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________________ (६०) थाय छे, तेमां व्यवहारिक उत्तम प्रकारनी केळवणीधी अर्थ अने काम नामनां बे पुरुषार्थ तत्काळ सिद्ध थाय छे अने धार्मिक उत्तम प्रकारनी केळवणीथी, धर्म अने मोक्ष नामनां बे पुरुषार्थ अंतर फळरुपे सिद्ध थाय छे, अने अर्थ तथा काम नामनां वे पुरुषार्थ परंपर फळरुपे सिद्ध थाय छे. आ बने प्रकारनी केळवणीमां हिंदुस्थान मध्ये वसनारी समग्र उंची कोममां आपणी जैन कोम बहुज पाछळ छे, तेथी आपणा जैन पुत्रो तथा पुत्रीओ पोलनां ऊपर जणात्रेलां चारे पुरुषार्थ उत्तम प्रकारे साधवाने शक्तिमान थाय प्रकारनी केळवणी जैन बाळको नानी वयथी केवी रीते प्राप्त करी शके, वानी ख़ास जरूर छे. एटला सारु ते बन्ने तेना उपायो योज केळवणी शुं छे ? केळवणी ए बुद्धिने साफ अने हृदयने स्वच्छ करवानो एकज उपाय है, बुद्धि ज्यांनुधी साफ न होय त्यांसुधी प्रतिमाना उंचा आसन उपर बेसीने देव वांछित पवित्र मुख नोगत्री शकातुं नथी, अने हृदय स्वच्छ न होय तो सर्व प्रकारनी साधुता अने सर्व प्रकारना निर्दोषपणाना मनोहर पोशाकमां अलंकृत थई शकातुं नथी. केळवणीना प्रभावथी जेनुं हृदय स्वच्छ श्रयुं नथी, जेनी बुद्धि साफ थई नथी अने जे विवेकनो मार्ग देखवामां आगळ बध्यो नथी, ते मानवंता पवित्र पदने योग्य नथी; कारणके जेनुं हृदय अज्ञानना अभेद घोर अधकारमां ढंकायलुं छे, ते केवळ पोतानी इंद्रियोज तृप्त थयाथी पोताने कृतार्थ समजे छें अने कुदरतना कारणना शोधमां पोतानुं कर्तव्य नक्की करवामां अने सूक्ष्म विचारमां तनुं मन लागतुं नथी; ते काचबानी पेठे पोतानी छती शक्तिने छुपावीने पोतानो जन्मारो पुरो करे छे, वृक्षनां फळ आदि खाईने तृप्त थाय छे, शरानुं पाणी पीने तृष्णानी शांति करे छे, अने आवां अनेक नाना प्रकारनां कार्यो करीने तेमांज अपार आनंद अनुभव करे . पोताना जीवननुं प्रयोजन तेनाथी पुरुं श्रुतुं नधी अने तेनी बुद्धि तथा वृत्ति निर्मळ मोक्षना सत् मार्गने पहोंची शकती नथी. ते अज्ञान अवस्थामा जन्मे हे अने अज्ञान अवस्थामांज काळ गाळीने आ लोकमांथी, आव्यो तेमज पाछो जाय छे. पण जेणे उंची केळवणीना आधारे सर्व श्रेष्ट गुणो संपादन कीधा छे ते पोतानी जींदगी पवित्रताथी अने कलंकरहित गुजारे छे अने नरलोकमां होवा छतां देवलोकना पवित्र चारित्र वळथी, गंभीर लांबी नजरनी सहायताथी अने विवेकबुद्धिना प्रभावथी ते पोतानुं कर्तव्य यथारीति संपादन करीने आ नाशवंत जगत्मां अमर कीर्तिस्थंभ संपादन करे छे, के जेवी रीते आ कॉन्फरन्सनी योजना शुरू कर वामां आपणा बंधु मी. गुलाबचंदजी ढढाए कीर्तिस्थंभ उभो करेलो छे. प्रिय बांधवो, विद्या एज अमूल्य धन छे. केळवणी लीधाधी हित अहित विगेरेनो पुरतो विचार करीने पोतानुं अने बीजानुं दुःख ओद्धुं अने सुखनी वृद्धि करी शकाय है. गमे तो सामान्य माणस होय के प्रसिद्ध होय, 'धनवान होय के निर्धन होय, बाळक होय के वृद्ध होय, स्त्री होय के पुरुष होय, तोपण ए. दरेके ज्ञाननुं सेवन करवुं जोईए. जैनोनी स्थिति केवी छे ? त्यारे उपर कह्या प्रमाणे केळवणीनी आवश्यकता स्त्रिकार्या पछी आपणे आपणी जैन कामना ते संबंधनी स्थिति शांत चित्त विचारतां, आपणा दर्शनमां ते केवो देखाव आपे छे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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