Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 18
________________ आध्यात्मिक आलोक 10 है, वे शहरी कृत्रिमता की अपेक्षा प्राकृतिक जीवन के अधिक निकट होते हैं और आज की शिक्षा वास्तविकता से अधिक कृत्रिमता की ओर झुकी हुई है। आज की शिक्षा से प्रभावित लोग अपनी संस्कृति को भुला कर विदेशी संस्कृति की जोरों से नकल करने पर तुल गये हैं। अन्धानुकरण की अनेक बुरी आदतों ने भारतीयों में अपना घर बना लिया है, प्राचीन लोग दांत की सफाई के लिये निम्बादि के दतौन तथा उंगली का प्रयोग किया करते थे जब कि आज के शिक्षित टूथ पाउडर और ब्रश का उपयोग करने लगे हैं। जड़ी-बूटी से निर्मित अल्प मूल्य की भारतीय औषधियों को छोड़ कर आज के लोग इंग्लैंड और अमेरिका की बनी बेशकीमती दवाओं पर अधिक निर्भर रहने लगे हैं। और भी ऐसी कई बातें हैं जिनके लिये देशवासी आज पश्चिम की ओर लालायित दृष्टि से देखते हैं। इसी नकल की प्रवृत्ति के कारण लोग आर्थिक, सामाजिक व धार्मिक दृष्टियों से हानि उठा रहे हैं। इन सबका मूल कारण शिक्षण-पद्धति में विकार है, जिससे इन्कार नहीं किया जा सकता । अग्रेज चले गए मगर उनकी चलायी शिक्षण-पद्धति आज भी हमें उनकी ओर देखने को विवश कर रही है। भारतीय परम्परा में "सत्यं शिवं सुन्दरम्' के आदर्श पर शिक्षण दिया जाता तो विद्यार्थियों में नैतिकता के साथ चरित्र-निर्माण का भी कारण होता । बड़े-बड़े गुरुकुल सुसंस्कारी नागरिक निर्माण करने को देश-विदेश तक प्रसिद्ध थे । नालन्दा और तक्षशिला के गुरुकुल विश्वभर के लिये आकर्षण के केन्द्र थे। उनमें साक्षरता के साथ संस्कार दिये जाते थे। जीवन विकास में परोपकार सेवा का महत्व कम नहीं है। अतीत का भारत आज की तरह परावलम्बी नहीं किन्तु स्वावलम्बी और परोपकारी था। आज बड़े-बड़े पदाधिकारी या शिक्षित व्यक्ति स्वयं काम नहीं करते। क्योंकि, काम करना उनकी दृष्टि में हीनता की निशानी है। उन्हें हर काम के लिये सेवक या नौकर चाहिये। ऐसे लोगों से दूसरों की सेवा की क्या आशा की जाय, जो स्वयं अपना काम नहीं कर सकते। उनसे त्यागमय उच्च जीवन की तो आशा ही व्यर्थ है। मगर प्राचीनकाल की घटनाएं आंखें खोलने वाली हैं। एक बार श्रीकृष्ण अरिहन्त अरिष्टनेमि को वन्दन करने अपनी सेना के साथ द्वारिका नगरी के मध्य से जा रहे थे। वहां मार्ग में उन्होंने एक अत्यन्त वृद्ध ब्राह्मण को ईंट ढोते हुए देखा। श्रीकृष्ण उसकी अवस्था देख कर द्रवित हुए और ब्राह्मण के सहायतार्थ स्वयं हाथी से उतर कर एक ईंट उठा कर उसके घर में डाल दी। फिर क्या था ? अपने स्वामी को ईंट ढोते देखकर सेना के सभी कर्मचारियों ने उस कार्य में हाथ बटाया और

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