Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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129 जह हवदि धम्मदव्वं तह तं जाणेह दवमधमक्खं ।
ठिदिकिरियाजुत्ताणं कारणभूदं तु पुढवीव ॥
130. ण य गच्छदि धम्मत्थी गमण ण करेदि अण्णदवियस्स ।
हवदि गती स प्पसरो जीवाणं पुग्गलाणं च ।
131. विज्जदि जेसि गमणं ठाणं पुरण तेसिमेव संभवदि ।
ते सगपरिणामेहिं दु गमणं ठाणं च कुवंति ॥
132. गमरणणिमित्तं धम्म, अधम्म ठिदि जीवपोग्गलारणं च ।
अवगहण प्रायासं, जीवादी सव्वदव्वाणं ॥
133. सव्वेसि जीवाणं सेसाणं तह य पुग्गलाण च ।
ज देदि विवरमखिलं तं लोए हवदि आयासं ॥
134. पुग्गलजीवरिणबद्धो धम्माधम्मत्थिकायकालड्ढो।
वदि प्रायासे जो लोगो सो सम्वकाले दु ॥
135. सम्भावसभावाण जीवाणं तह य पोग्गलाणं च ।
परियाणसंभूदो कालो णियमेण पण्णत्तो ।
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प्राचार्य कुन्दकुन्द

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