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________________ (१२७) साधुओ जेने पोतानी लालसा गई नथी, तेओ श्रावकनुं श्रेय शी रीते करी शके ? धर्मनी उन्नति शी रीते करी शके ? आ खामीओ दूर करवा माटे अमुक नियमोनी जरूर छे. दिक्षा आपवाने अधिकारी होय तोज दिक्षा आपवी. पंच प्रतिक्रमण, नवतत्व, दंडक, जीवविचार विगैरेनुं ते सारं ज्ञान धरावतो होय, तथा सुसाधु पासे छ मास सुधी रही साधुना व्रतनुं अनुकरण कर्यु होय, अने ते दिक्षा लेनारनां माबाप वा सगांवहालांए खुशीथी रजा आपी होय, अने संघे ते बाबतमां रजाआपी होय, अने पछी बडी धामधुमथी दिक्षा आपी होय, तो खरेखर धर्मनी उन्नति थाय अने निंदा करवानें कोईने कोई कारण मळे नहीं. दरेक गच्छना साधुओमां नायक १ थी २ जोईए, अने जो घणा नायक वा पन्यासजी होय छे, तो तेमांधी घणां माठां परिणाम आवे छे. योग्य, धर्ममां कुशळ, चारित्र पाळनार, ज्ञानी अने गुणी साधुने संघे पसंद करी तेने पन्यासपद आपवू, अने तेने ते बाबतनुं सर्टीफीकेट आप, जोईए, अने वेशधारी अने डोळघालु साधुओने दूर करवा माटे एवो बंदोबस्त थवो जोईए के, साधु धर्म रहस्य जाणे छ, सुचारित्र पाळे छे, त्यारेज तेने पन्यासजीए मोटी दिक्षा आपवी, अने ते बाबतनुं तेने सर्टीफीकेट आपवं. वेशधारी साधु धर्मनी निंदा करावे नहीं, माटे तेओने संतुष्ट राखवा, ए पण आपणी फरज छे. जेम कुमारपाळ राजाना वखतमां हेमाचार्ये लहिया अने लेखकोनुं काम तेओने सोप्यु हतुं, तेम ते प्रमाणे तेओने सोंपवू; अने वेशधारी सावुमां कोईपण साधु चारित्र पाळी शकतो न होय, पण सारं ज्ञान धरावतो होय, तो तेने जैनना बाळकोने धर्मोपदेश करवामां रोकवो. पुस्तकोनो संग्रह करवाथी जे साधुओमां क्लेश थाय छे, ते बहु नुकशानकारक छे, ते दूर करवानी खास जरूर छे. पुस्तको गृहस्थ पासे नहि रखावतां संघनी मालीकी ने संघना कबजामां होवाथी, तेने माटे तेना शिष्यो पाळी क्लेश करशे नहि. बनी शके तो आथी विशेष सारो उपाय ए छे के, दरेक मोटा शहरमां आपणा पुस्तकोनी लायब्रेरी राखवी, जेथी तेनो लाभ दरेक साधु लई शके. उपर प्रमाणे पुस्तकी थतो क्लेश एम सूचवे छे के, तेओ हजी धर्मर्नु रहस्य २रोबर समजता नथी, एटले तेओमां ममत्व होय छे अने तेओ धर्ममां गृहस्थथी वधारे चडेला होता नथी. पण में प्रथम जे उपाय साधुओने दिक्षा आपवामां अने तेओने सर्टीफीकेट आपवानी बताव्यो, तेनो बराबर अमल थाय, तोपछी आ खामीओ तेनी मेळेज दूर थई जाय. विशेषमा साधुओने भणवा माटे पालीताणा अने अमदावाद जेवां शहेरोमां शाळाओ स्थपाय, जेथी श्रावकोने पैसानो व्यय ओछो थाय अने साधुओने भणवानी सगवड थाय, अने थोडा वखतमां शास्त्रानु रहस्य जाणी शके, अने साधुना समुदायमा रहेवाथी सुचारित्र पाळी शके, अने समुदायथी जे लाभ थई शके ते मेळवी शके, एटले चर्चा करी धर्मर्नु रहस्य जाणी शके, विगेरे घणा फायदा साधुशाळा स्थापवाथी थशे. आ प्रमाणे साधुओनो उद्धार थशे तोज श्रावकोनी उन्नति थशे. साधुनी ऐक्यता एज श्रावकनी ऐक्यता. हालमां साधुओना कुसंपथीज श्रावकोमां कुसंप देखाय छे. जो साधुओ शास्त्रमा कुशळ, धर्ममां लीन, सद्गुणी अने सुचारित्रवाळा थशे, तो श्रावको धर्ममां रागवाळा, गुरु प्रत्ये भक्तिवाळा थशे जैने परिणामे व्यापारमा अने केळवणीमां अने सुख संपत्तिमां अग्रेसर थशे. आ सिवाय श्रावकोनी स्थिति सुधारवाना बीजा उपायोनो पण विचार करीए. गरीब अने अज्ञान श्रावको आपणने मालुम पडे छे, तेने विद्यादान देवं ए आपणी फरज छे, अने पैसाथी अने बीजी रीते मदद आपवी ए ठीक छे; पण पैसानी मदद आपवामां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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