस वर्षावास में, ज्ञान-गंगा की जो धारा प्रवाहित हो रही थी, वह अपनी दिशा बदलने वाली है । चार मास से ज्ञान और सत्संग का जो यज्ञ चल रहा था, आज उसकी पूर्णाहुति है। श्रमणवर्ग अपना स्थिर निवास त्यागकर पुनः विहारचर्या अपनाएँगे। अन्त के इन तीन दिनों में 'सामायिक सम्मेलन' के आयोजन ने इस पर्व को सोने में सुगंध की तरह भर दिया है । आज स्वाध्याय की ज्योति को जगाने का दिवस है। यह आत्मशोधक पर्व है, जिसमें इस जीवन की शुद्धि सफलता और श्रेय का विचार करना है और भविष्य का निर्माण करना है। भगवान् महावीर का अनेकान्तमार्ग, जिसने कोटि-कोटि बन्धनबद्ध प्राणियों को मुक्ति और स्वाधीनता का मार्ग प्रदर्शित किया है, ज्ञान और क्रिया के समन्वय का समर्थन करके चलता है। उसने हमें बतलाया है कि एकांगी कर्म से अथवा एकांगी ज्ञान से निस्तार नहीं होगा | जब तक ज्ञान और क्रिया एक-दूसरे के पूरक बनकर संयुक्त बल न प्राप्त कर लेंगे, तब तक साधक की साधना में पूर्णता नहीं आएगी, वह लंगड़ी रहेगी और उससे सिद्धि प्राप्त नहीं की जा सकेगी । क्रियाहीन ज्ञान मस्तिष्क का भार है और ज्ञानहीन क्रिया अन्धी है । दोनों एक-दूसरे के सहयोग के बिना निष्फल हैं। उनसे आत्मा का कल्याण नहीं होता । कहा भी है हतं ज्ञानं क्रियाहीनं, हता चाज्ञानिना क्रिया । अर्थात् क्रिया से रहित ज्ञान और ज्ञान से रहित क्रिया वृथा है । वह विशाल से विशाल और गम्भीर से गम्भीर ज्ञान आखिर किस काम का है जो कभी व्यवहार में नहीं आता ? उससे परमार्थ की तो बात दूर, व्यवहार में भी लाभ नहीं हो

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