SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५८) आपणे निराश थवानुं नथी, कारणके तेओनी मूळ वृत्तिओ हलकी होवाने लीघे बीजा संसारी संजोगो तेवाज मळी आवी तेओ देखीतो जय मेळवे छ, परंतु हालना जमानामां पेसो मेळवी परोपकार करनारनी पण हवे संख्या वधती जाय छे. आवी वृत्तिना पुरुषोना हाथमां हद बहार दोलत आवे छे तेम तेओनी उदार वृत्ति पण हद बहारनी थती जाय छे. ते तेनो उपयोग मोजशोख अथवा मोटां मकानो बांधी इंद्रियसुखो भोगवामां करता नथी, परंतु लोकोपयोगी पुस्तकालयो स्थापवामां, गरीबोने माटे आश्रम बांधवामां अथवा अज्ञानाने केळवणी आपवानी योजनाओमां पोताना पैसानुं सार्थक थएलुं समजे छे. तेओ पोताना पैसाने एक सरोवर समजे छे के जेमांथी दरेक तंगीवाळो माणस पोतानी शक्ति मुजब पाणी पी शके. आवा दाखला आपणा देशमां थोडा नथी अने तेमां छेल्ला अने ताजा आपणा जैनधमना आगेवान मर्हम श्री पनालालजीनी एक देशी जैनकोमनी उन्नति माटेनी सखावत छे. तवंगर माणसो धीमे धीमे शीखता जायछे के पोतानी कोमनी शारीरिक, मानसिक, धार्मिक अने संसारिक स्थिति सुधारवाने पोताना पैसानो व्यय करवो एना जेवं योग्य कर्तव्य बीजुं एकपण नथी, अने आ मत जेम वधशे अने विस्तारमा फेलावो पामशे, तेम कोमना हितनां साधनो वधारे नजीक आवतां जणाशे एमां शक नथी. केटलाक एम पण कहे छे के . उन्नतिमार्गमां वधारे प्रवृत्ति थवाथी प्रजा फक्त क्षणिक सुखनी ईच्छावाळी थइ जशे. अलबत आ कहQ केटलेक अंशे खरुं छे. हालनी विद्याओ कुदरती शक्तिओने शोध करवामां अने तेने माणसजातना उपयोगमा लाववाने मेहनत करे छे, परंतु तेम करवामां तज विद्वानो तेज कुदरतना गुलाम थता जाय छे, एटले बीजा शब्दोमां तेना नियमोनुं महत्व समजी बीजी तरफथी धर्मश्रद्धावाळा थता जाय छे अने कुदरतनां साधनो माणसना भलामां वापरतां शीखे छे अने तेथी भातृभाव अने जीवदया उत्पन्न थाय छे अने आ रीते धर्मवृत्ति जागृत थई प्रथम कहेलां चार साधनो प्राप्त करवा शक्तिवान थाय छे. उपरना विस्तारवाळा विवेचनथी आपणे संसारिक केळवणीनी साथे धार्मिक कळवणीथी थता फायदा जोई शकया छीए. जे जे प्रजाओमां केळवणीर्था विपरीत परिणाम आव्यां छे तेमां धर्मनो अंश न होवाने लीधे, ते पण खुल्लुं थयु छे; तो हवे आपणा भाईओनी उन्नति माटे आपणे शुं करवु जरुरनुं छे ते तपासीए. संसारिक उन्नति माटे व्यवहारिक केळवणीनी जरुर छे परंतु ते मेळव्या पछी अर्थ संपादन करी तेनो सारे मार्गे व्यय करी बीजाओगें भलं कर, अने नीतिथी वर्तव॒ आ नियमो जींदगीना वर्तनमां दाखल थवा माटे जरुरना छे. जैनोनी संख्या हाल देशमां जुदा जुदा भागोमां वेहेंचाएली छे. अने दरेक ठेकाणे केळवणीनां साधन नथी. वळी जैन कोम प्राचीन काळथी वेपारने माटेज लायक गणाएली छे. प्रथमनो वेपार देशनी अंदर अने देशी चीजोनोज हतो, एटले तेमां थोडी केळवणीथी चालतुं. हाल प्रदेशी चीजोनो वेपार अने बीजा देशोनी साथेनो संबंध साचववा माटे इंग्रेजी केळवणी अने वेपारनी पद्धति शीखवानी खास जरूर छे. आ माटे ज्या ज्यां जैनोनी वस्ती होय त्यां केळवणीनां साधन होई शकवानो संभव नी, तेमज आपणी धार्मिक केळवणी साथे अपाती न होवार्थी विपरीत परिणाम आवे छे. तेनी पण सावचेती लेवानी जरुर छ के त्यां आवां कारणोने लीधे एक सारं फंड एकळं करी बनारस हिंदु कॉलेजनी माफक एक जैन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy