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________________ ( ४२ ) गज सुपनासे जो नाम गयवर दीनो । साल चौपनमे विवाह आपको कीनो || आठ वर्ष लग भोग संसार के भोगी । फिर स्थानकवासी में आप भये हैं योगी । सठ सालमें भए मुनिपद धारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ २ ॥ भागमपर पूरा प्रेम कण्ठस्थ कर राधे । तीस सूत्रोंपर टेबा सबको वांचे ॥ आणी मिथ्या पन्थ सुमति घर आये I तीर्थशियों रत्नविजय गुरु पाये । साल बहत्तर सुन्दर ज्ञान के धारी || श्री ज्ञान ० ॥ ३ ॥ फलोधी चोमासों जोधपुरमें बीजो | सूरत गुरु के पास चौमासो तीजो || सिद्धगिरी की यात्राको फल लीनो । चौथो चौमासो जाय घडिया कीनो || करे ज्ञान ध्यान अभ्यास सदा हितकारी ॥ श्री ज्ञान० ॥४॥ ग्राम नगर पुर पाटण विचरंत आये | गाजा बाजा से नगरे प्रवेश कराये || धन भाग्य हमारे ऐसे मुनिवर पाये । साल सीतंतर चौमासो यहाँ ठाये ॥ नर नारी मिलके श्रानन्द मनाया भारी || श्री ज्ञान० ॥ १ ॥ १ मूल सूत्रों की संक्षिप्त भाषा. २ फलोधी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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