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________________ ( १२८ ) जोके आपणो सारो हेतु समायलो छे, पण लेनार माणसने विशेष हानिकारक थई पडे छे; कारणकं ते तेने आळसु अने निराधार बनावे छे, अने ते मागस जातमहेनत जे आपणा जीवननुं रहस्य छे, तेना फळ अने लाभधी बेनसीब रहे छे अने तेनामां स्वमान अने स्वतंत्रतानो नाश थाय छे. विद्यादान. माटे तेओने विद्यादान आपवुं एज अति उत्तम है, अने तेओने माटे मोटा शहरमां कळाभवनो स्थापत्रां जोईए, एटले तेओने गायनकळा, शील्पकळा, सुतारकाम, नेतरकाम, चित्रकळा, रंगवानुं काम, विगेरे शीखववां, जेथी तेओ स्वतंत्र बने ने पोताना कुटुंबनुं भरणपोपण करवाने शक्तिमान थाय; अने जे जैन श्रावको पोताना अभ्यासमां बहुज कुशळ मालुम पडे, तेना उत्तेजन माटे तेने स्कॉलरशीप आपवी. तेने उत्तेजन मळवाथी ते माणस बहु सारो प्रवास करी पोतानी तीव्र बुद्धिने तीव्रतर बनावशे, अने आबा स्कोलर्समांथी केटलाकने जैन साधुशाळाओमां, जैनशाळाओमां, जैन कन्याशाळा ओमां रोकवा, एटले डबल फायदो थाय. पोते श्रावक होईने, जैनधर्मना प्रीन्सीपल प्रमाणे धार्मिक अने व्यवहारिक केळवणी आपे, अने जैननो पैसो जैनमांज रहे. जे जैनो लूला, लंगडा, आंधळा अने वीजी रीते काम करवाने अशक्त होय, तेओने दरेक जैन श्रीमंते मदद आपत्री, ए तेनी फरज छे. श्रावकने मदद आपकी ए सुपात्रदान कहेवाय छे, माटे श्रीमंत जैनोए एक फंड करी तेओने मदद आपकी जोईए. समयने अनुसार दरेक श्रावके व्यवहारिक केळवणी देवी जोईए. हालना समयमां इंग्रेजी केळवणीनुं प्राबल्य तो इंग्रेजी केळवणी लेवी जोईए है. व्यवहारिक केळवणी ए धार्मिक केळवणीनुं पगथीयुं छे. व्यवहारिक केळवणीरुपी नीसरणीची आपणे धार्मिक केळवणीनी मेडीए चढी शकीए. माटे धर्मना हेतुथी पण खास जरुर है. धर्मना उद्धार माटे संपत्ति पण जरुर छे, अने ते संपत्ति व्यवहारिक केळवर्णाथी मळी शंक छे; माटे दरेक श्रावके व्यवहारिक केळवणी देवी अने वीजाने ते बातमां मदद आपकी, ते विषे उपर कहवाई गयुं छे. आजकाल जैनोमां केटलाक कारणने लइने धर्म विरुद्ध हानिकारक रीवाजो दाखल या छे, ते दूर करवानी जरुर छे. आपणा जैनोमां कन्याविक्रये क्यांक पेसारो कर्यो छे, ते रीवाज घणो हानिकारक छे, तेना फळ घणांज माठां छे. ते बाबतमां वधा सद्ग्रहस्थो मारी साथै मळता आवशो, कारणके ते काम एवं हलकुं छे के, पैसा लेनार माणसज चुपकीथी ले छे, ने जहेरातमां ना पांडे छे. ते हकीकत एम बतावे छे के ते रिवाज वणो हानिकारक छे ने तेना एटलां वधां माठां फळ छे, के जेने विपे कमां विवेचन आपीए. तोपण एक कलाक लागे; माटे दरेक समजु धर्मिष्ट जैने पोतानी सुकुमारं बाळाने पशु माफक बेचवी नहि, अने पैसाना लोभ माटे वृद्ध. रोगीष्ट, अयोग्य वरने आपदी नहि. हालमां जुवान वा वृद्धना मरण पछी खर्च करवानो रिवाज जैनोमां बहु वधी गयो छे, ते एटला सुधी के पैसा करजे कहाडी, घर गरिवी मेली आ हानिकारक रिवाजने वश थई कारज करे छे; जेनुं परिणाम ए आवे छे के, तेओ जींदगी सुधी दुर्बळ स्थितिमां रहेछे, माटे आ रिवाज बंध करो जोईए, अने श्रीमंतोए आवां नकामां खर्च नहि करतां, श्रावकोने विद्या - भ्यास कराववामां, स्कॉलरशीपो आपवामां पैसानो उपयोग करवो जोईए. बीजो हानिकारक रिवाज मरी गयेल माणस पाछळ बायडीओमां रङवाकूटवानो छे, ते आपणा शास्त्रथी विरुद्ध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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