Book Title: 47 Shaktiya Aur 47 Nay
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 6
________________ ४७ शक्तियाँ और ४७ नय समयसार परमागम की आत्मख्याति टीका में समागत - ४७ शक्तियाँ नन्वनेकांतमयस्यापि किमर्थमत्रात्मनो ज्ञानमात्रतया व्यपदेशः? लक्षणप्रसिद्धया लक्ष्यप्रसिद्ध्यर्थम्। आत्मनो हि ज्ञानं लक्षणं, मंगलाचरण (दोहा) अनंत शक्तियाँ उल्लसित, यद्यपि आतमराम। ज्ञानमात्र के ज्ञान को, सैंतालीस बखान॥ पृष्ठभूमि आचार्य कुन्दकुन्द कृत समयसार एवं प्रवचनसार नामक महान ग्रन्थों पर आचार्य अमृतचन्द्र ने आत्मख्याति एवं तत्त्वप्रदीपिका नामक टीकाएँ संस्कृत भाषा में लिखी हैं। __उक्त टीकाओं के परिशिष्ट में ४७ शक्तियों और ४७ नयों की चर्चा आई है; जो भगवान आत्मा के स्वरूप को समझने के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। इसलिए हम यहाँ उक्त परिशिष्टों को पृथक् से प्रकाशित कर रहे हैं। आत्मख्याति में प्रश्नोत्तर के माध्यम से ज्ञानमात्र आत्मा का जो अनेकान्तात्मक स्वरूप समझाया गया है; वह इसप्रकार है - "प्रश्न : अनेकान्तात्मक होने पर भी यहाँ आत्मा को ज्ञानमात्र क्यों कहा गया है; क्योंकि ज्ञानमात्र कहने से तो ज्ञान को छोड़कर अन्य धर्मों-गुणों का निषेध समझा जाता है। उत्तर : लक्षण की प्रसिद्धि के द्वारा लक्ष्य की प्रसिद्धि-सिद्धि करने

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