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________________ ( ९१ ) मिं. टोकरशी नेणसी लोदायानुं भाषण. वरसाद छे ते आखी सृष्टिनुं जीवन छे, पण ए पाणी जेम जमीन ऊपर जाय छे तेम खारा पाणीना समुद्रमां पण जाय छे. हवे जो समुद्रमां पडेलुं पाणी जो जमीन ऊपर पडे तो केंटलो मोटो पाक थाय ? तेज रीते पैसामां पैसो पडे तेना करतां ज्यां तेनी बहु जरुर होय त्यां आपणे पैसो वापरवो जोईए छे, तेने बदले आपणे पैसा लोकोने जमाडवामां तथा बीजी अनेक रीते वापरीए छीए. तमो घणीवार तमारा मित्रने जमाडवा बोलावो छो, ने तेनुं पेट भरेलुं होय छे तो पण तमो तेने एक लाडु वधु जमवा आग्रह करो छो; पण तेज वेळा तमारा वणा जैनबंधुओ एक मुंठी अनाज माटे केवा टळवळे छे, ते तमो याद राखता नथी. पण गरीबोने याद करी तेमने मदद करवानी दरेक जैननी फरज छे. आपणी कोमना गरीबोने उद्योगे लगाडवा माटे “ जैन ईन्डस्ट्रीयल फंड " उभुं करवामां आव्युं हतुं, पण दिलगीरी भयै छे के तेने पुरती मदद नहीं मळवाथी ते काम सफळ थयुं नथी. तेने बदले नाच करवामां अने बीजां खरचोमां आपणा जैनभाईओ पैसा खरचे छे ते दिलगीरी भर्युं छे. :0: शेठ सुजानमलजी सुलतानमलजी भंडारीनुं हिंदीमां भाषण. प्रथम पंच परमेष्टी तथा देवगुरुने नमस्कार करीने, सभापति, तेमज चीफ सेक्रेटरी साहेब अने सर्व जैनबांधवोने प्रणाम करूं छं. आप साहेबोए मारा पर कृपा करीने जैन निराश्रित भाईओ तथा बहेनोने आश्रय आपवाना संबंधमां बे बोल बोलवानी मने रजा आपेल छे. आमने पहेलोज अवसर आवा महाजन मंडळमां भाषण करवाने मळेलो छे. मारा प्यारा भाईओ ! आ विषयनो अर्थ सर्व महाशयो समजे छे, तथापि ए विषय उपर हुं पण कांईक बोलवा माटे आपना थोडा समयने रोकवा चाहुंछु. निराश्रित जैनोने आश्रय आपवो ए आपणा लोकोनुं मुख्य कर्तव्य कर्म छे; केमके थी धर्म नथा ज्ञातिनी वृद्धि थशे. एवा लोकोने आश्रय न आपवाथी घणाक लोको दिन प्रतिदिन पडती हालते पहोंचता जशे, केमके आश्रय वगरना तेओ शुं करी शके ? संवत् १९५६ ना दुकाळमां कंईक लोको ख्रिस्ति थई गया ए सर्व निराश्रितनुंज फळ छे. जो ए वखते आश्रय आपवामां आव्यो होत तो खचित एवो बनाव बनतज नहि. जेओ उद्यम रोजगार करी शके तेवी स्थितिमां होय, तेवाओने धन तथा सलाहनो आश्रय देवो जोईए. अपंग- आंधळा वगेरे अनाथो के जेओने कोईनो आधार नथी, तेओने खावा पीवानो आश्रय देवो जोईए. पण सर्व निराश्रितोने खावापीवानो आश्रय आपवामां आवशे, तो ते सर्व आळसु बनी मात्र खावापीवा उपरज पड्यां रहेशे, जेवां के हाल पालिताणामां पडेलां मौजूद छे. एओमां केटलांक तन्दुरस्त अने उधम करी शके एवां छे, छतां पण वगर महेनते खावापीवा मळे तो उद्यम कोण करे ? जो एवां तन्दुरस्त मनुष्योने माटे पण आवीज रुढी राखवामां आवशे तो बीजाओ पण आळस थई जशे; ए माटे निराश्रितने आश्रय आपवानी खास फरज छे. मने समय थोडोज मळ्योछे ए वास्ते मारे कई विशेष कहेतुं हतुं, पण हाल माफी मागुंडं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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