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________________ (४३) सूत्र भगवती व्याख्यान द्वारा फरमावे । विस्तारपूर्वक अर्थ खूब समझावे । तपस्याकी लगी है मड़ी अच्छा रंग वर्षे । पौषध पंचरंगी कर कर श्रावक हर्षे । शासन पर पूरा प्रेम उन्नति भारी॥ श्री ज्ञान० ॥६॥ दोनों पर्युषण हिल मिल के सहु कीना । हुवा धर्म तणा उद्योत लाभ बहु लीना ।। रुपैये दो हजार ज्ञानमें आये। चौतीस हजार मिल पुस्तकें खूब छपाये ।। सार्थ कीना नाम जाउँ बलिहारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ ७॥ कर्म उदित अन्तराय हमारे आई। नैत्रोंकी पीडा आप बहु थी पाइ : वैयोंसे था ईलाज बहुत करवाया। श्रावक लोगोंने भक्ति फर्ज बजाया । दुष्ट कर्म गये दूर दशा शुभ कारी ॥ श्री ज्ञान० ॥८॥ पूरण भगवती वांची मुनिवर भारी । सोना रूपा से पूजे नर अरु नारी ।। घरघोड़ा से आगम शिखर चढायो। स्व-परमत जन जै जैकार मनायो । मधुर देशना वर्षे अमृत धारी ॥ श्री ज्ञान० ॥६॥ कारण आपके संघ आग्रह बहु कीनो । साल इठन्तर चौमासे यश लीनो । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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