Book Title: Aadhunik Kahani ka Pariparshva
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 6
________________ १० / आधुनिक कहानी का परिवार्श्व सांस्कृतिक खोजों एवं पुरातत्व विभाग द्वारा प्राचीन कलात्मक वस्तुनों के संरक्षण के फलस्वरूप प्राप्त ग्रात्म चेतना और आत्म-ज्ञान, ये प्रधान कारण थे । इन कारणों से साहित्य सम्बन्धी ग्रंथों के प्रकाशन में प्रभूतपूर्व वृद्धि हुई और साहित्य के ऐसे रूपों और आदर्शों पर बल दिया जाने लगा जो जन साधारण में प्रचलित हो सकते थे । काव्य का महत्व न्यून होने लगा । महाकाव्य एवं नीति काव्य का कोई स्थान न रह गया । उनका स्थान कथा - साहित्य ने प्रमुखतः लिया । यद्यपि यह निर्विवाद है कि कथा साहित्य का जन्म नवीन सुधारवादी एवं राजनीतिक आन्दोलनों के क्रोड़ में हुआ था, तो भी कथा साहित्य ने सुधारवादी और राष्ट्रीय विचारों का प्रचार करने में अपना विशेष योग दिया और कथा - साहित्य ने नवीन ग्रान्दोलनों का अनुसरण करते हुए भी नवोत्पन्न मध्य वर्ग के मनोरंजन का विशेष ध्यान रखा । उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में हिन्दी में जिस ऐयारी और जासूसी कथा-साहित्य की परम्परा का आविर्भाव हुआ, उससे इस बात का संकेत मिलता है कि प्रारम्भिक कथाकारों की मूल दृष्टि कहाँ केन्द्रित थी । इस कथा - साहित्य का प्रणयन भी विषय और कला दोनों ही दृष्टिकोरणों से समाज के सामान्य स्तर की ओर इंगित करता है । राजदरबारों से निकल कर साहित्य का समाज के व्यापक जीवन की ओर उन्मुख होना स्वाभाविक ही था । उस समय उसमें वह परिष्कार, वह निखार और कलात्मकता नहीं आ सकती थी, जो मध्ययुगीन राजाश्रयप्राप्त ब्रजभाषा काव्य - साहित्य में दृष्टिगोचर होती है । किन्तु इतने पर भी उसमें उमंग और उत्साह प्राप्त होता है, आगे गतिशील होने की क्षमता परिलक्षित होती है और आत्म चेतना के क्या कम है ? दर्शन होते हैं । यह उन्नीसवीं शताब्दी में उद्भूत नवीन राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, वैज्ञानिक, शिक्षा सम्बन्धी आदि शक्तियों का समष्टिगत प्रभाव यह हुआ कि देश का ध्यान यदि एक ओर पिछली अराजकता,

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