Book Title: Aadhunik Kahani ka Pariparshva
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 13
________________ आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / १७ - कारण फैल गई थीं वाले और अप्रधान स्वयं हिन्दू जाति • उत्पन्न हो गई थीं और कुछ आक्रमणकारियों के । हिन्दू धर्म के वाह्य, समय-समय पर बदलते रहने तत्त्वों को वास्तविक, मूल और प्रधान तत्त्व मान कर लोग धर्माचरण करने लगे; वे हिन्दू धर्म के सच्चे रूप से अनभिज्ञ थे । आलोच्य काल मैं हिन्दू धर्म और समाज की अत्यन्त शोचनीय अवस्था हो गई थी । इस काल में अँगरेज़ों की जीवित जाति के संस्पर्श में आने से देश के जीवन का उससे प्रभावित होना अनिवार्य था । मुसलमान शासकों की भाँति अंगरेजों ने भारतवर्ष को अपना घर नहीं बनाया यह ठीक है, लेकिन तो भी यूरोप की सभ्यता का आघात पाकर पहले बंगाल और फिर समूचा देश उत्तेजित हो उठा । ऐसी अवस्था में ग्रात्मगरिमा से पूर्ण हिन्दू जाति में अभ्युदयाकांक्षा के जन्म से नव-जीवन का संचार होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी । हिन्दू जाति की नवजात चेतना के मूल में वैज्ञानिक साधनों तथा नवशिक्षा, ये दो प्रधान कारण थे । उच्च शिक्षा का प्रबन्ध भारत में प्राचीन काल से था । मुसलमानी काल में भी हिन्दुओं और मुसलमानों की शिक्षा क्रमशः पंडितों मौलवियों के हाथ में थी । यह शिक्षा प्रधानतः धार्मिक और परम्परागत थी । अब वह समयानुकूल न रह गई थी । पाश्चात्य सभ्यता के सम्पर्क से देश में बड़े-बड़े परिवर्तन हो रहे 1 ज्ञान-विज्ञान की दिन-प्रति-दिन उन्नति हो रही थी । ऐसी स्थिति में मात्र धार्मिक शिक्षा से ही काम न चल सकता था । राजा राममोहन-राय जैसे प्रगतिशील भारतवासियों के व्यक्तिगत प्रयत्नों के फलस्वरूप अँगरेजी शिक्षा का प्रचार होने लगा था । सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों को देखते हुए अँगरेज़ी शिक्षा प्रचार की परम ग्रावश्यकता समझी गई । इसके फलस्वरूप भारतीय शिक्षित समुदाय यूरोपीय ज्ञान -- विज्ञान का महत्त्व समझने लगा था । उस समय संस्कृत शिक्षा का ह्रास हो चुका था । प्राचीन भारत के सम्बन्ध में ज्ञानोपार्जन करने के

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