Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 581
________________ 573 आध्यात्मिक आलोक पुराने जमाने में इन चीजों का ही दवा के रूप में प्रायः इस्तेमाल होता था । आज भी देहात में इन्हीं का उपयोग ज्यादा होता है । इन वस्तुओं को चूर्ण, गोली, रस आदि के रूप में तैयार कर लेना भेषज है। आनन्द ने साधु-साध्वी वर्ग को दान देने का जो संकल्प किया उसका तात्पर्य यह नहीं कि उसने अन्य समस्त लोगों की ओर से पीठ फेर ली । इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वह दुःखी, दीन, पीड़ित अनुकम्पापात्र जनों को दान ही नहीं देगा । सुख की स्थिति में पात्र-अपात्र का विचार किया जाता है, दुःख की स्थिति में पड़े व्यक्ति में तो पात्रता स्वतः आ गई । अभिप्राय यह है कि कर्म निर्जरा की दृष्टि से दिये जाने वाले दान में सुपात्र-कुपात्र का विचार होता है किन्तु अनुकम्पा बुद्धि से दिये जाने वाले दान में यह विचार नहीं किया जाता | कसाई या चोर जैसा व्यक्ति भी यदि मरणान्तिक कष्ट में हो तो उसको कष्ट मुक्त करना, उसकी सहायता करना और दान देना भी पुण्यकृत्यं है, क्योंकि वह अनुकम्पा का पात्र है । दाता यदि अनुकम्पा की पुण्यभावना से प्रेरित होकर दान देता है तो उसे अपनी भावना के अनुरूप फल की प्राप्ति होती है। गृहस्थ आनन्द भगवान् महावीर स्वामी की देशना को श्रवण करके और व्रतों को अंगीकार करके घर लौटता है। उसने महाप्रभु महावीर के चरणों में पहुँच कर उनसे कुछ ग्रहण किया । उसने अपने हृदय और मन का पात्र भर लिया । आप्त पुरुष की वाणी श्रवण कर जैसे आनन्द ने अपने जीवन-व्यवहार में उसे उतारने की प्रतिज्ञा की, उसी प्रकार प्रत्येक श्रावक को जिनवाणी को व्यावहारिक रूप देना चाहिए। ऐसा करने से ही इह-परलोक में उसका कल्याण होगा। जीवन में आमोद-प्रमोद के भी दिन होते हैं । जीवन का महत्त्व भी हमारे सामने है । यथोचित सीख लेकर हमें उस महत्त्व को उपलब्ध करना है। यों तो ये सांसारिक मेले आप बहुत करते हैं किन्तु मुक्ति का मेला मनुष्य कर ले, आध्यात्मिक जीवन बना ले तो उसे स्थायी आनन्द प्राप्त हो सकता है । कवि ने कहा है - मुक्ति का मैला कर लो भाव से, अवसर मत चूको । दया दान की गोठ बनाओ, भाग भगति की पीओ ।। संसार में दो किस्म के मेले होते हैं- (१) कर्मबंध करने वाले और (२) कर्मबंध को काटने वाले अथवा यों कहलें कि (७) मन को मलिन करने वाले और (२) मन को निर्मल करने वाले । प्रथम प्रकार के मेले काम, कुतहल एवं विविध प्रकार के विकारों को जागृत करते हैं। ऐसे मेले बाल-जीवों को ही रुचिकर होते हैं । संसार में ऐसे बहुत मैले

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