Book Title: Aacharopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 19
________________ १२ अथ आचारोपनिषद 'क' कृतं हा मया पापं, 'ह' लङ्घये शमेन तत् । मिथ्यादुष्कृताक्षराणा - मर्थ एष समासतः ।।६।। मिथ्याकारप्रयोगेण, जिनाज्ञाऽऽराधनं भवेत् । तीवस्ततोऽपि संवेगो - उपुनःकृतेश्च निश्चयः ।।७।। नियमेन समुल्लास, एतद्भावस्य जायते । उक्ताक्षरार्थविज्ञस्य, तस्य तत्प्रतिबन्धतः ।।८।। (मालिनी) वृजिनविषयहेय - प्रज्ञया संयुनक्ति, ह्यनुशयमतया सम्मेलमण्यातनोति । परिहरति च पाप - सत्कभूयःप्रसङ्ग, व्रजति शमिति मिथ्या-दुष्कृतस्य प्रदाता ।।९।।

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