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________________ ( ५७ ) मासण मात्रनी उन्नति माटे उत्पन्न थती काळजी छे. आ फेरफार- अगत्यर्नु चिन्ह दरेक ठेकाणे केळवणीनो प्रसार करवानी वृतिमां जणाई आवे छे. आ उपरथी एम जणाय छे के आगळ पडेलो वर्ग पाछळ रहेलाने उचकी आगळ लाववाने बनतो प्रयास करे छे अने आ वृत्ति पण उंच मानसिक केळवणीनुं परिणाम छे. बच्चांओने मानसिक अज्ञानमां राखवां ए आपणी फरजमाथी चुकवा बराबर छ एम हाल आपणे समजवा शीख्या छीए अने तेनु कारण एज होवू जोईए. हालनां बच्चांनी मानसिक स्थिति पछी सारी के खराब ते उपर भविष्यनी उन्नतिनो आधार छ एम आपणे समजतां शीख्या छीए. उन्नत्तिनुं बीजुं चिन्ह चालु जमानामां वधती जती उद्योगिक संस्थाओ छे, प्रजावर्गनी स्थिति उद्योगनी वृद्धिनी साथे बदलाती चाली छे अने ओछा वधता रूपमा दरेक माणस अर्थ शास्त्रनो नियम समजवा शीख्यो छे अने एक बीजानी साथे कुसंप वधारवाने बदले जूदी जूदी जातोए एकत्र थई वेपार खीलवी दोलतमंद थq ए सामान्य नियम थइ पडयो छे, एटले बीजा शब्दोमां बुद्धि अने संसारिक स्थिति सुधारवा माटे दोलत जरूरनी छे एम सर्व कोई मानवा लाग्या छे. जे माणसो फक्त पोताना गुजरान जेटलुंज कमाई शके छे तेओ उपरना हेतुओ प्राप्त करवामां फक्त साधनरुपज थई पडे छे, माटे तेओने वधारे खंतीला करी तेमनामां वधारे ईच्छाओ उत्पन्न करी, वधारे उद्योग करवाने उस्केरवानी जरूर छे. आ वृत्तिओ उत्पन्न करी वधारे पैसा रळवाने माटे वधारे ज्ञान मेळववानी स्वाभाविक फरज उत्पन्न थाय छे अने तेम करवामां बुद्धि धीमे धीमे खीलती जाय छे अने स्वतंत्रता अने नीति तेनी साथे वधती जाय छे. वळी माणसजात पार अने उद्योगमा प्रवृत्त थवाथी बीजा मनोविकार दबाई जाय छे, कायदाने मान आपवानी बुद्धि उत्पन्न थाय छे, मिताहारी थवा साथे नीशो करवानी इच्छा थतीज नथी अने ते उपरांत मायाळूपणुं अने बीजाओ तरफ मैत्रीभाव राखतां शीखे छे अने तमाम माणसो आ प्रमाणे वर्तवाथी एकंदर कोमनी संसारिक स्थिति सुधरे छे. पण आ वृतिओ एटले दरजे वधवी न जोईए के तेथी पैसा माटे हदपार लोभ अने ते गमे ते द्वारे अने रीते मेळववानी ईच्छा थाय, कारणके पैसानो लोभ ए दरेक पापर्नु मूळ थाय छे एम कहेवाय छे; माणसजातमां कदी न होतो एटला जोरमां आ विचार हालमां प्रसरेलो छे; तोपण एटलं भूली जq जोईतुं नथी के पैसाथी पोतानी तेमज पारकी संसारिक स्थिति सुधारी शकाय छे अने योग्य रीते वापरवाथी नीतिना उंचा धोरण उपर जवाय छे. पैसा मेळवानी ईच्छा एटली हद बहार न जवी जोईए के बीजाओने नुकसान करीने अनीतिथी पण ते संपादन करवाने ललचाय ; कारणके लोभनुं हथियार दगो छे. पैसाना लोभथी दगो करवानी वृत्ति उत्पन्न थाय छे. स्वार्थी माणस पोतानो हेतु पार पाडवाने जोर अने दगो ए बे हथियार वापरे छे. खरु जोतां आ हथियार हलका जान वाळो वापरे छे. जे बहादुर अने मजबुत होय ते तो खुल्ला मेदानमांज लडे छे, जेमके सिंह मेदानमा पोतानो शिकार पकडे छे पण शिआळ लुच्चाईथी खोराक मेळवे छे. घणे ठेकाणे आवी वर्तणुक चलावनार एq उपनाम मेळवे छे अने तेओ आ नीच शक्तिवडे नबळाओने हरावे छे. केहेबत छे के जबरो जिते, पण ते मात्र पशुवर्गने लागु पडे छे. जो नीतिना अर्थमां लईए तो दुनियामां जितवाने वधारे दगाबाज अने सौथी वधारे दांभिकनी जरुर छे. आम छतां पण परिणाम नीतिवर्तननो जय थाय छे. आवा दाखलाओ छे तेथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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