Book Title: 47 Shaktiya Aur 47 Nay
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 11
________________ ४७ शक्तियाँ और ४७ नय तथापि कुछ ऐसे तथ्य हैं, जो सभी शक्तियों पर समानरूप से घटित होते हैं; इसकारण उनका स्पष्टीकरण आरंभ में ही अपेक्षित है। उक्त तथ्यों के जान लेने से सभी शक्तियों को समझने में सुविधा रहेगी। . ___ सबसे पहली बात तो यह है कि सभी शक्तियाँ पारिणामिकभावरूप हैं। औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और औदयिक भावों में कर्म का उपशम, क्षय, क्षयोपशम और उदय निमित्त होता है; किन्तु पारिणामिकभाव में कर्म का सद्भाव या अभाव कुछ भी निमित्त नहीं है। जीव की इन शक्तियों में भी कर्म का सद्भाव या अभाव कुछ भी निमित्त नहीं है; इसकारण ये सभी शक्तियाँ पारिणामिकभावरूप ही हैं। दूसरी बात यह है कि इन शक्तियों के प्रकरण में जिस भगवान आत्मा की बात चल रही है; उस भगवान आत्मा में आत्मद्रव्य के साथ-साथ उसमें विद्यमान अनंत गुण और उनका निर्मल परिणमन शामिल है। ध्यान रहे, निर्मल परिणमन (पर्यायें) तो शामिल है, पर विकारी परिणमन शामिल नहीं है। __ यद्यपि सभी शक्तियाँ पारिणामिकभावरूप ही हैं; तथापि यहाँ उछलती हुई शक्तियों की बात कही गई है; इसकारण यहाँ निर्मलपर्याय को भी शामिल करके बात हो रही है। ___ उछलने का आशय मात्र परिणमन नहीं; अपितु निर्मल परिणमन है। शक्तियाँ पारिणामिकभावरूप हैं और उनका उछलना अर्थात् निर्मल परिणमन औपशमिक और क्षायिकभाव रूप है तथा सम्यग्दृष्टि के क्षयोपशमभावरूप भी है। ध्यान रहे, औपशमिक और क्षायिकभाव तो सम्यग्दृष्टियों के ही होते हैं; किन्तु क्षयोपशमभाव सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि अर्थात् ज्ञानी और अज्ञानी दोनों में पाया जाता है। यही कारण है कि यहाँ औपशमिक,

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