Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 13
________________ आध्यात्मिक आलोक 5 ऐसी स्थिति में अवांछनीय जनवृद्धि होना क्या आश्चर्य है ? सदाचार की ओर दुर्लक्ष्य ही इस सारी विषम स्थिति का मूल है। दूसरों का पालन करने वाला मानव आज अपनी ही वृद्धि से चिन्तित हो रहा है। करोड़ों पशु-पक्षियों को दाना खिलाने वाला भारत आज अपनी खाद्य समस्या के लिये चिन्तित हो, ताज्जुब की बात है। जनसंख्या की वृद्धि से चिन्तित राष्ट्रीयजन वैज्ञानिक तरीकों से संतति नियन्त्रण करना चाहते हैं। भले इन उपायों से संतति निरोध हो जाय और लोग अपना बोझा हल्का समझ लें क्योंकि इन उपायों से संयम की आवश्यकता नहीं रहती और ये सुगम और सरल भी जंचते हैं किन्तु इनसे उतने ही अधिक खतरे की सम्भावना भी प्रतीत होती है। भारतीय परम्परा से यदि ब्रह्मचर्य के द्वारा सन्तति निरोध का मार्ग अपनाया जाये तो आपका शारीरिक व मानसिक बल बढ़ेगा, और दीर्घायु के साथ आप अपने उज्वल चरित्र का निर्माण कर सकेंगे । साधना का महत्व जीवन को महिमाशाली बनाने के लिये सद्गुणों को अपनाना अत्यन्त आवश्यक है । सद्गुण हमारे भीतर उसी तरह विद्यमान हैं जैसे लकड़ी में अग्नि । आवश्यकता है उन्हें प्रदीप्त करने के लिये समुचित साधना की । घर्षण करने से लकड़ी में से आग निकलती है और चकमक पत्थर से भी घर्षण द्वारा ज्योति पैदा हो जाती है । जब लकड़ी या पत्थर जैसे निर्जीव पदार्थों से भी घर्षण द्वारा ज्योति पैदा की जा सकती है तो क्या साधना के द्वारा मनुष्य के हृदय में ज्ञान की ज्योति प्रदीप्त नहीं की जा सकती'? यदि जीवन की डोर ढीली न की जाये तो पुरुषार्थ के द्वारा साधना के मार्ग में हम जीवन को ऊपर उठा सकते हैं । निम्न स्तर पर गिरा हुआ पतित व्यक्ति भी साधना के द्वारा कराल - पाप-पुञ्ज से अपनी उन्नति कर गौरव - गिरि का अधिवासी बन सकता है । -- साधना या अभ्यास में महाशक्ति है। वह साधक को उच्च से उच्च स्थिति पर पहुँचा सकती है । रवि-शशि की तरह साधन है दैदीप्यमान बन सकता है | स्मरण और भक्ति की कणिका में लगी अग्नि पौरुष के बल पर हृदय में ज्योति जगा देती है । साधनाहीन विलासी जीवन कुछ भी प्राप्त नहीं करता, वह अपनी शक्ति को यों हीं गंवा बैठता है । जीवन चाहे लौकिक हो या आध्यात्मिक, सफलता के लिये पूर्ण अभ्यास की आवश्यकता रहती है। जीवन को उन्नत बनाने और उसमें रही हुई ज्ञान क्रिया की ज्योति को जगाने के लिये साधना की आवश्यकता है। साधना के बल पर चंचल मनपर भी काबू पाया जा सकता है। जैसे-गीताकार श्रीकृष्ण ने भी कहा है

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