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________________ (४४) उत्तराध्ययनजी सूत्र व्याख्यान में वांचे । वर्षे वैराग को रंग श्रोता मन राचे ॥ अर्क तेजको देख उलुक धुंधकारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ १० ॥ जो धर्म द्वेषि अरु मद छकिया थे पूरा । जिन वाणीका खड्ग किया चकचूरा ।। धर्म चक्र तप करके कर्म शिर छेदे । पंचरंगी है तप पूर करको भेदे । स्वामिवात्सल्य पांच हुए सुखकारी ।। श्री ज्ञान० ॥११॥ पौषध का झंडा ध्वजा सहित फहराये । __ वादी मानी यह देख बहुत शरमाये ।। पर्षणका था ठाठ मचा अति भारी । आए शान खाते में रुपये दोय हजारी। तीस हजार मिल पुस्तकें छपाई भारी ॥श्री ज्ञान० ॥१२॥ स्वामिवात्सल्य दो खीचंद में कीना । यात्रा पूजाका लाभ भव्य जन लीना । ज्ञान ध्यान कर सूत्र खूब सुनाये । सेंतीस (३७ ) आगम सुनके आनंद पाये । किया सुन्दर उपकार आप तपधारी || श्री ज्ञान० ॥ १३ ॥ कई मत्तांध मिल के विघ्न धर्ममें करते । पत्थर फेंक आकाश नीचे शिर धरते । आग्रहसे विनती करते हैं नरनारी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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