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________________ ( ४५ ) तब लाभालाभका कारण आप विचारी । द्रव्य क्षेत्रके ज्ञाता आप विचक्षण भारी ॥ श्री ज्ञान ० ॥ १४ ॥ यांचे है श्रागमसार आनन्द अति आवे | संघ चतुर्विध का सुन कर मन ललचावे । अठ्ठाई महोत्सव पूजा खूब भणीजे । श्री चिंतामणि प्रभु पास शान्ति सुख दीजे । अंग्रेजी बाजे साथ प्रभु असवारी ॥ श्री ज्ञान० ।। १५ ।। जैसलमेर के संघमें विघ्न करता । जब लग उनके घर में कहना चलता । करी विनती भये मुनि अनुरागी । लगा खूब उपदेश विघ्न गये भागी । संघका बनिया ठाठ अतिशय धारी ॥ श्री ज्ञान० || १६ ॥ श्री चिंतामणि पास लोदरवे पाया । संघ यात्रा कर आनन्द खूब मनाया । पूजा प्रभावना स्वामीवात्सल्य कीना । धन्य धन्य संघ पत्नि लाभ बहुतसा लीना ! नगर प्रवेशके महोत्सवकी बलिहारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ १७॥ नरनारी मिल हैं अर्जी आन गुजारी । शरीर कारणसे विनती आप स्वीकारी | साल गुणियासी चौमासो दियो ठाई । व्याख्यानमें बांचे सूत्र भगवती माई | याँ बढ़ता रहा उत्साह धर्म हितकारी ॥ श्री ज्ञान० ॥१८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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